वनकन्या : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Vankanya : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
एक गाँव में एक भुंजिआ वृद्ध रहते थे। वह उस गाँव के मुखिया थे और गाँव की सारी बातों का ख़याल रखते थे। उनकी एक पत्नी और एक बेटा था। वृद्ध को गाँव वाले मुखिया कहकर संबोधित करते थे। वह गाँव वालों की सुविधा-असुविधा का ख़याल रखते थे। एक साल उस गाँव में पानी की क़िल्लत हो गई। गाँव वाले इकट्ठे होकर सोच-विचार करने लगे कि भुंजिआ वृद्ध से गाँव में एक तालाब खुदवाने के लिए कहेंगे। उन्होंने यह निर्णय लेकर भुंजिआ वृद्ध के पास जाकर तालाब खुदवाने के लिए अनुरोध किया। वृद्ध ने देखा कि सच ही में गाँव वाले पानी के लिए काफ़ी तकलीफ़ झेल रहे हैं। उन्होंने गाँव में एक तालाब खुदवाने दिया। एक महीने के अंदर तालाब बनकर तैयार हो गया। पर तालाब में पानी नहीं निकला।
एक दिन वृद्ध देवी के पास गए और देवी से इसके बारे में पूछा। देवी बोली, “तेरे बेटे के ज़िंदा रहते तालाब में पानी नहीं आ सकता। बेटे की बलि देने पर ही तालाब में पानी आएगा।” अब वृद्ध क्या करे, कुछ सोच नहीं पाए। वृद्ध घर वापस लौटे तो उनकी पत्नी ने जानना चाहा कि तालाब में पानी क्यों नहीं आ रहा है। तब वृद्ध ने कहा कि जब हम अपने बेटे की बलि देंगे तभी तालाब में पानी आएगा। वृद्ध की पत्नी ने सोचा कि अगर उनके एक बेटे की बलि देने पर पूरे गाँव वालों को पानी मिलेगा तो बलि दे देनी चाहिए, इससे हमें पुण्य भी मिलेगा। वृद्धा ने अपने मन की बात पति से कह दी। दोनों की बात उनकी बहू सुन रही थी।
शाम को भुंजिआ का लड़का घर लौटा। उसकी पत्नी ने सोने की थाली और चाँदी की कटोरी में भात-दाल-सब्ज़ी परोसकर पति को खाने के लिए दी। भुंजिआ के लड़के ने सोने की थाली और चाँदी की कटोरी में खाना देखकर पत्नी से इसका कारण पूछा तो पत्नी बोली, “कल तुम्हारे पिता तालाब में ले जाकर तुम्हारी बलि दे देंगे ताकि पानी निकले, इसलिए आज एक दिन के लिए तुम सोने-चाँदी के बर्तन में खाना खा लो।”
भुंजिआ का लड़का यह सुनकर सोच में पड़ गया। रात में ही भुंजिआ का लड़का और उसकी पत्नी घर छोड़कर जंगल की तरफ़ भाग गए। वहाँ जंगल में एक मकान बनाकर रहने लगे। घर से खाने-पीने का कुछ सामान साथ ले गए थे, जिसे खा-पीकर कुछ दिन रहे। एक दिन भुंजिआ के लड़के ने अपनी पत्नी से कहा, “तुम आग जलाकर और पानी गरम करके रखो, मैं शिकार करने के लिए जा रहा हूँ। शिकार करके वापस लौटूँ तो माँस पकाकर खाएँगे।” भुंजिआ की बहू एक पेड़ पर चढ़कर देखने लगी। आग की खोज में उसने देखा एक जगह से धुआँ उठ रहा है। धुआँ देखते हुए वह आग पाने के लिए उस जगह की ओर चल पड़ी।
आग को ढूँढ़ते हुए वह जिस जगह पहुँची, वहाँ एक युवक रहता था। देखने में वह बहुत सुंदर था। उसने पुआल में आग लगाई थी, जिससे धुआँ निकल रहा था। भुंजिआ की बहू वहाँ से आग लेकर घर लौट आई। भुंजिआ का बेटा शिकार लेकर घर पहुँचा। घर में माँस पकाकर दोनों ने खाया। उसके दूसरे दिन सुबह भुंजिआ का लड़का फिर शिकार पर गया। उसकी पत्नी फिर आग लेने के लिए उसी युवक के पास गई और आग लेकर लौटी।
इसी तरह रोज़ भुंजिआ का लड़का शिकार पर जाता तो उसकी पत्नी आग लेने के लिए उस युवक के पास जाती। हर दिन उस युवक के पास जाने से दोनों की मुलाक़ात होने लगी और दोनों एक-दूसरे के प्रेम में पड़ गए। एक दिन भुंजिआ की बहू से उस युवक ने कहा कि यदि तेरे पति को जान से मार दें तो हम दोनों ब्याह कर लेंगे और एक जगह साथ-साथ रहेंगे। उस युवक ने एक उपाय सोचा और भुंजिआ की बहू को बताया।
एक दिन शाम को भुंजिआ का लड़का शिकार लेकर घर पहुँचा। उसी समय उसकी पत्नी घर के एक कोने में लेटकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। भुंजिआ के लड़के ने उससे रोने का कारण पूछा तो उसकी पत्नी बोली, “मेरे कान में दर्द हो रहा है। नाग साँप का दूध लाकर कान में डालने से मैं जिऊँगी, नहीं तो मर जाऊँगी।” भुंजिआ का लड़का अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता था। वह तीर-कमान लेकर नाग साँप का दूध ढूँढ़ने निकल गया।
एक जगह उसने देखा नाग साँप के बच्चे थे और वहाँ दूध था। पर बच्चों की माँ वहाँ नहीं थी। भुंजिआ के लड़के ने सारे बच्चों को मार दिया और दूध लेकर घर आ गया। उसकी पत्नी अपने पति को नाग साँप का दूध लेकर आते देखकर अचरज में पड़ गई। उसने सोचा था दूध लाते समय साँप उसे डस लेगा और वह मर जाएगा। और उसके मर जाने पर उस युवक से, यानी अपने प्रेमी से वह विवाह कर लेगी। इसलिए पति को सकुशल लौटा देख उसे आश्चर्य हुआ। दूध उससे लेकर कान में डालने का नाटक किया और पति की आँख बचाकर दूध को फेंक दिया।
इसके बाद कुछ दिन उसकी पत्नी चुपचाप रही। एक दिन वह अपने प्रेमी के पास गई और उससे सारी बातें बताईं। क्या करने पर उसका पति मरेगा, इस बारे में वह युवक सोचने लगा, फिर उससे बोला, “अबकी बार अपने पति से बाघिन का दूध लाने के लिए कहना। जब वह बाघिन का दूध लेने जाएगा तो बाघिन उसे मारकर खा जाएगी।”
एक दिन भुंजिआ के लड़के ने देखा कि उसकी पत्नी ज़ोर-ज़ोर से रो रही है। उसके पूछने पर पत्नी बोली कि फिर से उसके कान में दर्द हो रहा है। इस बार अगर बाघिन का दूध लाकर उसके कान में न डाला जाएगा तो वह मर जाएगी। यह सुनकर उसका पति दूध लाने पहाड़ की तरफ़ गया। चारों तरफ़ ढूँढ़ा। एक जगह देखा कि बाघिन के बच्चे गू-मूत में सने पड़े हैं।
उसके मन में बाघिन के बच्चों के प्रति दया उपजी। उसने बाघिन के बच्चों को धो-पोंछकर साफ़ कर दिया और उस जगह को भी साफ़ कर दिया। उस जगह में उगे झाड़-झंखाड़ को भी उखाड़कर साफ़ कर दिया। फिर बाघिन के बच्चों को साफ़-सुथरी जगह पर रखकर एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गया।
बाघिन खाना लेने के लिए निकली थी। लौटी तो देखा उसके बच्चे साफ़-सुथरी जगह पर लेटे हैं। उनका शरीर भी साफ़ है। बाघिन ने बच्चों से पूछा तो बच्चों ने पेड़ की तरफ़ इशारा किया। बाघिन ने ऊपर देखा, तो एक युवक को पेड़ पर बैठा पाया। बाघिन ने उस लड़के से पूछा, “तुम यहाँ क्यों आए हो? तुमने किस लिए मेरे बच्चों और इस जगह की साफ़-सफाई की?” तब भुंजिआ के लड़के ने सारी बातें बताईं।
बाघिन बोली, “तुमने हमारी ख़ूब सेवा की। तुम मेरा दूध और एक बच्चे को लेकर घर जाओ। बाघ के बच्चे को देखने पर तुम्हारी पत्नी को विश्वास हो जाएगा कि तुम बाघिन का ही दूध लाए हो।” भुंजिआ का लड़का बाघ का बच्चा और दूध लेकर लौटा। उसकी पत्नी भुंजिआ के लड़के, बाघ के बच्चे और दूध को देखकर भौंचक रह गई। भुंजिआ के लड़के ने बाघिन का दूध पत्नी को दिया और बाघ के बच्चे को पालने लगा।
एक-दो महीना बीत गया। एक दिन फिर उसकी पत्नी अपने प्रेमी के पास गई और उसे सारी बातें बताईं। उसके प्रेमी ने इस बार उसे एक और उपाय बताया। कहा कि इस बार अपने पति को दूसरी तरफ़ जो पहाड़ है, उसके पार एक दूसरा पहाड़ है, उधर भेजना और उस पहाड़ पर स्थित तालाब से पानी लाने के लिए कहना। वह तालाब बहुत गहरा है। उस तालाब के अंदर जाने पर ऊपर आना कठिन है। भुंजिआ की बहू फिर एक दिन घर के कोने में लेटकर रोने लगी। भुंजिआ के लड़के ने पूछा तो पत्नी बोली, “इस पहाड़ के दूसरी तरफ़ एक पहाड़ है। उस पहाड़ में एक तालाब है। उसका पानी ला देने पर मेरे कान का दर्द ठीक होगा, नहीं तो ठीक नहीं होगा दर्द और मैं ज़िंदा नहीं रहूँगी, मर जाऊँगी।” भुंजिआ का लड़का सीधा था। उसने सोचा अगर वह पानी नहीं लाएगा तो पत्नी मर जाएगी। वह अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था, इसलिए पानी लाने के लिए पहाड़ पर चढ़ा और तालाब ढूँढ़ने लगा। आख़िर में उसे तालाब मिल गया। उसने देखा वह तालाब पहाड़ से बहुत नीचे है। अगर तालाब के लिए नीचे उतरेगा तो फिर ऊपर नहीं आ पाएगा। भुंजिआ के लड़के ने सोचा इस बार तो ज़रूर उसकी पत्नी मर जाएगी। ऐसा सोच-सोचकर वहीं बैठकर वह रोने लगा।
दो दिन बीत गए। वह वहीं बैठकर रोता रहा। भुंजिआ की बहू सोचने लगी इस बार ज़रूर उसका पति मरेगा। पानी के लिए नीचे उतरेगा तो ऊपर चढ़ नहीं पाएगा। भुंजिआ का लड़का वहीं बैठकर दो दिन, दो रात रोता रहा। उसका रोना सुनकर एक वनकन्या उसके पास आई। भुंजिआ के लड़के से रोने का कारण पूछने पर उसने सारी बातें बताईं। वनकन्या ने उससे कहा कि उसकी एक शर्त मानने पर वह पानी लाकर देगी। भुंजिआ के लड़के ने हामी भर दी। वनकन्या की शर्त थी कि भुंजिआ का लड़का उससे विवाह करेगा। वनकन्या तालाब से पानी लेकर आ गई। भुंजिआ के लड़के ने वह पानी लेकर घर लौटकर अपनी पत्नी को दिया। भुंजिआ का लड़का पहाड़ चढ़कर पैदल ही घर लौटा था, इसलिए थक गया था। पत्नी को पानी देकर वह आराम करने लगा।
आराम करते-करते वह गहरी नींद में सो गया। तभी भुंजिआ की बहू ने सोचा कि किसी भी उपाय से उसका पति तो मरा नहीं। ऐसा सोचकर एक कुल्हाड़ी लाई और अपने पति का गला काट दिया। पति मर गया। भुंजिआ के लड़के की मौत होते ही उसके गाँव में खुदवाया गया तालाब अपने-आप ही पानी से भर गया। तालाब में पानी देखकर उसका पिता समझ गया कि बेटे की मौत हो गई है। भुंजिआ दुःखी मन से बेटे का क्रियाकर्म करने के लिए उसे ढूँढ़ने निकला। भुंजिआ के लड़के को मारकर उसकी पत्नी अपने प्रेमी के पास चली गई और उसके साथ रहने लगी।
भुंजिआ के लड़के के घर में बाघ का बच्चा था। बाघ के बच्चे ने देखा भुंजिआ के लड़के के दो टुकड़े हो गए हैं। बाघ का बच्चा भुंजिआ के लड़के के धड़ और सिर को लेकर पहाड़ में रहने वाली उस वनकन्या के पास पहुँचा। वनकन्या ने देखा कि उसके पति (भुंजिआ के लड़के) को किसी ने मार दिया है। वनकन्या अपने पति के धड़ और सिर को लेकर वन देवी के पास पहुँची। वन देवी के पास जाकर पति के सिर धड़ को लेकर सात दिन, सात रात तक वनकन्या रोती रही।
वन देवी ने वनकन्या के दुःख से द्रवित होकर भुंजिआ के लड़के को जीवनदान दिया। भुंजिआ का लड़का उठकर बैठ गया। उसके ज़िंदा होते ही बाघ के बच्चे और वनकन्या ने उसे सारी बातें बताईं। भुंजिआ के लड़के ने वनकन्या से एक हाथी लाने के लिए कहा। उसके बाद भुंजिआ के लड़के ने मन ही मन वन देवी का स्मरण किया और उनसे एक तलवार माँगी। भुंजिआ का लड़का, वनकन्या और बाघ का बच्चा हाथी पर बैठकर उसकी पत्नी के पास गए। भुंजिआ के लड़के ने अपनी पत्नी और उसके प्रेमी को मार दिया और घर लौट गए। वनकन्या से भुंजिआ के लड़के ने शादी कर ली।
भुंजिआ अपने बेटे को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते जंगल जा पहुँचा। वहाँ अपने बेटे को ज़िंदा देखकर बहुत ख़ुश हुआ। वह अपने बेटे, बहू और बाघ के बच्चे को लेकर गाँव लौटा। गाँव में अपने लड़के और वनकन्या का विवाह kara दिया। तालाब की प्रतिष्ठा कराई गई और सब साथ-साथ सुख से रहने लगे।
(साभार : अनुवाद : सुजाता शिवेन, ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)