टाइम नहीं है (व्यंग्य रचना) : डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’
Time Nahin Hai (Hindi Satire) : Dr. Mukesh Garg Aseemit
सफेद कोट और स्टेथोस्कोप की बवंडर भरी दुनिया में, एक वाक्यांश है जो सम्मान का बिल्ला बन गया है, खासकर हम डॉक्टरों के बीच: "समय नहीं है " यह कहना कि आपके पास समय नहीं है, आधुनिक समय में मेडिकल क्षेत्र के शूरवीरों के चमकते कवच के बराबर है। यदि कोई डॉक्टर इस मंत्र का उच्चारण नहीं करता है, तो यह एक सर्वमान्य सार्वभोमिक सत्य है की इस डॉक्टर की प्रैक्टिस गुल है, मैंने भी इसका तोड़ निकाल लिया है ,जब भी में खाली होता हु , ऊपर घर की सीढियां चढ़ते वक्त नीचे यह कहकर निकलता हु की ऑपरेशन थिएटर में केस चल रहा है और इस वक्त को आराम से चाय पीने में निकाल देता हूँ ।
मैं ओपीडी में हूं, शांति से समय लेते हुए मरीजों को देख रहा हूं , मुझे पता है ये कृत्य समाज के मानदंड पर कतई खरा नहीं उतरता । गाँव की एक महिला मुझे निठल्ला बैठा देख , ,मुझे उसकी आशा से अधिक समय उसको देखने जांचने में लगाने से हतप्रभ,उसकी आँखें चौड़ी हो गयी है !"डॉक्टर," वह शुरू होती है, "यहाँ में देख रही हूँ , मुश्किल से ही कोई भीड़ है।" वह मुझे एक अन्य डॉक्टर के पास उसके पिछले परामर्श के अनुभव के बारे में बताती है, जिसका क्लिनिक इतना भरा हुआ था, डॉक्टर को तो मरने की भी फुर्सत नहीं थी। मैंने समझाया कि दूसरे डॉक्टर ने उसे दो मिनट दिए होंगे, लेकिन मैंने उसे दस मिनट दिए। मेडिकल प्रैक्टिस की आपाधापी में भी मात्रा से अधिक गुणवत्ता में दे रहा हु , है ना?
लेकिन वास्तविकता यह है: मरीज़ ऐसे डॉक्टर को दिखाना पसंद करते हैं जो व्यावहारिक रूप से काम में डूबा रहता है। ऐसा लगता है मानो व्यस्त रहना डॉक्टर की स्वीकृति की मोहर है। जितना व्यस्त, उतना अच्छा। यदि किसी डॉक्टर का चैम्बर इक्के दुक्के मरीजों से ही भरा हो , तो यह बिना किसी प्रतीक्षा वाले रेस्तरां की तरह है - हमेशा संदेहास्पद।
और यह क्लिनिक पर ही नहीं रुकता। घर पर, अगर मेरी पत्नी एक पल के लिए भी मुझे दिन के समय निठल्ला पकड़ लेती है, तो वह हमारी आजीविका के बारे में चिंतित होकर, हमारे कुल देवताओं को एक दुहाई भरा सन्देश भेजने के लिए तैयार है, " न जाने किस की नजर लग गयी,फलाने की प्रैक्टिस देखो और एक तुम हो ,क्या ढंग से मरीज देखते हो या नहीं?" यहाँ मैं "टाइम नहीं है " के दुष्चक्र में फंस गया हूं, अपने शेड्यूल की वेदी पर अपनी इच्छाओं का बलिदान दे रहा हूं, लगातार अपने क्लिनिक में इंतजार कर रहा हूं, सोच रहा हूं कि ये तो कोई पैकेज डील नहीं थी जब मैंने डॉक्टर बनने के लिए साइन अप किया था! और जब मैंने शादी की ,मेरे ससुराल वालों ने ऐसा कोई टर्म्स एंड कंडीशन नहीं रखी थी।
चोट पर नमक छिड़कने के लिए, मेरे सहकर्मी अक्सर यह कहते हैं, "अचानक लिखने का शौक ? क्या बात है आपके पास बहुत अधिक समय है यार कैसे कर लेते हो यहाँ तो फुर्सत ही नहीं ,मरीजों से घिरा रहता हु !" इस टाइम नहीं है" ब्रम्ह्वाक्य का अभ्यास भी पता नहीं क्यों मुझ से हुआ ही नहीं , मैं किसी भी मीटिंग या आउटिंग के लिए सहर्ष तैयार हूं क्योंकि, जाहिर है, "मेरे पास हमेशा समय होता है! सभी न्योतों में शत प्रतिशत उपस्थिति मिलने पर मेरे दोस्त रिश्तेदार चिंता व्यक्त करते है,बड़े दुखी स्वर में कई बार मेरी खस्ता हालत के लिए कहते नजर आते है-आज कल न शहर में कई अस्थिरोग आ गए न,लेकिन चिंता न करो भगवान् सब ठीक करेगा ,उनकी चिंता मेरे तक रहे तो ठीक है लेकिन जब कई बार ये हमारे ग्रह मंत्रालय तक पहुँच जाती है तब मुझे अहसास होता है की भगवान् कितना निष्ठुर है ,मुझे इतना समय क्यों दिया | कुछ लोग कार्यों को निपटाने की मेरी क्षमता पर आश्चर्य करते हैं, कुछ मुझे मल्टी टास्कर कहते हैं, लेकिन गहराई से, एक व्यंग्य भरी मुस्कान उनके चेहरे पर टंगी रहती है जो उनके खुद के इस पेशे के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने की सफलता से आयी है। में एक अपराध बोध सा अपने निठाल्ले पण और जीवन का अर्थ खोजने के अपने बहाने से इस निठल्ले पण को ढंकने की कवायद से जूझता नजर आता हूँ ।
तो, ऐसी दुनिया में जहां "कोई समय नहीं" नया मानदंड है, मैं यहां सोच रहा हूं कि क्या मेरे पाले पोसे शोकों की किटों पर धूल को साफ़ करने का मेरा शौक पागलपन के खिलाफ एक मूक विरोध है। आह, एक डॉक्टर का ग्लैमरस जीवन, जहां हर सेकंड मायने रखता है, और विडंबना यह है कि समय मेरे सामने निठल्ला सा उसे उपयोग में लेने के लिए खडा हुआ है ।