उसका नाम यापी था (कहानी) : जोराम यालाम नाबाम

Uska Naam Yapi Tha (Hindi Story) : Joram Yalam Nabam

किसान बहुत खुश थे कि अब जाकर वर्षा रानी पधारी हैं धरती पर। सभी में अपनेअपने खेतों को पहले खत्म कर लेने की जैसे होड़-सी लग गई। गाँव में हलचल शुरू हो चुकी थी। एक शाम तोको यातर यामा के घर आई। कहने लगी, “यामा, कल मेरे खेत में धान रोपने जाना है। किसी भी हाल में यापी को भेज देना। उसके हाथ तो बस जैसे ओखली में दो औरतें जल्दी-जल्दी धान कूट रही हों। कमाल की लड़की पैदा की है तूने।"

“माफ करना यातर, तुमसे पहले रिनी आकर यापी को अपने खेत में आने को कह गई है। छोटीवाली तुम्हारे खेत में कल आ जाएगी।” यामा ने कहा।

“अरे क्या करती हो? ऐसे नहीं चलेगा। यापी को ही भेज देना। छोटी को रिनी के यहाँ भेज दो।" यातर ने लगभग गिड़गिड़ाने के अन्दाज में कहा।

“नहीं, तुम तो जानती हो, रिनी कितनी झगड़ालू है। मैं खतरा नहीं मोल सकती।" यामा ने अपने दोनों हाथों को 'न' के अन्दाज में हिलाते हुए कहा।

खेतों में फावड़ा चलाना हो या धान रोपना, किसी के यहाँ पूजा में औरतों का हाथ बँटाना हो या घर का कोई काम-यापी सब में हिरनी-सी फुर्ती रखती थी। खाली समय में अपने भाई बहनों के लिए स्वेटर बुनना उसे बहुत पसन्द था। हँसती तो पूरे गाँव को पता चल जाता कि यह यापी ही है। बच्चों के साथ खुद भी बच्ची बन जाती। गाँव के सारे बच्चों की वह प्यारी थी। जो बच्चे उसके पास नहीं आते, उनसे वह आँखें तरेर कर मुँह को अजीब-सा बनाती हुई कहती, “जब मेरा बच्चा होगा, तो तुम्हारे साथ नहीं खेलने दूँगी।” जब बच्चे रोते, तो वह इतनी जोर से हँस देती कि बाकी लोग भी बरबस मुस्कुरा पड़ते। दारू पीने में भी उसका कोई सानी नहीं था। उसकी अच्छी बात यह थी कि पीने के बाद बिल्कुल लड़खड़ाती नहीं थी और न ही किसी से बात करती थी। बस हँसती रहती। गाँव में लोगों का पीना मजबूरी ही कहा जा सकता है। धूप हो या बरसात। दिन-रात बस शारीरिक श्रम में उनका जीवन गुजर जाता है। पसीने में ही सारी दारू बह जाती है। फिर भी कुछ पल मस्ती तो छा ही जाती है और शरीर का दर्द कुछ कम-सा लगता। गाँव के लोग दारू स्वयं तैयार करते हैं। उसके लिए फसल भी अपने ही खेतों में उगाते हैं। घर-घर में दारू बनती है, लोग मेहमानों का स्वागत भी दारू से ही करते हैं। हाँ, कभी-कभी मजेदार और अनहोनी घटनाएँ भी हो जाती हैं। परन्तु कभी-कभी ही। उन घटनाओं में ज्यादातर औरतें मर्दो की पिटाई करती हैं और ऐसे में मर्दो का रोना बड़ा ही बेसुरा हुआ करता है।

रिनी के खेत में उस दिन तारो भी आया। कभी बरसात जोर से आने लगती तो कभी लगता, जैसे थम ही जाएगी। बीच-बीच में हँसी-मजाक भी चलता रहता। गाँववाले खूब गन्दे-गन्दे मजाक भी करते हैं और उनका दिल खोलकर आनन्द लेते हैं। यापी को ऐसी बातें बहुत ही परेशान करती हैं। ऐसी बातों पर वह हँसना भी पसन्द नहीं करती। उस दिन भी रोज की तरह लोग चटखारे ले-लेकर हँस रहे थे। तारो को जाने क्या हुआ वह यापी को ही घूरता रहा दिन-भर। सब लोग उनको चिढ़ा रहे थे। यापी स्वयं को बहुत ही बेबस पा रही थी। आँखें दिखाती, तो मुसीबत, न दिखाती, तो बर्दाश्त नहीं होता। उसका बस चलता तो सभी सामान लौटा देती। उसके माँ-बाप गरीब किसान थे। कैसे सब कुछ लौटा सकते थे। वैसे भी उन्होंने अपनी बेटी का रिश्ता कराया था। आसानी से तोड़ा भी नहीं जा सकता। सारा गाँव उसी पर थू-थू करेगा। तारो जैसे आदमी को बर्दाश्त तो करना ही था उसे। जब वह माँ के गर्भ में थी, तभी बात पक्की हो गई थी कि लड़की हई तो तारो के साथ शादी होगी। तारो उससे तीन साल बड़ा था। जन्म होते ही तारो के माँ-बाप ने अपनी शर्त के अनुसार यापी के माँ-बाप के पास पाँच मिथुन, कुछ सूखा मीट, चार टोकरी आपोङ1 तथा दो दाव पहुँचा दिए। वह माँ-बाप के लिए भाग्य लेकर आई थी। वह तारो की अमानत थी। उसे इसी साल तारो के घर आना होगा। महीना अभी तय नहीं हुआ था, परन्तु यह जरूर था कि धान कटने के बाद ही यापी को विदा कर देना होगा। तारो के घर वालों का मानना था कि लड़की जवान हो गई है और कितना इन्तजार करें। यहाँ भी तो कितने खेत हैं करने को। जल्दी आएगी तो सास-ससुर का बोझ हल्का होगा। आखिर पुरखों की जमीन है। उसकी देखभाल करके ही उनकी आत्मा को भी खुश रख सकते हैं। मरने के बाद तो उनसे मिलना ही है। तब वे उनकी अच्छी तरह से खबर लेंगे। इसलिए जीते जी कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए, वरना उनको क्या जवाब देंगे।

धीरे-धीरे सूरज डूबने लगा। आस-पास के खेतों के लोग घर जाने की तैयारी करने लगे। पंछी भी हलचल मचाते हुए अपने आशियाने की ओर उड़ने लगे कि अचानक बरसात फिर जोरों से होने लगी। सबने अपने-अपने ओबियो2 को सर पर रख लिया। रिनी ने बचे हुए आपोङ को फिर से सबको बाँट दिया। नशा जैसे सब पर छाने लगा। अब सारे-के-सारे घर की तरफ भागने लगे। बिजली ऐसी कड़क रही थी, जैसे अब धरती को फाड़ ही डालेगी। आसमान में काले बादल ऐसे छा गए, जैसे काला-काला घना धुआँ हो। वातावरण कुछकुछ भयानक-सा लगने लगा। यापी भी जल्दी-जल्दी भाग रही थी। किसी को भी किसी की सुध नहीं थी कि अचानक तारो ने यापी का हाथ मजबूती से पकड़ लिया और उसे खींचते हुए अपने घर की ओर बढ़ने लगा। यापी ने बेबस होकर कहा, अब वह दिन दूर नहीं मैं तुम्हारी घरवाली हूँ। आज मुझे जाने दो। वह रोने लगी। कैसी मजबूरी थी कि वह अपना हाथ तक नहीं छुड़ा सकती थी। बार-बार मजबूर माँ-बाप के चेहरे उसकी आँखों के आगे आ जाते थे। उसे कभी गुस्सा भी आता था। अपनी जमीन बेचकर भी क्या वे अपना उधार नहीं चुकता कर सकते थे। उन्होंने तारो के माँ-बाप से उधार लिया था। नहीं चुका सकने की स्थिति में कुछ और सामान लेकर बेटी का रिश्ता ही तय कर दिया था। वह जोर-जोर से रोती जा रही थी। खुद को बहुत ही अकेली और बहुत ही बेबस पा रही थी वह। वह अब तारो के घर पहुँच गई थी। अभी तक तारो के माँ-बाप खेत से वापस नहीं लौटे थे। अँधेरा छा चुका था। मौसम जैसे अपना कहर बरपा रहा था। वह रोती रही, पर तारो नहीं माना। वह चिल्लाती रही, पर कोई सुननेवाला भी नहीं था। न्यीशी लोगों के घर इतनी दुर-दूर होते हैं कि आसानी से किसी को भी किसी की आवाज सुनाई नहीं देती। वह लुट चुकी थी। उसके कपड़े तारतार हो गए थे। वह उसका होनेवाला पति था। उसका चिल्लाना कोई सुन भी लेता तो कुछ भी नहीं कर सकता था। गाँव के एक-दो लोगों ने उसे खींच ले जाते देखा भी था। परन्तु ये उनका आपस का मामला था। कोई क्या कर सकता था। उसने शरीर को अपने हाथों से इस तरह ढकने की कोशिश की जैसे सचमुच अपने उन दो हाथों से पूरी देह छुपा ही लेगी।

पहाड़ की ढलान को उस रात कैसे इतनी जल्दी चढ़ गई थी विश्वास नहीं होता था। माँ पूछती रह गई कि क्या हुआ। आँसुओं का सैलाब जैसे थमने का नाम नहीं ले रहा था। उदासी के बादल घने होने लगे। उसके मुँह पर जैसे ताले लग गए। एक सप्ताह तक बाहर नहीं निकली थी वह। घर की खिलखिलाहट जैसे रूठ गई थी। सभी हैरान-परेशान से थे। बच्चे भी यापी को हँसा नहीं सके। फिर भी जिन्दगी अपने ढर्रे पर चल रही थी। सबको अपने-अपने खेतों की पड़ी थी। सबको खुशियाँ बाँटने वाली यापी अकेली थी अपने उस दुःख में । दु:खी होना चाहिए भी या नहीं, यापी नहीं जानती थी। पर वह उदास और परेशान थी अपने उस दुःख में। सोच रही थी, क्या तारो हमेशा ऐसे ही जानवरों-सा व्यवहार करेगा उसके साथ। डर ने चुपके से उसके मन-मस्तिष्क पर कब्जा करना शुरू कर दिया। उसने सुना था, तारो लड़कियों के ही पीछे भागता रहता है। उसे लगा जैसे वह अँधेरी रात में किसी घने जंगल में फँस गई है, जहाँ असंख्य कीड़े-मकोड़े रेंग रहे हैं। तरह-तरह के जोंक उसके शरीर का खून चूस रहे हैं। अगर वो चिल्लाती है, तो शेर या हाथी आ जाते हैं। चुप रहकर भी उस भयानकता से लड़ नहीं पा रही है। कोई भी अपना उसके आस-पास नहीं। बाहर निकलने का संघर्ष स्वयं करते-करते थक गई है। हारकर अन्त में वह अपने को हालात के हवाले कर देना चाहती है। दर्द को वह जैसे सुला देना चाहती है। उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं। सो रही है या जाग रही है, कोई नहीं कह सकता।

अब वह अपने से ही रूठी-रूठी-सी रहती है। एक दिन सभी गाँववाले हैरान रह गए। तारो एक लड़की लेकर आ गया था। वह सुन्दर थी। छुई-मुई-सी। सबका दिल जीतना चाहती थी। कोई घर में आता तो तुरन्त आपोङ बना देती। दिन-भर काम करती थी। उस दिन गाँव के सभी लोग तारो के घर जमा हो गए थे। लड़की को अगर घर में नहीं लाता, तो छुड़ाया जा सकता था। अब घर तक आ गई, तो रखना पड़ेगा। गाँव में तीन-चार मर्दों को छोड़कर सभी तो दो-दो, तीन-तीन बीवियाँ रखते हैं। वैसे भी एक से अधिक विवाह करना तो सम्पन्नता का ही प्रतीक है। तारो ने तो मर्दोवाला ही काम किया है। इस तरह के तर्कों का जवाब यापी के माँ-बाप तो क्या कोई भी गाँववाला नहीं दे सका। तारो ने अपना एक ही कारण बताया कि यापी मोटी और बदसूरत है। खूबसूरत औरत का सपना तो सभी मर्द देखते हैं। वैसे तो यापी ही मेरी पहली बीवी है। इस बात को कहते समय तारो ने यापी की आँखों में एक गहरी दृष्टि डाली थी। यापी का मन किया कि उसको दाव उठाकर काट दे। पर वह बिल्कुल खामोश थी। उसकी साँसें जोर-जोर से चल रही थीं। उसने तारो की पत्नी की तरफ हल्के से देखा। सचमुच वह बहुत सुन्दर थी। उसे पहली बार किसी का सुन्दर होना अच्छा नहीं लगा। सब लोग आपोङ पी रहे थे। अब हँसी-मजाक भी होने लगी थी। यापी की माँ सोच रही थी कि वे भी सम्पन्न घरानेवाले होते तो शायद लोग गम्भीरता से उनकी बातों को लेते। बेटा भी बड़ा होता तो शायद उसकी दीदी को इतनी तकलीफ सहनी नहीं पड़ती। वह रक्षक बनता। बेचारा असहाय बाप अकेला क्या करता!

एक दिन यापी डरती-डरती गाँव के स्कूल पहुँची। अध्यापक परेशान थे कि इतनी बड़ी लड़की को किस कक्षा में बिठाएँ। वैसे भी अब प्रवेश लेने का समय समाप्त हो चुका था। तीन महीनों से कक्षा चल रही थी। वह रोने लगी। जिद करने लगी कि उसे किसी भी हाल में पढ़ना है। अध्यापिकाओं को दया आ गई। अब वह हॉस्टल में रहने लगी। आश्चर्य की बात हुई कि न तारो ने कुछ कहा और न ही उसके माँ-बाप ने। वह सोचती रह गई कि उसकी बदसूरती ने उसे बचाया या तारो की पत्नी की खूबसूरती ने? वह खूब मन लगाकर पढ़ने की कोशिश करने लगी। वह जब कक्षा में बैठती तो लगता था जैसे किसी बच्चे की माँ हो, जो अपने बच्चे की जिद और रोने के कारण साथ ही बैठ गई है। कभी-कभी उसका मन करता कि वह वहाँ से कहीं दूर भाग जाए। कभी सोचती, किसी के साथ शादी हो जाए, तो ही ठीक है। वह पहली कक्षा में थी। जामजा, जिसके साथ वह बचपन में खेलती थी। कुछ बड़ा था उससे। वह भी तीसरी कक्षा में था। उनमें फिर से दोस्ती होने लगी। दोनों ही अपनी-अपनी कक्षा में अजीब थे। वे बिना कहे एक-दूसरे के दर्द को समझने लगे। जामजा अपने हॉस्टल में लड़कों का मॉनिटर था। यापी उससे आश्चर्यचकित होकर पूछती कि वह अपने से बड़ी कक्षाओं के बच्चों को कैसे सँभाल पता है। जामजा कुछ संकोच के साथ कहता, ‘हॉस्टल में वह सबसे बड़ा है। उसे अपनी जिन्दगी खेतीबारी करके ही नहीं गुजारनी। उसे कुछ अलग करना है, तो पढ़ाई करनी ही पड़ेगी। दिन-रात खेतों में अपनी जिन्दगी खपाने से तो अच्छा है, यहाँ अपने से छोटे बच्चों के साथ पढ़ना।'

दिन गुजरने लगे। दोनों इतने करीब आ गए इसका उनको ख्याल ही नहीं रहा। ज्यादातर समय वे साथ ही रहते । यापी सदा जामजा का ही इन्तजार करती रहती। वह बहुत ही खुश होती उसे देखकर । यह उसे क्या होता जा रहा था, वह खुद भी समझ नहीं पा रही थी। इतना अपना-अपना करीब और इतना प्यारा लगने वाला वह। उसका रोम-रोम नाचने लगा। बिना बात के मुस्कुराने लगती तो कभी गुनगुनाने लगती। अब खुद को बहुत खूबसूरत महसूस करने लगी थी। परीक्षा करीब आ रही थी। दोनों खूब पढ़ना चाहते थे। स्कूल के चारों ओर जंगल था। वे कहीं भी जाकर बैठ सकते थे और खूब पढ़ाई कर सकते थे। कई बच्चे जंगल में बैठकर ही पढ़ा करते थे। उस दिन दोनों ने एक जगह तय कर ली और चल दिए पढ़ने के लिए। यापी गुनगुनाती और नाचती हुई सी आगे-आगे जा रही थी। पीछे-पीछे उसके खुशी का प्यारा-सा कारण चल रहा था। वे वहाँ पहुँच गए, जिसे कल चुना था आज के लिए। अचानक क्या हुआ की जामजा ने उसे जोर से पकड़ किया और जबरदस्ती करने लगा। उसने स्वयं को छुड़ाने की भरसक कोशिश की परन्तु निष्फल रही। ओह, इसकी कल्पना तो उसने कभी नहीं की थी। कल भी तो एक साथ आए थे। तब तो सब ठीक था। उसे लगा तारो आ गया। इतनी जबरदस्ती, इतनी क्रूरता असहनीय थी। जामजा के पास उसकी बात सुनने के लिए वक़्त नहीं था। वह फिर से छली गई थी। फिर से उसकी हत्या हो गई। वह लुट चुकी थी। ये तो हद ही हो गई थी। जोर से रोती तो कोई सुन सकता था। फिर तो आफत ही हो जाती। क्यों वह अकेली गई उसके साथ जंगल में। इधर-उधर बिखरी किताबों को समेटकर वह भागी। उसकी चप्पल भी कहाँ गायब हो गई थी, पता नहीं चल रहा था। पाँव में काँटे चुभ जाने का अहसास भी नहीं हुआ उसे। झाड़ियों ने भी उसे नहीं छोड़ा। उसकी मनपसन्द शर्ट फाड़ दी थी उन्होंने। वह बदहवास-सी थी। इस ऊँचे आकाश के तले उसके लिए कोई जगह नहीं बची थी। रात-भर मुँह पर कपड़ा ढाँपकर आँसुओं से नहाती रही वह । उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था, जो कुछ भी हुआ उस पर।

कुछ दिन बाद उसने पाया कि उसे महावारी नहीं हो रही है। माँ की दी हुई पुरानी माला को बेचकर वह एक क्लीनिक में पहुँची। गाँव से गाड़ी से चलने पर वहाँ तक तीन घंटे लगते थे। जिस बात का डर था, वही हुआ। उसे गर्भपात कराना ही पड़ा। परीक्षा खत्म हो गई और वह फेल भी हो गई। सब कुछ जैसे खत्म हो गया था। घर वापस आ गई। जामजा के लिए उसके माँ-बाप ने सुन्दर और सुशील-सी लड़की ला दी थी। आश्चर्य तो तब हुआ जब जामजा उसकी पत्नी के साथ बहुत खुश था। यापी के सामने तो ऐसे दिखाता था जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था। वे अब भी पड़ोसी ही थे। घर तो बदला नहीं जा सकता। एक काम तो वह कर ही सकती थी। एक दिन वह तारो के घर पहुँच गई। वैसे भी एक-न-एक दिन उसे तारो के परिवारवाले जबरदस्ती खींचकर ले जाने ही वाले थे। वह उनकी खरीदी हुई थी, सो कैसे यूँ छोड़ दी जाती! असम्भव बात थी। तारो के घरवाले बहुत खुश हुए कि चलो खेतीबारी का बोझ हल्का हुआ। अब फिर वह खेतों में लग गई। तारो और उसकी पत्नी बहुत ही परेशान रहने लगे। दोनों में खूब तू-तू, मैं-मैं भी होने लगी। तारो यापी से आँख भी नहीं मिलाता था। वह अकेली ही सोती थी। वह इससे खुश थी। वैसे भी वह जामजा की नजरों से दूर रहना चाहती थी, इसीलिए यहाँ का रास्ता चुना था। अब उसे हर परेशानी फिजूल लगने लगी। उसने अपने सभी दर्द को अच्छी तरह सुला दिया था। तारो की पत्नी से उसने एक दिन कह दिया कि वह शान्त रहे, क्योंकि वह यहाँ उसके पति के साथ सोने नहीं आई है। उसकी कुछ मजबूरियाँ हैं। उसके माँ-बाप कीमत चुका नहीं सकते, सो वह यहाँ काम करने आई है। दिन को खेत में फिर से उसकी हँसी सुनाई देने लगी। उसकी हँसी जैसे चारों दिशाओं को चुनौती दे रही थी। अब वह पहले से ज्यादा पीने लगी थी। उसमें आए अजीब से बदलाव को देखकर सब परेशान होने लगे। अब वह गाँव के किसी मर्द को जब चाहे पाने की कोशिश करने लगी। पर तारो को नहीं। हो भी नहीं सकता था। गाँव के लगभग सभी कुँवारे लड़के तथा शादी-शुदा मर्द, किसी को भी नहीं छोड़ा उसने। गाँव की सभी औरतों की आँख का काँटा बन गई वह। उस पर भी वह खूब बेशर्मी से हँसने लगती। तारो कुछ कहता नहीं था। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह तो जोरू का गुलाम हो गया था।

एक दिन तारो के घरवालों ने उसे घर से निकाल दिया। वह यही तो चाहती थी। उस दिन वह हल्के से मुस्कराई। आँखों में हल्की-सी नमी थी। उसके कदम बहुत ही हल्के थे उस दिन। वह हिरनी-सी छलाँग लगाती हुई दौड़ रही थी। घर पहुँचने से पहले खूब जोर से चिल्लाई और हँसने लगी। उसकी माँ उसके पीछे आँखों में आँसू लिए खड़ी थी। वह जानती थी अपनी बच्ची को। यापी मुड़ी और दोनों लिपटकर खूब रोई। यापी ने माँ से कहा, “माँ अब तुम ऋण से मुक्त हो। मैं कल शहर जा रही हूँ अपनी सहेली के पास । वह वहाँ नौकरी करती है। उससे कहकर अपने लिए भी कुछ इन्तजाम कर लूँगी। तुम लोगों के लिए नयेनये कपड़े खरीद दूंगी।" माँ-बेटी फिर से एक हो गई थीं। जैसे कि वह माँ के गर्भ में फिर से समा गई हो। माँ ने अपने हाथों से बेटी को खाना खिलाया था उस रात। पिता चुपके से रोए थे। सुबह माँ ने जल्दी-जल्दी खाना तैयार कर दिया। यापी भी तैयार हो गई। ईटानगर की बस आ ही रही थी। सब लोग उसे विदा करने बाहर आए। धड़कते दिल से यापी बस में बैठ गई। माँ ने उसे मुसीबत के वक़्त बेचने के लिए अपनी आखिरी माला भी दे दी थी। पता नहीं कितनों सालों की जमा-पूँजी उसके हाथ में थमा दी थी। उसने गिना तो उसमें दो-सौ रुपये थे। काफी था ईटानगर पहुँचने के लिए।

बचपन की सहेली आमी। अभी भी वैसी ही सुन्दर थी वह । तीन प्यारे-प्यारे बच्चों की माँ थी, फिर भी बदन छरहरा था। और यापी इतनी मोटी। उसे कुछ संकोच भी हुआ। मिलकर खूब बातें हुई। बच्चों की वह प्यारी मौसी बन गई। सामने एक स्कूल था। वहाँ के हॉस्टल में बच्चों की देखभाल करने वाली आया की जरूरत थी। सुबह दोनों सहेलियाँ गई। प्रिंसिपल से मिलकर बातें हुईं। उन्हें यापी बहुत पसन्द आई। दो-तीन महीने तक यापी को बाहर से आना पड़ेगा। क्योंकि अभी रूम बन रहा था। उसकी सहेली तो खुश हो गई कि चलो हम कुछ समय साथ-साथ रहेंगे। पता नहीं क्यों, यापी आज से ही हॉस्टल में रह जाना चाहती थी, पर उसने कुछ नहीं कहा। कोई चारा भी तो नहीं था। एक महीना पंख लगाकर उड़ गया। घर हमेशा ठहाकों से गूंजता रहता। आमी का पति जीरो3 में बड़े बाबू के पद पर था। वह दस-पन्द्रह दिन के लिए घर आया। यापी को वह बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसका बार-बार उसकी छाती को घूरना यापी को बिल्कुल पसन्द नहीं था। एक दिन तो उसने मौका पाकर कह ही दिया कि यापी ने गाँव में क्या गुल खिलाए थे, उसे पता है। वह अपना डर आमी के सामने जाहिर नहीं करना चाहती थी, सो चुप ही रही। वह हमेशा दिन गिनती कि कब महीना खत्म हो और हॉस्टल से बुलावा आए। दिन-भर होटल में रहती तो खूब खुश रहती, पर शाम होते ही उदास होने लगती कि अब उसे फिर से आमी के पति का सामना करना पड़ेगा। आमी सदा अपने पति की तारीफ करती रहती। कितनी खुश थी वह।

एक दिन हॉस्टल जाते समय यापी अपना पर्स भूल गई। उसे शाम को वापसी में सब्जी खरीदनी थी। पर्स में कुछ पैसे थे, सो वह वापस आई। बच्चे स्कूल जा चुके थे और आमी भी ऑफिस के लिए निकल चुकी थी। उसने देखा, घर का दरवाजा हल्का-सा खुला हुआ था। वह भीतर घुसी और अचानक आमी के पति ने उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। बहुत कोशिश की, पर फिर से वह बेबस हो चुकी थी। उसके शरीर का फिर अपमान हो चुका था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो गया अचानक । संसार का कोई भी कोना क्या उसके लिए नहीं था? उसका पूरा शरीर क्रोध से जल उठा। उसने सामने रखी कुर्सी उठाई और पूरा जोर लगाकर उसकी तरफ फेंकी, पर उसे लगी नहीं। उस शैतान ने हँसते हुए अपना सर एक तरफ झका दिया था। फिर से घना अँधेरा छाने लगा था। अब वह आमी का सामना कैसे करेगी? कहीं उसका घर बर्बाद न हो जाए। उसके भरोसे की हत्यारिन कहलाएगी वह। उस दिन वह पहली बार अपने शरीर का अन्त कर लेना चाहती थी। बहुत रोई थी।

आमी के पति ने कहा था, "तुम्हारे जीवन में मैं अकेला मर्द थोड़े ही हूँ। तुम तो इसमें माहिर हो। रोने की क्या बात है। देखो समझदारी से काम लो। हम खूब मस्ती कर सकते हैं।” बस वह निढाल-सी हो गई। अजीब बात थी कि अब वह उससे लड़ नहीं रही थी। मोटी और बदसूरत-सी लड़की सभी मर्दो को खींच रही थी। पर कोई भी उसे अपनी जीवनसंगिनी नहीं बनाना चाहता था। वह तो प्यार की भूखी थी। घर, परिवार, पति और ढेर सारे बच्चों का सपना बचपन से ही देखती आई थी। वह रूठ जाती तो पति प्यार से मनाता। पर उसके शरीर का बार-बार अपमान हुआ जा रहा था। वह बार-बार रूठती थी, लेकिन कोई मनाता नहीं था। अब वह जिन्दा लाश बनती जा रही थी। उसने उस दिन हॉस्टल में किसी से बात नहीं की। उसे किसी की भी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। कहीं खोई हुई-सी ही रही। वह अपने में भी नहीं थी। दिमाग पूरा शून्य था। रोना भी तो नहीं आ रहा था अब । कहीं जाना होता था, कहीं और चली जाती थी। आँखें पथरा गई थीं अब । सब हैरान थे कि इसे क्या हुआ! रात हो गई। अब भी वह वहीं थी। वार्डन ने उसे झकझोरकर जब कहा कि उसे गेट बन्द होने से पहले जाना है, तो वह सकपकाई। उसे याद आया आमी का मुस्कुराता प्यारासा चेहरा । नहीं, उसके लिए उसे हँसना ही होगा। जाना ही होगा वापस। उसे कोई हक नहीं बनता उसको परेशान करने का, जिन्होंने तकलीफ के वक़्त उसे सहारा दिया। फिर वह दुगुने वेग से दौड़ती हुई घर पहुँची। सचमुच आमी खाने पर उसका इन्तजार कर रही थी। वह कुछ चिन्तित भी दिख रही थी। उसे देखते ही कहने लगी, “चलो, जल्दी-जल्दी कपड़े बदलो, मुझे भूख लगी है। मैं तो सोच रही थी कि कहीं तुम आज हॉस्टल में ही न रह जाओ। सच कहती हूँ। दिन-भर दिन के खत्म हो जाने का इन्तजार करती हूँ कि कब हम साथ बैठे और दिल खोलकर हँसें। ऑफिस के अपने सभी दोस्तों को तुम्हारे बारे में बताती रहती हूँ कि तुम कितनी हँसाती हो मुझे।” बाकी सब लोग खाकर टीवी देख रहे थे। यापी हँसते हुए अपनी उदासी छुपाने की भरसक कोशिश करने लगी। वह किसी भी हाल में अपनी प्यारी सहेली के दुःख का कारण नहीं बनना चाहती थी।

आमी का पति जीरो चला गया। कुछ दिन बाद हॉस्टल से भी बुलावा आ गया। यापी और आमी ने एक-दूसरे को भारी मन से विदा किया। बच्चे मौसी के साथ जाने की जिद करने लगे। मौसी ने वादा किया कि हर रविवार वह उन्हीं के साथ बिताएगी। ऐसा लग रहा था जैसे यापी बहुत दूर जा रही हो। आमी की आँखों में भी आँसू थे। यापी हॉस्टल में रहने लगी। यहाँ वह सुरक्षित थी। अबकी बार फिर माहवारी नहीं हुई। छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे बच्चों के बीच रहकर उसके मन में भी एक इच्छा ने चुपके-से जन्म लेना शुरू किया। आमी को कभी वह नहीं बताएगी कि उसके पेट में किसका बच्चा है। वह सिर्फ और सिर्फ उसी का है। माता मरियम पर भी दुनिया लांछन लगाए बिना नहीं रह सकी, तो वह किस खेत की मूली है। पर इस बार उसने निश्चय कर लिया कि वह उस बच्चे को जन्म देगी। जरूर देगी। वह बार-बार अपने ही पेट में पल रहे किसी मासूम की हत्यारिन नहीं बन सकती थी। पाप उन मर्दो ने किया था, उसने नहीं। फिर बच्चा तो उसी के शरीर का अंग है। वही तय करेगी कि उसे क्या करना है। हर तकलीफ वही तो सहेगी। फिर किसी दूसरे की फिक्र क्यों इतनी जरूरी है? बस, उसको फिक्र थी तो आमी की। पर उसे तो वह कभी असलियत बताएगी ही नहीं। नन्हें-नन्हें पाँव का ख्याल आते ही वह फिर से अनजाने ही गुनगुनाने लगी। उसकी आँखों में सभी बच्चों के लिए पहले से भी ज्यादा प्यार और अपनापन झलकने लगा। वह सबकी माँ बन गई थी। हमेशा बदन पर बच्चे झलते रहते। सभी अध्यापक भी उसके काम से खुश थे।

दिन बढ़ते जा रहे थे। उसका पेट भी दिखने लगा था। पहले तो सबको लगा कि उसका मोटापा और बढ़ रहा है। पर कब तक ये बात छुपी रह सकती थी। यापी को तो जैसे किसी बात की फिक्र ही नहीं थी। उसका चेहरा सदा खुशियों से ही भरा रहता था। वह हर परिस्थिति के लिए तैयार थी। उसने तो कब से फिक्र करना ही छोड़ दिया था। एक स्कूल के लिए यह बदनामी का सबब बन गया जब लोगों को पता चला कि हॉस्टल में काम करने वाली एक अन-ब्याही लड़की अचानक गर्भवती हो गई। सबने अपने-अपने दिमाग पर जोर डालते हुए याद करने की कोशिश की कि वह किसके साथ ज्यादा बातें करती थी। किसी पर भी शक की सूई घुमती नहीं थी। यापी किसी को भी बताने के लिए तैयार नहीं थी। अब तो पक्का हो गया कि वह एक बदचलन औरत है। बाहर से गुल खिलाकर आई है। उसका स्कूल छोड़ना तय हो गया। आमी को भी विश्वास नहीं हो रहा था। पूछती तो जोर-से हँस देती और कह देती कि ये कुदरत का करिश्मा है। आमी को सलाह देती कि वह परेशान न हो, बल्कि कहीं और नौकरी पाने में मदद करे। जब उसने हॉस्टल छोड़ा था, किसी भी बच्चे से नहीं मिली थी। वहाँ से चुपचाप चली आई थी।

कल ही उसे किसी के यहाँ कपड़े बुनने का काम मिला था। वह दो-तीन दिन में आमी का घर छोड़ने वाली थी। आमी भी आजकल कुछ परेशान-सी रहने लगी थी, यापी की चुप्पी से। वह उसकी मदद करना चाहती थी। उसने यापी से कहा कि बच्चा गिरा दो। पर वह है कि मानती ही नहीं। बाप का नाम पूछती तो हँसती हुई कह देती “कम-से-कम तुम्हारा पति तो नहीं है न। चिन्ता मत करो।" आमी सुबह भी उदास-उदास ही ऑफिस गई। बच्चे भी स्कूल चले गए। यापी अकेली रह गई थी। बिना खबर किए ही आमी का पति आ गया था। वह फिर अचानक टपक गया था। इस बार यापी को बिल्कुल भी डर नहीं लगा। उसने मजबूती से सामने रखे चाकू को पकड़ लिया था, परन्तु खामोश ही रही थी। उसने आते ही उसे समझाना शुरू कर दिया कि यापी जो कुछ भी कर रही है, बहुत बड़ी मूर्खता है। उसे गर्भपात करा लेना चाहिए वरना वह आमी से कह देगा कि यापी ने उसके साथ जबरदस्ती किया था। कह देगा मर्द आदमी है, बस बहक गया था। उसने यहाँ तक कह दिया कि यदि वह गर्भपात कराती है, तो वह उसे अपनी दूसरी पत्नी भी बना लेगा। आमी को पता चलेगा, तो वह खुद को ही खत्म कर लेगी। अपनी नहीं, तो कम-से-कम आमी की तो जरूर सोचे। कितना प्यार करती है वह यापी से। सात महीने में गर्भपात खतरनाक तो है परन्तु डॉक्टर चाहे तो क्या नहीं कर सकता। असम में एक क्लीनिक है, जहाँ पैसा खूब बोलता है। उस दिन यापी घर से निकलकर दिन भर सड़क पर ही घूमती रही, जब तक सब लोग नहीं आ गए।

शाम हो गई। रोज की तरह फिर से घर में चहल-पहल शुरू हो गई थी। उस रात यापी ने खाना बनाया। बहुत प्यार से सबको खिलाया और खुद भी खूब हँसते हुए डटकर खाया। माँ की दी हुई पुरानी माला आमी को देती हुई बोली, इसे अपनी बच्ची की शादी में दे देना। उससे कहना कि उसकी मौसी बहुत अच्छी थी और उसे बहुत प्यार करती थी। अभी तो वह बहुत छोटी है। जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं। आमी को कुछ अजीब-सा लगा था। सब सो गए। यापी को आँखें बन्द करने की फुरसत नहीं थी। आमी की फिक्र सताने लगी उसे। पर वह अपने बच्चे को भी अपने से अलग नहीं करना चाहती थी। दो दिन पहले ही तो अल्ट्रासाउंड में देखा था। दो-दो थे। वह जुड़वाँ बच्चों की माँ बनने वाली थी। डॉक्टर ने उसे कम्प्यूटर पर दिखाया था। एक तो देखते-देखते ही अपनी उँगली मुँह में डालकर चूसने लगा है। माँ के गर्भ में भी बच्चा खाने की चीजें ढूँढ़ता है। कितना प्यारा अहसास था। ओह, कितना पेटू होने वाला है ये, अपनी माँ की ही तरह । यापी की बात सुनकर डॉक्टर भी कितनी हँसी थी। यापी के आँखों में खुशियों की अनगिनत मणियाँ झिलमिलाने लगी थीं। और आज फिर से कोई भयानक राक्षस उसका रास्ता रोके खड़ा था। उसे बार-बार आमी का चेहरा दिखने लगा। अपनों के चेहरे एक-एक करके चलचित्र की भाँति आँखों के सम्मुख आने लगे। अन्त में उँगली चूसता कोई छोटा-सा साया उसके आस-पास मँडराने लगा। दुसरा साया हँसता हुआ कभी उसके कन्धे पर झूल जाता तो कभी भाग जाता। वह बिस्तर से उठी। आमी के रूम की तरफ आई। दरवाजा धीरे से खोला। सब कितने सुकून से सो रहे थे। एक भरपूर दृष्टि आमी के चेहरे पर डाली और तेजी से मुड़ गई। कहीं दर से कोई नन्हीं पुकार सुनाई दे रही थी। वह भागी। उस आवाज के पीछे वह भागती जा रही थी। फिर वहीं उँगली चूसता नन्हा साया दिखने लगा। और दूसरे साये ने उसके कान में आकर धीरे से पुकारा “माँ”। वह बदहवास-सी भागने लगी। रोती भी जा रही थी। अजीब बात थी कि वह रोती-रोती हँस भी पड़ती थी। वह दो आवाजें सड़क के नीचे बहती नदी से आ रही थीं। उसने अपनी बाँहें फैला दी उन नन्हें सायों की तरफ और नदी ने भी जैसे उसका स्वागत किया हो।

सुबह नदी के किनारे लोगों का जमावड़ा हो गया। पुलिस अपना काम कर रही थी। दूसरे दिन अखबार में छपा बिन पति के गर्भवती महिला ने ब्रिज से कूदकर अपनी जान दे दी। आमी अपनी प्यारी सखी की दी हुई माला को पकड़कर रो रही थी। बच्चे हैरान होकर इधर-उधर दौड़ रहे थे।

(ओबिया - स्थानीय छतरी, जिससे पीठ भी ढक जाती है; जीरो - एक स्थान का नाम।)

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