चीते की गुरू : चीनी लोक-कथा
The Tiger’s Teacher : Chinese Folktale
चीता उस जंगल का एक बहुत ही मजबूत जानवर था। वह बहुत तेज़ भागता था, वह बहुत ज़ोर से बोलता था पर बस शानदार तरीके से चल नहीं पाता था। अपनी ताकत और तेज़ भागने के बाद भी वह छोटे छोटे शिकार भी नहीं पकड़ पाता था।
अक्सर बहुत सारी रातों को वह बिना शिकार लिये ही घर वापस आ जाता और इस तरह वह बेचारा भूखा ही सो जाता। एक दिन एक सुबह वह शिकार पर गया तो उसने एक बिल्ली को एक चूहे का पीछा करते और उसको पकड़ते देखा।
बिल्ली बहुत तेज़ थी और शानदार थी। वह बहुत ही शान से और शान्ति से चल रही थी और उसने अपना शिकार बहुत ही आसानी से पकड़ लिया था।
चीते ने सोचा — “काश वह भी इतनी ही शानदार तरीके से चल पाता और अपना शिकार पकड़ पाता जैसे यह बिल्ली पकड़ती है।” सो उसने यह सब बिल्ली से सीखने का इरादा किया।
वह उस बिल्ली के पास गया और बोला — “बिल्ली बहिन, क्या तुम मुझे इसी तरह से शानदार तरीके से चलना सिखाओगी जैसे तुम चलती हो? और क्या तुम मुझे इसी तरह से शिकार करना भी सिखाओगी जैसे तुम करती हो?”
बिल्ली बोली — “पर मुझे यह कैसे यकीन हो कि जो तरीके मैं तुम्हें सिखाऊँगी वह तुम अपने खाने के लिये मेरा ही शिकार करने के लिये इस्तेमाल नहीं करोगे?”
चीता बोला — “क्या तुम सोचती हो कि मैं अपने ही परिवार के लोगों को नुकसान पहुँचाऊँगा? मैं उसको कैसे नुकसान पहुँचा सकता हूँ जो मेरा रिश्तेदार हो।
अगर तुम मेरी सहायता करोगी तो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। मैं खुद तो क्या मैं तो किसी और को भी तुमको कोई नुकसान नहीं पहुँचाने दूँगा।”
चीते ने उससे प्रार्थना की — “तुम मेरी गुरू बन जाओ। और फिर अगर मैं तुम्हारे सिर के एक बाल को भी कोई नुकसान पहुँचाऊँ तो मैं जंगल के सारे जानवरों की बद्दुआ लूँ।”
उसने बिल्ली के सामने यह दिखाने की अपनी पूरी पूरी कोशिश की कि वह उससे सच बोल रहा था। आखिर बिल्ली ने उसकी बातों का विश्वास कर लिया और उसकी सहायता करने पर राजी हो गयी।
बिल्ली ने उसको शरीर को तोड़ने मरोड़ने का अभ्यास कराया, उसको बिना आवाज किये चुपचाप चलना सिखाया। बिल्ली एक बहुत ही अच्छी गुरू थी। उसने चीते को शिकार करने की बहुत सारी चालें सिखायीं।
उसने चीते को जो कुछ भी वह जानती थी वह सभी कुछ सिखाने की पूरी पूरी कोशिश की, सिवाय एक होशियारी के – और वह थी पेड़ पर चढ़ने की कला।
उधर चीता भी एक अच्छा शिष्य था। उसने भी जो कुछ बिल्ली ने उसको सिखाया सब कुछ बहुत अच्छे तरीके से सीखा। बहुत जल्दी ही वह सब कुछ सीख गया और ताकतवर भी हो गया, तेज़ भी हो गया और अपनी चाल में भी बहुत शान्त हो गया।
अब वह एक बड़े शिकारी की तरह शिकार करने के लिये तैयार था। वह खाने के लिये तैयार था। उसने बिल्ली की तरफ देखा तो बिल्ली तो उसको देखने में ही बहुत स्वादिष्ट लगी – मोटी और मुलायम।
बिल्ली ने भी चीते की तरफ देखा तो चीता मुस्कुराया और उसने उसको अपने दाँत दिखाये। बिल्ली को देख कर चीते के मुँह में पानी आ रहा था और वह उसके मुँह के एक तरफ से बाहर भी बह रहा था।
बिल्ली जान गयी कि चीते के ऊपर अब विश्वास नहीं किया जा सकता था।
वह बोली — “अब तुम्हारे सब सबक खत्म हो गये हैं। मैंने तुमको जो कुछ भी मैं सिखा सकती थी सब कुछ सिखा दिया है।”
चीता बोला — “क्या तुमको पूरा यकीन है कि तुमने मुझे वह सब कुछ सिखा दिया जो कुछ तुम जानती थी, ओ मेरी गुरू? क्या अब तुम्हारे पास मुझे सिखाने के लिये और कुछ भी नहीं बचा?”
जैसे जैसे चीता यह सब उस बिल्ली से कह रहा था उसके पंजे आगे बढ़ रहे थे। वह बिल्ली के पास आता जा रहा था। तुरन्त ही चीते ने अपना मुँह खोला और हवा में कूद गया। ओह, चीता तो बहुत तेज़ था।
बिल्ली को भागने का समय ही नहीं मिला सो वह भागने की बजाय पास वाले पेड़ पर चढ़ गयी। वह उस पेड़ पर जितनी ऊँची चढ़ सकती थी चढ़ती चली गयी।
बिल्ली ने सोचा “यह तो बहुत ही अच्छा हुआ कि मैंने चीते को पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया वरना मैं तो आज गयी थी।”
चीता बहुत कूदा, बहुत गुर्राया, उसने पेड़ पर चढ़ने के लिये पेड़ की छाल पर अपने पंजे भी मारे, उसने बिल्ली की सिखायी हर चाल आजमायी पर वह पेड़ पर न चढ़ सका।
बिल्ली भी एक शाख से दूसरी शाख पर और फिर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर भागती चली गयी जब तक कि उसने चीते को बहुत पीछे नहीं छोड़ दिया।
चीता बहुत शर्मिन्दा हुआ। जो कुछ उसका गुरू उसको सबसे अच्छा सिखा सकता था उसको सीखने के रास्ते में उसकी भूख और लालच आ गया था इसी लिये वह उससे सब कुछ नहीं सीख सका और अपना पहला शिकार भी खो बैठा।
इस कहानी से हमको दो सीख मिलती हैं। पहली यह कि विद्यार्थी को अपने सीखने के रास्ते में किसी भी चीज़ को नहीं लाना चाहिये वरना उसकी पढ़ार्र्र्ई अधूरी रह जाती है।
और दूसरी यह कि किसी को कुछ भी सिखाते समय अपने बचाव का तरीका अपने पास जरूर रखना चाहिये ताकि अपनी सुरक्षा अपने आप की जा सके।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)