वह राल की पोटली क्यों : नेपाली लोक-कथा
Vah Raal Ki Potli Kyon : Nepali Lok-Katha
बहुत समय पहले की बात है । नेपाल के उत्तरी बर्फीले प्रदेश में एक गांव था । उसमें एक गड़रिया रहता था । वह अपने मां- बाप का इकलौता बेटा था । उसकी कुटिया गांव के छोर पर स्थित थी जहां से जंगल शुरू होता था । कुटिया के पास ही एक बड़ा था । उसी में गड़रिया अपनी भेड़ों, अपनी बकरियों और अपनी गायों को रखता था ।
जब वह बचपन में था तब ही उसके मां-बाप का देहान्त हो गया था । इसीलिए बहुत छोटी उम्र से ही उसने जानवरों के झुण्ड को पालना -पोसना सीख लिया था। घर में अकेला होने के कारण वह अपना भोजन स्वयं बनाता था । उसे ही दुकानदारी करनी होती थी । उसे बाड़ा भी साफ करना होता था । इसके पश्चात् वह दिन-भर के लिए सब्जी और रोटी तैयार करता था। नाश्ते में वह दूध पीता था। फिर सब्जी-रोटी की पोटली कंधे पर टांग- कर पशुओं को आस-पास के चरागाहों में चराने चला जाता था । वह दिन-भर पशुओं की देख-भाल करता था । उन्हें जंगली जानवरों से बचाता था । उनके नन्हे बच्चों को दुर्गम स्थलों में जाने से रोकता था और शाम को समस्त पशुओं को साथ लेकर घर लौटता था। हर शाम को वह अपने पशुओं को बाड़े में बंद कर देता था । इसके उपरान्त वह रात का भोजन खाकर सो जाता था । यही उसके दिन-भर की चर्या बन गयी थी ।
एक शाम को जब वह पशुओं को घर ला रहा था, तब बोच रास्ते में पीछे की ओर उसने एक डरावनी आवाज सुनी। उसने पीछे की ओर मुड़कर देखा, परन्तु पीछे झाड़ियों के अलावा और कुछ दिखाई ही नहीं दिया । उसने प्रथम बार ऐसी आवाज सुनी थी इसीलिए उस दिन वह भयभीत नहीं हुआ ।
परन्तु ऐसी ही डरावनी आवाज उसने दूसरी और तीसरी शाम को भी सुनी। अब उसे पूरा विश्वास हो गया कि कोई न कोई उसको सीटी बजाकर पीछे से डराना चाहता है। इसलिए अब वह कुछ भयभीत-सा होने लगा । परन्तु वह काफी हट्टा- कट्टा था । बल के साथ-साथ उसमें साहस भी था । शायद इसी - लिए उसने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया ।
इसी तरह चौथी शाम को जब वह जानवरों को लेकर लौट रहा था, तब उसने पीछे की झाड़ियों के नजदीक से किसी की सीटी की आवाज सुनी। सीटी सुनते ही वह एकदम वहीं खड़ा हो गया । फिर वह पीछे की ओर घूमा और अपनी पूरी शक्ति से चिल्लाकर कहा - "कौन दैत्य या दानव पीछे से मुझे डरा रहा है । अगर किसी में हिम्मत हो तो वह मेरे सामने आ जाय ।"
इसके बाद वह वहीं सहम कर कुछ देर तक खड़ा रहा। उसकी आवाज आसपास के बर्फीले पहाड़ों से टकराकर बार- बार प्रतिध्वनियां करती रही। परन्तु जब कोई उसके सामने नहीं आया तब वह घर की ओर मुड़ा और तेजी से चलने लगा ।
अभी वह कुछ ही पग बढ़ा था कि उसे वही आवाज फिर से सुनाई दी। इस बार उसके शरीर के सारे रोंगटे खड़े हो गये । वह भयभीत - सा हो गया। परन्तु भय के साथ-साथ वह गुस्से से व्याकुल हो गया था । इस बार वह पीछे की ओर मुड़ा और उन झाड़ियों की ओर तेज कदम से चल दिया, जिनके पीछे से ऐसी डरावनी आवाज सुनाई दी थी । उसने एक-दो झाड़ियों को पार किया ही था कि एकाएक उसके सामने एक हिम मानव दिखाई दिया ।
उस हिम मानव का शरीर दैत्यों के शरीर के समान था । शरीर की लम्बाई लगभग सात फुट की थी । उसकी भुजाएं चौड़ी थीं और जांघें लम्बी-लम्बी । उसका मुंह वनमानुष का जैसा था । उसकी छाती विशाल और मजबूत थी । उसके दांत लम्बे- लम्बे और नुकीले थे । उसके सारे शरीर में लम्बे-लम्बे बाल उगे थे । उसे देखकर ऐसा लगता था कि अभी-अभी उसका आगमन यमलोक से हुआ है।
गड़रिया उसे सामने देखकर सहम सा गया। फिर उसने उससे पूछा, “तुम कौन हो ? कहां से आये हो और मुझसे क्या चाहते हो ?" परन्तु हिम मानव ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया । वह देता भी कैसे । क्या वह गड़रिये की बोली समझता था ?
कुछ देर तक खड़े रहने के बाद गड़रिया उसे वहीं छोड़कर अपने घर की ओर चल दिया । परन्तु उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने देखा कि हिम मानव भी उसके पीछे-पीछे आ रहा है ।
घर आकर गड़रिये ने पशुओं को बाड़े में बन्द कर दिया । इसके बाद वह कुटिया में गया, हाथ-मुंह धोया और भोजन खाने बैठ गया । परन्तु गड़रिया जो-जो काम करता था, उसको देख- देखकर हिम मानव भी वही वही काम करता जाता था। बैठना, उठना, हाथ-मुंह धोना - वह गड़रिया की हूबहू नकल करता जाता था।
गड़रिये ने जैसे ही एक रोटी का टुकड़ा मुंह में डाला, वैसे ही हिम मानव ने भी एक रोटी का टुकड़ा मुंह में डाला और उसे चबा-चबाकर निगल गया । परन्तु जैसे ही उसे सब्जी और रोटी का स्वाद लगा, वैसे ही उसने गड़रिये की सारी सब्जी- रोटी छीनकर खा डाली ।
उस रात गड़रिया भूखा सो गया । दिन-भर का थका-मांदा होने के कारण उसने हिम मानव से कुछ नहीं कहा । हिम मानव भी वहीं सो गया । परन्तु दूसरे दिन सवेरे के समय जब गड़रिये की नींद खुली तब उसने अपने को घर में अकेला ही पाया । हिम मानव गायब था ।
हर रोज की तरह उसने सवेरे खाना बनाया और जानवरों को चराने चला गया । उस शाम को लौटते समय, वही हिम मानव उसके पीछे-पीछे घर आया और पहली रात के समान ही उसने उसका सारा भोजन चट कर लिया । दूसरी रात को भी गड़रिये को भूखा सोना पड़ा। तीसरी रात को भी यही हाल रहा । अब गड़रिया चिंतित सा हो गया । उसने सोचा, आखिर कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा और कब तक उसे भूखे पेट सोना पड़ेगा । इसीलिए चौथी रात को हिम मानव ने भोजन लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया, गड़रिये ने जोर का धक्का देकर उसके हाथ को अलग कर दिया । फिर क्या था, दोनों में हाथापाई होने लगी । इस प्रकार इस छीना-झपटी में सब्जी और रोटी तो इधर-उधर बिखर गई, परन्तु उनकी लड़ाई जारी रही ।
दोनों के शारीरिक बल समतुल्य थे, इसीलिए बहुत देर तक लड़ने पर भी उनमें से किसी की भी जीत नहीं हुई । लड़ते-लड़ते जब दोनों थककर चूर-चूर हो गये तब वे अलग-थलग लुढ़क कर सो गये ।
परन्तु अगले दिन सवेरे हिम मानव अन्य दिनों के समान लापता था। बात यह थी कि हर रात को तीसरे पहर हिम मानव उठ कर जंगल में चला जाता था। उसी प्रकार जब दूसरी ओर तीसरी शाम को भी वही घटना घटी तब गड़रिये ने उसे मारने का उपाय सोचना शुरू किया। बहुत सोचने पर उसे एक उपाय सूझ ही गया ।
जिस दिन से वह हिम मानव के सम्पर्क में आया था उस दिन से उसने यह अनुभव किया था कि हिम मानव उसका अनुकरण जी-जान से करता आ रहा था । अतः गड़रिये ने इस खोज से भरपूर फायदा उठाना उचित समझा। इसलिए चौथी शाम को उसने एक शानदार कलाकार के समान अभिनय करने का निश्चय किया ।
उस शाम को उसने बड़ी शान के साथ कुटिया में प्रवेश किया। फिर नाटकीय ढंग से बैठने का बन्दोबस्त किया। हिम मानव उसको वैसा करते देख के हूबहू वैसा ही करता गया । इसके बाद गड़रिये ने भोजन निकाला। परन्तु जब खाने का समय आया तब हिम मानव ने सारे का सारा भोजन खा लिया । आज गड़रिये ने इसका विरोध नहीं किया ।
और जब आग ठीक प्रकार से प्रज्वलित हो गई तब गड़रिया उठा और एक कोने में से एक टीन उठा लाया । उसमें रा भरा हुआ था । उसने टीन का ढक्कन खोला । अपनी हथेली कोराल में डुबाने का अभिनय किया। परन्तु उसने नाममात्र का राल लिया और झूठ-मूठ अपने सारे बदन पर मलना शुरू किया ।
उसे वैसा करते देखकर हिम मानव उसी कोने से एक दूसरा टीन उठा लाया। उसने भी उसका ढक्कन खोला । परन्तु थोड़ा राल लेने की बजाय उसने अपना आधा हाथ राल में डुबोकर खूब सारा राल निकाला और अपने सारे बदन पर मलने लगा । गड़रिया उसे दिखा-दिखाकर बार-बार वैसा करता जाता था और वह भी बार-बार उसका अनुकरण करता जाता था ।
इसके बाद गड़रिये ने आग से कुछ दूर पर खड़ा होकर अपने दोनों हाथों को आग की ओर फैला दिया, मानो आग तापने की कोशिश कर रहा हो । यथार्थ में उसने आग के सामने ऐसा अच्छा अभिनय किया कि हिम मानव तुरन्त आगे बढ़ कर आग के एकदम पास पहुंच गया । उसने आगे झुककर अपने दोनों हाथों को आग की लपटों पर पसार दिया ।
फिर क्या था। आग उसके बदन पर लहक उठी । उसके सारे शरीर पर लम्बे-लम्बे बाल तो थे ही, जिन पर राल लगा हुआ था। इस प्रकार देखते-देखते वह जलकर मर गया। तब जाकर गड़रिये ने चैन की सांस ली ।
उसी समय से हर नेपाली के घर की दहलीज पर एक पोटली टंगी होती है । उस पोटली में और कुछ नहीं, राल का एक टुकड़ा होता है । यह पोटली आज भी उनके घरों की दहलीज के पीछे देखी जाती है और उसके बारे में किसी से जब भी कुछ पूछा जाता है तो यही उत्तर मिलता है, "येति को भगाने के लिए ये पोटली रखी जाती है ।"
यह येति और कोई नहीं, उस दैत्याकार हिम मानव का नाम है, जिसके डर से हर नेपाली अपने-अपने घरों को सुरक्षित रखना चाहते हैं और राल की वह पोटली युग-युगों से उनको अभयदान देती आ रही है ।
(साभार : एशिया की श्रेष्ठ लोककथाएं : प्रह्लाद रामशरण)