वीर काटमराजू : तेलुगु लोक-कथा
Veer Katamraju : Telugu Folk Tale
कहा जाता है काटमराजू विश्वमूर्ति की ७४वीं पीढ़ी के चंद्रवंशी क्षत्रिय राजा थे। काटमराजू श्री सेलम के पास गाय चरा रहे थे, वहाँ अकाल पड़ा तो दक्षिण प्रांत की ओर चले गए। कणिगिरि सीमा में पालेटी के किनारे काटमराजू ने गंगा से तर्क किया। पहले उसका विरोध किया, पर अंत में हाथ जोड़कर उसे नमस्कार किया !
कुंदरू, कामा, अरामड़ा, पन्नूमाड़ा के रूप में फैले हुए अपनी विशाल गऊ सेना के साथ निल्लूर सेना में प्रवेश किया ! निल्लूर के राजा नल्लसिद्धि के साथ कुल्लरी समझौता कर लिया। उस समझौते के अनुसार जल से उत्पन्न घास तुम्हारी तथा गाय से उत्पन्न बछड़े हमारे ! इस समझौते के अनुसार बिल्लूर राज्य में घास भूमि में जब तक काटमराजू अपनी गायों को चराता था, तब तक जितनी गायों के बछड़े होते थे, वे उन्हें नल्लसिद्धि राजा को कुल्लरी के रूप में देता था।
इसी बीच एक घटना घटी, नल्लसिद्धि की दूसरी पत्नी थी कुंदमा देवी। राजा ने उसके लिए जो जमीन दी, उसी जमीन पर काटमराजू गाय चरा रहा था। कुंदमा देवी यह सहन नहीं कर पाई। यही नहीं, कुंदमा देवी का पालतू तोता धीरे से उड़कर उन जंगलों में पहुँचा जहाँ की गाएँ चर रही थीं, वहाँ वह जोर से टरटराने लगा, जिससे गाएँ डरकर भागने लगीं। इससे क्रोधित होकर काटमराजू के परममित्र पद्मराजू ने तीर से उस तोते को मार डाला। वह तोता शरीर में घुसे हुए बाण के साथ महल में पहुँच गया और वहीं प्राण छोड़े। इससे कुंदमा देवी काफी क्रोधित हुई। उसने चुंदू नामक गाँव से शिकारियों को बुलवाकर गुप्त रूप से काटमराजू की गायों को मरवाया। काटमराजू आग-बबूला हो गया और उन शिकारियों को मार डाला तथा क्रोध में आकर बिल्लरी इलाके के खेतों में अपनी गायों को चराया। काफी नुकसान होने के कारण नल्लसिद्धि को जो कुल्लरी देना था, उसे काटमराजू ने नहीं दिया। उसने समझा कि नुकसान बराबर हो गया। इसलिए कुल्लरी की आवश्यकता नहीं! कुंदमा देवी ने जो गो हत्या करवाई, यह बात असल में राजा को मालूम नहीं थी, वैसे ही काटमराजू ने समझा कि कुंदमा देवी के बहाने नल्लसिद्धि ने ही उसकी गायों को मरवाया है। दोनों क्रोधित हुए तथा उनके बीच घमासान युद्ध हुआ ।
(-आर.एस. शेषारत्नम्)