तुंबी बितनु : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा

Tumbi Bitnu : Lok-Katha (Oriya/Odisha)

एक बूढ़ी विधवा थी। वह बहुत ग़रीब थी। उसके कोई बाल-बच्चा नहीं था। जो कुछ थोड़ा-बहुत कमाती उसी से वह किसी तरह अपना काम चला लेती। समय-कुसमय की ज़रूरत के लिए हर दिन रसोई करने से पहले एक मुट्ठी चावल एक तुंबी में रख देती।

एक बार सावन पूर्णिमा का त्योहार मनाने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। पड़ोस में लोगों को उत्सव मनाते देखकर उसका मन बहुत उदास हो गया। इसलिए ईश्वर का स्मरण करके तुंबी में रखा हुआ चावल निकालने गई तो देखा कि उसमें चावल नहीं था। उसके बदले वहाँ एक सुंदर बच्चा लेटा हुआ था। बच्चा देखकर वह ख़ुश हो गई। उस बच्चे को अपने बेटे की तरह पालने लगी और उसका नाम रखा तुंबी बितनु। तुंबी बितनु बड़ा हुआ। बहुत सुंदर चेहरा था उसका, ऐसे जैसे कोई राजकुमार हो।

ग़रीब परिवार था, इसलिए बहुत मुश्किल से दोनों का दिन बीत रहा था। राजा का महंत राजा के हाथी को प्रतिदिन तुंबी बितनु के घर की तरफ़ घुमाने ले जाता था। उस रास्ते से आते-जाते वह हाथी बितनु के घर की छत से कुछ पुआल निकाल लेता। राजा के हाथी से भला कोई क्या कहता? कहावत भी तो है कि बड़ों से कोई ज़बान नहीं लड़ा सकता। इसलिए बितनु की माँ हाथी को नहीं भगाती। मन का दुःख मन में ही दबाकर रखती।

एक दिन बितनु माँ के मन के दुःख को समझ गया। दूसरे दिन जैसे ही हाथी ने पुआल खींचा, बितनु घर से बाहर निकल आया और बोला, “राजा का हाथी होने के नाते तुझे आज छोड़ दे रहा हूँ। पर फिर कभी जो तू पुआल खींचकर निकालेगा तो तेरी पूँछ पकड़कर ऐसे फेंकूँगा कि तू सात समंदर तेरह नदी पार जाकर गिरेगा।

उसके दूसरे दिन से हाथी ने सचमुच पुआल नहीं खींची। उसके बाद उसने कुछ खाया भी नहीं। इस तरह से वह खाना-पीना छोड़कर बीमार पड़ गया। राजा ने महंत से इसका कारण पूछा। महंत ने बितनु के गाली देने की बात कही। राजा यह सुनकर ख़ूब ग़ुस्सा हो गए। बितनु को उन्होंने बुलावा भेजा और उसे हाथी के साथ लड़ने के लिए कहा। बितनु डरता क्यों? ईश्वर का स्मरण करके हाथी की पूँछ पकड़कर उसे पछाड़ दिया। हाथी की जान चली गई। लोगों ने बितनु की जय-जयकार की। उसे कंधे पर बिठाकर नाचने लगे।

बितनु का बल और साहस देखकर राजा चकित रह गए। प्रजा द्वारा बितनु का इस तरह आदर करना देखकर राजा के मन में भय समा गया कि जो व्यक्ति इतने बड़े हाथी को मार सकता है, वह मुझे राजगद्दी से हटाकर ख़ुद क्यों राजा नहीं बन जाएगा? यही बात सोचकर वह चिंतित रहने लगे, उनकी भूख मर गई।

राजा के नाई ने दाढ़ी बनाते समय उनकी चिंता का कारण पूछा। राजा ने उसे सारी बातें बता दीं। नाई बोला, “महाराज, इतनी छोटी सी बात के लिए इतनी चिंता? मैं नाई का बच्चा हूँ। एक बाल काटता हूँ तो मेरी बुद्धि में कुछ बढ़ोतरी हो जाती है। बितनु क्या मुझसे तेज़ होगा? उसे मारने का बंदोबस्त मैं करता हूँ। आप उसे आदेश दीजिए कि हाथी की पूँछ पकड़कर उसे सात समंदर और तेरह नदी के पार फेंक दे। अगर वह ऐसा नहीं कर पाएगा तो उसे फाँसी दे दी जाएगी। न तो वह ऐसा कर पाएगा और न ही वह ज़िंदा रहेगा।

राजा को नाई की बात जँच गई। उन्होंने बितनु को वैसा ही आदेश दिया। बितनु ने ईश्वर को सुमिरन करते हुए मरे हुए हाथी को शून्य में उछाल दिया। हाथी सात समंदर तेरह नदी के उस पार जाकर गिरा।

राजा ने नाई के साथ फिर एक बार विचार-विमर्श किया। नाई बोला, “उससे कहिए कि हाथी के दाँत में रत्न लगा हुआ है। वह जाकर दो दाँत उखाड़ लाए। वह रत्नजड़ित दाँत लेकर आ नहीं पाएगा और न ही वह राजा बन पाएगा।

इस बार भी राजा ने बितनु को नाई के कहे अनुसार आदेश दिया। बितनु अपने आराध्य देव का स्मरण कर रवाना हुआ। कुछ दूर जाने पर एक जंगल आया। उसने देखा कि उस जंगल में एक बहुत ही सुंदर लड़की बैठकर तपस्या कर रही है। उसे प्यास लग आई थी, इसलिए लड़की के पास जाकर पूछा कि पानी कहाँ मिलेगा। इससे लड़की की तपस्या भंग हो गई और उसने ग़ुस्से में बितनु को राख कर देना चाहा, पर वह ऐसा नहीं कर पाई। तब उसने बितनु से पूछा, “तुम कौन हो? ज़रूर तुम किसी देव के अंश से पैदा हुए हो। नहीं तो मैं जिसे चाहती हूँ, उसे भस्म कर देती हूँ।

बितनु बोला, “मैं देवता नहीं हूँ, एक मामूली इंसान हूँ। राजा के हाथी का दाँत लेने के लिए सात समंदर तेरह नदी के पार जा रहा हूँ। प्यास लगी तो पानी के लिए यहाँ आया। तुम कौन हो? यहाँ क्यों तपस्या कर रही हो?

लड़की बोली, “मेरा नाम बाघवती है। मेरी माँ एक बाघिन है। देवताओं ने कहा है कि तुंबी बितनु मेरा पति होगा। मैं उसे ही पाने के लिए तपस्या कर रही हूँ।”

उसकी बात सुनकर बितनु ने अपना परिचय दिया। बाघवती बहुत ख़ुश हुई। उसे पति के रूप में वरण किया। अब उसने स्त्री का रूप त्यागकर बाघ का रूप धारण किया। बितनु को पीठ पर बैठाकर हवा की गति से दौड़ने लगी। दोनों सात समंदर के पास पहुँच गए। वहाँ से वह आगे नहीं जा सकी। बितनु ने देखा कि समुद्र के किनारे एक औरत तपस्या कर रही है। बितनु ने उससे सात समंदर पार करने का उपाय पूछा तो उसकी तपस्या भंग हो गई। उसने भी ग़ुस्से में आकर उसे भस्म कर देना चाहा, पर ऐसा नहीं कर पाई। आख़िर में उसने भी तुंबी बितनु के लिए तपस्या करने की बात कही और बितनु का परिचय पाकर उसे पति के रूप में वरण किया। उसने बताया कि उसका नाम कबूतरवती है और एक कबूतरी उसकी माँ है।

कबूतर का रूप धारण करके बितनु को पीठ पर बैठाकर सात समंदर तेरह नदी पार करवा दिया। पर वहाँ उन्हें हाथी नहीं दिखा। तभी देखा कि एक और औरत वहाँ बैठकर तपस्या कर रही है। बितनु ने उससे हाथी के बारे में पूछा तो उसने भी उसे भस्म कर देना चाहा, पर कर नहीं पाई। तब वह अपना परिचय देते हुए बोली, “मेरा नाम चूहावती है। बितनु को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही हूँ।” बितनु का परिचय पाकर उसने उसे पति के रूप में वरण किया और चूहे का रूप धरकर हाथी को ढूँढ़ लिया।

उसके बाद बितनु अपनी तीनों पत्नियों को लेकर अपने देश पहुँचा। राजा को हाथी दाँत लौटा दिया। राजा चकित रह गए। नाई की बुद्धि काम नहीं आई। वह बितनु के घर गया। वहाँ देखा कि बितनु अपनी तीनों पत्नियों के साथ ख़ूब मज़े में है। यह देखकर नाई को बितनु से बहुत ईर्ष्या हुई। उसने राजा के पास पहुँचकर बितनु को मारकर, उसकी पत्नियों को रानी बना लेने का सुझाव दिया। राजा नाई की बातों में आ गए और उसके कहे अनुसार एक खुले मैदान में चालीस सेर सरसों बिखेर दी और बितनु को सारी सरसों बीनकर लाने का आदेश दिया। सारी सरसों न बीन पाएगा तो फाँसी दे दी जाएगी, यह आदेश भी सुनाया। कबूतरवती ने यह बात सुनी। उसने अपने भाइयों को बुलाया। उन सबने आकर बहुत कम समय में सारी सरसों बीनकर एक जगह इकट्ठा कर दी और इस तरह बितनु बच गया।

राजा ने फिर नाई से परामर्श लिया। नाई बोला, “महाराज, इस बार एक नाद में बाघिन का दूध भरने के लिए आदेश दीजिए। वह बाघिन का दूध ना ला पाएगा, न ज़िंदा रहेगा।”

राजा ने बितनु को वैसा ही आदेश सुनाया। बाघवती ने सब सुना। उसने अपनी बाघिन बहनों से उसे नाद में दूध भर देने के लिए कहा। उन्होंने ऐसा ही किया और बितनु इस परीक्षा से भी उबर गया।

महाराज चिंता में पड़ गए। नाई से फिर परामर्श किया। नाई बोला, “इस बार एक गड्ढा खोदकर बितनु से कहिए कि वह उसके अंदर घुसकर आपके पूर्वजों से मिल आए। गड्ढे में से न तो वह निकल पाएगा और न ही आपसे लड़ पाएगा।” राजा ने बितनु को वही आदेश दिया। चूहावती ने यह बात सुनी तो अपने पति को सांत्वना देते हुए बोली, “आप चिंता मत करिए। मैं उस गड्ढे तक एक सुरंग खोदने के लिए अपने चूहे भाइयों से कह देती हूँ। उस गड्ढे के अंदर जाते ही सुरंग के रास्ते घर वापस पहुँच जाना। मैंने सुना था कि राजा ने अपने पिता को क़ब्र देते समय उनके साथ एक तलवार भी रख दी थी। मैं वह तलवार निकाल लाई हूँ और उसी के ज़रिए हमें राजा और उस दुष्ट नाई को मौत के घाट उतारना होगा।”

दूसरे दिन बितनु के राजदरबार में पहुँचते ही उसे रस्सी में बाँधकर कुएँ में डाल दिया गया। बितनु तुरंत सुरंग के रास्ते अपने घर पहुँच गया। दो दिन के बाद वह राजा के पास पहुँचकर बोला, “महाराज, मैं पातालपुर से लौट आया हूँ। आपके पूर्वज सब राज़ी-ख़ुशी हैं। पर उनकी आँखें आपको देखने के लिए तरस रही हैं और उनके पास नाई न होने के कारण उनकी मूँछ-दाढ़ी बढ़ गई है। उन्होंने अपने साथ एक नाई को लेकर आने के लिए कहा है। कहीं आप मेरी बात पर यक़ीन न करें, इसलिए आपके पिता ने मुझे अपनी तलवार दी है।

इतना कहकर बितनु ने वह तलवार राजा को दी। राजा ने अपने पिता की तलवार देखकर बितनु की बात पर विश्वास कर लिया। अपने पूर्वजों से मिलने के लिए उनका मन छटपटाने लगा। उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि नाई और उनको कुएँ के अंदर छोड़ा जाए। नाई ने बहुत मना किया, परंतु उसकी बातें राजा ने अनसुनी कर दीं। आख़िर में दोनों कुएँ में मर गए।

बितनु उस राज्य का राजा बना और अपनी तीनों रानियों के साथ सुख से रहने लगा।

(साभार : अनुवाद : सुजाता शिवेन, ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)

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