Uska Naam Tha Mardana

उसका नाम था मरदाना

सुलतानपुर में ही एक मिरासी मुसलमान गुरु नानक जी का मित्र बन गया था। उसका नाम था मरदाना । वह रबाब बहुत अच्छी बजाता था । गुरु नानक जी जब भक्तिभाव से गीत गाते तो वह उनके साथ रबाब बजाता था। गुरु जी के व्यक्तित्व से मरदाना इतना प्रभावित हुआ कि फिर वह उनका जीवन भर का साथी बन गया।

इस बीच गुरु नानक जी की ख्याति चारों तरफ फैल चुकी थी। कोई उन्हें बाबा नानक कहता, कोई नानक शाह फ़कीर और कोई गुरु नानक । अब गुरु नानक जी ने घर-बार सब कुछ छोड़ दिया । इस समय भारत की जनता विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा बुरी तरह सताई जा रही थी । ज्ञान का स्थान अंध-विश्वास ने ले लिया था। सारा समाज ऊंच-नीच और जाति-पांति में बुरी तरह बंटा हुआ था। धर्म के अगुआ-ब्राह्मण, काजी और योगी, साधारण जनता को धर्म के नाम पर लूट रहे थे । सरकारी कर्मचारी और छोटे-बड़े जमीदार जनता का खून चूस रहे थे। जनता की ऐसी दशा देखकर गुरु नानक जी मरदाना को साथ लेकर जनता के बीच निकल पड़े।

पहले गुरु नानक जी ने दक्षिण-पश्चिमी पंजाब की यात्रा शुरू की। यात्रा के दौरान गुरु नानक जी जहां भी रुकते, वे अपना डेरा बस्ती से बाहर ही लगाते और जो भी कंद-मूल खाने को मिल जाता उसी से अपनी भूख मिटा लेते । पर मरदाना को यह सब खाने की आदत नहीं थी। वह तो अच्छा और स्वादिष्ट भोजन करना चाहता था।

एक दिन जब गुरु नानक जी ने देखा कि मरदाना बहुत परेशान है तो उन्होंने उसे पास के गांव में जाने की आज्ञा दे दी। गांव में मरदाना की बड़ी आवभगत हुई। लोगों ने उसे स्वादिष्ट भोजन तो कराया ही, साथ में बहुत तरह के सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े तथा गरी, छुहारे, बादाम आदि अनेक प्रकार के स्वादिष्ट पदार्थ भी भेंट किए। लोगों की इस सेवा से मरदाना बड़ा प्रसन्न हुआ और सारे सामान की गठरी बांधकर गुरु जी की ओर चल दिया, अपने साथी को सामान से लदा देखकर गुरु जी मुसकराए और बोले-"अरे मरदाने, इतनी बड़ी गठरी कहां से बांध लाए ?"
"गुरु जी !" मरदाना बड़े उत्साह से बोला-"अब कई दिनों तक हमें खाने-पीने और ओढ़ने-बिछाने की चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। गांव वालों ने मुझे खूब भर पेट खिलाया है और बहुत-सा सामान साथ बांध दिया है।"
उसकी यह बात सुनकर गुरु जी ने कहा-"मरदाने ! यह तुमने अच्छा नहीं किया । हम तो गृहस्थ में रहकर त्याग का उपदेश देते हैं और तुमने त्याग का रास्ता अपना कर इतना लोभ किया।"
मरदाना बड़े संकोच से बोला-"पर गुरु जी, ये सभी चीजें तो लोगों ने खुद ही दी हैं। मैंने उनसे मांगी थोड़े ही थी।"

"ये सब चीजें दूसरे लोगों को दे दो । जिन्हें इन की हमसे ज्यादा जरूरत है," गुरु नानक ने समझाते हुए कहा-"जिस तरह दान देने वाले को अपनी धर्म की कमाई में से ही दान देना चाहिए, उसी तरह दान लेने वाले को उतना ही दान लेना चाहिए जितने की उसे जरूरत है।"
मरदाना ने वे सभी चीजें लोगों में बांट दीं।

(डॉ. महीप सिंह)

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