बिना मोजे वाली स्त्री : आयरिश लोक-कथा
The Woman Without Stockings : Irish Folktale
यह करीब 200 साल पुरानी बात है कि मई के महीने में क्वीन्स काउन्टी में रैथडाउनी के पास एक पादरी को आधी रात को जगाया गया कि वह उसके पारिश के किसी दूर के हिस्से में जा कर एक मरते हुए आदमी को देखे।
सो पादरी वहाँ गया और वहाँ जा कर मरते हुए पापी के अन्तिम संस्कार किये और उसे उसका घर छोड़ने से पहले पहले ही इस दुनियाँ को छोड़ते देखा।
क्योंकि अभी भी अँधेरा था तो जिस आदमी ने पादरी को बुलाया था उसने पादरी से कहा कि वह उसे उसके घर छोड़ आता है पर पादरी ने मना कर दिया और अपने घर के लिये अकेला ही चल दिया।
कुछ ही देर में पूर्व में साँवला सा धुँधलका निकलने लगा। भले पादरी को यह दृश्य बहुत अच्छा लग रहा था। वह अपने घोड़े पर सवार आगे चलता चला जा रहा था और साथ में रास्ते में पड़ने वाली हर चीज़ को भी देखता जा रहा था।
वह अपने कोड़े से चिमगादड़ों और बड़े बड़े रात वाले कीड़ों को मारता चला जा रहा था जो उसके रास्ते में एक तरफ से दूसरी तरफ को उड़ रही थीं।
इस तरह से इस काम में लगे रहने की वजह से उसकी रफ्तार कुछ धीमी हो गयी। इतने में सूरज की रोशनी भी इतनी तेज़ हो गयी कि धरती की हर चीज़ अब उसको साफ साफ नजर आने लगी।
वह अपने घोड़े से नीचे उतरा और उसने घोड़े की रास हाथ से छोड़ी और अपनी जेब से डायरी निकाली और अपना “मौर्निंग औफिस” पढ़ता जा रहा था।
वह अभी बहुत दूर नहीं गया था कि उसने अपना घोड़ा देखा तो उसे लगा कि जैसे वह कोई घोड़ा न हो कर कोई आत्मा हो। वह सड़क पर रुक कर एक तरफ एक मैदान की तरफ देख रहा था जहाँ तीन चार गायें चर रही थीं। उसने इस तरफ ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और और आगे चल दिया।
इतने में घोड़ा बहुत ही हिंसात्मक हो उठा और इधर उधर भागने लगा। पादरी ने उसको काबू करने की बहुत कोशिश की पर उसको काबू करना उनके लिये बहुत मुश्किल हो गया। उसको काबू करने में उसको पसीना आ गया।
अब घोड़ा शान्त हो गया था पर वह जहाँ था वहाँ से हिलना नहीं चाहता था। कोई डाँट या कोई विनती उसको अपनी जगह से नहीं हिला सकी।
पादरी यह देख कर आश्चर्य में पड़ गया। पर जितना ज्ञान उसको घोड़ों का था उसके हिसाब से उसने उसकी आँखों पर पट्टी बाँध कर ले जाने की सोचा।
उसने अपनी जेब से रूमाल निकाला उसकी आँखों पर उसे बाँधा और उस पर चढ़ कर उसको धीरे से धक्का दिया। इससे घोड़ा चल तो दिया पर खुशी खुशी नहीं। वह अभी भी आगे जाने में हिचकिचा रहा था। उसको बहुत पसीना आ रहा था।
वे अभी थोड़ी ही दूर गये होंगे कि वे एक तंग रास्ते के सामने आ पहुँचे जिसके दोनों तरफ हैज खड़ी हुई थी। यह तंग रास्ता बड़ी सड़क से ले कर उस मैदान तक जाता था जहाँ वे गायें चर रही थीं।
पादरी की निगाह इस तंग सड़क पर पड़ी तो वहाँ उसने एक ऐसा दृश्य देख लिया जिसको देख कर उसकी नसों में उसका खून जम गया। वहाँ किसी आदमी की केवल दो टाँगें थीं। न तो उसका सिर था और न ही उसका शरीर था। वे उस गली में जल्दी जल्दी चली जा रही थीं।
पादरी तो यह देख कर सन्न रह गया पर काफी बहादुर होने के नाते उसने सोचा जो होता है होने दो वह इस दृश्य को जरूर देखेगा। सो वह खड़ा हो गया तो उसके साथ में वे चलती हुई टाँगें भी रुक गयीं जैसे वे उसके पास आने से डर रही हों।
पादरी ने जब यह देखा तो वह गली के पास से थोड़ा सा पीछे हट गया। उन टाँगों ने फिर से चलना शुरू कर दिया। जल्दी ही वे टाँगें सड़क पर आ गयीं। पादरी को भी अब उन्हें अच्छी तरह से देखने का मौका मिल गया।
वह हिरन की खाल की ब्रीचेज़ पहने था जो घुटनों पर हरे रिबन से कसी हुई थीं। उसने न तो जूते पहन रखे थे न मोजे। उसकी टाँगे लाल लाल बालों से ढकी हुई थीं और खून और मिट्टी से गीली हो रही थीं। ऐसा लगता था कि गली में आते समय हैजैज़ के काँटों से वैसी हो गयी थीं।
पादरी हालाँकि डरा हुआ था फिर भी उसकी उसको जाँचने की इच्छा हुई। सो इसलिये उसने बोलने के लिये अपनी सारी ताकत लगा ली थी।
वह भूत उससे थोड़ा सा आगे था और वह थोड़ा तेज़ भी चल रहा था। पादरी भी अपने घोड़े को उसके बराबर ले आया और उससे बोला — “हलो। तुम कौन हो और इतनी सुबह कहाँ जा रहे हो?”
वह बेचारा चुप रहा पर उसने एक भयानक दैवीय आवाज निकाली “उँह।”
पादरी फिर बोला — “भूतों के घूमने के लिये यह तो बहुत सुन्दर सुबह है।”
उसने फिर से कहा “उँह।”
पादरी ने फिर पूछा “तुम बोलते क्यों नहीं?”
“उँह।”
“लगता है कि इस सुबह तुम बात करने के मूड में नहीं हो।”
“उँह।”
पादरी को इस दैवीय मेहमान के न बोलने पर थोड़ा सा गुस्सा आ गया। वह बोला — “मैं तुम्हें सारे पादरियों का वास्ता देता हूँ और तुम्हें बोलने का हुक्म देता हूँ। तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो बताओ।”
इस बार वह और ज़ोर से और पहले से ज़्यादा नाराज हो कर बोला “उँह।”
पादरी फिर बोला — “शायद मैं अगर तुम्हें एक कोड़ा मारूँ तो तुम बोल सको।”
ऐसा कह कर उसने उसकी ब्रीच पर बहुत ज़ोर से एक कोड़ा मारा। उसने एक बहुत ज़ोर की चीख मारी और सड़क पर आगे की तरफ गिर पड़ा।
पादरी ने आश्चर्य से देखा कि वहाँ तो बहुत सारा दूध फैला पड़ा था। उसके मुँह से तो कोई शब्द ही नहीं निकला। गिरा हुआ फैन्टम अभी भी अपने हर हिस्से से दूध निकाले जा रहा था। पादरी का सिर उसमें तैरने लगा। उसकी आँखें बन्द होने लगीं। उसके ऊपर कुछ मिनट के लिये एक बेहोशी सी छा गयी। जब वह होश में आया तो उसकी आँखों के सामने से यह आश्चर्यजनक दृश्य जा चुका था और उसकी जगह बुढ़िया सैरा कैनेडी उस दूध में लेटी हुई थी।
सैरा कैनेडी उसकी पड़ोसन थी और वह अपने शहर में अपनी जादूगरी और अन्धविश्वासी कामों के लिये बहुत बड़ी शैतान समझी जाती थी। अब पता चल रहा था कि उसने तो एक बहुत बड़े राक्षसी का रूप ले लिया था। उस सुबह उसको गाँवों की गायों को चूसने का काम दिया गया था।
पहले तो वह चुप सा यह दृश्य देखता रहा। वह बुढ़िया रह रह कर काँप रही थी और कराह रही थी।
कुछ देर बाद पादरी बोला — “ सैरा। मैंने तुमसे कितनी बार कहा था कि तुम अपने ये बुरे तरीके छोड़ दो पर तुमने तो मेरी प्रार्थनाओं पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। और अब ओ नीच स्त्री तू यहाँ अपने पापों में पड़ी हुई है।’
बुढ़िया चिल्लाायी — “ओह ओह ओह। क्या तुम मुझे बचाने के लिये कुछ नहीं कर सकते। अगर तुम कुछ कर सकते हो तो बस मुझे थोड़ी सी ही सहायता की जरूरत है।”
पर जब वह बात कर रही थी तो उसका शरीर फूलता जा रहा था और मरोड़ खाता जा रहा था। उसका चेहरा डूब रहा था। उसकी आँखें बन्द होती जा रही थीं। कुछ ही मिनटों में वह मर गयी।
यह देख कर पादरी अपने घर की तरफ चल दिया पर अगले घर पर उन सब अजीब हालातों को बताने के लिये रुक गया। सैरा कैनेडी का मरा हुआ शरीर वहाँ से हटा कर उसके घर ले जाया गया जो पास के ही एक जंगल के किनारे पर था।
हालाँकि वह वहाँ बहुत दिनों से रह रही थी पर फिर भी वह उन सबके लिये अजनबी ही थी। वह वहाँ न जाने कहाँ से आयी थी। कोई उसके बारे में कुछ नहीं जानता था। वह अपनी बेटी के साथ आयी थी। उसकी वह बेटी भी अब बहुत बड़ी हो गयी थी। वह उसी के साथ रहती थी।
सैरा के पास केवल एक गाय थी पर वह दूसरे किसानों से कहीं ज़्यादा मक्खन बेचती थी। लोगों को शक था कि वह वह मक्खन किसी नाजायज तरीके से पाती थी। उसको आखीर में उसके घर के पास वाले एक रेत के गड्ढे में दफ़ना दिया गया।
उसकी बेटी बच कर भाग गयी और फिर कभी नहीं देखी गयी।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)