हुक्म की बेगम (रूसी लघु उपन्यास) : अलेक्सान्द्र पूश्किन
The Queen of Spades (Russian Novella) : Alexander Pushkin
हुक्म की बेगम
का अर्थ है रहस्यपूर्ण शत्रुता ।
(भविष्य बूझने की नवीनतम पुस्तक से ।)
(१)
ठण्डे बुरे मौसम में
जमा होकर अक्सर
भगवान उन्हें क्षमा करे
खेलें जुआ डटकर-
पचास से सौ तक
दांव पर लगाते,
जीतते, वे हारते
हिसाब लिखते जाते,
यों ठण्डे बुरे मौसम में
ऐसे अच्छे काम में
वक़्त वे बिताते ।
एक बार गार्डों की घुड़सेना के अफ़सर नारूमोव के यहां जुआ खेला जा रहा था। पता भी नहीं चला कि जाड़े की लम्बी रात कब बीत गयी – सुबह के पांच बजे ये लोग भोजन करने बैठे। जीतनेवाले तो खूब मज़े से खाने पर हाथ साफ़ कर रहे थे और दूसरे अपनी खाली प्लेटों के सामने खोये-खोये से बैठे थे। लेकिन जैसे ही शेम्पेन सामने आई, बातचीत सजीव हो उठी और सभी ने उसमें भाग लिया ।
"तुम्हारा कैसा हालचाल रहा, सूरिन ?" मेज़बान ने पूछा ।
"सदा की भांति हार गया । मानना ही होगा कि क़िस्मत मुझसे खार खाये बैठी है - मैं छोटे-छोटे दांव लगाकर खेलता हूं, कभी उत्तेजित नहीं होता, दिमाग़ को इधर-उधर भटकने नहीं देता, लेकिन फिर भी हमेशा हारता ही रहता हूं ! "
"क्या कभी तुम्हारे मन में लालच नहीं आया ? क्या कभी बड़ा दांव लगाने को तुम्हारा मन नहीं हुआ ?.. तुम्हारी यह दृढ़ता मेरे लिये आश्चर्यजनक है।"
"यह हेर्मन्न भी खूब है न ?" जवान इंजीनियर की ओर संकेत करते हुए एक मेहमान ने कहा । " इसने कभी पत्ते हाथ में नहीं लिये कभी दांव नहीं लगाया, लेकिन सुबह के पांच बजे तक हमारे साथ बैठा हुआ हमारे खेल को देखता रहता है ।"
"खेल में मुझे बहुत मज़ा आता है, " हेर्मन्न ने कहा, " लेकिन मैं ऐसी स्थिति में नहीं हूं कि कुछ फ़ालतू पाने की उम्मीद में उसे भी क़ुर्बान कर दूं जो एकदम ज़रूरी है । "
"हेर्मन्न जर्मन है, सावधान है, बस इतनी ही बात है !" तोम्स्की ने राय जाहिर की। लेकिन मेरे लिये अगर कोई पहेली है, तो मेरी दादी काउंटेस आन्ना फ़ेदोतोव्ना । "
"वह कैसे ? वह क्यों ?" मेहमानों ने चिल्लाते हुए जिज्ञासा व्यक्त की ।
"किसी तरह भी यह नहीं समझ पाता, तोम्स्की ने अपनी बात जारी रखी, “कि मेरी दादी जुआ क्यों नहीं खेलती ! "
“ इसमें हैरानी की कौन-सी बात है कि अस्सी साल की बुढ़िया जुआ नहीं खेलती ! " नारूमोव ने कहा ।
"तो क्या आप उसके बारे में कुछ नहीं जानते ? "
"नहीं ! सचमुच, कुछ भी नहीं ! "
"ओह, तो सुनिये " :
"यह जानना ज़रूरी है कि मेरी दादी साठ साल पहले पेरिस गयी थी और वहां उसकी बड़ी धूम रही थी । La Vénus moscovite (मास्को की सौन्दर्य - देवी ( फ़्रांसीसी ) को एक नज़र देख लेने के लिये लोग उसके पीछे-पीछे भागा करते थे। रिशेल्ये उसका दीवाना था और दादी यह यकीन दिलाती है कि उसकी निष्ठुरता के कारण वह अपने को गोली मारते-मारते रह गया था ।
"उस ज़माने में महिलायें फ़ारो खेला करती थीं। एक दिन दरबार में जुआ खेलते हुए वह ड्यूक दे' ओरलिआन को बहुत बड़ी रकम हार गयी जिसे उसने बाद में चुका देने का वचन दिया। घर लौटने पर चेहरे को सुन्दर बनाने के लिये लगाये जानेवाले रेशमी बिन्दु और स्कर्ट को फैलानेवाले धातु के घेरे उतारते हुए उसने दादा को बताया कि कितनी रक़म हार गयी है और आदेश दिया कि वे उसे चुका दें।
"जहां तक मुझे याद है, मेरे दिवंगत दादा एक तरह से मेरी दादी के कारिन्दा ही थे । वे दादी से आग की तरह डरते थे । किन्तु इतनी बड़ी रक़म हार जाने की बात सुनकर वे आपे से बाहर हो गये, सभी बिल लाकर उन्होंने दादी को दिखाये और यह साबित किया कि छ: महीनों में उन्होंने पांच लाख का खर्च किया है कि पेरिस के आस- पास मास्को या सरातोव की भांति उनकी कोई जागीर नहीं है और रक़म अदा करने से साफ़ इन्कार कर दिया। दादी ने उनके मुंह पर एक तमाचा मारा और अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिये दादा को अपने पास नहीं सोने दिया ।
“अगले दिन दादी ने यह उम्मीद करते हुए कि घरेलू दण्ड का आवश्यक प्रभाव हुआ होगा, पति को बुलवा भेजा किन्तु दादा अपनी बात पर अड़े हुए थे। जीवन में पहली बार दादी ने मामले पर सोच- विचार किया, सब कुछ स्पष्ट करना चाहा, सोचा कि बड़ी नम्रता से यह बताते हुए पति को लज्जित करेगी कि क़र्ज़ क़र्ज़ में फ़र्क़ होता है और प्रिंस तथा बग्घी बनानेवाला - ये दोनों एक जैसे ही नहीं होते । लेकिन सब बेकार ! दादा ने विद्रोह कर दिया था। नहीं, और बात ख़त्म ! दादी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे ।
दादी की अच्छी जान पहचानवालों में एक बहुत ही कमाल का आदमी था। आपने काउंट सेंट जेर्मेन1 का नाम तो सुना होगा, जिसके बारे में बड़ी-बड़ी अद्भुत बातें कही जाती हैं। आपको यह भी मालूम होगा कि उसने अपने को अमर यहूदी, जीवन अमृत और दार्शनिक पत्थर का आविष्कारक आदि, आदि बताया था । लोग ढोंगी- पाखंडी कहकर उसका मज़ाक़ उड़ाते थे और काज़ानोवा2 ने अपनी टिप्पणियों में उसे जासूस कहा है । ऐसी रहस्यपूर्ण ख्याति के बावजूद सेंट-जेर्मेन बहुत ही सम्मानित व्यक्तित्व रखता था और सोसाइटी में बड़ा ही कृपालु तथा विनयी-शिष्ट व्यक्ति माना जाता था । दादी अभी तक उसकी प्रेम दीवानी है और अगर कोई अनादर से उसकी चर्चा करता है, तो वह बिगड़ उठती है। दादी जानती थी कि सेंट- जेर्मेन ख़ासा अमीर आदमी है। उसने उसी से मदद लेनी की सोची । उसके नाम एक रुक़्क़ा लिख भेजा जिसमें अनुरोध किया कि वह फ़ौरन उसके पास चला आये ।
1. १८वीं शताब्दी के अन्त का फ्रांसीसी कीमियागर और जो- खिमबाज़ । - सं०
2. प्रसिद्ध इतालवी जोखिमबाज़ ( १७२५ - १७६८), जिसने बड़े दिलचस्प संस्मरण लिखे हैं। – सं०
"सनकी बूढ़ा उसी वक़्त आ गया और दादी को उसने बहुत ही दुखी पाया। दादी ने अपने पति की क्रूरता को काले से काले रंग में पेश किया और आखिर यह कहा कि वह उसकी मैत्री और कृपालुता पर ही पूरी आस लगाये हुए है ।
"सेंट-जर्मेन सोच में पड़ गया ।
"'यह रक़म तो मैं आपको दे सकता हूं,' वह बोला, 'लेकिन जानता हूं कि जब तक आप यह रक़म मुझे लौटा नहीं देंगी, आपको चैन नहीं आयेगा । मैं आपके लिये नई परेशानियां पैदा नहीं करना चाहता। एक और रास्ता है - आप यह रक़म वापस जीत सकती हैं।'-
'किन्तु कृपालु काउंट,' दादी ने जवाब दिया, 'मैं तो यह कह रही हूं कि हमारे पास पैसे ही नहीं हैं । '
- 'पैसों की कोई ज़रूरत नहीं,' सेंट जेर्मेन ने दादी की बात काटी, 'आप पूरी तरह मेरी बात सुनने की कृपा करें।' इतना कहकर उसने दादी को वह राज़ बताया, जिसे जानने के लिये हममें से हर कोई बड़ी खुशी से भारी क़ीमत अदा कर देता ... "
जवान जुआरी अब बहुत ही ध्यान से बात सुनने लगे । तोम्स्की ने पाइप सुलगाया, कश खींचा और अपनी बात आगे बढ़ायी ।
"दादी उसी शाम को वेर्साली, au jeu de la Reine1 में पहुंची। ड्यूक द ओलिआन पत्ते बांट रहा था। दादी ने क़र्ज़ की रक़म न लाने के लिये ज़रा माफ़ी मांगी, अपनी सफाई में छोटा-सा क़िस्सा सुनाया और ड्यूक के सामने जुआ खेलने बैठ गयी। दादी ने तीन पत्ते चुने, एक के बाद दूसरा पत्ता चला, तीनों पत्ते जीतनेवाले निकले और दादी ने अपना सारा ऋण बराबर कर दिया ।"
"संयोग की बात थी ! " एक मेहमान ने कहा ।
मनगढ़न्त क़िस्सा है ! " हेर्मन्न ने राय ज़हिर की ।
"शायद निशानी वाले पत्ते थे ? " तीसरा कह उठा ।
" मैं ऐसा नहीं सोचता हूं, " तोम्स्की ने बड़ी शान से जवाब दिया ।
"भई वाह ! " नारूमोव बोला, “तुम्हारी ऐसी दादी है जो लगातार जीतनेवाले तीन पत्तों का अनुमान लगा सकती है और तुमने अभी तक उससे यह राज़ नहीं जाना ? "
"मामला इतना सीधा-सादा नहीं है ! " तोम्स्की ने जवाब दिया, " मेरे पिता जी समेत दादी के चार बेटे थे। चारों ही खूब जुआ खेलते थे और दादी ने उनमें से किसी को भी अपना राज़ नहीं बताया, गो यह उनके लिये और खुद मेरे लिये भी कुछ बुरा न होता । लेकिन मेरे चाचा, काउंट इवान इल्यीच ने मुझे यह क़िस्सा सुनाया और क़सम खाकर इसके बारे में यकीन दिलाया। दूसरी दुनिया में पहुंच चुका चाप्लीत्स्की, वही चाप्लीत्स्की जो लाखों-करोड़ों उड़ाकर बड़ी मुहताजी में मरा, अपनी जवानी में एक बार तीन लाख रूबल हार गया - याद आ रहा है ज़ोरिच2 के पास । वह बहुत ही परेशान था। दादी जवान लोगों की ऐसी शरारतों, ऐसी हरकतों के मामले में बड़ी कठोर थी, लेकिन न जाने क्यों उसे चाप्लीत्स्की पर रहम आ गया। उसने उसे तीन पत्ते बताये, यह कहा कि एक के बाद एक को चले और साथ ही उससे यह वचन ले लिया कि वह फिर कभी जुआ नहीं खेलेगा । चाप्लीत्स्की अपने खुशक़िस्मत प्रतिद्वन्द्वी के यहां गया और वे जुआ खेलने बैठे। उसने पहले पत्ते पर पचास हज़ार का दांव लगाया और जीत गया, दूसरे पत्ते पर इस दांव को दुगुना कर दिया, तीसरे पर चौगुना – इस तरह हारी हुई, सारी रक़म लौटाने के अलावा वह कुछ और भी जीत गया...
1. महारानी के यहां ताश का खेल ( फ्रांसीसी ) ।
2. येकातेरीना द्वितीय का एक कृपापात्र, जुए का दीवाना ( १७४५- १७६६ ) । - सं०
“ लेकिन अब सोना चाहिये - सुबह के पौने छः बज गये हैं ।"
वास्तव में ही उजाला होने लगा था। जवान लोगों ने जाम खाली किये और अपने-अपने घरों को चल दिये ।
(२)
- Il paraît que monsieur est décidement pour les suivantes.1
- Que voulez-vous, madame ? Elles sont plus fraiches.2
(सोसाइटी की गपशप)
1. लगता है कि आप तो निश्चित रूप से नौकरानियों को तरजीह देते हैं।
2. क्या किया जाये ? उनमें अधिक ताज़गी होती है ( फ़्रांसीसी ) ।
बूढ़ी काउंटेस ... अपने श्रृंगार-कक्ष में दर्पण के सामने बैठी थी । तीन नौकरानियां उसे घेरे हुए थीं। एक सुर्खी की शीशी लिये थी, दूसरी के हाथ में हेयर पिनों का डिब्बा था और तीसरी अंगारों के रंग की फ़ीतोंवाली ऊंची टोपी । काउंटेस की सुन्दरता का रंग कभी का फीका पड़ चुका था, इसलिये वह सुन्दरता का ज़रा भी दावा नहीं कर सकती थी, किन्तु जवानी के दिनों की सभी आदतों को उसने ज्यों का त्यों बनाये रखा था अठारहवीं सदी के आठवें दशक के फ़ैशनों को कड़ाई से निभाती थी और साठ साल पहले की तरह बहुत यत्न से और बड़ा समय लगाकर साज- सिंगार करती थी । खिड़की के पास उसकी संरक्षिता युवती कसीदाकारी के फ़ेम के सामने बैठी थी ।
" नमस्ते. grand'maman, (दादी - फ़्रांसीसी ) कमरे में दाखिल होनेवाले जवान अफ़सर ने कहा ।
"Bonjour, mademoiselle Lise.(नमस्ते, लीज़ा - फ़्रांसीसी ) Grand'- maman, मैं आपके पास एक अनुरोध लेकर आया हूं। "
"क्या बात है, Paul?” (पोल - फ़्रांसीसी )
"आपके साथ अपने एक दोस्त का परिचय करवाने और शुक्रवार के बॉल - नृत्य में उसे अपने साथ यहां लाने के लिये आपकी अनुमति चाहता हूं। "
“ उसे सीधे बॉल - नृत्य में ही ले आना और तभी मेरे साथ उसका परिचय करवा देना । कल तुम ...के यहां गये थे ?"
"बेशक गया था ! वहां बहुत मज़ा रहा - सुबह के पांच बजे तक नाचते रहे। येलेत्स्काया तो खूब ही जंच रही थी ! "
"ओह, मेरे प्यारे ! उसमें भला जंचनेवाली क्या खास बात हो सकती है ? काश, उसकी दादी, प्रिंसेस दार्या पेत्रोव्ना को तुमने उसकी जवानी के दिनों में देखा होता ! अब तो बहुत बुढ़ा गयी होगी प्रिंसेस दार्या पेत्रोव्ना ?"
"बुढ़ा गयी होगी ? " तोम्स्की ने बेख्याली से जवाब दिया, "उसे तो मरे हुए सात साल हो चुके हैं।"
खिड़की के पास बैठी युवती ने सिर ऊपर उठाया और तोम्स्की को इशारा किया। तोम्स्की को याद आया कि बूढ़ी काउंटेस से उसकी हमउम्रों की मौत को छिपाया जाता है और यह भूल करने के लिये उसने अपना होंठ काटा । किन्तु काउंटेस ने अपने लिये यह नई ख़बर सुनकर कोई खास परेशानी जाहिर नहीं की ।
"मर चुकी है ! " काउंटेस ने कहा, " और मुझे मालूम ही नहीं था ! हम दोनों को सम्राज्ञी की सेवा में उपस्थित रहने के लिये एक-साथ ही नियुक्त किया गया था और जब हम सम्राज्ञी के सामने गयीं, तो .... "
और काउंटेस ने सौवीं बार पोते को अपना यही क़िस्सा सुनाया ।
"तो Paul, " इसके बाद उसने कहा, "अब उठने के लिये ज़रा मुझे सहारा दो । लीज़ा, मेरी नासदानी कहां है ? "
और अपना साज - सिंगार पूरा करने के लिये काउंटेस नौकरानियों को साथ लेकर पर्दों के पीछे चली गयी । तोम्स्की युवती के पास रह गया ।
"किसे परिचित करवाना चाहते हैं ? " लीज़ावेता इवानोव्ना ने धीरे से पूछा ।
"नारूमोव को । आप उसे जानती हैं ?"
"नहीं । वह फ़ौजी है या ग़ैरफ़ौजी ?"
"फ़ौजी ।"
"इंजीनियर ? "
"नहीं, घुड़सेना का अफ़सर । आपने ऐसा क्यों सोचा कि वह इंजीनियर है ?"
युवती हंस दी और उसने कोई जवाब नहीं दिया ।
"Paul!" काउंटेस पर्दों के पीछे से चिल्लाई, मेरे लिये कोई नया उपन्यास भिजवा देना, लेकिन मेहरबानी करके आधुनिक नहीं । "
"क्या मतलब, grand'maman?”
"कोई ऐसा उपन्यास जिसमें नायक न तो अपने पिता और न ही मां का गला घोंटे और जिसमें लाशें न डुबोयी जायें। मैं डूबी लाशों से बहुत डरती हूं !"
"आजकल ऐसे उपन्यास नहीं हैं। आप रूसी उपन्यास पढ़ना नहीं चाहतीं ?"
"क्या रूसी उपन्यास भी हैं ?.. भेज देना भैया, कृपया भेज देना !"
"माफ़ी चाहता हूं, grand' maman, मैं जाने की जल्दी में हूं... माफ़ कीजिये, लीज़ावेता इवानोव्ना ! आपने ऐसा क्यों सोचा कि नारूमोव इंजीनियर है ?"
और तोम्स्की श्रृंगार-कक्ष से बाहर चला गया ।
लीज़ावेता इवानोव्ना अकेली रह गयी। उसने कसीदाकारी का काम छोड़ दिया और खिड़की से बाहर झांकने लगी । शीघ्र ही कोनेवाले घर के पीछे से सड़क के पार एक जवान फ़ौजी अफ़सर दिखाई दिया । लीज़ा के गालों पर लाली दौड़ गयी। वह फिर से कसीदा काढने लगी और उसने किरमिच पर अपना सिर झुका लिया । इसी समय पूरी तरह से सजी-धजी हुई काउंटेस पर्दों के पीछे से बाहर आई ।
"लीज़ा, बग्घी जोतने का आदेश दो, " उसने कहा, "हम घूमने जायेंगी ।"
लीज़ा कमीदाकारी छोड़कर उठी और अपना काम समेटने लगी ।
"क्या बात है, लीज़ा ! क्या तुम बहरी हो ! " काउंटेस चिल्ला उठी । " "जल्दी से बग्घी जोतने का आदेश दो ।"
"अभी !" युवती ने धीरे से जवाब दिया और प्रवेश - कक्ष की ओर भाग गयी ।
नौकर कमरे में आया और उसने प्रिंस पावेल अलेक्सान्द्रोविच की ओर से काउंटेस को पुस्तकें दीं ।
" अच्छी बात है ! धन्यवाद दे दीजिये" काउंटेस ने कहा । " लीज़ा, लीज़ा ! कहां भागी जा रही हो तुम ? "
" कपड़े बदलने के लिये । "
"बदल लेना कपड़े, ऐसी क्या जल्दी है । यहां बैठो। पहला खण्ड खोलो और मुझे पढ़कर सुनाओ ..."
युवती ने किताब लेकर कुछ पंक्तियां पढ़ीं ।
"ज़ोर से !" काउंटेस ने कहा । "तुम्हें क्या हुआ है, लीज़ा ? क्या तुम्हारी आवाज़ जाती रही ?.. जरा रुको - पैर रखने की यह चौकी ज़रा मेरी तरफ़ खिसका दो, और अधिक निकट ... तो पढ़ो ! "
लीज़ावेता इवानोव्ना ने दो पृष्ठ और पढ़े । काउंटेस ने जम्हाई ली । "फेंक दो इस किताब को " उसने कहा, "क्या बकवास है यह ! प्रिंस पावेल को वापस भिजवा दो और धन्यवाद देने को कह देना ... तो बग्घी का क्या हुआ ?"
"बग्घी तैयार है," लीज़ावेता इवानोव्ना ने बाहर झांककर जवाब दिया ।
"तुमने कपड़े क्यों नहीं बदले ?" काउंटेस ने पूछा, “हमेशा तुम्हारा इन्तज़ार करना पड़ता है ! बड़ा मुश्किल है यह तो बर्दाश्त करना !"
लीज़ा अपने कमरे में भाग गयी। दो मिनट भी नहीं गुज़रे कि काउंटेस पूरे जोर से घण्टी बजाने लगी । एक दरवाज़े से तीन नौकरानियां और दूसरे से एक नौकर भागा आया ।
"तुम्हें जब बुलाया जाता है, तो तुम लोग उसी वक़्त क्यों नहीं आते ?" काउंटेस ने उनसे कहा । “ लीज़ावेता इवानोव्ना को बताओ कि मैं उसकी राह देख रही हूं।"
लीज़ावेता इवानोव्ना चोग़े जैसी पोशाक और टोपी पहने हुए भीतर आई ।
"आख़िर तो आ गयीं तुम !" काउंटेस ने कहा । "खूब बनाव- सिंगार किया है ! यह किसलिये भला ? किसको मोहित करना चाहती हो ?.. मौसम कैसा है ? - लगता है हवा है । "
"नहीं, सरकार ! बिल्कुल हवा नहीं है ! " नौकर ने जवाब दिया ।
"तुम लोग हमेशा वही कह देते हैं जो तुम्हारे मुंह में आ जाता है ! खिड़की का ऊपरवाला शीशा खोलो तो । ठीक वही मामला है - हवा है, और सो भी ठण्डी ! बग्घी खुलवा दीजिये ! लीज़ा, हम नहीं जायेंगी – बनने-ठनने की कोई ज़रूरत नहीं थी ।"
"यह है मेरी ज़िन्दगी ! " लीज़ावेता इवानोव्ना ने सोचा ।
वास्तव में ही लीज़ावेता इवानोव्ना बड़ी बदक़िस्मत प्राणी थी । दांते ने कहा है कि परायी रोटी कडुवी होती है और पराये घर की पैडियों पर चढ़ना मुश्किल होता है । दूसरे पर निर्भरता की कटुता को यदि जानी-मानी बुढ़िया की आश्रिता, ग़रीब लड़की नहीं जानेगी, तो कौन जानेगा ? यह सच है कि काउंटेस दिल की बुरी नहीं थी, लेकिन सोसाइटी द्वारा बिगाडी गयी सभी औरतों की तरह मनमानी करती थी, कंजूस और निर्मम स्वार्थ में डूबी हुई थी, जैसे कि वे सभी बूढ़े लोग होते हैं जो अपने ज़माने में सारी कोमल भावनायें लुटाकर वर्त्तमान के प्रति उदासीन हो जाते हैं । वह ऊंचे समाज की सारी चहल- पहल में हिस्सा लेती थी, बॉल-नृत्यों में जाती थी, जहां पुराने ढंग से रंगी-चुनी और पुराने फ़ैशन के कपड़े पहने हुए नाच के हाल की भद्दी और ज़रूरी सजावट बनी बैठी रहती थी ; एक प्रचलित रस्म के अनुरूप नवागत अतिथि उसके पास आते, बहुत झुककर उसका अभिवादन करते और बाद में कोई भी उसमें दिलचस्पी न लेता। सारे शहर को ही वह अपने यहां आमंत्रित करती, कड़ाई से आचार-व्यवहार को निभा - ती और किसी को भी चेहरे से न जानती -पहचानती। उसकी हवेली और बाहर बने क्वार्टरों में रहने वाले अनेक नौकर-चाकर, जिनकी चर्बी बढ़ती जाती थी और बाल सफ़ेद होते जाते थे, जैसा चाहते थे, वैसा करते थे और मरणासन्न बुढ़िया को अधिक से अधिक लूटने के मामले में एक-दूसरे से होड़ लेते थे । लीज़ावेता इवानोव्ना घरेलू यातनायें- यन्त्रणायें सहती थी । वह चाय का प्याला बनाती तो फ़ालतू चीनी खर्च करने के लिये उसे डांटा-डपटा जाता ; वह उपन्यास पढ़कर सुनाती, तो लेखक की सभी ग़लतियों के लिये उसे ही दोषी ठहराया जाता, काउंटेस के सैर-सपाटे के समय वह उसके साथ रहती और मौसम तथा सड़क की खराबी के लिये भी जवाबदेह होती । उसका वेतन नियत था जो उसे कभी पूरा नहीं मिलता था, लेकिन उससे यह मांग की जाती थी कि वह सभी की तरह पहने ओढ़े यानी बहुत कम लोगों की तरह । ऊंचे समाज में उसकी भूमिका बहुत ही दयनीय होती थी । उसे सभी जानते थे, मगर कोई भी उसकी तरफ़ ध्यान नहीं देता था ; बॉल- नृत्यों में वह केवल तभी नाचती थी जब vis-á-vis (नृत्य -संगिनी - फ़्रांसीसी ) न मिलती और महिलायें हर बार ही, जब उन्हें अपने साज- सिंगार में कुछ ठीक- ठाक करना होता, उसका हाथ थामकर उसे अपने साथ शृंगार-कक्ष में ले जातीं। वह स्वाभिमानी थी, अपनी स्थिति के बारे में पूरी तरह सजग थी और इसलिये अपने इर्द-गिर्द नज़र डालती हुई बड़ी बेसब्री से ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ती रहती जो उसे इस हालत से उबार सके । किन्तु अपने लाभ के फेर में पड़े हुए दम्भी जवान लोग उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते थे, यद्यपि लीज़ावेता इवानोव्ना उन गुस्ताख और निठुर युवतियों की तुलना में कहीं अधिक प्यारी थी, जिनके गिर्द वे मंडराते रहते थे। कितनी बार बड़े ही ठाठदार, मगर ऊब भरे मेहमानखाने से दबे पांव निकलकर वह अपने मामूली से कमरे में जाकर रोने लगती, जहां काग़ज़ की दीवारी छींट से मढ़ी हुई लकड़ी की ओटें थीं, अलमारी थी, छोटा-सा दर्पण और रंगा हुआ पलंग था और जहां तांबे के शमा- दान में एक ही बत्ती धीमी-धीमी जलती रहती थी !
एक बार – यह इस उपन्यासिका के आरम्भ में वर्णित रात के दो दिन बाद और उस दृश्य के, जिसका हमने अभी उल्लेख किया है, एक सप्ताह पहले हुआ - लीज़ावेता इवानोव्ना ने खिड़की के पास बैठे और कशीदाकारी करते हुए संयोग से बाहर सड़क पर नज़र डाली और एक जवान फ़ौजी इंजीनियर को निश्चल तथा अपनी खिडकी पर नज़र टिकाये खड़ा देखा । लीज़ा ने सिर झुका लिया और फिर से कढ़ाई करने लगी। पांच मिनट बाद उसने फिर से उधर देखा - जवान अफ़सर उसी जगह पर खड़ा हुआ था। राह चलते अफ़सरों के साथ आंखें लड़ाने की आदत न होने के कारण उसने सड़क की ओर देखना बन्द कर दिया और सिर ऊपर उठाये बिना लगभग दो घण्टों तक अपने काम में लगी रही। दोपहर के भोजन का समय हो गया । वह उठी, कशीदाकारी का सामान समेटने लगी और अनचाहे ही सड़क की ओर देख लेने पर उसे फिर से वही अफ़सर वहां खड़ा दिखाई दिया। उसे यह काफ़ी अजीब-सा लगा। दिन के भोजन के बाद कुछ परेशानी - सी महसूस करते हुए वह खिड़की के पास गई, किन्तु अफ़सर वहां नहीं था - और वह उसके बारे में भूल गयी ।
दो दिन बाद, काउंटेस के साथ बग्घी में बैठने के लिये बाहर आने पर उसने उसे फिर से देखा । वह ऊदबिलाव की खाल के कालर से अपना चेहरा ढंके हुए दरवाज़े के पास ही खड़ा था और टोप के नीचे से उसकी काली आंखें चमक रही थीं । कारण न जानते हुए लीज़ावेता इवानोव्ना डर गयी और ऐसी धड़कन अनुभव करते हुए, जिसे स्पष्ट करना सम्भव नहीं था, बग्घी में बैठ गयी।
घर लौटते ही वह खिड़की की तरफ़ भागी गई - अफ़सर उस पर आंखें जमाये पहले वाली जगह पर खड़ा था। जिज्ञासा से व्यथित और ऐसी भावना से विह्वल, जो उसके लिये सर्वथा नई थी, वह खिड़की से पीछे हट गयी ।
इस समय से एक भी ऐसा दिन नहीं बीतता था कि यह जवान अफ़सर नियत समय पर इनके घर की खिड़की के नीचे प्रकट न हो। इन दोनों के बीच एक अनजाना सम्बन्ध-सूत्र स्थापित हो गया । अपनी जगह पर बैठकर काम करते हुए वह उसका निकट आना अनुभव कर लेती, सिर ऊपर उठाती और हर दिन अधिकाधिक देर तक उसकी ओर देखती रहती। ऐसा लगता कि जवान अफ़सर इसके लिये उसके प्रति कृतज्ञता अनुभव करता था। जवानी की पैनी दृष्टि से वह यह देखे बिना न रहती कि जब उनकी नज़रें मिलतीं, तो जवान के पीले गालों पर झटपट सुर्खी दौड़ जाती। एक हफ्ते बाद वह उसकी ओर देखकर मुस्करा दी ...
तोम्स्की ने अपने मित्र का परिचय करवाने के लिये जब काउंटेस से अनुमति चाही थी, तो इस बेचारी लड़की का दिल धड़क उठा था । किन्तु यह मालूम होने पर कि नारूमोव इंजीनियर नहीं, गार्डों की घुड़सेना का अफ़सर है, उसे इस बात का अफ़सोस हुआ कि अनुचित प्रश्न पूछकर उसने चंचल तोम्स्की के सामने अपना राज़ खोल दिया था ।
हेर्मन्न रूस में ही रह जानेवाले एक जर्मन का बेटा था, जो उसके लिये बहुत छोटी-सी पूंजी छोड़ गया था। अपनी आत्म-निर्भरता को सुदृढ़ करने की आवश्यकता के बारे में पक्का विश्वास होने के कारण हेर्मन्न अपनी पूंजी का सूद तक भी नहीं लेता था, केवल वेतन पर गुज़ारा करता था और अपने दिल की कोई छोटी-सी सनक - तरंग भी पूरी नहीं करता था। वैसे वह अपने ही में बन्द और महत्त्वाकांक्षी था और उसके साथियों को उसकी अत्यधिक मितव्ययता की खिल्ली उड़ाने का बहुत ही कम मौक़ा मिलता था । वह बहुत ही भावावेशी और प्रबल कल्पना- शक्ति का धनी था, किन्तु उसकी दृढ़ता ने उसे जवानी की सामान्य भूलों-भ्रांतियों से बचा लिया। उदाहरण के लिये, यद्यपि उसकी आत्मा में जुए का शौक़ घर किये बैठा था, वह कभी पत्ते हाथ में नहीं लेता था, क्योंकि यह हिसाब लगाता था कि उसकी सम्पत्ति उसे इस बात की अनुमति नहीं देती थी ( उसी के शब्दों में ) " कि वह कुछ फ़ालतू पाने की उम्मीद में उसे भी क़र्बान कर दे जो एकदम ज़रूरी है " - और फिर भी वह सारी-सारी रात जुए की मेज़ों के पास बैठा हुआ खेल के उतार-चढ़ावों को बड़ी उत्तेजना से देखता रहता ।
तीन पत्तों के क़िस्से ने उसकी कल्पना को अत्यधिक प्रभावित किया और सारी रात वह उसके दिमाग़ से नहीं निकला । " कैसा रहे, " अगली शाम को पीटर्सबर्ग में घूमते हुए वह सोचता रहा, “कैसा रहे, अगर बूढ़ी काउंटेस मेरे सामने अपना राज़ खोल दे ! या फिर निश्चित रूप से जीतनेवाले तीन पत्ते ही मुझे बता दे ! मैं अपनी क़िस्मत क्यों न आज़माकर देखूं ?.. उससे जान-पहचान करूं, उसका कृपा-पात्र बन जाऊं – शायद उसका प्रेमी हो जाऊं - लेकिन इस सब के लिये तो वक़्त चाहिये - और उसकी उम्र है सत्तासी साल - वह एक हफ्ते बाद, दो दिन बाद भी मर सकती है ! .. और फिर खुद वह क़िस्सा भी ? .. उसपर यकीन किया जा सकता है ? नहीं! मितव्ययता, संयतता और श्रमप्रियता – यही भरोसे के मेरे तीन पत्ते हैं, यही मेरी पूंजी को तिगुना, सात गुना कर सकते हैं और मुझे चैन तथा स्वावलम्बिता प्रदान कर सकते हैं! "
इसी तरह से सोच-विचार करते हुए वह पीटर्सबर्ग की एक मुख्य सड़क पर प्राचीन वास्तुकला वाले एक घर के सामने जा निकला । सड़क बग्घियों से अटी पड़ी थी और जगमगाते दरवाज़े के सामने एक के बाद एक बग्घी आकर रुक रही थी । बग्घियों में से हर क्षण किसी जवान सुन्दरी का नाज़ुक पांव या छनकती एड़ी वाला घुटनों तक का जूता, या किसी राजदूत की धारीदार लम्बी जुराब और फैंसी जूता बाहर आता। फ़र-कोट और बरसातियां अपनी झलक दिखाती हुई ठाठदार दरबान के पास से गुज़रती । हेर्मन्न यहां रुक गया ।
"यह किसका घर है ?" उसने नुक्कड़ वाले पुलिसमैन से पूछा ।
" काउंटेस... का " पुलिसमैन ने जवाब दिया ।
हेर्मन्न का दिल धड़क उठा। अनूठा क़िस्सा फिर से उसकी कल्पना में सजीव हो गया । वह इस घर की स्वामिनी और उसकी अद्भुत क्षमताओं के बारे में सोचता हुआ इसके आस-पास आने-जाने लगा । अपने साधारण- से निवासस्थान पर वह काफ़ी रात गये लौटा देर तक सो नहीं सका और जब नींद उस पर हावी हो गयी, तो सपने में उसे पत्ते, हरे मेज़पोश से ढकी मेज़, नोटों की गड्डियां और सोने की मुद्राओं के ढेर नज़र आये। वह एक के बाद एक पत्ता चलता था, दृढ़ता से दांव दुगुने करता जाता था, लगातार जीतता था, सोने की मुद्राओं के ढेरों को अपनी तरफ़ खिसका लेता था और जेबों में नोट ठूंसता जाता था। काफ़ी देर से सुबह उठने पर उसने अपनी काल्पनिक दौलत के खो जाने के कारण गहरी सांस ली, फिर से शहर का चक्कर लगाने चल दिया और पुनः अपने को काउंटेस ... के घर के सामने पाया । कोई रहस्यमयी शक्ति मानो उसे उस घर की ओर खींच ले जाती थी । वह रुका और खिड़कियों की तरफ़ देखने लगा । एक खिड़की के पीछे उसे काले बालोंवाला सिर दिखाई दिया जो सम्भवतः किसी किताब या काम पर झुका हुआ था । सिर ऊपर को उठा । हेर्मन्न को ताज़गी लिये हुए चेहरा और काली आंखें नज़र आईं। इस क्षण ने उसके भाग्य का निर्णय कर दिया ।
(३)
Vous m'écrives, mon ange, des
lettres de quatre pages plus
vite que je ne puis les lire.1
(पत्र-व्यवहार)
1. मेरे फ़रिश्ते, मैं जितनी जल्दी उन्हें पढ़ पाता हूं, तुम चार-चार पृष्ठों की चिट्ठियां मुझे उससे कहीं ज़्यादा जल्दी लिखती हो ( फ्रांसीसी ) ।
लीज़ावेता इवानोव्ना ने चोग़ा और टोपी उतारे ही थे कि काउंटेस ने उसे बुलवा भेजा और फिर से बग्घी तैयार करवाने का आदेश दिया । वे बग्घी में बैठने के लिये गयीं । जब दो नौकर बूढ़ी काउंटेस को उठा- कर बग्घी के दरवाज़े में घुसेड़ रहे थे, लीज़ावेता इवानोव्ना को बग्घी के पहिये के बिल्कुल निकट ही अपना इंजीनियर दिखाई दिया; इंजी- नियर ने उसका हाथ पकड़ लिया; डर के मारे लीज़ा की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी, जवान अफ़सर ग़ायब हो गया और एक पत्र लीज़ा के हाथ में रह गया । लीज़ा ने उसे अपने दस्ताने में छिपा लिया और रास्ते भर उसे किसी बात की कोई सुध-बुध ही न रही । बग्घी में जाते हुए काउंटेस को लगातार कुछ न कुछ पूछते जाने की आदत थी : हमारे निकट से अभी कौन गुज़रा था ? - इस पुल का क्या नाम है ? – वहां साइनबोर्ड पर क्या लिखा है ? लीज़ावेता इवानोव्ना ने हर बार ही अटकल-पच्चू और असंगत जवाब दिये। इससे काउंटेस की झल्लाहट बढ़ती गयी ।
"तुम्हें क्या हो गया है, री ? तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं चल नि- कला ? तुम या तो मेरी बात सुनती नहीं हो या समझती नहीं हो ? .. भगवान की कृपा से मैं न तो तुतलाती हूं और न ही अभी मेरी अक़्ल ने जवाब दिया है !"
लीज़ावेता इवानोव्ना उसे सुन ही नहीं रही थी । घर लौटने पर वह अपने कमरे में भाग गयी, उसने दस्ताने में से पत्र निकाला जो मुहरबन्द नहीं था । लीज़ावेता इवानोव्ना ने उसे पढ़ा। पत्र में प्यार की स्वीकृति थी : उसमें कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति थी, वह आदरपूर्ण था तथा शब्दशः किसी जर्मन उपन्यास से नक़ल किया गया था । पर चूंकि लीज़ावेता इवानोव्ना जर्मन भाषा नहीं जानती थी, इसलिये उसे इस पत्र से बहुत खुशी हुई ।
किन्तु साथ ही इस पत्र से वह बड़ी बेचैन भी हो उठी। ज़िन्दगी में पहली बार एक जवान मर्द के साथ उसके गुप्त और घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो रहे थे। उसके ऐसे साहस से वह दहल उठी। अपनी गति - विधि की असावधानी के लिये उसने अपनी भर्त्सना की और यह नहीं समझ पा रही थी कि वह क्या करे - खिड़की के पास बैठना छोड़ दे और लापरवाही दिखाकर आगे के लिये जवान अफ़सर के जोश पर पानी डाल दे ? उसे उसका पत्र लौटा दे ? रुखाई और दृढ़ता से उसे जवाब दे दे ? वह किसी के साथ भी सलाह-मशविरा नहीं कर सकती थी, उसकी न तो सहेलियां थीं और न ही कोई संरक्षिका । लीज़ावेता इवानोव्ना ने उत्तर देने का निर्णय किया ।
वह लिखने की मेज़ पर बैठ गयी, उसने काग़ज़ - क़लम सामने रखे और सोच में डूब गयी। उसने कई बार अपना पत्र शुरू किया और उसे फाड़ डाला – कभी तो वह उसे बहुत कोमल और कभी बहुत कठोर प्रतीत हुआ । आखिर वह ऐसी कुछ पंक्तियां लिखने में सफल हो गयी जिनसे उसे सन्तोष हुआ । “ मुझे विश्वास है, ” उसने लिखा, " कि आपका इरादा नेक है, कि आप अच्छी तरह से सोचे-समझे बिना कोई क़दम उठाकर मेरे दिल को ठेस नहीं लगाना चाहते हैं, लेकिन हमारी जान-पहचान की इस तरह से शुरुआत नहीं होनी चाहिये । आपका पत्र लौटा रही हूं और आशा करती हूं कि भविष्य में आप मुझे अकारण अनादर की शिकायत करने का मौक़ा नहीं देंगे ।"
अगले दिन हेर्मन्न को आते देखकर लीज़ा कशीदाकारी छोड़कर उठी, साथ के बड़े कमरे में गयी, उसने खिड़की का ऊपरी भाग खोला और जवान अफ़सर की चुस्ती-फुर्ती पर भरोसा करते हुए पत्र नीचे फेंक दिया । हेर्मन्न भागकर आया, उसने पत्र उठा लिया और मिठाइयों की दुकान में जाकर उसे खोला। उसे उसमें अपना और लीज़ावेता इवानोव्ना का पत्र मिला । उसे ऐसी ही आशा थी और वह अपनी इस साज़िशी कार्रवाई में बेहद खोया हुआ घर लौटा।
इसके तीन दिन बाद फ़ैशन की दुकान से चंचल आंखोंवाली एक लड़की लीज़ावेता इवानोव्ना के पास एक रुक़्क़ा लेकर आई ।
लीज़ावेता इवानोव्ना ने मन में यह घबराहट अनुभव करते हुए कि उससे बिल चुकाने की मांग की गयी होगी, लिफ़ाफ़ा खोला और सहसा हेर्मन्न की लिखावट पहचान ली ।
"मेरी प्यारी, तुमसे भूल हो गयी है, यह रुक़्क़ा मेरे नाम नहीं है।"
"नहीं, आप ही के नाम है !" साहसी लड़की ने शरारतभरी मुस्कान को छिपाये बिना जवाब दिया । " इसे पढ़ने की कृपा कीजिये ! "
लीज़ावेता इवानोव्ना ने रुक्के पर जल्दी से नज़र डाल ली । हेर्मन्न ने मिलन की मांग की थी ।
"ज़रूर भूल हुई है !” मिलन की मांग के उतावलेपन और हेर्मन्न द्वारा उपयोग में लाये गये तरीक़े से भयभीत होकर लीज़ावेता इवानोव्ना ने कहा । "सम्भवतः यह मेरे नाम नहीं लिखा गया है !" और उसने पत्र के छोटे-छोटे टुकड़े कर डाले ।
"अगर आपके नाम नहीं था, तो आपने इसे फाड़ा क्यों ? " लड़की ने प्रश्न किया, "मैं इसे उसी को लौटा देती जिसने भेजा था । "
"कृपया प्यारी, भविष्य में मेरे पास पत्र नहीं लाइयेगा, ” लड़की की टिप्पणी पर भड़कते हुए लीज़ावेता इवानोव्ना ने कहा । “ इसके अलावा जिसने तुम्हें भेजा है, उससे यह कह देना कि उसे शर्म आनी चाहिये ..."
किन्तु हेर्मन्न हतोत्साहित नहीं हुआ । लीज़ावेता इवानोव्ना को किसी न किसी ढंग से हर दिन ही उसका पत्र मिलता । अब ये पत्र जर्मन से अनूदित नहीं होते थे । हेर्मन्न भावनाओं से ओत-प्रोत होकर लिखता और अपनी ही भाषा का उपयोग करता: उनमें उसकी दृढ़ इच्छा और बेलगाम कल्पना की उड़ान की गड़बड़ भी अभिव्यक्त होती । लीज़ावेता इवानोव्ना अब उन्हें लौटाने की बात भी नहीं सोचती वह उनके रस में डूब-डूब जाती, उनके उत्तर देने लगी और उसके पत्र हर दिन अधिका- धिक लम्बे और प्यारभरे होते गये। आखिर उसने खिड़की से निम्न पत्र उसके नाम फेंका -
"आज ... राजदूत के यहां बाल नृत्य है। काउंटेस वहां जायेंगी । हम दो बजे तक वहां रहेंगी। मुझसे एकान्त में मिलने का आपके लिये यह अच्छा मौक़ा है। काउंटेस के जाते ही उनके नौकर-चाकर भी निश्चय ही चले जायेंगे, ड्योढ़ी में सिर्फ़ दरबान ही रह जायेगा और वह भी आम तौर पर अपने छोटे से कमरे में चला जाता है । साढ़े ग्यारह बजे आइये । सीधे सीढ़ियां चढ़ जाइये। अगर प्रवेश-कक्ष में कोई मिल जाये, तो पूछिये कि काउंटेस घर पर हैं या नहीं । यह जवाब मिलने पर कि नहीं हैं, आपके सामने कोई चारा नहीं रह जायेगा । आपको लौटना पड़ेगा। अधिक सम्भावना तो इसी बात की है कि आपको कोई नहीं मिलेगा। नौकरानियां एक ही कमरे में बैठी रहती हैं। प्रवेश - कक्ष से बायें को मुड़ जाइये और काउंटेस के शयन कक्ष में पहुंच जाने तक सीधे ही चलते जाइये। शयन कक्ष में पर्दों के पीछे आपको छोटे-छोटे दो दरवाज़े दिखाई देंगे : दायां दरवाज़ा अध्ययन कक्ष की ओर ले जाता है, जहां काउंटेस कभी नहीं जातीं; बायां दरवाज़ा बरामदे की ओर खुलता है और वहीं एक संकरा - सा घुमावदार जीना है - इसे चढ़कर मेरे कमरे में पहुंचा जा सकता है । "
नियत समय की प्रतीक्षा करते हुए हेर्मन्न बाघ की तरह बेचैनी अनुभव कर रहा था। रात के दस बजने पर वह काउंटेस के घर के सामने जाकर खड़ा भी हो गया था। मौसम बहुत ही बुरा था - हवा चीख - चिंघाड़ रही थी, कच्ची - गीली बर्फ़ के बड़े-बड़े फाहे से गिर रहे थे, सड़क के लैम्प मद्धिम - सी रोशनी छिटका रहे थे और सड़कें सुनसान थीं। कभी-कभी किराये की बग्घी वाला कोचवान अपनी मरियल-सी घोड़ी को इस आशा में इधर-उधर हांकता दिखाई दे जाता कि शायद देर से घर को लौटनेवाली कोई सवारी मिल जाये । हेर्मन्न सिर्फ़ फ्राक - कोट पहने था और न तो हवा और न बर्फ़ का ही असर महसूस कर रहा था। आखिर काउंटेस की बग्घी दरवाज़े के सामने आकर खड़ी हो गयी । हेर्मन्न ने झुकी पीठ वाली बुढ़िया को, जो सेबल का फ़र-कोट पहने थी, सहारा देकर नौकरों द्वारा बाहर लाते और उसके पीछे-पीछे हल्का-सा ओवरकोट पहने और बालों में फूल खोंसे उसकी युवा संगिनी को उसके पीछे-पीछे आते देखा । बग्घी के दरवाज़े बन्द कर दिये गये । नर्म बर्फ़ पर बग्घी मुश्किल से आगे बढ़ी । दरबान ने घर का दरवाज़ा बन्द कर दिया। खिड़कियों से रोशनी ग़ायब हो गयी । हेर्मन्न सूने हो गये घर के सामने आने-जाने लगा । लैम्प के पास जाकर उसने घड़ी पर नज़र डाली - ग्यारह बजकर बीस मिनट हुए थे । घड़ी की सूई पर दृष्टि टिकाये हुए सड़क की बत्ती के नीचे ही खड़ा रहकर वह शेष मिनटों के बीतने का इन्तज़ार करने लगा। ठीक साढ़े ग्यारह बजे हेर्मन्न काउंटेस के घर का दरवाज़ा लांघकर रोशनी से जगमगाती ड्योढ़ी में दाखिल हुआ। दरबान नहीं था । हेर्मन्न भागते हुए सीढ़ियां चढ़ गया, उसने प्रवेश कक्ष का दरवाज़ा खोला और वहां पुराने ढंग की, जहां-तहां चिकने धब्बे लगी आरामकुर्सियों पर एक नौकर को लैम्प के नीचे सोते पाया । हल्के और दृढ़ क़दम रखते हुए हेर्मन्न उसके पास से निकल गया । हाल और मेहमानखाने में अंधेरा था। प्रवेश- कक्ष की बहुत ही हल्की-सी रोशनी इसमें आ रही थी । हेर्मन्न ने शयन- कक्ष में प्रवेश किया । देव-प्रतिमाओं के कोने के सामने सोने का लैम्प जल रहा था । बेल-बूटेदार बदरंग कपड़े से मढ़ी आरामकुर्सियां और रोयें भरे तकियोंवाले सोफ़े, जिन पर से जहां-तहां सुनहरा रंग उतर चुका था, चीनी काग़ज़ी छींट से सजी दीवारों के साथ-साथ मातमी - सी तरतीब में रखे हुए थे। दीवार पर m-me Lebrun1 द्वारा पेरिस में बनाये गये दो छविचित्र टंगे हुए थे । एक चित्र तो कोई चालीसेक साल के लाल-लाल गालों और गदराये बदन वाले पुरुष का था जो हल्के हरे रंग की वर्दी पहने था और उसकी छाती पर सितारा दिख रहा था। दूसरा चित्र था शुक नासिका वाली जवान सुन्दरी का जिसके बाल कनपटियों पर संवरे हुए थे और गुलाब का फूल पाउडर लगे बालों की शोभा बढ़ा रहा था। सभी कोनों में चीनी मिट्टी की बनी चरवाहिनों की मूर्तियां, प्रसिद्ध Leroy द्वारा बनायी गयी मेज़- घड़ियां, सजावटी मंजूषिकायें, खेलने के चक्र, पंखे और महिलाओं के मनबहलाव के ऐसे खिलौने रखे हुए थे जिनका पिछली शताब्दी के अन्त में मोंटगोलफ़ियर के गुब्बारे2 तथा मेस्मेर के चुम्बकत्व3 सहित आविष्कार किया गया था । हेर्मन्न पर्दों के पीछे गया । उनके पीछे लोहे का छोटा- सा पलंग था, दायीं ओर अध्ययन कक्ष का दरवाज़ा था तथा बायीं ओर बरामदे की तरफ़ ले जानेवाला दरवाज़ा । हेर्मन्न ने बायीं ओर का दरवाज़ा खोला और उसे वह संकरा तथा घुमावदार जीना दिखाई दिया जिसे चढ़कर बेचारी लीज़ावेता इवानोव्ना के कमरे में पहुंचा जा सकता था ... लेकिन वह लौटा और अंधेरे अध्ययन कक्ष में चला गया ।
1. फ़्रांसीसी चित्रकार महिला, छविचित्रकार ( १७५५ - १८४२ ) । - सं०
2. फ़्रांसीसी आविष्कारक मोंटगोलफ़ियर बन्धुओं ने जून १७८३ में गर्म धुएं से भरा हुआ काग़ज़ी गुब्बारा पहली बार उड़ाया । - सं०
3. यहां आस्ट्रिया के डाक्टर फ़ान्त्स मेस्मेर ( १७३४ - १८१५ ) के इस सिद्धान्त से अभिप्राय है कि हर व्यक्ति में " जीवयुक्त चुम्बकत्व होता है जो लोगों को प्रभावित कर सकता है । - सं०
वक़्त बहुत धीरे-धीरे बीत रहा था। सभी ओर खामोशी छाई थी। मेहमानखाने में घड़ी ने बारह बजाये, एक के बाद एक सभी कमरों की घड़ियां टनटना उठीं और फिर से सब कुछ शान्त हो गया । हेर्मन्न ठण्डी अंगीठी का सहारा लिये खड़ा था। वह शान्त था, उसका हृदय उस व्यक्ति के दिल की तरह समगति से धड़क रहा था जो कोई खतर- नाक, लेकिन ज़रूरी काम करने का फ़ैसला कर लेता है । घड़ियों ने रात का एक और फिर दो बजाये और हेर्मन्न को दूरी से बग्घी के आने की आवाज़ सुनाई दी । अनचाहे ही उसका मन उद्विग्न हो उठा । बग्घी घर के सामने आकर रुक गयी । उसे बग्घी से नीचे उतरने की आवाज़ सुनाई दी। घर में हलचल मच गयी। लोग भागते हुए आये, आवाज़ें गूंज उठीं और घर रोशन हो उठा। अधेड़ उम्र की तीन नौकरा- नियां भागी हुई सोने के कमरे में आयीं और थकान से बेहाल काउंटेस कमरे में दाखिल होकर ऊंची टेकवाली आरामकुर्सी में ढह पड़ी । हेर्मन्न पर्दे के पीछे से झांक रहा था । लीज़ावेता इवानोव्ना उसके पास से गुज़री । हेर्मन्न को सुनाई दिया कि कैसे वह जल्दी-जल्दी अपने कमरे की ओर जानेवाले जीने पर चढ़ी । उसकी आत्मा ने मानो उसे धिक्कारा और जल्द ही यह आवाज़ शान्त हो गई । वह जैसे पत्थर की तरह कठोर हो गया ।
काउंटेस दर्पण के सामने अपने कपड़े उतारने लगी। नौकरानियों ने पिनें निकालकर गुलाबों से सजी उसकी टोपी और पके तथा छोटे- छोटे कटे बालोंवाले सिर से पाउडर लगा विग उतारा । पिनें बारिश की तरह उसके आस-पास गिर रही थीं । रुपहली कढ़ाई वाला पीला फ़ाक उसके सूजे पैरों पर जा गिरा । हेर्मन्न उसके श्रृंगार के घृणित रहस्यों को देख रहा था । आखिर काउंटेस सोने के गाउन और टोपी में रह गयी। उसके बुढ़ापे के अधिक अनुरूप इस पोशाक में वह कम भयानक और कम भद्दी प्रतीत हो रही थी ।
सभी बूढ़े लोगों की तरह काउंटेस भी अनिद्रा रोग से पीड़ित थी । कपड़े उतारने के बाद वह खिड़की के पास ऊंची टेक वाली आराम- कुर्सी पर बैठ गयी और उसने नौकरानियों को जाने का आदेश दिया । जलती मोमबत्तियोंवाले शमादान भी बाहर ले जाये गये और कमरे में फिर से केवल देव - प्रतिमाओं के सामने जल रहे दीप का प्रकाश रह गया । एकदम पीली-ज़र्द काउंटेस अपने अधरों को हिलाती और दायें-बायें डोलती हुई बैठी थी । उसकी धुंधली धुंधली आंखें मानो सर्वथा भावहीन थीं । उसे देखते हुए ऐसा सोचा जा सकता था कि इस भयानक बुढ़िया का दायें-बायें डोलना उसकी अपनी इच्छा का नहीं, बल्कि किसी प्रेरक प्रक्रिया के प्रभाव का परिणाम है।
इस मृतप्राय चेहरे पर सहसा अवर्णनीय परिवर्तन हो गया। होंठों ने हिलना-डुलना बन्द कर दिया, आंखों में चमक आ गयी एक अपरिचित पुरुष काउंटेस के सामने खड़ा था ।
" डरिये नहीं, भगवान के लिये डरिये नहीं ! " हेर्मन्न ने स्पष्ट और धीमी आवाज़ में कहा । " आपको किसी तरह की हानि पहुंचाने का मेरा कतई इरादा नहीं । मैं आपसे केवल एक कृपा का अनुरोध करने आया हूं।"
बुढ़िया चुपचाप उसकी ओर देख रही थी और ऐसे लगता था मानो उसने उसकी बात ही न सुनी हो । हेर्मन्न ने कल्पना की कि वह बहरी है और उसके कान पर झुककर उसने फिर से अपने वही शब्द दोहराये। बुढ़िया पहले की तरह ही ख़ामोश रही ।
"आप मेरी ज़िन्दगी को बहुत सुखी बना सकती हैं, " वह कहता गया, "और आपको इसके लिये कुछ भी तो नहीं करना पड़ेगा : मुझे मालूम है कि आप ऐसे तीन पत्ते बता सकती हैं जिन्हें लगातार एक के बाद एक खेला जा सकता है..."
हेर्मन्न चुप हो गया । उसे लगा मानो काउंटेस समझ गयी है कि उससे किस बात की अपेक्षा की जा रही है ; वह अपने उत्तर के लिये शब्द ढूंढ़ती - सी दिखाई दी ।
"यह तो मज़ाक़ था, " उसने आखिर जवाब दिया, क़सम खाकर कहती हूं ! यह मज़ाक़ था ! "
"यह मज़ाक़ की बात नहीं है, " हेर्मन्न ने झल्लाते हुए आपत्ति की । "चाप्लीत्स्की को याद कीजिये जिसे आपने हारी हुई रक़म वापस जीतने में मदद दी थी ।"
काउंटेस स्पष्टतः बेचैनी महसूस कर रही थी। उसके चेहरे से यह पता चल रहा था कि उसके भीतर कोई भारी उथल-पुथल हो रही है, किन्तु उसमें शीघ्र ही पहले जैसी उदासीनता - निर्जीवता आ गयी ।
"आप मुझे पूरे भरोसे के तीन पत्ते बता सकती हैं ? " हेर्मन्न ने अपनी बात जारी रखी।
काउंटेस खामोश रही । हेर्मन्न कहता गया -
"किसके लिये छिपाये रखना चाहती हैं आप अपना राज़ ? नाती- पोतों के लिये ? वे तो वैसे ही बड़े मालदार हैं, पैसा क्या क़ीमत रखता है, उन्हें यह मालूम नहीं । आपके तीन पत्ते धन उड़ाने-लुटाने- वालों की कोई मदद नहीं कर सकते। अपने बाप से मिली विरासत को ही जो नहीं सहेज सकता, वह एड़ी-चोटी का जोर लगाने पर भी कौड़ी - कौड़ी को मुहताज होकर मरेगा । मैं उड़ाऊ - लुटाऊ नहीं हूं, पैसे की क़ीमत जानता हूं। आपके बताये हुए तीन पत्ते मेरे लिये बेकार नहीं जायेंगे। तो बताइये न ! .."
हेर्मन्न रुका और धड़कते दिल से उसके जवाब का इन्तज़ार करने लगा। काउंटेस ख़ामोश रही । हेर्मन्न घुटनों के बल हो गया।
"अगर आपके हृदय ने कभी प्रेम-भावना को जाना है, अगर आपको उसके उल्लास का स्मरण है, अगर आप नवजात शिशु का रोना सुनकर एक बार भी मुस्करायी हैं, अगर आपके दिल में कभी कोई मानवीय धड़कन - स्पन्दन हुआ है, तो एक पत्नी प्रेयसी और मां की भावनाओं के नाम पर आपकी मिन्नत करता हूं, जीवन में जो कुछ पवित्र पावन है, उसके नाम पर अनुरोध करता हूं कि मेरी प्रार्थना को नहीं ठुकराइये ! – मेरे सामने अपना रहस्य खोल दीजिये ! आपको उसे छिपाये रखकर क्या लेना है ?.. हो सकता है कि उसका किसी भयानक पाप के साथ सूत्र जुड़ा हुआ हो, वह शाश्वत सुख से वंचित हो, शैतान के साथ उसने कोई सांठ-गांठ कर रखी हो . सो- चिये तो आप बूढ़ी हैं, बहुत दिन नहीं जीना है आपको, आपके पापों को मैं अपनी आत्मा पर लेने को तैयार हूं। सिर्फ़ अपना राज़ मुझे बता दीजिये । सोचिये तो, एक व्यक्ति का सुख-सौभाग्य आपके हाथों में है, केवल मैं ही नहीं, मेरे बेटे-बेटियां पोते-पोतियां और परपोते-परपोतियां भी आपकी स्मृति का यशोगान करेंगे और उसे पावन मानेंगे ... "
बुढ़िया ने जवाब में एक भी शब्द नहीं कहा ।
हेर्मन्न उठकर खड़ा हो गया ।
"बूढ़ी डायन ! " वह दांत पीसते हुए चिल्ला उठा, “मैं तुझे जवाब देने को मजबूर कर दूंगा ..."
इतना कहकर उसने जेब से पिस्तौल निकाल ली ।
पिस्तौल देखकर काउंटेस ने दूसरी बार बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया प्रकट की। उसने सिर पीछे को झटका और हाथ ऐसे ऊपर उठा लिया मानो अपने को गोली के निशाने से बचाना चाहती हो इसके बाद उसने आरामकुर्सी की टेक पर अपनी पीठ टिका दी... और निश्चल हो गयी ।
"यह खिलवाड़ बन्द कीजिये," उसका हाथ अपने हाथ में लेकर हेर्मन्न ने कहा । " आखिरी बार पूछ रहा हूं - अपने तीन पत्ते मुझे बताना चाहती हैं या नहीं ? हां या नहीं ?"
काउंटेस ने कोई जवाब नहीं दिया । हेर्मन्न ने देखा कि वह मर चुकी है ।
(४)
7 Mai 18..
Homme sans moeurs et sans religion!1
(पत्र-व्यवहार)
1. ७ मई, १८.. । ऐसा व्यक्ति, जिसके न तो कोई नैतिक सिद्धान्त हैं और जिसके लिये न कुछ पावन है ! ( फ़्रांसीसी )
लीज़ावेता इवानोव्ना अभी तक अपने कमरे में बॉल - नृत्य की पोशाक पहने और गहन विचारों में डूबी हुई बैठी थी । घर लौटने पर उसने ऊंघती-सी नौकरानी को, जिसने मन मारकर अपनी सेवा उपस्थित की थी, यह कहते हुए झटपट मुक्त कर दिया कि खुद ही कपड़े बदल लेगी और यह आशा करते, किन्तु साथ ही ऐसा न चाहते हुए कि हेर्मन्न वहां हो, अपने कमरे में धड़कते दिल से दाखिल हुई। पहली नज़र में ही उसे इस बात का यक़ीन हो गया कि हेर्मन्न वहां नहीं है और उसने उस बाधा के लिये अपने भाग्य को सराहा जिसने उनका मिलन नहीं होने दिया था। वह कपड़े उतारे बिना ही बैठ गयी और मन ही मन उन सभी परिस्थितियों को याद करने लगी, जो इतने थोड़े समय में उसे इतनी दूर तक खींच ले गयी थीं। उस दिन के बाद अभी तीन हफ्ते भी नहीं गुज़रे थे, जब उसने खिड़की में से पहली बार इस नौजवान को देखा था, वह अब उसके साथ पत्र-व्यवहार भी कर रही थी तथा उसने उससे रात्रि - मिलन की अनुमति भी प्राप्त कर ली थी ! वह केवल इसीलिये उसका नाम जानती थी कि कुछ पत्रों के नीचे उसके हस्ताक्षर थे ; उसने उसके साथ कभी बातचीत नहीं की थी, कभी उसकी आबाज नहीं सुनी थी और... आज की रात के पहले उसके बारे में कभी कुछ नहीं सुना था । अजीब मामला है ! इसी रात को तोम्स्की ने जबान प्रिंसेस पोलीना से इस बात के लिये नाराज होकर कि वह हमेशा की तरह उसके साथ नहीं, बल्कि किसी अन्य के साथ चोचलेबाजी कर रही थी, उससे बदला लेना चाहा, उसके प्रति अपनी उदासीनता दिखाते हुए लीज़ावेता इवानोव्ना को अपने संग नाचने को निमन्त्रित कर लिया और उसी के साथ अन्तहीन माज़रका नाच नाचता रहा। इंजीनियर अफ़सरों में लीज़ावेता इवानोव्ना की खास दिलचस्पी के लिये वह लगा- तार मज़ाक़ करता और यह विश्वास दिलाता रहा कि जितना वह समझती है, वह उसके बारे में उससे कहीं ज्यादा जानता है और उसके कुछ मज़ाक़ तो निशाने पर ऐसे ठीक बैठे कि लीज़ावेता इवानोव्ना ने कई बार ऐसा सोचा कि वह उसका राज जानता है ।
" किसने आपको यह सब बताया है ?" लीज़ावेता इवानोव्ना ने हंसते हुए उससे पूछा ।
" उसके मित्र ने जिसे आप जानती हैं, " तोम्स्की ने जवाब दिया, बहुत ही लाजवाब आदमी है वह ! "
"कौन है यह लाजवाब आदमी ?"
"उसका नाम हेर्मन्न है ।"
लीज़ावेता इवानोव्ना ने कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन उसके हाथ-पांव बर्फ़ की तरह ठण्डे हो गये ...
"यह हेर्मन्न, " तोम्स्की कहता गया, सचमुच ही रोमांटिक आदमी है- उसका चेहरा-मोहरा नेपोलियन जैसा है और उसकी आत्मा है मेफ़िस्टोफ़ेलिस की। मेरे ख्याल में उसकी आत्मा पर कम से कम तीन पापों का बोझ है। आपका चेहरा कैसा पीला पड़ गया है !.."
"मेरे सिर में दर्द है ... उस हेर्मन्न - या क्या नाम है उसका ? उसने आपसे क्या कहा है ? .. "
"हेर्मन्न अपने दोस्त से बहुत नाखुश है वह कहता है कि उसकी जगह उसने बिल्कुल दूसरा ही ढंग अपनाया होता ... मैं तो ऐसा मानता हूं कि खुद हेर्मन्न भी आप पर मुग्ध है। कम से कम इतना तो है ही कि अपने मित्र के प्रेमोद्गारों को सुनते हुए वह उदासीन नहीं रह पाता। "
" लेकिन उसने मुझे देखा कहां है ?"
" शायद गिरजाघर में या सैर करते हुए ! भगवान ही जाने ! शायद उस समय आपके कमरे में, जब आप सो रही थीं - उससे किसी भी बात की उम्मीद की जा सकती है ..."
इसी वक़्त तीन महिलाओं ने इनके पास आकर "Oubli ou regret?"1 प्रश्न किया और इस तरह उस बातचीत में खलल डाल दिया जो लीज़ावेता इवानोव्ना के लिये यातनापूर्ण जिज्ञासा से ओतप्रोत हो गयी थी ।
1. विस्मृति या खेद (फ़्रांसीसी) ।
तोम्स्की ने जिस महिला को चुना, वह स्वयं प्रिंसेस... ही थी । नाच के हॉल का एक चक्कर लगाने और प्रिंसेस की कुर्सी के सामने एक बार नृत्य-चक्र पूरा करने के दौरान उनके बीच सुलह हो गयी और अपनी जगह लौटने पर तोम्स्की को न तो हेर्मन्न और न लीज़ावेता इवानोव्ना में ही कोई दिलचस्पी रही थी । वह अधूरी रह गयी बातचीत को अवश्य ही फिर से आगे बढ़ाना चाहती थी, मगर माजूरका नाच ख़त्म हो गया और उसके फ़ौरन बाद ही बूढ़ी काउंटेस घर को चल दी ।
तोम्स्की के शब्द माजूरका नाच के समय होनेवाली हल्की-फुल्की गपशप के सिवा कुछ नहीं थे, किन्तु वे रोमांटिक युवती की आत्मा में गहरे उतर गये । तोम्स्की ने जो चित्र प्रस्तुत किया था, वह खुद उसके द्वारा बनाये गये चित्र से बहुत मिलता-जुलता था और नवीनतम उपन्या- सों की बदौलत यही ओछा चेहरा उसकी कल्पना को भयभीत भी करता था और मोहित भी । वह दस्तानों के बिना अपने हाथ बांधे और उघाड़ी छाती पर सिर झुकाये, जो अभी तक फूलों से सजा था, बैठी थी ... अचानक दरवाज़ा खुला और हेर्मन्न दाखिल हुआ। वह सिहर उठी ...
"आप कहां थे?” उसने सहमी-सी फुसफुसाहट में पूछा ।
बूढ़ी काउंटेस के सोने के कमरे में, " हेर्मन्न ने जवाब दिया । मैं वहीं से आ रहा हूं। काउंटेस मर गयी ।"
“हे भगवान ! .. यह आप क्या कह रहे हैं ? ..."
"और लगता है," हेर्मन्न कहता गया, “मैं ही कारण हूं उसकी मौत का ।"
लीज़ावेता इवानोव्ना ने उसकी ओर देखा और तोम्स्की के ये शब्द उसके दिमाग़ में गूंज गये उसकी आत्मा पर कम से कम तीन पापों का बोझ है! हेर्मन्न उसके निकट ही खिड़की के दासे पर बैठ गया और उसने सारा क़िस्सा कह सुनाया ।
लीज़ावेता इवानोव्ना ने कांपते दिल से उसकी पूरी बात सुनी । तो ये तीव्र भावनाओं- उद्गारों से भरे पत्र मिलन की मांग करनेवाले ज़ोरदार अनुरोध, दृढ़ता और साहसपूर्वक उसका पीछा - यह सब प्यार नहीं था ! पैसा - उसकी आत्मा पैसे की दीवानी थी ! यह वह नहीं थी जो उसकी इच्छाओं को पूरा कर सकती थी, उसे सुखी बना सकती थी ! बेचारी युवती इस लुटेरे बदमाश अपनी बूढ़ी अभिभाविका की हत्या करनेवाले की अन्धी सहायिका के सिवा कोई नहीं थी !.. देर से होनेवाले और यातनापूर्ण पश्चाताप के कारण वह फूट-फूटकर रो रही थी। हेर्मन्न उसे चुपचाप देख रहा था उसका दिल भी कसक रहा था, लेकिन न तो बेचारी लड़की के आंसू और न उसके दुख का अनूठा सौन्दर्य ही उसकी कठोर आत्मा को विह्वल कर रहा था । इस विचार से कि बुढ़िया चल बसी, उसकी आत्मा क्षुब्ध नहीं होती थी । सिर्फ़ इसी ख़्याल से उसकी आत्मा बुरी तरह दुखी थी कि अब उस राज़ का कभी पता नहीं चलेगा जिससे उसने धनी होने की आशा की थी ।
"आप राक्षस हैं ! " लीज़ावेता इवानोव्ना ने आखिर उससे कहा । “ मैंने उसकी मौत नहीं चाही थी, " हेर्मन्न ने उत्तर दिया, “पिस्तौल में गोलियां नहीं थीं ।"
दोनों ख़ामोश हो गये ।
सुबह होने लगी। लीज़ावेता इवानोव्ना ने ख़त्म होती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया – कमरे में हल्का-सा उजाला हो गया । लीज़ावेता इवा- नोव्ना ने रोने के कारण लाल हुई अपनी आंखों को पोंछा और उन्हें ऊपर उठाकर हेर्मन्न की तरफ़ देखा - वह छाती पर अपने हाथ बांधे और दहशत पैदा करनेवाले अन्दाज़ में नाक-भौंह सिकोड़े हुए खिड़की के दासे पर बैठा था। इस मुद्रा में वह अद्भुत रूप से नेपोलियन के छवि- चित्र की याद दिलाता था । इस समानता से लीज़ावेता इवानोव्ना भी दंग रह गयी।
"आप घर से बाहर कैसे जायेंगे ?” आखिर उसने पूछा । मैंने तो यह सोचा था कि गुप्त जीने से आपको बाहर ले जाऊंगी, मगर इसके लिये काउंटेस के सोने के कमरे में से गुज़रना होगा और मुझे वहां जाते डर लगता है ।"
"मुझे बता दीजिये कि इस गुप्त जीने तक कैसे पहुंचा जा सकता है और मैं खुद ही वहां से बाहर चला जाऊंगा ।"
लीज़ावेता इवानोव्ना उठी, उसने अलमारी में से चाबी निकालकर हेर्मन्न को दी और विस्तारपूर्वक उसे सब कुछ समझाया । हेर्मन्न ने लीज़ावेता इवानोव्ना का ठण्डा और उत्साहहीन हाथ दबाया, झुका हुआ सिर चूमा और कमरे से बाहर चला गया ।
घुमावदार सीढ़ी से नीचे उतरकर वह फिर से काउंटेस के सोने के कमरे में दाखिल हुआ। मृत बुढ़िया बुत बनी-सी बैठी थी, उसके चेहरे पर गहन शान्ति थी । हेर्मन्न उसके सामने रुककर उसे देर तक देखता रहा मानो भयानक सचाई के बारे में पूरी तरह विश्वास कर लेना चाहता हो । आखिर वह अध्ययन कक्ष में गया, काग़ज़ की दीवारी छींट के पीछे टटोलकर उसने दरवाज़ा ढूंढ़ा और अजीब भावनाओं से विह्वल होता हुआ अंधेरे जीने से नीचे उतरने लगा । वह सोच रहा था कि शायद साठ साल पहले कढ़ा हुआ अंगरखा पहने, à l'oiseau royal (शाही परिन्दे - फ़ांसीसी ) के ढंग से बाल संवारे, अपनी तिकोनी टोपी को छाती से चिपकाये कोई खुशक़िस्मत जवान इसी वक़्त इसी जीने से चढ़कर दबे पांव इसी शयन कक्ष में आया होगा और कभी का क़ब्र में पड़ा सड़ चुका होगा, जबकि उसकी बूढ़ी प्रेयसी के दिल की धड़कन आज बन्द हुई है...
जीने से नीचे पहुंचने पर हेर्मन्न को दरवाज़ा मिला, जिसे उसने उसी चाबी से खोला और अपने को सड़क पर ले जानेवाले संकरे गलियारे में पाया ।
(५)
इस रात को दिवंगता बैरोनेस वोन व...
मेरे सपने में आई । वह सफ़ेद पोशाक
पहने थी और बोली मुझसे, "नमस्ते,
श्रीमान कौंसिलर !"
(श्वेडेनबोर्ग)1
1. स्वीडन का रहस्यवादी दार्शनिक ( १६८८ - १७२२ ) । - सं०
उस मुसीबत की मारी रात के तीन दिन बाद हेर्मन्न सुबह के नौ बजे... गिरजे में गया, जहां मृत कांउटेस की आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना की जानेवाली थी । पश्चाताप की भावना वह अनुभव नहीं कर सकता था, लेकिन लगातार सुनाई देनेवाली आत्मा की इस आवाज़ को भी - तुमने बुढ़िया की जान ली है ! - वह पूरी तरह से दबाने में असमर्थ था। उसमें सच्ची आस्था बहुत कम थी, पूर्वाग्रह बहुत ज़्यादा थे । वह ऐसा मानता था कि परलोक सिधार जानेवाली काउंटेस उसके जीवन पर बुरा प्रभाव डाल सकती थी और इसलिये उससे क्षमा मांगने के लिये उसने उसकी अन्त्येष्टि पर जाने का फ़ैसला किया।
गिरजाघर लोगों से भरा हुआ था । हेर्मन्न बड़ी मुश्किल से लोगों के बीच से रास्ता बनाकर आगे बढ़ा। ताबूत बहुत ही बढ़िया मुर्दागाड़ी पर रखा था और उसके ऊपर मखमली छत्र था । लेसदार टोपी और साटिन का सफ़ेद फ़ाक पहने तथा छाती पर हाथ बांधे दिवंगता ताबूत में लेटी हुई थी । काली वर्दियां पहने कंधों पर फ़ीतों के कुलचिह्न लगाये तथा हाथों में मोमबत्तियां लिये घर के नौकर-चाकर, रिश्तेदार - बेटे- बेटियां, पोते-पोतियां और परपोते-परपोतियां गहरे शोक में डूबे हुए उसके चारों ओर खड़े थे। कोई भी रो नहीं रहा था - आंसू une affectation (दिखावा - फ्रांसीसी) प्रतीत होते । काउंटेस इतनी बूढ़ी थी कि उसकी मौत से किसी को हैरानी नहीं हो सकती थी और उसके रिश्तेदार एक अर्से से ही उसे बीती कहानी मानते थे । एक जवान पादरी मातमी शब्द कह रहा था। सीधी-सादी और मार्मिक भावाभिव्यक्तियों में उसने पवित्र महिला के शान्तिपूर्ण अन्त का वर्णन किया जिसके लिये जीवन के लम्बे वर्ष ईसाई के अनुरूप मृत्यु की शान्त और मर्मस्पर्शी तैयारी के समान थे । “ मौत के फ़रिश्ते ने, " पादरी ने कहा, "उसे पावन पूजा- प्रार्थना में लीन, ईसा मसीह की प्रतीक्षा में जागते पाया ।" प्रार्थना शोकपूर्ण शिष्टता के साथ समाप्त हुई। सबसे पहले रिश्तेदार मृत काउंटेस से विदा लेने के लिये आगे बढ़े। उनके बाद वे अनेक अतिथि उसके निकट गये जो एक ज़माने तक इन लोगों की चहल-पहल और रंग-रलियों में भाग लेते हुए इस महिला के प्रति श्रद्धा प्रकट करने आये थे। उनके बाद घर के सभी नौकरों-चाकरों ने विदा ली । अन्त में बूढ़ी नौकरानी, जो दिवंगता की हमउम्र थी, निकट आई। दो जवान नौकरानियां उसे सहारा दिये हुए थीं। वह धरती तक झुककर प्रणाम करने में असमर्थ थी - केवल उसी ने अपनी मालकिन का ठण्डा हाथ चूमकर कुछ आंसू बहाये । बूढ़ी नौकरानी के पश्चात हेर्मन्न ने ताबूत के निकट जाने का निर्णय किया। उसने ज़मीन पर माथा टेका और कुछ मिनट तक फ़र्श पर, जहां फ़र-वृक्ष की टहनियां बिखरी हुई थीं, पड़ा रहा । आखिर वह मृत जैसा पीला चेहरा लिये हुए उठा और उसने मुर्दागाड़ी के पायदान पर चढ़कर सिर झुकाया ... इस क्षण उसे ऐसे लगा कि मृत ने उपहास उड़ाते और एक आंख सिकोड़ते हुए उसकी तरफ़ देखा है । वह जल्दी से पीछे हटा पायदान पर अपना पांव नहीं टिका पाया और चित जा गिरा। उसे उठाया गया। इसी वक़्त लीज़ावेता इवानोव्ना को बेहोशी की हालत में ड्योढ़ी में लाया गया। इस घटना ने कुछ मिनट के लिये इस शोकपूर्ण संस्कार की गम्भीरता को भंग कर दिया। उपस्थित लोगों में दबी- घुटी - सी खुसर- फुसर सुनाई दी और एक दुबले- पतले दरबारी अफ़सर ने जो काउंटेस का निकट सम्बन्धी था, अपनी बग़ल में खड़े अंग्रेज़ को फुसफुसाकर बताया कि जवान अफ़सर काउंटेस का अवैध बेटा है और अंग्रेज़ ने जवाब में रुखाई से - 'ओह ?' कहा ।
हेर्मन दिन भर बहुत ही खिन्न रहा । किसी एकान्त से मदिरालय में भोजन करते हुए उसने अपनी आन्तरिक परेशानी पर क़ाबू पाने के लिये सामान्य से कहीं अधिक शराब पी। किन्तु शराब ने उसकी कल्पना को और अधिक तीव्रता प्रदान कर दी । घर लौटकर वह कपड़े उतारे बिना अपने बिस्तर पर जा गिरा और गहरी नींद सो गया ।
काफ़ी रात गये उसकी आंख खुली, उसके कमरे में चांदनी छिटकी हुई थी। उसने घड़ी पर नज़र डाली - रात के पौने तीन बजे थे । उसे अब और नींद नहीं आ रही थी । वह पलंग पर बैठकर बूढ़ी काउंटेस के अन्त्येष्टि संस्कार के बारे में सोचने लगा ।
इसी समय किसी ने खिड़की में से भीतर झांककर देख और फ़ौरन पीछे हट गया । हेर्मन ने इस बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया । एक मिनट बाद उसे ड्योढ़ी का दरवाज़ा खोलने की भनक मिली । हेर्मन्न ने सोचा कि सदा की भांति शराब के नशे में धुत्त उसका अर्दली अपनी रात की आवारागर्दी से वापस लौटा है । किन्तु उसे अपरिचित पद-चाप सुनाई दी – कोई अपने स्लीपरों को धीरे-धीरे घसीटते हुए चल रहा था। दरवाज़ा खुला, सफ़ेद पोशाक पहने एक नारी भीतर आई। हेर्मन्न ने उसे अपनी बूढ़ी धाय समझा और हैरान हुआ कि इतनी रात गये वह किसलिये आई है। मगर सफ़ेद पोशाक पहने औरत लपककर अचानक उसके सामने आ गयी और हेर्मन्न ने काउंटेस को पहचान लिया ।
"मैं अपनी इच्छा के विरुद्ध तुम्हारे पास आई हूं," उसने दृढ़ आवाज़ में कहा, “ लेकिन मुझे तुम्हारा अनुरोध पूरा करने को कहा गया है । तिक्की, सत्ती और इक्का तुम्हारे जीतनेवाले पत्ते हैं, लेकिन शर्त यह है कि तुम एक दिन में एक से अधिक पत्ता नहीं चलना और बाद में ज़िन्दगी भर जुआ नहीं खेलना । अपनी मौत के लिये तुम्हें इस शर्त पर माफ़ करती हूं कि तुम मेरी आश्रित लीज़ावेता इवानोव्ना से शादी कर लोगे .... "
इतना कहकर वह धीरे से मुड़ी, दरवाज़े की ओर बढ़ी और स्लीपरों को घसीटते हुए गायब हो गयी । हेर्मन्न को ड्योढ़ी का दरवाज़ा बन्द होने की आवाज़ सुनाई दी और उसने फिर किसी को खिड़की में से भीतर झांकते देखा ।
हेर्मन्न देर तक अपने होश-हवास ठीक नहीं कर पाया । वह दूसरे कमरे में गया। अर्दली फ़र्श पर सोया पड़ा था; हेर्मन ने बड़ी मुश्किल से उसे जगाया। वह हमेशा की तरह नशे में धुत्त था – उससे कुछ भी जानना-समझ पाना संभव नहीं था । ड्योढ़ी का दरवाज़ा बन्द था। हेर्मन्न अपने कमरे में लौट आया, उसने मोमबत्ती जलाई और जो कुछ देखा था, सब लिख लिया ।
(६)
- Atande1
- आपने मुझसे 'atande'
कहने की जुर्रत कैसे की ?
- नहीं हुजूर, मैंने तो
atande = जनाब ! कहा था ।
1. दांव न लगाने का सुझाव देना । - सं०
हमारी नैतिक प्रकृति में दो जड़ विचार वैसे ही एकसाथ विद्यमान नहीं रह सकते, जैसे भौतिक जगत में एक ही जगह पर दो ठोस पदार्थ नहीं टिक सकते । तिक्की, सत्ती और इक्के ने शीघ्र ही हेर्मन की कल्पना में मृत बुढ़िया के बिम्ब की जगह ले ली । ये तीनों पत्ते उसके दिमाग़ से नहीं निकलते थे और उसके होंठों पर घूमते रहते थे। किसी जवान लड़की को देखकर वह कहता - " कितनी सुघड़ है वह ! बिल्कुल पान की तिक्की ! " उससे अगर पूछा जाता - "क्या बजा है ?" तो वह जवाब देता "पांच मिनट कम सत्ती।” सभी तोंदल आदमी उसे इक्के की याद दिलाते। तिक्की, सत्ती और इक्का उसके सपनों में घूमते रहते, तरह-तरह के रूप धारण करते: तिक्की एक बहुत बड़ा और खिला हुआ फूल बन जाती, सत्ती गोथ शैली का फाटक और इक्का विराटकाय मकड़ी। सब विचार एक ही विचार में घुल-मिल जाते - किसी तरह उस राज़ से फ़ायदा उठाया जाये जिसके लिये उसने इतनी बड़ी क़ीमत चुकायी है । वह सेवा-निवृत्त होने और यात्रा करने की सोचने लगा । उसका मन होता कि पेरिस के सार्वजनिक जुआखानों में जाकर जादू- टोने में बंधे भाग्य से खजाने हासिल करे । संयोग ने उसे ऐसी चिन्ताओं से मुक्त कर दिया ।
इस समय मास्को में धनी जुआरियों की एक संस्था थी । प्रसिद्ध चेकालिन्स्की, जिसने सारी उम्र जुआ खेलते बिताई थी और हुंडियां जीतते तथा नक़द रक़म हारते हुए लाखों-करोड़ों की पूंजी जमा कर ली थी, उसका अध्यक्ष था । लम्बे अनुभव ने उसके साथियों में उसके प्रति विश्वास पैदा कर दिया था, सभी के लिये खुले उसके घर के द्वार, बढ़िया बावर्ची, स्नेह और हंसी-खुशी के वातावरण ने आम लोगों में उसकी मान-मर्यादा बढ़ा दी थी। वह पीटर्सबर्ग आया । युवाजन बॉल- नृत्यों की जगह ताश और सुन्दरियों की प्यारी संगत के बजाय जुए के आकर्षण को तरजीह देते हुए उसके यहां उमड़ने लगे । नारूमोव हेर्मन को उसके घर ले गया ।
इन दोनों ने कई कमरे लांघे जिनमें अनेक शिष्ट बैरे तैनात थे।
कुछ जनरल और कौंसिलर ह्विस्ट खेल रहे थे । जवान लोग बेल-बूटेदार सोफ़ों पर पसरे हुए आईसक्रीम खा रहे थे, पाइप के कश लगा रहे थे। मेहमानखाने में एक लम्बी-सी मेज़ के गिर्द जुआ खेलनेवाले कोई बीसेक व्यक्ति जमा थे। गृह स्वामी भी वहीं था और वही खजांची बना हुआ था। वह साठ साल का बहुत ही सजा-बजा व्यक्ति था । सिर पर रुपहले केश थे और भरा हुआ तथा ताज़गी लिये हुए उसका चेहरा खुशमिज़ाजी अभिव्यक्त करता था । होंठों पर हर समय खिली रहनेवाली मुस्कान से सजीव उसकी आंखें चमक रही थीं। नारूमोव ने हेर्मन्न का परिचय करवाया। चेकालिन्स्की ने मैत्रीपूर्ण ढंग से उससे हाथ मिलाया, तकल्लुफ़ न करने का अनुरोध किया और खेल जारी रखा।
बाज़ी बहुत देर तक चली। मेज़ पर तीस से अधिक पत्ते थे ।
चेकालिन्स्की हर दांव के बाद रुकता, ताकि खिलाडियों को अपनी स्थिति समझने का समय मिल जाये, हारी हुई रक़में लिखता, बड़ी शिष्टता से खेलनेवालों की मांगों को सुनता और इससे भी अधिक शिष्टता से किसी बेध्यान खिलाड़ी द्वारा मोड़ दिये गये पत्ते के कोने को ठीक कर देता । आखिर बाज़ी खत्म हुई । चेकालिन्स्की ने पत्ते फेंटे और अगली बाज़ी बांटने के लिये तैयार हुआ ।
" मैं भी एक पत्ते पर दांव लगाना चाहूंगा, " मेज़ के गिर्द बैठे हुए एक मोटे आदमी के पीछे से हाथ बढ़ाते इए हेर्मन ने कहा । चेकालिन्स्की मुस्कराया और नम्रतापूर्ण सहमति के रूप में उसने सिर झुका दिया । नारूमोव ने हंसते हुए उसे इस बात की बधाई दी कि आखिर तो उसने अपना इतने लम्बे अर्से का व्रत तोड़ लिया और उसके लिये शुभारम्भ की कामना की ।
"तो मैं दांव लगा रहा हूं ! " हेर्मन्न ने अपने पत्ते पर खड़िया से रक़म लिखकर कहा ।
कितना दांव लगाया है जनाब ? " मेज़बान - खजांची ने आंख सिकोड़ते हुए पूछा, “ माफ़ी चाहता हूं, लगता है कि मुझे साफ़ नज़र नहीं आ रहा है।"
" सैंतालीस हज़ार, " हेर्मन्न ने जवाब दिया ।
ये शब्द सुनते ही सबके सिर फ़ौरन हेर्मन की ओर घूम गये और आंखें उस पर जम गयीं ।"इसका दिमाग़ चल निकला है ! " नारूमोव ने सोचा ।
“ मैं यह कहने की अनुमति चाहता हूं, चेकालिन्स्की ने सदा की भांति मुस्कराते हुए कहा, आप बहुत बड़ा दांव लगा रहे हैं । यहां किसी ने भी दो सौ पचहत्तर से अधिक बड़ी रक़म दांव पर नहीं लगाई ।"
आप यह बताइये कि खेलेंगे या नहीं ?" हेर्मन्न ने आपत्ति की ।
चेकालिन्स्की ने विनयपूर्ण सहमति के रूप में सिर झुकाया ।
“ मैं केवल यह निवेदन करना चाहता हूं, " उसने कहा, “ कि मित्रों का विश्वास - पात्र होने के नाते मैं दांव की रक़म सामने रख दी जाने पर ही खेलता हूं। अपनी ओर से मैं तो आपके वचन पर ही भरोसा करने को तैयार हूं, लेकिन खेल और हिसाब को सही ढंग से चलाने के लिये आपसे दांव की रक़म पत्ते पर रख देने की प्रार्थना करता हूं ।"
हेर्मन्न ने जेब से एक बैंकनोट निकाला और उसे चेकालिन्स्की को दे दिया, जिसने उस पर सरसरी-सी नज़र डालकर उसे हेर्मन्न के पत्ते पर रख दिया ।
वह पत्ते बांटने लगा । दायीं ओर नहला आया और बाईं ओर तिक्की ।
मेरा पत्ता जीत गया ! " हेर्मन्न ने अपना पत्ता दिखाते हुए कहा ।
खिलाड़ी खुसर- फुसर करने लगे । चेकालिन्स्की के माथे पर बल पड़ गये, किन्तु तत्काल ही उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आयी ।
"रक़म चुका दूं ?” उसने हेर्मन्न से पूछा ।
"कृपा होगी।"
चेकालिन्स्की ने जेब से कुछ बैंकनोट निकाले और फ़ौरन हिसाब चुकता कर दिया । हेर्मन ने अपनी रक़म समेटी और मेज़ से हट गया । नारूमोव तो सम्भल भी नहीं पाया । हेर्मन्न लैमनेड का एक गिलास पीकर अपने घर को चला गया ।
अगले दिन की शाम को वह फिर चेकालिन्स्की के यहां पहुंचा । गृह स्वामी पत्ते बांट रहा था । हेर्मन्न मेज़ के निकट गया, लोगों ने फ़ौरन उसके लिये जगह खाली कर दी । चेकालिन्स्की ने स्नेहपूर्वक सिर झुकाया । हेर्मन ने नई बाज़ी शुरू होने का इन्तज़ार किया, एक पत्ते पर अपने सैंतालीस हज़ार और पिछले दिन जीते गये सैंतालीस हज़ार भी रख दिये।
चेकालिन्स्की पत्ते बांटने लगा । दायीं ओर गुलाम तथा बायीं ओर सत्ती आई ।
हेर्मन ने सत्ती दिखाई ।
सभी आश्चर्य से चिल्ला उठे । चेकालिन्स्की स्पष्टतः परेशान हो उठा। उसने चौरानवे हज़ार गिनकर हेर्मन के हवाले कर दिये ।
हेर्मन ने बड़ी शान्ति से यह रक़म ली और उसी क्षण चलता बना ।
अगली शाम को हेर्मन्न फिर से खेल की मेज़ पर आया। सभी उसकी राह देख रहे थे। जनरलों और कौंसिलरों ने ऐसा असाधारण खेल देखने के लिये अपनी ह्विस्ट बन्द कर दी। जवान अफ़सर अपने सोफ़ों से उठकर आ गये सभी बैरे मेहमानखाने में जमा हो गये । सभी हेर्मन्न को घेरे हुए थे। दूसरे खिलाड़ियों ने अपने दांव नहीं लगाये, सभी यह देखने को उत्सुक थे कि इस खेल का क्या अन्त होगा । चेका- लिन्स्की के साथ बाज़ी खेलने को तैयार हेर्मन्न अकेला मेज़ के पास खड़ा था । चेकालिन्स्की के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था, लेकिन वह सदा की भांति मुस्करा रहा था । दोनों ने ताश की एक-एक नई गड्डी निकाली । चेकालिन्स्की ने पत्ते फेंटे, हेर्मन्न ने पत्ते काटे, अपना पत्ता सामने रखा और उसपर बैंकनोटों का ढेर लगा दिया। एक तरह से यह द्वन्द्व-युद्ध हो रहा था। सभी ओर गहरी खामोशी छाई हुई थी ।
चेकालिन्स्की पत्ते बांटने लगा, उसके हाथ कांप रहे थे । दायें बेग़म आई और बायें इक्का ।
“इक्का जीत गया ! " हेर्मन्न ने कहा और अपना पत्ता खोल दिया ।
"आपकी बेगम पिट गयी," चेकालिन्स्की ने स्नेहपूर्वक जवाब ।
हेर्मन चौंका - वास्तव में ही इक्के की जगह हुक्म की बेगम सामने पड़ी थी। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, वह यह नहीं समझ पा रहा था कि कैसे उससे ऐसी भूल हुई ।
इसी क्षण उसे ऐसे प्रतीत हुआ कि हुक्म की बेगम अपनी आंखें सिकोड़ रही है और व्यंग्यपूर्वक मुस्करा रही है। असाधारण समानता से वह दंग रह गया...
"बुढ़िया ! " वह भयभीत होकर चिल्ला उठा ।
चेकालिन्स्की ने जीती हुई रक़म अपनी ओर खींच ली । हेर्मन्न बुत बना खड़ा था। उसके मेज़ से दूर हट जाने पर सभी खिलाड़ी ऊंचे-ऊंचे कहने लगे, " क्या कमाल का खेल था ! " चेकालिन्स्की फिर से पत्ते फेंटने लगा, खेल सदा की भांति चलता रहा ।
सारांश
हेर्मन्न पागल हो गया । वह ओबुखोव अस्पताल के वार्ड न० १७ में है, किसी के प्रश्नों का कभी कोई उत्तर नहीं देता और असाधारण तेज़ी से यही बड़बड़ाता रहता है – “ तिक्की, सत्ती, इक्का ! तिक्की, सत्ती, बेगम !.."
लीज़ावेता इवानोव्ना की किसी बहुत ही शालीन युवा व्यक्ति से शादी हो गयी । वह किसी सरकारी दफ़्तर में काम करता है और खासा सम्पत्तिशाली है। वह बूढ़ी काउंटेस के भूतपूर्व कारिन्दे का बेटा है। लीज़ावेता इवानोव्ना एक ग़रीब रिश्तेदारिन का पालन-पोषण कर रही है।
तोम्स्की कप्तान हो गया है और प्रिंसेस पोलीना से शादी करने जा रहा है।
परिशिष्ट
यह लघु उपन्यास सन् 1833 के शिशिर में लिखा गया था। पहली बार प्रकाशित हुआ सन् 834 में।
पूश्किन ने स्वयं अपने मित्र वी.वी. नाश्चोकिन को हुक्म की बेगम का कथानक पढ़कर सुनाया था, जिसने बाद में बार्तेनेव को बतलाया कि “लघु उपन्यास का मुख्य कथानक काल्पनिक नहीं है ।” बूढ़ी काउंटेस-वास्तव में नताल्या पेत्रोव्ना गोलित्सिना, दिमित्री ब्लादिमीरोविच- मॉस्को के गवर्नर जनरल की माँ थी, जो सचमुच में पेरिस में उसी तरह रहती थी, जैसा पूश्किन ने वर्णन किया है। उसके पोते, गोलित्सिन ने पूश्किन को बताया था कि एक बार जुए में हार जाने के बाद वह अपनी दादी के पास पैसे माँगने आया। पैसे तो उसने दिये नहीं, मगर वे तीन पत्ते बताये, जो पेरिस में उसे जेर्मेन ने बतलाये थे। “कोशिश करो,” दादी ने कहा था। पोते ने वे तीन पत्ते चले और जीत गया।
इसके बाद कथानक का विस्तार काल्पनिक है। बार्तेनेव के अनुसार, “नाश्चोकिन ने पूश्किन के सामने यह टिप्पणी की थी कि काउंटेस गोलित्सिना से तो नहीं मिलती, मगर वह एक अन्य वृद्धा नताल्या किरिलोव्ना ज़ाग्य्राइस्कोवा (कवि की पत्नी की बुआ) जैसी दिखाई देती है।” पूश्किन ने इस टिप्पणी से सहमत होते हुए कहा कि गोलित्सिना का चरित्र और आदतें काफ़ी जटिल थीं, इसलिए उसके बदले ज़ाग्य्राइस्कोवा को चित्रित करना उनके लिए काफ़ी आसान था।
लघु उपन्यास बहुत लोकप्रिय हुआ और जुआरी तिग्गी, सत्ता और इक्का पर ही दाँव लगाने लगे थे।
(मूल रूसी भाषा से अनुवाद : डॉ. मदनलाल 'मधु')