व्यापारी : फ़्रेंज़ काफ़्का
Vyapari : Franz Kafka
संभव है कि कुछ लोग मेरे लिए दुःखी होते हैं पर यह मुझे मालूम नहीं। मेरा छोटा सा व्यापार ही मुझे इतनी चिंताएँ देता है कि मेरे माथे तथा कनपट्टियों में दर्द हो जाता है एवं राहत की तनिक भी संभावना नहीं रहती, क्योंकि मेरा व्यापार छोटा है।
मुझे चीजों को पहले तैयार करने, केयरटेकर की स्मृति को झकझोरने, उसे संभावित गलतियों के प्रति सचेत करने वर्ष के एक मौसम में आनेवाले मौसम के उस फैशन के बारे में सोचने, जो मेरे परिचित लोगों में प्रचलित नहीं है, लेकिन जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाले किसानों को पसंद आएगी, आदि कामों में घंटों व्यतीत करने पड़ते हैं।
मेरे पैसे अजनबियों के हाथ हैं, उनकी स्थितियाँ मेरे लिए रहस्य हैं; मैं उस दुर्भाग्य को नहीं देख सकता जो उन्हें परास्त कर सकता है, मैं उन्हें संभवत: कैसे टाल सकता हूँ। शायद वे फिजूलखर्ची कर रहे हैं तथा किसी सराय के बगीचे में भोज का आयोजन कर रहे हैं; उनमें से कुछ अपनी अमरीका की यात्रा के पूर्व एक संक्षिप्त राहत के रूप में इस भोज में शामिल हो रहे हैं।
कार्य दिवस की समाप्ति पर अपने व्यापार की शुरुआत करता हूँ तो देखता हूँ कि आनेवाले समय में मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर पाऊँगा जिससे कि उसकी कभी न खत्म होनेवाली माँग पूरी हो जाएगी, तब मेरी वे सारी उत्तेजना जो सुबह मैंने भगा दी थी, गिरते ज्वार की तरह मेरे पास वापिस आएँगी, लेकिन वे मेरे अंदर सीमित नहीं रह सकतीं, बल्कि निरुद्देश्य रूप से मुझे भी अपने साथ उड़ा ले जाएँगी।
फिर भी मैं इन उत्तेजनाओं का कोई उपयोग नहीं कर सकता, मैं सिर्फ घर जा सकता हूँ, क्योंकि मेरा चेहरा और हाथ पसीने में सुने और गंदे हो रहे हैं; मेरे कपड़ों पर धूल-धब्बे और दाग पड़ गए हैं, मेरी टोपी अभी भी मेरे सिर पर है तथा मेरे जूतों पर बड़े बक्से की काँटियों से खरोचें पड़ गई हैं। मैं घर ऐसे जाता हूँ मानो लहरों पर सुवार हूँ; अपने दोनों हाथों की उँगलियों को मरोड़ता तथा अपने बच्चों को देखते ही उनके बालों को चूम लेता हूँ। लेकिन रास्ता छोटा है। शीघ्र ही मैं अपने घर पहुँचता हूँ, लिफ्ट का दरवाजा खोलकर उसमें प्रवेश करता हूँ। अचानक मुझे एहसास होता है कि मैं अकेला हूँ। कुछ लोग, जो सीढियों के माध्यम से ऊपर चढ़ते हैं, चढ़ते समय थोड़ा थक जाते हैं, हाँफती साँसों से दरवाजा खुलने का इंतजार करते हैं, जिससे उन्हें अधीर एवं चिडचिडा होने का बहाना मिल जाता है और उन्हें एक ऐसे हॉल से गुज़रते हुए वापिस जाना पड़ता है, जहाँ टोप टँगे होते. हैं, फिर भी वे अनेक शीशे के दरवाजों से गुजरते हुए लॉबी में पहुँचते हैं और फिर अपने कमरे में वापिस आते हैं तथा स्वयं को अकेला पाते हैं।
लेकिन शीघ्र ही मैं लिफ्ट में खुद को अकेला पाता हूँ, तथा घुटने के बल झुककर छोटे से शीशे में देखता हूँ । जैसे ही लिफ्ट ऊपर उठने लगती है, मैं कहता हूँ-
खामोश हो जाओ, अपने साथ क्या ये वृक्षों की छाँव में या खिड़की के परदे के पीछे या बगीचे में छायादार बैठकी में जगह बनाना चाहते हो?
मैं अपने दाँतों के पीछे यह कहता हूँ कि खिड़की के अपारदर्शी शीशे के सामने से सीढियाँ बहते पानी की तरह गुजर जाती हैं।
तब उड़ जाओ, अपने पंखों को जो मैंने कभी नहीं देखे हैं, खोल दो और स्वयं को इसे गाँव के निम्न क्षेत्र या दूर, बहुत दूर पेरिस, जहाँ भी तुम जाना चाहते हो ले जाने दो।
लेकिन वहाँ भी बाहर के दृश्य का आनंद लो। देखो किस तरह तीन चौराहों के जुलूस एक-दूसरे को रास्ता न देते हुए तथा एक-दूसरे से आगे निकलते हुए, शीघ्र एक जगह एकत्रित होते हैं एवं ऐक बार फिर खुली जगह खाली हो जाती है। गुस्से में हो या अभिभूत हो, अपना लहराओ तथा गाड़ी चलाते हुए तुमसे आगे गई महिला की प्रशंसा करो ।
नहर के ऊपर लकड़ी के पुल से जाओ, नीचे नहर में स्नान करते बच्चों को देखो तथा उल्लास भरो, दूर लड़ाकू जहाज पर जाते हजारों नाविकों के प्रति।'
उसे मामूली आदमी का पीछा करो, और जब उसे किसी दरवाज़े के अंदर धकेल दो तो उसे लूट लो और फिर अपनी जेब में हाथ डालकर अपनी बाईं ओर गली में उदास कदमों से उसे जाते हुए देखो ।
घोड़े पर सवार पुलिस तुम पर आक्रमण कर तुम्हें पीछे धकेल देती है। उन्हें करने दो, खाली गलियाँ देखकर उनका मनोबल टूट जाएगा, मुझे मालूम है। तुम्हें जो मैंने कहा वह यह है कि वे स्वयं जोड़े में पूरी रफ्तार में सड़कों पर भाग रहे हैं।
तब मुझे लिफ्ट को छोड़ना पड़ा तथा इसे नीचे भेजना पड़ा। तब मैंने घंटी बजाई, नौकरानी ने दरवाजा खोला तब मैंने कहा, गुड ईवनिंग !
(अनुवाद: अरुण चंद्र)