एक डाक्टर कुत्ते की अजब कहानी : चीनी लोक-कथा
The Strange Tale of Doctor's Dog : Chinese Folktale
बहुत दूर मध्य चीन में मनुष्यों के प्रान्त में एक छोटे से गाँव में एक बहुत ही भला अमीर आदमी रहता था। उसके केवल एक ही बच्ची थी यह बेटी अपने पिता को बहुत प्यारी थी।
यह मिस्टर मिन अपने जिले में अपनी अक्लमन्दी के लिये बहुत प्रसिद्ध था और क्योंकि उसके पास बहुत सारी जायदाद भी थी तो उसने अपनी हनीसकिल को संतों की सीख सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी और जो कुछ उसने माँगा वह उसे दिया।
वह उस फूल जैसी ही मीठी थी जिससे उसने अपना यह नाम लिया था। वह अपने पिता की हर बात बहुत ध्यान से सुनती थी और उसको बिना दूसरी बार कहे मानती भी थी।
उसका पिता उसके लिये अक्सर हर तरह की और हर शक्ल की पतंगें खरीदा करता था। मछलियों की चिड़ियों की तितलियों की छिपकलियों की बड़े बड़े ड्रैगनों की। उनमें से एक पतंग ऐसी भी थी जिसकी पूँछ 30 फीट से भी ज़्यादा लम्बी थी।
मिस्टर मिन को हनीसकिल के लिये पतंग उड़ानी बहुत अच्छी आती थी। वह तितली और चिड़ियों वाली पतंगें इतनी अच्छी उड़ाता था कि अगर उसे कोई पश्चिम का लड़का उड़ाते देख ले तो वह तो यही कहेगा कि यह कोई सच्ची तितली या चिड़िया उड़ रही है क्या। फिर वह पतंग की डोर में कोई छोटा सा पत्थर बाँधता और अपने हाथ इधर उधर हिलाता जिससे गुनगुनाने की सी आवाज निकलती।
उसे सुन कर हनीसकिल खुशी से ताली बजाते हुए कहती — “पिता जी यह तो हवा के गाने की आवाज है वह हम दोनों के लिये पतंग के गीत गा रही है।”
अगर उसकी बच्ची ज़रा सी भी कभी शैतानी करती तो कभी कभी उसे सिखाने के लिये मिस्टर मिन बहुत सारे चीनी शब्द कागज पर लिख कर उसकी पतंगों की डोर से बाँध देता।
हनीसकिल अपने पिता से पूछती — “यह आप क्या कर रहे हैं पिता जी? ये अजीब से कागज क्या हैं?
“इस हर कागज पर वे पाप लिखे हुए हैं जो हमने किये हैं।” “पाप क्या होता है पिता जी?”
मिस्टर मिन कहते — “पाप? जब हनीसकिल शैतानी करती है उसे पाप कहते हैं। तुम्हारी बूढ़ी आया तुम्हें डाँटने से डरती है और अगर तुम्हें एक अच्छी स्त्री के रूप में बड़ा होना है तो तुम्हारे पिता को तुम्हें सिखाना ही पड़ेगा कि क्या ठीक है।”
उसके बाद मिस्टर मिन पतंग को बहुत ऊँचा उड़ाते घरों की छतों के भी ऊपर ऊँचे ऊँचे पगोडा से भी ऊपर। जब उनकी सारी डोर खत्म हो जाती तब वह दो बहुत नुकीले पत्थर उसमें बाँधते और उन्हें हनीसकिल को पकड़ाते हुए कहते — “बेटी अब तुम इस डोर को काट दो तो हवा उन पापों को उड़ा कर ले जायेगी जो इन कागज के टुकड़ों पर लिखे हैं।”
हनीसकिल भोलेपन से कहती — “पर पिता जी यह पतंग कितनी सुन्दर है। क्या हम अपने पापों को थोड़ी देर के लिये और नहीं रख सकते?”
उसके सवाल पर मिस्टर मिन अपनी हँसी रोकते हुए कहते — “नहीं बेटी। अपने पापों को अपने पास रखना बुरी बात है। गुण खुशी की नींव है। जल्दी करो और डोर काट दो।”
अब हनीसकिल तो बहुत ही आज्ञाकारी थी कम से कम अपने पिता की सो वह तुरन्त ही डोर काट देती और फिर अपनी पतंग के उड़ जाने पर बच्चों की तरह से रोती।
वह बड़ी निराशा से देखती रहती कि हवा उसकी प्यारी पतंग को उड़ाये लिये जा रही है – दूर दूर और बहुत दूर। अपनी आँखों पर ज़ोर डाल कर वह उसे तब तक देखती रहती जब तक वह उसकी आँखों से बिल्कुल ओझल नहीं हो जाती।
तब मिस्टर मिन कहते — “अब तुम हँसो और खुश हो जाओ क्योंकि अब तुम्हारे सारे पाप उड़ गये हैं पर ध्यान रखना कि अब तुम और पाप इकठ्ठे मत करना।”
हनीसकिल को “पंच और जूडी” शो देखना अच्छा लगता था क्योंकि यह पुराने ढंग का शो चीन के छोटे छोटे बच्चों को बहुत पसन्द आता था। शायद यह तुम्हारे दादा के पैदा होने से भी तीन हजार साल पहले का था।
यह भी कहा जाता है कि जब बादशाह मू ने पहली बार इन छोटी छोटी मूर्तियों को नाचते देखा तो वह यह देख कर बहुत गुस्सा हो गया कि उनमें से एक मूर्ति उसकी पत्नी की तरफ देख कर आँखें मटका रही थी।
उसने इस शो के दिखाने वाले को मौत के घाट उतारने का हुक्म दिया था पर फिर बड़ी मुश्किल से वह यह विनती कर के अपनी ज़िन्दगी वापस पा सका था कि वे पुतलियाँ ज़िन्दा नहीं थीं केवल कपड़े और मिट्टी की बनी थीं।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हनीसकिल इस पंच और जूडी शो को बहुत पसन्द करती थी अगर भगवान के बेटे ने खुद भी इससे धोखा न खाया होता कि वे सचमुच के खून और माँस के बने हुए लोग थे।
पर अब हमें अपनी कहानी पर जल्दी ही आ जाना चाहिये वरना तो हमारे कुछ पढ़ने वाले पूछने लगेंगे “इस कहानी में डाक्टर कुत्ता कहाँ हैं? क्या तुम इस कहानी के हीरो को नहीं ला रहे?”
एक दिन हनीसकिल एक छायादार जगह में बैठी हुई थी जहाँ से एक बहुत छोटा सा मछलियों वाला तालाब दिखायी देता था। अचानक उसके पेट में बहुत ज़ोर का दर्द उठा। दर्द की वजह से उसने अपने एक नौकर को भेज कर अपने पिता को बुलवाया और वह खुद बेहोश हो गयी।
उन्होंने तुरन्त ही अपने परिवार के डाक्टर को बुलवाया। पिता अपनी बेटी को तुरन्त ही बिस्तर पर लिटाने के लिये ले गया। हालाँकि वह अपने बेहोशी से थोड़ा सा ठीक हो चुकी थी पर उसका वह तेज़ दर्द अभी भी वैसा ही था। वह बेचारी लड़की तो दर्द के मारे बस मरने वाली ही हो रही थी।
अब जब वह होशियार डाक्टर घर आया और उसने अपने बड़े बड़े चश्मे में से उसकी तरफ देखा तो वह उसके दर्द की वजह नहीं बता सका।
खैर अपने कुछ पश्चिमी डाक्टरों की तरह से उसने इस बारे में अपनी अज्ञानता नहीं जतायी बल्कि उसे पीने के लिये बहुत सारा गर्म पानी बता दिया और उसके बाद हिरन के सींग के पाउडर और कछुए की सूखी खाल के पाउडर को मिला कर खाने के लिये बता दिया।
बेचारी हनीसकिल तीन दिन तक ऐसी ही दुखी हालत में पड़ी रही। सो न पाने की वजह से पल पल पर वह और ज़्यादा कमजोर होती जा रही थी। जिले का हर डाक्टर बुलाया गया। दो डाक्टर चांगशा से आये जो वहाँ के एक मशहूर शहर से आये थे। पर सब बेकार रहा। यह एक ऐसा रोग था जो डाक्टरों के वश में नहीं था। यहाँ तक कि बहुत अक्लमन्द डाक्टर भी कुछ नहीं कर सके।
निराश पिता के रखे गये इनाम को पाने के लिये इन डाक्टरों ने चीनी ऐनसाइक्लोपीडिया का हर पृष्ठ छान मारा पर उन्हें इस रोग की कोई दवा नजर नहीं आयी।
एक विचार यह भी आया कि इंगलैंड के एक खास डाक्टर को बुलाया जाये जो एक दूर के शहर में रहता था और जिसे रोगों और इलाज की अच्छी जानकारी थी। वह शैतानी रोगों का इलाज भी करता था। पर वहाँ के शहर के मजिस्ट्रेट ने मिस्टर मिन को ऐसा करने की इजाज़त नहीं दी क्योंकि इससे वहाँ की जनता में डर फैल सकता था।
तब मिस्टर मिन ने अपनी बेटी की बीमारी के लक्षण बताते हुए यह घोषणा जारी की कि जो कोई उसकी बेटी का इलाज कर के उसे ठीक करेगा और उसकी खुशियाँ वापस लायेगा वह उसके साथ अपनी बेटी की शादी कर देगा और साथ में एक अच्छा खासा दहेज भी देगा।
यह सोचते हुए कि जितना उसके हाथ में था उतना उसने कर दिया वह उसके पलंग के पास बैठ गया और इन्तजार करने लगा। उसकी इस घोषणा के जवाब में अपनी अपनी होशियारी आजमाने के लिये राज्य के हर कोने से हनीसकिल को देखने के लिये कई लोग आये – डाक्टर, बूढ़े और जवान। जब उन्होंने हनीसकिल को और उसे दहेज में दिये जाने चाँदी के जूतों के बहुत बड़े ढेर को देख लिया तो वे अपनी पूरी ताकत के साथ उसकी बीमारी का इलाज करने में जुट गये।
कुछ तो उसकी सुन्दरता से प्रभावित थे और कुछ उसके सम्मान से जबकि कुछ उसके पिता के दिये जाने वाले दहेज से। पर दुख होता है बेचारी हनीसकिल के लिये कि उनमें से कोई भी हनीसकिल का इलाज नहीं कर सका।
एक दिन जब वह अपनी बीमारी से कुछ अच्छा महसूस कर रही थी उसने अपने पिता को बुलाया और अपने छोटे छोटे हाथों से उनका हाथ पकड़ कर बोली — “आपके प्यार के लिये क्या यह अच्छा नहीं होता कि मैं जंगल में अपनी इस मुश्किल लड़ाई को खत्म करती। या फिर जैसा कि दादी कहती थीं “पश्चिमी आकाश में ऊँचे उड़ जाओ।”
आपके लिये क्योंकि मैं आपकी अकेली बच्चा हूँ खास कर के जब आपके कोई बेटा नहीं है मैं ज़िन्दगी से कितना लड़ी हूँ पर अब मुझे लगता है कि अगली बार जो दर्द उठेगा तो वह तो बस मेरी जान ले कर ही जायेगा। ओह पिता जी मैं मरना नहीं चाहती।”
इधर हनीसकिल रो रही थी जैसे बस उसका दिल ही टूट जायेगा। उधर उसका पिता भी रो रहा था क्योंकि जितना वह सह रही थी उतना ही ज़्यादा वह उसे प्यार करता था।
तभी उसका चेहरा पीला पड़ने लगा। हनीसकिल चिल्लायी — “पिता जी मेरा दर्द वापस आ रहा है। अब मैं बहुत देर ज़िन्दा नहीं रहूँगी। नमस्ते पिता जी।”
यहाँ आ कर उसकी आवाज टूट गयी और एक बहुत ज़ोर की सिसकी के साथ वह उसके पलंग के पास से चला गया और बाहर जा कर एक बैन्च पर बैठ गया। उसका सिर उसकी छाती पर लटका हुआ था। उसकी आँखों से बड़े बड़े नमकीन आँसू उसकी लम्बी सफेद दाढ़ी पर गिर रहे थे।
जब मिस्टर मिन ऐसे दुखी बैठे हुए थे कि उन्होंने कुत्ते की एक हल्की सी आवाज सुनी। उन्होंने अपना सिर उठा कर ऊपर देखा तो देखा कि उनके सामने एक पहाड़ी कुत्ता खड़ा हुआ था जो न्यूफाउंडलैंड के साइज़ का था।
उस कुत्ते ने सीधे मिस्टर मिन की आँखों में ऐसे देखा जैसे कोई आदमी दुखी नजर से देखता है कि मिस्टर मिन को उससे पूछना ही पड़ गया — “तुम यहाँ क्यों आये हो? क्या मेरी बेटी को ठीक करने?”
इसके जवाब में कुत्ता अपनी पूँछ को बहुत तेज़ी से हिलाते हुए तीन बार भौंका और फिर उस कमरे के खुले दरवाजे की तरफ चला गया जिसमें वह लड़की लेटी हुई थी। इस समय तक मिस्टर मिन हर तरह का इलाज करने को तैयार थे सो उन्होंने उसे अन्दर जाने दिया और खुद भी उसके पीछे पीछे चले गये।
उन्होंने देखा कि कुत्ते ने अपने अगले पैरों के पंजे उसके पलंग के किनारे पर रखे और हनीसकिल के शरीर को कुछ देर तक देखता रहा।
फिर एक पल के लिये उसने अपने कान उसके दिल पर रखे। फिर खाँस कर उसने अपने मुँह से एक छोटा सा पत्थर उस लड़की के हाथ पर रख दिया। उसके बाद उसने अपने दाँये पंजे से उसका वह हाथ उसके मुँह तक किया ताकि वह उसे निगल सके।
हनीसकिल ने अपना चेहरा घुमाया तो उसके पिता जी ने भी उससे कहा कि वह कुत्ते की बात मान ले क्योंकि इस डाक्टर कुत्ते को पहाड़ों की परियों ने उसे ठीक करने के लिये भेजा है जिन्होंने उसकी बीमारी के बारे में सुना और जो तुममें ज़िन्दगी वापस लाने की इच्छा रखती हैं।
सो बिना कोई देर किये उस लड़की ने जो बहुत ही ऊँचे बुखार से जली जा रही थी अपना हाथ उठाया और वह छोटा सा टोटका निगल लिया।
और देखो कैसे आश्चर्य की बात हुई कि जैसे ही उसने वह टोटका निगला तो एक जादू सा हुआ। उसके चेहरे पर लाल रंग की एक लहर दौड़ी उसका दर्द चला गया और वह ठीक हो कर अपने बिस्तर से उठ गयी। अपने पिता की गर्दन के चारों तरफ अपनी बाँहें डाल कर वह खुशी से चिल्ला पड़ी — “मैं ठीक हो गयी पिता जी। इस बड़े डाक्टर का बहुत बहुत धन्यवाद।”
वह कुलीन कुत्ता हनीसकिल के आँसू भरे शब्द सुन कर खुशी से तीन बार भौंका। फिर उसने नीचे झुक कर हनीसकिल के हाथ पर अपनी नाक रखी। मिस्टर मिन का दिल अपनी बेटी के इस अकस्मात ठीक होना देख कर भर आया।
वह उस अजनबी डाक्टर की तरफ घूमा और बोला — “ओ अजनबी जनाब। अगर आप अपनी इस शक्ल में न होते, यह तो हमें पता नहीं कि ऐसा आपने क्यों किया, तो मैंने आपको जो मैंने निश्चित किया था उससे चौगुना पैसा देता।
अब जैसा भी है तो मुझे लगता है आपको तो चाँदी की जरूरत नहीं है पर जब तक हम ज़िन्दा हैं जो कुछ हमारा है वह आपका भी है।
इसके अलावा मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप हमारे घर आते रहियेगा और इसे अपने बुढ़ापे के लिये अपना ही घर समझियेगा। संक्षेप में आप हमारे घर में एक मेहमान की तरह से या फिर हमारे परिवार के एक सदस्य की तरह से रहते रहिये।” यह सुन कर कुत्ता फिर से तीन बार भौंका जैसे उसने इसे स्वीकार कर लिया हो।
उस दिन के बाद से पिता और बेटी समान रूप से उस कुत्ते को मानने लगे। बहुत सारे नौकरो को भी यह कह दिया गया कि वे उसकी छोटी से छोटी इच्छा को पूरा करें चाहे वह उन्हें कितनी ही बेकार की क्यों न लगे। इसके अलावा उसे मँहगा से मँहगा खाना खिलायें। उन्हें चाहे जो करना पड़े वे उसे खुश रखने के लिये वही करें।
रोज वह हनीसकिल के साथ जाता जब वह बागीचे से फूल चुन रही होती। उसके दरवाजे के बाहर लेटा रहता जब वह सो रही होती। उसके साथ उसके गार्ड की तरह से जाता जब उसके नौकर उसे सीडान कुर्सी में बिठा कर शहर में ले जाते। अब वे हर समय के साथी हो गये थे। अगर कोई अजनबी उन्हें देखता तो सोचता कि वे बचपन के साथी हैं।
एक दिन जब वे अपने पिता के कम्पाउंड से बाहर से एक यात्रा से वापस आ रहे थे तो उसी पल जब हनीसकिल अपनी कुर्सी से उतर रही थी बिना किसी से भी कुछ कहे वह बड़ा जानवर दासों के पास से गुजरा अपनी सुन्दर मालकिन को अपने मुँह से पकड़ा और उसे पहाड़ों की तरफ ले चला। कोई कुछ कर नहीं सका।
जब तक सब लोगों को सावधान किया गया तब तक अँधेरा फैल गया था। उस रात आसमान में बादल थे सो कुछ दिखायी भी नहीं दे रहा था। सो कुत्ते और हनीसकिल दोनों का ही पता नहीं चल सका।
एक बार फिर पिता ने अपनी बेटी को ढूँढने में कोई कोशिश नहीं छोड़ी। बड़े बड़े इनाम घोषित किये गये। बहुत सारे लकड़हारे पहाड़ों में उसे ढूँढने गये पर अफसोस लड़की का कहीं कोई पता नहीं चला।
अभागे पिता ने फिर उसकी खोज छोड़ दी और अपने आपको कब्र में जाने के लिये तैयार करने लगा। अब उसके लिये उसकी ज़िन्दगी में कुछ नहीं बचा था जिसके उसे कोई चिन्ता होती। अब उसके पास सिवाय अपनी बेटी के बारे में सोचने के और कुछ रह ही नहीं गया था। हनीसकिल हमेशा के लिये चली गयी थी।
अब उसे बस एक मशहूर कवि की लाइनें याद आ रही थी जो बहुत निराश हो चुका था — मेरे सफेद हुए बाल एक लम्बी रस्सी बनायेंगे, फिर भी मेरे दुख की गहरायी को नाप नहीं पायेंगे कई लम्बे साल बीत गये, बूढ़े के लिये वे दुख भरे साल, अपनी बेटी के दर्द के साल।
एक अक्टूबर के एक सुन्दर दिन वह उसी जगह बैठा हुआ था जहाँ वह अक्सर अपनी बेटी के साथ बैठा करता था। उसका सिर उसकी छाती तक नीचे लटका हुआ था। उसके माथे पर दुख की लाइनें पड़ी हुई थीं।
कि तभी हवा से पास के पेड़ की पत्तियों की सरसराहट की आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया। लो उसके ठीक सामने डाक्टर कुत्ता खड़े थे और उसकी पीठ पर उसके उलझे बालों को पकड़े उसकी हनीसकिल थी – उसकी बहुत सालों की खोयी हुई बेटी। उसके पास बहुत सुन्दर तीन बेटे खड़े थे जितने सुन्दर बेटे उसने पहले कभी नहीं देखे थे।
उसे देखते ही उसने उसे गले लगा लिया और चिल्लाया — “ओह मेरी प्यारी बेटी। इतने सालों से तुम कहाँ थीं? जिस दिन से तुम मुझसे अकस्मात छीन ली गयीं तो क्या उस दिन से तुम भी दुखी थीं? क्या तुम्हारी ज़िन्दगी भी दुखी थी?”
उसने बड़ी नम्रता से उसके माथे को अपनी कोमल उँगलियों से छूते हुए जवाब दिया — “मैं दुखी तो थी पर केवल आपके दुखी होने को सोच कर। केवल यह सोच कर कि मैं हर रोज आपको देखना कितना पसन्द करती थी। केवल यह सोच कर कि मैं आपको कैसे बताऊँ कि मैं अपने पति के साथ कितना खुश थी। क्योंकि पिता जी। यह कोई केवल जानवर नहीं है जो आपके पास खड़ा है। यह डाक्टर कुत्ता जिसने मेरा इलाज किया और इस तरह से आपके वायदे के अनुसार इसका मेरे ऊपर अधिकार हुआ। यह कोई कुत्ता नहीं है बल्कि एक बहुत बड़ा जादूगर है। यह अपनी मर्जी से हजारों बार अपनी शक्ल बदल सकता है।
पिछली बार इसने एक पहाड़ी जानवर की शक्ल में यहाँ आने का विचार किया ताकि कोई इसके दूर बने महल में आ न सके और उसका भेद न पा सके।”
लड़खड़ा कर एक नयी नजर से कुत्ते को देखते हुए बूढ़ा बोला — “तो यह तुम्हारा पति है?”
“जी पिता जी। मेरा दयालु और कुलीन पति। मेरे तीन बेटों का पिता। ये हैं आपके तीन पोते जिन्हें हम आपसे मिलाने लाये हैं।”
“और तुम रहती कहाँ हो?”
“उन बड़े पहाड़ों में एक गुफा में जिसकी दीवारें और फर्श क्रिस्टल के हैं। जिनमें चमकते हुए जवाहरात जड़े हुए हैं। जिसमें रखी कुर्सियाँ और मेजें सब जवाहरातों से जड़ी हुई हैं। जिसके कमरे हजारों हीरों की चमक से दमकते हैं।
ओह वह जगह तो भगवान के बेटे की जगह से भी अच्छी है पिता जी। हम वहाँ जंगली हिरनों का और पहाड़ी बकरों का माँस खाते हैं और पहाड़ों की सबसे साफ नदियों में रहने वाली मछलियाँ खाते हैं। हम वहाँ सोने के प्यालों में बिना पहले उबाले पानी पीते हैं क्योंकि वहाँ का पानी बहुत शुद्ध है। हम वहाँ उस खुशबूदार हवा में साँस लेते हैं जो पाइन के जंगलों से हो कर आती है।
हम केवल एक दूसरे से और अपने बच्चों से प्यार करने के लिये ही ज़िन्दा हैं। पिता जी हम बहुत खुश हैं। अब आप हमारे साथ चलिये और उसी पहाड़ में रहिये। भगवान करे वहाँ आप बहुत दिन ज़िन्दा रहें।”
बूढ़े ने अपनी बेटी को एक बार फिर से गले लगाया और बच्चों के साथ खेला जो अपने उस नाना की खोज से बहुत खुश थे जिसका उनको पता ही नहीं था।
कहते हैं कि डाक्टर कुत्ता और उसकी सुन्दर हनीसकिल से ही आदमियों की जानी पहचानी “युस” जाति की उत्पत्ति हुई है जो आज भी हूनान और कैन्टन क्षेत्र के पहाड़ों में रहते हैं।
यह कहानी हमने यहाँ इस वजह से तो नहीं कही है कि हमें “युस” जाति की उत्पत्ति बतानी थी पर हमने सोचा कि शायद लोग उस कुत्ते का भेद जानना चाहें जिसने एक लड़की का इलाज किया और उसे अपनी दुलहिन के रूप में जीत लिया था।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)