तिलिस्मी फूल (रूसी कहानी) : कोंस्तांतीन पाउस्तोव्स्की

Tilismi Phool (Russian Story in Hindi) : Konstantin Paustovsky

पिछली गर्मी में बोरोवोये झील से अपने गाँव की ओर लौटते हुए मैं चीड़ के जंगल में एक साफ़किये हुए भाग में से गुजरा। शुष्क ग्रीष्म की विभिन्न खुश्बुओं से भरपूर घास सभी ओर बहुतायत से उगी हुई थी। वृक्षों के बहुत पुराने ठूँठों के आस-पास तो यह अत्यधिक घनी थी। वृक्षों के यह पुराने ठूँठ इतने भुरभुरे हो चुके थे कि इन्हें चूर-चूर करने के लिए हल्की सी ठोकर ही पर्याप्त थी। ऐसा करने पर उनमें से अच्छी तरह से पिसी हुई काफ़ी के समान गहरे भूरे रंग के चूरे की बौछार सी होने लगती थी।

पंखदार चींटियाँ तथा मोटे-मोटे गोबरैले, इधर-उधर भागते फिर रहे थे। गोबरैलों पर फौजी बैण्ड बजानेवालों की वर्दी के समान धारियाँ नज़र आ रही थीं। इन्हें सही तौर पर ‘‘नन्हे सिपाहियों’’ की संज्ञा दी जाती है।

उसी समय एक आलसी, सुनहरी धारियों वाला काला भौरा एक ठूँठ के नीचे बने हुए सूराख में से रेंगता हुआ सा बाहर निकला और चक्कर काटते हुए वायुयान की भाँति इधर-उधर भनभनाने लगा। वह ठूँठ को ठोकर लगानेवाले राहगीर के माथे पर अपने डंक का वार करने का प्रयत्न कर रहा था।

आकाश में बादल लहरों की तरह लहरा रहे थे। वे इतने ठोस लग रहे थे मानो कपास मिश्रित ऊन के चमचमाते ढेर हों और यह कि उन पर लेटकर नीचे मैत्रीपूर्ण धरती के वनों, पगडण्डियों, गेहूँ की पकी फसलों, शान्त और चमचमाते पानी और चित्तेदार पशु-समूहों को निहारा जा सकता हो।

जंगल के छोर पर खुले मैदान में मुझे नीले रंग के कुछ फूल दिखायी दिये। ये फूल ऐसे पास-पास और उलझे हुए गुच्छों के रूप में उगे हुए थे कि गहरे नीले पानी के तालाबों का सा भ्रम होता था।

ये फूल मैंने पहले कभी नहीं देखे थे। मैंने उनका एक बड़ा-सा गुच्छा तोड़ लिया। ये फूल ब्लूबेल के समान थे। अन्तर केवल इतना था कि ब्लूबेल का सिर सदा झुका रहता है जबकि इनका सिर ऊपर की ओर तना हुआ था। जब मैंने इन्हें हिलाया तो इनमें पके हुए बीज बज उठे।

यह मार्ग वन से खेतों की ओर जाता था। खेतों के ऊपर हवा में अदृश्य भरद्वाज पक्षियों का स्वर गूँज रहा था। ऐसा लगता था मानो वे गम्भीर तथा मधुर तारों पर, जिन्हें वे कभी पीछे की ओर खींचकर फिर आगे की ओर छोड़ते तथा गिरने से पहले फिर पकड़ते थे, बेसिर पैर की धुनें बजा-बजाकर हवा में थरथरी और गूँज पैदा कर रहे हों।

उसी मार्ग पर दो ग्रामीण युवतियाँ मेरी ओर चली आ रही थीं। वे अवश्य ही काफ़ी लम्बा फासला तय करके आई होंगी क्योंकि उनके धूल भरे जूते, फीतों के सहारे उनके कन्धों से लटके हुए थे। वे चपर-चपर बतियाती और हँसी मजाक करती आ रही थीं। किन्तु ज्योंही उन्होंने मुझे देखा कि चुप हो गयी। उन्होंने अपने रुमाल के नीचे इधर-उधर बिखरे बालों को ढंग से सँवारा और शिष्टाचार के नाते चुप्पी साध ली।

जरा कल्पना कीजिये कि भूरी-भूरी आँखों वाली, साँवली और खुशमिजाज दो लड़कियों से ऐसे अचानक भेंट हो और आपको देखते ही वे एकदम गम्भीर हो जायें! क्या गुजरेगी तब आपके दिल पर! मगर इससे भी ज्यादा दिल जलानेवाली बात यह होती है कि आपके पास से गुजर जाने के बाद वे खिलखिलाकर हँस दें।

मैं बुरा मानने ही वाला था कि लड़कियाँ रुक गयीं। वे दोनों ऐसे मैत्रीपूर्ण ढंग से मुस्कराई कि मैं सकपका गया। कहीं दूर खेतों के सूने मार्ग में मिलनेवाली किसी लड़की की मुस्कराहट की चमक के बराबर तो दुनिया में कोई दूसरी चीज़ ही नहीं। कारण कि कम से कम एक घड़ी के लिए उसकी आँखों की नीली गहराई में एक ऐसी मनमोहक तथा कुछ हद तक प्रेमपूर्ण वह चिंगारी देखी जा सकती है जोकि आपको जड़वत कर सकती है। उस समय ऐसा लगता है मानो आपके सम्मुख बबूल या मधुगन्धा की झाड़ियाँ ओस भीगे फूलों के रूप में खिल उठी हों।

‘‘धन्यवाद,’’ लड़कियों ने कहा।

‘‘किसलिए?’’

‘‘हमें इन फूलों सहित मिलने के लिए।’’

इतना कहकर लड़कियाँ भाग खड़ी हुई। किन्तु दौड़ते हुए उन्होंने कई बार पीछे मुड़कर देखा तथा मुस्कराकर कहा, ‘‘धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद!’’

मैंने समझ लिया कि लड़कियाँ खूब मौज में हैं और केवल मुझे तंग कर रही हैं। फिर भी मुझे लगा कि इस छोटी-सी घटना में कोई रहस्य और अज़ीब बात जरूर है, जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था।

गाँव के छोर पर साफ़-सुथरी पोशाक पहने, तेजी से जाती हुई नाटे कद की एक बूढ़ी से मेरी भेंट हुई। वह एक हल्के काले रंग की बकरी को रस्सी से बाँधे हुए घसीट रही थी। किन्तु जब उसने मुझे देखा तो रस्सी फेंक दी और अपने दोनों हाथ जोड़ दिये।

‘‘ओह मेरे बेटे, क्या कमाल की बात है कि तुमसे ऐसे रास्ते में भेंट हुई,’’ उसने खुशी से भरपूर थरथराती आवाज़ में मानो गाते हुए कहा। ‘‘मैं नहीं जानती कि मैं तुम्हें कैसे धन्यवाद दूँ?’’

‘‘मुझे किसलिए धन्यवाद देती हो, दादी?’’ मैंने पूछा।

‘‘बहुत चालाक समझते हो, खुद को! बहुत बनो नहीं, मानो तुम्हें कुछ मालूम ही न हो,’’ बुढ़िया ने जवाब दिया और शरारती ढंग से अपना सिर हिलाया। ‘‘जैसे कि तुम बखूबी जानते नहीं हो। खैर, मैं तुम्हें नहीं बता सकती, मुझे नहीं बताना चाहिये, समझे। अपने रास्ते जाओ, पर जल्दी करने की जरूरत नहीं-अधिक से अधिक लोगों से मिलने का यत्न करना।’’

अन्त में यह गुत्थी गाँव में जाकर सुलझी। इसे सुलझाया ग्राम सोवियत के प्रधान इवान कारपोविच ने, जो गम्भीर तथा अपने काम से काम रखने वाले स्वभाव के व्यक्ति थे। किन्तु उन्हें, उनके शब्दों में ‘‘स्थानीय पैमाने पर’’ यानी अपने प्रदेश के सम्बन्ध में, ऐतिहासिक खोज-कार्य में दिलचस्पी थी।

‘‘तुम एक नायाब फूल खोज लाये हो,’’ उन्होंने मुझे बताया। ‘‘यह ‘तिलिस्मी फूल’ कहलाता है। यह कहा जाता है-मैं नहीं जानता कि तुम्हें यह राज बताना चाहिये या नहीं-कि यह फूल लड़कियों को प्रेम में सफलता, बूढ़ों को बुढ़ापे में सुख और संक्षेप में सभी को प्रसन्नता देनेवाला होता है।’’

इवान कारपोविच मुस्कराये।

‘‘तुम मुझे इन ‘‘तिलिस्मी फूलों’’ के साथ मिले हो। इसका मतलब यह है कि मुझे भी अपने काम में सफलता मिलनी चाहिये। यह मानना चाहिये कि प्रादेशिक नगर से हमारे गाँव की ओर आनेवाली यह बड़ी सड़क सम्भवतः इस वर्ष पूरी हो जायेगी। इस बार बाजरे की पहली फसल काटने में हमें सफलता हाथ लगेगी, हमने इसे पहले यहाँ कभी नहीं बोया था।

‘‘इन लड़कियों के लिए मुझे खुशी है,’’ उसने कुछ रुककर कहा। ‘‘वे भली लड़कियाँ हैं, सबसे बढ़िया सब्जियों उगाने वाली हैं। निश्चय ही उन्हें सफलता और खुशी मिलेगी।’’

1953

('समय के पंख' में से)

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