वचन के पक्के तेजाजी : लोक-कथा (मध्य प्रदेश)
Vachan Ke Pakke Tejaji : Lok-Katha (Madhya Pradesh)
किसी गाँव का एक मुखिया था। उसके बेटे का नाम तेजाजी था। तेजाजी रोज अपने साथियों के साथ नहाने के लिए नदी किनारे जाता था। नहाने के बाद तेजाजी पूजा-अर्चना भी करता था। तेजाजी के साथियों की संख्या बहुत ज्यादा थी, इसलिए पूरा घाट उन्हीं से भर जाता था। उस घाट पर पानी भरने के लिए गाँव की औरतें भी आती रहती थीं।
एक दिन तेजाजी की भाभी पानी भरने के लिए उसी समय आ गई जब वह और उसके साथी नहा रहे थे। भाभी ने अपने देवर तेजाजी से कहा, “तुम लोग जल्दी नहा-धोकर यहाँ से चले जाओ।"
तेजाजी ने जवाब दिया, “नहाने के बाद पूजा-पाठ करते हैं। जब तक हमारी पूजा समाप्त नहीं होगी तब तक हम यहाँ से नहीं जाएँगे।"
भाभी ने यह सुनकर बड़े व्यंग्य से कहा, "तुम्हारी यह पूजा-ऊजा बेकार है, क्योंकि तुम्हारी ब्याहता तो अपनी माँ के घर में तुम्हारे वियोग में तड़प रही है।"
तेजाजी के लिए यह एक बिल्कुल नई खबर थी। उसका ब्याह तो बचपन में ही हो गया था। अब वह अच्छा-खासा नौजवान बन गया, मगर अभी तक किसी ने उसकी ब्याहता के बारे में कोई चर्चा नहीं की थी। भाभी की बात सुनकर तेजाजी गंभीर हो उठा। उसने निश्चय किया कि वह ससुराल जाएगा और अपनी ब्याहता को घर ले आएगा।
अगले दिन तेजाजी तैयार होकर ससुराल जाने लगा तो उसकी माँ और भाभी रोकने लगी। माँ ने कहा, “तुम अभी मत जाओ। कुछ समय और गुजर जाने दो। वहाँ जाने का रास्ता लंबा है और कहीं-कहीं तो खतरे भी हैं।" भाभी भी बोली, “मैं तो मजाक में तुम्हारी ब्याहता का ताना मार बैठी थी। अपनी माँ की और मेरी बात काटकर मत जाओ।"
तेजाजी ने उनकी बात नहीं मानी। वह अपने साथियों के साथ अपनी ससुराल की तरफ चल पड़ा। वह गाँव की सीमा से बाहर भी नहीं गया था कि एक बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया। तेजाजी ने उस अपशकुन की भी परवाह नहीं की।
तेजाजी अपने साथियों के साथ जब अपनी ससुराल पहुँचा तो उसकी सास खुश नहीं हुई। उसका दामाद बिना खबर किए आ गया था और वह भी इतने साथियों को साथ लेकर। सास बहुत बूढ़ी और गरीब थी। इन लोगों की खातिरदारी वह कैसे करती! रुष्ट होकर उसने अपनी बेटी से कहा, "सुबह का जो बचा-खुचा खाना है वह उनके सामने रख दो। आपस में मिल-बाँटकर खा लेगे।" तेजाजी ने उसकी बात सुन ली। गुस्से में आकर वह बोला, “हम इस घर का पानी तक नहीं पिएँगे। हम यहाँ रात भर ठहरेंगे भी नहीं।"
तेजाजी की पत्नी ने अपनी एक सहेली को उसके पास भेजकर कहलाया कि तेजाजी वापस नहीं जाएँ और उसकी सहेली के घर में ठहर जाएँ। उसकी सहेली हीरा गुजरी थी। तेजाजी से अपने घर चलने का उसने बहुत आग्रह किया। उसने यह भी कहा कि उसकी पत्नी ऐसा ही चाहती है।
यह सुनकर तेजाजी ने उसका आग्रह मान लिया। वह अपने साथियों के साथ उसी के घर में रात बिताने को राजी हो गए।
रात में पूरा गाँव सो रहा था। तेजाजी और उसके साथी भी सो रहे थे। तभी अचानक डाकू आ धमके। डाकुओं का दल जब लूटपाट करने लगा तब शोरगुल सुनकर तेजाजी और उनके साथी भी जग गए। उन्होंने बड़ी बहादुरी के साथ डाकुओं को खदेड़ दिया। डाकू जब भागने लगे तेजाजी ने उनका पीछा किया। डाकू भागते-भागते गजरी की गाय भी ले गए थे।
तेजाजी डाकुओं का पीछा करते-करते एक जंगल के करीब जा पहुँचे। जंगल में उस समय आग लगी हुई थी। आग रास्ते तक आ पहुँची थी। तेजाजी ने आग की लपटों से घिरे एक नाग को देखा। उस नाग ने तेजाजी से विनती की, “मुझे बचा लो, मेरी सहायता करो!" उसकी पुकार सुनकर तेजाजी आगे बढ़े और किसी तरह साँप को आग में जलने से बचा लिया। नाग को बचाकर जब उसने एक सुरक्षित जगह पर रख दिया तब नाग ने फन उठाकर फुफकारते हुए कहा, “मैं तुमको डंसना चाहता हूँ। तुम अपनी जीभ बाहर निकालो।"
तेजाजी ने कहा, “मैं अभी तो डाकुओं का पीछा कर रहा हूँ, इसलिए मुझे जाने दो। डाकूओं से गाय छीनकर मैं यहीं लौट जाऊँगा तब तुम मुझे काट लेना। मैं यह वचन देता हूँ।"
डाकूओं को भगाकर उनसे छीनी हुई गाय के साथ तेजाजी फिर उसी जगह आए जहाँ पर नाग उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। तेजाजी अपना दिया हुआ वचन भूले नहीं थे। अपनी जीभ आगे करते हुए उन्होंने नाग से कहा, "लो, अब तुम मुझे डस ले।" नाग पहले तो मुँह खोलकर डंसने को हुआ, मगर उसे तभी चेत हुआ कि यह तो अपने वचन का बड़ा पक्का निकला। ऐसे सच्चे और ईमानदार आदमी को डंसना ठीक नहीं। उसने अपना डंसने का इरादा छोड़ दिया और खुश होकर तेजाजी से कहा, “मैं तुम्हें एक वरदान देता हूँ। आज से जब भी किसी व्यक्ति को साँप डस ले तो तुम्हारे नाम से एक कपड़ा फाड़कर उसे गले में बाँध देने पर उसकी जान बच जाएगी।"
(तभी से लोगों का यह विश्वास है कि तेजाजी के नाम से गले में कपड़ा बाँध देने पर साँप के काटे आदमी की जान बच जाती है।)
अगले दिन पत्नी को साथ लेकर तेजाजी अपने गाँव चले गए। घर में सबने उनका स्वागत किया।