विद्वान गधा : उज़्बेक लोक-कथा

Vidwan Gadha : Uzbek Folk Tale

एक बार एक गधा बाग़ में घुसा। उसने देखा - पेड़ों पर सेब लटक रहे हैं और पास के खेत में बेल की पतली-पतली शाखाओं पर कद्दू पक रहे हैं।

गधे ने एक बार फिर सेबों की ओर देखा, उसके बाद कद्दू की ओर और कान हिलाकर दुःखी स्वर में कहने लगा :

"कितने मूर्खतापूर्ण ढंग से बनाया गया है इस दुनिया को !"

पेड़ पर बैठी गौरैया ने पूछा :

"अच्छा, जनाब, यह बताइये कि आपको इस दुनिया के बनाने में किस चीज की कमी नजर आ रही है ?"

"क्या तुम खुद नहीं देख रही हो ?" गधे ने जवाब दिया और पहले सेबों की ओर इशारा किया, फिर कद्दूओं की ओर।" यह देखो इतने ऊँचे पेड़ पर बच्चे की मुट्ठी के बराबर के मीठे फल लगे हैं और यहाँ पतली-पतली शाखाओं पर मेरे सिर जितने बड़े-बड़े बेस्वाद कद्दू ज़मीन पर पड़े हैं ।

"इसी में तो सारी बुद्धिमानी है," गौरैया ने विरोध किया।

"भला इसमें क्या बुद्धिमानी है ?!" गधा चिल्लाया । "अगर सेब कद्दू जितना और कद्दू सेब जितना होता, तो मैं इसे बुद्धिमानी कहता ।"

गधे ने सेब के पेड़ से अपना बदन रगड़ा और एक सेब टूटकर सीधा उसके सिर के ऊपर लगा।

"हाय मेरा सिर !" गधा रेंकने लगा ।

गौरैया हँस पड़ी।

"अच्छा हुआ कि सेब कद्दू जितना बड़ा नहीं था, नहीं तो आपके सिर का कुछ भी न बचा होता ।"

गधा हेंचू-हेंचू करता तुरंत सेब के पेड़ से दूर भाग गया।

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