विदेश-यात्रा (अंग्रेजी कहानी) : चार्ल्स डिकेंस
Videsh-Yatra (English story in Hindi) : Charles Dickens
मैं एक यात्री रथ में बैठ गया। वह जर्मनी की बनी हुई थी। उसके अंदर काफी जगह थी, भारी थी और उस पर वार्निश का कोट भी नहीं था। मैं उस रथ में बैठ गया। बैठने के बाद मैंने पावदान को ऊपर खींच लिया तथा आराम से बैठने के बाद दरवाजे को बहुत स्मार्टली बंद कर लिया और सारथी को चलने का आदेश दिया, "गो ऑन।"
बहुत ही जल्द लंदन के पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी पीछे छूटते चले गए, इतनी तेजी से कब ओल्ड कैंट रोड, ब्लैकहीथ और यहाँ तक कि शूटर्स हिल कब निकल गए या पीछे छूट गए, कुछ पता ही नहीं चला। इसके पहले कि मैं एक शांत यात्री की तरह पीछे मुड़कर देखता, सब चिर-परिचित पीछे छूट गए।
मेरे दो बड़े-बड़े इंपीरियल ट्रंक ऊपर रखे हुए थे और दूसरा सामने सामान रखने की जगह में फिट कर दिया गया था और एक अन्य पीछे रखा था। ऊपर रखी हुई किताबों के लिए एक नेट या जाल था। सारी खिड़कियों के साथ बड़ी-बड़ी थैलियाँ लगी थीं और इधर-उधर की चीजें रखने के लिए चमड़े का एक झोला भी था। इसके अलावा रथ के पिछले हिस्से में पढ़ने के लिए एक लैंप भी लगा था, जिससे कि मैं न रह जाऊँ। मेरे पास उस रथ में ऐशो-आराम की हर चीज थी और मुझे कुछ भी पता नहीं था कि मैं कहाँ जा रहा था।
यह भी एक आनंददायक चीज थी, इसके अलावा कि मैं विदेश जा रहा था।
पुरानी ऊँची सड़क इतनी चिकनी थी और घोड़े भी इतने तरो-ताजा थे और इतनी तेजी से दौड़ रहे थे कि कुछ ही समय में हम ग्रेवसेंड और रॉचेस्टर के बीच में थे कि हम जल्द ही चौड़े पाटवाली नदी के पास पहुँच गए, जहाँ तमाम जहाज खड़े थे, जिनके मस्तूल या तो सफेद थे या काले। उसी वक्त मैंने सड़क के किनारे एक अजीब सा लड़का देखा।
"हेलो!" मैंने उस अजीब से लड़के से कहा, "तुम कहाँ रहते हो?"
"चैथम में।"
उसने बताया। "तुम वहाँ पर क्या करते हो?" मैंने पूछा।
"मैं स्कूल जाता हूँ।"
मैंने एक ही क्षण में उसे अपने रथ में बैठा लिया। थोड़ी देर बाद उस बालक ने कहा, "यह गॉड्स हिल है, जहाँ पर फाल्स्टाफ मुसाफिरों को लूट लेता था और भाग जाता था।"
"तुम्हें फाल्स्टाफ के बारे में कुछ पता है?'' मैंने कहा।
"मुझे उसके बारे में सबकुछ पता है।" उस छोटे से अजीब लड़के ने कहा, "मैं काफी बड़ा हूँ (मैं नौ साल का हूँ) और मैं हर तरह की किताबें पढ़ता हूँ। पर हमें इस पहाड़ की चोटी पर रुकना चाहिए और उस घर को देखना चाहिए, यदि आप चाहें तो, प्लीज!"
"तुम्हें वह घर पसंद है?" मैंने पूछा।
"आपका भला हो, सर!" उस छोटे से लड़के ने कहा, "जब मैं केवल पाँच वर्ष का था, तब मुझे बहुत अच्छा लगता था, जब मेरे पिता मुझे यह घर दिखाने के लिए ले जाते थे। और अब मैं नौ साल का हो गया हूँ और अपने आप यहाँ पर उस घर को देखने चला आता हूँ। और मुझे जहाँ तक याद है, मेरे पिता कहा करते थे, 'यदि तुम्हें यह घर इतना ही पसंद है तो तुम यदि लगन व मेहनत से काम करोगे तो एक दिन इस घर के मालिक हो सकते हो।' यद्यपि यह लगभग असंभव है।" उस छोटे से अजीब बालक ने एक धीमी साँस भरते हुए कहा। अब वह खिड़की से बाहर उस घर की ओर ध्यान से देख रहा था।
मैं उस छोटे बालक के मुख द्वारा यह सुनकर बहुत हँसने लगा, क्योंकि वास्तव में वह घर तो मेरा ही था और मुझे विश्वास था कि जो वह कह रहा था, वह सच था।
वेला! मैं वहाँ पर रुका नहीं और थोड़ी देर बाद उस अजीब छोटे बालक को अपने रथ से उतार दिया। हमारा रथ उन सड़कों पर से गया, जहाँ पुराने समय में रोमन लोग मार्च करते हुए जाते थे। हम उन सड़कों पर से गए, जहाँ से प्राचीन कैंटरबरी तीर्थयात्री होकर जाते थे। हम उन सड़कों पर से गए, जहाँ पुराने समय में राजसी पुरोहित और राजकुमारों व राजाओं की सवारियाँ निकला करती थीं और यात्री घोड़े की पीठ पर सवार, जिनके गले में बँधी घंटियाँ टन-टन बजा करती थीं और वे यूरोप महाद्वीप से इस ब्रिटिश द्वीप समूह पर आते थे-नदी और कीचड़ में से गुजरते हुए उन सड़कों पर से गुजरे, जहाँ शेक्सपीयर अपने आप से गुनगुनाते हुए चला करते थे। सर्दी की सर्द हवाओ, बहो-बहो।" जब वह सराय के गेट पर बैठकर बोलता रहता था, बैठे हुए वह वहाँ से आते-जाते वाहनों को देखा करता था। और हमें चेरी के बगीचों, सेब के बगीचों और मक्के के खेतों में से गुजरे। इस तरह से मैं सफर करता रहा–कैटरबरी से डोवर तक। वहाँ पर समुद्र में अँधेरा होने के बाद ऊँची लहरें उठ रही थीं तेज आवाज के साथ तथा समुद्र-तट पर केप ग्राइनेग में लाइट हाउस से रोशनी की तेज किरणें हर आधे मिनट पर घूम-घूमकर आ रही थीं। वह विशाल रोशनी का पुंज ऐसा लग रहा था जैसे कि वह लाइट कीपर का सिर हो और वह यह जानने को उत्सुक था कि हर आधे मिनट पर लाइट कैसे जल रही थी! सुबह जल्दी ही हम स्टीमर के ट्रैक पर थे और हम लोग सामान्य असहनीय तरीके से 'बार' की ओर देख रहे थे और 'बार' हम लोगों की तरफ सामान्य असहनीय तरीके से देख रहा था। 'बार' अपने तरीके से और हम अपने असहनीय तरीके से एक-दूसरे को पार करते हुए चले गए।
पर जब हम तट के दूसरी ओर कस्टम हाउस से निकलकर आए और जब हमारे घोड़े फ्रांस की प्यासी सड़कों पर धूल उड़ाने लगे और जब सड़क के दोनों ओर पत्तियाँ-विहीन टहनियोंवाले पेड़, जिन पर शायद ही कभी पत्तियाँ उगती थीं, क्योंकि उन पर पत्ते कभी लगते ही नहीं थे और मजे की बात तो यह कि इन पेड़ों की रखवाली के लिए भी धूल-धूसरित कपड़े पहने रखवाले तैनात थे, जो कि पेड़ों के नीचे नाम मात्र की छाया में सोए हुए थे, तब हमारी सफर करने की इच्छा फिर से जाग उठी। टूटे-फूटे पत्थरों के ब्रेकर पहुँचने पर एक कड़े गरम हैट के ऊपर सूरज की किरणें पड़ने के बाद मैं यह समझ गया कि मैं अपने प्रिय देश फ्रांस में पहुँच गया हूँ। मुझे तो यह बिना देसी और साधारण सी वाइन (मदिरा) की बॉटल को देखे बिना ही जान जाना चाहिए था और उसके साथ ठंडी भुनी हुई बतख व ब्रैड तथा थोड़ा सा नमक, जिसका मैंने तमाम अवर्णनीय संतोष के साथ लंच किया था और यह सब सामान मेरे रथ की एक थैली में से निकला था।
हो सकता है, खाना खाने के बाद मैं सो गया हूँ, क्योंकि जब एक चमकदार चेहरा खिड़की के बाहर से अंदर झाँका तो मैं चौंक गया और बोला, "हे भगवान्! लुई, मैंने तो सोचा कि तुम मर गए हो।"
मेरे हँसमुख सेवक ने हँसते हुए जवाब दिया, "मैं, बिल्कुल नहीं साहब!"
"शुक्र है कि मैं जाग गया। लुई, हम क्या कर रहे हैं?"
"हम लोग यहाँ पर घोड़े बदलेंगे। क्या आप उस पहाड़ी तक चल सकेंगे?"
"हाँ, जरूर।"
ओल्ड फ्रेंच हिल में आपका स्वागत है, जहाँ पर बूढ़े – च पागल (जिनका स्टर्न माफिया से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था) कच्चे घास-फूस से बने कुत्ते के घरों में रहते थे और जो कि अपने बड़े-बड़े सिर के साथ बैसाखियों के सहारे इधर-उधर घूम रहे थे और वृद्ध आदमी व औरतें अपंग बच्चों के साथ घूम रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे कि भगवान् ने उन्हें उस दिन के लिए बचाकर रखा है, जब वे यह निश्चय करेंगे कि दुनिया को तमाम आबादी से भर दिया जाए।
हमने उनके बीच छोटे-छोटे सिक्के, जो मेरे पास थे, वे सब दिए और कहा, "लो, यहाँ पर लुई आ रहा है, जो नींद से जाग उठा है।"
हमने फिर से अपनी यात्रा शुरू कर दी और यह जानकर आश्वस्त हुआ कि फ्रांस वहीं पर था, जहाँ पर मैंने उसे पिछली बार छोड़ा था। वहाँ पर मेहराबदार डाकघर थे, जहाँ पर गंदे घुड़साल थे, पर साफ-सुथरे पोस्ट-मास्टर थे। उनकी स्त्रियाँ भी साफ-सुथरी और बिजनेस वूमन थीं और घोड़ों की देखभाल करती थीं और वहाँ पर घुड़सवार या साईस थे, जो कि पैसे जो उन्हें मिल रहे थे गिन रहे थे। वहाँ पर फ्लैंडर्स के सलेटी रंगों के घोड़ों की संतति या प्रजाति थी। वे हमेशा मौका मिलने पर एक-दूसरे को काटते रहते थे। वहाँ पर फ्लीसी (रोएँ वाली) भेड़ों की खालें थीं, जो उनके यूनिफॉर्म पर घुड़सवारों द्वारा पहना दी जाती थीं, जैसे कि बिब की तरह एप्रन हों, जो उन्हें तेज हवा बहने पर या बारिश होने पर पहना दी जाती थीं और वे जब-तब कोड़े चलाते रहते थे। फिर वहाँ पर कैथेड्रल थे, जिन्हें मैं उतरकर देखने गया, फिर आगे छोटे-मोटे कस्बे, जिन्हें वहाँ होने की कोई वजह नहीं थी, क्योंकि वहाँ पर ज्यादातर मकान खाली पड़े थे और किराए के लिए थे और उन्हें किसी आदमी को देखने के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता था। इसके अलावा, जिन लोगों को उन्हें देखने के लिए रखा गया था, वे उन्हें दिन भर देखते रहते थे। मैं वहाँ एक रात को ठहरा था और आलू से तैयार किए कुछ व्यंजन स्वाद लेकर खाए थे, जिन्हें यदि कभी घर पर पकाने की कोशिश की जाए तो यह तय था कि एक महान् गड़बड़ होना अवश्यंभावी थी। पर किसी तरह से मैं और उस कमजोर ब्रिटिश किसान ने किसी तरह से रात बिताई और मैं तो अवश्य ऐसे ही खड़ा रहा कि एक खाली डिब्बे में एक गोली रखी हुई हो। खैर, किसी तरह से लड़खड़ाते-खड़खड़ाते हम अपने पीछे दोनों पहियों के निशान छोड़ते पेरिस पहुंच गए।
पेरिस में मैंने रुडिरिवाली पर एक होटल में ऊपरी मंजिल पर एक अपार्टमेंट कुछ दिनों के लिए किराए पर ले लिया था। मेरे कमरे की सामनेवाली एक खिड़की तुइलेरीज गार्डेस की ओर खुलती थी, जहाँ पर नर्समेड्स और फूलों में केवल यह अंतर था कि जबकि नर्स-मेड्स तो चलती-फिरती थीं, फूलों के पौधे वहीं दूर पर एक पिछले आँगन में, जहाँ पर मेरा जर्मन रथ एक मेहराबदार वरांडे के नीचे ऐसे टाइट-फिट होकर खड़ी थी, जैसे उसे वहाँ जिंदगी भर रहना हो। और जहाँ पर घंटियाँ हर वक्त बजती रहती थीं और जिसकी किसी को कोई परवाह भी नहीं थी। पर कुछ चैंबर लेंस (राज-सेवक), जिन्होंने हाथ में फरों की झाड़ पकड़ी हुई थी और हरे रंग की बनात टोपियाँ पहनी हुई थीं, वे वहाँ से शांति से नीचे की ओर देख रहे थे, जहाँ पर साफ-सुथरे वेटर्स सुबह से रात तक अपने बाएँ कंधों पर ट्रे लिये आते-जाते रहते थे।
जब भी मैं पेरिस में होता हूँ तो मुझे एक अज्ञात शक्ति मुरदाघर की ओर खींचकर ले जाती थी। मैं वहाँ पर कभी भी नहीं जाना चाहता हूँ, पर हमेशा ही वहाँ मुझे कोई चीज खींच ले जाती थी। क्रिसमस दिवस पर जब मुझे किसी और जगह पर होना चाहिए था, उस दिन भी मुझे वहाँ जाना पड़ा, जहाँ पर मैंने देखा कि एक बूढ़ा आदमी अकेले ही अपने ठंडे बिस्तर पर लेटा हुआ था। उसके सलेटी सिर के बालों पर किसी ने एक ठंडे पानी का नल खोल दिया था, जिससे बूंद-बूंद करके पानी उसके ऊपर टपक रहा था, जो कि उस बेचारे के चेहरे पर से होता हुआ उसके मुँह पर आ रहा था। यहाँ पर वह एक मोड़ लेता था, जिससे वह कुटिल लगने लगता था। नव वर्ष की एक सुबह (और उसके उपलक्ष्य में बाहर चमकती हुई धूप थी और वहाँ पर गेट से एक गज के अंदर एक कठबैठ या नीम हकीम बैठा हुआ था, जिसने नाक पर एक फर को संतुलित किया हुआ था।) मैं फिर उस अठारह साल के भूरे रंग के बालोंवाले लड़के से खिंचा चला आया, जिसके छाती से एक दिल लटका हुआ था और जिस पर 'अपनी माँ से' शब्द खुदा हुआ था, जो कि नदी के उस तरफ से एक जाल में फँसकर इस तरफ आ गया था, जिसके माथे पर गोली लगने का घाव था और जिसके हाथ क टे हुए थे। पर कब और कैसे वह वहाँ आ गया था, यह एक रहस्य था। इस बार मैं फिर उस भयानक जगह में आ गया था उस विशाल गहरे रंग के आदमी को देखने, जिसका चेहरा पानी से भयानक तरह से पर एक विद्रूप या मजाकिया-सा लग रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कि वह एक महान् योद्धा रहा होगा, जिसकी आँखें एक जोरदार मुक्के के प्रहार से बंद हो गई थीं और वह उसको तुरंत ही खोलने जा रहा था और वह सिर को हिलाएगा तथा मुसकराएगा। ओह, उस गहरे रंगवाले आदमी ने उस रोशन शहर में मुझे कितना महँगा पड़ा होगा!
मौसम बहुत गरम था और उसमें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था और मेरा तो हाल बहुत ही बुरा था। बेशक एक साफ-सुथरी औरत, जो अपनी उँगली में चाबियों का गुच्छा डालकर घुमा रही थी, उसने अपनी छोटी सी लड़की को, जो टॉफी खा रही थी, उन महाशय को दिखाया और उससे अपनी अचरज भरी आँखों से पूछा कि क्या माजरा था? उसने नकारात्मक जवाब देते हुए अपना सिर हिलाया। सड़क पार करके एक शराब की दुकान पर गया और अपने आपको तरो-ताजा करने के लिए ब्रांडी की एक बॉटल ली और नदी में तैरते हुए हमाम में नहाने का इरादा बनाया, जिससे वह फिर से फ्रेश हो जाए।
हमाम उस वक्त तमाम पुरुषों से भरा हुआ था, जो रंग-बिरंगे कच्छे पहने हुए थे, जो कि हाथ में हाथ डाले यहाँ से वहाँ घूम रहे थे, कॉफी पी रहे थे और सिगार पी रहे थे। वे छोटी-छोटी मेजों पर बैठे थे और नम्रता से उन लड़कियों से बात कर रहे थे, जो कि उन्हें तौलिया थमा रही थीं और जब-तब वे लोग सिर के बल नदी में गोते लगा रहे थे। वे फिर-फिर बाहर निकलकर आ रहे थे और उसी सोशल रुटीन को दुहरा रहे थे। मैंने भी जल्दी-जल्दी में उस जलीय मनोरंजन में भाग लेने का मन बनाया और उस आनंददायी स्नान का पूरा मजा ले रहा था, जब मेरे मन में यह बेढंगा विचार आया कि वह विशाल गहरे रंग का शरीर मेरी ही तरफ बढ़ता हुआ आ रहा था।
मैं उसी क्षण नदी में से बाहर निकल आया और फौरन ही अपने कपड़े पहन लिये। इस हड़बड़ाहट में मुझे लगा कि मैंने नदी का कुछ पानी पी लिया है। इससे मुझे मितली-सी आने लगी, क्योंकि मुझे लगा कि उस प्राणी के स्पर्श से पानी दूषित हो गया था। मैं अपने होटल में ठंडे कमरे में वापस आ गया और सोफे में बैठ गया तथा फिर अपने आप से तर्क करने लग गया।
बेशक, मुझे पता था कि वह बड़ा सा गहरे रंग का प्राणी पत्थर के समान मृत था और वह वहाँ पर हो ही नहीं सकता था। यह ऐसे ही था, जैसे कि मैं नॉत्रेदाम के कैथेड्रल बिल्कुल किसी नई जगह में देख लूँ। मुझे परेशानी इस बात से थी कि उस प्राणी की भयानक छवि मेरे मन में बुरी तरह से छप गई थी और उससे मुझे फिलहाल छुटकारा नहीं मिल पा रहा था।
मैंने इस खयाल, जो मुझे बुरी तरह परेशान कर रहा था, की खासियत नोट की। उस दिन रात को डिनर के समय मेरी प्लेट में गोश्त का एक टुकड़ा था, जो कि उसी मृत आदमी का लग रहा था और मुझे इस बात की खुशी हुई कि मैं उसको उसी वक्त वहीं पर छोड़कर अपनी टेबल से उठकर बाहर निकल गया। बाद में उस दिन शाम को रुसेंट ओनर सड़क पर घूम रहा था तो मैंने एक कमरे के बाहर साइन-बोर्ड देखा कि अंदर छोटी तलवारों, बड़ी तलवारों और कुश्ती के कारनामे दिखाए जा रहे हैं। मैं अंदर चला गया और चूँकि तलवारबाजी के कई कारनामे अद्भुत और कौशलपूर्ण थे, मैं वहाँ रुक गया। थोड़ी देर में वहाँ घोषणा की गई कि ब्रिटिश बोक्से (British Boaxe), जो हमारा राष्ट्रीय खेल था, उसका भी प्रदर्शन अंत में होगा। एक ब्रिटिश नागरिक होने के नाते मैं उसे देखने के लिए वहाँ रुक गया। पर यह खेल का एक बहुत फूहड़ नमूना था, जो दो इंग्लिश ग्रूम्स (दूल्हों) द्वारा किया गया था, जिसमें से एक ने दूसरे को बहुत जोर से दाहिने हाथ से कसकर एक चूंसा दोनों आँख के बीच मारा, जिससे उसके आँख-नाक के बीच वैसा ही निशान पड़ गया, जैसे कि शव-गृह में उस लाश के मुँह पर था और उससे मेरी सारी रात खराब हो गई। मेरे अपार्टमेंट से लगे हुए कमरे से बड़ी बुरी दुर्गंध आ रही थी, जो कि पेरिस के लिए कोई गैर-मामूली बात नहीं थी। उस शव-गृह के विशाल गहरे रंग के प्राणी से यह गंध नहीं आ रही थी। यह अंदाज तो मैं लगा पा रहा था, क्योंकि वह प्राणी तो एक मोटे काँच की दीवार के पीछे था, जो कि स्टील या संगमरमर की भी हो सकती थी। फिर भी, हवा के झोंके के साथ जो बदबू आ रही थी, वह वहीं से आती हुई प्रतीत हो रही थी। इससे भी ज्यादा अजीब बात तो यह थी कि उसका चेहरा मेरे दिमाग में बार-बार अनचाहे ही आ जाता था, चाहे मैं किसी रेडीमेड कपड़े की दुकान पर कपड़े या वहाँ पर बुत (dummy) को पहनाए हुए कपड़े देख रहा होता या राजमहल में घूम रहा होता था और मैं फिर स्वयं को बीमार महसूस करने लगता था। मुझे लगता था कि वे डमी वगैरह उसी तरह की थी और मेरा जी मिचलाने लगता था।
थिएटर (नाट्यशाला) में भी ये सब चीजें उसी प्रकार से होती थीं। अकसर सड़क पर भी मेरे साथ ऐसा होता था, जब मैं उसकी समानता को कहीं भी ढूँढ़ नहीं रहा होता था। यह ऐसा नहीं था कि वह प्राणी मर गया था या कि उसकी छाया मेरे आस-पास मँडराती रहती थी। पर उसकी याद मेरा पीछा नहीं छोड़ती थी, क्योंकि जीवित चीजों से भी मुझे उतनी ही अरुचि थी। यह लगभग एक हफ्ते तक चलता रहा। यह तसवीर एकदम से ही नहीं खत्म हो गई या शनैः-शनैः, पर धीरे-धीरे वह कम शक्ति से आने लगी और फिर धुंधली पड़ती गई। यह तजरबा उन लोगों के लिए बहुत अच्छा हो सकता है, जिन्हें बच्चों की देखभाल करनी होती है। किसी बुद्धिमान और चतुर बच्चे के किसी चीज को देखने की तीव्रता और सूक्ष्म परख दुगुनी ज्यादा होती है कि उसकी व्याख्या करना संभव नहीं है। यदि वह अमिट छाप किसी भयानक चीज की हुई तो जाहिर है कि वह अकारण ही उसके दिल में हमेशा के लिए बैठ जाएगी और उसको उससे अलग कर पाना असंभव होगा। ऐसे समय में आप बच्चे को फिर से उसकी याद दिलाएँ और वह बच्चा अपनी इच्छा के खिलाफ फिर से उसी अँधेरे में चला जाएगा। और यदि आपने उसे (बच्चे) किसी बेडरूम में इन यादों के साथ अकेला ही छोड़ दिया तो आप समझिए कि आपने उसकी हत्या ही कर दी।
एक रुपहली चमकती सुबह को मैंने अपने जर्मन रथ में सवार होकर खड़-खड़ करते हुए पेरिस को छोड़ दिया तथा उस विशाल भयानक गहरे रंग के प्राणी को वहीं पीछे छोड़ दिया। मैं यहाँ इस बात को जरूर कबूल करूँगा कि मैं उस भयानक प्राणी को देखने एक बार फिर मुरदाघर गया था, जब उसको नीचे कब्र में दफन किया गया था। उसके कपड़े को देखने के लिए और उनको बहुत भयंकर पाया, खासकर उसके जूते। फिर भी, मैं स्विट्जरलैंड की ओर खड़खड़ाते हुए अपनी बग्घी में चल पड़ा-उन सबको पीछे छोड़ते हुए और आगे बढ़ते हुए।
फ्रांस में फिर से मैं लंबे-लंबे समय तक रुकते हुए चलता रहा। वहाँ देहातों के अजीबो-गरीब सराय भी गुलदस्तों व घड़ियों से सजे रहते थे और उन छोटे-छोटे सुस्त-से दिखनेवाले कस्बों में, जहाँ बहुत कम आबादी थी और शाम को वृक्षीय मार्ग पेड़ों के नीचे टहलते हुए समय गुजारा। 'मांश्योर द क्योर'-आपका स्वागत है, शहर के बाहर जल्द सुबह टहलते हुए। उस वक्त मैं दैनिक प्रार्थना की पुस्तक पढ़ा करता था, मांश्योर द क्योर, जो कि बिना पुस्तक के भी पढ़ी जा सकती थी। बाद में दिन में हाइवे (मेन रोड) पर खड़खड़ करते हुए, बग्घी में दौड़ते हुए मांश्योर द क्योर आपका फिर से स्वागत है। बग्घी के दौड़ने से इतनी धूल उड़ रही थी, जैसे हम धूल भरे बादलों से गुजर रहे हों। एक-दूसरे से नमस्कार करते हुए आपका पुनः स्वागत है, जबकि आप अपने किचन गार्डन से शाम को सूप बनाने के लिए एक-दो सब्जी तोड़ रहे होते थे। मैं अपने जर्मन रथ में चढ़ा हुआ खिड़की से बाहर झाँकते हुए मनमोहक दृश्यों को देखने लगा। इसकी चिंता हुई कि आज क्या होगा, कल क्या होगा। केवल गुजरते हुए दृश्य एवं चीजें और उनमें से आती हुई सुगंध व आवाजों का आनंद लेते हुए। और इस तरह मौज-मस्ती करते हुए मैं स्ट्रासबर्ग पहुँच जाता हूँ। वहाँ पर मैं एक भीगी-भीगी रविवार की शाम खिड़की से झाँकते हुए बिताता हूँ। सामनेवाले घर के लोग मेरे लिए एक संगीत की धुन बजाते हैं और छोटा सा नाटक करते हैं।
इतने बड़े से घर में केवल तीन ही लोग क्यों रहते थे? हाँ, केवल तीन ही लोग क्यों रहते थे, यह केवल उन्हीं को पता था। उसकी ऊँची छत पर ही कम-से-कम दस खिड़कियाँ थीं, सामनेवाले बेढंगे बड़े से कमरे में कितनी खिड़कियाँ थीं, मैंने उसकी गिनती ही करना छोड़ दिया। उस मकान का मालिक एक दुकानदार था, जिसका नाम स्ट्राडिन हाइम था। मैं यह नहीं जान सका कि उसका व्यापार या धंधा क्या था, क्योंकि उसने दुकान के साइनबोर्ड पर कुछ नहीं लिखा था और उसकी दुकान बंद थी। शुरू-शुरू में मैंने स्ट्राडिन हाइम को दुकान पर अनवरत गिरती बारिश में से देखा और अंदाजा लगाया कि वह गूज-लिवर (बत्तख के मांस) का विक्रेता होगा। पर जब मुझे वह संयोग से दूसरी मंजिल की खिड़की से दिखा तो मुझे विश्वास हो गया कि वह इससे कहीं ज्यादा बड़ा और महँगी चीजों का व्यापारी होगा। उसने एक काले मखमल की टोपी पहनी हुई थी और बहुत धनी व बड़ा महाजन लगता था। वह एक बड़े होंठोंवाला और आड़ के आकार की नाकवाला तथा सफेद बालोंवाला बूढ़ा आदमी था, जिसकी आँखें भेदती हुई पर नजदीक देखनेवाली थीं। वह एक डेस्क पर बैठा हुआ कुछ लिख रहा था और बार-बार अपनी लिखाई छोड़कर, पेन को मुँह में रखकर दाएँ हाथ से कुछ करने लगता था; जैसे कि कोई आदमी नोटों की गड्डी ठीक से रख रहा हो। वे 5 फैरक के सिक्के या नोट थे, या गोल्डन नेपोलियन सिक्के थे, कौन जाने? एट्राड्रिन हाइम एक सर्राफ, ज्वेलर था या रुपए-पैसे का लेन-देन करनेवाला था या हीरे का व्यापारी था। वह कौन था?
स्ट्राडेन हाइम के नीचेवाली खिड़की में एक महिला बैठी थी, हाउसकीपर शायद, जो बहुत युवा तो नहीं थी, पर देखने में ठीक-ठाक थी और एक सुंदर-सी ड्रेस पहने थी। उसने कानों में बड़ी सी सोने की बालियाँ और गले में बड़ा सा सोने का क्रॉस लटकाया हुआ था तथा हाथ में एक पंखा लिया हुआ था। ऐसा लग रहा था, जैसे वह वहाँ छुट्टियाँ बिताने आई हो; पर अविरल वर्षा के कारण बाहर निकल नहीं पा रही थी और घर में ही कैद थी। मैंने स्ट्रासबर्ग में छुट्टियाँ बिताने का इरादा छोड़ दिया था, क्योंकि अनवरत वर्षा की वजह से पानी घर की छतों पर से इकट्ठा होकर परनालों से निकलकर सड़कों पर एक छोटी-मोटी नदी की जलधारा के रूप में बह रहा था। घर के रख-रखाव व देखभाल करनेवाली महिला अपने दोनों हाथों को वक्ष-स्थल पर रखे थी और अपने पंखे को अपने ठुड्ढी पर टिकाए थी। वह अपनी खुली खिड़की की ओर देखकर मुसकरा रही थी। इसके अलावा, स्ट्राडेन हाइम के घर के सामनेवाला हिस्सा बहुत ही नीरस था। हाउसकीपर की खिड़की ही सारे घर में एक खुली खिड़की थी। स्ट्राडेन हाइम अपने को कमरे में बंद रखती थी, हालाँकि वह उमस भरी शाम थी, जब हवा का लगना सुहावना लगता था। बारिश रुक गई थी, पर उसके साथ ही सारे कस्बे में एक ताजगी भरी हवा आ रही थी, जिसके साथ घास की खुशबू भी मिली हुई थी, जैसा कि ग्रीष्म ऋतु में होता है।
स्ट्राडेन हाइम के कंधों के पास एक आदमी की धुंधली सी आकृति दिखी, जिससे मुझे इस बात का अंदेशा हुआ कि कोई आदमी उस धनी महाजन व्यापारी की हत्या करने आया हो-उस धन के लिए, जो मैंने उसे दिया था पर यह क्या हुआ, यह तो एक बहुत उत्तेजित आदमी था-दुबली-पतली लंबी काया का और उसके कमरे में चुपचाप दबे पाँव घुस आया था और बजाय कि वह उसे कोई शारीरिक चोट पहुँचाता, वह उसके साथ कुछ बातचीत कर रहा था। और फिर वे दोनों उस कमरे की खिड़की के पास गए, जो हाउसकीपर के कमरे के ठीक ऊपर थी और नीचे झाँककर उसे देखने की कोशिश की। और मेरी राय उस महान् व मशहूर आदमी के लिए उसी वक्त बदल गई, जब मैंने उसे देखा कि वह खिड़की से बाहर नीचे को थूक रहा था। उस आदमी को यह उम्मीद थी कि उसका थूक उस हाउसकीपर लेडी के ऊपर गिरेगा।
हाउसकीपर, जो इस समय बेखबर थी, ने अपना पंखा झला और अपने सिर को इधर-उधर घुमाकर हँसी। यद्यपि वह स्ट्राडेन हाइम की मौजूदगी से बेखबर थी, पर उसे किसी-न-किसी आदमी की उपस्थिति का अहसास था, शायद मेरा?...वहाँ पर मेरे अलावा कोई न था।
मैं अपनी खिड़की से इतना झुककर और सिर बाहर निकालकर देख रहा था कि मैं उनकी हील को झुकते हुए देख सकता था। स्ट्राडेन हाइम और उस दुबले-पतले आदमी ने अपने सिर अंदर कर लिये तथा खिड़की बंद कर ली। अब घर का दरवाजा चुपचाप खुला और वे दोनों आदमी उस घनघोर वर्षा में अपने घर से बाहर निकल गए। वे संभवतः मेरी ओर आ रहे थे (ऐसा मैंने सोचा) और शायद इस बात को जानना चाह रहे थे कि मैं उनकी हाउसकीपर को क्यों इतने ध्यान से देख रहा था। फिर वे उस मकान के एक आले (छज्जे) के अंदर चले गए, जो मेरी खिड़की के नीचे था और वहाँ से उन्होंने एक सिपाही को खींच निकाला, जिसके पास बहुत छोटी सी अबोध तलवार थी। स्ट्राडेन हाइम ने उसकी लंबी सी चमकती हुई सिर की टोपी को एक ही वार में नीचे गिरा दिया और उसके अंदर दो चीनी की छड़ियाँ निकलकर गिर पड़ीं और तीन-चार चीनी के बड़े-बड़े टुकड़े भी।
उस योद्धा ने अपनी संपत्ति या टोपी को उठाने की कोई चेष्टा नहीं की, पर उसने बड़े ध्यान से स्ट्राडेन हाइम की ओर देखा, जब उसने और दुबले-पतले आदमी ने उसको पाँच बार लात मारी और उसने स्ट्राडेन हाइम की ओर भी बड़े ध्यान से देखा, जब उसने उसके कोट के बटन खोल दिए और उसकी दसों उँगलियों को उसके गाल पर, जैसे कि वे दस हजार हों। जब इस तरह के अत्याचारपूर्ण काम हो गए, तब स्ट्राडेन हाइम और उसका साथी घर में घुस गए और दरवाजा बंद कर लिया। इस सब में एक आश्चर्यजनक बात यह थी कि हाउसकीपर, जो इस सब कृत्य को देख रही थी और अपना पंखा झल रही थी (जो अपनी छाती में इस तरह के छह योद्धाओं को रख सकती थी) वह केवल हँसी, जैसे कि वह पहले हँसी थी और इसके बारे में कोई राय अच्छी या खराब नहीं थी।
पर इस सबका मुख्य प्रभाव उस योद्धा पर पड़ा, जिसने एक असाधारण तरीके से इसका बदला लिया। वह बरसात में अकेला रह गया था। उसने अपनी टोपी उठाई-कुछ सूखी, कुछ गीली और अपने सिर पर पहन लिया तथा एक आँगन में चला गया, जो स्ट्राडेन हाइम के घर का एक कोना था। इसके बाद वह इधरउधर चक्कर लगाता रहा और फिर उसने अपने दोनों सामनेवाली उँगलियों को क्रॉस की तरह बनाया और अपनी नाक के ऊपर लाकर उन्हें रगड़ा-उसका अनादर दिखाते हुए, उपहास करते हुए और अपना विरोध जताते हुए। यद्यपि स्ट्राडेन हाइम अपने प्रांगण में होते ही इस अजीब कारनामे से अनभिज्ञ था, पर इससे उस छोटे योद्धा को इतना संतोष मिला कि उसने दो बार फिर उस आँगन के कोने में आकर यह प्रक्रिया दोहराई, जैसे कि इससे उसका शत्रु जरूर गुस्सा या पागल हो जाएगा। वह अपने साथ दो अन्य छोटे-छोटे योद्धाओं को ले आया और उन लोगों ने मिलकर यह प्रक्रिया दोहराई। जब मैं यह कहानी कहने को जिंदा हूँ; परंतु वे अपने साथ एक सफरमैना को ले आए और जिसे उन्हें उनके साथ जो शुरुआत में अत्याचार हुआ था, उसे बताया और फिर उन सबने मिलकर वही सब कारनामे दोहराए और संभवतः इस सब चीज को या क्रियाकलाप को स्ट्राडेन हाइम ने फिर भी नहीं नोटिस किया और फिर वे सब हाथ-में-हाथ डाले गाते-बजाते हुए चले गए।
सवेरा होते ही मैं भी अपने जर्मन रथ में बैठकर चला गया। दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ता गया, जैसे सपने में कोई चल रहा हो। मेरे कानों में घोड़ों के गले और रकाबियों में बँधी हुई घंटियाँ ऐसे बज रही थीं जैसे कोई महारानी चल रही हो और साथ में कोई नर्सरी राइम्स (गीत) गा रहा हो। और अब मैं उस प्रदेश में आ गया जहाँ पर लकड़ी के घर थे, अबोध केक थे और पतला बटर सूप था और बिल्कुल बेदाग, साफ-सुथरे सराय के कमरे थे, जो कि डेरी की तरह थे और अब हर जगह स्विस निशानेबाज थे, जो कि खाइयों में बने लक्ष्य पर बराबर राइफल से एक्ट किए जा रहे थे और वे मेरे कानों के इतना नजदीक थे कि मैं कैंटन ऑफ टेल्स में गेसलर की तरह महसूस कर रहा था।
और मैं उस अत्याचारी जीवन में चला गया, जिसके मैं योग्य था। इस निशानेबाजी में इनाम के तौर पर घड़ियाँ, अच्छे व खूबसूरत रूमाल, हैट, चम्मचें और इन सबके अलावा चाय की ट्रे भी थी और इन प्रतियोगिताओं में मैं अपने मैत्रीपूर्ण देशवासियों से भी मिला, जो दक्ष निशानेबाज थे और उन लोगों ने इतनी सारी चाय की ट्रेजीत लीं कि उनको अपनी गाड़ी में भरकर महिमा-मंडित 'चीप-जैक' की तरह घूमते रहते थे। ये लोग साल भर कंपटीशन में भाग लेते-लेते बहरे भी हो गए थे।
अब मैं जिस पर्वतीय देश में घूम-घाम रहा था, उसमें मेरे घोड़ों के आगे बैल भी जोत दिया गया था, जिससे हम ऊपर-नीचे बारिश और धुंध में भी चल सके। इसी में पीछे से कल-कल करके गिरता हुआ पानी पार्श्व संगीत का काम कर रहा था। अचानक ही धुंध व बरसात खत्म हो गई और मैं एक बहुत खूबसूरत कस्बे में आ गया, जिसमें चर्च के चमके हुए लौह स्तंभ थे और पुराने-पुराने स्तंभ थे। मैं घूमते-फिरते चढ़ाईवाले एक घुमावदार रास्ते से बाजार में पहुँच जाता हूँ, जहाँ पर सैकड़ों औरतें बॉर्डस/ब्लाउज पहने अंडे, शहद, मक्खन व फल बेच रही होती थीं और अपने साफ-सुथरी टोकरियों के साथ बैठी हुई अपने बच्चों को छाती से चिपकाकर दूध पिला रही होती थीं। उनमें से कुछ के इतने बड़े-बड़े घेघा लटकते रहते थे कि यह पता लगाना मुश्किल हो जाता था कि कहाँ पर नसें खत्म होती थीं और बच्चा शुरू हो जाता था। इस समय मैं अपना जर्मन रथ छोड़कर एक मटमैले-से रंग के खच्चर पर बैठ जाता हूँ (जिसका रंग मेरे स्कूल के टंक से से मिलता-जुलता था और मैं आदतन उस पर अपने आद्यक्षर ढूँढ़ने लग जाता था) और मैं हजारों ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरता हुआ, हजारों फर और देवदार के जंगलों से गुजरता हूँ और मैं इस बात की कोशिश करता हूँ कि मेरा खच्चर पहाडियों के बहुत किनारे-किनारे न चले, क्योंकि मुझे हर वक्त डर लगा रहता था कि वह कहीं मुझे नीचे खाई में न गिरा दे। पर फिर भी, कभी-कभी वह किसी कगार पर चलने लगता था। वह मुझे धीरे-धीरे अपने ही तरीके से आल्पस पर्वतों के बीच के दरों में से सुरक्षित ले आता है। उन्हें लकड़ी के बड़ेबड़े गट्ठरों को अपनी पीठ पर लादकर ले जाने की आदत की वजह से और यहाँ पर मुझे दिन भर में ही दर्जनों तरीके के मौसम का सामना करना पड़ता था। अब ऐसा लग रहा था जैसे मैं डॉन क्विकजोट के काठ के घोड़े पर सवार था। अब वायु के क्षेत्र में था तो अब अग्नि के क्षेत्र में था और अब थोड़ी देर बाद बर्फ के और पिघलते हुए बर्फ के क्षेत्र में था। यहाँ पर हिलते हुए बर्फ के पहाड़ से गुजरा, जिसके नीचे एक झरना झर-झर करके बह रहा था तथा यहाँ पर मुझे बर्फ के लटकते हुए लंबे-लंबे टुकड़े दिखे, जिनकी सुंदरता का बयान करना संभव नहीं है। और यहाँ पर इतनी मृदुल व हल्की हवा अपने बदन और मुँह को छू रही थी, जिसका अहसास बहुत सुखद था और जब मैंने अपने खच्चर को वहाँ पर बर्फ में लोट लगाते देखा तो मुझसे भी रहा न गया और मैं बर्फ के मैदान पर लोट लगाने लग गया। अब मैं आधे घंटे में अपनी यात्रा के उस पड़ाव पर पहुँच जाऊँगा, जहाँ पर एक कामचलाऊ सराय मिल जाएगी। जबकि आर्कटिक की ठंडी दशा में एक मील आगे खच्चर अपने ऊपर सामान रखकर ले जा रहे होंगे। और इस तरह से मैं शैले (लकड़ी से बने मकान) के समूह के पास पहुँचूँगा, जहाँ से रास्ते से थोड़ा हटकर वह झरना है और मैं खुशी के मारे किसी अन्य यात्री को वहाँ पर देखकर चिल्ला उठूगा। और तब मुझे उस खड़ी चढ़ाई पर ऊपर जाकर कुछ खाने की चीज चाहिए होगी। फिर मैं उस बेवकूफ से जा टकराता हूँ, जिसकी पत्नी को घेघा निकला हुआ है और वह उसे सहलाते हुए उठाएगा। वह अपना पुराना-धुराना स्टोव जलाएगी, मुझे कुछ खाने-पीने को देगी और वहाँ से आने-जानेवाले मुसाफिरों की कहानियाँ सुनाएगी और उसमें से कुछ, जो वहाँ थोड़ी दूर पर ही बर्फ में दब-मर गए थे। एक रात को जब बहुत ठंड थी और अंदर स्टोव जल रहा था और बाहर जानलेवा ठंड थी। मैंने सपना देखा कि मैं रूस में हूँ और वह बिल्कुल वैसा ही था, जैसाकि मैंने कभी पिक्चर बुक में देखा था और उसमें एक गुलाम भी दिखा तथा मुझे एक राजकीय व्यक्ति द्वारा, जो फर की टोपी पहने था, बूट पहने था तथा कानों में बालियाँ पहने था, मुझे कोड़ों से मारने वाला था। मैंने सोचा, यह भी किसी तरह का मेलोड्रामा रहा होगा। मुझे इन पर्वतों पर, झरनों और छोटी नदियों पर जाने को कहिए। इस यात्रा में मैं कई धार्मिक जगहों पर ठहरा और कई निर्जन स्थानों पर भी ठहरा।
यद्यपि मैं उन लोगों के विचारों का नहीं था। वे लोग नीचे समतल प्रदेश में जाना चाहते थे, जबकि मैं वहीं पर रुके रहना पसंद कर रहा था, जहाँ पर मैं था। उन लोगों ने कैसे-कैसे कदम नहीं उठाए नीचे जाने के लिए। वे बहुत गहरे व अँधेरे खड्डों में गिर गए और उसमें से किस-किस तरह की गूंजें नहीं आई। कुछ हिस्सों में, जहाँ मैं गया था, उन लोगों में से कई लोगों का इस्तेमाल लकड़ियाँ नीचे ले जाने के लिए किए जाता था, जिससे उन्हें अगले जाड़ों में महँगे ईधन के रूप में जलाए जा सके। पर उनके भयानक जंगली स्वभाव को आसानी से काबू में नहीं लाया जा सकता था और वे लकड़ी के हर तने से लड़ते रहते थे, उसको बार-बार घुमाते रहते थे, जब तक कि उन तनों में से छाल न निकल आए। उसको नुकीले कोनों के साथ टकराते रहते थे, उसको उसके रास्ते से हटा देते थे और चिल्लाते हुए उसे उन किसानों के ऊपर लहराते रहते थे। वे लोग उसे फिर अपने लंबे लट्ठों से सही रास्ते पर मजबूत लट्ठों के साथ डाल देते थे। अहा! समय व जल की धारा मुझे तेजी से नीचे ले गई और एक बहुत ही साफ आसमानवाले दिन मैं लाउजाने (स्विट्जरलैंड) पहुँच गया, जेनेवा की झील के तट पर। वहाँ तट पर खड़े होकर मैंने चमकदार नीले पानी को देखा और उसके सामने बर्फ से ढंके पहाड़ों को देखा तथा अपने पाँवों के पास नावें व जहाज देखे, जिन पर मध्य सागर के पाल लगे थे, जो कि मेरे बतख के पर से बने भव्य कलम की बहुत बड़ी छवि-सी लग रही थी।
अचानक आसमान में बिना किसी आहट के बादल छा गए और ऐसी हवा चलने लगी जैसे कि मार्च में इंग्लैंड में पूर्वी हवाएँ चलती हैं और मेरे कानों में एक आवाज आई-"यह बग्घी/रथ आपको कैसी लगी?"
मुश्किल से आधे मिनट के लिए एक जर्मन यात्री रथ में बैठा था, जो कि लंदन पैटेश्विकॉन के गाड़ी विभाग में बिक्री के लिए रखी हुई थी।
मेरे एक दोस्त ने, जो बाहर (विदेश) जा रहा था, मुझसे कहा था कि मैं उसके लिए एक गाड़ी-कोच देखकर आऊँ। और जब मैं उस गाड़ी की गद्दी और स्प्रिंग्स आदि को बैठकर जाँच-परख रहा था, तब मुझे उसमें यात्रा करते समय के ये सब खयालात आए।
"यह बहुत अच्छी रहेगी।" मैंने कुछ उदास होते हुए और उसके दूसरी ओर के दरवाजे से निकलते हुए कहा तथा उसके दरवाजे को बंद कर दिया।