विवशता : सिक्किम की लोक-कथा
Vivshata : Lok-Katha (Sikkim)
बात बहुत पुरानी है। एक जंगल के करीब छोटी सी कुटिया हुआ करती थी, जिसमें एक बहन अपने भाई के साथ रहती थी। वे अनाथ थे, उनका इस दुनिया में अपना कहनेवाला कोई नहीं था। दोनों में गहरा जुड़ाव था। बहुत गरीबी में भी वे खुश रहते थे। वे रोजाना जंगल को जाते, जंगली फल-फूल इकट्ठा करते और खाते। एक बार ऐसे ही जंगल में कुछ खोजते हुए उन्हें आलू मिले, जिसे खोदकर चखा तो उसका स्वाद कुछ मीठा था। उन्होंने भरपेट आलू खाए। ऐसे ही जंगल से फल-कंदमूल खाकर उनके जीवन का गुजारा चलता। इस जिंदगी से भी वे बड़े खुश थे।
एक बार उसी इलाके में, जहाँ भाई और बहन रहते थे, बारिश की कमी हुई, जिसके कारण सूखे की समस्या आई। नदी-नाले, झरनों में पानी के सारे स्रोत सूख गए। पानी के अभाव में चारों ओर की हरियाली सूखने लगी। पेड़-पौधों से जीवन जाता रहा। पशु-पक्षी, प्राणी सभी इस सूखे के कारण प्यास से तड़पने लगे। खाने-पीने का अभाव होने लगा। यहाँ-वहाँ घूमकर भी उन्हें खाने और पीने को कुछ उपलब्ध नहीं हुआ। हरियाली जमीन बंजर जैसी दिखाई पड़ने लगी।
दोनों भाई-बहन के लिए संकट और बढ़ गया। उन्हें खाने को कुछ भी नसीब नहीं हो रहा था। मुँह में डालने को एक कौर तक मिलना कठिन हो गया था। यहाँ-वहाँ दर-दर की ठोकरें खाते भी उन्हें खाने को कुछ भी नहीं मिल रहा था, जिसके कारण वे दुर्बल और कमजोर होने थे। बड़ी बहन अब भी चलने-फिरने की स्थिति में थी, उसे अपने भाई की चिंता थी, इसलिए हिम्मत कर आगे बढ़ रही थी। पर भाई अब तक इतना कमजोर हो चुका था कि वह अपनी बहन का पीछा करने की हिम्मत नहीं रखता था।
एक दिन उनके साथ एक हादसा हुआ। जंगल में खाने की खोज में भटकते दोनों भाई-बहन वहाँ पहुँचे, जहाँ उन्हें प्रकृति के सुखद दिनों में मीठे आलू मिले थे। बहुत उम्मीद के साथ बहन ने जमीन खोदना आरंभ किया। मीठे आलू का खयाल आते ही छोटे भाई के मुँह में पानी आने लगा। उसकी भूख और ज्यादा बढ़ गई। भाई के मुँह से निकला ‘क्यू’, लेपचा भाषा में, इसका आशय मीठा आलू होता है। भाई के मुँह से बार-बार ‘क्यू-क्यू’ निकलने लगा था। उसका भूख से हाल-बेहाल हो रहा था। अपने भाई की ऐसी दशा देखकर बहन का मन भी बड़ा आहत हो रहा था। उसने अपने भाई के उत्तर में ‘क्यों, क्यों, क्यों’ कहकर उसे आश्वस्त किया। ‘क्यों’ का लेपचा भाषा में आशय ‘मैं तुम्हें दूँगा’ से है। बहन जमीन को लगातार खोदती रही, पर उसे कंदमूल कहीं दिखाई नहीं दिए। बहुत बड़ा गहरा गड्ढा खोदा, पर कंदमूल कहीं दिखे नहीं। रात होने को थी, सूरज अपनी किरणों को समेट चुका था। तभी अचानक उस बड़े गड्ढे में बहन गिर गई। सूखी मिट्टी फिसलती उसके ऊपर गिरने लगी। भाई कुछ समझ पाता, इससे पहले ही बहन अपने खुदे गड्ढे में दफन हो गई। इस दृश्य को देखकर भाई की स्थिति बहुत खराब हो गई। इस व्यथा में वह वहीं बेहोश हो गया और फिर उसे कभी होश नहीं आया। भूख की आग बुझती, इससे पूर्व ही दोनों हमेशा के लिए शांत हो गए।
लेपचा समाज में ऐसी मान्यता है कि दोनों की अतृप्त आत्माओं ने पक्षी का रूप लिया है, पक्षी ‘क्यू–क्यों’ की आवाज निकालते हैं। जब कोई पक्षी ‘क्यू’ और अन्य कोई पक्षी ‘क्यों’ का उत्तर देते सुनाई देता है, तो पुनः उनके मानस में भाई-बहन की कथा ताजी हो उठती है। वे समझ जाते हैं कि कोई खाने की तलाश में है इसलिए लेपचा समुदाय उनकी मदद में तत्पर हो जाते हैं।
(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)