उड़ती हुई नाव : कैनेडा की लोक-कथा
Udti Hui Naav : Lok-Katha (Canada)
बहुत दिनों पहले की बात है कि एक बहुत बड़े जंगल में बहुत सारे मज़दूर लकड़ी काटने का काम करते थे। वे बहुत बड़े बड़े पेड़ काटते थे और उनको बहुत सारी बरफ में उसी जगह गिरते देखते थे जहाँ वे सोचते थे कि वह गिरेगा।
वे पेड़ काटते थे और फिर उनको इधर उधर ले कर भी जाते थे। वे अपना काम तो बड़ी मेहनत से करते थे पर वे अपनी अपनी पत्नियों के बिना जिनको वे घर छोड़ कर आये थे बहुत अकेला महसूस करते थे।
एक साल नये साल के दिन इतनी बरफ पड़ी कि वे लोग कुछ काम ही नहीं कर सके। वे सब अपने अपने तम्बुओं में ढके दबे पड़े रहे और अपने घरों की बातें करते रहे। वे एक दूसरे को रम पिलाते रहे और एक दूसरे को नये साल की बधाई देते रहे।
आखीर में बैपटिस्ट वह बोला जो वे सब सोच रहे थे — “मैं आज घर जाना चाहता हूँ और अपनी पत्नी से मिलना चाहता हूँ।” सब लोग फुसफुसाये कि वे सब भी यही करना चाह रहे थे।” पर जीन बोला — “पर हम आज जा भी कैसे सकते हैं? आज तो सड़क पर 6–6 फीट से ऊपर बरफ पड़ी हुई है और अभी और भी गिर रही है।”
बैपटिस्ट बोला — “पर यह किसने कहा कि हम यहाँ से सड़क से हो कर बाहर जा रहे हैं। मैं तो अपनी नाव उड़ा कर ले जाऊँगा।”
सबको मालूम था कि बैपटिस्ट के पास एक नाव थी जो उनके कैम्प के पीछे रखी थी। बैपटिस्ट ने एक शैतान से एक सौदा करके उससे यह नाव ली थी।
उसने उस शैतान से सौदा कर रखा था कि अगर वह शैतान उस नाव को वहाँ के लिये उड़ा देगा जहाँ बैपटिस्ट जाना चाहेगा तो वह सारे साल मास नहीं पढ़ेगा।
और अगर बैपटिस्ट वह नाव इस्तेमाल करने के बाद अगले दिन सुबह तक उस शैतान को वापस नहीं करेगा तो वह शैतान उसकी आत्मा को बन्दी बना कर रख लेगा।
सो अगर बैपटिस्ट और उसके साथियों ने वह नाव इस समय घर जाने के लिये इस्तेमाल की तो उस समय न तो वे भगवान का नाम ले सकते थे, न किसी चर्च के ऊपर से उड़ सकते थे और न ही कोई क्रास छू सकते थे नहीं तो वह नाव टकरा कर टूट सकती थी।
यह सब सोचते हुए वहाँ बैठे हुए बहुत सारे लोगों ने बैपटिस्ट की इस योजना में हिस्सा लेने से मना कर दिया पर फिर भी उसने सात लोगों को अपने अपने घर जाने के लिये और अपनी अपनी पत्नियों से मिलने के लिये अपने साथ नाव में उड़ने के लिये तैयार कर लिया।
सो बैपटिस्ट और उसके सातों दोस्त उस नाव में बैठ गये और बैपटिस्ट ने अपने जादुई शब्द बोले — “ऐकाब्रिस, ऐकाब्रास, ऐकाब्रम।”
जब बैपटिस्ट ने अपने आपको उस शैतान के सौदे में बाँध लिया तो वह नाव ऊपर उठी और लोगों ने उसको अपने घर की तरफ हवा में खेना शुरू किया।
उन सबकी पत्नियाँ अपने अपने पतियों को देख कर बहुत खुश हुईं। वे सब रात गये तक पीते रहे और नाचते रहे। जब सुबह होने को हुई तो लोगों को ख्याल आया कि उनको तो वह नाव सुबह को उस शैतान को वापस करके उस कैम्प में रखनी थी नहीं तो वह शैतान उनकी आत्मा को अपने पास रख लेगा।
सो उन्होंने बैपटिस्ट को ढूँढना शुरू किया तो उन्होंने देखा कि बैपटिस्ट तो सराय की एक मेज के नीचे शराब के नशे में बुरी तरह से धुत पड़ा है।
उन्होंने उसको उठा कर किसी तरह नाव में डाला, वे जादुई शब्द बोले जिनसे उस नाव को चलाया जा सकता था और नाव को खे कर जंगल की तरफ ले चले।
वे जानते थे कि अगर उन्होंने बैपटिस्ट को जगाया तो वह तो अपनी पूजा करने लगेगा और फिर वह शैतान उन लोगों की आत्मा को बन्दी बना कर रख लेगा।
सो उन्होंने उसको नाव से कस कर बाँध दिया और उसका मुँह भी बन्द कर दिया ताकि वह भगवान का नाम ही न ले सके जिससे न तो उनकी नाव टूटे और न ही शैतान उनकी आत्मा को अपने पास रख सके।
जब बैपटिस्ट जागा तो वह उठ कर बैठने के लिये अपनी रस्सियाँ खोलने की कोशिश करने लगा। किसी तरह से वह रस्सियाँ खोलने में कामयाब हो गया और चिल्लाया — “मौन ड्यू, तुम लोगों ने मुझे यहाँ क्यों बाँध रखा है?”
बस जैसे ही उसने भगवान का नाम लिया कि उस नाव ने नीचे की तरफ एक ज़ोर की कूद लगायी और जा कर एक बड़े से पाइन के पेड़ से टकरा गयी।
सारे लोग उसमें से सुबह से पहले ही अँधेरे में बाहर निकल पड़े और नीचे गिर पड़े। उसके बाद वे फिर कभी नहीं देखे गये। शैतान ने उन सबकी आत्मा को बन्दी बना कर रख लिया था। इसलिये शैतानों से कभी कोई सौदा नहीं करना चाहिये।
(अनुवाद : सुषमा गुप्ता