पिस्तौल का निशाना (रूसी कहानी) : अलेक्सान्द्र पूश्किन

The Shot (Russian Story) : Alexander Pushkin

(“पिस्तौल का निशाना” कहानी आधारित है पूश्किन के जुबोव नामक अफ़सर के साथ हुए द्वन्द्व युद्ध के प्रसंग पर। यह द्वन्द्व युद्ध किशिन्येव में सन्‌ 1822 में हुआ था। पूश्किन द्वन्द्व युद्ध के स्थान पर चेरियाँ खाते हुए आया और जब तक उसकी बारी नहीं आ गयी, चेरियों का नाश्ता करता रहा । जुबोव ने पहला निशाना लगाया, जो चूक गया। पूश्किन ने अपनी बारी का इस्तेमाल नहीं किया, मगर प्रतिद्वन्द्दी से बिना समझौता किये चला गया।)

हमने एक-दूसरे पर गोलियां चलाईं
बरातीन्स्की1
1. येव्गेनी बरातीन्स्की (१८०० - १८४४) - पुश्किन के कवि - मित्र । उनकी 'बॉल-नृत्य' कविता से उद्धृत पंक्ति । - सं०

द्वन्द्व-युद्ध के नियमानुसार मैंने उसकी हत्या कर डालने का प्रण किया था ( गोली चलाने की मेरी बारी अभी शेष थी ) ।
'पड़ाव की एक शाम'2
2. अलेक्सान्द्र बेस्तुजेव - मार्लीन्स्की की 'पड़ाव की एक शाम ' कहानी से उद्धृत पंक्ति । इस लेखक ने १४ दिसम्बर १८२५ के सशस्त्र विद्रोह में भाग लिया था और उसकी कहानी के उद्धरण द्वारा पूश्किन ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी सहानुभूति दिसम्बरवादियों के साथ थी । - सं०

(१)

एक बस्ती में हम तैनात थे। फ़ौजी अफ़सर की ज़िन्दगी कैसी होती है, यह सब जानते हैं। सुबह सैनिक - शिक्षा, घुड़सवारी, रेजिमेंट के कमाण्डर के घर या किसी यहूदी के भटियारखाने में दिन का भोजन, शाम को शराब और ताश । उस बस्ती में न तो किसी घर के दरवाज़े हमारे लिये खुले थे और न मुहब्बत करने लायक़ कोई जवान लड़की ही थी । हम एक-दूसरे के यहां एकत्रित होते, जहां अपनी वर्दियों के अलावा और कुछ भी देखने को न होता ।

हमारे हलके के लोगों में सिर्फ़ एक ही असैनिक व्यक्ति था । उसकी उम्र लगभग पैंतीस साल थी और हम उसे बुजुर्ग मानते थे । जीवन के कहीं अधिक अनुभव की दृष्टि से वह हम से बढ़-चढ़कर था। इसके अलावा उस पर छाई रहनेवाली सामान्य उदासी, उसकी तुनुक - मिजाजी और ज़हरीली ज़बान ने भी हम जवान लोगों के दिल-दिमाग़ पर उसकी काफ़ी धाक जमा दी थी । उसका जीवन किसी रहस्य से घिरा-सा था। वह रूसी प्रतीत होता था, मगर उसका नाम विदेशी था । कभी वह हुस्सार घुड़ सेना में रह चुका था और वहां उसने अच्छी सफलता भी पायी थी । किस कारण उसने सेना से इस्तीफ़ा दिया और इस छोटी-सी बस्ती में आ बसा, यह कोई नहीं जानता था। यहां वह एकसाथ ही फटेहाल और बड़े ठाठ से भी रहता । हमेशा पैदल चलता, फटा-पुराना काला फ्रॉककोट पहनता, मगर हमारी रेजिमेंट के सभी अफ़सरों के लिये अपने घर के दरवाज़े खुले रखता। यह सही है कि उसके यहां खाने की मेज़ पर दो या तीन चीजें ही होतीं, जिन्हें एक भूतपूर्व सैनिक तैयार करता था, मगर दूसरी ओर शेम्पेन की नदी बहती रहती थी । किसी को यह मालूम नहीं था कि उसकी हैसियत क्या है, उसकी आमदनी कितनी है और कोई भी उससे यह पूछने की जुर्रत नहीं करता था । उसके यहां बहुत-सी किताबें थीं, अधिकतर सेना-सम्बन्धी और उपन्यास । वह खुशी से उन्हें पढ़ने के लिये दूसरों को देता, मगर कभी वापिस न मांगता और खुद भी किसी से ली हुई पुस्तक न लौटाता । पिस्तौल से गोलियां चलाना यही उसकी सबसे बड़ी दिलचस्पी थी। उसके कमरों की दीवारें गोलियों से छलनी हो गयी थीं और मधुमक्खियों के छत्तों की भांति लगती थीं। वह जिस कच्चे घर में रहता था, उसमें सिर्फ़ बढ़िया पिस्तौलों का बड़ा संग्रह ही विलासिता का द्योतक था । निशानेबाज़ी में तो उसने ऐसा कमाल हासिल कर लिया था कि अगर वह किसी की टोपी पर नाशपाती रखकर उसे बेधने की इच्छा प्रकट करता, तो हमारी रेजिमेंट का कोई भी अफ़सर किसी प्रकार की दुविधा के बिना उसके सामने अपना सिर पेश कर देता । हमारे बीच बहुधा द्वन्द्व - युद्ध की चर्चा चलती, किन्तु सील्वियो ( हम उसे यही नाम देंगे ) उसमें कभी दिलचस्पी जाहिर न करता । यह पूछने पर कि उसे कभी द्वन्द्व-युद्ध करना पड़ा या नहीं, वह रुखाई से हामी भरता, मगर कभी भी उसकी तफ़सीलों में न जाता । उसके चेहरे के भाव से यह स्पष्ट हो जाता कि ऐसे सवाल उसे नापसन्द हैं । हम ऐसा मानने लगे थे कि कोई क़िस्मत का मारा उसकी निशाने-बाज़ी के भयानक कमाल का शिकार हुआ है और यही चीज़ उसकी आत्मा को कचोटती रहती है। उसमें कायरता जैसी कोई बात हो, इसकी तो हम कल्पना तक नहीं कर सकते थे । कुछ लोगों की शक्ल- सूरत ही ऐसे सन्देह को पास नहीं फटकने देती । किन्तु तभी एक अप्रत्या- शित घटना ने हम सबको आश्चर्यचकित कर दिया ।

एक दिन हमारे कोई दस अफ़सर सील्वियो के यहां भोजन कर रहे थे। सदा की भांति पिलाई हो रही थी, खूब जमकर शराब पी जा रही थी। भोजन के बाद हम अपने मेज़बान से आग्रह करने लगे कि वह हमारे साथ ताश खेले और खजांची बन जाये । वह बहुत देर तक इन्कार करता रहा, क्योंकि लगभग कभी ताश नहीं खेलता था । आखिर उसने ताश लाने को कहा, दस-दस रूबल के पचासेक सिक्के मेज़ पर डाल दिये और पत्ते बांटने लगा । हम उसे घेर कर बैठ गये और खेल शुरू हो गया । खेल के वक़्त बिल्कुल चुप रहना - सील्वियो की यह आदत थी। वह न तो किसी से बहस करता था और न किसी बात की सफ़ाई देता था। अगर दांव लगानेवाला कोई ग़लती कर देता, तो वह या तो बक़ाया रक़म तुरन्त अदा कर देता या उसे लिख लेता । हम यह जानते थे और उसे अपनी मनमर्जी के मुताबिक़ खजांची का काम पूरा करने देते थे । किंतु हमारे बीच एक ऐसा अफ़सर भी था जो कुछ ही समय पहले बदली होकर यहां आया था। उसने खेलते हुए बेख्याली से एक प्वाइंट बढ़ा दिया। सील्वियो ने खड़िया ली और अपने ढंग से हिसाब को ठीक कर दिया । अफ़सर यह मानते हुए कि सील्वियो ने कुछ हेराफेरी की है, उससे उलझने लगा। सील्वियो चुपचाप पत्ते बांटता रहा । अफ़सर के सब्र का प्याला छलक गया और उसने ब्रश लेकर वे आंकडे मिटा दिये जिन्हें वह व्यर्थ समझता था । सील्वियो ने खड़िया लेकर उसे फिर से लिख दिया। शराब, खेल और साथियों की हंसी से बौखलाये हुए अफ़सर ने मेज़ से तांबे का शमादान उठाया और सील्वियो पर दे मारा। सील्वियो किसी तरह से एक ओर को हटकर चोट से बच गया। हम सभी परेशान हो उठे । सील्वियो उठकर खड़ा हो गया, गुस्से से उसके चेहरे का रंग उड़ गया था और उसकी आंखों से लपटें-सी निकल रही थीं। उसने अफ़सर से कहा, "महानुभाव, अब यहां से चले जाइये और इस बात के लिये भगवान को धन्यवाद दीजिये कि यह घटना मेरे घर में घटी है।"

इस क़िस्से का क्या नतीजा होगा, हमें इसके बारे में कोई सन्देह नहीं था और हम यह जानते थे कि हमारे इस नये साथी की मौत पत्थर की लकीर है । अफ़सर यह कहकर बाहर चला गया कि खजांची महोदय, जब और जैसे भी चाहें, अपने इस अपमान का बदला ले सकते हैं। खेल कुछ देर तक और चलता रहा, किन्तु यह अनुभव करते हुए कि हमारे मेज़बान का मन अब खेल में नहीं लग रहा, हमने एक- एक करके उनसे विदा ली और शीघ्र ही रिक्त होनेवाले स्थान की चर्चा करते हुए अपने-अपने क्वार्टरों की ओर चले गये ।

अगले दिन हम घुड़सवारी के मैदान में यह पूछ-ताछ कर ही रहे थे कि क़िस्मत का मारा लेफ्टिनेण्ट ज़िन्दा है या नहीं कि तभी वह खुद सामने आ गया। हमने उससे भी यही पूछा कि उसके साथ क्या बीतनेवाली है। उसने उत्तर दिया कि सील्वियो की ओर से उसे कोई सूचना नहीं मिली है । हमें इससे बड़ी हैरानी हुई। हम सील्वियो के यहां गये, उसे अहाते में पाया और देखा कि वह फाटक पर चिपकाये हुए इक्के पर एक के बाद एक गोली दागता जा रहा है । वह हर दिन की तरह हम से मिला और पिछले दिन की घटना के बारे में उसने एक भी शब्द मुंह से नहीं निकाला । तीन दिन बीत गये और लेफ्टीनेण्ट अभी भी जिन्दा था । हम हैरान होते हुए एक-दूसरे से पूछते - क्या सील्वियो उसे द्वन्द्व-युद्ध के लिये चुनौती नहीं देगा ? किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। अफ़सर के मामूली-सी माफ़ी मांग लेने पर ही वह सन्तुष्ट हो गया और उसने उससे सुलह कर ली ।

युवाजन की दृष्टि में यह सील्वियो के सम्मान को बड़ा धक्का लगानेवाली बात थी। जवान लोग कायरता को सबसे कम क्षमा करते हैं, वीरता को सबसे बड़ा गुण मानते हैं और सभी तरह की कमजो- रियों- त्रुटियों को इसके लिये माफ़ कर देते हैं । किन्तु धीरे-धीरे यह भूली-बिसरी बात हो गयी और सील्वियो ने हमारे बीच फिर से पहले जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली ।

एक मैं ही ऐसा था जो उसके निकट नहीं हो पाया। स्वभाव से ही रोमानी कल्पना का धनी होने के कारण मैं औरों की तुलना में इस व्यक्ति के प्रति, जो किसी रहस्यमय उपन्यास का नायक प्रतीत होता था, कहीं अधिक लगाव रखता था । वह भी मुझे चाहता था । कम से कम वह मेरे साथ अपने सामान्य जले-कटे अन्दाज़ में नहीं, बल्कि खुशमिज़ाजी और असाधारण मधुरता से विभिन्न विषयों की चर्चा करता था । किन्तु उस बुरी शाम के बाद यह विचार किसी प्रकार भी मेरे दिमाग़ से नहीं निकलता था कि उसका अपमान हुआ था, कि इस धब्बे को धोने के लिये उसने कुछ नहीं किया था और यह विचार पहले की भांति मेरे उसके साथ घुलने-मिलने में बाधा डालता था। उससे नज़र मिलाते हुए मुझे झेंप महसूस होती थी। सील्वियो अत्यधिक बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति था और ऐसा नहीं हो सकता था कि इस बात की ओर उसका ध्यान न जाता और वह इसका कारण न समझ पाता । मुझे लगा कि इससे उसके मन को दुख होता है कम से कम एक-दो बार मैंने यह तो देखा ही कि वह मुझसे बात करके अपना मन हल्का करना चाहता है । किन्तु मैंने ऐसी सम्भावना से बचने का यत्न किया और तब सील्वियो ने भी ऐसी कोशिश करना छोड़ दिया। तब से मैं केवल अपने साथियों की उपस्थिति में ही उससे मिलता-जुलता और हमारे बीच पहले की भांति खुलकर बातचीत न होती ।

राजधानी के जीवन की हड़बड़ी के आदी लोग कभी उन अनेक अनुभूतियों की उत्तेजना से परिचित नहीं हो सकते, जिन्हें गांवों या बस्ती-कस्बों के लोग जानते हैं । उदाहरण के लिये डाक के दिन की प्रतीक्षा को ही लिया जा सकता है । मंगल और शुक्रवार को हमारी रेजिमेंट के दफ़्तर में अफ़सरों की भीड़ लगी रहती थी - कोई पैसों की राह देखता, कोई पत्रों की, और कोई अख़बारों की । बंडलों- पैकेटों को आम तौर पर वहीं खोला जाता, एक-दूसरे को ख़बरें सुनाई जातीं और इस तरह दफ़्तर में बड़ी रौनक़ रहती । सील्वियो के पत्र भी हमारी रेजिमेंट के पते पर आते और वह भी सामान्यतः यहीं उपस्थित रहता । एक दिन उसके नाम एक पैकेट आया और उसने बडी बेसब्री से उसे खोला । ख़त पर उसने जल्दी-जल्दी नज़र डाली और उसकी आंखें चमक उठीं। अपने-अपने पत्र पढ़ने में व्यस्त अफ़सरों ने उसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया । " महानुभावो, " सील्वियो ने उन्हें सम्बोधित किया, " परिस्थितियां ऐसी मांग करती हैं कि मैं तत्काल यहां से चल दूं । इसलिये मैं आज रात को ही रवाना हो जाऊंगा। आशा करता हूं कि आज शाम को आखिरी बार मेरे साथ भोजन करने का अनुरोध आप अस्वीकार नहीं करेंगे । आपकी भी प्रतीक्षा रहेगी मुझे,” उसने मुझसे कहा, "अवश्य ही आइयेगा ।" इतना कहकर वह जल्दी से बाहर चला गया और हम लोग सील्वियो के यहां मिलने की बात तय करके अपने-अपने रास्ते चले गये ।

मैं नियत समय पर सील्वियो के यहां पहुंचा और रेजिमेंट के लगभग सभी अफ़सरों को वहां पाया । उसका सारा सामान बंधा हुआ था और गोलियों से छलनी हुई नंगी दीवारों के सिवा वहां कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था हम लोग खाने की मेज़ के गिर्द बैठ गये, मेज़बान बड़े रंग में था और जल्द ही हम सब भी उसके रंग में बह गये । शेम्पेन की बोतलें फटाके के साथ लगातार खुलती जाती थीं, सूं-सूं करती और फेन उगलती शेम्पेन गिलासों में डाली जाती तथा हम जानेवाले के लिये खूब बढ़-चढ़कर शुभ यात्रा और सभी तरह की सफलताओं की कामनाएं करते । शाम को काफ़ी देर से हम मेज़ पर से उठे। सभी लोग अपनी फ़ौजी टोपियां पहन-पहनकर उससे विदा लेने और जाने लगे। जब मैं चलने को तैयार हुआ, तो उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे रोक लिया और धीरे से कहा, “मुझे आपसे कुछ बात करनी है ।" मैं रुक गया ।

मेहमान चले गये, हम दोनों ही रह गये, एक-दूसरे के सामने बैठ गये और अपने-अपने पाइप से धुआं उड़ाने लगे। सील्वियो विचारों में डूबा हुआ था और कुछ ही देर पहले की खुशी और मस्ती का चिह्न तक भी उसके चेहरे पर नहीं रहा था । उदासी में डूबा पीला चेहरा, चमकती आंखें और मुंह से निकलता हुआ घना धुआं, यह सब कुछ उसे शैतान - सा बना रहा था। चन्द क्षण बीत जाने पर सील्वियो ने खामोशी तोडी ।

"बहुत मुमकिन है कि हमारी फिर कभी मुलाकात न हो," उसने मुझसे कहा, "जुदा होने से पहले मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं। आपने शायद इस बात की ओर ध्यान दिया होगा कि दूसरे लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं, मैं इस चीज़ की खास परवाह नहीं करता । किन्तु मैं आपको चाहता हूं और आपके दिमाग़ में यदि मेरे बारे में कोई ग़लत धारणा जड़ जमाये रहेगी, तो मेरे मन पर एक बोझ-सा बना रहेगा ।"

वह रुका और पाइप में तम्बाकू भरने लगा। मैं नज़र झुकाये चुपचाप बैठा रहा ।

"आपको यह अजीब सा लगा होगा, ” उसने अपनी बात आगे बढ़ाई, “ कि मैंने उस झक्की शराबी र ... से बदला लेकर अपना जी ठण्डा करने की मांग क्यों नहीं की। आपको मानना पड़ेगा कि पहले गोली चलाने का हक़ मेरा था और इसलिये उसकी जान मेरी मुट्ठी में बन्द थी, जबकि मेरी जान के लिये लगभग कोई खतरा नहीं था । अपने ऐसे संयत व्यवहार को मैं अपनी उदारता भी कह सकता था, मगर मैं झूठ नहीं बोलना चाहता। अगर मैं अपनी ज़िन्दगी को बिल्कुल ख़तरे में न डाले बिना उस र... को सज़ा दे सकता, तो मैंने किसी भी हालत में उसे माफ़ न किया होता । " मैं बड़े आश्चर्य से सील्वियो को देख रहा था । उसकी ऐसी आत्म- स्वीकृति से मैं स्तम्भित रह गया था । सील्वियो कहता गया - "बिल्कुल यही बात है। मुझे अपनी जान को खतरे में डालने का कोई अधिकार नहीं है । छः साल पहले किसी ने मेरे मुंह पर तमाचा मारा था। और मेरा वह शत्रु अभी तक जीवित है ।"

मेरी उत्सुकता की अब कोई सीमा नहीं थी । "आपने उससे द्वन्द्व- युद्ध नहीं किया ?” मैंने पूछा, "शायद किन्हीं परिस्थितियों के कारण आपका उससे आमना-सामना नहीं हो सका ?"

मैंने उससे द्वन्द्व-युद्ध किया था," सील्वियो ने जवाब दिया, "और हमारे द्वन्द्व-युद्ध की निशानी भी मेरे पास है ।"

सील्वियो उठा और उसने गत्ते के डिब्बे में से सुनहरे गुच्छे और फ़ीतेवाली लाल टोपी निकाली ( वैसी ही जिसे फ़्रांसीसी bonnet de police1 कहते हैं ), उसे सिर पर पहन लिया । वह माथे से तनिक ऊपर गोली से छिदी हुई थी ।
1. पुलिस की टोपी (फ़्रांसीसी ) ।

"यह तो आपको मालूम ही है," उसने अपनी बात जारी रखी, “ कि मैं हुस्सारों की रेजिमेंट न... में काम करता रहा हूं। मेरे स्वभाव से भी आप परिचित हैं - सबसे आगे रहना मेरी आदत है और चढ़ती जवानी के दिनों में तो यह मेरे लिये जनून ही था । हमारे ज़माने में हुल्लड़बाज़ी का फ़ैशन था और मैं इस काम में सेना में सब का गुरु था । कौन ज़्यादा शराब पी सकता है - इस बात की हम डींग हांका करते थे और एक बार तो मैंने विख्यात बुत्सव से भी, जिसे कवि देनीस दवीदोव1 ने अपनी रचनाओं में अमर कर दिया है, बाज़ी मार ली थी। हमारी रेजिमेंट में द्वन्द्व-युद्ध तो हर दिन ही होते थे और मैं उन सब में या तो साक्षी होता या खुद हिस्सा लेता । साथी तो मुझे पूजते थे और निरन्तर बदलते रहनेवाले रेजिमेंट- कमांडरों के लिये मैं हमेशा सिर पर बनी रहनेवाली मुसीबत था ।
1. देनीस दवीदोव - कवि और सैनिक विषयों के लेखक तथा पुश्किन के मित्र थे । १८१२ में दवीदोव ने किसान छापामारों के साथ मिलकर एक छापामार टुकड़ी का नेतृत्व किया और आक्रमणकारी फ़्रांसीसी सेना के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। बुत्सव ने भी १८१२ के देशभक्तिपूर्ण युद्ध में भाग लिया था और दवीदोव की कविताओं में उसका अक्सर उल्लेख मिलता है । - सं०

“ मैं बड़े चैन ( या बेचैनी ) से अपनी ख्याति का मज़ा ले रहा था कि तभी एक धनी और जाने-माने परिवार ( मैं उसका कुलनाम नहीं बताना चाहता हूं ) का नौजवान अफ़सर हमारी रेजिमेंट में आया । अपने जीवन में कभी ऐसा तकदीर का सिकन्दर और इतना होनहार आदमी मैंने नहीं देखा ! ज़रा कल्पना कीजिये - जवानी की मस्ती, समझ-बूझ, रूप का जादू, खुशी से उमड़ता दिल, खतरे से आंख मिलानेवाली दिलेरी, गूंजता हुआ कुलनाम, बेहिसाब और कभी न ख़त्म होनेवाला पैसा आप स्वयं ही सोच सकते हैं कि कैसा असर डाला होगा उसने हम सब पर मेरा सिंहासन डोल उठा । मेरी ख्याति से मेरी ओर खिंचकर पहले तो उसने मेरे साथ दोस्ती करनी चाही, किन्तु मैंने उसे सीधा मुंह न दिया । उसने किसी प्रकार के अफ़सोस के बिना मुझसे किनारा कर लिया। मैं उससे नफ़रत करता था । रेजिमेंट और औरतों के बीच उसकी बढ़ती प्रतिष्ठा से मैं बिल्कुल जल-भुन गया। मैं उससे झगड़ा मोल लेने के मौक़े ढूंढ़ने लगा। मैं उस पर कोई फबती कसता, तो वह भी वैसा ही करता और मुझे उसकी फबती हमेशा अपने से ज़्यादा तीखी और नयी प्रतीत होती और मनोरंजक तो वे निश्चय ही मुझसे अधिक होतीं । वह मज़ाक करता और मैं ज़हर उगलता। आखिर एक पोलैंडी ज़मींदार के घर दावत के समय उसे सभी नारियों, और विशेषकर गृह स्वामिनी के भी गले का हार बना देखकर, जिसके साथ मेरा अपना भी प्रेम-नाटक चल रहा था, मैंने उसके कान में कोई भद्दी-सी बात कह दी। उसने गुस्से में आकर मेरे मुंह पर तमाचा जड़ दिया। हमने म्यान से तलवारें खींच लीं, महिलायें बेहोश हो गयीं और हम दोनों को ज़बर्दस्ती अलग कर दिया गया। हमने उसी रात को द्वन्द्व युद्ध के लिये एक-दूसरे को ललकारा ।

"पौ फटनेवाली थी। मैं तीन साक्षियों को साथ लिये हुए नियत स्थान पर खड़ा था । ऐसी बेसब्री से मैं अपने प्रतिद्वन्द्वी की राह देख रहा था कि बयान से बाहर । वसन्त के दिनों का सूरज निकल आया था और कुछ-कुछ गर्मी भी हो गयी थी । मैंने उसे दूर से आते देखा । वह पैदल आ रहा था, अपनी फ़ौजी कमीज़ को तलवार की नोक पर टांगे था और सिर्फ़ एक गवाह उसके साथ था । हम उसकी ओर बढ़े। वह चेरियों से भरी टोपी हाथ में लिये हुए हमारे निकट आया। गवाहों ने हमें बारह क़दमों की दूरी पर एक-दूसरे के सामने खड़ा कर दिया । मुझे पहले गोली चलानी थी, किन्तु मैं गुस्से से ऐसे आग-बबूला हो रहा था कि गोली चलाते वक़्त मेरा हाथ नहीं डोलेगा, मुझे इसका विश्वास नहीं था। इसलिये अपने को शान्त करने के ख्याल से मैंने उसे पहले गोली चलाने का अधिकार देना चाहा । किन्तु मेरा प्रतिद्वन्द्वी इसके लिये राज़ी नहीं हुआ । चुनांचे सिक्का उछालकर बारी तय की गयी । जन्म से ही तकदीर के उस सिकन्दर को पहले गोली चलाने का हक़ मिला। उसने गोली चलाई और वह मेरी टोपी को छेदती हुई निकल गयी। अब मेरी बारी थी । आखिर तो उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह मेरी मुट्ठी में थी । मैंने यह जानने की कोशिश करते हुए बहुत ग़ौर से उसको देखा कि उसके चेहरे पर घबराहट का कोई निशान भी है या नहीं ... वह पिस्तौल के निशाने के सामने खड़ा था, टोपी में से चुन-चुनकर पकी हुई चेरियां खा रहा था और गुठलियां थूकता जाता था, जो मुझ तक पहुंच रही थीं। उसकी ऐसी लापरवाही से मैं बौखला उठा। मैंने सोचा कि ऐसे आदमी की जान लेने से भला क्या फ़ायदा जो उसकी ज़रा भी परवाह नहीं करता ? एक क्रूर विचार मेरे मस्तिष्क में कौंध गया । मैंने पिस्तौल नीचे कर ली । 'मुझे लगता है कि इस समय आपको मौत से कोई मतलब नहीं,' मैंने उससे कहा, 'आप अपना नाश्ता करने में मस्त हैं। मैं आपके इस मज़े में खलल नहीं डालना चाहता । ' - 'आपके ऐसा करने से ज़रा भी खलल नहीं पड़ेगा, ' उसने मेरी बात काटी, 'गोली चलाइये। वैसे, आपकी मर्जी । मुझ पर गोली चलाने का आपका यह हक़ हमेशा बना रहेगा । आप जब चाहेंगे, मैं आपके सामने हाज़िर हो जाऊंगा।' मैंने साक्षियों से कहा कि इस समय गोली नहीं चलाना चाहता और द्वन्द्व-युद्ध यहीं खत्म हो गया । मैं सेना से मुक्त होकर इस छोटी-सी जगह पर आ बसा । तब से एक दिन भी ऐसा नहीं बीता कि उससे बदला लेने का ख़्याल मेरे दिमाग़ में न आया हो । अब वह घड़ी आ गई है ... "

इतना कहकर सील्वियो ने अपनी जेब से उसी सुबह को उसे प्राप्त हुआ एक पत्र निकाला और मुझे पढ़ने को दिया । मास्को से किसी ने ( सम्भवतः उसके वकील ने ) उसे सूचित किया था कि "अमुक व्यक्ति " शीघ्र ही एक सुन्दर युवती से विवाह करनेवाला है ।

आपने अनुमान लगा लिया होगा, " सील्वियो ने कहा, "कि अमुक व्यक्ति" कौन है । मैं मास्को जा रहा हूं। देखेंगे कि शादी से पहले भी वह उसी तरह मौत का सामना करेगा या नहीं, जैसे कभी चेरियां खाते हुए उसने किया था । "

इन शब्दों के साथ ही सील्वियो उठकर खड़ा हो गया, उसने अपनी टोपी फर्श पर फेंक दी और पिंजरे में बन्द शेर की तरह कमरे में इधर-उधर आने-जाने लगा। मैं बुत बना-सा उसकी बातें सुनता रहा था - अजीब और एक-दूसरी के प्रतिकूल भावनाएं मेरे मन को विह्वल कर रही थीं।

नौकर ने कमरे में आकर बताया कि घोड़े जुत गये हैं । सील्वियो ने बहुत स्नेहपूर्वक मुझसे हाथ मिलाया और हमने एक-दूसरे को चूमा वह घोड़ा गाड़ी में जा बैठा जिसमें दो सूटकेस रखे हुए थे - एक में पिस्तौलें थीं और दूसरे में उसका निजी सामान । हमने एक बार फिर एक-दूसरे से विदा ली और घोड़े सरपट दौड़ने लगे ।

(२)

कई साल बीत गये और घरेलू परिस्थितियों से मजबूर होकर मैं न ... ज़िले के एक ग़रीब गांव में बस गया । जागीर की देख-भाल करता, किन्तु पहले की मस्त और हंगामों से भरी हुई अपनी ज़िन्दगी को याद करके दबी-घुटी टीस अनुभव किये बिना न रह पाता । निपट एकाकीपन में पतझर और जाड़े की शामें बिताने का आदी हो पाना मेरे लिये सबसे ज़्यादा मुश्किल था । दोपहर के खाने तक तो मैं किसी तरह वक़्त बिता लेता, मुखिया से बातें करता, काम-काज से घोड़ा- गाड़ी में इधर-उधर आता-जाता, नये धन्धों को देखने के लिये चक्कर लगाता, किन्तु जैसे ही झुटपुटा होने लगता, मेरी समझ में यह न आता कि मैं क्या करूं। अलमारियों के नीचे और सामान के कमरे में मुझे जो थोड़ी-सी किताबें मिली थीं, वे तो बार-बार पढ़ने से मुझे ज़बानी याद हो गयी थीं । भण्डारिन किरीलोव्ना को जितने भी क़िस्से- कहानियां याद थे, उन्हें वह दसियों बार सुना चुकी थी और देहाती औरतों के गीतों-गानों से मैं गहरी उदासी में डूब जाता था । मैंने शराब का सहारा लेना चाहा, लेकिन इससे मेरे सिर में दर्द होने लगता था । इसके अलावा मुझे यह भी मानना चाहिये कि ऊब के कारण कहीं शराबी न बन जाऊं, मैं इस चीज़ से भी डरता था। मेरा मतलब ऐसे “ गये-बीते " शराबियों से था, जिनकी बहुत-सी मिसालें हमारे इलाक़े में मौजूद थीं। इसी तरह के दो-तीन “ गये-बीते " पियक्कड़ों के अलावा मेरे कोई अन्य पड़ोसी थे नहीं और उनकी बातचीत का ज़्यादा हिस्सा हिचकियां लेने और आहें भरने में ही गुज़रता था। इनकी संगत से तो अकेले रहना ही कहीं बेहतर था ।

मेरे यहां से चार वेस्र्ता यानी लगभग छ: किलोमीटर की दूरी पर काउंटेस ब ... की सम्पन्न जागीर थी। किन्तु वहां केवल कारिन्दा ही रहता था और काउंटेस तो अपनी शादी के पहले साल सिर्फ़ एक बार ही जागीर पर आई थी और सो भी एक महीने से अधिक वहां नहीं रही थी। ऐसा होते हुए भी मेरे एकाकीपन के दूसरे वसन्त में यह अफ़वाह फैली कि काउंटेस अपने पति के साथ पूरी गर्मी के लिये गांव आनेवाली है। वास्तव में ही जून महीने के शुरू में वे गांव आ गये ।

धनी पड़ोसी का आगमन गांववासियों के लिये एक युगान्तरकारी घटना होता है। ज़मींदार और उनके घर-बार के लोग ऐसे पड़ोसी के आने के दो महीने पहले से और जाने के तीन साल बाद तक इसकी चर्चा करते रहते हैं। जहां तक मेरा सम्बन्ध है, तो मैं खुलकर मानता हूं कि जवान और खूबसूरत पड़ोसिन के आने की ख़बर ने मेरे दिल में बड़ी हलचल पैदा कर दी। मैं बड़ी बेचैनी से उसे देख पाने का इन्तज़ार करने लगा और इसलिये उसके आने के पहले ही इतवार को दोपहर का खाना खाने के बाद गांव... की ओर रवाना हो गया ताकि निकटतम पड़ोसी और विनम्र सेवक के रूप में अपने को उनके सामने पेश कर सकूं ।

नौकर ने मुझे काउंट के अध्ययन कक्ष में ले जाकर बिठा दिया और स्वयं मेरे बारे में सूचना देने के लिये अन्दर चला गया। बड़ा-सा कमरा खूब बढ़िया ढंग से सजा हुआ था। दीवारों के क़रीब किताबों से भरी अलमारियां रखी थीं, हर अलमारी पर कांसे की मूर्ति सजी थी, संगमरमर के आतिशदान के ऊपर खासा बड़ा दर्पण टंगा था, हरे रंग की बनात से मढ़े हुए फ़र्श पर क़ालीन बिछे थे । अपने ग़रीबी के वातावरण में रहते हुए मैं इस तरह के ठाठ-बाट का आदी नहीं रहा था, बहुत समय से मैंने परायी दौलत का ऐसा रंग भी नहीं देखा था, इसलिये मैं कुछ सहम सा गया और ऐसे धड़कते दिल से काउंट की राह देखने लगा, जैसे किसी छोटे-से नगर से आनेवाला प्रार्थी मन्त्री के बाहर निकलने का इन्तज़ार करता है। दरवाज़ा खुला और कोई बत्तीस साल का सुन्दर पुरुष कमरे में दाखिल हुआ। काउंट अपनत्व और मैत्री का भाव लिये मेरे निकट आया । मैंने अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश की और अपना परिचय देना चाहा, किन्तु इसी बीच उसने अपना परिचय दे दिया। हम दोनों बैठ गये । उसके बातचीत के सहज और स्नेहपूर्ण अन्दाज़ से एकाकी जीवन बिताने के कारण मुझमें पैदा हुई झेंप शीघ्र ही दूर हो गयी और मैं अपनी सामान्य- स्वाभाविक स्थिति में आने लगा कि काउंटेस ने कमरे में प्रवेश किया और पहले से भी कहीं अधिक घबराहट ने मुझे दबोच लिया। वह तो सचमुच ही बड़ी सुन्दर थी। काउंट ने मेरा परिचय दिया। मैंने अपने को बेतकल्लुफ़ ज़ाहिर करना चाहा, लेकिन मैं बेतकल्लुफ़ी का जितना अधिक ढोंग करता था, उतना ही ज़्यादा अटपटापन महसूस करता था। मेरे साथ किसी प्रकार की औपचारिकता न बरतते और अच्छे पड़ोसी का सा व्यवहार करते हुए उन्होंने मुझे सम्भलने और नये परिचय का अभ्यस्त होने का समय देने के लिये आपस में बातचीत शुरू कर दी। इसी बीच मैं किताबों और तस्वीरों पर नज़र दौड़ाने लगा । तस्वीरों की मुझे कोई खास जानकारी हो, ऐसी बात नहीं है, लेकिन एक तस्वीर ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया । उसमें स्विटज़रलैंड का कोई दृश्य अंकित था, पर मुझे चित्र ने नहीं, बल्कि इस बात ने आश्चर्यचकित किया कि वह एक के ऊपर एक दो गोलियों से छिदा हुआ था।

"यह हुआ न बढ़िया निशाना, " मैंने काउंट को सम्बोधित करते हुए कहा ।

"हां, बहुत बढ़िया निशाना है, ” उसने जवाब दिया । आप भी अच्छे निशानेबाज़ हैं क्या ? " काउंट ने पूछा ।

"हां, कुछ बुरा नहीं, " मैंने इस बात से खुश होते हुए कि बातचीत का सिलसिला आखिर तो मेरे मनपसन्द विषय की ओर मुड़ गया है, उत्तर दिया । तीस क़दम की दूरी से तो ताश के पत्ते के बिन्दु को छेद डालूंगा । जाहिर है कि ऐसी पिस्तौल से जिस पर मेरा हाथ सधा हुआ हो ।"

"सच?” काउंटेस ने बड़ी गम्भीरता से जानना चाहा और फिर पति से पूछा, "मेरे प्यारे, क्या तुम भी तीस क़दम की दूरी से ऐसा निशाना लगा सकते हो ?"

"कभी आज़माकर देखेंगे, काउंट ने जवाब दिया । अपने ज़माने में मैं भी कुछ बुरा निशानेबाज़ नहीं था, लेकिन अब तो पिछले चार साल से कभी पिस्तौल हाथ में नहीं लीं ।"

"ओह, तब तो मैं शर्त लगाकर यह कह सकता हूं कि, हुजूर, बीस क़दम की दूरी से भी ताश के पत्ते को नहीं छेद सकेंगे – पिस्तौल तो इस बात की मांग करती है कि हर दिन उससे अभ्यास किया जाये । अपने तजरबे से मैं यह जानता हूं। अपनी रेजिमेंट में मुझे एक बहुत अच्छा निशानेबाज़ माना जाता था। एक बार ऐसा हुआ कि पूरे एक महीने तक मैं पिस्तौल हाथ में नहीं ले पाया - मेरी पिस्तौलें मरम्मत के लिये गयी हुई थीं । जानते हैं, हुजूर, कि इसका क्या नतीजा निकला ? इसके बाद जब मैंने पहली बार निशानेबाजी शुरू की, तो पच्चीस क़दम की दूरी से ही मैं लगातार चार बार बोतल का निशाना भी न साध सका। बड़ी फड़कती हुई बात कहने और चुटकियां लेनेवाला हमारा कप्तान वहां मौजूद था। वह बोला, ' मेरे भाई, बात साफ़ है । तुम्हें बोतल से इतना लगाव है कि उस पर गोली नहीं चला पाते ।' नहीं, हुजूर, निशानेबाजी का अभ्यास तो लगातार करते रहना चाहिये, नहीं तो मामला चौपट हो जायेगा । अपनी ज़िन्दगी में जिस सबसे अच्छे निशानेबाज़ से मेरा वास्ता पड़ा, वह दोपहर के खाने के पहले कम से कम तीन गोलियां हर रोज़ चलाता था । उसके लिये यह वैसा ही नियम था, जैसे भोजन के पहले वोदका का जाम ।"

काउंट और काउंटेस इस बात से खुश थे कि मैं झेंप - मुक्त होकर बातचीत करने लगा था ।

"किस तरह की निशानेबाज़ी करता था वह ?”

" किस तरह की ? कभी-कभी ऐसा होता था, हुजूर, कि वह किसी मक्खी को दीवार पर बैठे देखता - आप हंस रही हैं काउंटेस ? क़सम खाकर कहता हूं कि यह बिल्कुल सच बात है । वह मक्खी को देखता और नौकर को पुकारता, 'कूज़्का, मेरी पिस्तौल लाओ ! कूज़्का भरी हुई पिस्तौल लाता । वह गोली दागता और मक्खी का दीवार पर ही भुरकस हो जाता ।"

"यह तो कमाल की बात है !" काउंट ने कहा, "उसका नाम क्या था ?"

"सील्वियो, हुजूर ।"

"सील्वियो!" अपनी कुर्सी से उछलकर खड़ा होता हुआ काउंट चिल्ला उठा,
"आप सील्वियो को जानते थे ?"

"जानता कैसे नहीं था, हुजूर । हम तो अच्छे दोस्त थे । हमारी रेजिमेंट में उसे अपना साथी बन्धु ही माना जाता था । अब पिछले पांच साल से मुझे उसके बारे में कोई ख़बर नहीं मिली । तो हुजूर, मतलब यह हुआ कि आप भी उसे जानते थे ? "

"जानता था, खूब अच्छी तरह से जानता था । उसने आपको कभी यह नहीं बताया था, ... लेकिन नहीं, शायद ही उसने ऐसा किया हो – उसने आपको एक बहुत ही अजीब क़िस्सा नहीं सुनाया था ?"

"बॉल - नृत्य के वक़्त किसी छैले ने उसके मुंह पर तमाचा जड़ दिया था, यही तो नहीं हुजूर ? "

"उसने आपको उस छैले का नाम बताया था ? "

"नहीं हुजूर, नाम तो नहीं बताया ... ओह, हुजूर, " मामले की तह में छिपी सचाई का अनुमान लगाते हुए मैं कहता गया, "माफ़ी चाहता हूं... मैं नहीं जानता था ... कहीं आप ही तो वह नहीं हैं ?..."

"हां, वह मैं ही हूं," काउंट ने बड़ी खिन्नता से उत्तर दिया, " और गोली से छिदी हुई यह तस्वीर हमारी आखिरी मुलाक़ात की निशानी है ..."

" ओ मेरे प्यारे, " काउंटेस ने कहा, भगवान के लिये यह क़िस्सा नहीं सुनाओ। उसे सुनते हुए मेरा दिल कांपने लगता है ।"

"नहीं, " काउंट ने काउंटेस की बात काटी, " मैं सब कुछ बताऊंगा । इन्हें यह मालूम है कि कैसे मैंने इनके दोस्त की बेइज़्ज़ती की थी। अब इन्हें यह भी मालूम हो जाना चाहिये कि सील्वियो ने किस तरह मुझसे इसका बदला लिया ।"

काउंट ने एक आरामकुर्सी मेरी ओर बढ़ा दी और मैंने बड़ी उत्सुकता से यह कहानी सुनी ।

"पांच साल पहले मैंने शादी की थी। पहला महीना, the honey - moon, यानी मधुमास मैंने यहां इस गांव में बिताया। मेरे जीवन के मधुरतम क्षण और एक बहुत ही कटु स्मृति इस घर के साथ जुड़ी हुई है।

"एक शाम को हम दोनों एकसाथ घुड़सवारी के लिये निकले । मेरी पत्नी का घोड़ा कुछ अड़ने और बिदकने लगा। यह डर गयी, इसने घोड़े की लगामें मुझे दे दीं और पैदल ही घर को चल दी । मैं अपने घोड़े पर ही आगे-आगे बढ़ चला । अहाते में मुझे एक घोड़ागाड़ी खड़ी दिखाई दी। मुझे बताया गया कि मेरे अध्ययन कक्ष में एक व्यक्ति बैठा है, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता, किन्तु जिसने सिर्फ़ इतना ही कहा है कि उसे मुझसे कुछ काम है । मैं कमरे में गया और वहां अंधेरे में धूल से लथपथ और बढ़ी हुई दाढ़ीवाले एक व्यक्ति को अपने सामने पाया । वह यहां आतिशदान के क़रीब खड़ा था । उसके चेहरे-मोहरे को पहचानने की कोशिश करते हुए मैं उसके निकट गया । 'काउंट, तुमने मुझे नहीं पहचाना?' उसने कांपती-सी आवाज़ में पूछा । 'सील्वियो ! ' मैं कह उठा और स्वीकार करता हूं, मैंने अनुभव किया कि कैसे मेरे रोंगटे खड़े हो गये हैं । 'हां, मैं वही हूं,' उसने जवाब दिया, 'मैं अपना हिसाब चुकाने आया हूं, मुझे अपनी पिस्तौल को गोली से मुक्त करना है । तुम तैयार हो ?' उसकी बग़लवाली जेब में पिस्तौल दिखाई दे रही थी। मैंने बारह डग भरे और वहां कोने में जाकर खड़ा हो गया । मैंने उससे अनुरोध किया कि वह झटपट, मेरी पत्नी के लौटने से पहले ही गोली चला दे । किन्तु उसने जल्दी नहीं की, रोशनी लाने के लिये कहा । मोमबत्तियां जला दी गयीं । मैंने दरवाज़े को ताला लगा दिया, किसी के भी भीतर आने की कड़ी मनाही कर दी और फिर उससे गोली चलाने का अनुरोध किया । उसने पिस्तौल निकालकर निशाना साधा... मैं हर क्षण गिन रहा था अपनी पत्नी के बारे में सोच रहा था ... बहुत ही भयानक एक मिनट बीता ! सील्वियो ने हाथ नीचे कर लिया । ' बड़े दुख की बात है, ' उसने कहा, 'कि पिस्तौल में चेरियों की गुठलियां नहीं भरी हैं, गोली बहुत भारी है। मुझे लग रहा है कि यह द्वन्द्व-युद्ध नहीं है, बल्कि मैं आपकी हत्या कर रहा हूं । निहत्थे पर निशाना साधने की मुझे आदत नहीं । हम फिर से शुरू करते हैं, पर्चियां डाल लेते हैं कि कौन पहले गोली चलायेगा ।' मेरा सिर चकरा रहा था ... जहां तक मुझे याद है, मैं राजी नहीं हुआ आखिर हमने एक अन्य पिस्तौल में गोली भरी और दो पर्चियों की गोलियां - सी बनायीं । उसने उन्हें उसी टोपी में डाल दिया जिसे मैंने कभी छेद डाला था । फिर से मुझे ही पहले गोली चलाने का अधिकार मिल गया। 'काउंट, तुम तक़दीर के बड़े सिकन्दर हो,' उसने ऐसी व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के साथ कहा जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा। मेरे लिये यह समझ पाना कठिन है कि उस समय मुझे क्या हो गया था और कैसे मैं यह सब करने को विवश हो गया था ... किन्तु मैंने गोली चलाई और वह इस तस्वीर में जा लगी । " ( काउंट ने गोलियों से छिदे चित्र की ओर उंगली से इशारा किया । उसका चेहरा तमतमाया हुआ था, काउंटेस के चेहरे का रंग उसके दुपट्टे से भी अधिक सफ़ेद पड़ गया था और मैं स्तम्भित-सा होकर चीखे बिना न रह सका । )

"मैंने गोली चलाई,” काउंट ने अपनी बात जारी रखी, “और भला हो भगवान का, मेरा निशाना चूक गया । तब सील्वियो ... ( इस क्षण वह सचमुच बहुत भयानक प्रतीत हो रहा था ) सील्वियो मेरी ओर निशाना साधने लगा । अचानक दरवाज़ा खुल गया, माशा भागती हुई भीतर आई और चीख मार कर मेरे गले से लिपट गयी । इसके आने से मैं फ़ौरन सम्भल गया । 'मेरी प्यारी,' मैंने पत्नी से कहा, 'क्या तुम देख नहीं रही हो कि हम यों ही मज़ाक़ कर रहे हैं। देखो तो तुम कैसे सहम गयी हो ! जाओ, पानी का एक गिलास पीकर वापस आ जाओ। मैं अपने पुराने दोस्त और साथी से तुम्हारा परिचय करवा दूंगा।' माशा को मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ । बताइये कि मेरे पति सच कह रहे हैं न ?' माशा ने रौद्र रूप धारण किये सील्वियो को सम्बोधित करते हुए पूछा, क्या यह सच है कि आप दोनों मज़ाक़ कर रहे हैं ? ' - ' यह तो हमेशा मज़ाक़ करते हैं, काउंटेस, ' सील्वियो ने माशा को उत्तर दिया । ' एक बार मज़ाक़ में ही इन्होंने मेरे मुंह पर तमाचा मारा था, मज़ाक़ करते हुए ही मेरी इस टोपी को छेद डाला था, मज़ाक़ में ही अभी मुझ पर चलाई गयी गोली का निशाना चूक गया। अब मैं मज़ाक़ करना चाहता हूं ... इतना कहकर उसने मुझ पर निशाना साधना चाहा... पत्नी के सामने ही ! माशा उसके क़दमों पर जा गिरी। 'माशा, उठो, कुछ शर्म करो !' मैं पागलों की तरह चिल्ला उठा । 'और आप महानुभाव, इस बेचारी औरत से खिलवाड़ करना बन्द करेंगे या नहीं ? गोली चलायेंगे या नहीं ?' - 'नहीं चलाऊंगा,' सील्वियो ने जवाब दिया । मेरे लिये इतना ही काफ़ी है - मैंने तुम्हें घबराये और सहमे हुए देख लिया, तुम्हें अपने पर गोली चलाने को मजबूर कर दिया, मेरे लिये इतना ही बहुत है। याद रखोगे मुझे। अब तुम जानो और तुम्हारी आत्मा।' इतना कहकर वह बाहर जाने लगा, लेकिन दरवाज़े के पास रुका, उसने उस चित्र की ओर देखा जिसे मैंने छेद डाला था, लगभग निशाना साधे बिना उस पर गोली चलाई और ग़ायब हो गया । मेरी पत्नी बेहोश पड़ी थी, नौकरों-चाकरों को उसे रोकने की हिम्मत नहीं हुई, वे सब भयभीत से उसे देखते रहे। बाहर जाकर उसने अपने कोचवान को पुकारा और मेरे सम्भल पाने से पहले ही ग़ायब हो गया ।"

काउंट ने इससे आगे कुछ नहीं कहा। इस तरह मुझे उस कहानी के अन्त का पता चला, जिसके आरम्भ ने कभी मेरे मन पर गहरी छाप छोड़ी थी। इसके नायक से मेरी फिर कभी भेंट नहीं हुई। कहते हैं कि अलेक्सान्द्र इप्सिलान्ती के विद्रोह के समय सील्वियो ने एक फ़ौजी दस्ते की कमान सम्भाली और स्कुल्यानी के निकट हुए युद्ध में खेत रहा ।

(मूल रूसी भाषा से अनुवाद : डॉ. मदनलाल 'मधु')

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