वह रुपया (असमिया बाल कहानी) : भवेन्द्रनाथ शइकीया/ভৱেন্দ্ৰনাথ শইকীয়া
Vah Rupaya (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Bhabendra Nath Saikia
मनु और तनु की माँ को उस दिन सुबह ही बहुत गुस्सा आ गया। आये भी क्यों नहीं। ऐसी स्थिति में किसी को भी गुस्सा आना स्वाभाविक है। फिर जब अपने बच्चों की बुरी आदत दिखाई पड़ेगी, तब तो कहना ही पड़ेगा । बिचारी को सुबह बिस्तर छोड़ने के बाद ही थोड़ी देर के लिए फुरसत मिलती है। घर को साफ करना, नल से पानी भरना, खाना पकाना आदि कितने ही काम करने पड़ते हैं। ऐसे काम के बीच-बीच में 'मनु, तनु को जगाना, अरे, उठो - उठो भई दिन कितना निकल आया है। तुम्हें शर्म नहीं आती क्या। रोज इस तरह तुम्हें चिल्लाकर जगाना पड़ता है। तुम लोग सुन नहीं रहे हो, राखाल और मंटू किस तरह चिल्ला-चिल्ला कर कविता याद कर रहे हैं। तुम लोग पड़े-पड़े सुनते रहते हो । छिः छिः तुम्हें बुरा नहीं लगता, अब तक सोते रहना'। इस तरह वह बक-बक कर इधर-उधर चलती रहती है ।
कितने काम हैं इनके । नहाना-धोना है। नहाने के कपड़े साफ करने हैं। उन्हें सुखाना है। मंदिर जाकर दीपक जलाना है, प्रार्थना करनी है। इसके बाद सबके लिए चाय-नाश्ते की व्यवस्था । बहुत काम हैं। इतने पर, ये दोनों लड़के माँ के कामों को बढ़ाते रहते हैं। आज की ही बात लो। नाश्ते के लिए घर में कुछ नहीं है। बच्चे तो छोड़ेंगे नहीं। इसी कारण माँ ने पीठा के लिए कुछ चावल ही भिगो रखा था। नहाने धोने के बाद पीठा बनायेगी । इतने कामों के बीच पीठा बनाना क्या आसान काम है ? इधर साढ़े नौ बजे मनु-तनु को स्कूल तथा उसके बाप को कार्यालय भेजना है। उनके लिए 'भोजन की तैयारी करनी होगी। माँ पीठा बनाने बैठी ही थी, कि मनु ने कहा, 'माँ मुँह धोने को पानी दो ।' फिर तनु ने कहा, 'माँ, मुझे भी मुँह धोने को पानी दो ।'
माँ तो गुस्से में थी ही । फ़िर इनकी चिल्लाहट सुनकर कहा 'खुद ले लो। इतने बड़े हुए हो, मुँह धोने का पानी भी मुझे लाकर देना पड़ता है।'
मनु ने कहा, 'हाँ, तुम ला दो।' थोड़ी देर बाद फिर तनु ने कहा, 'ला दो न पानी माँ।'
'मैं काम कर रही हूँ। अपने से ले नहीं सकती। खुद बाथरूम से पानी लाकर मुँह धो लो, नहीं तो बैठे रहो। तुम्हारे पिताजी आते ही होंगे। तुम्हें इस तरह बैठे हुए देखेंगे तो बस हो जायेगा।' कहती हुई माँ पीठा बनाने में लग गयीं।
माँ ने ठीक ही कहा था। उनके पिताजी रोज पौ फटते ही टहलने जाते थे। करीब 'छै मील तक पैदल चल कर घर लौटते थे। आज घर आते ही झपकी लेते बैठे दोनों लड़कों को देख कर पूछा, 'क्या हुआ तुम लोगों को । '
माँ ने रसोईघर से ही चिल्लाकर कहा, 'इन्हें मुँह धोने के लिए पानी मुझे ला देना है।'
सुनते ही पिता ने बड़ी-बड़ी आँखें निकालीं तो नहान घर तक दोनों भाइयों को दौड़ते ही बना ।
इससे तनु- मनु की माँ को झटका सा लगा। इससे पहले भी ऐसी बातों को लेकर उसे बुरा लगा था। मनु-तनु को वह इतना प्यार करती है कि इन्हें रसोई बनाकर खिलाकर स्कूल भेजना तो है ही, सोते वक्त मच्छरदानी लगा देना, उसे ठीक-ठाक कर उन्हें सुला देने का काम भी वही करती है । अपने बच्चों की भलाई के लिए वह क्या कुछ नहीं करती। लेकिन ये बच्चे उसकी किसी भी बात की परवाह नहीं करते। पर जब भी उनके बाप एक शब्द भी बोलते हैं तो वे चुप हो जाते हैं। इसी बात का उसे दुःख है।
चाय-नाश्ते के समय फिर दोनों ऊधम मचाने लगे। माँ ने उन्हें बराबर- बराबर पीठा खाने को दिया। लेकिन तनु के पीठे के बीच का भाग कुछ फूला हुआ था । बस, दूसरे को भी ठीक उसी तरह का पीठा चाहिए। यदि ऐसा पीठा नहीं है तो तनु का पीठा ही उसे देना पड़ेगा। इस बार भी उनके पिताजी की लाल आँखें ही काम आयीं। उन्होंने कुछ गंभीर शब्दों में कहा, 'खाना नहीं है तो चले जाओ, किताब पढ़ो जाकर, जाओ ।'
मनु सर नीचा कर चाय पीने लगा।
इनका उपद्रव माँ से सहन नहीं होता । रेडियो लगाने हेतु भीतर जाकर जब बिस्तर की हालत देखी तब और धीरज रखना संभव नहीं हुआ। वह आग बबूला हो गयी । बिस्तर की ओर देखकर चिल्लाई, 'यह किसका काम है । '
'आज ही नया बिस्तर चद्दर बिछाया था, इस पर कीचड़ लगे चार- पाँच पैरों के निशान।' इस पर माँ का नाराज होना स्वाभाविक है।
चाय के बाद और भोजन से पहले तनु मनु की माँ रोज बिस्तर ठीक- ठाक करती हैं, कल ही धोबी के यहाँ से कपड़े आये थे । आज ही ये कपड़े बिछाये गये थे। करीब साढ़े आठ बजे जब माँ भीतर पहुँची तो पलंग पर यह कांड देखा ।
'बिस्तर पर कौन चढ़ा था?' माँ ने गरज कर पूछा ।
मनु ने कहा, 'मैं नहीं चढ़ा।'
तनु ने कहा, 'मैं नहीं चढ़ा।'
'तब कौन आया ?' माँ ने धमकी दी।
इनके अलावा बिस्तर पर चढ़ने के लिए कौन आ सकता है। पैरों के आकार से भी इसे समझा जा सकता है कि मनु या तनु के पैरों के दो निशान हैं। इस घर में और है ही कौन? माँ-बाप तथा ये दोनों बच्चे ही तो हैं।
लेकिन इन दोनों में से किसके पैरों के निशान हैं ये?
मैं जिस दिन की बात कह रहा हूँ, उस दिन उनकी उम्र आठ साल दो महीने चार दिन की थी। दोनों जुड़वा भाई हैं। दोनों की ऊँचाई भी एक-सी है। मोटे-तगड़े और देखने में भी एक से हैं। कुल मिलाकर दोनों में भेद करना आसान नहीं है। अब कीचड़ सने पैरों का निशान किसका हो सकता है। माँ को कुछ समझ में नहीं आया ।
असमंजस में पड़ कर फिर माँ ने पूछा, 'बताओ मनु तुम चढ़े थे बिस्तर पर ?"
मनु ने कहा, 'मैं नहीं चढ़ा, माँ।'
'फिर तनु से पूछती है, 'तुम चढ़े थे ?'
उसने भी कहा, 'ना माँ, मैं नहीं चढ़ा हूँ ।'
गुस्से में माँ चिल्लाने लगी। बच्चों के पिता बगीचे में पौधों की देखभाल कर रहे थे। पत्नी का स्वर सुनकर वह आये और आँखें लाल करते हुए बोले 'तू चढ़ा था ?'
मनु, नहीं, कह कर रोने लगा। कुछ दूरी पर खड़े तनु से पूछा भी नहीं था कि वह भी जोर-जोर से रोने लगा। यही मुश्किल है कि किसी एक के रोने से दूसरा भी रोने लगता है।
मनु-तनु के पिताजी मिजाजी आदमी हैं। किसी बात पर लग जायें तो आसानी से उसे छोड़ते नहीं हैं। उन्होंने बच्चों को धमकी देकर कहा, 'ठीक है । आज तुम लोग स्कूल नहीं जाओगे। आज ही क्यों, कभी भी तुम लोगों को स्कूल जाना नहीं होगा। यदि तुम लोगों ने सच बोलना ही नहीं सीखा तो स्कूल जाकर क्या होगा? दूसरे लड़कों को भी झूठ बोलना ही तो सिखाओगे। नहीं, मैं ऐसा होने नहीं दूँगा। जब तक तुम लोग सच नहीं बोलोगे तब तक स्कूल नहीं जाओगे।'
मनु-तनु के पिता को सचमुच बड़ी तकलीफ पहुँची थी। इन दोनों या इन दोनों में से एक तो जरूर बिस्तर पर चढ़ा था। लेकिन ये अपना दोष स्वीकार नहीं करते। इसका मतलब यह हुआ कि दोनों या दोनों में एक ने झूठ कहा । ये छोटे बच्चे यदि अभी से झूठ बोलने लगें तो आगे क्या होगा - यह बड़े दुख की बात है।
समय पर वे आफिस चले गये, लेकिन बड़े दुख के साथ।
मनु-तनु सचमुच स्कूल नहीं गये। तनु ने दोपहर को अपनी माँ से कहा, 'मैं सचमुच बिस्तर पर नहीं चढ़ा था, माँ।'
कुछ ही दूरी पर मनु था, उसने भी माँ के पास पहुँचकर कहा, 'मैं भी सचमुच बिस्तर पर नहीं चढ़ा था माँ।' उस दिन रात को मनु और तनु जब एक साथ सो रहे थे तो तनु ने मनु से कहा, "मैं तो बिस्तर पर उठा ही नहीं था। तू सच क्यों नहीं बोलता। मैं तो जानता हूँ तू ही बिस्तर पर चढ़ा था । तेरे झूठ बोलने के कारण ही तो पिताजी ने आज खाना नहीं खाया। माँ ने भी एकदम थोड़ा-सा खाया है। कल हमें पिताजी जरूर पीटेंगे।'
मनु ने कहा-'मैं भी उठा नहीं था।'
'वाह क्या मैं नहीं जानता!' तनु ने कहा ।
'तूने क्या देखा था?' मनु ने पूछा।
'नहीं देखा तो क्या हुआ। जब मैं उठा ही नहीं, 'तो तू ही जरूर उठा होगा।' तनु ने कहा ।
बिस्तर पर असल में मनु ही उठा था। लेकिन तनु ने जब कहा कि वह बिस्तर पर नहीं उठा तो मनु भी उसी को दोहरायेगा । बिस्तर पर लेटे-लेटे मनु-तनु के माँ-बाप अपने बच्चों की इस बुरी आदत के बारे में ही सोच रहे थे। उन्होंने तय किया कि किसी तरह इनमें दोषी कौन है, स्वीकार करवाना ही होगा। यदि आज इस दोष को छोड़ दें तो आगे बड़े-बड़े झूठ बोलने लगेंगे। आखिर लड़कों के बाप को सूझा कि जो अपना दोष मान लेगा उसे एक रुपया इनाम दिया जाएगा। तब शायद मान जायें। रुपये के लोभ से सच बोलने पर उन्हें पकड़ा जा सकेगा।
दूसरे दिन इनके बाप ने कैलेंडर में एक रुपया लटकाकर रख दिया और दोनों लड़कों को पास बुलाकर कहा, 'जो सच बोलेगा, उसी को यह रुपया मिलेगा।'
उस दिन सुबह बिस्तर छोड़ने के बाद से तनु बड़ा गंभीर लग रहा था । पिछली रात को मनु को तो गहरी नींद आ गयी, पर तनु बहुत देर तक जगता रहा । वह सोच रहा था कि उनके माँ-बाप ने उसे खराब लड़का समझ लिया है। झूठ बोलने के कारण उनके पिता बगैर कुछ खाये आफिस चले गये। स्कूल के साथी यदि हमसे स्कूल न आने का कारण जान जायें तो उन्हें कितना लज्जित होना पड़ेगा। इन बातों को सोच-सोचकर उसे बहुत बुरा लगा। नींद से पहले ही उसने यह निश्चय कर लिया था कि मनु ने तो झूठ बोल ही दिया है सो वह अपने ऊपर ही यह दोष ले लेगा। वही कहेगा कि बिस्तर पर मैं ही चढ़ा था। तब माँ-बाप की मन बदल जाएगा। ये फिर स्कूल जा सकेंगे। हो सकता है माँ - बाप यह पूछें कि उस पर क्यों चढ़ा था। और पहले क्यों झूठ बोला था ? यह कहकर वे मुझे पीट भी सकते हैं। पीट लें, उससे मुझे डरना नहीं चाहिए ।
सुबह जब कैलेंडर में एक रुपया लटकाकर इस बारे में पिता कह रहे थे तब तनु ने इसकी ओर ध्यान नहीं दिया था। जैसा उसने रात को सोचा था, उसी तरह धीरे से बोला, 'बिस्तर पर मैं चढ़ा था, पिताजी !'
पास खड़े मनु ने चिल्लाकर साथ-साथ कहा था, 'नहीं, कीचड़ लगे पैरों से मैं ही बिस्तर पर चढ़ा था । मैं चढ़ा था, पिताजी !'
तब तनु ने कहा, 'हाँ, यह तो ठीक है कि तू ही बिस्तर पर चढ़ा था, पर मेरे कहने के बाद तू सच बोल रहा है, पिताजी रुपया तो मिलना ही चाहिए।
तनु की बात सच है । पिता जब रुपयं के बारे में कह रहे थे, तब मनु अपनी पढ़ाई की मेज पर यों ही बैठा था । उसके मुँह में जबान नहीं थी। तनु के मान लेने के बाद ही उसने अपने को दोषी मान लिया।
मनु-तनु की बातों पर पिताजी को हँसी आ गयी।
उस रुपये को लेकर भी वे मुश्किल में पड़ गये। अब इस रुपये का क्या होगा ? इन दोनों में से यह रुपया किसको दें। तनु ने बिस्तर पर चढ़े बिना ही मान लिया कि बिस्तर पर वही चढ़ा था। उसके मान लेने के कारण मनु ने कहा कि वही बिस्तर पर चढ़ा था । सचमुच वही बिस्तर पर चढ़ा था ।
मनु-तनु के बाप आज भी तय नहीं कर पाये हैं कि रुपया किसको दिया जाये, वह रुपया आज भी उस कैलेंडर पर टंगा हुआ है।
(अनुवाद : चित्र महंत)