तू ठगिनी का ठग तो मैं जाति का ठग : लोककथा (उत्तराखंड)
Tu Thagini Ka Thag To Main Jati Ka Thag : Lok-Katha (Uttarakhand)
नत्थू और ग्वाणू दो ठग थे। उन दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। वे राह चलते लोगों से शर्त लगाकर उन्हें ठगा करते थे। वे एक दूसरे को भी ठगा करते थे।
एक दिन नत्थू ने अपनी पत्नी से कहा- ‘‘बहुत दिन हो गए, ग्वाणू को ठगे हुए। ऐसा करो घी का एक घड़ा (कमोली) तैयार करो। उसमें अन्दर नीचे की ओर गोबर रखो। ऊपर अच्छा दानेदार घी रखो। ‘‘
उसकी पत्नी ने घी का घड़़ा तैयार कर लिया। वह उसे लेकर ग्वाणू को ठगने के लिए चल दिया। उसे रास्ते में ग्वाणू मिल गया। नत्थू ने जब ग्वाणू को देखा उसकी नजर ग्वाणू के हाथ में लगे सोने के कड़े पर पड़ी। नत्थू आश्चर्य से बोला-‘‘ ग्वाणू ! तेरे हाथ में यह कड़ा ?‘‘
-‘‘ यह सोने का कड़ा है। चल तू भी क्या याद करेगा। यह सोने का कड़ा ले ले। तेरे पास जो भी छोटी-मोटी चीज है मुझे दे दे। ’’ ग्वाणू ने कहा।
-‘‘मेरे पास शुद्व घी की कमोली है। मेरी भैंस को ब्याहे कुछ ही दिन हुए हैं। मै यह घी तेरे लिए ही लाया हूँ। ‘‘ - नत्थू बोला।
-‘‘यार नत्थू! मेरा सोने का कड़ा तेरे घी से बहुत मंहगा है किन्तु दोस्ती में क्या नफा, क्या नुकसान ? मॅुंह से वचन निकल गया जो निकल गया। भाभी के लिए इस कड़े से नथुला बनाना।
नत्थू ग्वाणू को ठगकर घर आ गया। उसने अपनी पत्नी को कड़ा दिखाया तो वह खुश हो गई।
वह बोली- ‘‘ग्वाणू तुम्हारा दोस्त है। वह सुनार भी है। इस कड़़े को उसी से गलवाकर मेरे लिए नथुला बना दो। ‘‘
‘‘अरी! मैनें घी में गोबर मिलाकर ग्वाणू को ठगा है। मैं इस सोने के कड़े को उसी से कैसे गलवाऊँ ? कहीं उसने ठगकर यह कड़ा मुझसे फिर वापस मांग लिया तो।’’
‘‘तो ठीक है। दूसरे सुनार के पास इसे गलवाकर नथुला बना दो‘‘- नत्थू की बात सुनकर उसकी पत्नी बोली।
नत्थू उस कड़े को लेकर सुनार की दुकान में गया। सुनार (स्वर्णकार) ने उस कड़े की जांच करते हुए कहा- ‘‘इस कडे़ में दो आने सोने की पालिश है बाकी यह लोहे का बना है।‘‘
इधर ग्वाणू घर आकर अपनी पत्नी से बोला- ‘‘भाग्यवान! मैनें सोने की पालिश वाला वह लोहे का कडा नत्थू को दे दिया है। उसने इसे सोने का ही कड़ा समझा। बदले में उसने मुझे असली दानेदार घी दिया है। इस घी से गरमा गरम हलवा बनाकर मुझे खिला दो।‘‘
ग्वाणू की पत्नी ने हलवा बनाने के लिए घी निकाला तो उसे पता चला कि इसमें घी कम है और नीचे सारा गोबर भरा हुआ है।
उसने ग्वाणू को बता दिया कि नत्थू ने उसे घी में ठग दिया है।
सुनकर ग्वाणू अपनी पत्नी से बोला-‘‘ठगी में नत्थू और मैं एक से बढ़कर एक हैं। एक ठगिनी का (ठग माँ से जन्मा) ठग है दूसरा जाति का ठग है।
इस कथा के आधार पर उत्तराखण्ड के लोकजीवन में ‘तू ठगिनी का ठग तो मै जाति का ठग‘ कहावत प्रचलन में आ गई।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)