वीर जामिसलङ : त्रिपुरा की लोक-कथा

Veer Jamislang : Lok-Katha (Tripura)

बहुत पहले की बात है। पड़ारी त्रिपुरा में एक वीर युवक रहता था, जिसका नाम जामिसलङ था। उसके जैसा वीर उस युग में और कोई नहीं था। उसकी वीरता की कहानी दूर-दूर तक फैली हुई थी। उसका नाम लेकर माँ, नाना-नानी, दादा- दादी घर के बच्चों को सुलाया करते थे। शैतान बच्चे उसके नाम से भयभीत रहते थे। वह इतना बलवान् था कि एक झोंपड़ी बनाने के लिए जितने बाँस और खूँटी की जरूरत पड़ती है, उतना वह एक साथ कंधे पर लादकर ला सकता था। उसके खाने की बात सुनकर तो लोगों की आँखें फैल जाती थीं। वह अकेला एक सुअर का मांस खा सकता था। जंगल के सारे पशु-पक्षी उससे डरते थे। उसे भी अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था ।

एक दिन जामिसलङ के मन में दुनिया घूमकर देखने की इच्छा जागी। सभी मुझे वीर, साहसी आदि-आदि कहते हैं। मेरे से भी वीर और शक्तिशाली इस दुनिया में और कोई है या नहीं, यह जानने के लिए वह घर से निकल पड़ा। बहुत दिनों तक पैदल चलते-चलते, पहाड़, टीला, नदी पार कर वह एक पहाड़ी ढलान पर पहुँचा। दूर से उसने देखा कि एक आदमी अपने दोनों हाथों से किसी चीज की चीड़-फाड़ कर रहा है। वह उस आदमी की ओर गया। किंतु यह क्या, वह आदमी तो छोटे-छोटे पहाड़ी मच्छरों के पेट चीरकर, उनकी अंतड़ियाँ निकालकर देख रहा था। जामिसलङ उस आदमी के पास गया और पूछा, "यह तुम क्या कर रहे हो ?"

उसने जवाब दिया, “पहाड़ी मच्छरों के पेट चीरकर, उनकी आंतड़ियाँ निकालकर देख रहा हूँ।”

जामिसलङ ने फिर से पूछा, "ये सब मच्छर इतने छोटे हैं कि आँखों से दिखाई भी नहीं देते। इनके पेट चीरकर क्या तुम उनकी अंतड़ियों की परीक्षा कर रहे हो, समस्या क्या है?"

उसने जवाब दिया- 'ये काटते क्यों हैं? उनके कारण जंगल में शिकार भी नहीं किया जाता है। इनके काटने से बहुत जलन होती है। इसलिए उनकी अंतड़ियाँ निकालकर विष थैली की परीक्षा कर रहा हूँ।'

जामिसलङ ने कहा, "अच्छा ऐसी बात है, इसका मतलब है, तुम बहुत वीर और साहसी हो।"

उस आदमी ने जवाब दिया- "मैं कहाँ वीर हूँ। वास्तव में वीर तो जामिसलङ है। उसके जैसा वीर इस पहाड़ी राज्य में दूसरा नहीं है। उसे देखने की मेरी बहुत इच्छा है ।"

जामिसलङ ने अपनी पहचान छुपाते हुए कहा, "वह वीर कहाँ रहता है, मुझे बताओगे? मैं भी मिलना चाहता हूँ। ऐसे वीर से मिलकर तो बड़ा मजा आएगा।"

वह आदमी बोला, "सुनो, वह जो पहाड़ दीख रही है। उसके बाद के पहाड़ की उस पार उसका घर है। सुना है, वह अकेला ही एक सुअर का मांस खा सकता है।"

जामिसलङ ने कहा, "अच्छा, तो चलो, उसे ढूँढ़ते हैं। मेरी भी बहुत इच्छा है उसे देखने की। "

दोनों पहाड़ी रास्ते से आगे बढ़े। चलते-चलते वे एक बहुत बड़े पहाड़ के सामने पहुँचे। यहाँ से किस दिशा की ओर आगे बढ़ें, दोनों निश्चय नहीं कर पाए। इसलिए दोनों पहाड़ के ऊपर चढ़े। चढ़ने के बाद दोनों ने देखा कि बहुत दूर पर नदी बह रही है। दोनों पहाड़ से उतरकर उस नदी की तरफ आगे बढ़े। नदी के पास पहुँचने पर दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने देखा कि एक आदमी अपने शरीर से पहाड़ी नदी के पानी को रोककर खड़ा है। ऐसा वीर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। जामिसलङ ने पास जाकर उससे पूछा, "अरे भाई ! तुम तो बहुत वीर हो, अपने शरीर से ही नदी में बाँध बनाए हुए हो।"

उसने जवाब दिया, “मैं कहाँ वीर हूँ। वीर तो जामिसलङ है। एक पागल हाथी को उसने अकेले ही मार गिराया था।" जामिसलङ ने कहा, "हम दोनों भी उसी को ढूँढ़ रहे हैं। क्या तुम हमारे साथ चलकर उसे ढूँढ़ने में मदद करोगे?'' उस आदमी ने कहा, "इसमें क्या बुरा है। मैंने भी उसे कभी नहीं देखा है। तुम दोनों के साथ मैं भी उसे देख लूँगा, वह कितना वीर है।"

इस तरह तीनों मिलकर एक निश्चित दिशा की ओर आगे बढ़े। चलते-चलते वे एक टीले के ऊपर पहुँचे। जहाँ एक सुंदर घर बना हुआ था। सुनसान और घने जंगल के बीच इतना खूबसूरत घर देखकर तीनों को बड़ा ताज्जुब हुआ, इससे भी ज्यादा आश्चर्य उन्हें तब हुआ, जब वे घर के अंदर पहुँचे। वहाँ कोई भी नहीं था, लेकिन जरूरत की सारी चीजें वहाँ मौजूद थीं, सिवाय खाने की चीजों के इस वीरान जंगल में किसने यह घर बनाया होगा? कौन है? कहाँ से आया होगा? कई सवाल तीनों के मन में उठ रहे थे। तीनों को भूख भी लग रही थी। घर के अंदर खाने लिए कुछ भी नहीं था । खाए बिना आगे सफर करना भी मुश्किल था । इसलिए जामिसलङ ने दोनों दोस्तों से कहा, "दोस्त, तुम दोनों जंगल में जाकर जंगली मुरगी वगैरह पकड़ लाओ। तब तक मैं यहाँ आग जलाने की कोशिश करता हूँ।”

दरअसल वह घर एक राक्षसी का था। जब कोई आदमी शिकार के लिए जंगल आता था, तो वह जादुई शक्ति से सुंदर औरत का रूप बना लेती थी। लोगों को बहला-फुसलाकर अपने घर लाती और मौका देखकर उन्हें अपना शिकार बना लेती थी। आज भी वह शिकार की तलाश में ही जंगल में घूम रही थी। उसने देखा कि तीन मनुष्य उसके घर की तरफ बढ़ रहे हैं। वह छुपकर तीनों का पीछा कर रही थी। अब तीनों में से दो को जंगल की ओर वापस जाते देखा तो वह तुरंत अपने घर पहुँची। घर पहुँचकर उसने देखा कि एक आदमी बड़े आराम से उसके चूल्हे में आग जलाने की कोशिश कर रहा है। उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने अपनी गदा से उसके सिर पर वार किया, किंतु वह आदमी जैसे बैठा हुआ था, वैसे ही रहा। उसे कोई फर्क नहीं पड़ा । राक्षसी को और तेज गुस्सा आया। वह गदा से जामिसलङ पर लगातार वार करने लगी। लेकिन जामिसलङ को कुछ भी असर नहीं होता था । दूसरी तरफ राक्षसी का गुस्से से बुरा हाल था। वह जोर-जोर से चीखने- चिल्लाने लगी। उसकी चीख सुनकर जामिसलङ ने पीछे मुड़कर देखा, साथ ही सवाल भी किया, "तुम कौन हो ? क्यों चिल्ला रही हो? तुम्हें मुझसे क्या चाहिए ?"

राक्षसी गुस्से से काँप उठी। वह भी चिल्लाकर बोली, "यह मेरा घर है और तुम मेरे घर में क्या कर रहे हो? मैं एक राक्षसी हूँ । तुम्हें चुटकियों में खत्म कर सकती हूँ।" जामिसलङ को भी बड़ा गुस्सा आया। आज तक किसी ने उसके साथ इतनी ऊँची आवाज में बात नहीं की थी। वह बोला, “मैं भी राक्षसों का बाप हूँ। तू मुझे कैसे खत्म करती है। मैं भी आज देखता हूँ।"

देखते-ही-देखते दोनों के बीच घमासान युद्ध शुरू हुआ। राक्षसी आस-पास के बड़े-बड़े पेड़ उखाड़कर जामिसलङ की तरफ फेंकने लगी। जामिसलङ उससे भी बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़कर उसपर फेंक रहा था। इस तरह कई घंटे युद्ध करने के बाद जामिसलङ ने राक्षसी का अंत किया। जामिसलङ के दोनों दोस्तों ने जंगल से वापस आने के बाद जब यह दृश्य देखा तो पहले वे घबराए। लेकिन जब जामिसलङ ने राक्षसी का अंत किया तो दोनों को यकीन हो गया कि हो न हो यह वीर युवक जामिसलङ है। जामिसलङ ने भी दोनों को सामने देखकर अपना सही परिचय दिया। उस रात तीनों ने खूब दावत उड़ाई। राक्षसी के मरने की खुशियाँ मनाईं। इस तरह तीनों की दोस्ती एक गहरी दोस्ती में बदल गई।

(साभार : मिलनरानी जमातिया)

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