खुजली वाला सुलतान : इतालवी लोक-कथा

The Sultan With the Itch : Italian Folk Tale

एक बार एक मछियारा था। उसके एक ही बेटा था। वह जब भी अपने पिता को नाव ले जाते देखता तो हमेशा कहता — “पिता जी, मुझे भी अपने साथ मछली पकड़ने ले चलिये न।”

और वह मछियारा जवाब देता — “नहीं बेटा, तुम समुद्र में जाने के लिये अभी बहुत छोटे हो। वहाँ कोई तूफान आ सकता है या और कुछ भी हो सकता है। तुम थोड़े और बड़े हो जाओ तब चलना।”

और अगर मौसम ठीक और समुद्र शान्त होता तो वह कहता कि वहाँ शार्क आ सकती है। और अगर शार्क का मौसम नहीं होता तो वह कहता कि वहाँ नाव डूब सकती है, आदि आदि।

यह सब वह उससे 9 साल तक कहता रहा पर फिर वह यह बहाने और नहीं बना सका। एक दिन उसको अपने बेटे को खुले समुद्र में मछली पकडने के लिये ले कर जाना ही पड़ा।

जब वह समुद्र में पहुँचा तो उसने मछली पकड़ने के लिये अपना जाल डाल दिया और लड़के ने अपना मछली पकड़ने वाला काँटा डाल दिया।

जब मछियारे ने अपना जाल खींचा तो उसमें केवल एक बहुत छोटी सी मछली निकली पर जब उस लड़के ने अपना काँटा खींचा तो उसमें एक बहुत बड़ी मछली निकली।

वह लड़का उस मछली को देख कर बहुत खुश हुआ और बोला कि वह उस मछली को राजा को दे कर आयेगा और उसको ले कर वह खुद वहाँ जायेगा।

अपना अपना शिकार ले कर वे दोनों घर चले गये। लड़के ने अपने सबसे अच्छे कपडे. पहने, पकड़ी हुई मछली समुद्री घास से ढकी हुई एक टोकरी में रखी और उसे ले कर वह राजा के पास चल दिया।

मछली का साइज देख कर तो राजा ने तो अपनी जीभ ही काट ली। उसने उस लड़के को अपने पास बुलाया — “यहाँ आओ बेटे।”

और फिर एक नौकर से कहा — “इस बच्चे को 50 क्राउन दे दो।”

फिर उस बच्चे से पूछा — “तुम्हारा नाम क्या है बेटे?”

“पिद्दूज़ू, सरकार।”

“क्या तुम यहाँ हमारे पास महल में रहना पसन्द करोगे?”

“जी सरकार।”

सो अपने पिता की मरजी से पिद्दूज़ू महल में ही रह गया और वहीं बड़ा होने लगा। वह अब बहुत बढ़िया सिल्क पहनता था और उसके बहुत सारे गुरू थे। वह पढ़ता लिखता था तो अब वह केवल पिद्दूज़ू नहीं रह गया था बल्कि अब उसका नाम हो गया था “नाइट डौन पिद्दूज़ू”।

इसी समय राजा की बेटी भी महल में बड़ी हो रही थी। उसका नाम था पिपीना जो पिद्दूज़ू को अपनी ज़िन्दगी से भी ज़्यादा चाहती थी। उसको पिद्दूज़ू बहुत अच्छा लगता था।

जब वह 17 साल की हुई तो एक राजा का लड़का शादी के लिये उसका हाथ माँगने आया। राजा को वह लड़का अच्छा लगा तो उसने अपनी बेटी से बहुत कहा कि वह उससे शादी कर ले।

पर पिपीना तो पिद्दूज़ू को प्यार करती थी सो उसने अपने पिता से कह दिया कि वह या तो पिद्दूज़ू से शादी करेगी और या फिर कभी शादी नहीं करेगी।

राजा ने तुरन्त ही पिद्दूज़ू को बुलाया और उससे कहा — “मेरी बेटी का दिमाग खराब हो गया है। वह केवल तुमसे शादी करना चाहती है। और यह हो नहीं सकता इसलिये अब तुमको यह महल छोड़ कर जाना पड़ेगा।”

“योर मैजेस्टी, क्या आप मुझे ऐसे ही भगा देंगे?”

राजा बोला — “यह करना मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा है क्योंकि तुम मेरे बेटे के बराबर हो पर तुम चिन्ता न करो तुमको मेरी दया और मेहरबानी हमेशा मिलती रहेगी।”

सो डौन पिद्दूज़ू महल छोड़ कर दुनियाँ में चला गया और राजकुमारी को सेन्ट कैथरीन के कौनवैन्ट भेज दिया गया।

डौन पिद्दूज़ू महल से निकल कर एक सराय में जा कर रुक गया। उसको उस सराय के कमरे की खिड़की से एक गली दिखायी देती थी जिसमें पिपीना के कौनवैन्ट की एक खिड़की खुलती थी।

एक बार वह उस खिड़की पर आयी और जैसे ही उसने उस खिड़की से बाहर झाँक कर देखा तो सामने ही उसको पिद्दूज़ू दिखायी दे गया तो दोनों एक दूसरे को इशारों और शब्दों से तसल्ली देने लगे।

पिपीना को अपने कमरे में एक जादू की किताब मिल गयी थी। यह किताब एक नन की थी जो अब एक जादूगरनी बन गयी थी।

उसने उस किताब को अपनी खिड़की से पिपीना को दे दिया था और पिपीना ने वह किताब अब डौन पिद्दूज़ू को दे दी थी।

अगले दिन राजा अपनी बेटी से मिलने गया और मदर सुपीरियर से उससे बात करने की इजाज़त चाही। क्योंकि वह राजा था इसलिये उसको तुरन्त ही यह इजाज़त मिल गयी।

पिपीना बोली — “पिता जी हमको यह मामला हमेशा के लिये तय करके खत्म कर देना चाहिये। उस राजकुमार के पास जिससे आप मेरी शादी करना चाहते हैं तो पहले से ही एक जहाज़ है पर पिद्दूज़ू के पास कुछ भी नहीं है।

आप ऐसा करें कि आप उसको भी एक ऐसा ही जहाज़ दे दीजिये। और फिर दोनों समुद्री यात्रा पर निकलें – एक एक तरफ और दूसरा दूसरी तरफ। फिर जो कोई भी मेरे लिये ज़्यादा अच्छी भेंट ले कर आयेगा वही मेरा पति होगा।”

राजा को यह विचार पसन्द आया तो बोला — “यह विचार तो अच्छा है। ऐसा ही होगा।” और यह कह कर वह कौनवैन्ट से चला गया।

घर जा कर उसने दोनों उम्मीदवारों को बुलाया – राजकुमार को भी और पिद्दूज़ू को भी और उन दोनों को अपनी बेटी का प्लान समझाया।

दोनों नौजवान यह सुन कर बहुत खुश हुए। राजकुमार तो इसलिये खुश हुआ क्योंकि वह जानता था कि डौन पिद्दूज़ू के पास एक पेनी भी नहीं थी और डौन पिद्दूज़ू इसलिये खुश हुआ कि उस जादू की किताब से वह निश्चित रूप से राजकुमार से जीत जाने वाला था।

पिद्दूज़ू को एक जहाज़ दे दिया गया। उन दोनों ने अपना अपना जहाज़ सँभाला और अपनी अपनी यात्रा पर चल दिये। जब वे समुद्र में बाहर आ गये तो डौन पिद्दूज़ू ने अपनी जादू की किताब खोली। उसमें लिखा था –

“कल तुमको जो भी पहली जमीन मिले वहाँ जा कर अपने जहाज़ का लंगर डाल दो। फिर वहाँ अपने सब आदमियों के साथ एक क्रोबार ले कर उतर जाओ।”

डौन पिद्दूज़ू ने ऐसा ही किया। अगले ही दिन उनको एक टापू दिखायी दे गया सो उन्होंने वहाँ जा कर अपने जहाज़ का लंगर डाल दिया और जहाज़ के सभी लोग एक एक क्रोबार ले कर वहाँ उतर गये।

जमीन पर उतर कर डौन पिद्दूज़ू ने फिर किताब खोली और आगे पढ़ा – “इस जगह के बिल्कुल बीच में तुमको एक चोर दरवाजा मिलेगा। फिर दूसरा और फिर तीसरा। तुम उस क्रोबार से सब दरवाजे खोल कर नीचे उतर जाओ।”

डौन पिद्दूज़ू ने वैसा ही किया। उसको टापू के बीच में एक चोर दरवाजा दिखायी दे गया। उसने अपनी क्रोबार की सहायता से उसके दरवाजे को ऊपर उठाया।

उसके नीचे उसका एक और दरवाजा था और उसके भी नीचे एक और दरवाजा था। आखिरी दरवाजा खोलने पर उसको एक सीढ़ी दिखायी दी। वह उस सीढ़ी से नीचे उतर गया।

नीचे जा कर वह एक गैलरी में पहुँच गया। वह गैलरी सारी की सारी सोने की बनी थी। उसके दरवाजे दीवारें छत सभी कुछ सोने का बना हुआ था।

वहीं 24 लोगों के लिये एक मेज लगी हुई थी। उस पर सोने की चम्मचें थी, सोने के नमक मिर्च रखने के बरतन थे और सोने के ही मोमबत्ती रखने के स्टैन्ड थे।

डौन पिद्दूज़ू ने फिर किताब में पढ़ा – “उनको उठा लो।” सो उसने अपने आदमियों को उन सबको उठाने के लिये और उनको जहाज़ पर ले जाने के लिये कहा।

सब सामान जहाज़ पर लादने में उन सबको 12 दिन लग गये। वहाँ 24 सोने की मूर्तियाँ भी थीं। वे इतनी भारी थीं कि केवल उन्हीं को जहाज़ पर लादने में उनको 2–3 दिन लग गये।

डौन पिद्दूज़ू ने आगे पढ़ा – “चोर दरवाजों को उसी तरह छोड़ देना जैसा तुमने उनको पाया था और वापस चले जाओ।”

डौन पिद्दूज़ू ने वैसा ही किया। यह सब करके उसके जहाज़ ने लंगर उठाया और वह टापू छोड़ दिया।

किताब में आगे लिखा था कि अपनी यात्रा जारी रखो। सो डौन पिद्दूज़ू ने अपनी यात्रा जारी रखी। वे लोग एक महीने तक चलते रहे।

अब नाविक चलते चलते थक गये थे सो उन्होंने डौन पिद्दूज़ू से पूछा कि वे कहाँ जा रहे हैं। डौन पिद्दूज़ू ने कहा कि वे थोड़ी दूर और चलें और फिर वे पलेरमो वापस जल्दी ही पहुँच जायेंगे।

डौन पिद्दूज़ू रोज वह किताब खोलता कि उसमें उसके लिये और आगे क्या लिखा था पर उसमें उसके आगे कुछ और लिखा ही नहीं था। आखिर एक दिन उसने देखा कि उस किताब में लिखा था – “कल तुमको एक टापू मिलेगा। तुम वहाँ उतर जाना।”

अगले दिन ऐसा ही हुआ। उनको एक टापू दिखायी दिया और वे सब उस टापू पर उतर गये।

जमीन पर पहुँच कर उसने फिर वह किताब खोली और उसमें उसने पढ़ा। उसमें लिखा था – “यहाँ तुमको बीच टापू में एक चोर दरवाजा मिलेगा। उसको उठा कर खोल लेना।

उसके बाद दो चोर दरवाजे और मिलेंगे। उनको भी खोल लेना। उसके बाद तुमको सीढ़ियाँ मिलेंगीं उनसे नीचे उतर जाना। फिर वहाँ जो कुछ भी है वह सब तुम्हारा है।”

इस बार वह दरवाजा खोलने पर डौन पिद्दूज़ू को एक गुफा मिली जिसमें सूअर का माँस और चीज़ लटकी हुई थी और बहुत सारे बरतन दीवारों के सहारे सहारे लटके हुए थे।

डौन पिद्दूज़ू ने किताब में आगे पढ़ा – “यहाँ कुछ खाना नहीं। पर बाँये हाथ की तरफ लटका तीसरे नम्बर का बरतन उठा लो। उस बरतन में एक ऐसा मरहम है जो सारी बीमारियाँ ठीक कर देता है।”

सो डौन पिद्दूज़ू ने वह बरतन उठा लिया और उसको जहाज़ पर ले आया। जहाज पर आने के बाद उसने फिर किताब खोली तो उसमें लिखा था “बस अब घर जाओ।” सब लोग खुशी से नाच उठे “ओह आखिर हम घर जा रहे हैं।”

पर जब वे घर जा रहे थे तो उनको केवल समुद्र और आसमान ही दिखायी दे रहा था और कुछ नहीं। अचानक उनको समुद्र में तुर्की के डाकुओं के जहाज़ दिखायी दिये।

दोनों में लड़ाई हुई और डौन पिद्दूज़ू के साथ साथ उसके जहाज़ के सारे लोग पकड़े गये और तुर्की ले जाये गये। वहाँ डौन पिद्दूज़ू और उसके जहाज़ के लोग तुर्की के सुलतान के सामने पेश किये गये।

सुलतान ने दुभाषिये से पूछा — “ये लोग कहाँ से आये हैं?”

वह बोला — “सिसिली से।”

सुलतान के मुँह से निकला — “अल्लाह हमारे ऊपर मेहरबान रहे। इनको जंजीरों से जकड़ दो। खाने के लिये इनको केवल रोटी और पानी दो। और मेहनत करने के लिये इनको भारी भारी पत्थर उठाने दो।”

इस तरह डौन पिद्दूज़ू और उसके लोग यह मुश्किल ज़िन्दगी गुजारने लगे। डौन पिद्दूज़ू तो बस अपनी राजकुमारी के बारे में ही सोचता रहा कि वह बेचारी उसका उसके लिये भेंट लाने का इन्तजार कर रही होगी।

अब हुआ यह कि इस सुलतान के सारे शरीर में खुजली की बीमारी थी। अब तक कोई भी डाक्टर उसका इलाज नहीं कर पाया था।

जैसे ही डौन पिद्दूज़ू ने दूसरे कैदियों से यह सुना तो वह जेल के चौकीदारों से बोला कि अगर सुलतान उसको और उसके आदमियों को छोड़ देगा तो वह उसकी बीमारी ठीक करने को तैयार है।

जेल के चौकीदारों ने जब यह सुलतान को बताया तो उसने डौन पिद्दूज़ू को तुरन्त ही बुला लिया और उससे कहा — “अगर तुम मेरी खुजली ठीक कर दोगे तो तुम जो माँगोगे तुमको वही मिलेगा।”

पर यह जबानी वायदा डौन पिद्दूज़ू के लिये काफी नहीं था। उसने ज़ोर दिया कि यह बात उसको लिख कर दी जाये और उसके बाद उसको अपने जहाज पर वापस जाने दिया जाये।

सुलतान तैयार हो गया। उसने उसको लिख कर भी दे दिया और जहाज़ पर वापस जाने की इजाज़त भी दे दी। जहाज़ किनारे पर लग चुका था और उसमें न तो कुछ छुआ गया था और न ही उसमें से कुछ चुराया गया था। सब कुछ वैसा का वैसा ही रखा था।

डौन पिद्दूज़ू ने मरहम के उस बरतन में से एक शीशी भरी और सुलतान के पास गया। डौन पिद्दूज़ू ने उसको लिटाया और फिर एक ब्रश से उसके सिर, चेहरे और गरदन पर वह मरहम लगा दिया।

रात होने से पहले ही सुलतान की खाल ऐसे निकलने लगी जैसे कोई साँप अपनी केंचुली छोड़ता है। उस पुरानी खाल के नीचे उसकी गुलाबी नयी चिकनी खाल निकल आयी।

अगले दिन डौन पिद्दूज़ू ने उस मरहम को सुलतान की छाती, पेट और पीठ पर भी लगा दिया और सुलतान पूरी तरह से ठीक हो गया।

सुलतान ठीक हो कर बहुत खुश हुआ और उसने अपने वायदे के अनुसार डौन पिद्दूज़ू को उसके जहाज़ के लोगों के साथ उसके देश वापस भेज दिया।

डौन पिद्दूज़ू पलेरमो उतरा और एक गाड़ी ले कर पिपीना के पास भागा। पिपीना तो उसको देख कर बहुत खुश हो गयी।

राजा ने उससे उसके हाल चाल पूछे। डौन पिद्दूज़ू ने कहा — “भगवान जानता है मैजेस्टी। पर अब मुझे एक बहुत बड़ी गैलरी की जरूरत है जहाँ मैं अपनी लायी चीजें. आपको दिखा सकूँ।

हालाँकि वे चीज़ें बहुत छोटी हैं पर फिर भी जब वे मेरे पास हैं तो मैं आपको उनको दिखाना पसन्द करूँगा।”

फिर उसने अपने लोगों को कहा कि वे जहाज़ में से सब सामान निकाल कर ले आयें। उनको जहाज़ खाली करने में एक महीना लग गया जबकि उन्होंने केवल जहाज़ ही खाली किया था और कुछ नहीं किया।

जब सब कुछ अपनी जगह पर लग गया तो डौन पिद्दूज़ू ने राजा से कहा — “योर मैजेस्टी। मैं कल अपनी लायी चीज़ें दिखाने के लिये तैयार हूँ। इस बीच अगर आप चाहें तो राजकुमार की चीजें. पहले देख सकते हैं उसके बाद मेरी लायी हुई चीजे.ं देख लीजियेगा।”

सो अगले दिन राजा राजकुमार की लायी चीज़ें देखने गया। वह कुछ छोटी छोटी चीज़ें लाया था पर उनमें ऐसा कुछ भी नहीं था जो तारीफ करने लायक हो फिर भी राजा ने उसकी लायी उन चीज़ों की बहुत तारीफ की।

उसके बाद दोनों डौन पिद्दूज़ू का सामान देखने के लिये आये। उसके सब सामान को देख कर तो राजकुमार की साँस ही रुक गयी और उसको चक्कर आ गया। वह सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने जहाज़ पर चढ़ कर अपने देश चला गया और फिर कभी दिखायी नही दिया।

भीड़ चिल्लायी — “डौन पिद्दूज़ू ज़िन्दाबाद। डौन पिद्दूज़ू ज़िन्दाबाद।” राजा ने उसे गले लगाया और दोनों एक साथ पिपीना को लाने के लिये सेन्ट कैथरीन कौनवैन्ट चले।

तीन दिन बाद दोनों की शादी हो गयी।

डौन पिद्दूज़ू ने अपने माता पिता को भी बुलाया। जबसे वह महल में रहने आया था तबसे उसको उनकी कोई खबर ही नहीं थी।

वे बेचारे अभी भी नंगे पैर ही रह रहे थे। उनको उसने इस तरीके से तैयार किया जैसे किसी राजकुमार के माता पिता को होना चाहिये। उसके बाद से उसके माता पिता भी उसके साथ ही महल में ही रहने लगे।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

  • इटली की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां