तितली पेड़ : कैनेडा की लोक-कथा

Titli Ped : Lok-Katha (Canada)

उस हरे-भरे जंगल में एक विशाल ठूंठ पेड़ खड़ा था । जंगल में हर ओर हरियाली थी। एक विशाल झील थी, जिसमें लाल कमल खिलते थे। लाल कमलवाली उस झील को देखने के लिए सैलानी दूर-दूर से आया करते थे। वहाँ की हरियाली लोगों को लुभाती थी। उस हरे-भरे जंगल के बीच ठूंठ पेड़ अजूबा सा लगता था। तेज बारिश में तर होने के बाद भी उसके आसपास एक पत्ती तक नहीं उगती थी। लोग जब उधर आते तो ठूंठ पेड़ के बारे में बातें अवश्य करते और कहते, 'इस ठूंठ के कारण जंगल की शोभा घट जाती है।' लोगों की बातें सुनकर ठूंठ पेड़ उदास हो जाता और सोचता कि आखिर उस पर हरे-भरे पत्ते क्यों नहीं आते। ठूंठ पेड़ को केवल वह समय अच्छा लगता था, जब परिंदे सुबह उसके पास से गुजरते थे और रात होते समय जब वे वापस अपने घोंसलों में लौटते थे। उनके वहाँ से गुजरने के बाद वह पूरा समय अकेले बिताता था ।

एक दिन चमत्कार हुआ। एक चिड़िया वहाँ उड़ती हुई आई। उसने ठूंठ पेड़ के कई चक्कर काटे, फिर धीरे से उसकी डाली पर आकर बैठ गई। पेड़ को यह देखकर विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई परिंदा उसकी डाली पर भी बैठ सकता है। पेड़ यह सोच ही रहा था कि तभी चिड़िया बोली, 'तुम यही सोच रहे हो न कि मैं यहाँ कैसे चली आई?' ठूंठ हैरानी से बोला, 'बिल्कुल! मैं यही सोच रहा हूँ।' चिड़िया बोली, 'अकसर परिंदे तुम्हारे बारे में जिक्र करते हैं कि तुम बहुत उदास रहते हो। मैं तुम्हारी बातें सुनकर उदास हो जाती थी। इसलिए आज तुमसे मिलने चली आई।' ठूंठ पेड़ बोला, 'तुम बहुत भली हो, जो तुमने मेरे दर्द को महसूस किया। आज तुम्हें अपनी डाल पर बैठा देखकर मेरा रोम-रोम प्रसन्नता से खिल उठा है।' उस दिन पूरी रात चिड़िया पेड़ के अकेलेपन की पीड़ा उस से बाँटती रही। सुबह होते ही उसने वहाँ से चलने के लिए विदा माँगी। पेड़ का बहुत मन था कि वह उससे पूछे कि क्या वह दोबारा उसके पास आएगी ? पर वह यह सोचकर चुप हो गया कि अगर चिड़िया ने मना कर दिया तो ज्यादा दुःख होगा।

उसके जाने के बाद वह फिर उदास हो गया। लेकिन शाम को चिड़िया फिर उसके पास लौट आई। ठूंठ पेड़ खुशी से खिल उठा। अब तो यह रोज का क्रम बन गया। चिड़िया रोज शाम को उसके पास आती। उसे ढेर सारी कहानियाँ सुनाती और सुबह उड़ जाती। अब ठूंठ प्रसन्न रहने लगा था। लेकिन उसकी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चली। एक दिन चिड़िया नहीं आई। उसने दूसरे दिन इंतजार किया, लेकिन वह उस दिन भी नहीं आई। फिर तो अनेकों दिन बीत गए, पर चिड़िया नहीं आई। एक दिन रंग-बिरंगी तितली ठूंठ से जा चिपकी । ठूंठ पेड़ की आँखों के आँसू तितली के पंख पर जा गिरे। तितली ने देखा कि ठूंठ पेड़ रो रहा है। उसने उसे अपनी दोस्त चिड़िया के गुम होने की बात बताई। तितली बोली, 'तुम दुःखी मत होओ। मैं अपनी सखियों के साथ उसे ढूँढ़ने की कोशिश करूँगी।' तितली ने अपनी सखियों के साथ जगह-जगह उसे ढूँढ़ा, लेकिन चिड़िया का कहीं पता न चला। तितली ने दुःखी मन से यह बात ठूंठ पेड़ को बताई तो वह बहुत उदास हो गया । तितली ने उसका अकेलापन महसूस कर लिया। वह बोली, "मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊँगी।" फिर उसने अपनी अन्य साथी तितलियों को भी वहाँ बुला लिया।

दिन निकला तो एक विचित्र दृश्य दिखाई दिया, पेड़ की नंगी डालियों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों के आकार में बैठी थीं। बड़ा ही अद्भुत दृश्य था। सैलानियों ने रंग- बिरंगी तितलियों को फूलों के आकार में बैठा देखा तो | उनके चित्र अपने कैमरों में उतारने लगे। यह देखकर तितलियों ने फैसला किया कि वे उस ठूंठ पेड़ को यों अकेला छोड़कर नहीं जाएँगी। धीरे-धीरे यह बात सब तितलियों को पता चल गई। तितलियों का एक झुंड पेड़ से उड़कर जाता तो दूसरा झुंड वहाँ आ बैठता। दूर से देखने पर ठूंठ पेड़ ऐसा लगता था, मानो उसकी नंगी डालियों पर असंख्य इंद्रधनुषी फूल खिले हों ।

धीरे-धीरे वह विचित्र ठूंठ पेड़ 'तितली पेड़' के नाम से मशहूर हो गया। प्रकृति के इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए सैलानी दूर-दूर से उस जंगल में पहुँचने लगे। अब उस जंगल में न तो लाल कमलवाली झील आकर्षण का केंद्र थी और न ही हरे-भरे पेड़, बल्कि केवल ठूंठ पेड़ ही सबके आकर्षण का केंद्र बन गया था। और हाँ, अब वह ठूंठ नहीं, बल्कि तितली पेड़ के नाम से जाना जाता था।

(साभार : रेनू सैनी)

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