सातवीं राजकुमारी : रूसी लोक-कथा
The Seventh Princess : Russian Folk Tale
बच्चो, क्या तुमने कभी कोई ऐसी भी कहानी सुनी है जिसमें केवल कोई अपने बालों के लिये ही जीता हो। तो लो पढ़ो यह कहानी। यह कहानी उन छह राजकुमारियों की है जो केवल अपने बालों के लिये ही जीती थीं।
एक बार रूस देश में एक राजा था। उसने एक जिप्सी लड़की से शादी की। वह अपनी रानी को बहुत प्यार करता था और उसको इतनी अधिक सँभाल कर रखता था मानो वह शीशे की बनी हो।
उसके भाग जाने के डर से उसने रानी को एक ऐसे महल में रखा हुआ था जो बहुत बड़े बागीचे में बना था और उस बागीचे के चारों तरफ ऊँची ऊँची रेलिंग लगी थी।
रानी ने कई बार राजा से प्यार से कहा कि वह उस रेलिंग के बाहर जाना चाहती है परन्तु राजा नहीं माना।
वह घन्टों अपने महल की छत पर बैठी रेलिंग के उस पार देखती रहती। उसके पूर्व में घास के बड़े बड़े मैदान थे, पश्चिम में ऊँची ऊँची पहाड़ियाँ थीं, उसके उत्तर में भीड़ भाड़ वाला बाजार था और दक्षिण में कल कल करती नदी। बस इन्हीं को देख कर वह अपना मन बहलाया करती थी।
कुछ समय बाद उसके दो जुड़वाँ बेटियाँ हुईं। जिस दिन उनका नाम रखा जाना था राजा रानी के पास आया और उससे कोई भेंट माँगने के लिये कहा। रानी ने अपनी छत से पूर्व की तरफ देखा और बोली “मुझे वसन्त चाहिये।”
राजा ने तुरन्त पचास हजार मालियों को बुलाया और सबको अलग अलग प्रकार के फूलों के पौधे लाने का तथा उनको रेलिंग के भीतर लगाने का हुक्म सुना दिया।
जब यह सब हो गया तो एक दिन राजा रानी के साथ उस फूलों के बगीचे में गया और रानी से बोला — ‘प्रिये, देखो यह वसन्त तुम्हारे लिये है।” और रानी एक आह भर कर रह गयी। अगले साल रानी ने फिर दो जुड़वाँ बेटियों को जन्म दिया, और एक बार फिर उनके नाम रखने के दिन राजा रानी के पास आया और उससे कोई भेंट माँगने के लिये कहा।
इस बार रानी ने अपनी छत के दक्षिण की तरफ देखा और चमकीले नीले पानी को देख कर बोली “मुझे नदी चाहिये।”
राजा ने तुरन्त ही पचास हजार मजदूर बुलवाये और उन्हें बागीचे में एक नदी और उसमें सुन्दर सा फव्वारा लगाने के लिये हुक्म दे दिया। जब वह सब बन गया तो राजा एक दिन अपनी रानी के साथ उस फव्वारे के पास गया।
फव्वारे से पानी निकल निकल कर संगमरमर के बने एक गोले में गिर रहा था। राजा बोला — “देखो प्रिये, यह नदी तुम्हारे लिये है।” लेकिन रानी केवल उठते गिरते पानी को ही देखती रह गयी, बोल कुछ भी न सकी।
अगले साल रानी ने फिर दो जुड़वाँ लड़कियों को जन्म दिया, और एक बार फिर उनके नाम रखने के दिन राजा रानी के पास आया और उससे कोई भेंट माँगने के लिये कहा।
इस बार रानी ने अपनी छत के उत्तर की तरफ भीड़ भाड़ वाला शहर देखा और बोली “मुझे लोग चाहिये।”
राजा ने तुरन्त पचास हजार बाजा बजाने वाले शहर में रवाना कर दिये। कुछ देर बाद वे छह बहुत ही ईमानदार स्त्रियाँ ले कर लौटे। राजा ने रानी से कहा — “यह लो तुम्हारे लिये आदमी मौजूद हैं।”
रानी ने चुपके से अपने आँसू पोंछे और अपनी छहों बेटियों को जो उगते हुए सूर्य की तरह लाल, सुबह की तरह मन को प्यारी लगने वाली, और दोपहर की तरह चमकीली थीं उन छहों स्त्रियों को दे दिया ताकि हर एक राजकुमारी को उसकी एक आया मिल सके।
अगले साल रानी ने केवल एक लड़की को जन्म दिया जो रानी की तरह साँवली सलोनी थी, जबकि राजा खूब लम्बा और गोरा था।
उसके नाम रखने वाले दिन भी राजा ने रानी से कोई भेंट माँगने के लिये कहा। रानी ने अबकी बार पश्चिम की तरफ देखा तो उधर से एक जंगली कबूतर और छह हंस उड़ कर आ रहे थे। रानी उनको देख कर तुरन्त बोल पड़ी “मुझे पक्षी चाहिये।”
राजा ने तुरन्त पचास हजार पक्षी पकड़ने वालों को भेज दिया। उनके जाने के बाद रानी ने राजा से कहा — ‘प्रिय, अभी मेरे बच्चे पालनों में हैं और मैं रानी हूँ पर कुछ समय बाद ये पालने खाली हो जायेंगे और मैं भी रानी नहीं रहूँगी तब मेरी सातों लड़कियों में से कौन सी लड़की रानी बनेगी?”
राजा के जवाब देने से पहले ही वे पक्षी पकड़ने वाले आ गये। राजा ने उन पक्षियों को देखा और बोला — “रानी, जिस राजकुमारी के बाल सबसे अधिक लम्बे होंगे वही रानी होगी।”
रानी ने अपनी छहों आयाओं को बुलाया और राजा का आदेश सुना कर बोली — “इसलिये याद रखो, मेरी लड़कियों के बालों की रोज ठीक से सार सँभाल करना क्योंकि तुम्हारा आने वाला कल भी कल की होने वाली रानी पर निर्भर है।”
उन्होंने पूछा — “सातवीं राजकुमारी के बालों की देखभाल कौन करेगा।”
रानी ने कहा — “उसके बालों की देखभाल मैं खुद करूँगी।” अब क्या था हर आया में होड़ लग गयी। सभी आया यह चाहती थीं कि उसकी अपनी राजकुमारी रानी बननी चाहिये।
रोज वे उनको फूलों के बगीचे में ले जातीं, फव्वारे के पानी से उनके बालों को धोतीं और धूप में सुखातीं। फिर वे उनको कंघी करतीं और तब तक करती रहतीं जब तक कि वे पीले रेशम की तरह से नहीं चमकने लगते। फिर वे उनकी चोटियाँ बनातीं, उनमें रिबन लगातीं और फूल गूँधतीं।
तुमने उन राजकुमारियों जैसे सुन्दर बाल कभी किसी के नहीं देखे होंगे और न ही किसी आया को किसी के बालों पर इतनी मेहनत करते देखा होगा। जहाँ भी वे छहों राजकुमारियाँ जातीं छह हंस भी उनके साथ ही जाते।
लेकिन सातवीं राजकुमारी ने कभी अपने बाल फव्वारे के पानी से नहीं धोये। वह अपने बालों को हमेशा लाल रूमाल से बाँध कर और ढक कर रखती थी। उसके साथ एक कबूतर रहता था। यह सब वह छिपा कर तब करती जब उसकी बहिनें छत पर अपने हंसों से खेल रही होतीं।
आखिर एक दिन ऐसा भी आया जब रानी का आखिरी समय आया। उसने अपनी सब लड़कियों को बुलाया। एक एक कर के सबको आशीर्वाद दिया और राजा से छत पर चलने की प्रार्थना की। राजा उसको छत पर ले गया वहाँ रानी ने चारों तरफ देख कर अपनी आँखें हमेशा के लिये बन्द कर लीं।
राजा के आँसू अभी सूखे भी न थे कि एक दिन शहर के दरवाजे पर बाजों की आवाज आयी और दरबान कहने आया कि दुनियाँ का राजकुमार आया है। राजा ने उसके स्वागत में शहर के दरवाजे खोल दिये। दुनियाँ का राजकुमार अपने नौकरों के साथ शहर के अन्दर आया।
राजकुमार ऊपर से ले कर नीचे तक सुनहरे कपड़ों से ढका था। उसकी टोपी की ऊँचाई राजा के कमरे की ऊँचाई के बराबर थी। राजकुमार के आगे आगे चिथड़ों में लिपटा एक नौजवान चला आ रहा था।
राजा ने कहा — “आपका स्वागत है राजकुमार।” मगर राजकुमार कुछ न बोला, उसका मुँह बन्द था और आँखें झुकी हुई थीं।
लेकिन चिथड़ों में लिपटे उस नौजवान ने जवाब दिया “धन्यवाद” और राजा का हाथ प्रेम से पकड़ लिया। राजा को इस बात पर बहुत आश्चर्य हुआ, वह बोला — “क्या बात है? क्या राजकुमार खुद नहीं बोल सकते?”
उस चिथड़े में लिपटे नौजवान ने जवाब दिया — “नहीं, उनको कभी किसी ने बोलते नहीं सुना। राजा साहब, संसार में सभी तरह के लोग होते हैं, बोलने वाले भी और न बोलने वाले भी, अमीर भी और गरीब भी, सोचने वाले भी और करने वाले भी, ऊपर देखने वाले भी और नीचे देखने वाले भी।
मेरे मालिक ने मुझे अपना नौकर रखा है क्योंकि वह अमीर हैं और मैं गरीब हूँ। वह सोचते हैं और मैं करता हूँ। वह चुप हैं तो मैं बोल सकता हूँ।”
राजा ने पूछा — “ये यहाँ क्यों आये हैं?”
नौकर ने कहा — “ये यहाँ आपकी बेटी से शादी करने आये हैं क्योंकि संसार चलाने के लिये एक स्त्री की जरूरत तो होती है न।”
राजा ने कहा — “हाँ यह तो है पर मेरे सात लड़कियाँ हैं। वह सबसे तो शादी नहीं कर सकते।”
नौकर ने कहा — “ये होने वाली रानी से शादी करेंगे।”
राजा ने कहा — “मैं अपनी सातों लड़कियों को बुलवाता हूँ।
अब उनके बाल नापने का समय आ गया है।”
सातों राजकुमारियों को बुलवाया गया। उनमें से छहों बड़ी गोरी लड़कियाँ तो अपनी अपनी आयाओं के साथ थीं पर छोटी साँवली लड़की अकेली ही अन्दर आयी।
नौकर ने तुरन्त ही सबको देख लिया परन्तु राजकुमार की आँखें नीची ही रही उसने किसी को नहीं देखा। राजा ने छहों राजकुमारियों के बाल नपवाये तो सबके बाल बराबर ही निकले।
राजा बोला — “अगर मेरी सातवीं बेटी के बाल भी इतने ही लम्बे निकले तो फिर मैं क्या करूँगा?”
सातवीं राजकुमारी बोली — “ऐसा नहीं होगा पिता जी।” ऐसा कह कर उसने अपने सिर पर बँधा अपना लाल रूमाल खोल दिया। उसके बालों की लम्बाई उसकी बहिनों को बालों जितनी नहीं थी क्योंकि उसके बाल लड़कों के बालों की तरह कटे हुए थे।
राजा ने पूछा — “अरे, तुम्हारे बाल किसने काटे?”
“मेरी माँ ने पिता जी। वह रोज मेरे बालों को कैंची से काट देती थी।”
राजा चिल्लाया — “अब कोई भी रानी बने पर तुम रानी नहीं बनोगी।”
सो यह उन छह राजकुमारियों की कहानी है जो केवल बालों के लिये ज़िन्दा थीं।
उन राजकुमारियों में से कोई भी राजकुमारी उस राजकुमार की रानी नहीं बनी क्योंकि सभी के बाल एक जैसे लम्बे थे। बाकी की ज़िन्दगी भी उन्होंने अपने बालों की देखभाल में बिता दी जब तक कि उनके बाल बिल्कुल सफेद नहीं हो गये।
और दुनियाँ का वह राजकुमार भी उनका तब तक इन्तजार करता रहा जब तक कि किसी के बाल इतने लम्बे न हो जायें जब तक कि उनमें से कोई रानी बनने के लायक न हो जाये।
लेकिन सातवीं राजकुमारी ने अपना लाल रूमाल फिर से बाँधा और मैदान, नदियों, बाजारों तथा पहाड़ियों की तरफ भाग गयी, और उसका कबूतर और राजकुमार का वह नौजवान नौकर भी उसके साथ ही चले गये।
उसने नौकर से पूछा — “लेकिन राजकुमार तुम्हारे बिना कैसे रहेगा?”
उसने जवाब दिया — “जैसा वह चाहेगा वह वैसा ही करेगा क्योंकि दुनियाँ में तरह तरह के लोग हैं कुछ लोग अन्दर रहते हैं और कुछ बाहर।”
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)