गाने वाला गुलाब : आस्ट्रिया लोक-कथा

The Singing Rose : Lok-Katha (Austria)

यूरोप की लोक कथाओं के इस संग्रह में यह लोक कथा आस्ट्रिया देश की लोक कथाओं से ली गयी है।

एक बार की बात है कि एक राजा था जिसके तीन बेटियाँ थीं। उसकी तीनों बेटियाँ बहुत सुन्दर थीं। उसकी तीनों बेटियाँ सोलह साल से ऊपर की थीं। राजा अपनी उन तीनों बेटियों में से एक बेटी को अपने राज्य की रानी बनाना चाहता था पर वह यह नहीं जानता था कि वह उन तीनों में से किसको रानी बनाये।

तो एक दिन उसने अपनी तीनों बेटियों को बुलाया और उनसे कहा — “मेरी प्यारी बेटियों। मैं अब बूढ़ा और कमजोर हो चुका हूँ। हर नया दिन मेरे लिये एक भेंट के समान है। इससे पहले कि मैं मर जाऊँ मैं अपने राज्य की हर चीज़ को ठीक कर के रखना चाहता हूँ और तुममें से एक को अपने राज्य का वारिस बना जाना चाहता हूँ।

तुम सब बाहर की दुनियाँ में जाओ और तुममें से जो कोई भी गाने वाला गुलाब ले कर आयेगा उसी को मेरी राजगद्दी मिलेगी और वही मेरे सारे राज्य की रानी होगी।”

उन लड़कियों ने जब यह सुना तो आँखों में आँसू भर कर उन्होंने अपने बूढ़े पिता से विदा ली।

अपनी अपनी किस्मत पर भरोसा कर के वे दूर विदेश यात्रा के लिये चल दीं। तीनों ने तीन अलग अलग रास्ते चुने।

अब ऐसा हुआ कि उनमें से तीसरी और सबसे छोटी बेटी को जो उन सबमें सुन्दर थी एक अँधेरे पाइन के जंगल से हो कर गुजरना पड़ा। वहाँ बहुत सारी चिड़ियें एक साथ गा रही थीं। उनका गाना उसको बहुत अच्छा लग रहा था।

धीरे धीरे अँधेरा होने लगा तो चिड़ियें अपने अपने घोंसलों में वापस आने लगीं। और बस फिर कुछ देर बाद सब चूहे की तरह से शान्त हो गया।

तब अचानक एक मीठी सी पर तेज़ आवाज सुनायी दी। ऐसी आवाज तो राजकुमारी ने पहले कभी नहीं सुनी थी – न तो किसी चिड़िया की और ना ही किसी आदमी की। तुरन्त ही उसके दिमाग में आया कि हो न हो यह आवाज गाने वाले गुलाब की ही है।

वह तुरन्त ही उस तरफ चल दी जिस तरफ से यह आवाज आ रही थी। वह ज़्यादा दूर नहीं जा पायी थी तो उसने देखा कि उसके सामने पहाड़ की एक चोटी पर एक पुराने फैशन का बड़ा सा किला खड़ा हुआ था।

वह बड़ी उत्सुकता से उस पहाड़ी पर चढ़ गयी और उसके ताले को कई बार खींचा। आखीर में दरवाजा चीं चीं की आवाज करता खुल गया और एक सफेद दाढ़ी वाले बूढ़े ने दरवाजे के अन्दर से झाँका। उसने कुछ नाखुश सी आवाज में उस लड़की से पूछा — “तुम्हें क्या चाहिये?”

राजकुमारी बोली — “मुझे गाने वाला गुलाब चाहिये। क्या आपके बागीचे में वह है?”

बूढ़ा बोला — “हाँ है।”

राजकुमारी ने पूछा — “आप उसे मुझे देने का क्या लेंगे?”

बूढ़ा बोला — “गाने वाले गुलाब के लिये अभी तुम्हें कुछ भी नहीं देना होगा। तुम उसे आज ही ले सकती हो पर उसकी कीमत लेने के लिये मैं तुम्हारे पास सात साल बाद आऊँगा और उस समय तुमको अपने साथ इस किले में यहाँ ले आऊँगा।”

राजकुमारी खुशी से चिल्ला कर बोली — “जल्दी से बस मुझे वह गाने वाला गुलाब दे दो।” क्योंकि उस समय उसके दिमाग में गाने वाले गुलाब और राजगद्दी के अलावा कुछ और था ही नहीं। वह यह सोच ही नहीं रही थी कि सात साल के बाद उसके साथ क्या होने वाला है।

यह कह कर बूढ़ा किले के अन्दर गया और तुरन्त ही एक पूरा खिला हुआ चमकता हुआ गुलाब ले कर आ गया। वह इतना मीठा गा रहा था कि राजकुमारी का दिल खुशी से नाच उठा। उसने बड़ी उत्सुकता से हाथ बढ़ा कर वह गुलाब उस बूढ़े से ले लिया और जैसे ही उसने उसे अपने हाथ में लिया वह एक हिरनी की तरह उस पहाड़ी से नीचे की तरफ भाग ली।

बूढ़ा उसके पीछ बहुत ही गम्भीर आवाज में चिल्लाया —
“ध्यान रहे मैं तुमसे सात साल बाद मिलता हूँ।”

राजकुमारी बेचारी गाने वाले गुलाब को अपने हाथ में लिये सारी रात उस जंगल में घूमती रही। उसको इस गाने वाले फूल के मिलने और फिर राज्य के मिलने की खुशी ने सब कुछ भुला दिया था।

गुलाब भी सारे रास्ते बराबर गाता रहा। जैसे जैसे राजकुमारी अपने घर की तरफ तेज़ी से बढ़ी चली जा रही थी वैसे ही वह भी और ज़्यादा ज़ोर से और और भी अच्छी तरह से गाता रहा। आखिर वह घर आ पहुँची और उसने आ कर अपने पिता को सारा हाल बताया। गुलाब ने भी बहुत मीठा गाया। सारे महल में खुशी की लहर दौड़ गयी। राजा ने कई दिन तक इस बात का उत्सव मनाया।

जल्दी ही उसकी दोनों बहिनें भी लौट आयीं। उनको क्योंकि कुछ नहीं मिला था सो वे खाली हाथ ही लौटी थीं। अब सबसे छोटी राजकुमारी जो गाने वाला गुलाब ले कर लौटी थी रानी बन गयी। हालाँकि बूढ़ा पिता अभी भी अपना राज काज देख रहा था। शाही परिवार बड़ी खुशी से और बड़े आराम से रह रहा था। दिन पर दिन साल पर साल गुजरते चले गये।

आखिर सात साल पूरे होने को आये। आठवाँ साल लगते ही उसके पहले दिन उस किले का बूढ़ा महल में राजा के सामने आया और उसने राजा की उस एक बेटी को माँगा जो उसके यहाँ से गाने वाला गुलाब ले कर आयी थी।

राजा ने उसको अपनी सबसे बड़ी बेटी दी पर बूढ़े ने उसको गुर्राते हुए लेने से मना कर दिया कि “यह वह लड़की नहीं है।” जब राजा ने देखा कि वह उसको धोखा नहीं दे सकता तो उसने दुखते दिल से अपनी तीनों बेटियों में से अपनी सबसे प्यारी और सबसे छोटी बेटी को उसे दे दिया। राजकुमारी को उस सफेद दाढ़ी वाले बूढ़े के साथ उसके किले जाना ही पड़ा जहाँ से एक बार उसने गाने वाला गुलाब लिया था।

सुन्दर राजकुमारी बहुत दुखी थी क्योंकि उस किले में उसके बूढ़े मालिक के सिवा और कोई नहीं था। रोज ब रोज वह अपने पिता और बहिनों को याद कर कर के रोती रही।

किले में मौज मस्ती के साधनों की कोई कमी नहीं थी पर उन सबसे उसको कोई आराम नहीं मिलता था क्योंकि वहाँ उससे उसका कोई प्यारा ऐसा नहीं था जिससे वह बात कर सके।

वह हमेशा अपने घर के बारे में ही सोचती रहती। इसके अलावा उस किले में सारे दरवाजे और आलमारियाँ आदि बन्द थे और वह बूढ़ा उसको एक भी चाभी नहीं लेने देता था।

एक दिन पता नहीं कहाँ से उसको पता लगा कि उसकी सबसे बड़ी बहिन की शादी पड़ोसी देश के एक राजकुमार से हो रही थी। और वह भी कुछ ही दिनों में होने वाली है सो वह उस बूढ़े के पास गयी और उससे अपनी बहिन की शादी में जाने की इजाज़त माँगी।

बूढ़ा गुर्रा कर बोला “तो जाओ। पर मैं तुम्हें पहले से यह बता देना चाहता हूँ कि शादी के दिन सारा दिन तुम एक बार भी हँसना नहीं। अगर तुमने मेरा हुक्म नहीं माना तो मैं तुम्हें हजार टुकड़ों में तोड़ कर रख दूँगा।

मैं जब तब तुम्हारे साथ ही रहूँगा। अगर तुमने हँसने के लिये ज़रा सा भी मुँह खोला तो बस उसके बाद के लिये तुम खुद जिम्मेदार होगी। ध्यान रखना।”

राजकुमारी ने सोचा कि इस बात को मानना क्या मुश्किल काम है। शादी के दिन वह उस सफेद दाढ़ी वाले बूढ़े के साथ अपनी बहिन की शादी में आयी।

जब लोगों ने देखा कि बहुत दिनों की गयी हुई राजकुमारी इतने दिनों बाद घर आयी है तो राजा के किले में खुशियाँ छा गयीं। वह खुद भी बहुत खुश थी सो उसने इस मौके का पूरा फायदा उठाया। पर वह बूढ़े के हुक्म को नहीं भूली और उसने हँसने के लिये एक बार भी अपना मुँह नहीं खोला।

उसी शाम उसे अपने प्रिय लोगों से बिछड़ कर वापस आना पड़ा और वह अपने बूढ़े साथी के साथ फिर अपने किले वापस लौट आयी।

उसका अकेलेपन का समय फिर से शुरू हो गया था। हर दिन शाम को बेचारी राजकुमारी चैन की साँस लेती कि चलो एक दिन खत्म हुआ।

कुछ समय बाद उसने फिर उड़ती उड़ती खबर सुनी कि उसकी दूसरी बहिन की शादी हो रही है। तो वह फिर से उस बूढ़े के पास गयी और उससे अपनी दूसरी बहिन की शादी में जाने की इजाज़त माँगी।

बूढ़े ने फिर उसे गुर्रा कर जवाब दिया “तो जाओ। पर इस बार तुमको सारा दिन बोलने की बिल्कुल इजाज़त नहीं है। मैं फिर से तुम्हारे साथ जाऊँगा और तुम्हारे ऊपर कड़ी नजर रखूँगा।” राजकुमारी ने सोचा कि यह बात भी मानना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। सो शादी के दिन वह अपने बूढ़े साथी के साथ अपने घर गयी।

अपनी रानी को आया देख कर राजा के किले में एक बार फिर से खुशियाँ छा गयीं। वे सब उससे मिलने के लिये आये। उन्होंने उसको नमस्ते की और उससे बहुत सारी बातों के बारे में पूछा पर उसने बहाना बनाया कि वह बोल नहीं सकती। उसने अपने सुन्दर होठों से एक शब्द भी बाहर नहीं निकाला।

पहली बार तो वह अपने हँसने पर काबू कर गयी थी पर इस दिन बाद में वह अपनी हिम्मत हार बैठी और उस शाम को जब सब बात कर रहे थे तो बस एक मधुमक्खी के भिनभिनाने जितना तेज़ आवाज करने वाला एक शब्द उसके मुँह से निकल गया।

यह देखते ही बूढ़ा कूद पड़ा उसका हाथ पकड़ा और उसको उस कमरे से निकाल कर अपने अकेले किले में ले गया। अब यहाँ राजकुमारी के पास दूसरी चीज़ें तो बहुत सारी थीं पर अपने लोगों का साथ तो नहीं था न। उसकी ज़िन्दगी फिर से एक जैसी और उदास हो गयी थी।

एक दिन जब वह दुखी सी बागीचे में टहल रही थी जहाँ कभी गाने वाला गुलाब खिला रहता था और गाया करता था बूढ़ा उसके पास आया और चेहरे पर गम्भीरता ला कर बोला — “योर मैजेस्टी। अगर कल बारह बजे आप मेरा सिर तीन बार में धड़ से अलग कर दें तो जो कुछ भी इस किले में है वह सब आपका हो जायेगा और आप हमेशा के लिये आजाद हो जायेंगी।”

राजकुमारी ने उसकी ये बातें बड़े ध्यान से सुनी और अगले दिन इस खतरनाक काम को करने का फैसला कर लिया।

अगले दिन शनिवार का दिन था वह बूढ़ा बारह बजे से कुछ पहले ही उसके पास आ गया और आ कर अपनी गर्दन उसके आगे कर दी।

उसने अपने कमर से लटकी तलवार खींची और जैसे ही किले की घड़ी ने बारह के घंटों में से पहला घंटा बजाया उसने तुरन्त ही उसे तलवार से एक ही वार में काट दिया। फिर उसने दो बार तलवार और चलायी।

बूढ़े का सिर जमीन पर लुढ़कता चला गया। पर देखो खून की बजाय उसके सिर से निकली एक चाभी वहाँ पड़ी थी। उस चाभी से किले के सारे दरवाजे और आलमारियाँ खुल गये। वहाँ राजकुमारी को बहुत सारे कीमती पत्थर और बहुत सारी दूसरी कीमती चीज़ें मिल गयीं। इस तरह वह हमेशा के लिये बहुत अमीर हो गयी और आजाद भी हो गयी।

[My Note: This story doesn’t say about (1) what was the specialty of singing rose? (2) Who was the old man? Why did he ask the princess to cut his neck three times? (3) Did the king know that what were the consequences of bring the singing rose? etc.]

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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