वानिया (रूसी कहानी) : मैडम एस्टाफीवा

Vaniya (Russian Story in Hindi) : Madam Astafieva

अपने मासूम गुलाबी चेहरे को लिये मिलोचका सोफे के तकिए में दबी बुरी तरह से रो रही थी । उसके युवा जीवन में दुर्भाग्य निर्दयता और अप्रत्याशित ढंग से पहली कष्टदायक निराशा लाया था । उसने अधीरता से उस दिन की प्रतीक्षा की थी जब वह सोलह वर्ष की हो जाएगी और छोटी लड़की से युवती में बदल जाएगी; वह पहली बार लंबी, मलमल की सफेद पोशाक पहनेगी और अपने पहले नाच के लिए जाएगी।

वह इस घटना का सपना बहुत दिनों से देख रही थी, परंतु उस दिन प्रातः काल उसकी माँ ने एकाएक बताया कि उसे पोशाक नहीं मिलेगी और नाच के बारे में उसे सोचना भी नहीं चाहिए, क्योंकि खर्च करने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं।

मिलोचका के लिए यह दुःखदायी चोट थी । बचपन से ही वह समस्त परिवार की लाड़ली रही थी। उसे इस बात का पता नहीं था कि उसके लिए किसी चीज को मना कैसे किया जाता था। कुछ ही समय पहले वह सुख- सुविधाओं से घिरी रहती थी और सोच भी नहीं पाई थी कि पिता की मृत्यु के बाद इस वैभवमय जीवन का अंत हो जाएगा और गत एक-डेढ़ वर्षों में, जब से वह इनसे एकाएक जुदा हो गया था और जोकुछ हजार ही छोड़ गया था - सब खर्च हो गए थे। अब उन्हें नए सिरे से किसी दूसरे ढंग का जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ेगा। वह बड़े दिनों की छुट्टियों में छात्रावास से घर आई थी और अपने पहले नाच के सुखद पूर्वाभास को अपने साथ लाई थी, परंतु अब उसके सारे सपने निर्दयता से बिखर गए थे। यह उसके लिए अत्यंत भयंकर था।

घर में बड़े दिन के लिए तैयारियाँ हो रही थीं, परंतु अपने दुःख से पूरी तरह ग्रसित मिलोचका इस ओर ध्यान नहीं दे रही थी। उसने आँसुओं से मलिन अपना चेहरा तकिए से उठाकर स्कूली वरदी पहने अपने भाई वानिया को बुलाया और उससे निराशापूर्ण स्वर में बोली, “तुम जानते हो, वानिया, यह मेरा सपना था— मधुरतम सपना।" और कुछ क्षणों के लिए अपने दुःख को भूलकर कहना जारी रखा - " मैं और तानिया – तानिया को जानते हो? वह चतुर लाल बालोंवाली!"

वानिया ने सिर हिला दिया ।

“तानिया और मैं हमेशा अपने पहले नाच की बात किया करती थीं और हमने निर्णय लिया था कि वह लाल पोशाक पहनेगी और मैं सफेद । आज माँ ने कहा है कि यदि वह मुझे पोशाक दे दे, तो भी नाच में अपने साथ नहीं ले जाएगी, क्योंकि उसके पास पहनने के लिए अच्छी पोशाक नहीं है। उसने अपने तमाम अच्छे गाउन बेच दिए हैं। मैं अपने पहले नाच—अपने पहले सुंदर नाच में नहीं जा सकूँगी।" उसने रोते हुए कहा और एक बार फिर अपने सिर को तकिए में दबाकर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया।

वानिया कुछ सोचते हुए खड़ा हुआ और अपनी बहन की ओर देखता हुआ मुड़ा तथा तेज चाल से चलता हुआ बरामदे में चला गया। जाते-जाते उसने अन्ना (उसकी सौतेली माँ) के दरवाजे की ओर चिंता से देखा, ताकि अपने आपको आश्वस्त कर सके कि बाहर खिसकते हुए उसे कोई देख तो नहीं रहा है और जल्दी से अपना कोट पहनने लगा।

"ओह, मुझे अकेली छोड़ दो, " उसने अन्ना की कुरद्ध आवाज को सुना - " मैं तुम्हें बार-बार कह चुकी हूँ कि इस वर्ष क्रिसमस ट्री नहीं बनेगा और यदि तुम रोना-धोना बंद नहीं करोगी तो मैं तुम्हें कमरे से बाहर निकाल दूँगी।"

परंतु इस कठोर चेतावनी का स्पष्टतया कुछ भी लाभ नहीं हुआ, क्योंकि एक क्षण के बाद ही उसने अपनी माँ के कर्कश स्वर को सुना-

" जो तुम्हारी माँ कहती है, उसको तुम इस तरह से सुनती हो क्या? जाओ, बच्चों के कमरे में।" पाँच वर्षीया लड़की को धक्का देती हुई अन्ना दहलीज पर प्रकट हुई। बच्ची ऐसे रो रही थी कि उसका दिल टूट जाएगा।

"और अब तुम कहाँ जा रहे हो?" अन्ना ने वानिया को बाजार जाने के लिए कोट पहने और हाथ में टोपी थामे हुए देखकर अप्रसन्नता से पूछा।

"मैं...मैं जल्दी ही लौट आऊँगा।" वानिया ने उसकी आँखों का परिहार करते हुए और अपनी टोपी को भद्दी तरह खींचते हुए काँपती आवाज में उत्तर दिया।

"मैं तुम्हारी लगातार अनुपस्थिति को पसंद नहीं करती, अन्ना ने ठंडी और लगभग वैरी दृष्टि से अपने सौतेले बेटे को घूरा, “मैं नहीं जानती कि तुम हमेशा कहाँ जाते हो? पिछले दो महीनों से तुम खाने के समय ही घर में नजर आते हो और मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझते कि तुम जाते कहाँ हो? तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम्हारे व्यवहार की सारी जिम्मेदारी मेरी है। लोग कहेंगे कि तुम्हारी माँ बुरी है । "

"परंतु मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, माँ, कि मैं कोई गलत काम नहीं कर रहा हूँ। मैं केवल पढ़ने जा रहा हूँ।" “तुम आज घर पर ही ठहर सकते थे। तुम जानते हो कि छुट्टियों से पहले घर में भी बहुत कुछ करने को होता है। तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो। अच्छा, बताओ, तुम अपने कमरे के दरवाजे को अब कुछ दिनों से ताला क्यों लगाते हो?"

वानिया बहुत व्याकुल हो गया और सकपका गया।

"वहाँ...मुझे डर है कि कहीं सोनिया और मिटिया मेरी पुस्तकें और दूसरे कागज न फाड़ दें...।"

"कितनी समझदारी की बात है! तुम कब से पुस्तकों के प्रति सावधान हो गए?" उसने व्यंग्य कसते हुए पूछा और एकाएक मुड़ते हुए ठुनकते बच्चे के साथ उनके कमरे में चली गई।

वानिया ने जाते हुए अपनी सौतेली माँ की ओर एक क्षण देखा और अपनी टोपी को नीचे खींचते हुए घर से जल्दी निकल गया।

खानेवाले कमरे में मिलोचका अब भी रो रही थी । बच्चों के कमरे में दोनों बच्चे – सोनिया और मिटिया - दाया को यह बताने में होड़ ले रहे थे कि बहुत समय पहले उन्होंने कितना प्यारा क्रिसमस ट्री बनाया था। उन्होंने दुःखी और दयनीय भाव शिकायत की कि प्यारे परमात्मा ने उनके पिता को छीन लिया और माँ कहती है कि वे फिर कभी भी क्रिसमस ट्री नहीं बनाएँगे ।

बूढ़ी दाया बच्चों को सांत्वना देने का प्रयास जितने अच्छे ढंग से कर सकती थी, किया; सुंदर लटोंवाले उनके सिरों को प्यार से थपथपाया और उस अद्भुत बच्चे के बारे में बताया जो कई शताब्दियों पहले पशुओं की नाँद में पैदा हुआ था। उन्हें बड़े तारे की बाबत बताया, जो आकाश में उदित हुआ था और जिसने चरवाहों और बुद्धिमान मनुष्यों को उस स्थान का रास्ता बताया था जहाँ मुक्त करनेवाला आराम कर रहा है।

उसने अद्भुत शिशु की बाबत उत्साहपूर्वक विस्तार से बताया कि बच्चे अपना दुःख भूलकर उसके साथ सिमट गए। उन्होंने अपनी दाया की सारी कहानी आश्चर्य और प्रसन्नता से सुनी।

इस बीच अन्ना दुःख से सिर को झुकाए बिना बिछे बिस्तर पर बैठी थी । यादों की लंबी डोरी ने उसके मन में बाढ़ ला दी। उसने अपने पिता के घर गुजारे अपने स्वतंत्र, प्रसन्न बचपन को और कुँवारेपन के उन वर्षों को, जो उसने कॉलेज में अपनी प्यारी सहेलियों के साथ गुजारे थे - याद किया । अंततः वह चिर प्रत्याशित अपने सोलहवें वर्ष को पहुँच गई। अब वह लंबी स्कर्ट में एक युवती थी । उसे अपना भविष्य कितना शानदार और लुभानेवाला नजर आया। उसका दिल अनजाने, परंतु अत्यंत मधुर भविष्य के लिए प्रसन्नता से धड़कने लगा । वह केवल सत्रह वर्ष की थी जब उसने एक युवा विधुर से विवाह किया, जिसका पहली पत्नी से एक वर्ष का बच्चा था।

उसने अपने पति से निश्छल प्यार किया और अपने विवाहित जीवन में अत्यंत प्रसन्न रही थी । यदि कभी परस्पर झगड़ते भी थे तो वह वानिया को लेकर । वह इस विचार से समझौता नहीं कर सकती थी कि केवल कुछ ही समय पहले किसी दूसरी औरत ने उससे प्यार किया था और वह औरत इस छोटे बच्चे को अपने प्यार की प्रतिज्ञा के रूप में छोड़ गई थी, जिसको पिता पूजता था । यह चपल, घरेलू, हठी लड़का वानिया, जो उसको अपनी भूरी बड़ी आँखों से शंका की नजर से देखता था और जो पिता को अथाह प्यार करता था तथा प्रसन्नतापूर्वक उसका दुलार पाता था, उससे उसके पति के दिल का भाग छीन रहा था, ऐसा उसे प्रतीत होता था और उनके अन्यथा सुखी जीवन में कलह का कारण भी वही था । वह उसे नहीं चाहती थी; इस भावना को कठिनाई से ही दबा पाई थी और अब अपनी पुरानी यादों में डूबी बैठी थी । उसे एक क्षण के लिए भी अपने सौतेले लड़के के प्रति अपनी निर्दयता और अन्याय के लिए ग्लानि नहीं हुई थी । उसे अपने ही बच्चों और निर्धनता, जो उन्हें धमका रही थी, का ध्यान था । उसने यह भी विचार किया कि भाग्य ने उसके साथ भी अन्याय किया है।

उसने याद किया कि कितने वर्ष पहले उसने — एक युवा सुंदर औरत ने— जो वैभव और पति के कोमल प्यार तथा प्रशंसकों से घिरी रहती थी, समानता के विचार का प्रचार किया था । वह इस विचार से अनुरागपूर्वक संबद्ध थी और उसने दृढ़ विश्वास के साथ घोषणा की थी कि स्वेच्छाचारी समय बहुत पहले गुजर चुका था; और अब परिवार में पत्नी के उतने ही अधिकार हैं, जितने पति के।

अन्ना कड़वेपन से मुसकराई !

“हाँ, उसने धीरे से कहा, “मैंने अपनी स्वतंत्रता और समान अधिकारों को कायम रखा है; बाकी सबकुछ कब्र में है।"

वह जब केवल पैंतीस वर्ष की थी तथा अभी युवा एवं सुंदर लगती थी, पति की मृत्यु के बाद अपने आपको बूढ़ी महसूस करने लगी और अपने बच्चों के पालन-पोषण में तथा उन्हें यथासंभव भूख-प्यास से बचाने के लिए उसने स्वयं को पूरी तरह से समर्पित कर दिया था । वह अपने आपको भूल गई थी।

उसने जिस आदमी से सच्चा प्रेम किया था, उसके लिए केवल गहरी व्यथा और बच्चों के भविष्य के प्रति निरंतर भय को, वह एक क्षण भी भूल नहीं पाई थी । अकेलेपन और असहायता की भावना उसके अंदर जोर पकड़ने लगी थी। उसने याद किया कि अपने प्यारे पति के जीवनकाल में वे किस तरह क्रिसमस का त्योहार मनाया करते थे- शानदार खाना और कीमती पोशाकें पहने मेहमानों के झुंड ! और उसका दिल पीड़ा से सिकुड़ गया। लंबी आह भरकर और अपने आँसू पोंछकर वह धीरे से चारपाई से उठी।

खाना लगाने का समय हो गया था। रात उतर रही थी । काले आकाश में इक्के-दुक्के तारे प्रकट हो रहे थे और हलकी चाँदी-सी रोशनी फेंक रहे थे।

“वानिया कहाँ है? फिर चला गया?" अन्ना ने मेज पर बैठते हुए पूछा। सोनिया और मिटिया अपनी छुट्टीवाली पोशाकें पहने और मिलोचका, जो अभी तक उदास थी और जिसकी रोने के कारण आँखें लाल थीं, पहले ही मेज पर बैठी थी ।

"वह हमेशा ही गायब रहता है ।" बच्चों को सूप देते हुए उसने कठोरता से कहा ।

यह देखते हुए कि उनकी माँ गुस्से में है, बच्चे शांत हो गए और उन्होंने अपना खाना चुपचाप खाया।

छोटे, सुखकर खाने के कमरे की शांति केवल चम्मच और प्लेटों के टकराने से ही भंग होती थी। अंततः वह शोर भी समाप्त हो गया। हर कोई अपने-अपने विचारों में डूबा निश्चल बैठा था। केवल लाल गालोंवाला मिटिया इधर- उधर देख रहा था; मानो कोई चीज ढूँढ़ रहा हो । अंत में वह छोटी कुरसी के पीछे खड़ी अपनी बूढ़ी दाया की ओर मुड़ा और उससे धीरे से पूछा-

"न्यानिया, क्या छोटे फरिश्ते आ चुके हैं?"

“वे आ गए हैं। हाँ-हाँ, आ गए हैं, मेरे प्यारे, अच्छे बनो जैसा मैंने तुम्हें सिखाया है, नहीं तो वे उड़ जाएँगे और प्रभु की अच्छी क्रिसमस की कहानी अपने साथ ले जाएँगे ।"

इन शब्दों पर अन्ना ने नाराजगी का भाव प्रकट किया और जोर से कहा-

“न्यानिया, मैं तुम्हें कहती हूँ कि बच्चों को परियों की कहानियाँ किसी और समय सुनाया करो, न कि जब वे खाने की मेज पर बैठे हों । "

"परंतु ये परियों की कहानियाँ नहीं हैं, मैडम! मैंने तो उन्हें केवल अपना व्यवहार ठीक रखने के लिए कहा था, नहीं तो फिर उन्हें क्रिसमस ट्री नहीं मिल पाएगा।"

"उन्हें मिलता है या नहीं, यह मेरा मामला है। उसमें फरिश्तों का क्या काम है?"

"यह कैसे हो सकता है? " बूढ़ी औरत ने अपने आपको दुःखी महसूस करते हुए कहा, "वास्तव में यह फरिश्तों का ही काम है। हर कोई जानता है कि क्रिसमस की पूर्व संध्या पर फरिश्ते अच्छे आदमियों के साथ उड़ते हैं और तोहफे देते हैं । "

“मम्मी-मम्मी, वानिया आ गया है।" अपने भाई को बरामदे में आता देखकर सोनिया चिल्लाई।

"ठीक है, आ गया है तो आ जाने दो, तुम किसलिए चिल्ला रही हो?" अन्ना ने कुद्ध होकर कहा । अपने सौतेले लड़के, जो अभी-अभी दहलीज पार करके आया था, की तरफ मुड़ते हुए उसने कठोरता से पूछा—

“कहाँ गए थे तुम?” और उसके उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना उसने कहना जारी रखा - " तुम्हें कम-से-कम छुट्टी का मान करते हुए कुछ अच्छे कपड़े पहनने चाहिए और यह सच है कि हमारे यहाँ कोई मेहमान नहीं आ रहा है, फिर भी उचित ढंग से दिखाई देने में कोई हानि नहीं होती। अपनी तरफ देखो, कैसे नजर आ रहे हो!" और उसने विशेषकर धब्बों से भरे छोटे कोट की ओर संकेत किया।

लड़का गुस्से से लाल हो गया।

"पहनने के लिए मेरे पास और अच्छे कपड़े नहीं हैं । मेरे सारे कपड़े फट चुके हैं।" उसने अपनी प्लेट को देखते हुए उत्तर दिया।

" और तुम्हारी पढ़ाई ? क्यों, तुम बीस रुबल मासिक से अधिक कमा रहे हो।"

"परंतु लगभग सारे-के-सारे तुम्हें दे देता हूँ! " वानिया ने ग्लानि से सौतेली माँ को देखते हुए बड़ी धीमी आवाज में कहा।

इस उत्तर ने अन्ना को सहमा दिया। आगे बिना एक भी शब्द बोले उसने अपना सारा ध्यान बच्चों की ओर लगा दिया।

“मैंने एक बड़ी तसवीर वानिया के कमरे में देखी है।" सोनिया ने एकाएक कमरे की दर्द भरी शांति को भंग करते हुए कहा, “यह फर्श पर पड़ी थी और वानिया ने उसपर रंगदार पेंसिलों से कुछ खींच रखा था — इतनी बड़ी तसवीर!" छोटी लड़की ने भुनभुनाकर और अपने लाल होंठों पर हठ करने का भाव लाते हुए कहना जारी रखा -"वानिया मेरे लिए हमेशा ताला लगा लेता है और कमरे में नहीं आने देता, परंतु मैंने हर वस्तु देख ली है।"

"यह मैं क्या सुन रही हूँ, वानिया?" तुम चित्रों से खेलते हो? मैं तुम्हें बधाई देती हूँ, यह अच्छा शगल है, विशेषकर स्कूल की छठवीं कक्षा के विद्यार्थी के लिए, जिसकी परीक्षा सिर पर मँडरा रही है !" अन्ना ने व्यंग्य कसते हुए कहा।

वानिया ने कोई उत्तर नहीं दिया और अपने सिर को प्लेट पर झुका दिया।

वह पहले ही से अपनी सौतेली माँ के व्यवहार का आदी हो गया था, परंतु उसके चुभनेवाले शब्दों से उसे दुःख होता था। जिस खुशी के विचार से वह घर आया था, वह तुरंत हवा हो गया। जैसे-जैसे उसके बचपन और शुरू जवानी की तसवीरें सामने उभरने लगीं, उसका दिल पीड़ा से सिकुड़ने लगा । वानिया, जिसको माँ का दुलार नहीं मिला था, अपने पिता के घर एक अजनबी की भाँति रह रहा था । उसके पिता ने उसे भरपूर प्यार किया था, परंतु सिविल इंजीनियर होने के नाते वह अपने काम से परिवार के लिए पर्याप्त समय नहीं जुटा पाता था। कर्मठ व्यापारी और सदा अति विश्वस्त रूप से काम में लीन रहते हुए उसने अपने बच्चों को अधिक प्यार से बिगाड़ा नहीं था और वानिया के साथ ठीक दूसरे बच्चों की तरह शांति से एक जैसा व्यवहार किया था । वानिया का दिल उस समय कैसे आनंद से उछला करता था, जब सौतेली माँ के अन्यायपूर्ण व्यवहार को देखकर पिता उसे कोमल और मधुर शब्दों से सांत्वना देता था और प्यार करता था, परंतु ऐसा प्रायः नहीं होता था । समय व्यतीत होता गया तथा दुर्व्यवहार के बीच पला बच्चा वानिया जवान हो गया और परिवार में अपनी स्थिति को भली प्रकार समझने लगा। भले ही उसने भरसक प्रयास किया कि अपनी सौतेली माँ को नाराज न करे, परंतु उनके परस्पर संबंध सुधरे नहीं। उसने माँ के दुर्व्यवहार को हमेशा नम्रता से, आदरपूर्वक सहन किया, जिसने उसको और भी क्रुद्ध किया ।

परंतु उसके पिता की एकाएक मृत्यु हो गई और वानिया के जीवन तथा सारे परिवार की दशा में मौलिक परिवर्तन हो गया। वैभवयुक्त वातावरण, जान-पहचानवालों का बड़ा जमावड़ा, आनंदमय स्वतंत्र जीवन — सब ऐसे हो गए जैसे जादू ने उड़ा दिए हों। यह न समझते हुए कि पिता अपने काम में ढेरों रुपए वार्षिक कमाता था, मरते समय एक पैसा भी परिवार के लिए नहीं छोड़ा था, सिवाय थोड़ी पेंशन के, जो घर के खर्च के लिए पर्याप्त नहीं थी।

बड़े एवं सरकारी मकान से निकलकर परिवार को पाँच कमरे के एक मकान में रहना पड़ा था और यहाँ से उनका भूख और प्यास का जीवन शुरू हुआ । वानिया उस समय पूरे अठारह वर्ष का था।

परिवार की दुर्दशा देखकर उसने छोटा-मोटा काम कर लिया, जिससे उसकी पढ़ाई का खर्च और उसके कमरे का किराया निकल जाता था।

पहले तो अन्ना ने कमरे का किराया लेने को अनसुना कर दिया, परंतु बाद में इसको प्यारहीन सौतेले बेटे की सहायता समझकर अनैच्छिक रूप से स्वीकार कर लिया ।

वानिया अपने छोटे भाई और बहनों को बहुत चाहता था । वह अपनी पढ़ाई में बड़ा परिश्रमी था और अधीरता से प्रतीक्षा कर रहा था कि वह तकनीकी स्कूल में कब जाएगा । वह अपने पिता के पदचिह्नों पर चलने के सपने देख रहा था और उनका व्यवसाय चुनना चाहता था। परिवार की आर्थिक दशा को सुधारना उसके जीवन का उद्देश्य था तथा अपनी सौतेली माँ पर नैतिक विजय पाना तथा कई वर्षों से सहते आ रहे उसके दुर्व्यवहार को समाप्त करना उसके जीवन का लक्ष्य था।

उसके होंठों से अनुचित निंदा सुनकर उसे अत्यंत पीड़ा होती थी, परंतु वह जाहिर नहीं करता था कि उसे कितना दुःख होता था और चोट पहुँचती थी। वह हमेशा ही मेज से उठकर आदरपूर्वक अपनी सौतेली माँ का हाथ चूमकर अपने कमरे में जाता था।

वानिया को जाता देखकर अन्ना अपने कंधे झटकाकर चुपके से मेज से उठती थी।

मिलोचका ने गहरी आह भरी और अपने सोफे पर पलट गई, जबकि दाया ने बच्चों को कुछ धीमी आवाज में कहा और उन्हें उनके कमरे में ले गई।

दुःख के निर्दयी भाव ने अन्ना को दबोच लिया । वह प्रत्यक्ष रूप से मेज साफ करनेवाले नौकर अथवा सोफे पर निश्चल बैठी मिलोचका की ओर ध्यान न देते हुए। काफी देर तक कमरे में घूमती रही।

उसके विचार एक बार फिर बीते दिनों की ओर मुड़े। पति के साथ उसके स्वतंत्र, प्रसन्न जीवन की तसवीर उसकी इच्छा के विरुद्ध उसकी आँखों के सामने आ गई।

यह विचार न करते हुए कि उसके पास करने को बहुत काम पड़ा था, उस अच्छे स्वभाववाले और प्रसन्नचित्त आदमी ने अपने इर्दगिर्द सबको जीवन के आनंद से रंग दिया था।

'बाप और बेटे के चरित्रों में कितनी स्पष्ट भिन्नता है!' अन्ना ने अपने सामने शांत और बेमेल वानिया की तसवीर खींचते हुए सोचा——इसे अपनी माँ जैसा होना चाहिए था । " और एक बार पुनः ईर्ष्या की भावना, जिसने बीते दिनों में उसे बहुत दुःख दिया था, उसके दिल में जाग उठी। वह अपने कमरे में जाने के लिए तेजी से मुड़ी, जब उसने वानिया को आकस्मिक रूप से जल्दी-जल्दी आवाज लगाते सुना।

"माँ, मिलोचका, कृपया मेरे कमरे में आओ। मैंने बच्चों के लिए एक अजीब चीज बनाई है। कृपया सोनिया और मिटिया को बुलाओ और उन्हें जल्दी आने के लिए कहो ।" और एकाएक व्याकुलता से लाल होकर उसने कहना जारी रखा–"मैंने उनके लिए एक छोटा क्रिसमस ट्री बनाया है और मोमबत्तियाँ जला दी हैं। "

"तुमने बच्चों के लिए – क्रिसमस ट्री ? " अन्ना ने हैरानी से उसे देखते हुए और अपनी आँखों पर विश्वास न करते हुए पूछा।

वानिया ने उसके चेहरे की तरफ आँखें उठाई और दोषी मुसकान के साथ मुसकराते हुए धीमी आवाज में कहा, “हाँ, मैंने इसे केवल तुमसे छिपाकर रखा था, क्योंकि बच्चों को विस्मित करना चाहता था।"

अन्ना अपने आपको कठिनाई से आश्वस्त कर पाई कि परिवार के प्रति उदासीन, कुरूप इस गंभीर युवा, जैसा यह उसको प्रतीत होता था, को बच्चों को इस प्रकार विस्मित करने की बात कैसे सूझी।

और वानिया शोर मचाता हुआ बच्चों के कमरे की ओर गया।

"सोनिया, मिटिया, अच्छे प्रभु ने तुम्हारे लिए क्रिसमस ट्री भेजा है, मेरे कमरे में जल्दी से आओ।" और फिर वह अपनी सौतेली माँ के पास दौड़ा और बहन को कमरे के दरवाजे में खड़े पाया।

इस अवसर के लिए वानिया ने अपना कमरा स्वयं साफ किया था, उसे सँवारा और सजाया था; मेज और कुर्सियाँ दीवार के साथ लगा दी गई थीं और कमरे के मध्य में छोटा, चमकता हुआ, प्यारा क्रिसमस ट्री रखा था। बच्चों ने उसे प्रसन्नतापूर्वक देखा और तालियाँ बजाकर दोहराया-

"प्यारे प्रभु ने हमारे लिए क्रिसमस ट्री भेजा है ! हमारा अच्छा प्रभु! "

मिलोचका, जो अपना व्यक्तिगत दुःख बिलकुल भूल चुकी थी, हर्षित होकर अपने भाई की तरफ बढ़ी और अचरज भरी आवाज में पूछने लगी-

" वान्युशा, चतुर बुरे लड़के, तुमने चीजें खरीदने और हर चीज को समय पर तैयार करने के लिए प्रबंध कैसे किया?"

" मेरे पास तुम्हारे और माँ के लिए कुछ और भी है," वह उत्साहित होकर बोला, "सोनिया, मेरी बहन यह तुम्हारे लिए है।" एक बड़ी सुंदर पोशाक और सन की लंबी लटोंवाली गुडिया उसकी छोटी बाँहों में रख दी, जिसने सोनिया को अत्यंत हर्ष प्रदान किया । " और यह तुम्हारे लिए है । " मिटिया को पहियोंवाला ऊँचा घोड़ा देते हुए वानिया ने कहा। मिटिया अपनी बहन की तरफ देखता हुआ तुरंत उसपर एक विजयी सवार की तरह चढ़ गया और घोड़े को चाबुक मारने लगा।

“देखो सोनिया, घोड़े के अधिक पास मत जाओ, नहीं तो यह तुम्हारे ऊपर चढ़ जाएगा! " दीवार से लगा वानिया चिल्लाया, मानो घोड़े से डर रहा हो ।

अन्ना ने अशिष्ट वानिया की ओर मुसकराकर देखा और अनिच्छापूर्वक अपनी गहरी कोमल दृष्टि उसके ऊपर जमा दी। उत्तेजना से लाल वानिया के प्रसन्न चेहरे को उसने देखा, मोटी पलकों के नीचे खुशी से चमकती आँखों को देखा और हैरानी से महसूस किया कि उनमें उसके प्यारे पति की कितनी विचित्र समानता है।

"मैंने पहले इसे महसूस क्यों नहीं किया ! " सोचते हुए उसे अपने पर ग्लानि हुई । वह और अधिक दुलार से परिवर्तित हो वानिया के चेहरे को देखने लगी ।

तीक्ष्ण, शोकपूर्ण दृष्टि, जो उसके चेहरे पर रहती थी और जिसका वह आदी हो गया था, उसकी अपेक्षा इस समय माँ का प्रसन्नतापूर्वक उसे देखना कितना भिन्न था !

वसंत ऋतु के सूर्य की चमकीली किरण ने बर्फ की ऊपरी कड़ी तह को पिघला दिया था — बर्फ, जिसने कई वर्षों से अन्ना निकोलवीना के दिल को ढक रखा था। उसकी आत्मा में अपने लड़के के लिए मातृत्व की कोमल भावना उत्पन्न हुई, जो अब तक प्यारहीन सौतेला बेटा था ।

"माँ, यह है तुम्हारे लिए।" वानिया ने भीरुता से कहा और एक छोटी मखमल की डिबिया उसको दी।

उसने अपनी बढ़ती हुई विलक्षणता से उसको देखा और फिर खोला । उसका दिल खुशी से उछलने लगा।

डिबिया में गहरे लाल रंग की मखमल के पेंदे पर उत्साह से इच्छित एक लंबा सोने का ब्रोच रखा था, जिसपर उसके पति का सूक्ष्म चित्र सुंदरता से खुदा था।

अन्ना ने अठारह वर्षों में पहली बार वानिया के झुके माथे को प्यार से चूमा।

उसने माँ के हाथ को अपने होंठों से लगाकर इस दुलार का शिष्टता से प्रत्युत्तर दिया । फिर शीघ्रता से मेज की ओर मुड़ा और एक पुलिंदा खोला।

"आह!” मिलोचका ने चीख मारी और मेज की ओर दौड़ी। वानिया ने उसके सामने लाकर बारीक मलमल का रोल खोला।

मिलोचका अपनी आँखों पर कठिनाई से विश्वास कर सकी । तोहफा वास्तव में अप्रत्याशित था ।

"और यह माँ की पोशाक के लिए कुछ सामान है," एक दूसरा पुलिंदा खोलते हुए और उसमें से जगमगाती सिल्क निकालते हुए वानिया बोला।

"अब तुम माँ के साथ अपने पहले नाच के लिए नववर्ष की पूर्व संध्या पर जा सकती हो।" वह मुसकराया- मधुर मुसकान और खुशी से फूले अपनी बहन के चेहरे को देखकर, उसने आगे कहा, "अब तुम रोओगी नहीं, क्यों?"

"वान्युशा, मेरे प्यारे, मिलोचका ने प्रफुल्लित होकर अपनी बाँहें भाई के गले में डालते हुए कहा, "तुम कितने अच्छे हो और मैं तुम्हें कितना प्यार करती हूँ – ढेर सा प्यार ! "

कपड़ा भूमि पर गिर गया, परंतु युवा लड़की ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया और अपने भाई को अपने बाजुओं से अपने साथ दबाती हुई बोली-

"मैं तुम्हें प्यार करती हूँ, प्यार करती हूँ, वानिया! "

अन्ना भी वानिया के पास गई।

"परंतु तुम यह मत भूलो कि उसका धन्यवाद करने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है, तुम स्वार्थी नन्हे जंतु!” उसने अपनी बेटी को मजाक में कहा, “मैं भी वानिया को चूमूँगी और इतना अच्छा क्रिसमस तोहफा प्रदान करने के लिए उसका धन्यवाद करूँगी।"

उसने मिलोचका को एक तरफ ढकेलते हुए युवा लड़के को अपनी ओर खींचा और प्यार से उसकी आँखों में आँखें डालकर धीमी आवाज में कहा, "वानिया, तुमने हम सबको आज के दिन बड़ी खुशी प्रदान की है। मैं तुम्हें दिल से धन्यवाद दे रही हूँ, मेरे अत्यंत प्यारे बेटे ।"

उसने अपने जीवन में पहली बार उसको "अत्यंत प्यारा" कहा था और अपनी इतनी मीठी आवाज में इससे पहले कभी उसे नहीं बुलाया था। अन्ना की बड़ी-बड़ी काली आँखों में, मातृत्व के दुलार की दृष्टि के नीचे युवा अपने एकांत, प्यारशून्य बचपन को भूल गया – भूल गया कई सालों के अनुचित दुर्व्यवहार की कड़वाहट को । उसके हृदय ने, जो प्यार और सहानुभूति के लिए लालायित था, तुरंत प्रतिवादन किया और सौतेली माँ को क्षमा करते हुए प्रसन्नतापूर्वक विश्वास के साथ उससे आँखें मिलाईं, जो अब अकृत्रिम प्यार और दुलार से चमक रही थीं।

वे एक-दूसरे को देखते हुए काफी देर तक खड़े रहे और ऐसा लगता था कि वह औरत, जिसका जीवन पति की अकाल मृत्यु के कारण टूट चुका था, इस कर्मठ, पुष्ट युवा पुत्र की ओर सहायता के लिए देख रही हो ।

मिटिया और सोनिया आनंदपूर्वक क्रिसमस ट्री के इर्दगिर्द नाचने लगे और ढेर सी मिठाइयों को चमकती और आशान्वित नजरों से देखने लगे। मिलोचका कोमल आवाज में गाती हुई अपने तोहफे को मुसकराहट के साथ देख रही थी और बूढ़ी दाया ने दहलीज पर खड़े, अच्छे स्वभाववाली मुसकराहटों को देखते हुए धीमे से कहा, "परमात्मा को धन्यवाद, सृष्टिकर्ता की जय हो! हमें आनंदमय क्रिसमस मिला, जैसा होना चाहिए था ।"

" परंतु मुझे साफ-साफ बताओ, " अन्ना ने वानिया को अपने पास बैठाते हुए पूछा, “तुम्हारे दिमाग में बच्चों के लिए क्रिसमस ट्री बनाने का विचार आया कैसे और इसके लिए पैसे कहाँ से जुटाए ? "

"ओह, इसका मुझे बहुत दिनों से खयाल था, " वानिया ने लंबी आह भरकर कहा, "वास्तव में इसके बारे में मैं पूरे साल सोचता रहा था । यह देखते हुए कि तुम गुजारा कठिनाई से कर रही हो और यह लगातार हर महीने कठिनतर होता जा रहा है, मैंने अपनी पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ और करना चाहा । मेरे मित्र के पिता, जो सरकारी शिल्पकार हैं, ने मुझे कुछ नक्शे बनाने के लिए दिए। "

“ये वही नक्शे होंगे जिनको सोनिया चित्र कहती थी?" अन्ना ने सहजता से पूछा ।

"हाँ, वही, वानिया ने उत्तर दिया— " मैंने लगभग पिछले तीन महीनों में पूरी रातें इस काम पर लगाई हैं। मैं बच्चों के ट्री के लिए पर्याप्त धन इकट्ठा करना चाहता था, ताकि उनको किसी प्रकार की निराशा न हो। मेरा विचार था कि तुम आज के दिन बच्चों को खुश देखना चाहती थीं। बाद में मैं तुम्हें अपनी सारी अतिरिक्त कमाई दे सकता था, ताकि तुम्हें भी आसानी हो जाती। आज..., लड़के ने जल्दी से कहना जारी रखा; मानो डर रहा हो कि सबकुछ कहने के लिए उसको समय न मिले- "आज जब मैंने मिलोचका के आँसू देखे तो मुझसे रहा नहीं गया और शिल्पकार से पोशाकों के लिए कुछ रकम उधार ली, जिसको बाद में अपने काम से मैं उतार दूँगा।" वानिया ने प्रसन्नता एवं उत्साह से कहा और फिर चुप हो गया।

“परंतु, वानिया, यह काम तुम्हारी शक्ति से बाहर है !" अन्ना ने सिसकी भरी — " यह तुम्हारे लिए अत्यधिक है। मैं तुम्हें यह काम नहीं करने दूँगी।"

"यह तो कुछ भी नहीं है, माँ!" उसने जल्दी से टोका - " तुम्हें मेरी चिंता नहीं करनी चाहिए। मैं काफी तगड़ा हूँ और काफी काम कर सकता हूँ। मैं पापा की तरह हूँ । मैं केवल इतना चाहता हूँ कि मेरे स्नातक होने तक तुम किसी तरह गुजर करो। उसके बाद फिर हम उसी तरह आराम से रहेंगे, जैसे पापा के समय में रहते थे।" उसने प्रसन्नतापूर्वक कहा और अपने घने बालों को उछाला। " क्यों ऐसा नहीं है, मिलोचका ?" उसने उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की, वह कुरसी से उछला और सबसे छोटी बहन के पास गया।

एक क्षण के पश्चात् वह वानिया के कंधों पर जा बैठी और वह उसको लेकर ट्री के चारों तरफ भागने लगा, जैसे मिटिया को पकड़ना चाहता हो— मिटिया, जो उसके आगे-आगे घोड़े की तरह हिनहिनाता हुआ भाग रहा था।

"अपने बाप की प्रतिमूर्ति है ! " अन्ना निकोलवीना ने सौतेले बेटे के चेहरे को देखकर विचार किया—बेटे का चेहरा अत्यंत प्रसन्नता और आत्मविश्वास से चमक रहा था। मौज-मेले के ऊँचे स्वरों में, जिससे कमरा भरा हुआ था, उसे वानिया की विश्वस्त आवाज सुनाई दी- " मैं अधिक काम कर सकता हूँ, मैं पापा की तरह हूँ ।"

एक हर्षित भावना ने उसे जकड़ लिया । जीवन के प्रति उसके पुराने गुस्से और निराशा का एक भी अवशेष बाकी न रहा। उदासी और बच्चों के अनजाने भविष्य का डर इस तरह उड़ गया, जैसे सूर्योदय के समय धुंध उड़ जाती है। उसने अपने सामने वानिया के शक्तिशाली व्यक्तित्व को देखा, जिसने साहसपूर्वक अपने पिता का अनुसरण किया। उसने अपनी ओर पुष्ट हाथ को फैले हुए देखा और एक बार पुनः शब्दों को सुना - "मैं पुष्ट हूँ, मैं पापा की तरह हूँ।"

(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)

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