ठोक मुगर : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Thok Mugar : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
एक गरीब ब्राह्मण। भीख माँगकर चलता। कभी खाना मिले, ब्राह्मण-ब्राह्मणी मजे में रहते। कभी कुछ न मिले तो भी पेट पर गीला कपड़ा बाँध सो जाते। बरसा, पानी, हवा, रोग-बैराग है। सब दिन सुख खोजो, न मिले। किसी ने मुट्ठी दी, तो किसी ने न दी और कई लोग ये भिखारी बैठने भी न दें। सब सुनता। बामन बहरा बना रहता। मान-गुमान से भीख न मिले। पेट के लिए बेलज्ज होना हो, उसमें क्या खुशी?
एक दिन पता नहीं किसका मुँह देखा, माँगते-न-माँगते बहुत सारा उडे़ल दिया। खुश मन घर लौटा।
बामनी से कहा, “पीठा (एक तरह की मिठाई) बनाओ। पीठा बनाते-बनाते दिन बीत गया। भूख से बेहाल। बामन जो बना है ला। पेट सह न सके। बामनी ने पीठा व गुड़ परोस दिया। एक टुकड़ा मुँह में डाला कि आवाज—बाबा! चार दिन का भूखा हूँ। कुछ दाना न पड़ा तो अभी प्राण छूट जाएँगे। बामन क्या खाएगा, बामन ने सारे पीठा लेकर भिखारी की सात सिलाईवाली झोली में डाल दिए।
भिखारी ने पेट भर खाया। फिर कहा, “बाबा, तुम्हारी उन्नति हो। मेरे प्राण बच गए। इतने बड़े-बड़े लोग हैं, किसी में दया नहीं। पुकार-पुकार गला फट गया। जरा भी दया नहीं। इनकी नींद न टूटी। बाबा, साथ आओ, काम है।”
बामन कंकाल के पीछे-पीछे चला। कोस भर जाने के बाद जंगल में पहुँचे। बामन थककर बैठ गए। कंकाल अदृश्य हो गया। कुछ समय बाद एक पलम (चौड़ी हंडी) लेकर आया। कहा, “बाबा, जब जो खाने की चीज इच्छा करो, इससे माँगना। ऐसी कोई चीज नहीं, जो पलम न दे सके।” कहकर कंकाल अंतर्धान हो गया।
बामन ने पलम से काकरा पीठा, दमालू, छैनामंडा, सरपुल्ली आदि कई चीजें माँगी, जो जीवन में कभी न खाईं। वह सब पलम से माँगकर खाईं।
अब अभाव क्या है? पेट का सारा खेल। बामन अब भीख क्यों माँगे? इससे छोटा काम नहीं। वहाँ पलम रख कहा, “अभी आता हूँ।”
वन के पास पेड़। कई बच्चे खेल रहे। बामन बना बेवकूफ कुछ सोच-विचार नहीं। बच्चों से कहा, “पलम से कुछ न माँगना। कुछ रहस्य है।” बामन कुछ दूर गया। बच्चों ने पलम से खाना माँगा। जो माँगा, दिया। खा-खा पेट भर गया। बच्चे पलम साथ ले गए। कुछ समय बाद वहाँ एक पलम लाकर रख गए। बामन वह पलम लेकर घर पहुँचा। बामनी से कहा, “अब तुझे चूल्हा फूँकना न पड़े। तू रानी होगी। जो माँगोगी, यह सब देगा। राजा-महाराजाओं को जो न मिले, हमें मिलेगा। ले यह पलम रख। जो माँगोगी, सब देगा।”
बामनी ने माँगा, कुछ न मिला। रात में दोनों भूखे सोए। सुख सपना हो गया।
अगले दिन सुबह फिर जंगल गया। कंकाल ने दर्शन दिए। कहा, “ये पिटारा ले। जो कपड़े माँगोगे देगा। कपड़े बेचकर गुजारा कर।” बामन ने आनंद में वहीं पिटारा रखा, पर अब भी ध्यान न रखा। बच्चे खेल रहे थे। कहा, “बच्चो रखवाली करना, पर कुछ कपड़े-लते मत माँगना।” अभी आया। बामन जाने पर बच्चों ने सोचा कुछ है। कपड़े माँगे। रंग-बिरंगे कपड़ों का ढेर लग गया। पहनकर कोई किसी को जान न सके, राजकुमार से दिखे।
लोभ हो गया। फट गए तो फिर? अतः वे पिटारा ले चले गए। दूसरा पिटरा रख गए। बामन आया। पिटारा लेकर घर आया। पहचान न सका। पिटारा सिर पर ले चला। बामनी से कहा, “ये फटे कपड़े फेंक। पिटारा से जो साड़ी-कपड़ा माँगेगी, सब देगा।” बामनी ने माँगा, पर कुछ न मिला। बामनी ने समझा कि पति सदा ठगता है। कुछ नहीं मिलता। बामनी को गुस्सा आया।
अगले दिन बामन जंगल फिर गया। कंकाल ने भेंटकर कहा, “दाना दिया, कपड़ा दिया। सरल बुद्धि ने सब खो दिया। ये ठोक मुगर ले, दुःख न कर।”
बच्चों के मुँह लगी है। दुनिया भर का लोभ। क्या भाग है। रोज नई-नई चीज। आँख में नींद नहीं। पहले ही भागे। बामन ने ठोक मुगर के पास रखकर कहा, “कुछ मत माँगना।”
बच्चे मन-ही-मन हँसते रहे। कपटी है। कहा, “हम क्यों माँगें, मुगर क्या देगा?”
बामन ठोक मुगर रख कहीं चला गया।
बच्चों ने एकजुट होकर कहा, “ठोक मुगर!” मारने उठा। वे दौड़े। वह पीछे-पीछे। पीटता गया। गाँव में खून की नदी बह चली। सारे देवों को पुकारा, कुछ नहीं। तभी बामन आ पहुँचा। कहा, “इन बच्चों ने पलम, पिटारा लिया। मेरा पलम पिटारा दे। बंद कर दूँगा।” वे दोनों लौटा दो। पाँव पड़े।
बामन, “रुक मुगर!” लौट आया। पलम-पिटारा ले बामन-बामनी चैन से रहे।
भगवान् के सुदर्शन और इंद्र के वज्र की तरह ठोक मुगर बामन के साथ रहा।
(साभार : डॉ. शंकरलाल पुरोहित)