तुम्हारा बेटा : मणिपुरी लोक-कथा
Tumhara Beta : Manipuri Lok-Katha
मणिपुर के एक गाँव में चंद्र नाम का लड़का अपने पिता के साथ रहता था।
उसकी आयु सोलह वर्ष थी। उसकी माता का देहांत काफी समय पहले हो गया था। चंद्र
के पिता ने दूसरा विवाह नहीं किया। उन्हें भय था कि विमाता, चंद्र को ममता नहीं दे
पाएगी।
पहली पत्नी की मृत्यु के कुछ वर्ष तक वे स्वयं ही चंद्र को पालते रहे, किंतु समय
बीतने के साथ-साथ उनका शरीर कमजोर होता गया। चंद्र पर सारी जिम्मेदारी डालना
ठीक नहीं था, इसलिए वे दूसरे विवाह के लिए तैयार हो गए। गाँववालों ने धूमधाम से
उनका विवाह रचाया।
चंद्र की नई माँ सुंदर तो थी किंतु चंद्र से नफरत करती थी। वह अक्सर चंद्र के
पिता से उसकी झूठी शिकायतें लगाती ताकि चंद्र की पिटाई हो।
चंद्र के पिता जानते थे कि उनकी पत्नी ही गलत है। पर उसे टोकने की
हिम्मत उनमें न थी। एक दिन उनकी पत्नी बोली- 'तुम चंद्र को किसी घने जंगल में छोड़
आओ।
यह सुनकर वह काँप उठे। भला अपने पुत्र को जंगल में कैसे छोड़ आएँ। यदि
कोई जंगली जानवर उसे खा गया तो.... यह विचार आते ही उनकी आँखों मे जँसू आ
गए।
चंद्र की सौतेली माँ रस्सी दिखाकर बोली, 'यदि उसे जंगल में न छोड़कर आए
मैं फाँसी लगा लूँगी और तुम्हें जेल जाना पड़ेगा।'
पिता ने सोचा कि चंद्र की किस्मत में जो लिखा है वह तो उसे भोगना ही होगा। हो
सकता है इस घर से निकल जाने में ही उसकी भलाई हो।
एक दिन उन्होंने चंद्र को साथ लिया और घने जंगल में जा पहुँचे। चंद्र का माथा
चूमकर बोले, 'तुम बैठो, मैं जरा नदी से पानी पी आऊँ।'
चंद्र शाम तक पिता की प्रतीक्षा करता रहा। पिता को तो लौटना था ही नहीं, न ही
वे लौटे। रोता-कलपता चंद्र थककर वहाँ सो गया। तभी आकाश मार्ग से शिव-पार्वती
गुजरे। चंद्र के गालों पर सूखे आँसुओं की लकीरें देखकर पार्वती का मन पिघल गया,
उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की कि वे चंद्र की सहायता करें।
अगले दिन सुबह चंद्र उठा। भोजन व आश्रय की तलाश में वह आगे बढ़ा। जंगल
में एक वीरान महल को देख कर वह चकित हो उठा। अंदर जाकर तो उसकी हैरानी और
भी बढ़ गई। सभी दरबान तथा नौकर-चाकर अपने-अपने स्थान पर सो रहे थे। यहाँ तक
कि पिंजरों में बंद पक्षी भी दम साधे हुए थे।
राजसी पलंग पर एक रूपसी युवती सो रही थी। ऐसा लगता था कि महल का
सारा जीवन थम गया हो। एक तेज व भयानक गर्जन से चंद्र चौंका। एकाएक उसके मन
में आया, 'काश! वह छोटा-सा जीव बन जाता और आने वाली मुसीबत से बच जाता।'
चमत्कार! ज्यों ही उसने ऐसा सोचा, वह छोटे से जीव के रूप में बदल गया। वह
जान गया कि यह अनमोल उपहार स्वयं ईश्वर ने ही उसे दिया है।
उसने आड़ में से देखा कि एक विशाल राक्षस महल में प्रवेश किया। उसने बिस्तर
के पास पड़ी हुई एक छड़ी से युवती को छुआ।
वह उठ बैठी। सारे महल का जीवन लौट आया। पक्षी चहचहाने लगे।
नौकर-चाकर चुपचाप अपने काम में जुट गए।
राक्षस ने भरपेट भोजन किया। वह रूपसी युवती सिर झुकाए बैठी रही। राक्षस ने
कहा 'मुझसे शादी करोगी?'
युवती ने घृणा भरे स्वर में उत्तर दिया, 'एक राजकुमारी की शादी राक्षस से कभी
नहीं होगी।'
राक्षस ने फिर सारे महल को जादुई नींद में सुला दिया। चंद्र अपनी छिपी शक्ति
पहचान चुका था। वह अपने असली रूप में वापस आ गया। उसने छड़ी से उस
राजकुमारी को जगा दिया। वह पहले तो चंद्र को देखकर डर गई किंतु चंद्र के मीठे
स्वर ने उसे आश्वस्त किया।
राजकुमारी के सामने ही चंद्र ने छड़ी के दो टुकड़े कर दिए। उसने अपनी शक्ति
के बल पर सेना मँगवा ली। दरवाजे पर सेना तैनात की।
राक्षस लौटा तो महल की रौनक देखकर क्रोधित हो उठा। सेना ने तीरों की बौछार
से उसे छलनी कर दिया। चंद्र ने राक्षस को मरा जानकर लौटना चाहा तो राजकुमारी प्यार
से बोली 'आप यहीं रहें और छोटे से राज्य का निर्माण करें।'
कुछ ही दिनों में चंद्र और राजकुमारी विवाह-बंधन में बँध गए।
चंद्र की कार्यकुशलता से राज्य उन्नति करने लगा। इतना सब होने पर भी वह
अपने माता-पिता को भूला नहीं था। वह अपने पिता के पास गया। पिता
उससे मिलते ही लिपटकर रो दिए।
विमाता अपनी करनी पर पछता रही थी। चंद्र ने उसके चरण स्पर्श किए और
बोला, 'माँ, मैं तुम्हारा बेटा हूँ।'
(भोला यामिनी)