गुलाबी सेब और सोने का कटोरा : रूसी लोक-कथा
The Rosy Apple and the Golden Bowl : Russian Folk Tale
एक बार एक बूढ़े पति पत्नी अपनी तीन बेटियों के साथ रहते थे। उनकी दोनों बड़ी बेटियाँ तो बहुत ही बेरहम और आलसी थीं पर उनकी सबसे छोटी बेटी तान्या बहुत ही शान्त और सीधे स्वभाव की थी।
उनकी दोनों बड़ी बेटियाँ आलसी तो थी हीं पर साथ में वे बेवकूफ भी बहुत थीं। वे सारे दिन घर में बैठी रहतीं जबकि तान्या सारे दिन सुबह से शाम तक घर और बागीचे में काम करती रहती।
एक दिन उनके पिता को भूसा ले कर उसको बेचने के लिये बाजार जाना था तो उसने अपनी तीनों बेटियों से कहा कि वह वहाँ से उन सबके लिये कुछ न कुछ ले कर आयेगा।
तो उसकी बड़ी बेटी बोली — “पिता जी आप मेरे लिये सिल्क का कपड़ा ले कर आइयेगा।”
उसकी दूसरी बेटी बोली — “पिता जी मेरे लिये आप लाल मखमल का कपड़ा ले कर आइयेगा।”
पर तान्या कुछ नहीं बोली तो उसके पिता ने पूछा — “और तान्या तुम्हारे लिये? तुम्हारे लिये मैं क्या लाऊँ?”
तान्या बोली — “एक गुलाबी सेब और एक सोने का कटोरा।”
यह सुन कर उसकी बड़ी बहिनें बड़ी ज़ोर से हँसीं और बोलीं
— “अरे तुम कितनी बेवकूफ हो। हमारे घर में तो कितना बड़ा सेब
का बागीचा है। तुमको जितने चाहिये उतने सेब तोड़ लो। फिर तुम
पिता जी से सेब क्यों मँगवा रही हो?
और जहाँ तक कटोरे का सवाल है वह तुम्हें किस लिये चाहिये? क्या करोगी तुम उसका? क्या तुम उसमें बतख को खाना खिलाओगी?”
“नहीं मेरी बहिनों। मैं सेब को कटोरे में लुढ़काऊँगी और कुछ जादू के शब्द बोलूँगी। एक बार मैंने एक भिखारिन को एक केक दिया था तो उसने मुझे वे शब्द बताये थे।”
यह सुन कर उसकी बहिनें अबकी बार और ज़ोर से हँस पड़ीं। उनकी हँसी की आवाज सुन कर उनका पिता वहाँ आ गया और बोला — “बस बस काफी हो गया। मैं तुम सबके लिये तुम्हारी पसन्द की चीज़ें ले कर आऊँगा।”
कह कर वह बूढ़ा बाजार चला गया। उसने अपना भूसा बेचा, अपनी तीनों बेटियों के लिये उनकी पसन्द की चीज़ें खरीदीं और घर वापस आ गया।
दोनों बड़ी बहिनें अपनी अपनी चीज़ें देख कर बहुत खुश थीं। वे तुरन्त ही उन कपड़ों की अपनी पोशाक बनाने बैठ गयीं और अपनी छोटी बहिन के साथ मजाक भी करती रहीं।
वे तान्या से बोलीं — “तुम यहाँ बैठो हमारे पास और इस कटोरे में अपना सेब लुढ़काओ।”
तान्या एक कोने में चुपचाप बैठ गयी और अपना सेब उस सोने के कटोरे में लुढ़काने लगी और फुसफुसा कर गाने लगी — ओ गुलाबी सेब लुढ़क लुढ़क़ मेरे छोटे से सोने के कटोरे में लुढ़क मुझे घास के मैदान और समुद्र दिखा, और जंगल और खेत दिखा और इतने ऊँचे पहाड़ दिखा,, जो आसमान तक जाते हों अचानक घंटियाँ बजनी शुरू हो गयीं और सारा मकान रोशनी से भर गया। वह गुलाबी सेब उस सोने के कटोरे में चारों तरफ घूम रहा था।
तभी उस कटोरे में उसको समुद्र और घाटियाँ, मैदानों में तलवार और ढाल लिये हुए सिपाही, घास के मैदान, समुद्र पर पानी के जहाज़, ऊँचे ऊँचे पहाड़ जो आसमान को छू रहे थे दिन की तरह से साफ दिखायी देने लगे।
उस सबको देख कर उसकी दोनों बड़ी बहिनों को तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। पर उस समय उनके दिमाग में केवल एक ही विचार आया कि वे किसी तरह से अपनी छोटी बहिन से वह गुलाबी सेब और सोने का कटोरा ले लें।
पर तान्या की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी कि वह उनमें से किसी से भी अपनी चीज़ बदले। वह अपने उस गुलाबी सेब और सोने को कटोरे को एक पल के लिये भी अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देती थी और रोज शाम को उनसे खेलती थी।
तान्या की बड़ी बहिनें इन्तजार करते करते थक गयीं तो एक दिन उन लड़कियों ने उसको जंगल ले जाने का निश्चय किया।
उन्होंने उससे कहा — “चलो न हमारी अच्छी बहिन। चलो आज जंगल चलते हैं और वहाँ से कुछ बैरीज़ और फूल तोड ,कर लाते हैं।”
पर वहाँ तो कोई बैरीज़ थी ही नहीं और न ही कोई फूल थे सो तान्या ने अपना गुलाबी सेब और सोने का कटोरा निकाला और धीरे से गाया —
ओ गुलाबी सेब लुढ़क लुढ़क़ मेरे छोटे से सोने के कटोरे में लुढ़क
मुझे लाल स्ट्रौबैरी दिखा और नीले कौर्न फूल दिखा
पौपीज़ डेज़ी और वौयलेट भी दिखा
तुरन्त ही घंटियाँ बजने लगीं और उसमें लाल स्ट्रौबैरीज़, नीले कौर्न फूल, पौपीज़, डेज़ी और वौयलेट के फूल प्रगट हो गये।
तान्या की दोनों बेरहम बहिनें पहले तो उसको देखती रहीं पर जल्दी ही उनके चेहरे पर एक नीच किस्म की चमक आयी।
उनकी बहिन चुपचाप एक लठ्ठे पर बैठी अपने कटोरे की तरफ देख रही थी कि उन्होंने एक चाकू लिया और उसको मार कर एक सफेद बिर्च के पेड़ के नीचे दफना दिया।
फिर उन्होंने वह गुलाबी सेब और सोने का कटोरा उठा कर अपने पास रख लिया।
वे बैरीज़ और फूलों से भरी हुई टोकरियाँ ले कर जब घर पहुँचीं तो शाम हो गयी थी। उन्होंने अपने माता पिता से कहा कि तान्या उनको छोड़ कर भाग गयी थी और बहुत ढूँढने पर भी वह उनको नहीं मिली। शायद कोई भेड़िया या भालू उसको खा गया होगा।
यह सुन कर उनकी माँ तो बहुत ज़ोर से रो पड़ी पर उनके पिता ने कहा — “सेब को कटोरे में लुढ़काओ तो हो सकता है कि हम उसमें देख सकें कि वह कहाँ है।”
यह सुन कर दोनों बहिनें तो डर के मारे बिल्कुल ठंडी पड़ गयीं पर उनको वैसा करना पड़ा जैसा उनके पिता ने उनसे कहा था। जब उन्होंने सेब को उस कटोरे में लुढ़काया तो वह उसमें नहीं लुढ़का और कटोरा भी नहीं घूमा। यह देख कर उन नीच बहिनों ने चैन की साँस ली।
कुछ दिनों बाद एक नौजवान चरवाहा उस जंगल में अपनी एक खोयी हुई भेड़ ढूँढ रहा था कि वह उसी सफेद बिर्च के पेड़ के नीचे आ पहुँचा जिसके नीचे तान्या को दफन किया गया था।
उस पेड़ के नीचे मिट्टी का एक ताजा ढेर बना हुआ था और उसके चारों तरफ नीले रंग के कौर्न फूल लगे हुए थे। लम्बे पतले सरकंडे भी फूलों के बीच में से निकल रहे थे।
उसने उन सरकंडों में से एक सरकंडा काट लिया और उसका बजाने के लिये एक पाइप बना लिया। जैसे ही उसने वह पाइप मुँह से लगाया तो वह तो अपने आप ही बजने लगा उसको उसे बजाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसने गाया —
बजो पाइप बजो ताकि मेरे पिता सुन सकें
बजो पाइप बजो ताकि मेरे पिता खुश हो जायें
मुझे मेरी बहिनों ने मार डाला, मैं सफेद बिर्च के पेड़ के नीचे लेटी हुई हूँ ।
जब यह खबर तान्या के पिता के पास पहुँची तो उसने उस चरवाहे से उसको उस जगह ले जाने के लिये कहा जहाँ से उसने वह सरकंडा तोड़ा था।
वह नौजवान चरवाहा उसको जंगल में उस सफेद बिर्च के पेड़ के पास ले गया जहाँ से उसने वह सरकंडा काटा था, जिसके नीचे वह मिट्टी का ढेर बना हुआ था, और जहाँ नीले कौर्न फूल उग रहे थे।
दोनों ने मिल कर उस मिट्टी के ढेर को खोदा तो उनको एक उथली कब्र में तान्या का मरा हुआ ठंडा शरीर मिल गया। वह वहाँ लेटी हुई अभी भी उतनी ही सुन्दर लग रही थी जितनी पहले थी। वह ऐसी लग रही जैसे शान्ति से सो रही थी।
अचानक उस पाइप ने अपने आप ही गाना शुरू किया —
बजाओ पाइप बजाओ खुशी और दुख के गीत सुनो पिता जी सुनो जो में कहती हूँ
मैं तुमसे वह सब कहूँगी जो मुझे कहना है, अगर तुम शाही कुँए से पानी ले आओ
यह सुन कर दोनों बहिनें तो काँपने लगीं और पीली पड़ गयीं। वे अपने घुटनों पर गिर गयीं और उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया। पर बिना किसी से कोई शिकायत किये हुए तान्या का पिता शाही कुँए से पानी लाने चले गया।
जब वह शाही महल पहुँचा तो उसने राजा को अपनी कहानी सुनायी और अपनी बेटी को ज़िन्दा करने के लिये उससे उसके कुँए का पानी माँगा। राजा ने उसकी कहानी सुन कर उसको पानी ले जाने की इजाज़त दे दी।
जब वह पानी ले कर अपनी बेटी के पास लौटा तो उसने वह पानी उसकी भौंहों पर छिड़का। तुरन्त ही तान्या हिली, उसने अपनी आँखें खोलीं औैैर उठ कर अपने माता पिता के गले लग गयी।
वह अभी भी वसन्त के फूल की तरह से ताजा थी। उसकी आँखें अभी भी सूरज की किरनों की तरह से चमक रही थीं। उसका चेहरा अभी इतना सुन्दर था जितना कि सुबह के समय का आसमान। उसके गालों पर उसके आँसू मोती की तरह चमक रहे थे।
राजा ने उसकी नीच बहिनों को बुलवाया और वह उनको मौत की सजा देने ही वाला था कि तान्या ने प्रार्थना कर के उनको माफ करवा दिया। पर फिर भी राजा ने उन दोनों को एक अलग टापू पर भेज दिया जो वहाँ से बहुत दूर था।
तान्या ने उस नौजवान चरवाहे से शादी कर ली जिसने सबसे पहले सफेद बिर्च के पेड़ के नीचे उसकी कब्र ढूँढी थी। उसके बाद से वह जंगल “पवित्र जंगल” कहलाने लगा।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)