वीयरवुल्फ़ : स्वीडिश लोक-कथा
The Werewolf : Folktale Sweden
(वीयरवुल्फ़ एक पौराणिक या लोककथाओं में वर्णित मानव है जो जानबूझकर या किसी श्राप या पीड़ा (जैसे किसी अन्य वेयरवोल्फ के काटने या खरोंच के कारण) के बाद, भेड़िये या थेरियन्थ्रोपिक संकर भेड़िया जैसे प्राणी में रूपांतरित होने की क्षमता रखता है। यह आमतौर पर पूर्णिमा की रात को होता है। यह पश्चिमी दुनिया - यूरोप और उत्तरी अमेरिका महाद्वीपों में बहुत आम है।)
एक बार की बात है कि एक बहुत बड़ा राजा था जो एक बहुत बड़े राज्य पर राज करता था। उसके परिवार में एक पत्नी थी और एक बेटी थी।
अब क्योंकि बेटी राजा की अकेला ही बच्चा थी सो वह अपने माता पिता की आँख का तारा थी। वे उसको दुनियाँ की किसी भी चीज़ से ज़्यादा प्यार करते थे। उनका आनन्द यही था कि वे अपनी बेटी को खुश रखें और उसको बड़ा होते देखें।
पर जैसा कोई आदमी चाहता है हर समय वैसा ही तो नहीं होता। अक्सर हम जिसकी आशा नहीं करते वह हो जाता है। इससे पहले कि राजा की बेटी बड़ी होती उसकी माँ यानी राजा की रानी बीमार पड़ी और भगवान को प्यारी हो गयी।
अब यह सोचना तो कोई मुश्किल काम नहीं है कि केवल राजा के महल में नहीं बल्कि सारे राज्य में कितना दुख छाया होगा क्योंकि रानी को भी सब प्यार करते थे। राजा तो इतना दुखी था कि उसने दोबारा शादी न करने का फैसला कर लिया। अब उसका प्यार अपनी बेटी के लिये और बढ़ गया था।
समय बीतता गया। राजकुमारी बड़ी होती गयी। हर साल वह और ज़्यादा लम्बी और सुन्दर होती जाती। उसका पिता उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिये तैयार रहता था। वहाँ बहुत सारी स्त्रियाँ ऐसी थीं जिनको और कोई काम नहीं था सिवाय राजकुमारी का हुक्म बजा लाने के।
उन स्त्रियों में से एक स्त्री ऐसी थी जिसकी पहले शादी हो चुकी थी और उसके दो बेटियाँ थीं। वह शक्ल सूरत से अच्छी थी उसकी जुबान मीठी थी और वह बात भी बहुत अच्छी करती थी। वह बहुत कोमल थी और रेशम जैसी चिकनी थी। पर वह दिल की बहुत बुरी और झूठी थी।
जैसे ही रानी मर गयी तो उसने यह प्लान करना शुरू कर दिया कि वह किस तरह राजा से शादी कर ले ताकि उसकी बेटियाँ राजघराने की बेटियों की तरह से बड़ी हो सकें।
इस बात को ध्यान में रखते हुए उसने राजकुमारी का ध्यान अपनी तरफ खींचना शुरू कर दिया। वह उसकी हर चीज़ जो भी वह कहती या करती उसकी तारीफ करती। वह अक्सर अपनी बातों को इस तरफ मोड़ देती कि अगर राजा दूसरी शादी कर लेंगे तो वह कितनी खुश रहेगी।
इस मामले पर बहुत कुछ बातें हुईं और देर और सबेर उसने राजकुमारी को यह विश्वास दिला दिया कि वह स्त्री वह सब कुछ जानती थी जो उसको जानना चाहिये था।
एक दिन राजकुमारी ने उससे पूछा कि उसके पिता राजा को किस तरह की लड़की से शादी करनी चाहिये तो उसने अपने शहद जैसी मीठी बोली में कहा — “इस मामले में तुम्हारे पिता को कोई सलाह देना मेरा काम नहीं है पर हाँ उनको किसी ऐसी स्त्री से शादी करनी चाहिये जो हमारी छोटी सी राजकुमारी को खुश रख सके।
एक बात तो मैं जानती हूँ कि अगर मेरी किस्मत इतनी अच्छी होती कि राजा मुझे चुन लेते तो मैं अपनी छोटी सी राजकुमारी का बहुत ख्याल रखती।
अगर राजकुमारी को हाथ भी धोने होते तो मेरी एक बेटी उसके लिये पानी का जग लिये खड़ी होती और दूसरी बेटी उसके लिये तौलिया लिये खड़ी होती।”
उसने यह सब और और भी बहुत कुछ उससे कहा।
राजकुमारी ने उसका विश्वास कर लिया जैसे कि बच्चे कर लेते हैं। उसके बाद से राजकुमारी ने राजा को चैन से नहीं बैठने दिया। वह बराबर उनसे उस स्त्री से शादी करने की जिद करती रही जैसा कि उस झूठी स्त्री ने उससे करने के लिये कह रखा था।
जब राजकुमारी अपने पिता से बार बार उससे शादी करने के लिये कहती रही तो एक दिन राजा चिल्ला कर बोला — “लगता है कि तुम अपनी बात मनवा कर ही छोड़ोगी। हालाँकि मैं यह बिल्कुल नहीं चाहता कि मैं दोबारा शादी करूँ पर अगर तुम इतनी जिद करती हो तो मैं केवल एक शर्त पर शादी करने के लिये तैयार हूँ।”
राजकुमारी ने पूछा — “और वह शर्त क्या है पिता जी?”
राजा बोला — “अगर मैं दोबारा शादी करूँगा तो केवल इसलिये कि तुम मुझसे यह करने के लिये बराबर कहती रही हो। और इसी लिये तुम मुझसे वायदा करो कि अगर तुम भविष्य में अपनी सौतेली माँ से या सौतेली बहिनों से सन्तुष्ट न हो तो मैं उनके खिलाफ तुम्हारी एक भी शिकायत या रोना नहीं सुनने वाला।” राजकुमारी ने अपने पिता से इस बात का वायदा किया कि वह ऐसा कुछ नहीं करेगी। सो उन दोनों ने तय किया कि राजा उस स्त्री से शादी कर के उसे राज्य भर की रानी बना लेगा।
जैसे जैसे समय बीतता गया राजकुमारी बड़ी होती गयी और बहुत सुन्दर होती गयी। उसकी सुन्दरता के चर्चे पास और दूर सभी देशों में होने लगे।
दूसरी तरफ रानी की दोनों बेटियाँ घर गृहस्थी वाली थीं। हर समय दूसरों की बुराई करती रहती थीं। कोई उनकी किसी भी अच्छाई की कोई बात नहीं करता था।
इसलिये इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि पूर्व से पश्चिम से सभी तरफ से बहुत सारे नौजवान राजकुमारी का हाथ माँगने के लिये आने लगे पर किसी ने रानी की बेटियों में कोई रुचि नहीं दिखायी। इससे रानी को गुस्सा तो बहुत आया पर वह अपना गुस्सा छिपाये रही और हमेशा की तरह मीठी और हँसमुख बनी रही।
अब इन नौजवानों में से एक राजकुमार एक दूसरे देश का था। यह राजकुमार नौजवान था बहादुर था और क्योंकि वह राजकुमारी को बहुत प्यार करता था सो राजकुमारी ने उसका प्रस्ताव तुरन्त ही स्वीकार कर लिया। दोनों ने एक दूसरे के लिये वफादार रहने की कसमें खायीं।
रानी ने यह देखा तो वह बहुत गुस्सा हुई क्योंकि उसको तो खुशी तभी होती जब वह राजकुमार उसकी दोनों बेटियों में से किसी एक को चुन लेता।
यह देख कर उसने अपने मन में सोच लिया कि वह कुछ ऐसा करेगी जिससे वह हँसता खेलता जोड़ा कभी खुश न रहे। उसने दिन रात यही सोचना शुरू कर दिया कि वह ऐसा क्या करे जिससे वे दोनों हमेशा के लिये अलग हो जायें।
बहुत जल्दी ही उसको एक मौका हाथ लग गया। खबर मिली कि दुश्मन ने देश पर हमला बोल दिया है तो राजा को लड़ाई पर जाना पड़ा।
राजा के जाने के बाद राजकुमारी को पता चला कि सौतेली माँ कैसी होती है। क्योंकि जैसे ही राजा लड़ाई पर गया रानी ने अपना असली रूप दिखाना शुरू किया। वह उसके लिये उतनी ही कठोर और बेरहम हो गयी जितनी पहले वह उसके लिये अच्छे दिल वाली थी। उसके लिये कोई दिन ऐसा नहीं जाता था जिस दिन सौतेली माँ उसको डाँटती न हो या धमकाती न हो।
उसकी बेटियाँ भी अपनी माँ जैसी ही थीं। वे भी राजकुमारी को बहुत तंग करती थीं।
पर राजकुमार यानी राजकुमारी के पति के साथ तो इससे भी बुरा था। एक दिन वह शिकार खेलने गया तो रास्ता भूल गया। उसके साथ गये लोग उससे छूट गये।
रानी ने अपना काला जादू इस्तेमाल किया और उसको एक वीयरवुल्फ़1 में बदल दिया। और उसको शाप दिया कि वह सारी ज़िन्दगी उसी शक्ल में जंगल में मारा मारा फिरता रहे।
जब शाम हो गयी और राजकुमार का कहीं पता नहीं चला तो उसके आदमी घर वापस लौट आये। उनको बिना राजकुमार के लौट कर आया देख कर तो बस केवल सोचा ही जा सकता है कि महल भर में कितना दुख छाया होगा।
राजकुमारी को यह जान कर बहुत दुख हुआ कि किस तरह उस राजकुमार का शिकार का यह दिन गुजरा। वह बेचारी दिन रात रोती रही उसको कोई तसल्ली ही नहीं दे पा रहा था।
पर रानी उसके इस दुख पर बहुत खुश हुई। उसको तो यही सोच कर बहुत खुशी हो रही थी कि जैसा उसने प्लान किया था सब कुछ वैसा ही हो रहा था।
अब एक दिन ऐसा हुआ कि राजा की बेटी अपने कमरे में अकेली बैठी हुई थी तो उसके दिमाग में कुछ ऐसा आया कि वह खुद उस जंगल में जाये जहाँ राजकुमार गायब हुआ था और उसे वहीं ढूँढने की कोशिश करे।
सो वह अपनी सौतेली माँ के पास गयी और उससे विनती की कि वह उसको जंगल जाने की इजाज़त दे दे ताकि वह अपना दुख कुछ हल्का कर सके।
रानी की उसको जंगल जाने देने की कोई इच्छा नहीं थी क्योंकि उसकी उसको हर समय हाँ की बजाय ना कहने की आदत थी पर राजकुमारी ने उससे इतनी नम्रतापूर्वक इजाज़त माँगी कि उसको हाँ करनी ही पड़ी पर उसने उसके साथ अपनी एक बेटी को भेज दिया ताकि वह उसकी देखभाल कर सके।
इस बात पर काफी बहस हुई क्योंकि उसकी अपनी दोनों बेटियों में से कोई भी बेटी राजकुमारी के साथ जाने के लिये तैयार नहीं थी। उनका कहना था कि राजकुमारी के साथ वहाँ जाने में क्या मजा आयेगा जिसके पास रोने के अलावा और कोई काम नहीं था। पर रानी ने जो कह दिया था सो कह दिया। उसने कहा कि चाहे कुछ भी हो जाये पर उन दोनों में से उसकी एक बेटी को राजकुमारी के साथ जाना ही पड़ेगा चाहे वह उसकी मरजी के खिलाफ ही क्यों न हो। सो लड़कियाँ किले के बाहर जंगल में घूमने लगीं।
राजा की बेटी पेड़ों के बीच में घूमती रही चिड़ियों का गाना सुनती रही अपने प्रेमी के बारे में सोचती रही जिसको वह इतना प्यार करती थी और अब वह उसके पास नहीं था। रानी की बेटियाँ अपने दिल में बुराई लिये उदास उसके पीछे पीछे चलती रहीं।
कुछ दूर चलने के बाद उनको एक झोंपड़ी मिली जो अँधेरे जंगल के बीचोबीच खड़ी थी। तब तक राजा की बेटी को प्यास लग आयी थी सो वह अपनी सौतेली बहिन के साथ उस झोंपड़ी में पानी पीने के लिये जाना चाहती थी।
पर रानी की बेटी पहले से ही अनमनी थी सो वह बोली —
“क्या यह मेरे लिये काफी नहीं है कि मैं तुम्हारे साथ जंगल के इस
वीराने में घूमती फिरूँ? और अब तुम यह चाहती हो कि मैं जो
राजकुमारी हूँ तुम्हारे साथ इस गन्दी सी झोंपड़ी में भी जाऊँ।
नहीं नहीं मैं तो इस झोंपड़ी की देहरी पर भी पैर नहीं रखूँगी।
अगर तुम्हें जाना है तो तुम अकेली चली जाओ।”
यह सुन कर राजा की बेटी ने तुरन्त ही वैसा किया जैसा कि उसकी सौतेली बहिन ने उससे करने के लिये कहा था।
जब वह अन्दर गयी तो उसने वहाँ एक बुढ़िया को एक बैन्च पर बैठे देखा। वह इतनी बूढ़ी थी कि कमजोरी से उसका सिर हिलता रहता था।
राजकुमारी अपने नम्रता भरे शब्दों में उससे बोली — “माँ जी नमस्ते। क्या मुझे एक गिलास पानी मिल सकता है?”
बुढ़िया बोली — “बेटी तुम्हारा दिल से स्वागत है। क्यों नहीं। पर तुम कौन हो जो भी मेरी इस नीची छत के नीचे आ कर मुझे इस तरीके से नमस्ते कर रही हो।”
राजकुमारी ने उसे बताया कि वह कौन थी और वह अपने दिल को तसल्ली देने के लिये बाहर निकली है ताकि वह अपने इतने बड़े दुख को कुछ भूल सके।
बुढ़िया ने पूछा “और तुम्हारा वह इतना बड़ा दुख क्या है?”
राजकुमारी बोली — “यह मेरी बदकिस्मती है कि मुझे इतना बड़ा दुख है। अब मैं कभी खुश नहीं रह सकती। मेरा प्यार खो गया है। भगवान ही जानता है कि मैं उसे फिर से कभी देख भी पाऊँगी या नहीं।”
तब उस बुढ़िया ने उसे बताया कि ऐसा कैसे हुआ और यह बता कर वह रो पड़ी। ऐसा लग रहा था कि कोई भी उसके लिये इतना दुखी हो सकता था। बाद में बुढ़िया ने कहा — “यह तुमने अच्छा किया कि तुमने अपना दुख मुझे बता दिया। मैं बहुत बड़ी हूँ और हो सकता है कि मैं तुम्हें कोई ठीक सलाह दे सकूँ। जब तुम यहाँ से जाओगी तो तुमको जमीन से उगी हुई एक सफेद लिली दिखायी देगी। यह लिली दूसरी लिली की तरह नहीं है बल्कि इसमें बहुत सारे गुण हैं। तुम जल्दी से उसके पास चली जाओ और उसे तोड़ लो। अगर तुम ऐसा कर सकती हो तो फिर तुम्हें चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है।
क्योंकि उसके तोड़ते ही एक दूसरी लिली वहाँ प्रगट हो जायेगी और वह तुम्हें बतायेगी कि आगे तुम्हें क्या करना है।”
उसके बाद राजकुमारी ने उसे धन्यवाद दिया और वहाँ से चली आयी। वह बुढ़िया वहीं बैन्च पर ही बैठी रही और अपना सिर हिलाती रही। लेकिन रानी की बेटी सारा समय वहाँ दुखी होती हुई और बुड़बुड़ाती हुई झोंपड़ी के बाहर ही खड़ी रही क्योंकि राजा की बेटी को वहाँ काफी समय लग गया था।
जब राजा की बेटी झोंपड़ी से बाहर आयी तो जैसा कि आशा की जाती थी उसको अपनी सौतेली बहिन की बहुत गालियाँ सुननी पड़ीं। फिर भी उसने उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। वह तो बस यही सोचती रही कि वह फूल उसको कहाँ मिलेगा जो बुढ़िया ने उसे बताया था।
वे फिर जंगल में चल दीं। वे कुछ ही दूर चली थीं कि रास्ते में ही उसे एक सफेद लिली का फूल उगा हुआ दिखायी दिया। उसको देख कर वह बहुत खुश हो गयी और तुरन्त ही उसको तोड़ने के लिये भागी पर उसी पल वह वहाँ से गायब हो गया और कुछ दूर आगे जा कर फिर से प्रगट हो गया।
राजा की बेटी को यह देख कर बहुत उत्सुकता हुई। इस उत्सुकता में उसने अपनी सौतेली बहिन की कोई भी बात नहीं सुनी और उस लिली के फूल के पीछे ही भागती रही।
फिर भी जब भी वह उसको पकड़ने के लिये दौड़ती तो वह वहाँ से गायब हो जाता और कुछ दूर जा कर फिर से दिखायी देने लग जाता।
इस तरह से कुछ देर तक होता रहा और इस तरह से राजकुमारी उस जंगल में दूर और दूर चलती चली गयी। पर लिली का फूल भी एक जगह नहीं रुक रहा था वह भी बार बार आगे चलता जा रहा था।
और उसकी एक खास बात यह भी थी कि वह जितना दूर जाता जा रहा था उतना ही ज़्यादा बड़ा और सुन्दर होता जा रहा था। आखिर राजकुमारी एक ऊँची सी पहाड़ी के पास आ गयी। उसने उसकी चोटी की तरफ देखा तो वह फूल तो उसकी नंगी चट्टान की चोटी पर खड़ा था।
वह अभी भी अपनी सफेदी में चमक रहा था जैसे कोई चमकीला तारा चमकता है।
और कोई रास्ता न देख कर उसने उस पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया और उस फूल को लेने की उत्सुकता में उसने न तो किसी पत्थर पर कोई ध्यान दिया और ना ही उसकी चढ़ाई पर ध्यान दिया।
जब वह उस पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गयी तो उसने देखा कि वह फूल तो वहीं का वहीं खड़ा था कहीं और नहीं गया था जैसे पहले से चलता चला आ रहा था।
राजकुमारी वहाँ जा कर रुक गयी उसने उसे तोड़ लिया और अपने सीने में छिपा लिया। ऐसा कर के उसको इतनी ज़्यादा खुशी मिली कि कुछ पल के लिये तो वह अपनी सौतेली बहिनों और दुनियाँ भर को भूल गयी। वह उस फूल को बहुत देर तक देखती रही। उसकी तरफ देखते देखते उसका मन ही नहीं भर रहा था।
तभी उसको अचानक याद आया कि जब वह घर पहुँचेगी तो उसकी सौतेली माँ क्या कहेगी कि वह इतनी देर तक बाहर कहाँ थी। सो उसने किले की तरफ वापस जाने के लिये रास्ता ढूँढने के लिये इधर उधर देखा तो देखा कि सूरज डूबने वाला है और उसकी केवल एक पतली सी किरन पहाड़ी की चोटी पर पड़ रही है।
उसके नीचे घाटी में चारों तरफ जंगल फैला पड़ा था। वह जंगल इतना घना और सायेदार था कि उसको अपने ऊपर विश्वास नहीं था कि वह वैसे जंगल में किले का रास्ता ढूँढने में कामयाब हो जायेगी।
यह देख कर तो वह बहुत ही दुखी हो गयी। अब उसके दिमाग में वह रात वहीं पहाड़ी की चोटी पर काटने के अलावा और कोई तरकीब नहीं आ रही थी। वह वहीं पड़ी एक चट्टान पर बैठ गयी और अपना गाल अपने हाथ पर रख कर रोने लगी।
वह अपनी बेरहम सौतेली माँ और सौतेली बहिनों और उनके कठोर शब्दों के बारे में सोचती रही जो उसको घर पहुँचने पर सुनने को मिलेंगे।
उसने अपने पिता राजा के बारे में भी सोचा जो लड़ाई के लिये बहुत दूर गया हुआ था। उसने अपने प्यार के बारे में सोचा जिसे वह अब शायद कभी नहीं देख पायेगी। वह यह सब सोच कर इतनी दुखी हो गयी कि उसको यही पता नहीं चला कि वह रो भी रही थी।
जब वह इस तरह वहाँ बैठी बैठी सोच में डूबी हुई थी तो उसने किसी की मीठी धीमी आवाज सुनी — “गुड ईवनिंग ओ प्यारी सी लड़की। तुम यहाँ अकेली इतनी दुखी क्यों बैठी हो।”
यह सुनते ही वह जल्दी से उठ कर खड़ी हो गयी। उसे बहुत बुरा लगा कि किसी ने उसे रोते देख लिया था। जब उसने अपने चारों तरफ देखा तो देखा कि वहाँ तो कोई नहीं था सिवाय एक बहुत ही छोटे बूढ़े के जो उसकी तरफ देख कर अपना मुँह ऊपर नीचे हिला रहा था और बहुत ही नम्र दिखायी दे रहा था।
वह बोली — “हाँ यह ठीक है कि मेरी किस्मत में ही दुख लिखा है और लिखा है कि मैं कभी खुश न रहूँ। पहले मेरा प्यार मुझसे खो गया था और अब मैं इस जंगल में रास्ता भूल गयी हूँ। मुझे डर है कि अब जंगली जानवर मुझे खा जायेंगे।”
बूढ़ा बोला — “इसके लिये तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है। अगर जैसा मैं तुमसे कहता हूँ तुम वैसा ही करोगी तो मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ।” यह सुन कर राजकुमारी बहुत खुश हुई क्योंकि उसको लग रहा था जैसे सारी दुनियाँ ने उसे छोड़ दिया हो।
तब उस बूढे ने एक चकमक पत्थर (Flint) निकाला और थोड़ा सा लोहा निकाला और लड़की से कहा “पहले तुम आग जलाओ।” उसने वैसा ही किया जैसा कि उस बूढ़े ने उससे करने के लिये कहा था।
उसने कुछ घास फूस और कुछ डंडियाँ इकठ्ठी कीं और ऐसी आग जलायी जिसकी लपटें आसमान तक पहुँच रही थीं। उसके बाद बूढ़े ने कहा “थोड़ी दूर और आगे चलो तो तुमको कोलतार का एक डिब्बा मिल जायेगा। उस डिब्बे को मेरे पास ले आओ।”
राजकुमारी वह डिब्बा वहाँ से उठा लायी तो बूढ़े ने कहा “अब इसको आग पर रख दो।” राजकुमारी ने वह भी कर दिया। जब कोलतार उबलने लगा तो उसने कहा “अब तुम अपना सफेद लिली का फूल इसमें डाल दो।”
राजकुमारी को उसका यह कहना कुछ अच्छा नहीं लगा सो उसने उससे बड़ी ईमानदारी से उससे विनती की कि वह उस फूल को उसके पास ही रहने दे।
बूढ़ा बोला — “क्या तुमने मेरा कहा मानने का वायदा नहीं किया था? तुम उसे इसमें फेंक दो नहीं तो तुम बहुत पछताओगी।” राजा की बेटी ने आग की तरफ से अपनी आँखें फेरीं और वह सुन्दर सफेद लिली का फूल उस उबलते हुए कोलतार में फेंक दिया। पर यह उसने अपनी मर्जी से नहीं किया था क्योंकि वह उस फूल को बहुत पसन्द करने लगी थी।
जैसे ही उसने यह किया कि उसने जंगल से आती एक बहुत ज़ोर की आवाज सुनी जैसे कोई जंगली जानवर दहाड़ा हो। वह दहाड़ और पास आती गयी जिससे सारा जंगल काँप रहा था। उसकी गुर्राहट से सारी पहाड़ी गूँज रही थी।
आखीर में जंगल के पेड़ों के टूटने की आवाज सुनायी देनी शुरू हुई। फिर झाड़ियों के इधर उधर फेंकने की आवाज आयी। उसके बाद राजकुमारी ने देखा कि एक भयानक भेड़िया जंगल के पेड़ों के बीच से हो कर उसी की तरफ भागा चला आ रहा है।
वह उसको देख कर बहुत डर गयी और तुरन्त ही भाग जाती अगर वह भाग सकती तो। कि उस बूढ़े ने उससे कहा — “यह डिब्बा उठाओ और जल्दी से पहाड़ी के उस किनारे की तरफ भाग जाओ। और जैसे ही वह भेड़िया तुम्हारे पास आये यह डिब्बा उसके ऊपर पलट देना।”
राजकुमारी इतनी डरी हुई थी कि उसको यही पता नहीं था कि वह क्या कर रही है फिर भी उसने वही किया जो उस बूढ़े ने उससे करने के लिये कहा था। उसने डिब्बा उठाया और पहाड़ी के किनारे की तरफ भागी। और जैसे ही भेड़िया पहाड़ी के ऊपर आया उसने वह डिब्बा उसके ऊपर उँडेल दिया।
उसी समय एक अजीब सी घटना घटी। जैसे ही उसने डिब्बे को उसके ऊपर पलटा तो भेड़िये ने अपना भूरा कोट उतार कर फेंक दिया और उस भयंकर जंगली जानवर की जगह अब एक बहुत सुन्दर आदमी खड़ा हुआ था जो पहाड़ी के ऊपर की तरफ देख रहा था।
जब राजकुमारी को होश आया तो उसने उसकी तरफ देखा तो देखा कि वह तो उसका प्यार खड़ा था जिसको एक वीयरवुल्फ़ में बदल दिया गया था।
अब यह तो सोचना बहुत आसान है कि राजकुमारी को उसे देख कर कैसा लग रहा होगा। वह तो बस इतनी खुश थी कि वह उससे लिपटने के लिये दौड़ पड़ी। न तो उससे कोई सवाल ही पूछ सकी और ना ही उसके किसी सवाल का जवाब दे सकी।
उधर राजकुमार भी जल्दी से उसकी तरफ दौड़ा और उसको गले लगा लिया। उसने उसको इस शाप से आजाद कराने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद दिया। वह उस छोटे बूढ़े को भी नहीं भूला। उसने उसको बहुत तरीके से उसकी सहायता के लिये धन्यवाद दिया।
उसके बाद वे दोनों वहीं पहाड़ी की चोटी पर एक जगह बैठ गये और बहुत देर तक बातें करते रहे। राजकुमार ने उसे बताया कि कैसे उसको वीयरवुल्फ़ बनाया गया और कैसे वह उस शक्ल में जंगल में इधर उधर भागता रहा। राजकुमारी ने भी उसको अपने दुख बताये और बताये कि उसके जाने के बाद वह कितना रोयी थी।
इस तरह वह सारी रात उन्होंने वहीं बिता दी। उनको यही पता ही नहीं चला कि कब तारे डूबने लगे और कब इतना उजाला हो गया कि वे अब रास्ता देख सकते थे।
जब सूरज निकल आया तो उनको वहाँ से किले का रास्ता साफ साफ दिखायी देने लगा क्योंकि उस पहाड़ी के चोटी से शहर और उसके चारों तरफ का सब कुछ दिखायी दे रहा था।
तब उस बूढ़े ने लड़की से पूछा — “ओ लड़की। घूम कर देखो क्या तुमको आस पास में कुछ दिखायी दे रहा है?”
राजकुमारी बोली — “हाँ मुझे एक घुड़सवार फेन उगलते हुए घोड़े पर सवार दिखायी दे रहा है। वह बहुत तेज़ भागा हुआ चला आ रहा है।”
बूढ़ा बोला — “यह तुम्हारे पिता राजा का भेजा हुआ दूत है जो आगे आगे चला आ रहा है। उसके पीछे पीछे राजा अपनी सारी फौज ले कर चला आ रहा है।”
इस बात ने तो राजकुमारी को बहुत ही खुश कर दिया। वह तुरन्त ही अपने पिता से मिलने के लिये पहाड़ी से उतरने वाली थी पर बूढ़े ने उसे ऐसा करने से रोक लिया — “अभी थोड़ा इन्तजार करो। अभी जल्दी है। हमको यह देखने दो कि यह सब क्या है।”
समय गुजर रहा था। सूरज बहुत ज़ोर से चमक रहा था। उसकी किरनें किले पर सीधी पड़ कर उसे चमका रही थीं। बूढ़े ने फिर से लड़की से कहा — “घूमो और देखो अब तुम्हें नीचे क्या दिखायी दे रहा है।”
राजकुमारी बोली — “मैं अब देख रही हूँ कि मेरे पिता के किले से बहुत सारे लोग निकल रहे हैं। उनमें से कुछ लोग सड़क की तरफ जा रहे हैं और कुछ जंगल की तरफ आ रहे हैं।”
बूढ़े ने कहा — “ये लोग तुम्हारी सौतेली माँ के भेजे हुए लोग हैं। उसने कुछ को राजा की अगवानी करने के लिये भेजे हैं जबकि दूसरों को जंगल में तुम्हें ढूँढने के लिये भेजे हैं।”
यह सुन कर राजकुमारी तो बहुत बेचैन हो गयी और उसने अपनी माँ के नौकरों के पास जाना चाहा पर बूढ़े ने उसे फिर से रोक लिया — “अभी ज़रा रुको। देखते हैं कि आगे क्या होता है।”
कुछ और समय निकल गया। लड़की बार बार नीचे सड़क की तरफ देखती रही ताकि वह अपने पिता की एक झलक देख सके। तब उस बूढ़े ने पूछा — “अब तुम वहाँ क्या देखती हो?”
राजकुमारी बोली — “मैं देख रही हूँ कि मेरे पिता के किले में कुछ हलचल मची हुई है। वे लोग उसको काले कपड़े में लिपटा कर टाँग रहे हैं।”
बूढ़ा बोला — “वे तुम्हारी सौतेली माँ और उसके आदमी हैं जो तुम्हारे पिता को को यह विश्वास दिलायेंगे कि तुम मर चुकी हो।”
यह सुन कर राजा की बेटी को बहुत गुस्सा आ गया। उसने अपने दिल के अन्दर से उस बूढ़े से विनती की कि वह उसको अब जाने दे ताकि वह अपने पिता को इस गहरे दुख से बचा सके पर बूढ़े ने उसको फिर से यह कह कर मना कर दिया कि अभी भी जल्दी है अभी उसको कुछ और इन्तजार करना चाहिये और देखना चाहिये कि आगे क्या होता है।
फिर कुछ समय निकल गया। सूरज ऊपर आसमान में बहुत तेज़ चमक रहा था। मैदानों में और जंगल में गर्म हवा बहने लगी थी। राजकुमारी और नौजवान बूढ़े के साथ अभी भी वहीं पहाड़ी की चोटी पर बैठे हुए थे जहाँ हमने उन्हें बैठे हुए छोड़ा था।
तभी उनको दूर क्षितिज पर एक बादल उठता हुआ दिखायी दिया। वह बादल धीरे धीरे बढ़ता गया बढ़ता गया और सड़क के पास आता चला गया। जैसे जैसे वह बादल पास आता जा रहा था उनके हथियार उनके ऊपर नीचे हिलते हैल्मैट और राजा के झंडे साफ दिखायी देते जा रहे थे। तलवारों के लड़ने की आवाजें भी आने लगी थीं। बाद में राजा के झंडे भी पहचान में आने लगे।
यह सोचना तो मुश्किल नहीं है कि राजा की बेटी उस सबको देख कर कितनी खुश हुई होगी और फिर कैसे उसने उस बूढ़े से अपने पिता से मिलने की इजाज़त माँगी होगी। पर बूढ़े ने उसे फिर से उसे अपने पिता से मिलने से रोक लिया।
बूढ़े ने पूछा — “ओ सुन्दर लड़की। पीछे घूम कर देखो कि तुमको अपने किले में क्या दिखायी देता है।”
राजकुमारी बोली — “मैं देख रही हूँ कि मेरी सौतेली माँ और मेरी सौतेली बहिनें किले से बाहर निकल रही हैं। वे दुख वाले कपड़े पहने हुए हैं और उन्होंने सफेद रूमाल अपने चेहरे पर लगाया हुआ है और वे बहुत ज़ोर ज़ोर से रो रही हैं।”
बूढ़ा बोला — “अभी वे इस तरह तुम्हारी मौत का बहाना ले कर दुखी होने का बहाना कर रही हैं। इसलिये तुम अभी रुक जाओ क्योंकि हमने अभी पूरी तरह देखा नहीं है कि क्या क्या होने वाला है।”
कुछ देर बाद बूढ़े ने फिर पूछा — “ओ सुन्दर लड़की। अब पीछे घूमो और देख कर बताओ कि नीचे तुम्हें क्या दिखायी दे रहा है।”
राजकुमारी बोली — “मैं देख रही हूँ कि कुछ लोग एक काले रंग का ताबूत ला रहे हैं। मेरे पिता उसको खुलवा रहे हैं। रानी और उसकी दोनों बेटियाँ अपने घुटनों पर बैठी हैं और मेरे पिता अपनी तलवार दिखा कर उनको धमका रहे हैं।”
इस पर बूढ़े ने कहा — “राजा तुम्हारा शरीर देखना चाहते थे सो तुम्हारी नीच सौतेली माँ को सच स्वीकार करना पड़ा।”
जब राजकुमारी ने यह सुना तो बड़े दीनता से कहा —
“मेहरबानी कर के मुझे जाने दीजिये ताकि मैं अपने पिता को इस
दुख में कुछ तसल्ली दे सकूँ।”
पर बूढ़े ने उसको जाने के लिये फिर से मना किया — “मेरी बात मान लो और अभी रुक जाओ। देखते हैं कि आगे क्या होता है अभी हमने सब कुछ देखा नहीं है।”
समय फिर गुजरता रहा। राजकुमारी राजकुमार और बूढ़ा तीनों
वहीं पहाड़ी की चोटी पर ही बैठे रहे। कुछ देर बाद बूढ़ा फिर बोला
— “लड़की घूम कर देखो कि अब तुम नीचे क्या देखती हो।”
लड़की बोली — “मैं देख रही हूँ कि मेरे पिता मेरी सौतेली माँ और सौतेली बहिनों के साथ इधर ही चले आ रहे हैं।”
बूढ़ा बोला — “अब वे तुम्हें ढूँढने निकले हैं। अब तुम नीचे जाओ और भेड़िये की खाल ऊपर ले आओ।”
राजा की बेटी ने वैसा ही किया जैसा बूढ़े ने उससे करने के लिये कहा था। बूढ़ा आगे बोला — “अब तुम पहाड़ी के किनारे पर खड़े हो जाओ।”
राजकुमारी ने फिर वैसा ही किया तो उसने देखा कि रानी और उसकी बेटियाँ उसी की तरफ चली आ रही हैं और आ कर पहाड़ी के नीचे खड़ी हो गयी हैं। बूढ़ा बोला “अब इस खाल को नीचे फेंक दो।”
राजकुमारी ने उसका कहा मान कर वह खाल नीचे फेंक दी। वह खाल नीच रानी और उसकी दोनों बेटियों के ठीक ऊपर पड़ी। और तभी एक बड़ी आश्चर्यजनक घटना घटी जैसे ही उस खाल ने उन तीनों को छुआ उन तीनों की शक्ल बदल गयी।
अब वे तीनों ही भयानक वीयरवुल्फ़ बन गयी थीं। वीयरवुल्फ़ बनते ही वे तीनों भयानक तरीके से आवाज करते हुए जंगल में भाग गयीं।
कुछ ही देर में राजा अपनी फौज के साथ वहाँ आ गया। जब उसने पहाड़ी के ऊपर की तरफ देखा तो वह अपनी बेटी को वहीं से पहचान गया। पहले तो उसको अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वहाँ उसकी बेटी खड़ी थी। वह तो बस यह सोच कर बिना हिले डुले ही खड़ा रह गया कि वह सच देख रहा था या फिर कोई सपना।
तब बूढ़े ने कहा — “जाओ ओ सुन्दर लड़की नीचे जाओ और अपने पिता के पास जा कर उनका दुख दूर करो।”
लड़की को दोबारा कहने की जरूरत नहीं पड़ी। उसने राजकुमार का हाथ पकड़ा और तुरन्त ही पहाड़ी के नीचे की तरफ भाग ली। जब वे लोग नीचे आये तो राजकुमारी आगे आगे थी। वह भाग कर अपने पिता के गले लग गयी और खुशी से रो पड़ी। राजकुमार भी खुशी से रो पड़ा। राजा खुद भी रो पड़ा।
उन सबको इस तरह से खुशी से रोते देख कर और लोग भी बहुत खुश हुए। सब तरफ लोग बहुत खुश थे। राजकुमारी ने तब अपनी सौतेली माँ और बहिनों की नीचता बतायी।
राजकुमार के बारे में भी बताया कि उनकी वजह से उस बेचारे को भी कितना परेशान होना पड़ा। फिर उसने उन्हें अपने बारे में भी बताया कि कैसे एक बूढ़े और बुढ़िया की सहायता से वह उसको ढूँढ सकी।
पर जब राजा उस बूढ़े को धन्यवाद देने के लिये घूमा तो वह तो वहाँ से गायब ही हो चुका था। उस दिन के बाद से न तो किसी ने उसे देखा और न ही कोई यह बता सका कि वह कहाँ गया।
राजा अपने बच्चों और फौज के साथ किले लौट आया। वहाँ आ कर उसने एक बहुत शानदार दावत का इन्तजाम किया जिसमें उसने अपने राज्य के सब बड़े और कुलीन लोगों को बुलाया। तभी उन सबके सामने उसने अपनी बेटी राजकुमार को दे दी। दोनों की शादी बहुत धूमधाम से बाजे गाजे के साथ हुई। यह उत्सव कई दिनों तक चला।
मैं भी वहीं था और जब मैं अपने घोड़े पर सवार हो कर जंगल से गुजर रहा था तो मुझे एक भेड़िया मिला जिसके साथ दो बच्चे भेड़िये भी थे। उन्होंने गुस्से से मुझे अपने दाँत दिखाये। मुझे किसी ने बताया कि वे राजकुमारी की सौतेली माँ और उसकी दोनों सौतेली बहिनें थे।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)