चाँद वाले आदमी ने क्या किया : अमरीकी लोक-कथा

What the Man in the Moon Did : American Lok-Katha

(Folktale from Native Americans, Eskimos Tribe/मूल अमेरिकी, ऐस्किमो जनजाति की लोककथा)

यह बहुत पुरानी बात है कि एस्किमो जाति का कहीं एक छोटा सा गरीब लावारिस लड़का रहता था। न तो उसका कोई घर था और न ही कोई उसकी देखभाल करने वाला था। यहाँ तक कि गाँव वाले भी उसकी कोई देखभाल नहीं करते थे।

उसको किसी भी झोंपड़ी में सोने नहीं दिया जाता था पर एक परिवार ने उसको ठंडी रातों में अपनी झोंपड़ी के बाहर के रास्ते पर सोने की इजाज़त दे रखी थी जहाँ उसके कुत्ते रहते थे। वहीं उसका बिछौना थे और वहीं उसकी रजाई।

खाने के लिये वे उसको कोई अच्छा माँस भी नहीं देते थे बल्कि मछली की सूखी खाल देते थे जैसे वे कुत्तों को देते थे। उसको वह सूखी खाल वैसे ही खानी पड़ती थी जैसे कि वे कुत्ते खाते थे क्योंकि उसके पास कोई चाकू नहीं था।

वहाँ केवल एक ही आदमी था जो उस पर तरस खाता था। और वह थी एक छोटी लड़की। उसने उसको लोहे का एक छोटा सा टुकड़ा ला कर दे दिया था जो उसके लिये चाकू का काम करता। वह उसी से उस सूखे माँस को काट लेता था।

उसने उससे कहा — “तुम इसको छिपा कर रखना नहीं तो गाँव के लोग तुमसे इसे छीन लेंगे।”

क्योंकि उसको ठीक से खाना नहीं मिलता था सो वह ठीक से बड़ा ही नहीं हो पा रहा था। वह बस बेचारा क़ज़ाक (Qjadjaq) ही रह गया और बहुत ही बुरी ज़िन्दगी बिता रहा था।

वह बेचारा दूसरे लड़कों के साथ खेल भी नहीं सकता था क्योंकि वे उसको “हड्डियों का छोटा थैला” कह कर पुकारते थे और हमेशा ही उसको कमजोर कहते रहते थे।

जब लोग गाने वाले घर में गाने के लिये इकठ्ठा होते तो वह रास्ते में पड़ा रहता और उस घर की देहरी से अन्दर झाँकता रहता। कभी कभी कोई उसको उसकी नाक से पकड़ता और उसको घर के अन्दर ले जाता और उससे पानी का घड़ा उठवा लेता।

वह घड़ा इतना बड़ा और भारी होता कि उसको उसे दोनों हाथों से अपना सिर लगा कर पकड़ कर ले जाना पड़ता। क्योंकि लोग उसको नाक से पकड़ कर उठाते थे इसलिये उसकी नाक तो बहुत बड़ी हो गयी थी पर वह खुद बहुत ही छोटा और कमजोर ही रह गया था।

आखिर चाँद में बैठे आदमी ने जो सारे ऐस्किमो लावारिसो ं की देखभाल करता है देखा कि लोग क़ज़ाक़ के साथ किस बुरी तरह से बरताव कर रहे थे। सो वह उसकी सहायता करने के लिये चाँद से नीचे उतरा।

उसने अपनी स्ले (Sleigh) में अपने ताकतवर कुत्ते जोते और नीचे आया। जब वह उसकी झोंपड़ी पास था तो उसने अपने कुत्तों को रोका और पुकारा — “क़ज़ाक़ बाहर निकल कर आओ।”

लड़के ने सोचा कि यह आदमी भी उसके साथ कोई चाल खेलने के लिये आया है सो वह बोला — “मैं बाहर नहीं आता तुम यहाँ से चले जाओ।”

उस चाँद वाले आदमी ने फिर कहा — “क़ज़ाक़, मैं कहता हूँ कि तुम बाहर निकल कर आओ।” अबकी बार क़ज़ाक़ को उसकी आवाज सामान्य लोगों से कुछ ज़्यादा मुलायम लगी।

पर फिर भी वह लड़का थोड़ा हिचकिचा रहा था सो बोला — “तुम मुझे गिरफ्तार कर लोगे।”

चाँद वाला आदमी बोला — “नहीं मैं तुमको कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। तुम बाहर तो आओ।”

तब क़ज़ाक़ धीरे धीरे बाहर आया। पर जब उसने देखा कि वहाँ कौन खड़ा था तब तो अगर वह वहाँ कोई आदमी खड़ा होता और वह उससे डरता तो वह तो उससे भी ज़्यादा डर गया।

चाँद वाला आदमी उसको एक ऐसी जगह ले गया जहाँ बहुत सारे बड़े बड़े पत्थर पड़े हुए थे। उसने क़ज़ाक़ को एक पत्थर पर लेट जाने के लिये कहा। क़ज़ाक़ तो डर के मारे उसको ना भी नहीं कह सका। वह तुरन्त ही उस पत्थर पर लेट गया।

तब उस चाँद वाले आदमी ने चाँद की एक लम्बी किरण ली और उससे उसको बहुत धीरे से मारा और पूछा — “क्या तुम अपने आपको ज़्यादा ताकतवर महसूस कर रहे हो?”

लड़का बोला — “हाँ थोड़ा सा ज़्यादा ताकतवर महसूस तो कर रहा हूँ।”

“तब एक पत्थर उठाओ।”

पर क़ज़ाक़ उस पत्थर को उठा नहीं सका सो चाँद आदमी ने उसको फिर से एक बार अपनी किरन से मारा और उससे फिर एक बार पूछा — “क्या तुम अब अपने आपको पहले से ज़्यादा ताकतवर महसूस कर रहे हो?”

“हाँ कर तो रहा हूँ।”

“तो उठाओ यह पत्थर।”

पर क़ज़ाक़ वह पत्थर भी जमीन से एक फुट से ज़्यादा ऊपर तक नहीं उठा सका।

सो चाँद आदमी ने उसको एक बार फिर मारा और फिर से पत्थर उठाने के लिये कहा। इस बार उसने वह पत्थर ऐसे उठा लिया जैसे वह कोई पत्थर की कंकरी हो।

चाँद वाले आदमी ने कहा “अब ठीक है। चाँद की किरनें भी अब तुमको ताकत देंगी। कल सुबह मैं तुम्हारे पास तीन भालू भेजूँगा तब तुम अपने गाँव वालों को दिखाना कि तुम्हारे पास कितनी ताकत है।”

यह कह कर वह चाँद वाला आदमी अपनी स्ले में बैठ गया और अपने घर चला गया।

अब हर बार जब भी चाँद की कोई किरण क़ज़ाक़ के शरीर को छूती तो उसको लगता कि वह बढ़ रहा है। सबसे पहले उसकी टाँगें बढ़नी शुरू हुईं जो जल्दी ही बहुत बड़ी हो गयीं।

और जब वह चाँद वाला आदमी वहाँ से गया तब तक तो वह पूरे साइज़ का आदमी बन चुका था।

अगली सुबह वह उस आदमी के भेजे हुए तीन भालुओं का इन्तजार करता रहा। कुछ ही देर में सचमुच में ही तीन भालू वहाँ आ पहुँचे।

वे तीनों भालू गुर्रा रहे थे और इतने भयानक लग रहे थे कि गाँव के लोग तो उनको देख कर ही डर गये और अपने अपने घरों में घुस कर उनके दरवाजे बन्द कर लिये।

पर क़ज़ाक़ ने अपने जूते पहने और बर्फ की तरफ भागा जहाँ भालू खड़े हुए थे। गाँव के लोगों ने अपने अपने घर की खिड़कियों से झाँका तो आश्चर्य से उनके मुँह से निकला — “अरे क्या यह क़ज़ाक़ है? यह यह क्या कर रहा है? ये भालू तो इस बेवकूफ को तुरन्त ही खा जायेंगे।”

पर दूसरे ही पल तो वे सब और आश्चर्यचकित रह गये जब उन्होंने देखा कि क़ज़ाक़ ने एक भालू को पीछे के पैरों से पकड़ा और उसके सिर को उसके पास पड़े एक बर्फ के टुकड़े पर मसल दिया। दूसरे की भी उसने वही हालत की।

पर तीसरे भालू को तो उसने अपने हाथों में उठाया और गाँव की तरफ ले चला। वहाँ जा कर उसने उसे उन गाँव वालों को खाने के लिये छोड़ दिया जो उसका अपमान करते थे।

वह बोला — “यह मुझे गालियाँ देने के लिये और मेरे साथ बुरा बर्ताव करने के लिये है।”

उन गाँव वालों में से कुछ को तो वह भालू खा गया और जो बच गये वे वहाँ से भाग गये। जिन्होंने क़ज़ाक़ को जब वह बच्चा था तंग नहीं किया था उसने उनको छोड़ दिया।

इन छोड़े हुओं में वह लड़की भी थी जिसने उसको चाकू दिया था। बाद में उसने उससे शादी कर ली और खुशी खुशी रहने लगा।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

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