विजेता (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
Vijeta (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen
सालाना इनाम जीतने वाले के नाम की घोषणा होने वाली थी: असलियत में दो इनाम थे : एक बड़ा और एक छोटा। वे पूरे साल दौड़ने वालों में सबसे तेज़ दौड़ने वाले को दिए जाने वाले थे।
खरगोश ने कहा, 'मुझे पहला इनाम मिला है। यह ठीक भी है; आखिर तय करने वाली कमेटी में मेरे परिवार के लोग और दोस्त हैं। पर मेरे ख्याल से घोंघे को दूसरा इनाम दिया जाना बेइज्जती की बात है।'
'नहीं!' बाड़ के खंभे ने बहस करते हुए कहा। उसने इनाम बँटते हुए देखा था। 'मेहनत, कोशिश और लगातार परिश्रम के बारे में भी सोचना चाहिए; बहुत-से बुद्धिमान् लोग ऐसा कह रहे थे और मैं भी यह मानता हूँ। घोंघे को चौखट पार करने में छ: महीने लगे, और इस भागदौड़ में उसके कूल्हे की हड्डी भी टूट गई। उसने इस दौड़ में हिस्सा लेने के अलावा और किसी बात के बारे में सोचा भी नहीं। यही नहीं, वह पीठ पर अपना घर लादकर दौड़ रहा था, यह तारीफ की बात है। इसीलिए उसे दूसरा इनाम दिया गया है।'
अबाबील ने बीच में टोककर कहा, 'वे मेरे बारे में भी सोच सकते थे। मुझसे तेज़ कोई नहीं है। मैं आगे और पीछे दोनों तरफ जा सकती हैं। और मैंने ऐसा कोई नहीं देखा है जबकि मैंने बहुत दूर-दूर तक सफर किया हुआ है।'
बाड़ के खंभे ने जवाब में कहा, 'हाँ, तुम्हारा यही हाल है। तुम हर वक्त अपना देश छोड़कर सफर पर जाने को तैयार रहती हो। तुमको देश से प्यार नहीं है, तुम्हें इनाम नहीं दिया जा सकता।'
अबाबील ने पूछा, 'अगर मैं पूरी सर्दियाँ दलदल में रहूँ तो? अगर मैं आधा साल सोती रहूँ तो मैं इस लायक होऊँगी?'
'दलदल की चुडैल से लिखवाकर ला दोगी कि तुम छ: महीने तक अपने देश की ज़मीन पर सोती रहीं तो मेरा वायदा है कि अगले साल तुम्हें भी हिस्सा लेने दिया जाएगा।'
घोंघे ने बड़बड़ाते हुए कहा, 'मुझे लगता है मुझे पहला इनाम मिलना चाहिए था। सब जानते हैं कि खरगोश सिर्फ इसलिए भागता है क्योंकि वह डरपोक है। वह अपनी परछाईं से भी डरता है। पर मैंने दौड़ने को अपना पेशा बनाया है। वह मेरी जिंदगी का काम है ! मैं इस काम में लगे होने की वजह से कमज़ोर हो गया हूँ। अगर किसी को पहला इनाम जीतना चाहिए था तो वह मुझे जीतना था। पर मैं झगड़ा नहीं करता, मुझे झगड़ा करने वाले लोग बहुत नापसंद हैं।' घोंघा गुर्राया।
निगरानी रखने वाले ने दोनों खेतों के बीच की सीमा तय करने के लिए एक खंभा गाड़ा था, वह खंभा भी कमेटी का सदस्य था। वह बोला, 'मैं यह कह सकता हूँ कि मेरा वोट ईमानदारी से डाला गया। मैं जीतने वालों के चुनाव के बारे में बता सकता हूँ। मैं क्रम, व्यवस्था और गिनती में विश्वास करता हूँ। मैं पहले भी सात बार इनाम देने वाली कमेटी का सदस्य रह चुका हूँ, पर यह पहली बार है कि पूरा काम मेरे तरीके से हुआ। मैं हर बार चाहता हूँ कि इनाम तय करने के लिए कोई खास बात हो, कुछ ठोस तरीका हो, इसलिए मैंने वर्णमाला के शुरू के अक्षर से पहले इनाम के लिए और अंतिम की तरफ से दूसरे इनाम के लिए नाम चुनने का फैसला किया। आपने देखा होगा कि 'ए' से शुरू करो तो आठवाँ अक्षर 'एच' है इसलिए मैंने हेयर (खरगोश) को पहला इनाम देने के लिए कहा। अंत की तरफ से देखो तो आठवाँ अक्षर 'स' है इसलिए मैंने स्नेल (घोंघे) को चुना। अगली बार 'आई' को पहला और 'आर' को दूसरा इनाम दिया जाना चाहिए। हमेशा हर चीज में एक क्रम होना चाहिए जिससे आदमी को पता हो कि वह किस जगह खड़ा है।'
खच्चर जजों में से एक था इसलिए बोला, 'अगर मैं कमेटी पर न होता तो अपना नाम देता। सिर्फ रफ्तार के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए, कोई कितनी दूर जा सकता है, यह भी महत्त्वपूर्ण है। पर मैंने अपने निर्णय पर इसका असर नहीं आने दिया, ना ही मैंने इस बात पर कोई खास ध्यान दिया कि खरगोश कितनी होशियारी से दौड़ता है, जैसे वह पहले एक तरफ कूदता है, फिर दूसरी तरफ जिससे उसके पीछे आने वाला बेवकूफ बन जाए। नहीं, मैं एक खास बात के बारे में सोच रहा था, जिसे हल्के ढंग से नहीं लिया जाना चाहिए; खूबसूरती ! मैं उसके बारे में सोच रहा था। मैंने खरगोश के सुंदर लंबे कान देखे, देखकर मज़ा आ गया! उसे देखकर मुझे अपनी जवानी याद आ गई; और इसलिए मैंने उसे अपना वोट दिया।'
मक्खी बोली, 'चुप करो, मैं भाषण तो नहीं देना चाहती पर कुछ कहना चाहती हूँ। मैं बहुत-से खरगोशों से तेज़ भाग चकी हँ। उस दिन मैंने एक की पिछली टाँग तोड़ दी। मैं रेल खींचने वाले इंजन पर बैठी थी। मैं ज्यादातर रेल से सफर करती हूँ। मुझे लगता है अपनी रफ्तार जानने की वह सबसे बढ़िया जगह है। एक छोटा खरगोश सामने दौड़ रहा था, मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि वह मेरे वहाँ होने के बारे में नहीं जानता था। आखिर उसे या तो पटरी से उतरना था या वह कुचला जाता। उसने हटने की कोशिश की पर मेरा इंजन उसकी टाँग पर से चला गया। मैं वहीं थी। खरगोश पीछे रह गया मैं आगे निकल गई अगर इसे दौड़ में जीतना नहीं मानते तो किसे मानते हैं। पर मुझे इनाम नहीं चाहिए।'
जंगली गुलाब ने ज़ोर से नहीं कहा, क्योंकि वह उसके स्वभाव के खिलाफ है, हालाँकि इस मामले में ज़ोर से बोलना अच्छा ही रहता, 'मैं सोचता हूँ कि सूरज की किरण को पहला और दूसरा दोनों इनाम मिलने चाहिए थे। वह सूरज से हम तक की दूरी बिना वक्त लगाए पार कर लेती है और फिर भी पूरी दुनिया को जगाने की ताकत रखती है। उसमें एक ऐसी खूबसूरती है कि हम गुलाब तक शरमा जाते हैं। वह हमें अपनी खुशबू भी देती है। माननीय कमेटी ने सूरज की किरण की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। अगर मैं किरण होता तो उन्हें सूरज की तेज़ गरमी से मारता, पर इससे वे और पागल हो जाते, पागल तो वे हैं ही। मैं नहीं कहूँगा।' जंगली गुलाब ने सोचा, 'जंगल में शांति हो! खिलना और अपनी खुशबू बिखेरना अपने से प्यार करने वालों को खुश करना और पौराणिक कथा तथा गीत में जीवित रहना कितना अच्छा लगता है। सूरज की किरण हमारे बाद तक रहेगी।'
केंचुआ जो सोता रह गया था, अब आया और पूछने लगा, 'पहला इनाम क्या था?'
खच्चर ने जवाब दिया, 'बंदगोभी के बगीचे में मुफ्त में घूमना, मैंने ही यह इनाम सुझाया था। खरगोश जीतने वाला था, मैंने-कमेटी के अक्लमंद सदस्य होने के नाते तय किया कि कोई काम की चीज़ होनी चाहिए। अब खरगोश का काम बन गया। घोंघे को पत्थर की चारदीवारी पर बैठकर धूप सेकने की इजाजत दे दी गई है, इसके अलावा भविष्य में होने वाली सभी दौड़ों के लिए हमेशा के लिए रहने वाले जज की जगह पहली बार दे दी गई है। कमेटी पर एक होशियार का रहना अच्छा होता है। मुझे लगता है कि शुरुआत इतनी अच्छी होने की वजह से भविष्य में और बड़ी बातें होंगी।'