दो बेटियाँ : अमरीकी लोक-कथा

The Two Daughters : American Lok-Katha

(Folktale from Native Americans, Iroquois Tribe/मूल अमेरिकी, इरक्वॉइ जनजाति की लोककथा)

एक बार एक स्त्री अपनी दो बेटियों के साथ रहती थी। उसकी दोनों बेटियाँ बहुत सुन्दर और होशियार थीं और उनकी माँ को उन पर पूरा विश्वास था कि जब वे बड़ी होंगी तब उनको अपना पति ढूँढने में कोई परेशानी नहीं होगी।

जब उसकी बड़ी वाली लड़की सोलह साल की हुई तो उसने कहा — “मेरी बच्चों, हम लोगों को यहाँ रहते हुए कई साल हो गये। हम लोग यहाँ बहुत अच्छे तरीके से रहे। इसके लिये यहाँ के हमारे दोस्तों, मक्का, बीन्स और काशीफल सबको धन्यवाद।

पर बहुत दिनों से हम लोगों ने माँस नहीं खाया है। तुम लोग भी अब बड़ी हो गयी हो और अपने लिये कोई अच्छा पति चुन सकती हो तो जो कोई आदमी अच्छा शिकारी हो और हम लोगों की देखभाल कर सके ऐसा कोई पति चुन लो।

मैं केवल एक आदमी को जानती हूँ। वह एक स्त्री का बेटा है जिसका नाम “बड़ी जमीन” है। वे लोग यहाँ से एक दिन के सफर की दूरी पर एक लम्बे घर में रहते हैं।”

“यह आदमी कैसा है माँ?” उसकी बड़ी बेटी ने पूछा।

माँ बोली — “तुम उसको जरूर पसन्द करोगी। वह देखने में सुन्दर है, तन्दुरुस्त है और बहुत अच्छा शिकारी है। पर इसके लिये अब हमको शादी की रोटी (Marriage Bread) बनानी शुरू कर देनी चाहिये जिसको तुम यहाँ से जाते समय ले जाओगी।”

दोनों लड़कियाँ अपनी माँ के साथ काम में लग गयीं। उन्होंने मक्का छीली, फिर उसको कूट कर उसकी रोटी बनायी।इस काम में उन लोगों को काफी समय लग गया पर जब उनकी रोटी बन गयी तो उन्होंने देखा कि उस आटे से चौबीस केक बनीं। उन्होंने उन सबको एक टोकरी में रख लिया।

माँ ने फिर अपनी बड़ी बेटी का चेहरा सजाया और उसके लम्बे काले बालों में कंघी करती हुई बोली — “सुनो, मेरी बात ध्यान से सुनो। अगर कोई तुमको रास्ते में मिले तो उससे बात नहीं करना।

और अगर उस “बड़ी जमीन” के घर तक पहुँचते पहुँचते तुम को रास्ते में रात हो जाये तो भी तुम किसी और के घर नहीं जाना, वहीं कहीं जंगल में ही सो जाना।”

बड़ी लड़की बोली — “मैं समझ गयी माँ।” पर उसके विचार तो कहीं दूर उस बड़ी जमीन के ख्यालों में खोये हुए थे जिसके बेटे से उसकी शादी होने वाली थी।

उसने अपनी वह केक वाली टोकरी उठायी और उसकी रस्सी अपने सिर से ठीक से बाँधी ताकि उसके सुन्दर कंघी किये गये बाल खराब न हों। उसके बाद दोनों बहिनें जंगल के तंग रास्ते पर उस बड़ी जमीन के घर की तरफ चल पड़ीं।

कुछ समय चलने के बाद छोटी बहिन ने अपने पीछे किसी के चलने की आहट सुनी। उसने अपनी बड़ी बहिन से पूछा — “यह कौन है?”

बड़ी बहिन ने कहा — “ओह, यह तो पाइन के पेड़ों से आती हवा की आवाज है।” और दोनों बहिनें चलती रहीं।

जल्दी ही तीसरा पहर हो गया और सूरज भी दूसरी तरफ नीचे की तरफ ढलने लगा जहाँ जमीन और आसमान मिलते हैं।

छोटी बहिन को यह पक्की तरह से लग रहा था कि उसने अपने पीछे किसी के बहुत ही धीमे कदमों की आहट सुनी थी सो उसने फिर अपनी बड़ी बहिन से पूछा — “यह क्या आवाज है जो मुझे सुनायी दिये जा रही है?”

बड़ी बहिन ने उसको फिर से यह कह कर टाल दिया कि यह किसी चिड़िया की आवाज है।” और वे फिर अपने रास्ते पर चल दीं।

पर छोटी बहिन को इन जवाबों से सन्तोष नहीं हुआ। वह फिर भी ध्यान से सुनती रही। अब उसको उन कदमों की आहट अपने आगे से आ रही थी। कभी कभी उसको ऐसा लगता कि कि उसने रास्ते के बराबर की झाड़ियों में किसी बूढ़े आदमी को जाते देखा है।

कुछ देर में वे दोनों एक छोटी सी खुली जगह में आ गयीं जहाँ उन्होंने एक बूढ़े आदमी को तीर कमान लिये हुए देखा। वह एक ऊँचे पेड़ की तरफ देख रहा था।

उसने उस पेड़ की तरफ इशारा करते हुए उन लड़कियों से कहा
— “ज़रा इधर तो आओ। मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत है। मैं उस पेड़ पर बैठी एक गिलहरी को मारने की कोशिश कर रहा हूँ पर मुझे ज़रा कम दिखायी देता है सो मुझे डर है कि मेरा तीर खो जायेगा।”

छोटी बहिन बोली — “तुम्हें याद है माँ ने क्या कहा था? हम लोगों को रास्ते में किसी भी आदमी से बात नहीं करनी चाहिये।”

पर बड़ी बहिन ने उसकी बात नहीं सुनी और बोली — “यह बूढ़ा आदमी तो खुशमिजाज लगता है। इसमें क्या बुराई है। हमको इसकी बात सुन लेनी चाहिये।”

सो वे उसके पास चल दीं। उस आदमी ने कहा — “तुम अपनी टोकरी नीचे रख दो और मेरे तीर की तरफ देखो। अगर मेरा तीर उस गिलहरी पर न लगे तो तुम ज़रा मेरा तीर उठा कर ले आना।”

कह कर उसने अपनी कमान खींची और एक तीर उस पेड़ की चोटी की तरफ छोड़ दिया। वह तीर उड़ता हुआ उस पेड़ से बहुत दूर जंगल में जा कर गिरा।

दोनों बहिनें उस तीर को लाने के लिये जंगल की तरफ दौड़ीं। पर जब वे वापस आयीं तो उन्होंने देखा कि वह बूढ़ा आदमी तो वहाँ से गायब हो चुका था और साथ में उनकी वह शादी वाली केक वाली टोकरी भी।

छोटी बहिन बोली — “अब हमको घर वापस चलना चाहिये क्योंकि हमने अपनी माँ का कहना नहीं माना।”

सो वे दोनों लड़कियाँ घर वापस चली गयीं और उन्होंने अपनी माँ को बताया कि उनके साथ क्या हुआ था।

वह बोली — “आह, तुम लोग मुझको प्यार नहीं करतीं नहीं तो तुम मेरी बात नहीं टालतीं।”

उस रात उसने इससे ज़्यादा और कुछ नहीं कहा।

अगले दिन उनकी माँ ने कहा — “हम फिर से शादी की केक बनायेंगे पर इस बार ओ मेरी छोटी बेटी तुम अपना पति ढूँढोगी।” सो माँ बेटियों ने मिल कर फिर से बहुत सारी केक बनायीं और इस बार वह केक वाली टोकरी छोटी वाली बेटी को दी गयी।

एक बार फिर दोनों बहिनें अपने सफर पर निकल पड़ीं। इस बार फिर उस छोटी बेटी को लगा कि उसको किसी के कदमों की आहट सुनायी पड़ी है पर उसने कुछ कहा नहीं वह बस अपनी माँ के शब्द याद कर के चलती रही।

पहले की तरह दिन के तीसरे पहर में करीब करीब उसी समय वे दोनों फिर से उसी खुली जगह में आयीं जहाँ पहले दिन उस बूढ़े आदमी ने उनके साथ चाल खेली थी।

वहाँ एक बूढ़ा आदमी एक पेड़ के कटे तने पर बैठा हुआ था। वह उनसे बोला — “मुझे यह देख कर खुशी है कि तुम लोग ठीक हो। तुम कहाँ जा रही हो?”

छोटी बहिन तो कुछ नहीं बोली पर बड़ी बहिन बड़े तपाक से बोली — “हम लोग “बड़ी जमीन” के बेटे के लम्बे घर जा रहे हैं। मेरी छोटी बहिन उस “बड़ी जमीन” के बेटे से शादी करना चाहती है।”

बूढ़ा आदमी बोला — “अच्छा हुआ कि तुम्हारी मुलाकात मुझसे हो गयी वरना तुम लोग भटक जातीं। तुम लोग गलत दिशा में जा रही हो। तुमको अगर “बड़ी जमीन” के घर जाना है तो तुमको उस जंगल में से हो कर जाना चाहिये।”

छोटी बहिन को उस बूढ़े की बात पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं था पर बड़ी बहिन ने नहीं सुना। वह बोली — “यह बूढ़ा आदमी हमारी सहायता करना चाह रहा है। हमको वैसा ही करना चाहिये जैसा कि यह कह रहा है।” सो वे दोनों उसी के बताये रास्ते पर चल दीं।

जैसे ही वे दोनों वहाँ से चलीं गयीं वह बूढ़ा अपने घर लौटा जो उस रास्ते के आखीर में ही था जो उसने उन दोनों लड़कियों को बताया था।

आ कर वह अपनी पत्नी से बोला — “जल्दी करो। तुम अपने चेहरे पर राख मल लो और आग के दूसरी तरफ बैठ जाओ। तुम अपने आपको मेरी माँ दिखाना। दो लड़कियाँ शादी वाली केक ले कर आ रही हैं और वह शादी वाली केक मुझे उनसे लेनी है।”

बूढ़े ने खुद भी अपने कपड़े बदले और अपना चेहरा ऐसा रंग लिया कि वह एक जवान और सुन्दर लड़का दिखायी देने लगा। फिर वह अपने घर के बाहर जा कर बैठ गया।

जल्दी ही उसको उन दोनों लड़कियों के आने की आहट सुनायी देने लगी। वह बोला — “आओ आओ, “बड़ी जमीन” और उसके सुन्दर बेटे के लम्बे घर में तुम्हारा स्वागत है।”

वे दोनों लड़कियाँ उसके घर आ गयीं तो उनको लगा कि शायद यही वह सुन्दर लड़का है जिसकी तलाश में वे निकलीं थीं। वे उसके बराबर में जा कर बैठ गयीं और शादी की केक की टोकरी भी उन्होंने वहीं रख दी।

उसी समय इत्तफाक से घर के दरवाजे पर कोई आया और उसने ज़ोर से पुकारा — “ओ बूढ़े, चलो तुमको लम्बे घर में बुलाया है।”

वह बूढ़ा चिल्लाया — “चले जाओ यहाँ से।”

फिर वह उन लड़कियों से बोला — “कोई गलत घर में आ गया। यहाँ कोई बूढ़ा आदमी नहीं रहता।”

उस आदमी को गये हुए अभी ज़्यादा देर नहीं हुई थी कि वही आवाज फिर से सुनायी पड़ी — “बाबा तुमको लम्बे घर में बुलाया है।”

वह बूढ़ा फिर चिल्लाया — “चले जाओ यहाँ से।”

कह कर वह फिर उन लड़कियों से बोला — “आह यह बेचारा लड़का। इसका पिता कल मर गया था यह बेचारा आज भी सारे शहर में उसको पुकारता हुआ घूम रहा है।”

कुछ देर बाद वही आवाज फिर सुनायी दी — “बाबा बाबा, उन्होंने मुझे तुमको अपने साथ लिवा लाने के लिये भेजा है। चलो मेरे साथ।”

वह बूढ़ा उन लड़कियों की तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला
— “लगता है कि मुझे जा कर इस लड़के को बताना ही पड़ेगा कि मैं कौन हूँ। काफी देर हो गयी है तुम लोग यहाँ लेट कर आराम करो मैं जल्दी ही वापस आता हूँ।”

कह कर वह बूढ़ा घर से बाहर चला गया। छोटी लड़की को लगा कि उसने किसी को डाँटते हुए और मारते हुए सुना। उधर वह बुढ़िया भी जल्दी ही सो गयी।

छोटी लड़की अपनी बड़ी बहिन से बोली — “बहिन, मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है। हम लोगों को यहाँ नहीं ठहरना चाहिये। मुझे यकीन है कि यह उसी बूढ़े का घर है जो हमको रास्ते में मिला था। हमको अपनी माँ की बात माननी चाहिये।”

कह कर वह वहाँ से खिसक गयी और बाहर से दो सड़े गले लकड़ी के लठ्ठे ले आयी और अपनी बड़ी बहिन से बोली — “हम ये दोनों लठ्ठे कम्बल में बाँध कर यहाँ रख देते हैं ताकि इस बुढ़िया को यह पता न लगे कि हम लोग यहाँ से चले गये हैं।”

ऐसा कर के जैसे ही वे दोनों घर से बाहर निकलीं उन्होंने गाँव के दूसरी तरफ से आती हुई नाचने की आवाज सुनी। उस आवाज का पीछा करते हुए वे अपनी शादी वाली केक की टोकरी उठाये हुए उस लम्बे घर में आ पहुँचीं।

उनको यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वही बूढ़ा जिसके घर से वे अभी चलीं आ रही थीं वहाँ सबके बीच में खड़ा हो कर नाच रहा था। सब लोग उसके नाच को देख रहे थे।

आग के दूसरी तरफ एक बहुत ही सुन्दर आदमी अपनी माँ के साथ बैठा हुआ था।

छोटी लड़की तुरन्त चिल्लायी — “आहा, यह है वह आदमी जिसको हम ढूँढ रहे हैं।” अपना मुँह कम्बल से ढक कर वे दोनों बहिनें उस घर में घुस गयीं और “बड़ी जमीन” और उसके बेटे के पास बैठने के लिये चल दीं।

उन्होंने शादी की वह केक की टोकरी “बड़ी जमीन” के सामने रख दी। उस टोकरी को देख कर “बड़ी जमीन” बहुत खुश हुई और छोटी बेटी से बोली — “तुम मेरे बेटे के लिये बहुत ही अच्छी पत्नी बनोगी।”

जब नाच खत्म हो गया तो वे दोनों लड़कियाँ भी “बड़ी जमीन” और उसके लडके के साथ चल दीं। वे दोनों अभी भी कम्बल में लिपटी हुई थीं इसलिये वह बूढ़ा उनको पहचान नहीं पाया।

वह बूढ़ा अपनी चतुराई पर खुश होते हुए अपने घर लौटा और अपने कम्बल के पास बैठा तो उसके कुछ चुभा। उसने सोचा कि उसमें एक लड़की होगी। यह सोच कर वह मुस्कुराया।

वह मन ही मन बोला थोड़ा सा इन्तजार करो मैं भी अभी आता हूँ। उसने अपने कपड़े उतारे और उस कम्बल में घुस गया। पर वहाँ तो सड़े गले चींटियों से भरे हुए दो लकड़ी के लठ्ठे पड़े थे।

अगले दिन वे दोनों लड़कियाँ “बड़ी जमीन” और उसके बेटे के साथ अपने घर लौटीं। वहाँ “बड़ी जमीन” के बेटे ने शिकार किया और बहुत सारा माँस अपनी नयी पत्नी के परिवार के लिये ले कर आया।

वह छोटी लड़की अपनी चतुराई से अपनी शादी ठीक से कर पायी। फिर वे दोनों बहुत दिनों तक सुख से रहे।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

  • अमेरिका की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां