सूरज और चाँद झील : चीनी लोक-कथा
The Sun and Moon Lake : Chinese Folktale
बहुत साल पहले साओ जाति के तीस परिवार बड़ी शान्ति से और खुशहाली में रहते थे। वे मछली पकड़ते, शिकार करते और तैवान की जमीन पर खेती करते।
पतझड़ की एक सुबह जब वे अपनी खेती काट रहे थे तो सूरज काले बादलों में छिप गया और बिजली की कड़क की तेज़ आवाज आसमान में इधर उधर दौड़ने लगी। वह आवाज इतनी तेज़ थी कि आदमियों के चिल्लाने की और कुत्तों के भौंकने की आवाज भी उसकी आवाज में डूब गयी।
बादल और काले हो गये, आसमान भी और काला हो गया और सूरज की रोशनी बिल्कुल छिप गयी। गाँव वाले एक जगह इकठ्ठा हो गये और आसमान के साफ होने का इन्तजार करने लगे। पर घंटों बीत गये और दिन रात की तरह ही काला रहा। वे सब अँधरे में ही पेड़ और चहारदीवारियाँ ढूँढते ढूँढते घर लौटने लगे।
जब चाँद निकल आया तब कहीं जा कर वे एक दूसरे का चेहरा देख पाये। पर जैसे ही चाँद निकला बिजली की कड़क फिर से आसमान में दौड़ने लगी।
अबकी बार वह पहले से भी ज़्यादा तेज़ थी और फिर चाँद भी छिप गया। अब साओ लोगों को सूरज और चाँद दोनों ही दिखायी नहीं दे रहे थे।
दिन और रात दोनों ही इतने ज़्यादा काले थे कि उनको अपनी ही शक्ल भी दिखायी नहीं दे रही थी। धूप न मिलने की वजह से लोगों के खेतों में खेती खराब हो रही थी। मछलियाँ बहुत गहरे पानी में चली गयी थीं और उन सबकी खाल पारदर्शी हो गयी थी।
बतखों और मुर्गियों को पता ही नहीं था कि वे कहाँ उड़ रही थीं। उन्होंने खाना खाना बन्द कर दिया था इसलिये उनका माँस खत्म होता जा रहा था और बस उनके शरीर पर उनकी खाल और हड्डियाँ ही रह गयी थीं।
चिड़ियों ने गाना बन्द कर दिया, फूलों ने खिलना बन्द कर दिया, गाँव के हर आदमी की खाल भूरी पड़ गयी और बच्चों की हँसी भी अब सुनने में नहीं आती थी। गाँव जो कभी खुशहाली में अपनी ज़िन्दगी में बिता रहा था दुख में डूब गया था।
इस परेशानी से छह महीने पहले ही ता चीन और शी चीन की शादी हुई थी और उनकी शादी की मौज मस्ती दो दिन तक मनायी गयी थी।
बाजरा उगाने के लिये उनको जमीन का एक टुकड़ा दे दिया गया था ताकि वे उस जमीन के टुकड़े पर खेती कर के अपनी ज़िन्दगी गुजर बसर कर सकें। इसलिये वे अपनी रोजी रोटी के लिये पूरी तरीके से धूप पर ही निर्भर करते थे।
पर अब क्योंकि न तो सूरज ही निकल रहा था और न ही चाँद तो उनको डर लगा कि वे भी और गाँव वालों की तरह से भूख से मर जायेंगे। इन हालात में उन्होंने दो थैले चावल के लिये और लालटेन की रोशनी में सूरज और चाँद को ढूँढने चल दिये।
जहाँ कहीं भी वे गये उनको सब जगह भूखे लोग आग के पास बैठे मिले। उन लोगों के पास बहुत थोड़ी सा ही खाने का सामान था। वे केवल उन दोनों को घूरते ही रहे क्योंकि भूख के मारे वे उन अजनबियों के हालचाल पूछना भी भूल गये थे।
यहाँ तक कि उनके जो कुत्ते उनकी चौकीदारी करते थे वे भी उन पर नहीं भौंके। बस अपनी सफेद खाली आँखों से उनको देखते रहे।
वे दोनों पति पत्नी चलते रहे जब तक कि वे थक कर गिर नहीं पड़े। थकान की वजह से उन दोनों को नींद आ गयी। जब वे सो कर उठे तो वे फिर चल दिये और उन्होंने कई अनजाने पहाड़ और मैदान पार किये।
अक्सर ही उनको गिरे हुए पेड़ों की शाखों से ठोकर लग जाती। वे उन शाखों को जला लेते और फिर उनकी रोशनी को अपना रास्ता देखने के काम में लाते।
बहुत दिनों तक चलने के बाद वे शुई शी पहाड़ के ढलान पर आ पहुँचे। जैसे ही वे उस पहाड़ की चोटी पर पहुँचे उनकी लालटेन बुझ गयी।
वहाँ हवा बहुत तेज़ और ठंडी थी। वे दोनों एक दूसरे को गर्मी और तसल्ली देने के लिये एक दूसरे से चिपक कर खड़े हो गये। तभी शी चीन ने उस पहाड़ के उस पार एक झील के ऊपर रोशनी का एक धुँधला सा टुकड़ा चमकता देखा तो वह खुशी से चिल्ला पड़ी — “देखो देखो उधर देखो।”
उसने अपने पति को वहीं छोड़ा और पहाड़ के नीचे की तरफ भाग ली। यह देख कर उसका पति भी उसके पीछे पीछे भाग लिया।
वहाँ बहुत सारे नुकीले पत्थर पड़े थे जिन पर दौड़ने से उसके पैर घायल हो गये। पर वे भागते जा रहे थे और फिसलते जा रहे थे, लुढ़कते जा रहे थे और ढलान पर गिरते जा रहे थे। पर कोई उनको झील तक पहुँचने से रोक नहीं सका।
जैसे ही वे दोनों पति पत्नी उस झील के पास आये तो वे तो खुशी से चिल्ला पड़े क्योंकि उस झील में तो सूरज और चाँद दोनों ही पड़े हुए थे।
जब वे उनको देख कर खुश हो रहे थे तभी उनको झील के पास की एक गुफा से आती एक गुर्राहट की आवाज सुनायी पड़ी।
उस आवाज को सुन कर वे तुरन्त ही वहाँ पड़े एक बहुत बड़े पत्थर के पीछे छिप गये।
दो आग उगलते हुए बहुत ही बड़े साइज़ के ड्रैगन उस गुफा में से निकले और झील की तरफ बढ़े। वे उस झील के बर्फीले पानी में कूद पड़े और सीधे सूरज और चाँद की तरफ चल दिये।
बजाय सूरज और चाँद को झील में से निकाल कर आसमान में फेंकने के उन ड्रैगनों ने सूरज और चाँद को अपने पंजों मे उठा लिया और उनसे झील के उस पार एक दूसरे को उछाल उछाल कर दे कर खेलने लगे।
वे दोनों पति पत्नी सूरज और चाँद की यह हालत देख कर बहुत दुखी हुए पर वे उन ताकतवर जानवरों के सामने कुछ भी नहीं कर सकते थे।
जबकि ता चीन और शी चीन उस बारे में अभी बात ही कर रहे थे कि इस हालत में उनको क्या करना चाहिये कि जिस पत्थर के सहारे वे खड़े हुए थे उस पत्थर के नीचे से उनको धुँआ निकलता दिखायी दिया।
उन्होंने उस पत्थर को सँभाल कर धीरे से एक तरफ को खिसकाया तो वहाँ उनको एक सुरंग दिखायी दी जो उसी पास वाले पहाड़ तक जाती थी।
वे उस सुरंग में घुस गये। उस सुरंग की नम दीवारों के आखीर में आगे जा कर उनको एक छोटी सी आग जलती दिखायी दे रही थी तो उनको लगा कि जब वहाँ आग जल रही ही तो वहाँ कुछ लोग भी होंगे।
इस उम्मीद में कि वे सूरज और चाँद को उन लोगों से ले लेंगे वे बड़ी उत्सुकता से उस आग की तरफ बढ़े। वहाँ जा कर उन्होंने देखा तो उनको वह जगह सूखी और झाड़ी बुहारी साफ मिली।
उन्होंने देखा कि वहीं एक कोने में एक बुढ़िया एक अँगीठी के पास बैठी उस अँगीठी में पड़े लाल गर्म कोयलों को हवा दे कर जला रही थी।
हालाँकि ताई चीन और शी चीन दोनों दबे पाँव ही उस गुफा के तंग दरवाजे से घुसे थे पर फिर भी उस बुढ़िया ने उन दोनों के पैरों की आवाज सुन ली थी।
उसने हाथ में एक लोहे का एक गोला ले कर पीछे घूम कर देखा और उनसे पूछा — “तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो? एक कदम भी आगे मत बढ़ना जब तक तुम मुझे यह न बता दो कि तुमको मुझसे क्या चाहिये।”
शी चीन बोली — “मेहरबानी कर के हमारी सहायता कीजिये। हम आपको कोई नुकसान पहुँचाने नहीं आये हैं। हमें बस आपकी सहायता की जरूरत है।”
उस बुढ़िया ने उनके फटे कपड़े, घायल पैर और खाली खाली चेहरे देखे। उसने बहुत सालों से दूसरे आदमी लोग नहीं देखे थे और इस समय भी उसको यह नहीं लग रहा था कि उसको उनको खाली हाथ वापस क्यों भेज देना चाहिये।
उसने उनको अँगीठी के पास बिठाया और बताया कि किस तरह उस झील की एक धारा में एक डिब्बा उबला हुआ तेल डालने की वजह से वे ड्रैगन उसको वहाँ उस गुफा में जबरदस्ती उठा कर ले आये थे।
उस उबले हुए तेल से उन ड्रैगनों की खाल जल गयी थी और उसकी सजा यह थी का वह ज़िन्दगी भर उनकी सेवा करे। अब तो उसको यह भी याद नहीं है कि उसको वहाँ आये हुए कितने साल हो गये हैं।
उसको तो बस अब इतना ही याद है कि जब वह यहाँ आयी थी तब वह जवान थी और अब उसकी खाल सिकुड़ गयी है और उसकी उँगलियाँ मुड़ गयीं हैं।
जब वह बुढ़िया उनसे बात कर रही थी तो वह उन दोनों को छू छू कर देखती जा रही थी कि वे दोनों सचमुच के आदमी हैं या नहीं क्योंकि उसको तो यही विश्वास नहीं था कि वह अपने मरने से पहले किसी आदमी को देख भी पायेगी या नहीं।
जब बुढ़िया ने अपनी बात खत्म कर ली तो ताई चीन और शी चीन ने उसके यहाँ बन्दी होने के समय में जो कुछ उन लोगों के ऊपर बीत रही थी वह सब उसको बताया। उन्होंने उसको यह भी बताया कि वे इस समय सूरज और चाँद खोजने के लिये निकले हुए हैं।
बुढ़िया ने उनकी हिम्मत भरी कहानी सुनी पर जब उसने अपनी गुफा के बाहर की ज़िन्दगी के बारे में सुना तो उसका दिल भारी हो गया। तीनों चुपचाप बैठ गये। उनको नहीं पता था कि वे इस बारे में कहाँ जायें और क्या करें।
कुछ देर बाद आखिर वह बुढ़िया ही बोली — “मुझे मालूम है कि हमें क्या करना है। मुझे यह भी मालूम है कि ये ड्रैगन किस तरह से मर सकते हैं।
मैंने एक सोने की कुल्हाड़ी और कैंची की कहानी सुनी है जो ली शान पहाड़ के नीचे गड़ी हुई है। वह पहाड़ यहाँ से कुछ ज़्यादा दूर नहीं हैं।
सारी दुनियाँ में वही दो चीज़ें हैं जिनसे उन ड्रैगनों को डर लगता है। अगर तुम वे कुल्हाड़ी और कैंची उस झील में डाल दोगे तो वह कुल्हाड़ी उन ड्रैगनों का सिर काट देगी और वह कैंची उनके छोटे छोटे टुकड़े कर देगी। तभी तुम लोग सूरज और चाँद को वापस पा सकोगे।
ता चीन और शी चीन इस काम से बिल्कुल भी नहीं डरे। उन्होंने बुढ़िया के साथ खाना खाया और अपने साथ दो लोहे के फावड़े लिये और ली शान पहाड़ की तरफ चल दिये। जैसा कि बुढ़िया ने उनको बताया था उनको पहाड़ तक पहुँचने में कोई मुश्किल नहीं हुई।
वहाँ पहुँच कर उन्होंने तुरन्त ही पहाड़ की खुदाई शुरू कर दी और वे दोनों वहाँ तब तक खोदते रहे जब तक उनके हाथों में छाले नहीं पड़ गये, उनकी कमर दर्द नहीं करने लगी और वे हिलने के लायक भी नहीं रहे। जब वे और खोदने लायक नहीं रहे तो वे सो गये।
जब वे उठे तो उनको बहुत भूख लगी थी पर फिर भी वे उस पहाड़ को खोदने में ही लगे रहे। खोदते खोदते उनके जोड़ जोड़ में दर्द हो रहा था और उनके हाथ सूज गये थे पर फिर भी वे उसको तब तक खोदते रहे जब तक वे दोबारा थक कर चूर नहीं हो गये। वे फिर सो गये और जब उठे तो फिर खोदने लगे।
कई दिनों की लगातार खुदाई के बाद उनके फावड़े किसी धातु की चीज़ से टकराये। ता चीन और शी चीन दोनों ने मिट्टी हटा कर नीचे से सोने की कुल्हाड़ी और कैंची निकाल ली और उनको ले कर वे ड्रैगन की झील की तरफ चले।
इस बार वे बहुत सावधानी से चल रहे थे ताकि वे रास्ते में पड़े पत्थरों पर ठोकर न खायें और अपने हाथ में पकड़ी कीमती चीजें जो वे पहाड़ के नीचे से खोद कर ला रहे थे खो न दें।
जब वे झील के पास से गुजरे तो शी चीन ने उस कुल्हाड़ी को उस झील में फेंक दिया जिस में वे दोनों ड्रैगन सूरज और चाँद को उछाल उछाल कर खेल रहे थे।
पर यह क्या, वह कुल्हाड़ी तो नीचे जाने की बजाय ऊपर की तरफ उड़ चली और हवा में कई पलों तक लटकी रही। पर फिर उसके बाद वह एक बिजली की धारी के साथ ड्रैगन के सिरों पर गिर पड़ी।
इससे पहले कि वे ड्रैगन कुछ जान पाते कि क्या हो रहा है उस कुल्हाड़ी ने एक ही वार में उन दोनों ड्रैगनों के सिर तोड़ दिये। उनके सिरों से खून का एक फव्वारा निकल कर हवा में उड़ गया और फिर झील में जा गिरा। और उनके सिर पहाड़ पर गिर गये।
इसके बाद ता चीन ने कैंची उठायी और घुमा कर उसको झील के खून से रंगे लाल पानी में फेंक दिया। उस कैंची ने उन ड्रैगनों के सिर आदि शरीर के सब हिस्सों को काट दिया। उनके शरीर के कुछ हिस्से तो पहाड़ पर गिर पड़े और कुछ झील में नीचे डूब गये।
अचानक सब शान्त हो गया था। सूरज और चाँद के अलावा और कुछ भी उस झील में हिल डुल नहीं रहा था। वे झील के पानी पर तैर रहे थे।
तुरन्त ही ता चीन और शी चीन दोनों उस बुढ़िया को आजाद कराने के लिये पहाड़ की गुफा की तरफ दौड़े। उसको ले कर सब झील के पास आये क्योंकि अभी तो वहाँ भी काम बचा था।
उन्होंने सूरज और चाँद को फिर से पा तो लिया था पर उनको आसमान में फिर से रखना उनकी ताकत के बाहर था। एक बार फिर उस बुढ़िया ने उनकी सहायता की। उसने फिर एक कहानी बतायी जो उसने बहुत साल पहले कभी उसने अपनी जवानी में सुनी थी।
वह बोली — “उनका कहना है कि अगर तुम ड्रैगन की आँखें खा लोगे तो तुमको दैवीय ताकत मिल जायेगी। और उस दैवीय ताकत से तुम सूरज और चाँद को आसमान में पहुँचा सकोगे।”
ता चीन और शी चीन ने अपनी यात्रा में कई अजीब कहानियाँ सुन रखी थीं सो वे इस काम को करने के लिये ड्रैगन की आँखें खाने को भी तैयार हो गये – पर यह तो वे तभी कर सकते थे जब उनको उन ड्रैगन की आँखें मिल जातीं।
सूरज चाँद की रोशनी में उन लोगों ने ड्रैगन के सिरों को पहाड़ों पर ढूँढना शुरू किया। उनको उन ड्रैगनों में से एक ड्रैगन का सिर झील के किनारे दो डंडों के बीच में पड़ा मिल गया सो उन्होंने उसकी दोनों आँखें निकाल लीं और एक एक आँख दोनों ने खा ली।
जब वह आँख उनके पेट में घुल गयी तो उनके अन्दर बहुत ताकत आ गयी। पहले तो उनकी टाँगें बढ़नी शुरू हुईं फिर उनके शरीर और फिर उनके सिर और गर्दन। वे बढ़ते ही गये बढ़ते ही गये जब तक कि वे वहाँ के सबसे ऊँचे पहाड़ से भी ऊँचे नहीं हो गये।
फिर उन्होंने झुक कर सूरज और चाँद को अपने हाथों में उठाया और आसमान की तरफ ले गये। पर सूरज और चाँद तो इतने दिनों में यह भूल ही गये थे कि उनको आसमान में कैसे ठहरना था सो जैसे ही ता चीन और शी चीन दोनों ने उनको आसमान में छोड़ा तो वे वहाँ न ठहर सके और लुढ़कते हुए धम्म से नीचे गिर पड़े।
एक बार फिर बुढ़िया ने उनकी सहायता की। वह बोली — “तुम सूरज और चाँद को इन पाइन के पेड़ों की किसी मजबूत शाख पर रख दो और फिर उस शाख को पहाड़ की चोटी पर रख दो। वहाँ ये तब तक थोड़ा आराम करेंगे जब तक इनको अपना पुराना घर याद नहीं आता और ये तैरने से नहीं डरते।”
ता चीन और शी चीन ने दो बहुत लम्बे पाइन के पेड़ उखाडे,, उनके ऊपर सूरज और चाँद को रखा और उन पेड़ों को बिना किसी मुश्किल के पहाड़ की चोटी पर ले जा कर लगा दिया।
पर उस ड्रैगन की आँख से जो उनको ताकत मिली थी उनकी वह ताकत अब धीरे धीरे खत्म हो रही थी। सूरज और चाँद तो सुरक्षित थे पर ता चीन और शी चीन छोटे होते जा रहे थे।
तीनों झील के पास बैठे बैठे धीरज से कुछ होने का इन्तजार करते रहे पर कुछ हुआ ही नहीं। सो कई घंटों के इन्तजार के बाद उन्होंने देवताओं को भेंट दी और भगवान की प्रार्थना की।
जब धुँआ आसमान की तरफ उड़ा तो सूरज और चाँद ने भी पाइन के पेड़ों से ऊपर उठना शुरू किया। वे भी ऊपर उठते ही गये, उठते ही गये जब तक कि वे आसमान में जा कर वहाँ ठहर नहीं गये।
जब तीनों ने सूरज और चाँद को आसमान में देखा तो वे बहुत खुश हुए। सूरज पूरी दुनियाँ में चमक रहा था। शाम को सूरज छिपने लगा तो चाँद आसमान में आ गया।
एक बार फिर से फसलें उगने लगीं और आदमी जानवर और पेड़ पौधे सभी तन्दुरुस्त दिखायी देने लगे।
वह बुढ़िया अपने परिवार में राजी खुशी वापस लौट गयी पर ता चीन और शी चीन झील के पास से जाने में डर रहे थे कि कहीं और दूसरे ड्रैगन फिर से सूरज आीैर चाँद को न चुरा लें।
वे लोग वहीं पर रह गये। जब वे मर गये तो झील में एक बहुत ज़ोर का तूफान आया और उन दोनों के शरीर पहाड़ों में बदल गये – ता चीन पहाड़ और शी चीन पहाड़। ये दोनों पहाड़ आज भी वहाँ देखे जा सकते हैं।
हर साल गाँव वाले उनकी याद में वहाँ “सूरज और चाँद नाच” में हिस्सा लेने के लिये जमा होते हैं।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)