मुर्गा, हाथ की चक्की और बर्र : स्वीडिश लोक-कथा
The Rooster, the Hand-mill and the Swarm of Hornets : Folktale Sweden
एक बार की बात है कि एक किसान था जो अपना सूअर बाजार ले
जा कर बेचना चाहता था सो वह उसको ले कर बाजार चला। वह
कुछ ही दूर गया तो उसको एक आदमी मिला जिसने उससे पूछा
“यह तुम अपना सूअर ले कर कहाँ जा रहे हो?”
किसान बोला — “मैं इसे बेचने के लिये ले जा रहा हूँ पर मुझे पता नहीं कि मैं इससे कैसे छुटकारा पाऊँ।”
वह आदमी बोला — “तुम शैतान के पास चले जाओ। वही सबसे पहला होगा जो तुमको इससे छुटकारा दिलायेगा।”
यह सुन कर किसान उस बड़ी चौड़ी सड़क पर आगे चल दिया। चलते चलते वह शैतान के घर आ पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक आदमी बाहर एक लकड़ी के ढेर के पास खड़ा हुआ लकड़ियों का ढेर बना रहा है।
किसान उसके पास गया और उससे पूछा कि क्या वह उसको पूछ कर यह बतायेगा कि शैतान के घर में एक सूअर की जरूरत है या नहीं। आदमी बोला कि वह अभी उसको यह बात पूछ कर बताता है अगर वह उसकी गैरहाजिरी में उसका लकड़ी का ढेर लगा दे तो।”
किसान बोला “खुशी से।”
उसने उस आदमी से कुल्हाड़ी ली और लकड़ी के ढेर के पास खड़े हो कर लकड़ी काटनी शुरू कर दी। वह वहाँ यह काम करता रहा करता रहा शाम होने को आयी पर वह आदमी उसके पास यह बताने के लिये वापस लौट कर नहीं आया कि शैतान के घर में वे सूअर खरीदेंगे या नहीं।
काफी देर के बाद एक और आदमी उधर आ निकला तो किसान ने उससे कहा कि क्या वह उसकी जगह लकड़ी काट देगा क्योंकि उस कुल्हाड़ी को नीचे रखना नामुमकिन था। उसको केवल किसी दूसरे आदमी को दिया ही जा सकता था।
सो उस आदमी ने उससे कुल्हाड़ी ले ली और लकड़ी काटनी शुरू कर दी। किसान खुद शैतान के घर में देखने के लिये गया कि वह वहाँ अपना सूअर बेच सकता था या नहीं।
जैसे ही वह अन्दर पहुँचा तो एक मेले में जितनी भीड़ होती है उतनी भीड़ वहाँ आ कर खड़ी हो गयी और सब उस सूअर को खरीदना चाहते थे। किसान ने कहा कि जो कोई भी उस सूअर के सबसे ज़्यादा दाम देगा मैं अपना सूअर उसी को दूँगा।
हर एक आदमी एक दूसरे से ज़्यादा बोली लगाने लगा। अब तो उसकी बोली इतनी लग गयी कि वह सूअरों के एक झुंड को खरीदने के लिये भी बहुत थी। पर आखीर में एक भला आदमी वहाँ आया और उसने किसान के कान में कुछ फुसफुसाया और उसे अपने साथ आने के लिये कहा कि उसको उस सूअर का उतना पैसा मिल जायेगा जितना वह चाहता था।
जब वे उस भले आदमी के घर पहुँचे और किसान ने उसको अपना सूअर दे दिया तो उसके बदले में उसको एक मुर्गा मिला जो उससे जितनी बार भी कहो हर बार चाँदी के सिक्के देता था।
किसान ने वह मुर्गा लिया और खुशी खुशी उसको ले कर घर चला गया। वह अपने सौदे से बहुत सन्तुष्ट था।
घर का रास्ता लम्बा था सो जाते समय उसको रात को एक सराय में रुकना पड़ा। उस सराय को एक बुढ़िया चलाती थी। किसान अपने मुर्गे से इतना ज़्यादा खुश था कि उसने उस बुढ़िया से अपने मुर्गे की बहुत तारीफ की। साथ में उसने उसको यह भी दिखाया कि वह मुर्गा चाँदी के सिक्के कैसे देता था।
रात को जब किसान गहरी नींद सो गया तो वह बुढ़िया उसके पास आयी और उस मुर्गे को तो उठा कर ले गयी और एक दूसरा वैसा ही मुर्गा उसकी जगह रख गयी।
जैसे ही किसान सुबह सवेरे उठा तो वह उस मुर्गे से कुछ सिक्के निकलवाना चाहता था “ओ मेरे मुर्गे जल्दी से मुझे चाँदी के सिक्के दे।” पर मुर्गे ने तो एक भी सिक्का नहीं दिया। केवल यही बोलता रहा “किकिरीकी किकिरीकी किकिरीकी।”
इससे किसान को बहुत गुस्सा आ गया। वह शैतान के घर वापस गया और वहाँ जा कर उस मुर्गे की शिकायत की कि वह कितना बेकार का मुर्गा था उसने उसे कुछ नहीं दिया।
उस भले आदमी ने उसको बड़े आदर के साथ अन्दर बुलाया और अबकी बार उसने उसको एक हाथ की चक्की दी और बताया कि जब भी तुम इससे कहोगे “चक्की पीसो” तो यह तुम्हारे लिये उतना ही खाना पीस देगी जितना कि तुमको जरूरत है और यह जब तक नहीं रुकेगी जब तक तुम यह नहीं कहोगे कि “चक्की पीसना बन्द करो।”
चक्की ले कर वह अपने घर चल दिया। रास्ते में वह उसी सराय में ठहरा जिसमें वह पहले ठहरा था। अपनी इस चक्की से भी वह इतना खुश था कि वह अपनी जबान बन्द नहीं रख सका। उसने बुढ़िया को सब बता दिया कि उसके पास कितनी बढ़िया चक्की थी और वह कैसे काम करती थी।
पर रात को जब किसान सो गया तो उस बुढ़िया ने उसकी वह बढ़िया वाली चक्की भी चुरा ली और उसकी जगह एक वैसी ही चक्की ला कर रख दी। सुबह को जब किसान उठा तो अपनी चक्की की जाँच करने के लिये बहुत बेचैन था।
पर यह क्या। उसके लाख कहने पर भी उस चक्की ने उसको कोई खाना नहीं दिया। वह उससे किसी भी तरह कोई भी खाना नहीं निकलवा सका। वह चिल्लाया “चक्की पीसो।” पर चक्की शान्त खड़ी रही। फिर उसने उससे प्यार से कहा “मेरी प्यारी चक्की पीस।” पर फिर भी वह टस से मस नहीं हुई।
उसने फिर कहा “राई पीसो।” पर फिर भी उसने कुछ नहीं किया। फिर वह बोला “मटर पीसो।” पर कोई असर नहीं। वह तो ऐसे खड़ी रही जैसे कभी ज़िन्दगी में हिली ही न हो।
यह देख कर किसान फिर से शैतान के घर वापस गया। तुरन्त ही उसने उस भले आदमी को ढूँढा जिसने उसका सूअर खरीदा था और उससे कहा कि चक्की तो कुछ पीसती नहीं।
वह भला आदमी बोला “तुम उसकी चिन्ता मत करो।”
उसको उसने बर्र या ततैये का एक छत्ता देते हुए कहा जो झुंड में उड़ती थी और उसी को काटती थीं जिनको उनसे काटने के लिये कहा जाता था। वे उसको तब तक काटती रहती थीं जब तक उनसे यह नहीं कहा जाता “रुक जाओ।”
बर्र के छत्ते को ले कर वह फिर उसी बुढ़िया की सराय में ठहरने के लिये आया। उस दिन भी उसने बुढ़िया को बताया कि उसके पास बहुत सारी बर्रें हैं जो उसका कहा मानती हैं।
यह सुन कर बुढ़िया के मुँह से निकला — “हे मेरे भगवान। यह तो देखने वाली चीज़ है।”
किसान बोला — “हाँ हाँ क्यों नहीं। इसको तो तुम बिना किसी परेशानी के देख सकती हो।”
कह कर उसने तुरन्त ही आवाज लगायी — “निकलो निकलो बाहर निकलो और इस बुढ़िया को काट लो।” उसके यह कहते ही बर्रों का पूरा का पूरा झुंड अपने छत्ते में से निकल पड़ा और उस बुढ़िया पर टूट पड़ा।
बुढ़िया दर्द के मारे तड़प उठी। वह चिल्लायी “रोको इन्हें रोको।”
किसान बोला — “पहले तुम मुझसे वायदा करो कि तुमने जो मेरा मुर्गा और चक्की चुरायी है वे दोनों वापस दे दोगी।”
बुढ़िया चीखते हुए बोली — “हाँ हाँ मैं वायदा करती हूँ कि मैं तुम्हारा मुर्गा और चक्की दोनों वापस कर दूँगी। पर अभी तो इन बर्रों को रोको।”
किसान ने उसकी बात मान ली और अपनी बर्रों को वापस बुला लिया। उन्होंने भी तुरन्त ही बुढ़िया को छोड़ दिया और अपने घर में आ गयीं।
किसान भी अपना मुर्गा और चक्की ले कर अपने घर वापस चला गया और कुछ ही दिनों में बहुत अमीर हो गया। जब तक वह ज़िन्दा रहा खुशी खुशी रहा।
जब तक वह ज़िन्दा रहा तब तक वह हमेशा यही कहता रहा-
“शैतान के घर में हमेशा ही एक बड़ा मेला लगा रहता है। वहाँ तुम्हें
बहुत अच्छे अच्छे लोग मिल जायेंगे। इससे भी ज़्यादा वहाँ तुम्हें
एक भला आदमी मिलेगा जिसके साथ अगर तुम सौदा करोगे तो
फायदे में रहोगे।”
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)