तोता और राजा : आदिवासी लोक-कथा
Tota Aur Raja : Adivasi Lok-Katha
एक राजा था। उसके महल के उपवन में एक आम का पेड़ था। उस आम के पेड़ पर एक तोता रहता था। एक बार तोते को कहीं से सोने की एक अशर्फ़ी मिल गई। तोता अशर्फ़ी का भला क्या करता? इसलिए तोते ने वह अशर्फ़ी लाकर राजा को दे दी।
तोते को लगा कि राजा उसे धन्यवाद देगा लेकिन राजा ने उससे कुछ नहीं कहा। इसके बाद राजा जब अपनी राजसभा में पहुँचा तो अपने सभासदों को अशर्फ़ी दिखा-दिखाकर कहने लगा कि 'ये देखो, मेरे पास कितनी सुंदर और कितनी क़ीमती अशर्फ़ी है।
‘यह आपको कहाँ से मिली?' एक सभासद ने पूछा।
‘यह मेरे पुरखों के समय से मेरे पास है।’ राजा ने झूठ बोलते हुए कहा।
जब इस बात का पता तोते को चला तो उसे बहुत क्रोध आया कि राजा ने सभासदों को यह क्यों नहीं बताया कि यह अशर्फ़ी एक तोते ने दी है। तोते ने राजा के पास जाकर उससे झूठ बोलने का कारण पूछा।
‘यदि मैं कहता कि तुमने मुझे यह अशर्फ़ी दी है तो लोग मुझ पर हँसते कि मैंने एक तोते से अशर्फ़ी ले ली।’ राजा ने कहा।
‘लेकिन सच तो यही है।’ तोता बोला।
‘इससे क्या होता है? जो मैं कहूँगा वही सच माना जाएगा।’ राजा इठलाकर बोला।
‘लेकिन मैं सब को सच बताकर रहूँगा। क्योंकि जब मैंने आपको यह अशर्फ़ी दी है तो आपको मुझे इसका श्रेय देना ही चाहिए, भले ही मैं तोता हूँ तो इससे क्या होता है? व्यक्ति अपने कर्म से बड़ा होता है, जाति, धर्म या समुदाय से नहीं। आप राजा हैं, आपको यह बात समझनी चाहिए।’ तोते ने राजा से कहा।
‘ठीक है, तुमसे जो बने सो कर लो। तुम्हारा कहा कोई नहीं मानेगा ।’ राजा हँसकर बोला।
राजा के व्यवहार से क्षुब्ध होकर तोता अपने घोंसले में लौट आया। कुछ देर बाद तोता पेड़ की सबसे ऊँची फुनगी पर बैठ गया और ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगा—
‘बात सुनो सब करके ग़ौर,
राजा ठहरा पक्का चोर।
उसने एक अशर्फ़ी पाई
जो तोते ने उसे दिलाई
राजा अब कहता है अपनी
जो है एकदम चीज़ पराई...
राजा के नौकरों ने तोते का गाना सुना तो भाग कर राजा के पास पहुँचे और तोते के गाने के बारे में उसे बताया। राजा समझ गया कि तोता सबको असली बात बताए बिना नहीं मानेगा। उसने नौकरों को आदेश दिया कि जाकर उस तोते को मार डालें।
नौकर राजा का आदेश पाकर तोते को मारने जा पहुँचे। मगर तोते को मारना आसान नहीं था। एक तो वह सबसे ऊँची डाल की फुनगी पर बैठा था और उस पर यहाँ-वहाँ फुदक जाता था। तोते ने देखा कि राजा ने उसे मारने के लिए अपने नौकर भेजे हैं तो वह और ज़ोर-ज़ोर से गाने लगा—
‘बात सुनो सब करके ग़ौर,
राजा ठहरा पक्का चोर।
उसने एक अशर्फ़ी पाई
जो तोते ने उसे दिलाई
राजा अब कहता है अपनी
जो है एकदम चीज़ पराई
मैंने जो ये बात बताई
राजा ने डर फ़ौज बुलाई
इक छोटे से तोते को भी
ख़ुद न मार सका यह भाई...
राजा के नौकरों ने तोते का गाना सुना तो भाग कर राजा के पास पहुँचे और तोते के गाने के बारे में उसे बताया। राजा को बहुत ग़ुस्सा आया। उसने स्वयं जाकर तोते को मारने का निश्चय किया। वह ढाल-तलवार लेकर निकला। तोते ने देखा कि राजा उसे मारने के लिए तलवार और ढाल लेकर आया है तो वह और ज़ोर-ज़ोर से गाने लगा—
‘बात सुनो सब करके ग़ौर,
राजा ठहरा पक्का चोर।
उसने एक अशर्फ़ी पाई
जो तोते ने उसे दिलाई
राजा अब कहता है अपनी
जो है एकदम चीज़ पराई
मैंने जो ये बात बताई
राजा ने डर फ़ौज बुलाई
इक छोटे से तोते को भी
ख़ुद न मार सका यह भाई
मैंने जब यह याद दिलाई
आया है वह ले तलवार
अब होगी उसकी जगत-हँसाई...
इस पर नौकरों ने राजा को समझाया कि ‘महाराज, एक छोटे से तोते को मारने के लिए ढाल-तलवार की क्या आवश्यकता? उसे तो गुलेल से मार गिराया जा सकता है। राजा को नौकरों की बात पसंद आई। उसने गुलले उठाई और जा पहुँचा पेड़ के नीचे।
तोता दिखते ही राजा ने गुलेल से निशाना साधा और गुलेल चला दी। तोता तो फुदक कर दूसरी डाल पर जा बैठा लेकिन गुलेल का कंकड़ डाल से टकराकर पलट कर राजा को आ लगा। कंकड़ लगते ही राजा के प्राण पखेरू उड़ गए। इस प्रकार नन्हें से तोते ने राजा को उसके झूठ का दंड दे दिया और सबको सिखा दिया कि किसी को भी अपने से छोटा मानकर उसके अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए।
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)