वृद्ध : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा

Vriddh : Lok-Katha (Uttar Pradesh)

पुराने समय की बात है, कंधारी गांव के नजदीक किसी से वन में आग लग गई थी, राजा के पास समाचार पहुंचा तो उसने गांव की औरतों और बच्चों को छोड़ सभी मर्दो को बुला लिया। गांव में एक ही वृद्ध था। उसने चलने से पहले सबको समझाया कि वन में आग लगाना कतई ठीक नहीं है। वन हमारे देवता हैं। भविष्य में कोई गलती न करें। सभी ने स्वीकार किया और दृढ़ संकल्प किया कि सभी हमेशा जंगल की रक्षा करेंगें। वृद्ध ने सभी को यह भी कहा कि राजा के पास जो होगा वह देखा जाएगा, किंतु सभी बिलकुल इंकार कर देंगे कि आग किसने लगाई है। उन्हें कोई पता नहीं।

कंधारी गांव के लोग राजा की दहलीज पर पहुंच गए थे। पहुंचते ही राजा ने पूछा-वन को आग किसने लगाई?”

“पता नहीं महाराज। सबने इकट्ठ कहा।” “मैं जेल में डाल दूंगा वरना सत्य कहो।” “महाराज जी, हमें पता ही नहीं।” सभी ने इकट्ठ कहा।

“मैं जेल में डाल दूंगा वरना सत्य कहो।” “महाराज जी हमें पता नहीं।” सभी ने फिर डरते हुए कहा। “अच्छा! डाल दो सबको जेल में” राजा ने हुक्म दिया। राजा के आदेश देने की देर ही थी कि सभी जेल में डाल दिये। राजा के कहने पर उन्हें एक चारपाई, खाने के लिए राशन, लकड़ी, एक जली लालटेन दी गई। जो चारपाई पर सोयेगा वही नेता होगा और वह सच स्वंय कहेगा। वृद्ध ने सभी को समझाया कि न कोई खाना बनायेगा न ही खायेगा। चारपाई पर भी कोई नहीं सोयेगा। सभी एक-एक टांग चारपाई पर रखेंगे। सभी ने वृद्ध की बात मानी।

सुबह राजा ने वजीर भेजा। वजीर उन्हें देखकर हैरान रह गया। उसने पूछा”चारपाई पर कोई क्यों नहीं सोया, एक-एक टांग चारपाई पर कैसे रखी है?”

“जी, बाबा जी ने नाराज होना था। हमने सोचा कि बाबा जी महाराज नाराज न हों। उनके आदर के लिए एक-एक टांग चारपाई पर रख दी।”

“खाना कोई नहीं पकाया जबकि लकड़ी-राशन सब दिया था।” “देवता जी, आग नहीं थी।” “लालटेन तो थी।” वजीर ने कहा। जनाब, इस लुप-लुपी से आग कैसे जलती, हमें पता नहीं था। सभी ने एक साथ कहा।

वजीर राजा के पास गया और सारी बात बताई। राजा ने कहा- ये तो भोले कंधारी हैं। इन्हें छोड़ दो। राजा का आदेश मिलने पर सिपाहियों ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी।

अब कंधारी गांव के सभी पुरुष बहुत खुश हुए। उन्होंने लौटते हुए सयाने की बहुत इज्जत-मान किया। उन्हें पता चल चुका था कि वृद्धों की सदैव इज्जत करनी चाहिए और उनके अनुभवों से लाभ उठाना चाहिए। (साभार : प्रियंका वर्मा)

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