तिसमिली तीस तीस (मैं तिसमिली प्यासी हूँ) : लोककथा (उत्तराखंड)

Tismili Tees Tees : Lok-Katha (Uttarakhand)

बहुत पहले की बात है। किसी गॉंव में एक किसान रहता था। उसका नाम गबरू था। उसने अपने बेटे की शादी की। उसकी बहू रूकमा रूपवान और खेती किसानी के काम में निपुण थी। किसान की एक लड़की भी थी। उसका नाम पुष्पा था। वह कामचोर थी। उसे किसी काम के लिए कहो वह ऐसा बहाना बना देती कि सुनने वाला उसे सच मानता।

जेठ का महीना था। तपती दोपहर में चलना बडा कठिन था। पानी के स्रोत भी सूख गए थे। जिन स्रोतों में पानी था भी पहले से बहुत कम था। रूकमा बैलों को सुबह चराने के लिए जंगल ले गई। जंगल किसान के घर से बहुत दूर था। इसलिए सूर्योदय होते ही रूकमा बैलों को जंगल चराने ले गई। जंगल में वह अपने साथ स्वल्टा (घास रखने के लिए रिंगाल का बनी वस्तु) भी ले गई। उसने जंगल में बैलों को भी चराया तथा स्वल्टा भरकर घास भी लाई। जंगल से आते समय रास्ते में पानी की एक खाल (बावली) थी। रूकमा ने उन बैलों को उस खाल में पानी पीने के लिए छोड दिया। वह दोपहर के समय बैलों को जंगल से घर ले आई। उसकी सास दीपा ने अपनी बेटी पुष्पा से कहा ’’ पुष्पा! तुम्हारी भाभी अभी अभी जंगल से बैलों को चराकर घर पहुंची है। वह साथ में घास का भारी स्वल्टा भी लाई है। वह थक गई होगी भैंस को पानी पिलाने तुम्ही को जाना होगा। तुम भैंस को पानी पिलाने धारे ले जाओं। ’’

’’ माँ जी ! मेरे सिर में दर्द हो रहा है। भैंस को पानी पिलाने के लिए भाभी को बोलो।‘‘ – बहाना बनाते हुए पुष्पा ने कहा | उसका यह बहाना काम नहीं आया | दीपा ने कहा,” मैं कुछ नहीं जानती हूँ | भैंस को पानी पिलाने तुम्हीं को जाना होगा | “ पुष्पा की इच्छा भैंस को पानी पिलाने के लिए ले जाने की नहीं थी उसे मन मारकर जाना पड़ा। वह भैंस को धारे की खाल में ले गई। वहां खाल (बावली) में पानी नहीं था। भैंस की प्यास को शान्त कराने का एक और उपाय था - भैंस को जंगल वाली खाल (बावली) ले जाना । उस खाल में हमेशा पानी रहता था। पुष्पा कामचोर थी ही उसने सोचा -’’ भैंस ने पानी पिया या नहीं पिया यहाँ कौन देखने वाला है ? मैं माँ से कह दूंगी मैंने भैंस को धारे वाली खाल से पानी पिला दिया था। वह भैंस को बिना पानी पिलाए ही घर वापस ले आई। उसने भैंस को खूंटे पर बांध दिया। अपनी माँ से उसने कहा कि भैंस को उसने पानी पिला दिया है। भैंस पहले ही प्यासी थी धूप में चलने के कारण उसे और भी तेज प्यास लग गई। वह प्यास से तड़पती रही। वह

अड़ाती ( भैंस की ऊंची आवाज ) रही। थोडी देर में वह भैंस मर गई। भैंस ने मरते समय पुष्पा को शाप दिया - ’’ मैं प्यास से तड़पती रही, चिल्लाती रही। तूने मुझे पानी नहीं पिलाया। तू अपने सामने पानी देखेगी तब भी प्यास नहीं बुझा पाएगी। तू प्यासी रहेगी , जंगल-जंगल, गॅांव-गॅांव अपनी प्यास बुझाने के लिए भटकती रहेगी। पुष्पा को भैंस के मरने का बहुत दुख हुआ। थोडी देर बाद वह भी मर गई। उसने तिसमिली पक्षी के रूप में दूसरा जन्म लिया।

तिसमिली (पपीहा) के पास पंख भी हैं, आंखें भी हैं। वह पानी के स्रोतों को देख सकती है, वहां तक जा भी सकती है परन्तु कहते हैं उसे पानी में खून नजर आता है। बरसात में जब पानी ही पानी रहता है यह पक्षी तिसमिली तीस तीस (मैं तिसमिली प्यासी हॅूं) कहकर अपनी व्यथा सुनाती है। कहते है वह स्वाति नक्षत्र में बरसे पानी को ही पी सकती है।

(साभार : डॉ. उमेश चमोला)

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