सिपाही और शैतान : एस्टोनिया लोक-कथा
The Soldier and the Devil : Lok-Katha (Estonia)
यह लोक कथा भी यूरोप के ऐस्टोनिया देश की लोक कथाओं से ली गयी है।
एक बार की बात है कि एक शैतान को शहर से बाहर एक सिपाही मिल गया। उसने सिपाही से कहा — “मुझे ज़रा शहर घुमा दो क्योंकि मैं वहाँ अकेला नहीं जा सकता।
हालाँकि वहाँ अकेले जाने में मुझे बहुत अच्छा लगता पर ये दो आँखों वाले कुत्ते मुझे हर सड़क पर घेर लेते हैं। और फिर जैसे ही मैं शहर में घुसता हूँ तो वे मुझ पर हमला कर देते हैं।”
सिपाही बोला — “मैं तुम्हें खुशी से वहाँ ले चलूँगा पर तुम्हें मालूम है कि बिजनैस तो बिजनैस है वह बिना पैसे के नहीं होता।”
शैतान बोला — “तुम्हें क्या चाहिये?”
सिपाही बोला — “कुछ ज़्यादा नहीं क्योंकि तुम्हारे पास तो बहुत सारे पैसे हैं। अगर तुम मेरा यह लम्बी बाँहों वाला दस्ताना पैसों से भर दोगे तो बस मेरे लिये वही काफी है।”
शैतान बोला “ओह इतना तो मेरी जेब में ही है।” और उसने उसका वह लम्बी बाँहों वाला दस्ताना ऊपर तक भर दिया।
उसके बाद सिपाही बोला “मैं नहीं जानता कि मैं तुमको कहाँ रखूँ। पर ज़रा रुको। तुम ऐसा करो कि तुम मेरे इस कन्धे पर लटकाने वाले थैले में बैठ जाओ। तुम यहाँ और किसी भी जगह से ज़्यादा सुरक्षित रहोगे।”
“यह ठीक है पर तुम्हारे इस थैले में तो तीन रस्सियाँ हैं। इस तीसरी वाली रस्सी को मत बाँधना वरना वह मेरे लिये ठीक नहीं होगा।”
“ठीक है। तुम बैठो तो।”
सो वह शैतान उसके उस थैले में बैठ गया। पर वह सिपाही उन लोगों में से था जो अपना वायदा नहीं निभाते। जैसे ही वह शैतान उस थैले में बैठा उसने तीनों रस्सियों को कस कर बाँध दिया।
और यह कहता हुआ शहर की तरफ चल दिया कि किसी सिपाही को शहर में किसी खुली रस्सी के साथ नहीं जाना चाहिये। तुम क्या सोचते हो कि अगर मेरा कौरपोरल मुझे इस तरह गन्दे तरीके से देखेगा तो क्या वह तुम्हारी वजह से मुझे माफ कर देगा। सिपाही का एक दोस्त लोहार था जो शहर के दूसर कोने में रहता था। वह उस शैतान को अपने थैले मे ले कर सीधा उसी के पास चला गया।
वहाँ जा कर वह उससे बोला — “दोस्त ज़रा मेरे थैले को अपने लोहा पीटने की जगह पर रख कर पीट कर मुलायम कर दो। मेरा कोरपोरल हमेशा ही यह कहता है कि मेरा थैला सूखे चमड़े के जूते की तरह सख्त है।”
“ठीक है। इसको यहाँ रख दो।” कह कर उसने उसको इशारे से अपना लोहा पीटने की जगह दिखा दी। सिपाही ने अपना थैला वहाँ रख दिया और उस लोहार ने उस थैले को हथौड़े से मारना शुरू कर दिया।
फिर वह उसे तब तक मारता रहा जब तक उस चमड़े में से बाल नहीं निकलने लगे।
कुछ देर बाद उसने पूछा — “अब ठीक है?”
सिपाही बोला — “हाँ अब ठीक है।” कह कर उसने अपना थैला अपने कन्धे पर डाला और सीधा शहर चला गया। वहाँ पहुँच कर उसने शैतान को बीच सड़क पर बाहर निकाल दिया।
लोहार के मारने से वह शैतान तो अब मुशरूम की तरह से बिल्कुल चौरस हो गया था। वह अपने पैरों पर भी बड़ी मुश्किल से खड़ा हो पा रहा था। उसके साथ इतना बुरा पहले कभी नहीं हुआ था।
पर सिपाही के पास तो बहुत पैसा था उसके अपने लिये भी और उसके बच्चों के लिये भी। सो वह ज़िन्दगी भर खूब आराम से रहा।
जब वह सिपाही मर गया और वह दूसरी दुनियाँ में पहुँचा तो वह नरक में पहुँचा। उसने जा कर वहाँ का दरवाजा खटखटाया। शैतान ने यह देखने के लिये बाहर झाँका कि वह कौन था जो उसका दरवाजा खटखटा रहा था।
उसको देखते ही वह चिल्लाया “ओह तुम, नीच तुम? तुम्हारी यहाँ कोई जरूरत नहीं है। तुम जहाँ जाना चाहो वहाँ जाओ पर तुम यहाँ अन्दर नहीं आ सकते।”
और यह कह कर अपना दरवाजा ज़ोर से बन्द कर दिया। सो वह सिपाही सीधा भगवान के पास गया और जा कर उन्हें बताया कि उसके साथ क्या हुआ था।
भगवान बोले “कोई बात नहीं तुम यहाँ ठहर सकते हो। सिपाहियों के लिये यहाँ बहुत जगह है।”
उसके बाद से शैतान ने कभी किसी सिपाही को नरक में नहीं घुसने दिया और इस तरह अब सिपाही नरक नहीं जाते।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)