Tootata Tara (Hindi Story) : Ramgopal Bhavuk

टूटता तारा (कहानी) : रामगोपाल भावुक

रोहित तो करवट बदलकर सो गये थे लेकिन मैं जाग रही थी। खिड़की के रास्ते तारों भरा आसमान चमक रहा था। मेरे जन्म के समय भी ऐसे ही तारों भरे असमान से मेरे पिता जी को टूटता तारा दिखा था इसलिये ही उन्होंने मेरा नाम तारा रख लिया। वे यह मानते हैं कि जब तारा टूटता है तब किसी नये उद्देश्य के लिये ही उस आत्मा का जन्म होता है ,यह जन श्रुति आदिकाल से चलती चली आ रही है।

तारा टूटने की जन श्रुति से मैं जीवन भर अपने को जोड़ने में लगी रही। हम दो भाई बहिन है। घर में खेती बाड़ी अच्छी है, हमारे लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा में कोई कमी नहीं रहीं। रानू भइया बड़े हैं, इधर उनकी एयरटेल कम्पनी में नौकरी लग गई तो बड़े- बड़े घरों के लड़की बाले, उनका ब्याह करने के लिये चक्कर लगाने लगे। हमें भी उनका ब्याह करना उचित लगने लगा। जो रिश्ता अनुकूल लगा, मैं ही पिताजी के साथ उस लड़की को देखने गई थी।

मैं अपनी सुन्दरता से मन ही मन उसकी तुलना करके उसके अंग- प्रतिअंगों का निरीक्षण करने लगी। उसकी कद-काँठी, सुगठित बदन और हँस मुख व्यक्तित्व देखकर मैं उसकी ओर आकर्षित हो गई।

इसका निर्णय करना पिता जी ने मुझ पर ही छोड़ दिया। मैं सोच रही थी कहीं मैं निर्णय लेने में गच्चा न खा जाऊँ। मैंने अपना पूरा विवके लगाया और कह दिया -‘यह लड़की मुझे पसन्द है।’

फिर क्या था तत्काल उसकी गोद भर दी गई।

घर आकर हमने सोचा, यह लड़की हमारे इस पुराने तरीके से बने घर में कैसे रहेगी? मम्मी -पापा ने निर्णय लिया, न हो तो शादी से पहले हम अपना घर, नये तरीके से बनना डालें।

अगले ही दिन से घर के निर्माण का कार्य चालू हो गया और ब्याह के महूर्त से पहले तक बनवाकर, उसे भाभी के स्वागत में तैयार कर लिया। जिसमें खेती-किसानी से मिला और घर,खर्च से बचा, अधिकांश पैसा जो मेरे ब्याह के उद्देश्य से बचाकर रखा था, स्वाह हो गया। पापा, मम्मी से कह रहे थे तारा के ब्याह के समय भगवान और किसी तरह डोर लगायेगा।

मकान का काम निपटते हीं अपने पण्डित जी से महूर्त निकलवाकर भैया का ब्याह हो गया।

सारा घर भाभी की चका-चौध में खो गया। मम्मी- पापा भाभी को सुना- सुनाकर अपने बड़ेपन की बातें हाँकने लगे। वे भी अपने को बड़े घर की बहू समझने लगीं। इस तरह भाभी की इच्छायें बढ़ने लगीं। वे रोज- रोज कभी सोने के झुमकों ,और कभी हार की नई-नई फरमाइसें करने लगीं। मम्मी,पापा और भैया का एक ही लक्ष्य बन गया, कैसे भी उसकी इच्छाओं की तृप्ति की जाये! इस क्रम में धीरे-धीरे घर पर कर्ज बढ़ने लगा।

मैंने प्रथम श्रेणी से बी. ए. पास करली। आगे जीवन व्यवस्थित करने के लिये मैंने वेचलर ऑफ ऐजूकेशन की ट्रेनिंग करना चाही,पर घर की स्थिति बी. एड. की फीस चुकता करने में समर्थ नहीं थी, मैं कुछ कहती तो मम्मी- पापा कह देते, तुम्हारी ही पसन्द की भाभी है, इसलिये मैंने मन मारकर हिन्दी से एम. ए. करने का फार्म डाल दिया। मैं कॉलेज जाने लगी।

मेरा सुगठित बदन और चंचल स्वभाव देखकर अच्छे-अच्छे आहें भरने लगे। मैं छिपी कनखियों से देखकर उनके मनोंभाव भांपने की कोशिश करने लगी।मैंने देखा कक्षा के तमाम लड़कों के बीच एक लड़का ऐसा है जो भरे पूरे व्यक्तित्व का है। खिलाड़ियों जैसा फुर्तिला बदन और हिन्दी के तमाम कवियों और कहानीकारों के बारे में उसे गजब की जानकारी थी। यूं तो रोहित मेरे साथ ही हिन्दी में एम. ए. कर रहा था, लेकिन अपने अध्ययन की बदौलत वह कॉलेज के प्रोफेसरों से उन्नीस नहीं लगता था। पढ़ाई के सिलसिले में मेरे घर भी चक्कर लगा जाता। रीतिकाल का रसमय साहित्य और आधुनिककाल की बोल्ड कविताओं ने हमारा लिहाज औा संकोच विल्कुल मिटा दिया। हम दोनों निकट आते चले गये। हमारे मन की स्थिति ऐसी बनी कि हम एक दूसरे के बिना रह न पा रहे थे। उम्र के बहाव ने हमें और अधिक नजदीक ला दिया। इसलिये हमने कोर्ट मैरिज कर ली।

पापा- मम्मी जातिवाद के पोषक थे। उन्हें यह बात रास नहीं आई। मुझे घर छोड़ना पड़ा। रोहित के सारे समाज ने मेरा भरपूर स्वागत किया। स्वागत का कारण मैं समझ रही थी कि मैं बड़ी जाति की हूँ, इसलिये सभी मेरे इस दुस्साहस के लिये मेरा स्वागत कर रहे हैं। इससे उनके अन्दर बसी हीन भावना को संतुष्टि मिल रही है।

मेरे मम्मी- पापा ही नहीं बल्कि हमारे समाजशास्त्री यह खुली बात नहीं कह पाते कि मनुष्य प्रजाति में दलितवर्ग का उदय पराजितों के मध्य से हुआ है। विजेताओं ने हारे हुए हर जाति के लोगों को कपडें बुनने, सिलने,बर्तन बनाने से लेकर मलमूत्र साफ करने तक के काम में जबरन लगा दिया।

युवा अवस्था के जोश में दो तीन साल तो ऐसे गुजर गये कि उनका पता ही नहीं चला। पतिदेव के अच्छे पढ़े- लिखे होने पर भी कहीं नौकरी नहीं लगी तो आर्थिक तंगी ने घेर लिया। मुझे प्रायवेट स्कूल में शिक्षक का कार्य करना पड़ा। रोहित घर-घर जाकर दिन-रात टयूशन पढ़ाने में जी तोड़ मेहनत करने लगा।

रोहित के माता-पिता अपने इकलौते पुत्र की संतान होने की प्रतीक्षा करते-करते थक गये। एक दिन मेरी सासू माँ सुमन जी मेरे पास आकर बैठ गई और प्यार भरी भाषा में बोली-‘बहू, मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि ब्याह को तीन साल हो गये, अभी तक बच्चे का डौल-डाल नहीं दिखा। तुम्हारी भाभी के तो इतने दिनों में दो बच्चे हो गये। तुम कोई दवा वगैरह लेती होगी जिससे बच्चा न हो?’

मुझे कहना पड़ा-‘नहीं तो, माँ जी, मैं ऐसी किसी दवा का प्रयोग नहीं करती।’

‘तो फिर बच्चे क्यों नहीं हो रहे हैं?’

मुझे एक ही उत्तर सूझा, तो मुँह से शब्द निकले-‘यह तो मगवान की मर्जी ही है।’

‘ अरे! बहू फिर तो किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए, इसमें देर करना ठीक नहीं है।’

मैंने उन्हें संन्तुष्ट किया-‘जी, मैं उनसे आज ही कहती हूँ।’ यह कह कर काम के बहाने उनके पास से उठकर चली आई थी।

दूसरे दिन मेरे ससुर जी ने पास बुलाकर प्यार से समझाया-‘बहू ,घर में कोई बच्चा हो तो उसके सहारे हमारा समय आनन्द से कटे। इससे ज्यादा हम तुम्हें कैसे समझायें?’

मुझे पिताजी की बात याद हो आई, जब तारा टूटता है तब किसी नये उद्देश्य के लिये ही उस आत्मा का जन्म होता है । रात में छत पर जाकर मैं बैठ जाती और टकटकी लगाकर टूटता तारा देखने की प्रतीक्षा करती रहती। कभी कोई टूटता तारा देखती तो अपने पेट पर हाथ फेरने लगती।

समय गुजरते, मेरा चित्त भी बच्चे के लिये व्याकुल रहने लगा। एक दिन मैंने रोहित से कहा-‘मैं चाहती हूँ, अपने बच्चा होता। मुझे कहीं किसी डॉक्टर को दिख देते। अपने ब्याह को अब तो चार साल से अधिक हो गये। कहीं मुझ में कोई कमी तो नहीं है। बड़े- बूढ़े कहते हैं, शुरू-शुरू में बच्चे हो गये तो हो गये बाद में टांपते रह जाते हैं। ’

रोहित का मन भी बच्चे के लिये लालायित रहने लगा था। एक दिन वह मेरे से बोला-‘ठीक है अपने शहर में एक ही तो अच्छी डॉक्टरनी माथुर है। उन्हें ही कल तुम्हें दिखला लाता हूँ। मुझे भी लग रहा है कहीं कुछ कभी तुम में ही है। मेरे मैं कभी होती तो मैं ही तुम से दूर भागता। तुम्हें संन्तुष्ट ही नहीं कर पाता। बोल- तुम मुझ से संतुष्ट रहती हो कि नहीं।’

उनके कन्धे पर हाथ रखकर प्यार प्रदर्शित करते हुए मैंने उन्हें समझाया-‘‘ हो सकता है जी, मुझ में ही कुछ कमी हो, इसीलिये तो मैं अपने को ही डॉक्टरनी को दिखाने की कह रही हूँ।’

दूसरे दिन हम दोनों डॉक्टर.मेडम माथुर के यहाँ जा पहुँचे। मैंने उनसे कहा-‘मेरा नाम तारा है।’

वे बोलीं-‘तुम्हारा नाम सुना है। मैं तुम्हें पहचान गई। अखबरों में तुम्हारा फोटो भी छपा था। तुम्हारे प्रेम विवाह की चर्चा पढ़ चुकी हूँ। कहें, आपको क्या समस्या है?’

मैंने कहा-‘ मैडम, मेरे विवाह को चार वर्ष से अधिक हो गये हैं। अभी तक हमारे बच्चा नहीं हुआ है।’

इसके बाद उन्होंने मेरा अपनी तरह से परीक्षण किया और बोलीं-‘इस मामले में जाँचें तो पति-पत्नी दोनों को ही कराना पड़तीं है। मैं जाँचें लिख देतीं हूँ। कल तुम नहीं आ पाओं तो कोई बात नहीं है। तुम्हारे पति आकर मुझे जाँचे दिखा जायें। जाँच के बाद ही मैं दवा लिख दूंगी। आप लोग चिन्ता नहीं करें, जल्दी ही आप लोग माँ- बाप बनेगें।

हम दोनों खुशी- खशी पथौलौजी पर अपने टेस्ट कराते हुए लौट आये।

दूसरे दिन रोहित जाँच की रिपोटें डॉक्टर माथुर को दिखाने गये और उनसे विस्तृत बातचीत हुई। घर आते ही बोले- ‘टेस्ट में आया है कि तुम कभी माँ नहीं बन पाओगी।’

मैंने कहा-‘ रिपोर्ट तो देखें - क्या लिखा है उनमें? ’

वे बोले-उनमें मैंने यही लिखा देखा तो मैंने गुस्से मैं दोनों रिपोर्ट फाड़कर फेंक दीं। जब कुछ होना ही नहीं है तो वे रिपोर्ट हमारे किस काम की?’

मैं मन मार कर रह गई। लम्बा समय गुजर गया।

मैं रात में तारों की ओर देखती रहती शायद कोई तारा टूटता दिख जाये। इसी सोच में मुझे फीवर आ गया। मैं उन्हीं डॉक्टर मेड़म के पास इलाज कराने अकेली ही पहुँच गई। वे मुझे पहचान गई । बोली-‘ तारा, हम तुम्हारे बारे मैं क्या कर सकते हैं? तुम्हारी रिपोर्ट में वाकई कोई कमी नहीं है किन्तु तुम्हारे पति में कमी है रिपोर्ट के अनुसार तुम उनसे कभी माँ नहीं बन पाओगी। अब तो तुम किसी दूसरे की सीमन लेकर माँ बन सकती हो।’

यह सुनकर मैं सन्न रह गई।

मैंने अपना संन्तुलन बनाये रखा।

रोहित से कुछ कहना उचित नहीं था। मम्मी-पापा बच्चे की रट लगाये थे। कहीं इस देवता की पूजा करते, कहीं किसी देवी पर प्रसाद चढ़ाते। कहीं किसी तांत्रिकों को ले आते तो इससे मैं उन पर झुझला जाती।

इधर सासू माँ ने मुझे दोष देना शुरू कर दिया-‘ये लड़की, हमारे लड़के पर ऐसी लट्टू हुई कि फिर इसने अपने माँ बाप और अपने समाज की इज्जत की भी परवाह नहीं की। अरे!आगे-पीछे कुछ नहीं देखा। मेरे भोले- भाले लड़के को चंगुल में फंसा लिया। वो सीधा- सच्चा इसके जाल में उलझ गया। इसके घर के राजी नहीं थे तो भी घर से भागकर कर कोर्ट मैरिज करली। पूरी ठल्ल है ठल्ल। न ब्याने की न वर्धने की। ये हमारे किस काम की। इसके आने से हमारी तो किस्मत ही फूट गई। ये हमारे लड़के का पीछा छोड़ जाये तो हम अपने लड़के का कहीं दूसरा ही ब्याह करलें।’

सुबह-शाम उठते-बैठते सासू माँ का रोज- रोज यही रोना-धोना शुरू हो गया, पर मैं उनके लड़के की कमी को कई बार सोचने पर भी व्यक्त न कर पाई। जब-जब कहने को होती जाने क्यों मुँह में ताला पड़ जाता।

हमारे स्कूल के स्टाफ शिक्षक मयंक राही एक अच्छे कवि थे, उनकी कवितायें प्रतीकों के माध्यम से श्रंगार रस में सराबोर हुआ करतीं थीं। वे जब भी नई कविता लिखते, हमारे साथियों को इंटरवल के समय जरूर सुनाते। यों बहुत दिनों से मुझे उसकी कवितायें सुनने का शौक हो गया था। कवितायें सुनने के बाद जो भी जी में आता कविताओं के बारे में कह देती। यों उनके नजदीक आती चली गई।

एक दिन हम दोनों अकेले अपने कक्ष में बैठे थे, वे बोले-‘ तारा जी आप बुरा न माने तो क्या बात कहूँ ?

मैंने सहज में ही कह दिया-‘जी कहें।’

वह बोले-‘ आपके ब्याह को चार साल से अधिक व्यतीत हो गये हैं। अभी तक आपने कोई खुश- खबरी नहीं दी। कहीं आप दोनों में कोई कमी तो नहीं है। अरे! कमी हो तो हम कब काम आयेंगे? चलो आपको डॉक्टर को ठीक से दिखालाते हैं।’

‘तुम्हें यह करने की जरूरत नहीं है। हम दोनों चौक करा चुके हैं। उनमें कोई कमी नहीं है। हम अपनी आर्थिक स्थिति के कारण रुके हुए हैं। थोडा़ व्यवस्थित हो जायें तब कर लेंगे।’

मैं यह कह कर वहाँ से उठकर चली आई थी, लेकिन उसकी बात रह- रहकर मेरे मन में आ रही थी। मयंक राही कितने खुब सूरत व्यक्ति हैं। फिल्म अभिनेता की तरह सदा सजे- संबरे रहते हैं। मुझसे कितने आदर के साथ बात करते हैं। मेरी जरा सी तकलीफ देखकर परेशान हो जाते हैं। वे कह तो नहीं ें पा रहे लेकिन मेरी अन्तस् चेतना कहती है कि वे मुझसे प्रगाढ़ प्रेम करने लगे हैं।

क्यों न मैं उनसे प्रेम करके देख ही लूँ। अगर हम लोग संयोग से किसी दिन कभी निकट हो बैठे तो मेरी संतान की लालसा पूरी हो जायेगी।

अरे! मैंने क्या- क्या सोच लिया। ऐसा हो भी गया तो रोहित मुझे घर से निकाल ही देगा।

सम्भव है अपनी कमजोरी के कारण चुप- चाप ही रह जाये। उस के माता-पिता की आँखें सिरा जायेंगीं।

उन दिनों मैं इसी द्वन्द में जी रही थी।

उन्हीं दिनों टेलीविजन पर ‘महिमा शनिदेव की’ पौराणिक सीरियल आ रहा था। रात आठ बजे से शुरू हो जाता। मैं उसे नियमित देखने लगी। एक दिन मैं यही सीरियल देख रही थी कि उसी समय रोहित भी आकर उसी सीरियल को देखने लगा- दिखाया गया कि देवताओं के गुरुदेव बृहस्पति की साख चरम पर थी। सभी देवताओं के साथ चन्द्रमा भी बृहस्पति का शिष्य था। उसका गुरुदेव के घर में अन्य शिष्यों की तरह आना-जाना शुरु था। चन्द्रमा की निगाह गुरु की पत्नी तारा पर पड़ी। वह उनकी अतिसय सुन्दरता को देखते ही रह गया। लगता था किसी देवलोक की अफसरा ने बनवासी स्त्री के कपड़े पहन लिये हैं। रूप की ज्वाला जगमगा रही थी। प्रेम विव्हल चन्द्रमा ने उनसे अपने प्रेम का इजहार किया तो तारा ने उसका विरोध किया।

चन्द्रमा ने तारा को सम्मोहन शक्ति से अपने बस में कर लिया और मनमानी करने लगा। बृहस्पति को पता लगा तो वे आग बबूला हो गये। चन्द्रमा ने उन्हें भी अपने सम्मोहन के पॉस में बाँध लिया, इसलिये वे सब कुछ टुकुर- टुकुर देखते रहकर भी उसका विरोध नहीं कर पाये, बल्कि विक्षिप्त से हो गये।

चन्द्रमा की पत्नी रोहिणी को जब यह बात पता चली, उन्होंने चन्द्रमा को समझाया-‘वे आपकी गुरुमाता है, आपकी माँ के समान हैं। यह बहुत बड़ा पाप है, आप यह ठीक नहीं कर रहे हैं।’

चन्द्रमा बोला- मैं उन्हें एक स्त्री के रूप में देखता हूँ। इससे अधिक वे मेरे लिए कुछ नहीं हैं।’

सीरियल में दिखाया गया कि साढ़े साती खत्म होते ही शनिदेव का न्याय चक्र घूमा, देवी तारा सम्मोहन से मुक्त हो गईं और चन्द्रमा की हरकत देखकर उनके तन-बदन में आग लग गई। उन्होंने चन्द्र को डाँटते हुए कहा-‘नीच कामुक चन्द्र तुम्हारा बुरा हो। मैं शाप देती हूं, तुम्हारी हमेशा-हमेशा के लिये सम्मोहन शक्ति चली जाये। जिससे तुम फिर कभी किसी के साथ ऐसा न कर सको।’

गुरु माता के शाप से चन्द्रमा की हमेशा-हमेशा के लिये सम्मोेहन शक्ति चली गई। गुरुदेव बृहस्पति का भी नशा टूटा। वे सम्मोहन से बाहर आये। उन्हें सत्याता का अहसास हुआ कि तारा और चन्द्र के प्रकरण में पत्नी तारा का कहीं भी कोई दोष नहीं है। क्यांकि चन्द्र के महा सम्मोहन जाल में वे खुद भी बंध गये थे।

सहसा बृहस्पति को लगा कि एक सुन्दरी स्त्री की नजर से देखने पर चन्द्रकी मुखाकृति और साज-सज्जा बृहस्पति से हजार गुना मोहक दिखती है।

उन्होंने तारा को पत्नी के रूप में ही अपना लिया।

उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी गर्भ से है। वे फिर द्वन्द में फस गये थे। इसी उधेड़बुन में तारा के गर्भ से बुध का जन्म हो गया।

अब सवाल यह था कि बुध का पिता किसे कहा जायें?

बृहस्पति ने सारी बातें समझते हुए वुध की जन्म कुण्डली में पिता की जगह अपना नाम लिख दिया।

बृहस्पति द्वारा बनाई गई जन्म कुण्डली का दश्य टेलीविजन पर स्थिर हो गया था और एक मिनिट बाद ही वहाँ विज्ञापन आने लगा था। तारा मन ही मन सोच रही थी कि सीरियल की आज की कहानी के अंश को निर्माता की टीम ने जगमगाती बिजलियों, अभिनेताओ की बदलती मुखमुद्राओं और अंग संचालन के कौशल से बहुत प्रभावशाली ढंग से फिलमाया है।

रोहित उस सीरियल के प्रसंग को देखकर खिसियाते हुये बोला-‘ तुम बड़ी विचित्र हो कि ऐसे रद्दी सीरियल देखती रहती हो।’

मैंने थोड़ी कड़क आवाज में कहा-‘आज के युग में ऐसी घटना होती तो पति देव पत्नी की गरदन ही काट डालते। बच्चे को जन्म लेने से पहले ही उसकी हत्या कर देते। ’

वह कुछ सोचते हुए गम्भीर होकर बोला-‘आदमी को मजबूरी में सब कुछ सहना भी पड़ता है। ऐसी स्थिति होती तो सम्भव है आज का आदमी भी इस स्थिति को भी स्वीकार कर लेता।’

मैंने उत्तर दिया-‘रोज इतने बलात्कार हो रहे र्हैं, ऐसी बलात्कृता के प्रति घर वालों की सहृदयता कहाँ देखने को मिली है। लोगों ने अपने देवताओं से भी कुछ नहीं सीखा। बताओ इस स्थिति में गुरुपत्नी देवी तारा का क्या दोष था ?’

रोहित को उत्तर देना पड़ा-‘ लोगों को ऐसी स्थिति में अपना दृष्टिकोण बदल कर स्त्री के साथ व्यवहार करना चाहिए।’

यह कह कर वे मेरे पास से उठकर चले गये।

मेरा चित्त बारम्बार इसी प्रसंग की उधेड़बुन में रहने लगा।

कुछ दिन और गुजर गये। विद्यालय पहुँचते ही मयंक मेरे इर्द-गिर्द मड़राने लगता।जैसे ही उसे समय मिलता, कह देता-‘‘क्या सोच रहीं हो?े, मैंने तो अपनी सेवा का प्रस्ताव आपके समक्ष रख दिया है। आप चाहे तो.......... ।’

पता नहीं कैसे उस दिन उसकी यह बात सुनकर, मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गइ थी। यह बात उसने महसूस करली, तो बोला-‘चलो, आपने नाचीज की बात पर विचार तो किया। फिर कब..........?

‘मेरे मुँह से निकल गया-‘कहीं रोहित को पता चल गया तो वह मुझे मार ही डालेगा। आप भी जानते हैं उनका गुस्सा बहुत खराब है। वे फिर आगा-पीछा नहीं देखते। गुस्से में पागल हो जाते हैं। आपकी बातों में आकर मैं अपनी गृहस्थी उजाड़ना नहीं चाहती।’

वह बोला-‘ मेरी गृहस्थी भरी पूरी है। घर में पत्नी, पुत्र, पुत्री हैं, यह आप सब जानतीं हैं। मैंने आपकी गृहस्थी उजाड़ी तो मेरी गृहस्थी कौन सी बची रहेगी। आप चिन्ता नहीं करें, उन्हें इस बात का पता ही नहीं चलेगा। हम कुछ दिन एक दूसरे को...।’

इस बात के बाद तो एक होटल के कमरे में हम दोनों मिलने लगे थे। सच कहूँ तो पहली बार जब मैं उससे मिलकर घर लौटी थी और अपनी छत पर रात को टहल रही थी कि मुझे एक चमकदार टूटता तारा मेरी ओर आते दिखा था तो मैंने प्यार से अपने पेट पर हाथ फेर लिया। कुछ ही दिनों में मुझे पता लग गया कि मैंने गर्भ धारण कर लिया है। यह बात मैंने मयंक से छिपा कर रखी।

मैं यह जानकर मयंक से दूर रहने का प्रयास करने लगी तो यह बात उसे खटकने लगी। वह एक दिन गुस्सा हो उठा तो मैंने ठंडे स्वर में कहा-‘आप ने संन्तुलन खोया तो मैं रोहित से कहने पर मजबूर हो जाऊँगी। आपकी पत्नी और बच्चे यह बात सुनेंगे तो आप समझ लें, आपके बच्चे बड़े हो रहे हैं। उन पर इस बात का क्या असर पड़ेगा? हम दोनों के हित में ही यह बात ठीक नहीं रहेगी। मैं आपकी बातों में आकर भटक गई। इसका मतलब यह तो नहीं कि दो गृहस्थी बर्वाद हो जाये।’

इस तरह मैंने मयंक का मुँह बन्द कर दिया।

अब एक ही चिन्ता मुझ पर सवार हो गई कि अपनी इस बात को रोहित को कैसे बतलाऊँ? एक रात हम दोनों बिस्तर पर दैनिक मिलन के बाद सुस्त पड़े थे। मैंने घीरे से कहा-‘जी आज माँ जी कह रहीं थीं कि मैं माँ बनने वाली हूँ। मैंने तो मम्मी से कह दिया- मम्मी जी मुझे तो ऐसी कोई बात नहीं लगती।’

वे बोली-‘ मुझे न बना। मैं पूरी नजर रखे हूँ। इस माह तेरा महिना खंद गया कि नहीं। बोल?’

मुझे मम्मी से कहना पड़ा, महीना तो खँद गया है। यह सुनकर वे बड़ी खुश हो रहीं थी। वे कह रहीं थीं-‘मैंने अपने शहर के राम मन्दिर पर अखण्ड रामायण बोल दी थी। राम जी ने मेरी प्रार्थना सुन ली है।’

मम्मी बिना नागा किये छह माह से वहाँ रोज परिक्रमा लगा रही हैं। वे कह रहीं थीं-‘उन्होंने मेरी प्रार्थना सुन ही ली है। यह कह कर वे मेरे पास से चलकर पापा के पास पहुँच गईं और उन्होंने यह बात पापा जी से भी कह दी है। पापा जी यह बात सुन कर बहुत खुश हो रहे थे।’

यह सुन कर रोहित के मुँह से निकला-‘यह सम्भव नहीं है।’

मैंने उसके मन की बात समझते हुए कहा-‘ क्यों सम्भव नहीं है! तुम रोज मुझसे मिलते हो कि नहीं? हमारे मिलन में कोई कमी दिखी क्या? बोलो। अरे! इसे क्या मैं कहीं और से ले आई । तुम्हें बच्चा होना ठीक नहीं लग रहा है तो ले चलो मुझे मेड़म डॉक्टर के यहाँ, इसे गिरा देते हैं।’

वह बुदबुदाते हुए बोला-‘ तुम्हारी बात सच मान लू तो फिर डॉक्टर वाली बात सफां झूठी हो जायेगी। ’

मैं उठकर बैठ गई और बोली-‘ देखो जी इन पैथौलोजी और अस्पतालों में परेशान मरीजों का मेला लगा रहता है। यह भी तो हो सकता है कि किन्हीं और की रिपोर्ट पर गलती से हमारा नाम लिखा हो गया हो।

अब तक वह सन्तुलन में आ चुका था। बोला-‘चलो, यह तो खुशी की बात हुई।’

उसके बाद उसने प्यार से मेरे पेट पर हाथ फेर कर देखा। मैं देख रही थी। उसके चेहरे के भाव क्षण-क्षण बदल रहे थे। मैं समझ गई यह अब मेडम डॉक्टर के यहाँ जरूर जायेगा। इसलिये यही सोच कर मैंने कहा-‘मैं चाहतीं हूँ एक बार आप मुझे डॉक्टर माथुर को दिखा लाते। ’

वह झट से बोला-‘इतनी जल्दी क्या है? अब बच्चा कहीं भाग तो जायेगा नहीं। कुछ दिन और निकलने दो, उन्हें दिखा लाऊँगा।’

यह कह कर वह करबट बदलकर लेट गया।। मैं समझ गई- वह अपनी पुरानी रिपोर्ट लेकर डॉक्टर मेडम के यहाँ यही सब पूछने जरूर जायेगा। वे सब समझतीं है स्त्री हैं। उन्हें कह देना चाहिए- रिपोर्ट गलत भी हो सकती है। कहीं उन्होंने रिपोर्ट को सही कह दिया फिर...फिर तो मेरी खैरियत नहीं है।

उसी समय मुझे याद हो आया गुरुदेव बृहस्पति की पत्नी तारा का वही प्रसंग। जिसमें गुरुदेव ने तारा को दोषी नहीं माना। यहाँ दोषी मैं भी नहीं हूँ। जीवन के लिये यह बात मेरी मजबूरी हो गई। इस बात को लेकर रोहित को कौन समझाये! अपनी कमजारी उसने भी मुझ से भी तो छिपा कर रखी है। दोषी तो वह भी है। आदमी का स्वभाव है वह अपने दोष नहीं देखता। इस तरह मैं जाने क्या-क्या सोचती रही?

आज वह देर रात घर लौटा। मम्मी उससे यह देख कर लड़ ही पड़ीं-‘हमने कितने देवी- देवता पूजे हैं तब कहीं ये दिन देखने को मिला है। आज तू जाने कहाँ चला गया था, तारा बहू ने अभी तक न कुछ खाया है न पिया है , अरे! ऐसे में हमारे बच्चे पर क्या असर पड़ेगा, सोचा है तूने?’

मैं देख रही थी वह चुपचाप मम्मी की बातें सुन रहा था। उसके पास उनकी बात का कोई जबाव नहीं था। वह चुप-चाप मेरे पास आकर लेट गया। रात भर करवटें बदलता रहा। सुबह घर से जाते समय मुझे सुनाकर मम्मी से बोला-‘मम्मी आज से तुम्हारी बहू अब विद्यालय पढ़ाने के लिये नहीं जायेगी।’

यह कह कर वह चला गया था। उस दिन के बाद मैंने विद्यालय जाना बन्द कर दिया था।

इन दिनों रोहित की मनः स्थिति उसके चेहरे से पढ़ने का प्रयास करने लगी थी। उसके रूखे व्यवहार से कभी- कभी लगता, वह मुझे तलाक देने की बारे नहीं सोच रहा है। कभी लगता- इसने इस बच्चे को पिता का नाम नहीं दिया तो इसका जीवन ही विवादित हो जायेगा। यह सोचकर मैंने आज सुबह साहस करके पूछ लिया-‘ आपका व्यवहार बदला-बदला सा है। जिस दिन से तुम्हारा ये बच्चा पेट में आया है, तुम चुप- चुप से हो, या तो तुम अब भी संतान नहीं चाहते हो या फिर तुम ...........।’

रोहित ने उत्तर दिया-‘ ऐसा कुछ नहीं। फिर मैड़म माथुर, कह रहीं थीं कि जिस तरह बच्चे बन्द करने के ऑपरेशन असफल हो जाते हैं उसी तरह यह रिपोर्ट भी फैल हो गई हो।’

मैंने मुस्काते हुए कृत्रिम गुस्से में आँखें तरेर कर कहा-‘मुझे तुम्हारी यह बात अच्छी नहीं लगी कि तुमने मुझसे असली रिपोर्ट छिपा कर रखी।’

‘तारा, मुझे छमा करें, मुझे यह बात तुम से छिपाना नहीं चाहिए थी।’ उसी वजह से मेरे दिमाग में सन्देह का क्रीड़ा रेंगने लगा था।