टोमी का दुख (असमिया बाल कहानी) : सुमित्रा गोस्वामी/সুমিত্রা গোস্বামী
Tommy Ka Dukh (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Sumitra Goswami
उस दिन वह सो रहा था। उसका सोना भी क्या ! उसकी तबीयत आज कई दिनों से ठीक नहीं चल रही थी। घर के लोगों ने उसकी चिकित्सा में किसी तरह की कमी नहीं की। कभी खाने के लिए गोलियाँ देते हैं तो कभी सुई लगाते हैं। ये सब दवा-दारू करना उसे बिलकुल पसन्द नहीं है। लेकिन मालिक कहाँ मानते। आजकल खाने-पीने में भी उसकी रुचि नहीं है। लेकिन खाना तो पड़ता ही है। नहीं तो जियेगा कैसे ? उसको बड़ा दुख है कि आजकल वह अपनी ड्यूटी अच्छी तरह नहीं कर पाता, बीमारी के कारण । हाँ, वह यह भी जानता है कि उसके मालिक भी उसकी बीमारी के कारण चिंतित हैं ।
वह गर्मी का मौसम था। टोमी चुपचाप सो रहा था। घर के लोग भी सोये हुए थे। केवल घर की नौकरानी मालती घर के पिछवाड़े पानी के नल पर कपड़े धो रहीं थी। अचानक दरवाजे की घंटी बज उठी। टोमी नींद से जगकर खड़ा होने की कोशिश कर रहा था - जो संभव नहीं हुआ। उसकी तबीयत तो खराब थी ही, साथ ही साथ आलस्य और थकावट भी थी। बैठे- बैठे उसको लगा कि कोई आ रहा है। टोमी की भों-भों सुनकर मालिक बाहर निकल आये । मालिक ने आने वाले को बड़े उत्साह से बरामदे में बैठने दिया। उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज लगाई, 'ओ जी, सुनती हो । इधर आओ तो, प्रताप हमारे लिए क्या लाया, देखो!' टोमी को समझ में आ गया कि प्रताप का मतलब है वह आने वाला आदमी!' इसी बीच मालकिन आ गयीं। मालिक ने प्रताप की ओर इशारा करते हुए कहा, 'प्रताप, दिखा दो न दीदी जी को, तुम हमारे लिए क्या लाये हो !' प्रताप ने अपने कंधे पर लटकी झोली से एक भूटानी पिल्ला निकाला 'कितना सुन्दर है यह पिल्ला।' मालकिन ने खुश होकर कहा ।
'हाँ-हाँ, कितना सुन्दर है यह ।' उसे मालिक ने अपने हाथों में उठा लिया । उसने प्रताप को उस पिल्ले का मूल्य देकर विदा किया।
'यह प्रताप बड़ा अच्छा लड़का है। मेरे कहते ही वह कहाँ से इस पिल्ले को हमारे लिए उठा लाया ?' मालिक ने अपनी पत्नी से कहा ।
'ठीक कहा आपने। टोमी की तरह इसे भी सिखाना समझाना होगा। हाँ, एक बात, इसे टोमी के साथ नहीं रखेंगे।' इस प्रकार बातें करते हुए मालिक घर के भीतर चले गये। टोमी अपनी जगह से सारी बातें सुन रहा था। आज उसकी ओर नजर दौड़ाने वाला भी तो कोई नहीं है। सभी उस पिल्ले के साथ लगे हुए हैं।
टोमी ने सोचा, शाम तक मुन्ना बाबू आकर शायद उसका हाल-चाल पूछेगा । टोमी का खाना-पीना, दवा-दारू की खबर तो वही रखता है।
दोपहर के बाद शाम, फिर रात आयी। पर आज मुन्ना बाबू दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। शाम का खाना आज नौकरानी ने ही दिया। खाने की इच्छा तो बिलकुल नहीं थी- फिर भी थोड़ा-सा खाकर लेटा रहा।
रात को सात बजे फाटक खुलने की आवाज आयी तो टोमी भों-भों करने लगा। उसने सोचा था - यह जरूर मुन्ना बाबू ही होगा। हाँ, हाँ, उसका अनुमान बिलकुल सच निकला। वह मुन्ना बाबू ही हैं। आज वह देर से घर पहुँचे हैं, इसी कारण वह उसके पास न आकर सीधे घर के भीतर चला गया। मुन्ना बाबू के घर पहुँचते ही घर का चेहरा बदल गया । मालकिन उन्हें घसीटकर पिल्ले के पास ले गयीं, यह देखो मुन्ना, प्रताप ने कैसा एक सुन्दर पिल्ला हमारे लिए ला दिया। माँ ने पिल्ले को उठाकर मुन्ने के हाथ में थमा दिया । पिल्ले को देखकर मुन्ना भी खुश हुआ।
टोमी समझ गया कि अब इस घर में उसके लिए कोई स्थान नहीं होगा । उसकी आँखों से आँसू निकल आये। टोमी ने अपनी कमजोर टेह पर नजर दौड़ाई। उसे उन दिनों की याद आई जब वह भी इस घर में एक बड़ी आशा लेकर आया था। उसे मालिक के किसी नौकर ने कुछ पैसों के बदले ला दिया था। उस समय मुन्ना एकदम छोटा था । उन दिनों उसे भी इसी तरह प्यार मिला था। वह भी इस घर का एक सदस्य बन चुका था ।
उन दिनों उसके खाने-पीने तथा दवा-दारू की खबर सभी करते थे। जिस प्रकार मालिक अपने बच्चों की रखते हैं। हाँ उसने भी कभी अपनी ड्यूटी में कमी नहीं की किन्तु आज ! आज तो उसे घर से निकल भागने की इच्छा हो रही थी । उसके बदले आज एक नया जो आ गया है।
टोमी आज दूर तक सोचने लगा था। पाँच साल पहले के मुन्ना बाबू का मुखड़ा। उसे याद आ गया। उस समय उसे बिना पिलाए दूध भी नहीं पीता था। एक बिस्कुट का आधा तो टोमी को ही मिल जाता था। आज टोमी की ढलती उम्र है । इसी बीच मुन्ना भी बड़ा हो गया है। उसकी नाक के नीचे और होंठ के ऊपर छोटे-छोटे रोएँ उग आये हैं। उसकी बोली भी बदल गयी है। लेकिन टोमी के प्रति उसके प्यार में कोई परिवर्तन नहीं आया। ऐसा मालिक तो नसीब से ही मिलता है। जबसे इस घर में आया, तबसे उसने अभाव क्या चीज है, जाना ही नहीं। टोमी के ऊपर सारे परिवार की नजर टिकी रहती थी ।
टोमी ने भी कभी अपने मालिक से विश्वासघात नहीं किया। आज उसे एक सुन्दर अतीत की बात याद आने लगी। यह चार साल पहले की बात है। मालकिन के मायके में किसी की शादी थी। परिवार के सभी लोग वहाँ चले गये। घर के नौकर के साथ केवल टोमी ही रह गया था। उस दिन रात घर में चोर घुसा। चोर दरवाजा तोड़कर घर के भीतर पहुँचा ही था कि टोमी ने ऐसा हल्ला मचाया कि वह तुरन्त भाग गया। केवल इतना ही नहीं, चोर के पैर से मांस का एक टुकड़ा भी उसने कांट लिया। इसी बीच घर के नौकर की चिल्लाहट से आस-पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गये और चोर को रंगे हाथ पकड़ लिया ! टोमी के कारण ही चोर पकड़ा गया। सभी ने टोमी की सराहना की। टोमी भी आनन्द से फूला नहीं समाया । मालिक जब लौटे और टोमी के साहस और कर्त्तव्यबोध की बात सुनी तो उसे छाती से लगा लिया। टोमी के हृदय में वह बात आज भी रंगीन है।
टोमी के जीवन में ऐसी-ऐसी घटनाएँ बहुत घटीं। अतीत की उन बातों को याद कर उसे कितना अच्छा लगता है। पुरानी बातों के इन टुकड़ों ने आज टोमी को जहाँ एक ओर आनन्दित किया, वहीं दूसरी ओर वेदना भी दी।
टोमी के आनन्द का दिन आज नहीं रहा। आज तो उसका जी चाहता है कि छाती पीट-पीट कर रोये। उस दिन की वह बात तो और दर्दभरी है । मालकिन कह रही थीं, 'टोमी अब बूढ़ा हो गया है। उसे कहीं छोड़ आओ । अब पिल्ले की ही अच्छी तरह देख-भाल करनी है। इसे भी टोमी की तरह शिकारी बनाना हैं ।' उस समय टोमी मुन्ने के जवाब के लिए इंतजार करता रहा। साथ ही उसने यह भी सोचा था कि शायद मुन्ना बाबू उसे कहीं छोड़ आने की व्यवस्था करें। अपनी माँ से वह कहे कि माँ तुम इसे मत सोचो। मैं कल तक उसे कहीं छोड़ आऊँगा । लेकिन मुन्ना बाबू ने ऐसा जवाब नहीं दिया। उसके उत्तर ने तो उसे चकित ही कर दिया। उसने अपनी माँ से कहा, 'माँ, ऐसा कभी नहीं हो सकता। एक नया कुत्तः आया तो टोमी को घर से निकाल देने की बात तुम कैसे सोच सकती हो। टोमी कहीं नहीं जायेगा, यहीं रहेगा।'
सचमुच आदमी कितना स्वार्थी जीव है। जब उसका अपना स्वार्थ पूरा हो जाता है तो वह अपनी जिम्मेदारी तथा प्यार को भूल जाता है। आदमी यह भी भूल जाता है कि एक जानवर और आदमी में क्या भेद है। पशु- पक्षियों में भी प्यार मुहब्बत हो सकती है, ऐसी बात आदमी ने कभी नहीं सोची। मालकिन के प्यार से वंचित होकर टोमी आज बहुत दुखित है। बार-बार अपने आपसे उसने पूछा, 'क्यों उसका बुढ़ापा आ गया? पहले की तरह आज उसमें उत्साह नहीं है।' उसने आज अपने को बहुत धिक्कारा । आज वह कमजोर है या बेकार जरूर बन गया है, पर उसने धर्म का पथ तो कभी नहीं छोड़ा। अपने मालिक के प्रति उसमें हमेशा श्रद्धा रही और वह आज भी है। जीवन में उसने भी ऐसा काम नहीं किया जो मालिक को बुरा लगे। बुढ़ापे के कारण मालिंक उस पर खर्च करना बेकार समझने लगे। इसी कारण से उसे घर से निकाल भगाना चाहते हैं। ठीक है, घर छोड़कर यह चला जाएगा। जीवन के शेष दिन अपनी बिरादरी वालों के साथ बिताएगा- वह सोचने लगता है। उसकी छाती पर मानो पत्थर जम जाता है । वह कैसे इस घर की माया छोड़कर चला जाएगा। किस तरह इस घर के प्यार को भूल जायेगा। न, न, ऐसा नहीं होगा। वह प्रभु भक्त प्राणी है । वह मालिक को झुठलाकर नहीं जा सकता। वह मालिक के काम में कभी झूठ नहीं बोला। आज वह कैसे इस घर के मालिक की अनुमति के बिना चला जायेगा।
कल सुबह के सूरज ने आकर उसके मुँह को चूम लिया, उसे पता नहीं था। रात का आलस्य हटाने के लिए वह खड़ा हो गया । यह उसके सुबह के खाने का समय है। उसने देखा कि घर की नौकरानी उसका खाना लेकर आ रही है। उसने तय कर लिया कि जीवन के शेष दिन मान-अपमान की बातें सोचे बिना यहीं बिता देगा - जब तक कि मालिक उसे यहाँ से भगा नहीं देता ।
(अनुवाद : चित्र महंत)