पानी का भूत और मछियारा : चीनी लोक-कथा
The Water Ghost and the Fisherman : Chinese Folktale
पानी के भूत चीन में हर नदी और समुद्र में रहते हैं। वे भूत उन बदकिस्मत आदमियों, मछियारों और मल्लाहों की आत्माऐं हैं जो या तो नदी या समुद्र में डूब गये थे या फिर उनके सबसे गहरे और काले पानी की तली में चले गये थे।
वे वहाँ तब तक रहते थे जब तक कि उनको कोई दूसरा आदमी ऐसा न मिल जाये जो वहाँ उनकी जगह ले ले।
जब किसी आदमी को या तो वे खुद मार लेते थे या फिर उनको खुद ही मरा हुआ कोई आदमी मिल जाता था तो वे भूत उस आदमी की जगह आदमी के रूप में पैदा हो जाते थे।
कुछ पानी के भूत किस्मत वाले होते थे क्योंकि उनके समुद्र इतने तूफानी और खतरनाक होते थे कि वहाँ लोग मरते ही रहते थे और इस तरह से वे भूत फिर से आदमी के रूप में पैदा होते ही रहते थे।
उनका यह नियम था कि जैसे ही कोई पानी का भूत किसी आदमी को मारता था और उसको पानी की तली में ले जाता था वह भूत फिर से एक नयी आत्मा के साथ आदमी के रूप में पैदा हो सकता था।
ऐसा ही पानी का एक भूत हुंग माओ पी37 गाँव के पास से बहती हुई नदी के पानी में रहता था। वह वहाँ बहुत ही अकेला महसूस करता था। जहाँ तक उसको याद पड़ता था वह वहाँ का अकेला ही भूत था।
पर वह गाँव इतना छोटा था कि वहाँ के बहुत कम लोग उस नदी पर जाते थे। और जब भी वे जाते थे तो वह भूत हमेशा ही उनको खींच कर डुबोने का मौका खो देता था इसलिये वह कभी आदमी बन कर पैदा ही नहीं हो पा रहा था।
कई सालों से वह भूत फ़ुंग ही38 को डुबोने का प्लान बना रहा था। फ़ुंग ही उस गाँव का एक बहुत ही होशियार और हँसमुख मछियारा था और वह उस भूत के क्षेत्र में से हफ्ते में कम से कम चार बार तो गुजरता ही था।
पानी के उस भूत ने कई बार पानी में तूफान उठाये, उस मछियारे का जाल फाड़ दिया, उसकी नाव में छेद कर दिया पर फ़ुंग मछियारा ही बहुत ही होशियार था और वह भूत उसको किसी भी तरह पकड़ नहीं पा रहा था।
एक दिन उसने उस मछियारे के जाल के आस पास की मछलियों को हटाने में दस घंटे खर्च किये ताकि वह उस मछियारे को रात को मछली पकड़ने पर मजबूर कर सके। उसने ऐसा ही किया।
जैसे ही चाँद घने बादलों के पीछे छिपा पानी का भूत फ़ुंग ही की नाव पर चढ़ गया और उसके किनारे के पास एक अँधेरे कोने में जा कर छिप कर बैठ गया। वहाँ बैठ कर वह उस मछियारे को मारने के समय का इन्तजार करने लगा।
उस समय फ़ुंग ही चुपचाप पानी की तरफ देख रहा था। पानी के भूत ने सुना कि वह चुपचाप भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि वह उसको कम से कम कुछ मछलियाँ दे दे चाहे वह उसको थोड़ी सी ही मछलियाँ ही क्यों न दे पर दे दे।
फिर उस पानी के भूत ने देखा कि फ़ुंग ही ने अपने लकड़ी के कटोरे में से अपने आखिरी चावल खा कर खत्म किये।
आखीर में पानी के भूत ने उसको पकड़ने की उम्मीद छोड़ दी और वह वहाँ से जाने ही वाला था कि तभी उसने देखा कि उसी समय वह मछियारा नदी में से अपना जाल समेटने के लिये अपनी नाव के एक तरफ को झुका।
बस उस भूत को मौका मिल गया और उसने फ़ुंग ही को काले और अँधेरे पानी में धक्का दे दिया।
दो मिनट तो फ़ुंग ही पानी के भूत की पकड़ से लड़ा पर फिर बेहोश हो गया। यह देख कर पानी का भूत बहुत खुश हुआ। उसको लगा कि वह मछियारा मर गया और वह खुशी खुशी उस मछियारे के शरीर को नदी के किनारे खींच लाया।
वहाँ उसने नदी की कीचड़ उसके चेहरे पर मली और भूत की एक गोली उसकी जबान पर रख दी। उस मछियारे के शरीर को भूतों की दुनियाँ में ले जाने के लिये तैयार करने के बाद वह भूत अपने इस कारनामे को समुद्र के बादशाह येन लो वान को बताने के लिये वहाँ से जितनी तेज़ी से उड़ सकता था उड़ गया।
पर पानी के भूत ने अपनी कामयाबी का ज़रा ज़्यादा जल्दी ही अन्दाज लगा लिया क्योंकि वह मछियारा अभी मरा नहीं था वह तो अभी केवल बेहोश ही हुआ था। अपनी कामयाबी की खुशी में उत्सुक पानी के भूत को उसके दिल की धीमी धीमी धड़कन सुनायी ही नहीं दी।
वह मछियारा कुछ देर तक वहीं नदी के किनारे बिना हिले डुले पड़ा रहा और यह देखता रहा कि पानी का भूत वहाँ से गायब हो गया कि नहीं।
यह पक्का करने के बाद कि वह पानी का भूत वहाँ से चला गया उसने वह भूत की गोली अपने मुँह में से निकाल कर अपनी जेब में रख ली, अपने चेहरे की कीचड़ नदी के पानी से साफ की और अपने घर भाग गया। घर जा कर उसने अपने घर का दरवाजा बन्द कर लिया और जा कर सो गया।
जब यह सब यहाँ धरती पर हो रहा था तो समुद्र का बादशाह येन लो वान उस पानी के भूत से उसके उस मछियारे के पकड़ने का हाल सुन रहा था।
मछियारे के पकड़ने का हाल सुना कर पानी का भूत अब समुद्र के बादशाह से प्रार्थना कर रहा था कि अब तो वह उसको आदमी के रूप में पैदा कर दे।
येन लो वान अपने शानदार सोने के सिंहासन से उठा, उसने पास में रखी मूँगे की मेज पर से “ज़िन्दा और मुर्दा लोगों की किताब” उठायी और उसके पन्ने पलट कर उस पन्ने पर गया जहाँ समुद्र में अभी अभी मरे हुए लोगों के नाम लिखे थे।
काफी देर तक इधर उधर देखने के बाद भी उसको उस किताब में उस मछियारे का नाम नहीं मिला जिसके मारने का जिक्र वह पानी का भूत कर रहा था।
यह देख कर येन लो वान ने पानी के उस भूत से पूछा — “क्या तुमको पूरा यकीन है कि वह मछियारा मर गया था?”
पानी का भूत परेशान सा ज़ोर से चिल्लाया — “हाँ मुझे पूरा यकीन है कि वह मछियारा मर गया था। धरती का कोई भी आदमी आपके पानी में तीन मिनट से ज़्यादा ज़िन्दा कैसे रह सकता है?”
समुद्र का बादशाह गरजा — “तुम्हें पता है कि यह तुम मेरे पास आज किसी मरे हुए की कहानी ले कर चौथी बार आये हो और आज तुम फिर बेवकूफ बन गये हो।
वह मछियारा अभी मरा नहीं है। मेरे लिखने वाले इस किताब में नाम लिखने में गलती नहीं कर सकते।
जाओ जल्दी नदी में वापस चले जाओ और इससे पहले कि तुम हमेशा के लिये आदमी बन कर जीने का मौका खो बैठो उस आदमी के मुँह में से वह भूत की गोली वापस निकाल लो।”
समुद्र के बादशाह ने अपने केंकड़े चौकीदारों को बुलवाया और उनसे कहा कि वे उस दुखी पानी के भूत को धरती तक वापस ले जायें ताकि वह उस मछियारे के मुँह में से भूत वाली गोली निकाल सके। राजा का हुक्म मान कर वे उसको धरती तक छोड़ आये।
वहाँ से वह पानी का भूत नदी के किनारे तक दौड़ा गया जहाँ उसने उस मछियारे के शरीर को छोड़ा था पर वहाँ तो केवल उसके शरीर का निशान ही मौजूद था और कुछ नहीं। मछियारा तो वहाँ से गायब हो चुका था।
बदकिस्मत पानी का भूत उस मछियारे को ढूँढने को लिये पागलों की तरह से गाँव का घर घर झाँकता रहा – कभी उन घरों की खिड़कियों में से तो कभी उन घरों में बनी झिरियों में से। फिर कभी वह उनका दरवाजा खटखटाता और जैसे ही घर का मालिक दरवाजा खोलता तो उस मछियारे को न पा कर वह वहाँ से गायब हो जाता।
आधी रात से पहले पहले वह एक घंटे तक ऐसे ही उस मछियारे को ढूँढता रहा पर वह उसको कहीं नहीं मिला। आखीर में उसको उस मछियारे का लकड़ी का बना घर मिल ही गया। वह उस मछियारे के घर का दरवाजा तब तक खटखटाता रहा जब तक कि वह अपने बिस्तर से उठ कर यह देखने पर मजबूर नहीं हो गया कि वहाँ क्या हो रहा था। कौन उसका दरवाजा खटखटा रहा था।
आधे सोते हुए मछियारे ने अपने दरवाजे को बहुत थोड़ा सा खोल कर उसमें से बाहर झाँका पर बाहर बहुत अँधेरा था इसलिये उसको कुछ दिखायी नहीं दिया।
उसने दरवाजा थोड़ा सा और खोला ताकि वह अपने घर के आगे बने छोटे से बरामदे को ठीक से देख सके। वहाँ उसने देखा कि लकड़ी के एक लठ्ठे के सहारे खड़ा खड़ा पानी का भूत सिसक रहा था।
पानी के भूत ने सिसकते सिसकते ही मछियारे से प्रार्थना की — “मेरे मछियारे भाई, तुम कम से कम मुझे मेरी वह भूत की गोली तो वापस कर दो नहीं तो मैं फिर कभी इस धरती पर नहीं आ पाऊँगा।”
मछियारे को उस भूत पर दया आ गयी। वह तुरन्त ही घर के अन्दर दौड़ गया और भूत की वह कीमती गोली ले कर वापस आ गया।
पर वह उस गोली को केवल इस शर्त पर लौटाने के लिये तैयार था कि वह भूत उसका मछली का जाल हमेशा ही मछलियों से भर दिया करेगा। भूत को उसकी यह शर्त माननी पड़ी। मछियारे ने उस भूत की गोली उसको लौटा दी और वह भूत उससे वह गोली ले कर वहाँ से वापस चला गया।
उस दिन के बाद से तो उस मछियारे की मछलियों का शिकार दस गुना बढ़ गया। अब तो अक्सर ही उसकी नाव मछलियों से इतनी ज़्यादा भरी रहती कि उसको हमेशा ही यह लगता रहता कि वह नदी के किनारे तक सुरक्षित पहुँच भी पायेगा या नहीं।
पहले तो वह पानी का भूत जब मछलियाँ उस मछियारे की तरफ धकेलता तो वह पानी की सतह के ठीक नीचे ही रहता पर बाद में फिर वह मछियारे से बात करने के लिये पानी की सतह के ऊपर भी दिखायी देने लगा।
जल्दी ही दोनों अच्छे दोस्त बन गये। उनकी पहली मुलाकात के ठीक एक महीने के बाद एक दिन मछियारे ने पानी के भूत को अपने घर शाम के खाने के लिये बुलाया।
अब दोनों को एक दूसरे का साथ इतना अच्छा लगने लगा कि वे मछियारे के घर में खाना खाने के लिये हफ्ते में दो बार मिलने लगे।
एक दिन सुबह सुबह पानी का भूत मछियारे के घर आया और उसका हाथ पकड़ कर बोला — “मुझे तुम्हें यह बताते हुए बहुत अफसोस हो रहा है दोस्त पर अब मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ेगा।”
मछियारा आश्चर्य से बोला — “क्यों? क्या हुआ?”
पानी का भूत खुश हो कर बोला — “आज शाम को एक बुढ़िया उस कीचड़ वाली नदी के किनारे आयेगी और अगर मैं वहाँ से उसको एक हल्का सा भी धक्का दूँगा तो वह नदी के पानी में गिर जायेगी और गहरे पानी में डूब जायेगी।
यह मेरी किस्मत बदलने के लिये बहुत ही अच्छा मौका है। तुम मेरे बहुत ही अच्छे दोस्त रहे हो। मुझे तुमको छोड़ते हुए बहुत दुख हो रहा है पर मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं है।”
मछियारा चिल्लाया — “एक मिनट, एक मिनट। मुझे मालूम है कि तुम्हारे लिये इस आत्मा की दुनियाँ से बाहर निकलना कितना जरूरी है पर तुम एक भोली भाली बुढ़िया को इस तरह से नहीं मार सकते।
तुम उसको इतनी दर्दनाक मौत कैसे दे सकते हो और फिर मुझे मछली पकड़ने में कौन सहायता करेगा? तुम्हारे बिना तो मैं ज़िन्दा भी कैसे रहूँगा?”
कई महीनों से साथ साथ रहते पानी का भूत अब अपने नये दोस्त मछियारे की बहुत परवाह करने लगा था सो वह मछियारे की मेज पर बैठ गया और इस समस्या का कुछ हल सोचने लगा। दोनों दोस्त बहुत देर तक चुपचाप बैठे रहे।
आखिर पानी का भूत मछियारे की बात मानता हुआ बोला — “ठीक है। मैं अपना यह काम तीन साल के लिये रोक देता हूँ।”
और इस वायदे के अनुसार तीन साल तक उस नदी में फिर कोई नहीं डूबा। वे दोनों रोज झील के किनारे मिलते, अक्सर मछियारे के घर साथ साथ खाना खाते और त्यौहारों पर तो अक्सर वह पानी का भूत मछियारे के घर में ही रह जाता।
पर फिर एक दिन ऐसा आया जब पानी के भूत ने एक तैराक को डुबोने का विचार किया और मछियारे के यह बात बतायी पर एक बार फिर उसको मछियारे की बात माननी पड़ी और वह तैराक मरने से बच गया।
एक दिन वह पानी का भूत मछियारे से फिर बोला — “कल एक जवान लड़का नदी में तैरने जायेगा और मैं उसको नदी की तली में डुबो दूँगा। और तुम ध्यान से सुन लो इस बार तुम मुझे नहीं रोकोगे क्योंकि मैं इस नदी में हमेशा के लिये नहीं रह सकता।”
इस बार मछियारा कुछ नहीं बोला। वह दुखी हो कर फर्श की तरफ देखता रहा और अपना सिर हिलाता रहा। पानी का भूत यह सब उससे कह कर वहाँ से चला गया।
अगले दिन मछियारा रोज की तरह से अपनी नाव ले कर नदी के बीच में गया।
जैसे ही वह अपना मछली पकड़ने वाला जाल नदी में डाल रहा था कि उसने एक लड़के को नदी किनारे रस्सी कूदते हुए देखा तो उसने अपना जाल तो छोड़ दिया और अपनी नाव की पतवार पकड़ कर उसे किनारे की तरफ ले चला जहाँ वह लड़का पानी में घुसने की कोशिश कर रहा था।
मछियारा वहीं से चिल्लाया — “ए लड़के, तुम अभी अभी अपने घर चले जाओ। तुम्हारी माँ तुमको बुला रही है। अगर तुम अभी अभी घर नहीं गये तो वह तुमको आलसी होने के लिये बहुत मारेगी।”
लड़का यह सुन कर डर गया और अपने घर भाग गया। इधर मछियारा भी सन्तुष्ट हो कर अपना जाल देखने के लिये वापस लौट आया।
उस शाम को पानी का भूत जब मछियारे के घर आया तो बहुत नाराज था पर मछियारे को उसकी इस बात का पता था सो उसने उसके शाम के खाने के लिये बहुत स्वाददार मछली और माँस पका कर मेज पर सजा रखा था।
जैसे ही पानी का भूत उसके घर में घुसा तो मछियारे ने उससे माफी माँगते हुए कहा — “मुझे मालूम है मेरे दोस्त कि तुम मुझसे गुस्सा हो पर ज़रा सोचो उस लड़के के आगे तो अभी पूरी ज़िन्दगी पड़ी है और तुम उसको अभी से मार देना चाहते थे।”
मछियारा आगे बोला — “देखो तुम मुझे इलजाम मत देना पर अब मैं तुम्हारे कामों में बिल्कुल भी दखल नहीं दूँगा।”
मछियारे के शब्दों से सन्तुष्ट होते हुए और खाने के लालच में वह पानी का भूत वहीं खाना खाने बैठ गया। इसके बाद यह मामला फिर हमेशा के लिये बन्द हो गया।
फिर कुछ साल बीत गये। दोनों की दोस्ती चलती रही। पर एक दिन फिर जब पानी का भूत मछियारे के घर खाना खा रहा था तो भूत का धीरज फिर से छूट गया और वह मछियारे से बोला कि अब उसके नदी छोड़ने का समय आ गया था।
बहुत ही भारी दिल से उसने मछियारे को अपना प्लान बताया।
वह बोला — “तुमको मालूम है कि मैं तुम्हारी बहुत परवाह करता हूँ पर ज़रा तुम अपनी ज़िन्दगी से मेरी इस भूतिया ज़िन्दगी की जो मैं नदी की तली में बिताता हूँ तुलना तो करो। जब तक मैं अपनी सहायता अपने आप नहीं करूँगा मैं हमेशा के लिये यहीं पड़ा रह जाऊँगा।
और जब तुम मर जाओगे तो मेरा इस दुनियाँ में कोई भी दोस्त नहीं रह जायेगा इसलिये मुझे अपने आपको बचाने के लिये कुछ न कुछ तो करना ही चाहिये।
मैंने सुना है कि तुम्हारी पड़ोसन चाँग शान अपने पति से बहुत झगड़ा करती है। और मुझे ऐसा भी पता चला है कि कल वह नदी में डूब कर आत्महत्या करने वाली है।
इस तरह से इस बार मैं किसी को मार नहीं रहा बल्कि वह अपने आप ही मरने जा रही है। इसलिये इस बार तुम मुझको किसी को मारने का इलजाम नहीं दे सकते। और हाँ देखो मेरे इस काम में कोई रोक टोक भी मत लगाना।”
यह खबर सुन कर तो मछियारा सकते में आ गया। उसको तो इस बात का पता ही नहीं था कि वे दोनों लड़ते भी थे। हालाँकि उसने पानी के भूत के मामलों में दखल न देने का वायदा किया था पर फिर भी उसने मन ही मन चाँग शान की सहायता करने का फैसला कर लिया।
उस रात मछियारे को रात भर नींद नहीं आयी। वह अपने आगे के प्लान के बारे में ही सोचता रहा कि उसे क्या करना है। सुबह उसने निश्चय किया कि वह अपनी दोस्ती को दाँव पर लगा कर भी उस स्त्री को बचायेगा।
मछियारा सुबह को नहाया भी नहीं, उसने कुछ खाया भी नहीं और अपने बालों में कंघी भी नहीं की। बस तुरन्त ही कपड़े पहन कर वह नदी की तरफ चल दिया।
वह बस समय से ही नदी पर पहुँच पाया क्योंकि चाँग शान तभी तभी नदी के भँवर में कूदी थी। यह देख कर वह खुद भी उसके पीछे पीछे नदी में कूद गया।
भँवर की तेज लहरें दोनों को नदी की तली की तरफ ले गयीं। मछियारे ने उस स्त्री को पकड़ तो लिया पर वह बेहोश हो गयी थी। फिर भी उसने उसको और खुद को बाहर निकालने में अपनी पूरी ताकत लगा दी।
पानी का भूत देखता रहा पर उसने दोनों को न तो बचाने की कोई कोशिश की और न ही मारने की कोशिश की। वह बस अपनी किस्मत का इन्तजार करता रहा। कुछ देर बाद मछियारा चाँग शान को बाहर ले कर आ गया और उसको उसके पति के पास छोड़ आया।
उस रात भूत ने मछियारे का दरवाजा खटखटाया। बिना किसी जवाब की उम्मीद के पानी का भूत अन्दर आया और बिना कुछ बोले ही रसोईघर की मेज पर बैठ गया।
मछियारे ने उसको अपनी कुछ सफाई देनी चाही पर पानी के भूत ने उसको कुछ भी कहने से पहले ही रोक दिया।
वह बोला — “मैं यहाँ तुमको कुछ कहने या तुम्हारे ऊपर चिल्लाने नहीं आया हूँ। मुझे मालूम है कि तुमने उस स्त्री को क्यों बचाया और मुझे यह भी मालूम है कि तुमने यह इरादा ऐसे ही नहीं किया होगा।
मुझे यह भी मालूम है कि तुम मेरी कितनी परवाह करते हो पर साथ में तुम आदमियों की ज़िन्दगियों की भी परवाह करते हो। इसी लिये मैं वायदा करता हूँ कि मैं खुद अब किसी को नहीं मारूँगा। वे अपने आप ही मरें तो मरें। जो कुछ मुझे भगवान ने दिया है मैं उसी को स्वीकार करता हूँ।”
मछियारे ने जब पानी के भूत के ये शब्द सुने तो उसको लगा कि जितने भी दोस्त उसने अपनी ज़िन्दगी में बनाये थे उन सबमें यह भूत उसका सबसे अच्छा दोस्त था।
इस घटना के बाद पानी के भूत और मछियारे दोनों ने बहुत सारा समय खाने पीने, ताश खेलने, मछली पकड़ने में बिता दिया। उनकी पहली मुलाकात से आज तक दस साल गुजर गये थे और पानी के भूत ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया था।
इस बीच समुद्र के बादशाह के महल में येन लो वान अपनी सारे लोगों पर ठीक से नजर रखे था। उसके दूसरे भूत और आत्माएँ बदकिस्मत लोगों को डुबो देते थे और उनकी जगह आदमी बन जाते थे जबकि उसका यह पानी का भूत हुंग माओ पाई अपने क्षेत्र में आने वाले किसी भी आदमी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता था।
उस पानी के भूत ने बड़ी नम्रता से अपनी किस्मत को ही स्वीकार कर लिया था। इसको देख कर जेड बादशाह को भी आश्चर्य होता था।
यह देख कर उसने अपने महल में अपनी काउन्सिल बुलायी जहाँ समुद्र के बादशाह येन लो वान ने जेड बादशाह से पानी के भूत की तरक्की की सिफारिश की तो जेड बादशाह ने पानी के भूत को ज़िला के देवता चेंग हुआँग के पद पर तरक्की करने का फैसला किया और उसको वह पद दे दिया।
पतझड़ के मौसम की एक शाम को जब पानी का भूत मछियारे के घर जाने के लिये नदी की गहराइयों से ऊपर उठा तो उसको जेड बादशाह का वज़ीर सामने ही मिल गया। उसके हाथ में उसकी तरक्की का कागज था।
वह तरक्की देख कर पानी का भूत बहुत खुश हुआ और अपनी खुशी छिपा न सका। वह अपनी तरक्की का कागज ले कर तुरन्त ही मछियारे के घर की तरफ दौड़ गया।
पर मछियारा तब तक बाजार से नहीं लौटा था और पानी का भूत अपना समय गर्म नहीं करना चाहता था सो उसने उसके लिये अपने नये घर में आने के लिये एक न्यौता छोड़ा और अपना ऊँचा ओहदा लेने के लिये वहाँ से उड़ गया।
जब मछियारा बाजार से लौटा तो उसने अपने घर में पानी के भूत का वह न्यौता पाया तो उसको विश्वास हो गया कि इस देवता को जरूर ही कुछ गलतफहमी हो गयी है।
काफी दिनों तक मछियारा यह तय नहीं कर पाया कि वह क्या करे – वह वहाँ जाये या नहीं जाये। पर क्योंकि न्यौते का दिन पास आ रहा था इसलिये उसको कुछ तो निश्चय करना ही था सो उसने वह न्यौता स्वीकार करने का निश्चय किया।
एक बात और भी थी कि जिस दिन से मछियारे ने वह न्यौता अपने रसोईघर की मेज पर पाया था तब से ले कर आज तक उसने पानी के भूत को नहीं देखा था।
वह रोज नदी के किनारे पर भी जाता और उसको नदी के गहरे पानी में पुकारता पर उसे कोई जवाब ही नहीं मिलता। वह रोज उसका इन्तजार करता कि वह उसके घर का दरवाजा खटखटायेगा पर वैसा भी कभी नहीं हुआ।
दिन पर दिन मछियारे के शिकार की मछलियों की गिनती कम होती जा रही थीं पर यह सब उसके लिये अपने दोस्त को खोने के सामने कुछ नहीं था।
फिर वह दिन भी आया जब मछियारे को चेंग हुआँग के मन्दिर जाना था। वह वहाँ पहुँचा पर वहाँ की तो जमीन और मन्दिर दोनों ही खाली पड़े थे। शाम हो चली थी और मन्दिर के खम्भों और पेड़ों की पत्तियों से हो कर हल्की हवा बह निकली थी।
मछियारा अपनी यात्रा से थक गया था सो उसने मन्दिर के सामने पड़ी एक पत्थर की बैन्च पर पड़ी पत्तियाँ साफ की, उस पर अपनी सूती जैकेट बिछायी और आराम करने के लिये लेट गया। थका था इसलिये लेटते ही सो गया।
सपने में उसने अपने दोस्त पानी के भूत को चेंग हुआँग के कपड़े पहने देखा। उसका दोस्त उसके पास आया और उसने उसको एक सोने की प्लेट दी जिसमें माँस रखा हुआ था। उस माँस में से बहुत ही अच्छी खुशबू उड़ रही थी और उसके साथ में एक बहुत ही मुश्किल से मिलने वाली मछली भी रखी हुई थी।
वह पानी का भूत उसके पास चुपचाप खड़ा रहा और वह मछियारा खाना खाता रहा। जब मछियारे का खाना खत्म हो गया तो पानी के भूत ने सोने के सिक्कों से भरा एक भारी थैला उसकी गोद में रख दिया।
फिर उसके सामने झुक कर बोला — “मेरे अच्छे दोस्त, अगर तुम मेरे दोस्त न होते तो मैंने अब तक बहुत सारे लोग मार दिये होते।
पर तुमने मुझे उस पाप से बचा लिया और अब मैं तुम्हारे सामने तुमको धन्यवाद देने के लिये अपना सिर झुकाता हूँ। अब तुम मुझे कभी नहीं देख पाओगे पर तुम हमेशा मेरे ख्यालों में रहोगे।” और उसके बाद वह पानी का भूत मछियारे के सपने में से चला गया।
जब मछियारे की आँख खुली तो दिन निकल रहा था। जैसे ही वह अपनी जैकेट उठाने के लिये और मन्दिर से जाने के लिये बैन्च से उठा एक भारी सा सोने से भरा थैला उसकी गोद से नीचे जमीन पर गिर पड़ा।
मछियारा उस थैले को ले कर घर चला गया और सोचने लगा कि वह केवल उसका सपना ही नहीं था बल्कि उसने सच में ही अपने भूत दोस्त को देखा था।
उसने अपने दोस्त के दिये हुए पैसे को बड़ी अक्लमन्दी से खर्च किया और एक बहुत ही अमीर व्यापारी बन गया। उस दिन के बाद वह उस नदी में कभी मछली पकड़ने नहीं गया और न ही कभी कोई वहाँ डूबा।
पर उस दिन के बाद से वह रोज उस नदी के किनारे जरूर जाता और चेंग हुआँग देवता की प्रार्थना करता।
Hung Mao Pei – name of the Ghost
Fung Hei – name of the fisherman
Yen Lo Wan – the Emperor of the Sea
Cheng Huang god, the District god
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)