टुनटुन और बुलबुल (असमिया बाल कहानी) : नरेन्द्रनाथ शर्मा/নৰেন্দ্ৰ নাথ শৰ্মা

Tuntun Aur Bulbul (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Narendra Nath Sharma

पिछले साल पूजा के समय आइनु को पिता ने एक गुड़िया ला दी थी। इसे पाकर आने की खुशी की हद नहीं थी । उसे वह हर वक्त गोद में लिए रहती, लोरियाँ सुनाती और उसके रूप गुण बखानती - इसके बाल घुंघराले हैं, इसकी नाक अपनी माँ की सी है आदि। वह हमेशा एक बिल्ली का बच्चा गोद में और एक फूल हाथ में लिए रहती थी ।

हाँ, आइनु का इस गुड़िया के प्रति बहुत प्यार था, लेकिन एक दिन जब उसने अपनी सहेली मम्मी की गुड़िया देखी तो उसकी धारणा बदल गयी । वह समझने लगी कि उसकी गुड़िया बिलकुल अच्छी नहीं है। बैठा देने से उसकी गुड़िया बैठ नहीं सकती, हाथ-पैर भी वह इधर-उधर नहीं कर सकती। मेरे पिता यह क्या गुड़िया उठा लाये वह सोचती ।

एक दिन आइनु अपने पिताजी के पास जाकर रोने लगी कि उसे भी हाथ-पैर चलाने वाली एक गुड़िया चाहिए-ठीक वैसी ही जैसा मस्मी के पिता ने अपनी बेटी को लाकर दी है।

आइनु अपने पिता की लाडली बिटिया है। अपनी बेटी को भला वह क्यों दुखी करेगा। उसी दिन वैसी ही गुड़िया बेटी को ला दी। अब इस पुतले को आइनु कभी छोड़ती ही नहीं। वह तो आइनु की बहन है। आइनु ने उसका नाम टुनटुन रखा । सोते समय भी आइनु टुनटुन को तकिये पर सुलाए रखती है। उसके बिना आइनु को रात को नींद नहीं आती है। सुबह बिस्तर से उठते ही यह अपने साथ-साथ टुनटुन का मुँह हाथ भी धुला देती है। कभी-कभी बिस्तर पर छोड़ आती है। थोड़ी देर बाद जाकर गुस्सा दिखाती हुई टुनटुन को जगाने लगती है, 'उठ उठ, कितना सोती है। सुबह जो हो गया, मालूम नहीं। पढ़ने-लिखने का काम कब करेगी । '

खाने की मेज पर जाकर वह अपने लिए और टुनटुन के लिए सुबह का खाना माँगती है। खाना आ जाने से खुद भी खाती है और टुनटुन के मुँह में भी घुसेड़ देती है। भोजन के समय अपनी माँ से कहती है, 'माँ टुनटुन खाना नहीं खाती, कोई बीमारी है क्या, माँ इसे ?'

सुबह और शाम टुनटुन को वह घुमाने ले जाती है। टुनटुन को लेकर मीनू के साथ वह दूल्हा-दुल्हन का खेल भी खेलती है।

मीनू आइनु की सहेली है। वह बरुवा की लड़की है। कुछ दिन पहले मीनू को एक बहन मिली है। उसका नाम बुलबुल । अब बुलबुल चार महीने की हो गयी है । वह अब हँसती है । आइनु उसके पास से दूर हटना नहीं चाहती । कभी-कभी उसे गोद में उठा लेना चाहती है। लेकिन उसकी माँ उसे कैसे गोद में देती। इतनी छोटी-सी बच्ची है। कहीं गिरा देगी तो ।

लेकिन आइनु कहाँ छोड़ने वाली थी। अपनी माँ को बार-बार तंग करती । आखिर एक दिन उसे गोद में लेकर ही मानी। एक बार जब गोद में लिया तो आगे क्या बात । आइनु रोज अपने घर से चुपचाप बुलबुल के पास चली जाती। कभी उसे गोद में उठाकर रास्ते तक लाती। इसमें मीनू भी शामिल रहती है। - माँ को इसका पता भी न लगता ।

कभी-कभी उसे याद आती - वह तो पहले टुनटुन को भी इसी तरह प्यार करती थी ।

- बुलबुल उससे बहुत अच्छी है। बुलबुल हँस सकती है - टुनटुन नहीं । - हाँ, टुनटुन भी बहुत बुरी नहीं थी । टुनटुन को लेकर वह खेलती थी, घूमती थी । उसे इधर-उधर की चीजें दिखाती थी। एक दिन उसने टुनटुन को अपनी मेज के नीचे पड़ी हुई देखा। उसे बुरा लगा। उठा लेने का मन भी करता था, लेकिन गोद में बुलबुल थी। उसे उठा नहीं सकी। वह बुलबुल को लेकर बाग में घूमने चली गयी। टुनटुन को भूल गयी।

रात को आइनु ने सपने में देखा कि टुनटुन मेज के नीचे पड़ी हुई है । आइनु को उधर जाते देख हाथ-पैर नचा नचा कर कहा, 'मैं यहाँ पड़ी हूँ । तुम मुझे क्यों नहीं उठा लेती। मुझे क्यों प्यार नहीं करती।'

आइनु नींद में ही चिल्ला उठी, 'री मेरी प्यारी, मैं तुझे जरूर उठा लूँगी ?" कह बिस्तर से झटपट उठ बैठी और खटिया के नीचे कुछ खोजने लगी। उसके बाद मेज के नीचे देखने लगी और गुड़िया को झटपट छाती से लगा बार-बार चूमने लगी।

कुछ दिन बाद आइनु ने उस गुड़िया को बुलबुल को दे दिया। आजकल वह बुलबुल के हाथ में टुनटुन को देकर उसे घुमाने ले जाती है। बुलबुल टुनटुन उसके सामने एक से बन गये हैं।

(अनुवाद : चित्र महंत)

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