ट्रक ड्राइवर (इतालवी कहानी) : अल्बर्तो मोराविया

Truck Driver (Italian Story in Hindi) : Alberto Moravia

ट्रक ड्राइवर ज़्यादातर अच्छी ख़ासी कद-काठी वाले होते हैं मगर मैं ठहरा एक दुबला-पतला बेसुरा सा आदमी। पतली-लम्बी टांगें, पेट कमर से ऐसा सटा हुआ कि पैंट नीचे खिसकती रहती है।

यह भी कहा जाता है कि नाविक की तरह ट्रक ड्राइवर को भी औरतों के बारे में ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। ऐसा होने पर लगातार सफर के बीच उसके पागल होने का अंदेशा बना रहता है मगर मेरा दिमाग है कि हर समय औरतों के बारे में ही सोचता रहता है। औरत मेरी कमजोरी है।

यह जानते हुए भी कि मेरे लिए ट्रक ड्राइवर का काम मुश्किल था, मैं एक ट्रक ड्राइवर ही बनना चाहता था। किस्मत से एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी में काम भी मिल गया।

मेरा साथ देने के लिए 30 साल का जवान पलोम्बी था। उसमें जवानी का नामोनिशान नहीं था। भारी-भरकम चेहरा, गोल-मटोल गाल, छोटी-छोटी आँखें और गुल्लक की तरह छोटा सा मुंह था। वह निरा गंवार और बेवकूफ था। ट्रक की तरह उसमें भी दिमाग नाम की कोई चीज़ नहीं थी। हाँ, खाने के बारे में सुनकर उसकी आँखों में एकदम चमक आ जाती थी। एकदम पेटू था वह।

उन दिनों इटली के दो शहरों रोम और नेपल्स के बीच हर तरह का सामान ढोने का काम मिल गया था। एक दिन रास्ते में ट्रेसिना नामक जगह पर एक युवती ने हाथ के इशारे से हमें रोका और रोम तक जाने के लिए लिफ्ट मांगी।

हालांकि किसी को ट्रक में लिफ्ट देने की हमें सख्त मनाही थी लेकिन उसको देखने के बाद हमने उसको लिफ्ट देने का फैसला कर लिया। उसकी गर्दन लम्बी, छोटे से सिर पर भूरे बाल और गहरी नीली आँखें थीं। लम्बे शरीर के अनुपात में उसकी टांगें छोटी और थोड़ी मुड़ी हुई सी थी। चलते समय ऐसा लगता था मानो वह घुटने मोड़ कर चल रही हो। सुन्दर न होने पर भी उसमें एक अनजानी सी कशिश थी। मुझे पहली ही नज़र में इस बात का अहसास हो गया था।

सिस्टेर्ना के बाद जब पलोम्बी ट्रक चला रहा था, उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख कर उसे ज़ोर से दबा दिया। वेलेट्री तक ,जब मैंने पलोम्बी से ड्राइविंग ली, उसने मेरा हाथ नहीं छोड़ा । गर्मी के दिन थे, हम दोनों के हाथ पसीने से तर हो रहे थे। बीच-बीच में वह अपनी गहरी नीली आँखों से मेरी तरफ देख लेती थी। मुझे लग रहा था कि मेरी ज़िंदगी में अचानक खुशियों की बहार आ गयी है। अब तक ज़िंदगी मेरे लिए एक कंकरीली, सख्त, पतली सड़क के सिवा और कुछ नहीं थी।

सिस्टेर्ना और वेलेट्री के बीच एक जगह पर पलोम्बी टायरों को चेक करने के लिए नीचे उतरा। मैंने मौके का फायदा उठा कर उस युवती का चुम्बन ले लिया था।

उस दिन मेरे लिए उस के हाथों की गर्माहट और वह चुम्बन ही काफी था। रोम आ जाने पर नीचे उतरते हुए वह बहुत गर्मजोशी के साथ बोली-” आप दोनों का बहुत-बहुत धन्यवाद। आप सचमुच दयालु हैं। मेरा नाम इटालिया है।”

उसके बाद इटालिया नियम से हफ्ते में एक बार और कभी-कभी दो बार हम से ट्रेसिना तथा वापसी के लिए लिफ्ट लेने लगी थी। सुबह के समय वह हाथ में कोई पार्सल अथवा सूटकेस ले कर दीवार के पास हमारा इंतज़ार कर रही होती।

जिस समय पलोम्बी ट्रक चला रहा होता था उस समय इटालिया पूरे रास्ते में मेरा हाथ पकड़े रहती थी। पलोम्बी से नज़रें बचाकर उसके न चाहने पर भी मैं कभी-कभी उसका चुम्बन ले लेता था।

सच तो यह है कि मैं मन ही मन उससे प्यार करने लगा था। लम्बे अरसे के बाद मैंने किसी औरत से प्यार किया था। पलोम्बी की नींद का फायदा उठा कर ट्रक चलाते-चलाते मैं उससे धीमी आवाज़ में बातें करता लेकिन क्या बातें करता था यह अब मुझे बिल्कुल याद नहीं। मुझे तो बस इतना याद है कि समय पंख लगा कर उड़ रहा था।

ट्रेसिना की वह सुनसान पथरीली सड़क जो कभी रुकने का नाम नहीं लेती थी, अब जादू से रुक सी जाती थी। मैं ट्रक की रफ्तार कम कर देता था फिर भी सफर का आखिरी पड़ाव आ ही जाता था और इटालिया चली जाती थी।

रात के समय उसके साथ यह सफर बहुत ही सुहावना लगता था। मेरा एक हाथ स्टेयरिंग पर होता था तो दूसरा इटालिया की कमर के इर्द-गिर्द। सामने से आती कारों की जलती-बुझती बत्तियों का ज़वाब देने के लिए मैं अपने ट्रक की बत्तियाँ जला देता था। मैं उनके ज़रिये सब को बताना चाहता था कि मैं इटालिया से प्यार करता हूँ,वह भी मुझ से प्यार करती है।

जहां तक पलोम्बी का प्रश्न है, वह या तो हमारे प्रेम से अनजान था या फिर जान-बूझ कर अनजान बने रहना चाहता था।

प्यार के आवेश में एक दिन मैंने ट्रक के सामने वाले शीशे पर सफ़ेद पेंट से लिख डाला था ‘ वाइवा-ला-इटालिया’ यानि इटालिया दीर्घायु हो। पलोम्बी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गयी ,मानो कह रहा हो-‘वाह! तुझे भी क्या हूर मिली है!”

कई महीनों तक यह सब चलता रहा। एक दिन हमेशा की तरह इटालिया को ट्रेसिना में उतार कर नेपल्स पंहुचे तो आदेश मिला कि सामान उतार कर फौरन रोम लौट आओ। मुझे बहुत गुस्सा आया क्योंकि हमने अगली सुबह इटालिया से मिलने का वायदा कर रखा था। क्या करते, लाचार थे। मालिकों का हुक्म तो टाला नहीं जा सकता था।

सामान उतार कर मैंने दोबारा स्टेयरिंग संभाल लिया। थका होने के कारण पलोम्बी तो ट्रक में बैठते ही खर्राटे भरने लगा था।

कुछ दूर तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा फिर मुझे भी झपकी सी आने लगी। खुद को जगाए रखने के लिए मैंने इटालिया के बारे में सोचना शुरू कर दिया। जितना मैं उसके बारे में सोचता,उतना ही उसकी प्यारी-प्यारी बातें मेरे दिमाग में जंगल के पेड़ों की शाखाओं की तरह घनी होती गयी। आखिर में इतनी घनी हो गयी कि एकदम घुप्प अंधेरा हो गया । एक झटके के साथ मुझे होश आया। ट्रक सड़क से उतर कर नीचे गड्ढे में जा गिरा था। ट्रक की रफ्तार कम थी इसलिए दोनों में से किसी को चोट नहीं लगी थी। अंधेरी रात थी। आसमान में तारे टिमटिमा रहे थे। वक्त अच्छा था। हम ट्रेसिना से ज़्यादा दूर नहीं थे।

पलोम्बी भी झटके से जाग गया, बोला-” अब कौन सी नयी मुसीबत आ गयी है?” देखने के बाद कहने लगा- ” मदद के लिए हमें किसी को ट्रेसिना से बुलाना पड़ेगा लेकिन वहाँ से मदद आने में काफी समय लग जाएगा। मुझे तो बहुत ज़ोर की भूख लगी है। पास ही में कोई ढाबा मिल जाए तो पहले खाना खा लेते हैं।”

हम दोनों पैदल किसी ढाबे की तलाश में निकल पड़े। कुछ ही दूर जाने पर टिमटिमाती रोशनी दिखाई दी। मन में थोड़ी आस बंधी। हम तेज़ी से उस तरफ चल दिये। वह कोई ढाबा ही था जो बंद होने जा रहा था। पास जा कर देखा कि ढाबे के दरवाज़े बंद हो गए थे। दरवाज़े की झिर्री से अंदर झाँकने की कोशिश की तो अंदर का नज़ारा देख कर आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। इटालिया एप्रन बांधे झाड़ू से सफाई करने में जुटी थी और कमरे के बिल्कुल आखिर में काउंटर के पीछे एक बदसूरत कुबड़ा खड़ा था। वह बड़ी ललचाई नज़रों से इटालिया को घूर रहा था। तभी उसने इटालिया से कुछ कहा। इटालिया काम छोड़ कर उसके पास आ गयी और अपनी बाहें उस कुबड़े की गर्दन में डाल कर उसका चुंबन ले लिया।

उसके बाद वह कमरे में ऐसे घूमने लगी जैसे खुशी से नाच रही हो। यह देख कर मेरी भूख एकदम मर गयी थी। मुंह का स्वाद कसैला हो गया था। अपना गुस्सा छिपाने के लिए मैं बोल पड़ा-” भला यह बात कौन सोच सकता था?”

पलोम्बी के चेहरे पर एक अजीबोगरीब सा भाव था जिसे मैं समझ नहीं पाया। दोनों ही बिना कुछ खाए-पिए, थके-हारे से मकैनिक को ले कर ट्रक पर आ गए थे। पूरी रात ट्रक ठीक करने में बीत गयी, सुबह होते ही हम रोम की तरफ रवाना हो गए। अचानक पलोम्बी ने बोलना शुरू कर दिया-” तुमने देखा, उस बेवफा इटालिया ने मेरे साथ क्या किया है?”

मैं एकदम हैरान। किसी तरह पूछा-” तुम क्या कहना चाहते हो?”

वह धीरे से उदास स्वर में बोलता गया-” सफर के बीच वह पूरा समय मेरा हाथ पकड़े रहती थी। मैने उसे बता दिया था कि मैं उससे शादी करना चाहता हूँ। एक तरह से मेरी सगाई हो गयी थी—और फिर उमने देखा, वह कुबड़ा—।”

उसकी बातें सुनकर मेरी सांस रुक सी गयी। मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। पलोम्बी था कि दिल की भड़ास निकालने में लगा था-” मैने उसको ढेरों सुंदर, कीमती उपहार दिये थे, एक नेकलेस, सिल्क का स्कार्फ, बढ़िया चमड़े के जूतों की जोड़ी और पता नहीं क्या-क्या दिया। मैं तुमसे अपने दिल की बात बता रहा हूँ। मैं सचमुच ही उससे प्यार करने लगा था। वह मेरे लिए बिल्कुल ठीक लड़की थी। वह बेवफा—-।”

मैं भी तो इटालिया के बारे में ही सोच रहा था। इटालिया ने रेल के टिकट के पैसे बचाने के लिए हम दोनों को बेवकूफ बनाया था। पलोम्बी की बातें सुन कर मेरा खून भी खौल रहा था, और वह वही सब कह रहा था जो शायद मैं कहना चाह रहा था। उसे बात करने का सलीका नहीं था इसलिए वे सब बातें उसके मुंह से भद्दी सुनाई पड़ रही थीं।

तभी मुझे न जाने क्या हुआ , मैं बड़ी बदतमीजी के साथ उससे बोला-” चुप रहो। तुम्हारी बातें सुनते-सुनते बहुत देर हो गयी। गड़े मुर्दे मत उखाड़ो। मैं सोना चाहता हूँ।”

वो बेचारा अचकचा कर बोला-” सच है, कुछ बातों से सभी को तकलीफ होती है।” उसके बाद वह पूरे सफर में बिल्कुल नहीं बोला।

कई महीनों तक पलोम्बी बहुत उदास रहा। मेरे लिए भी वही पहले वाली अंतहीन कंकरीली सड़क थी। बेजान, भावनाशून्य, पत्थरों से बनी सड़क जिसे दिन में दो बार निगल कर थूकना पड़ता था। इटालिया ने नेपल्स के रास्ते में बीयरबार खोल लिया था। उसका नाम था ‘ट्रक ड्राइवर बीयरबार’ । सचमुच खूबसूरत जगह थी यह। उसे देखने के लिए एक सौ मील का सफर बुरा नहीं था। ज़ाहिर है कि हम वहाँ पर कभी नहीं रुके थे। काउंटर के पीछे खड़ी इटालिया को उस कुबड़े के हाथों में शराब की बोतलें और ग्लास पकड़ाते देख कर बहुत तकलीफ होती थी। आखिरकार मैने वह नौकरी ही छोड़ दी। पलोम्बी आज भी उस ट्रक को, जिसके सामने वाले शीशे पर ‘वाइवा-ला-इटालिया’ लिखा है’ उसी सड़क पर दौड़ा रहा है।

(अनुवाद - चन्दन पाण्डेय)

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