बर्फ की रानी (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

The Snow Queen (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

एक जादूगर था। वह बहुत दुष्ट था। बिल्कुल राक्षस ही समझो। दूसरों को तंग करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। उसने एक ऐसा जादुई आईना तैयार किया, जिसमें हर अच्छी और सुन्दर चीज भद्दी और बदसूरत दिखाई देती थी। आमतौर से तो उसमें अच्छी चीजें दिखाई ही नहीं देती थीं। खराब और बदसूरत चीज़ें उसमें खूब अच्छी मालूम पड़ती थीं।

इस जादुई आइने में अगर कोई सुन्दर आदमी देखता तो उसकी शक्ल बिल्कुल बिगड़ जाती थी। कभी सिर गायब, तो कभी पेट गायब। हाथ पैर इस तरह मुड़े हुए और टूटे हुए-से लगते थे कि कोई उसको पहचान नहीं सकता था। जादूगर यह देखकर दुष्टतापूर्वक हंसता था और मन ही मन बड़ा खुश होता था।

जादूगर ने अपने बहुत-से चेले पाल रखे थे। वे भी एक से एक बढ़कर दुष्ट थे। वे उस जादुई आईने को लेकर घूमते थे और लोगों को उनकी बदली हुई शक्लें दिखाकर चिढ़ाया करते थे।

एक बार उसके शिष्यों को एक नयी चाल सूझी। उन्होंने सोचा कि देवतागण और स्वर्ग की अप्सराएं वगैरह अपने को बहुत सुन्दर मानती हैं। चलो उन्हें भी उनकी असली शक्ल इस आइने में दिखाई जाए। यह सोचकर वे जादू के बल से आईना उठाकर आसमान में उड़ने लगे। वे उढ़ते चले गए। यहां तक कि इतनी ऊंचाई पर जा पहुँचे कि उनके हाथ से वह जादुई आईना छूट गया और ज़मीन पर जा गिरा। गिरते ही उसके इतने चोटे-छोटे टुकड़े हो गए कि वे हवा में उड़ने लगे। संसार के लिए यह और भी बुरी बात हुई। उस शैतान आईने के ज़र्रे कुछ लोगों की आँखों में पड़े और वे हर अच्छी चीज को बुरी समझने लगे। उस शैतान आईने के टुकड़े कुछ लोगों के दिल में भी जा बैठे।। यह और भी बुरा हुआ। लोगों के दिलों से दया, ममता प्रेम, स्नेह—सब कुछ उड़ गया और वे पत्थर दिल हो गए, बिलकुल बर्फ़ जैसे ठंडे और कड़े। उस शीशे के कुछ बड़े टुकड़े इकट्ठा करके लोगों ने इनके चश्मे बना लिए और उन्हें अपनी आंखों पर लगाकर वे अपने पड़ोसियों और मिलने-जुलने वालों, सबको बुरा समझने लगे।

जादूगर यह देखकर खूब प्रसन्न हुआ और खिल-खिलाकर हंसता रहा। अब भी उस शैतान आईने के टुकड़े हवा में तैर रहे हैं। इनका क्या असर होता है। इसे हम आगे की कहानी में पढ़ेंगे।

एक बड़ा शहर था, जहाँ बहुत से लोग रहते थे। वह इतना घना बसा हुआ था और लोगों के पास इतने छोटे-छोटे मकान थे कि वे एक बगीचा तक नहीं लगा सकते थे। ऐसी ही घनी बस्ती में दो छोटे बच्चे रहते थे। एक लड़का और एक लड़की। दोनों भाई-बहन नहीं थे, लेकिन दोनों में भाई-बहन जैसा ही प्यार था। उनके घर इतने पास-पास थे कि वे अपने घर की खिड़की पार करके दूसरे की खिड़की में जा सकते थे। खिड़की के पास लकड़ी के बड़े-बड़े डिब्बों में उनके घर के लोगों ने कुछ पौधे लगा रखे थे, जिनमें गुलाब भी थे।

जाड़े के दिनों में दोनों का मिलना-जुलना बन्द हो जाता था, क्योंकि इतनी बर्फ़ गिरती थी कि खिड़कियों के शीशों पर भी बर्फ़ की मोटी तह जम जाती थी। वे एक-दूसरे को देख भी नहीं पाते थे। ऐसे मौके पर वे किसी सिक्के को अंगीठी पर ख़ूब गर्म करते थे और फिर उसे खिड़की के शीशे पर चिपका देते थे। इससे गर्मी पाकर उतनी जगह की बर्फ़ गल जाती थी और एक छोटा-सा छेद बन जाता था। उसी छेद से दोनों एक-दूसरे को देखते थे। लड़के का नाम था किटी और लड़की का नाम था गेर्डा।

कभी-कभी लड़के की दादी दोनों को कहानियां, खासकर बर्फ़ की रानी की कहानियां सुनाती थी।

एक दिन शाम को बाहर बर्फ़ गिर रहा थी। लड़का अपने कमरे में ही था। उसने एक छेद से झांककर बाहर देखा। बाहर पौधों के डिब्बों में बर्फ़ गिर रही थी। अचानक बर्फ़ के एक गोले पर उसकी नज़र जम गई। उसने देखा कि बर्फ़ का वह गोला बढ़ते-बढ़ते रूई के एक ढेर की तरह हो गया। यही नहीं, थोड़ी देर में लगा कि वहां सफेद वस्त्र पहने एक रानी बैठी है। जिसने तारों का मुकुट पहन रखा है। लड़का उसे देखता ही रह गया। क्या यही बर्फ़ की रानी है ? अचानक रानी ने उसको अपनी ओर आने का इशारा किया। लड़का डर गया और खिड़की से नीचे उतर आया। अचानक उसने देखा कि एक बड़ी-सी सफेद चिड़िया उसकी खिड़की के पास से उड़ गई है और बर्फ़ की रानी गयाब हो गई।

इसके कई दिन बाद की बात है। लड़का गेर्डा के पास बैठा था। दोनों एक किताब के पन्ने उलट रहे थे, जिसमें चिड़ियों और जंगली जानवरों के चित्र थे। तभी जैसे ही गिरजे की घंटी ने बारह बजाए लड़का कहने लगा, ‘‘लगता है मेरी आंखों में कुछ गिर गया है और मेरे सीने में दर्द हो रहा है।’’ गेर्डा ने उसकी आंखें देखीं, लेकिन उसे कुछ नहीं दिखाई दिया। असल में उसकी आंखों में उसी शैतान आइने का कोई बारीक टुकड़ा आ गिरा था। थोड़ी ही देर में वह गेर्डा से झगड़ने लगा और बोला, ‘‘तुम इस तरह रोती क्यों हो ? और तुम्हारा चेहरा कितना भद्दा मालूम पड़ता है —छिः !’’ असल में गेर्डा हंस रही थी, लेकिन लड़के को उलटा ही दिखाई देता था।

वह फिर बोला, ‘‘ये गुलाब के पौधे कितने भद्दे हैं ? और यह डिब्बा भी सड़ गया है। उसने डिब्बे को ठोकर मार दी और फूल नोच डाले। लड़की चिल्लाई, ‘‘अरे तुम यह क्या कर रहे हो।’’ लेकिन वह नहीं माना और उसे धक्का देकर भाग गया। उस शैतान आईने के टुकड़े से अब वह बहुत शरारती और झगड़ालू हो गया था।

वह दादी को मुंह चिढ़ाता, किताबें फाड़ डालता था और पड़ोसियों को तंग करता था। वह गेर्डा को भी बहुत-बहुत रुलाया करता था, क्योंकि उसके दिल में भी शैतानी आईने के टुकड़े चले गए थे।

जाड़े के दिनों में एक दिन वह गरम कपड़े पहनकर और हाथों में दस्ताने पहनकर मुहल्ले के शरारती लड़कों के साथ खेलने निकल गया। वे लोग बर्फ़ पर फिसलने का खेल खेल रहे थे। उधर से जब लोगों की गाड़ियाँ गुजरती थीं तो लड़के अपनी फिसलने वाली स्लेजों को उनके पीछे बांध देते थे और दूर तक फिसलते चले जाते थे।

किटी ने भी एक गाड़ी के पीछे अपनी स्लेज बांध दी और फिसलना शुरू कर दिया। उस गाड़ी में एक आदमी सफेद लबादा ओढ़े और मोटी सफेद टोपी लगाए बैठा था। वह आदमी बार-बार मुड़कर किटी को अपने पीछे आने का इशारा करता था और किटी उसके पीछे-पीछे फिसलता जा रहा था। गाड़ी शहर की सड़कों को पार करती हुई थोड़ी देर में शहर के बाहर आ गई। किटी कुछ घबराया। उसने अपनी स्लेज को गाड़ी से छुड़ाने की कोशिश की। लोकिन उसकी कोशिश बेकार गई। किटी ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली और अगर निकलती भी तो वहां सुनता कौन !

बर्फ़ तेज़ी से गिर रही थी। इतने में किटी ने देखा कि गाड़ीवान की टोपी और लबादा ग़ायब हो गया और गाड़ीवान की जगह सफेद वस्त्र पहने एक सुंदर देवी आ बैठी। किटी ने फौरन पहचान लिया, यह बर्फ़ की रानी थी !

बर्फ़ की रानी ने किटी को अपनी गाड़ी में बिठा लिया और उसे अपनी सफ़ेद चद्दर से ढककर बोली, ‘‘तुम्हें बहुत जाड़ा लग रहा है न !’’ लेकिन उसकी चद्दर में तो और भी ठंडक थी। बर्फ़ की रानी ने जब प्यार से उसका माथा चूमा तो उसे लगा जैसे उसका माता बर्फ़ से छू गया हो।

वह आसमान में उड़ने लगी। किटी ने सुना, बादल रानी के स्वागत में कोई गीत गा रहे थे। अब वे लोग बादलों के भी ऊपर उड़े जा रहे थे। बर्फ़ की रानी उसे बादलों के देश में ले आई थी।

उधर गेर्डा उसकी याद में बड़ी दुःखी थी। लड़कों से उसे मालूम हुआ कि किसी गाड़ी के साथ किटी स्लेज में घिसटता हुआ न मालूम कहां चला गया। लड़कों की आंखों में आंसू आ गए और गेर्डा तो फूट-फूट कर रोने लगी। कुछ दिनों बाद जाड़ा खत्म हो गया। बसन्त ऋतु आई। जब बसन्त ऋतु की सुहावनी धूप गेर्डा की खिड़की में आई, तो उसे अपने साथी की बड़ी याद आई। एक दिन वह अपने लाल जूते पहनकर नदी किनारे जा पहुंची और नदी से पूछने लगी, ‘‘क्या तुम मेरे भाई को बहा ले गई हो ? मैं तुम्हें अपने ये नये नये जूते दूंगी, तुम मेरा भाई ला दो !’’

इसके जवाब में नदी की लहरें अजीब तरह से हिलने लगीं। गेर्डा ने अपने जूते पानी में फेंक दिए। लेकिन लहरे जूतों को बहाकर फिर से नदी किनारे छोड़ गईं। गेर्डा को लगा कि शायद उसने जूते ज्यादा दूर नहीं फेंके, इसलिए ये वापस लौट आए हैं। उसने देखा कि पास ही सरपत की झाड़ी के पास एक नाव खड़ी थी। वह नाव पर चढ़ गई और वहां से उसने जोर लगाकर जूते पानी में फेंक दिए। लेकिन ऐसा करते समय नाव को एक झटका लगा और उसकी रस्सी खुल गई और नाव नदी में बहने लगी। गेर्डा बड़ी घबराई। लेकिन नाव को रोकने का कोई चारा ही नहीं था। वह बड़ी तेज़ी से बही जा रही थी। गेर्डा डरकर चिल्लाने लगी। लेकिन किसी ने उसकी आवाज़ नहीं सुनी। नाव बहती रही। गेर्डा ने सोचा कि शायद यह नाव उसे किटी के पास ले जायेगी। नाव बहती-बहती ऐसी जगह जा पहुँची, जहां नदी-किनारे एक छोटी-सी झोंपड़ी बनी थी, जिसकी एक खिड़की नीली थी और दूसरी लाल। झोंपड़ी के दरवाजे पर लकड़ी के दो सिपाही खड़े थे। जैसे ही गेर्डा की नाव झोंपड़ी के पास पहुंची, सिपाहियों ने उसे सलाम किया। गेर्डा ने सोचा शायद ये जिन्दा हैं। वह मदद के लिए उन्हें पुकारने लगी। लेकिन सिपाही चुपचाप खड़े रहे। उसकी आवाज़ सुनकर झोंपड़ी में से एक बुढ़िया निकली। वह एक लाठी के सहारे चल रही थी। उसने अपनी लाठी से नाव को किनारे की ओर खींचते हुए कहा, ‘‘हाय, बेचारी लड़की ! तुम कितनी दूर पानी में बह आई !’’ फिर उसने गेर्डा को उठाकर किनारे उतार लिया। गेर्डा किनारे पर पहुंचकर बहुत खुश हुई। लेकिन साथ ही इस विचित्र बुढ़िया को देखकर उसे डर लग रहा था।

बुढ़िया के पूछने पर गेर्डा ने सारा किस्सा कह सुनाया और फिर पूछा, ‘‘क्या तुमने मेरे भाई किटी को देखा है ?’’

बुढ़िया बोला, ‘‘नहीं, मैंने उसे नहीं देखा। लेकिन अगर वह नदी में बह रहा है, तो जरूर यहां आ पहुंचेगा।

तुम घबराओ मत। तब तक तुम यहीं रहो और आराम से यहां के फूल सूघों। यहां आसपास बड़ा अच्छा बगीचा है, जिसमें ऐसे फूल लगते हैं जैसे तुमने कभी नहीं देखे होंगे।’’

फिर बुढ़िया उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी झोंपड़ी में ले गई। अन्दर जाकर उसने दरवाजा बन्द कर लिया। असल में यह बुढ़िया एक जादूगरनी थी। लेकि यह दुष्ट नहीं थी। गेर्डा के बाल संवारते-संवारते वह उस पर जादू कर रही थी। वह उसे अपने पास ही रखना चाहती थी।

धीरे-धीरे गेर्डा किटी को भूलने लगी।

फिर बुढ़िया उसे अपना बगीचा दिखाने ले गई। उस बाग में तरह-तरह के फूल खिले हुए थे। वह दिन-भर उनके बीच खेलती रही। शाम को जब वह थक गई, तब उसके सोने के लिए एक छोटा-सा और खूब मुलायम बिस्तर लगाया गया। गेर्डा जैसे ही उस पर लेटी कि उसे गहरी नींद आ गई और वह मीठे सपने देखने लगी। इस तरह धीरे-धीरे उसके दिन बीतने लगे। वह उस बाग के हर फूल को जानती थी। लेकिन उसे लगता था। कि कोई एक फूल इसमें से गायब है। वह कौन-सा फूल है, यह उसे याद नहीं आता था। एक दिन उस बुढ़िया के हैट पर उसकी नजर गई और उसे फौरन याद आया कि इस बाग में गुलाब के फूल नहीं है। इसलिए यह इतना सूना-सूना-सा लगता है। असल में बात यही थी कि उस बुढ़िया ने जादू के ज़ोर से बाग के सारे गुलाब के पौधों को गायब कर दिया था। उसे डर था कि अगर गेर्डा गुलाब देखेगी तो उसे किटी की याद आ जाएगी। लेकिन वह अपने हैट पर बने हुए गुलाब के चित्र को मिटाना भूल गई थी।

‘‘यह क्या, इस बाग में गुलाब का एक भी फूल नहीं है ?’’ गेर्डा बोली। उसे अपने गुलाब इतने याद आए कि वह बगीचे में बैठकर रोने लगी। उसके आंसू टपक रहे थे। वहं पहले गुलाब का एक सुन्दर –सा पौधा लगा था,

जिसे बुढ़िया ने अपने जादू के जोर से गायब कर दिया था। गेर्डा के गरम-गरम आंसू जब उस जगह टपके तो वहां फिर से गुलाब का पौधा निकल आया। उस पर बहुत ही सुंदर फूल खिले थे। गेर्डा ने गुलाब के फूल को चूम लिया। उसे पिछली सारी बातें याद हो आयीं। उसने गुलाब के फूल से पूछा, ‘‘क्यों, क्या किटी मर गया ?’’

गुलाब के फूल बोले, ‘‘नहीं, अभी वह मरा नहीं है। हम तो अब तक जमीन में ही थे, जहां मरे हुए लोग रहते हैं। वहां हमें किटी नहीं मिला ?’’

लेकिन जब गेर्डा ने उनसे किटी का पता पूछा, तो उनमें से कोई उसका पता नहीं बता सका।

गेर्डा उस बाग में बेचैन होकर इधर-उधर भटकने लगी। इतने में एक कौवा कांव-कांव करता हुआ आया और गेर्डा के सामने आ बैठा। गेर्डा ने उससे किटी के बारे में पूछा तो वह बड़ी देर तक चुप रहा और गर्दन हिलाता रहा। फिर अचानक बोला, ‘‘ओह, हाँ , याद आया। शायद वह किटी ही था लेकिन अब वह राजकुमारी के पास रहता है। वह ज़रूर तुम्हें भूल गया होगा। इस देश में एक राजकुमारी रहती है। वह बड़ी चालाक है। वह दुनिया-भर के अखबार पढ़ती है, और सारी खबरें उसे मालूम रहती हैं। एक दिन उसने सोचा कि अब मुझे शादी करनी चाहिए। वह अपने लिए ऐसा लड़का खोजने लगी, जो बहुत बुद्धिमान हो, जिसे अच्छी तरह बात करना आता हो।’’

‘‘ठीक है, लेकिन क्या मेरा किटी तुम्हें वहां दिखाई दिया ?’’

कौवा बोला, ठहरो बता रहा हूँ। हां तो, वहां एक दिन एक लड़का आया। वह देखने में बड़ा सुंदर था, बिलकुल तुम्हारी तरह वह सीधा अन्दर घुस गया। हालांकि वह फटे और गन्दे कपड़े पहने था। लेकिन कोई उसे रोक नहीं सका। वह सीधा राजकुमारी के पास जा पहुंचा। उसने राजकुमारी से कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मन जीतने नहीं आया हूँ, बल्कि तुम्हारी बुद्धिमानी की बातें सुनने आया हूं।’’

‘‘हां हां, वह मेरा किटी ही होगा। वह बड़ा बहादुर है। क्या तुम मुझे राजकुमरी के महल में ले जा सकते हो !’’

कौवा बोला यह इतना आसान काम नहीं है। पहले मैं अपनी कौवी से इसके बारे में बात कर लूं, क्योंकि तुम्हारी जैसी छोटी बच्ची को महल में ले जाने की इजाजत पाना बड़ा मुश्किल है। अच्छा, तुम यहीं बैठो। मैं ज़रा अपनी कौवी से बात कर आऊँ।’’ यह कहकर कौवा उड़ गया।

थोड़ी देर बाद फिर कांव-कांव करता हुआ वह लौट आया और बोला, ‘‘मेरी कौवी ने तुमको सलाम भेजा है, और लो यह रोटी का टुकड़ा भी दिया है। इसे खा लो, तुम्हें भूख लगी होगी। तुम रोओ मत। मेरी कौवी तुम्हें पिछवाड़े के दरवाजे से महल में पहुंचा देगी। आओ, चलो मेरे साथ।’’

रोटी खाकर गेर्डा कौवे के साथ चल पड़ी। वह जल्दी-जल्दी चल रही थी, क्योंकि उसे डर था कि कहीं वह बुढ़िया पीछे-पीछे न आती हो । थोड़ी देर में वह कौवा उसे एक बहुत बड़े बगीचे में ले गया। वह राजकुमारी के महल का बगीचा था। रास्ते में कौवी भी साथ हो ली । वह रास्ता बताते हुए उसे महल में ले गई।

गेर्डा मन में घबरा रही थी। एक जीना पार करके वे लोग ऊपर पहुंचे। वहां एक दीया जल रहा था । कौवी के कहने पर गेर्डा ने दीया उठा लिया और आगे-आगे चलने लगी। थोड़ी देर में वे सोने वाले कमरे में पहुंच गए। वह कमरा बड़ा सुन्दर था। देखने में उसकी छत और बीच में लगा हुआ खम्भा ताड़ के पेड़ की तरह लगता था, जिसमें तरह-तरह के हीरे-मोती लगे हुए थे। कमरे में लिली के फूल की शक्ल के दो पलंग लगे थे। एक राजकुमारी के लिए था और दूसरा राजकुमार के लिए। गेर्डा पलंग पर किटी को ढूंढने लगी। उस पर एक लड़का सो रहा था । उसने उसे आवाज़ दी और दीये से उसके चेहरे पर प्रकाश किया। राजकुमार की नींद खुली नहीं थी । गेर्डा को यह देखकर बड़ा अफसोस हुआ कि वह किटी नहीं था ।

तब तक राजकुमार की नींद भी खुल गई। उसने पूछा, “तुम कौन हो, और यहां क्या करने आई हो ?" गेर्डा ने रोते-रोते अपना सारा किस्सा कह सुनाया । उसने यह भी बताया कि किस तरह इस महल के पालतू कौवे और कौवी ने उसकी मदद की। राजकुमार और राजकुमारी को उसकी कहानी सुनकर बड़ा दुःख हुआ। लेकिन कौवों के इस जोड़े पर वे दोनों बहुत प्रसन्न थे । राजकुमार ने अपने पालतू कौवों की बड़ी तारीफ़ की, क्योंकि उन्होंने एक ग़रीब लड़की की मंदद की थी। राजकुमारी ने उससे पूछा, "अच्छा बताओ, तुम लोग महल से आज़ाद होना चाहते हो या अपने इस काम के बदले में तुम्हें दरबारी कौवा बना दिया जाए, महल के रसोईघर में जो कुछ बच जाएगा वह तुम्हारा होगा ।"

कौवे और कौवी ने सिर झुकाकर उन्हें सलाम किया और दरबारी कौवा बनना स्वीकार कर लिया । राजकुमारी हुक्म से गेर्डा को खाना खिलाया गया और फिर आराम से सुला दिया गया। दूसरे दिन गेर्डा को खूब 'अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने को मिले और उससे कहा गया कि तुम महल में ही कुछ दिन मेहमान बनकर रहो। लेकिन गेर्डा राजी नहीं हुई। उसने सिर्फ एक जोड़े जूते और एक छोटी घोड़ा गाड़ी मांग ली, तांकि उसमें बैठकर वह किटी को खोजने जा सके।

फौरन उसके लिए एक नई गाड़ी का इन्तज़ाम किया गया। असली सोने की बनी हुई गाड़ी थी यह । उसमें एक कोचवान और चार नौकर भी थे। राजकुमारी ने खुद सहारा देकर गेर्डा को गाड़ी में बिठाया और सम्मानसहित विदा किया ।

गाड़ी एक घने और अंधेरे जंगल में से होकर आगे बढ़ने लगी। अंधेरे में वह काफी चमक रही थी । उस जंगल में कुछ डाकू रहते थे। जब उनकी नज़र गाड़ी पर पड़ी, तब वे अपने को नहीं रोक सके ! उन्होंने आपस में तय किया कि इसे लूटना चाहिए। गाड़ी सोने की मालूम होती है ।

डाकुओं ने आगे बढ़कर अचानक गेर्डा की गाड़ी को घेर लिया। उन्होंने कोचवान और नौकरों को मार डाला और गेर्डा को गाड़ी के बाहर खींच लिया। तब तक एक बूढ़ी लुटेरिन भी वहां आ पहुंची। उसका आदमी लुटेरों का सरदार था । गेर्डा को देखकर वह बोली, "वाह, कैसी मोटी ताजी लड़की है ! इसे मुझे पकड़ा दो। यह खाने में बड़ी जायकेदार लगेगी।” वह बुढ़िया बड़ी डरावनी थी । देखते-देखते उसने एक चमचमाती छुरी निकाल ली। वह उसे मारने ही जा रही थी कि इतने में उसकी लड़की आ पहुंची और उससे लिपट गई। वह अपनी मां से कहने लगी, “मां, इसे मुझे दे दो। मैं इसके साथ खेलूंगी । यह मेरे साथ रहेगी ।" यह कहकर उस लड़की ने बात-बात में अपनी मां के कान काट लिए। असल में वह अपनी मां की बड़ी दुलारी बेटी थी और किसी को कुछ नहीं समझती थी ।

लुटेरे की लड़की गेर्डा के साथ उसकी गाड़ी में आ बैठी और गाड़ी को हांकते हुए और भी घने जंगल में ले गई । वह गेर्डा के बराबर ऊंची थी। लेकिन उससे ज्यादा तगड़ी थी। उसने प्यार से गेर्डा के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "डरो मत, जब तक मैं तुम्हें चाहती हूं मेरी मां तुम्हें नहीं मारेगी। क्या तुम राजकुमारी हो ?"

“नहीं !" गेर्डा बोली और फिर उसने अपना सारा किस्सा उसे भी बता दिया। वह लड़की उसकी बातें सुनती रही और गेर्डा के आंसू पोंछती रही। लुटेरों के महल में जाकर गाड़ी रुक गई। महल के लगभग सभी कमरों की छतें धुएं से काली हो रही थीं। एक कमरे में एक बड़ी भारी देगची में कोई चीज़ पक रही थी। आग पर खरगोश और हिरन भूने जा रहे थे। दोनों ने डटकर भर पेट खाना खाया, फिर दोनों एक कमरे में आराम से लेट गईं। उस कमरे में छत में लगे हुए बांसों पर बहुत-से कबूतर ऊंघ रहे थे । उस लड़की ने बताया कि ये सब उसके पालतू कबूतर हैं। उसने एक बड़ा भारी हिरन भी पाल रखा था, जो हमेशा एक बड़ी ज़ंजीर से बंधा रहता था। थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें करने के बाद वह लड़की सो गई। लेकिन गेर्डा को नींद नहीं आ रही थी ।

इतने में दो जंगली कबूतर बोले, “गुटर गूं. गुटर गूं ! हमने तुम्हारे किटी को देखा है, वह बर्फ़ की रानी के रथ साथ अपनी स्लेज बांधकर भागा चला जा रहा था।"

"यह क्या कह रहे हो तुम लोग ? जरा मुझे भी बताओ कि बर्फ़ की रानी कहां रहती है ? क्या तुम लोग कुछ जानते हो ? " गेर्डा ने कबूतरों से पूछा ।

"हमें यह तो नहीं पता कि वह कहां रहती है । हो सकता है, बर्फ़ के देश में रहती हो। यह रेण्डियर (बर्फीले प्रदेश का हिरन ) तुम्हें उसके बारे में बहुत कुछ बताएगा ।"

इतने में रेण्डियर अपने पिंजरे से बोला, "वहां चारों तरफ हमेशा बर्फ ही बर्फ़ रहती है। वहां सब आज़ादी से रहते हैं। बर्फ़ की रानी गर्मी के दिनों में बर्फ़ के मैदान में आ जाती है। लेकिन उसका किला उत्तरी ध्रुव पर है ।"

सुबह उठकर गेर्डा ने उस लड़की को कबूतर और रेण्डियर की बातें बता दीं और उससे मदद मांगी। लुटेरे की लड़की राज़ी हो गई। दोपहर में जब सब लोग खा-पीकर सो गए, तब उस लड़की ने गेर्डा को रेण्डियर से अपने साथ उत्तर के बर्फीले देश 'लैपलैण्ड' पहुंचा आने को कहा ।

रेण्डियर फौरन राज़ी हो गया । लुटेरे की लड़की ने गेर्डा को रेण्डियर की पीठ पर बांध दिया और अपनी मां के बड़े-बड़े दस्ताने हाथों में पहना दिए, ताकि बर्फीले देश में उसे ज्यादा ठंड न लगे । गेर्डा की आंखों में आंसू आ गए क्योंकि उसने यह कभी नहीं सोचा था कि लुटेरों के बीच भी उसे अपना कोई मित्र मिल जाएगा ।

उसे आंसू बहाते देखकर लुटेरे की लड़की बोली, “तुम इस तरह रोती क्यों हो? तुम्हें तो और खुश होना चाहिए । लो, ये रोटी के कुछ टुकड़े हैं और कुछ भुना हुआ गोश्त है । अपने पास रख लो, रास्ते में भूख लगने पर खा लेना ।"

फिर उसने रेण्डियर की पीठ ठोककर कहा, "देखो, इस लड़की को कहीं गिराना मत, बहुत संभालकर ले जाना !”

रेण्डियर गेर्डा को अपनी पीठ पर बिठाए हुए फौरन चौकड़ी भरकर भाग खड़ा हुआ । रास्ते में एक जगह रुककर दोनों ने खाना खाया। रेण्डियर फिर से दौड़ने लगा । अन्त में वे दोनों उत्तरी ध्रुव के पास के बर्फ़ीले देश लैपलैण्ड में जा पहुंचे । रेण्डियर एक छोटी-सी झोंपड़ी के पास रुका। यह झोंपड़ी बर्फ का एक अजीब सा मकान था, जिसके अन्दर एक स्त्री बैठी हुई आग में मछली भून रही थी । अन्दर जाकर रेण्डियर ने पहले तो गेर्डा का किस्सा कह सुनाया और फिर अपनी रामकहानी सुनाई। गेर्डा को इतना जाड़ा लग रहा था कि वह एक कोने में दुबककर बैठ गई ।

गेर्डा का किस्सा सुनकर वह स्त्री बोली, "बेटी, अभी तुम्हें बहुत दूर जाना है। यहां से सौ मील दूर फिनलैंड नामक एक देश पड़ता है। आजकल बर्फ़ की रानी ने वहीं पर डेरा डाल रखा । उसके खेमे में रोज़ रात को नीले रंग की बत्तियां जलती हैं। लो, एक मछली के सूखे हुए टुकड़े पर मैं तुम्हें एक चिट्ठी लिख देती हूं क्योंकि मेरे पास कोई काग़ज़ नहीं है । यह चिट्ठी तुम रास्ते में रहने वाली फिनलैंड की एक स्त्री को दे देना । वह तुम्हें आगे का रास्ता बता देगी ।" उसने गेर्डा को खाना खिलाया । गेर्डा ने कुछ तक आग तापी और फिर वह उसकी चिट्ठी लेकर रेण्डियर की पीठ पर सवार हो गई। रेण्डियर दौड़ने लगा ।

रेण्डियर रात-भर दौड़ता रहा और फिनलैंड जा पहुंचा। वह उस स्त्री की झोंपड़ी जानता था, जिसके नाम गर्दा एक चिट्ठी लेकर जा रही थी । उसने वहां जाकर आवाज़ लगाई और फिर घुटनों के बल रेंगते हुए दोनों उसकी झोंपड़ी में घुस गए। अन्दर आग जल रही थी । गेर्डा आग तापने बैठ गई । उस स्त्री ने सूखी मछली पर लिखी हुई चिट्ठी- दो-तीन बार पढ़ी और फिर मछली को खाने के लिए संभालकर रख लिया। फिर उसने रेण्डियर से कहा, " इस लड़की का भाई किटी अभी तक बर्फ़ की रानी के साथ ही रहता है । उसे यहां की चीजें इतनी अच्छी लगती हैं कि वह और सब कुछ भूल गया है। अब वह यहां से जाना नहीं चाहता। लेकिन असली बात तो यह है कि उस जादुई आईने के कुछ टुकड़े उसकी आंखों और उसके दिल में घुसे हुए हैं, जिससे वह हर खराब चीज़ को अच्छी समझने लगा है और बर्फ़ की रानी के असर में रहता है । जब तक वे टुकड़े नहीं निकलते, तब तक वह एक अच्छे लड़के की तरह नहीं सोच सकता और बर्फ़ की रानी उसे बराबर अपने असर में रखेगी।”

यह सुनकर रेण्डियर बोला, "तो तुम इस नन्हीं बच्ची पर दया करके इसे कोई चीज़ क्यों नहीं दे देतीं, जिसे यह इस मुसीबत में काम ला सके और बर्फ़ की रानी के असर से किटी को छुड़ा सके।"

वह स्त्री कहने लगी, "नहीं, इस लड़की के पास खुद एक बहुत बड़ी शक्ति है। इसी शक्ति के बल पर यह बर्फ की रानी के महल में पहुंच सकती है और किटी की आंखों और उसके दिल को जादुई आईने के असर से बचा सकती है । इसके पास जो शक्ति है वह है, इसका पवित्र और प्रेम-भरा हृदय । उसी के बल पर इसे जीत मिल सकती है। यहां से दो मील पर बर्फ़ की रानी का बगीचा है । तुम वहीं एक झाड़ी के पास इसे छोड़कर फौरन लौट आना ।" यह कहकर उसने गेर्डा को रेण्डियर की पीठ पर बिठा दिया और रेडियर तेज़ी से दौड़ने लगा ।

थोड़ी देर में वह बर्फ़ की रानी के बगीचे के पास आ पहुंचा। वहां उसने गेर्डा को उतार दिया और उसे चूम लिया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। गेर्डा की आंखें भी भीग आईं। इतने अच्छे रेण्डियर से अलग होते हुए उसे बड़ा दुःख हो रहा था । फिर रेण्डियर वहां से फौरन लौट आया ।

अब गेर्डा उस सुनसान बर्फीली जगह में अकेली रह गई। गेर्डा नंगे पैर ही बर्फ़ पर दौड़ने लगी । उसने देखा कि बर्फ़ के कुछ टुकड़े उसका पीछा कर रहे थे। धीरे-धीरे उनका आकार बदल गया। असल में वे बर्फ़ की रानी के सिपाही थे और वे देखने में बड़े अजीब-से लगते थे । गेर्डा ने डरकर अपनी प्रार्थना दोहरानी शुरू की। थोड़ी ही देर में वहां बहुत-से फ़रिश्ते आ पहुंचे। उन्होंने बर्फ के सिपाहियों को मार भगाया। यही नहीं, उन्होंने गेर्डा के पैरों और हाथों को भी छू लिया, जिससे अब उसे जाड़ा बिलकुल नहीं लग छू सकता था। अब वह शान के साथ बर्फ़ की रानी के महल घुस गई।

उस महल की दीवारें बर्फ़ की बनी हुई थीं । खिड़कियों के शीशे भी पतले बर्फ़ के बने हुए थे। उस महल में सैकड़ों कमरे थे । वे सब उत्तरी प्रकाश से जगमग थे। सबसे बड़े कमरे के बीच में एक बहुत बड़ी झील थी, जिसका पानी अक्सर जमा रहता था। बर्फ़ की रानी जब यहां रहती थी, तो उसी झील के बीच बैठा करती थी ।

वहां नन्हा किटी मारे ठंड के नीला पड़ गया था। फिर भी उसे जाड़ा नहीं लगता था, क्योंकि बर्फ़ की रानी ने उसका शरीर छूकर उसे जाड़ा सहने लायक बना दिया था ।

बर्फ़ की रानी कुछ दिनों तक यहां रहती थी और कुछ दिन गर्म देशों की यात्रा के लिए जाती थी। वह जहां जाती थी, वहां जाड़ा आ जाता था। लोग ठंड से ठिठुरने लगते थे और पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ जम जाती थी। बर्फ़ की रानी आजकल वहां नहीं थी ।

गेर्डा ने जब महल में घुसने की कोशिश की, तो दरवाज़े पर तैनात बहुत ठंडी हवाओं ने उसका रास्ता रोकने की कोशिश की, लेकिन गेर्डा ने जैसे ही अपनी प्रार्थना याद करनी शुरू की कि उसका रास्ता आसान हो गया। अंदर जाने पर उसने देखा कि किटी एक जगह बैठा बर्फ़ के टुकड़े से खेल रहा था । गेर्डा उसे फौरन पहचान गई और उसके गले में हाथ डालकर बोली, “किटी ! किटी !! आखिर मैंने तुम्हें खोज ही लिया !”

लेकिन वह चुपचाप पत्थर बना बैठा रहा । यह देखकर गेर्डा को रोना आ गया। उसके आंसू किटी पर टपकने लगे। उसके इन आंसुओं से किटी का सारा जादू उतर गया। उसकी आंखों से, उसके दिल से जादुई आईने के टुकड़े धुल गए। अब उसने गेर्डा को पहचान लिया । दोनों एक-दूसरे से मिलकर बेहद खुश हुए।

उन्हें खुश देखकर बर्फ के टुकड़े भी खुशी से नाचने लगे । गेर्डा के छूने से अब किटी पर जादू का ज़रा भी असर नहीं रहा। उसे अब ठंड भी लगने लगी। दोनों ने वहां से भाग चलने का निश्चय किया। गेर्डा उसे महल के बाहर ले आई और उस झाड़ी के पास गई, जहां पिछली बार रेण्डियर ने उसे छोड़ा था ।

उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह रेण्डियर वहां तैयार खड़ा था। यही नहीं, वह अपने साथ एक छोटा रेण्डियर और ले आया। दोनों एक-एक की पीठ पर सवार हो गए। थोड़ी ही देर में रेण्डियर उन्हें फिनलैंडवाली स्त्री के घर ले आए। वहां उन्होंने खाना खाया। इसके बाद वे लैपलैंडवाली स्त्री के यहां पहुंचे। उसने उन्हें नये कपड़े दिए और एक स्लेज गाड़ी दी ।

लैपलैंड की सीमा के पार जहां से बर्फ़ीला प्रदेश खत्म हो जाता था, वहां पहुंचकर उस स्त्री ने उनसे विदा ली । दोनों रेण्डियर भी उसी के साथ लौट गए। अब दोनों पैदल ही चलने लगे। कुछ दूर चलने पर अचानक एक जगह झाड़ी के पीछे से एक बहुत बढ़िया घोड़ा निकल आया । गेर्डा उसे पहचान गई । यह उन्हीं घोड़ों में से एक था, जो उसके सोने के रथ में जुते थे। इस घोड़े पर वही लुटेरों की लड़की बैठी थी। वह घर से ऊब गई थी और यात्रा पर निकली थी। वह गेर्डा से मिलकर बड़ी खुश हुई। उसने बताया कि वह राजकुमार अपनी राजकुमारी को लेकर दूर देश में चला गया और वह कौवा मर गया, जिसने गेर्डा की मदद की थी। फिर गेर्डा और किटी ने अपनी-अपनी कहानी सुनाई। वह लड़की बोली, "अच्छा, अब मैं चलूं । अगर कभी मैं तुम्हारे घर की तरफ आऊंगी, तो तुम लोगों से भी मिलूंगी।" यह कहकर वह घोड़ा दौड़ाती हुई आगे बढ़ गई ।

गेर्डा और किटी आगे चले । चलते-चलते वे लोग आगे एक बड़े शहर में पहुंचे। कुछ सड़कों को पारकर आगे जाने पर फौरन उन्होंने पहचान लिया कि यह तो उनका अपना शहर है। गेर्डा अपनी दादी का मंकान पहचान गई। दोनों अन्दर चले गए। वही कमरा, वही सब कुछ । घड़ी उसी तरह टिक् टिक् कर रही थी । किसी चीज़ में कोई फर्क नहीं आया था। फ़र्क था तो सिर्फ उन्हीं दोनों में। वे अब काफी बड़े हो गए थे। खिड़कियों में अब भी गुलाब के फूल खिले हुए थे । दोनों घर लौटकर कितने खुश थे !

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