तोता जो तीन कहानियाँ सुनाता है : इतालवी लोक-कथा
The Parrot Which Tells Three Stories : Italian Folk Tale
एक समय की बात है कि एक बहुत ही अमीर सौदागर था जो शादी करना चाहता था। वह इतनी अच्छी पत्नी चाहता था जितना लम्बा दिन होता है और जो अपने पति को बहुत बहुत प्यार करती। उसको ऐसी पत्नी मिल गयी।
एक दिन पत्नी ने पति को थोड़ा सा परेशान देखा तो उससे पूछा — “प्रिय। क्या बात है आप इतना परेशान क्यों हैं?”
“क्या मैं परेशान हूँ? मुझे एक बहुत जरूरी काम है जिसे मुझे वहीं उसी जगह पर जा कर देखना होगा।”
पत्नी बोली — “तो आप इस बात को ले कर इतने परेशान हैं। चलिये इस बात को हम इस तरह से सुलझाते हैं। आप मेरे लिये खाने आदि का सब सामान ले कर छोड़ जाइये। घर के सारे दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द कर जाइये। केवल एक सबसे ऊपर की खिड़की खुली छोड़ जाइये। मेरे लिये एक जालीदार खिड़की बनवा दीजिये और आराम से जाइये।”
पति बोला — “तुम्हारी यह सलाह बहुत अच्छी है।” कह कर उसने घर में बहुत सारा आटा रोटी तेल और कोयला सब कुछ रखवा दिया। सारे खिड़की दरवाजे बन्द कर दिये सिवाय एक सबसे ऊँची वाली खिड़की के जो हवा अन्दर आने के काम आती। एक जालीदार खिड़की बनवायी और चला गया। पत्नी अब अपनी एक दासी के साथ घर में अकेली रह गयी। अगले दिन एक नौकर को जालीदार खिड़की में से कहा गया जो कुछ भी उसे करना था। फिर वह भी चला गया।
इस तरह से दस दिन बीत गये। अब पत्नी ऊब गयी थी उसको
ऐसा लगा कि वह ज़ोर ज़ोर से रोये। उसकी दासी बोली —
“मालकिन आप इतनी उदास क्यों होती हैं। हर चीज़ की दवा है।
मैं यह मेज इस खिड़की तक खींचती हूँ। आप इस पर खड़ी हो कर
बाहर का दृश्य देखें।”
सो मेज खिड़की के नीचे तक खींच दी गयी और पत्नी उस पर चढ़ कर बाहर का दृश्य देखने लगी। जैसे ही उसने बाहर देखा तो उसके मुँह से निकला — “आह। जनाब मैं आपको धन्यवाद देती हूँ।”
अभी उसके मुँह से केवल “आह” शब्द ही निकला था कि उसके सामने दो नौजवान आ गये। उनमें से एक नोटरी था दूसरा घुडसवार था। उन्होंने उसकी “आह” की आवाज सुनी तो उनका ध्यान उधर गया और उन्होंने उस तरफ देखा तो घुड़सवार के मुँह से निकला “देखो यह कितनी सुन्दर स्त्री है। मुझे इससे बात करनी है।”
नोटरी बोला — “नहीं इससे पहले मैं बात करूँगा।”
“नहीं पहले मैं।”
“नहीं पहले मैं।”
उन्होंने दोनों ने चार सौ औंस की शर्त लगायी कि जो कोई पहले बोलेगा वही जीतेगा। पत्नी ने भी उन दोनों को देखा तो वह खिड़की से हट गयी।
नोटरी और घुड़सवार दोनों ने शर्त के बारे में सोचा तो वे बेचैन हो उठे। बेचैनी में वे इधर उधर घूमते रहे और स्त्री से बोलने की तरकीबें सोचने लगे।
आखिर नोटरी कुछ निराश हो गया तो वह एक मैदान में चला गया और वहाँ पहुँच कर अपने राक्षस को बुलाना शुरू किया। राक्षस उसके बुलाने पर उसके सामने प्रगट हुआ तो नोटरी ने उसको सब कुछ बता दिया और कहा कि यह घुड़सवार उस स्त्री से पहले बोलना चाहता है।
राक्षस बोला — “मैं अगर तुम्हारा यह काम कर दूँ तो तुम मुझे क्या दोगे।”
“अपनी आत्मा।”
“तब तुम यह करो कि मैं तुम्हें एक तोते में बदल देता हूँ। तुम उड़ कर उस स्त्री की खिड़की पर बैठ जाना। नौकरानी तुम्हें ले जायेगी और फिर तुम्हारे लिये एक चाँदी का पिंजरा बनवा देगी और तुम्हें उसमें रख देगी।
घुड़सवार एक बुढ़िया को ढूँढेगा जो उस स्त्री को घर छोड़ कर
बाहर निकलने पर मजबूर करने की कोशिश करेगी पर जैसा कि
तुम्हें पता है वह ऐसा कर नहीं पायेगी। वह बुढ़िया तीन बार तुम्हारे
पास आयेगी। उस समय तुम गुस्से में आ कर अपने पंख नोच
डालना और उड़ने की कोशिश करना और बस यही कहते रहना —
“मेरी प्यारी माँ। तुम उस बुढ़िया के साथ मत जाओ। वह
तुम्हें धोखा देगी। तुम यहीं बैठो मेरे पास मैं तुम्हें कहानी सुनाता
हूँ।” और फिर तुम उसको जो चाहो वह कहानी सुनाना।”
राक्षस ने बाद में कहा — “तुम आदमी हो। तुम तोते बन जाओ।”
नोटरी तुरन्त ही एक तोता बन गया और खिड़की पर जा कर
बैठ गया। दासी ने उसे देखा तो अपने रूमाल की सहायता से उसे
उठा लिया। जब पत्नी ने तोते को देखा तो उसके मुँह से निकला
— “ओह कितना सुन्दर तोता है। अब तुम्हीं मेरे धीरज के साथी
बनोगे।”
“हाँ मेरी प्यारी माँ। मैं तुम्हें प्यार भी बहुत करूँगा।”
पत्नी ने उसके लिये एक चाँदी का पिंजरा बनवा लिया और तोते को उसमें बन्द कर दिया।
अभी हम तोते के पिंजरे में बन्द घर में ही छोड़ते हैं और घुड़सवार के पास चलते हैं। इसको एक बुढ़िया मिलती है तो इससे इसकी परेशानी के बारे में पूछती है।
“मैं तुम्हें यह मामला क्यों बताऊँ।” कह कर वह उसे झिड़क देता है। पर बुढ़िया उसके पीछे ही पड़ी रहती है तो उससे बचने के लिये फिर वह उसे सब बताता है – अपनी शर्त भी।
बुढ़िया बोली — “मैं तुम्हें उस स्त्री से बात करवा सकती हूँ। तुम मेरे लिये दो फलों की टोकरी तैयार करवा दो।”
घुड़सवार उस स्त्री से मिलने के लिये इतना बेताब हो रहा था कि उसने तुरन्त ही फलों की दो टोकरियाँ तैयार करवा दीं। ये दोनों टोकरियाँ ले कर वह बुढ़िया जालीदार खिड़की के पास गयी और अपने आपको स्त्री की नानी बताया।
स्त्री ने उसका विश्वास कर लिया। एक बात से दूसरी बात निकलती है। बुढ़िया बोली — “ओ मेरी धेवती। तुम हमेशा ही बन्द क्यों रहती हो। क्या तुम रविवार को मास सुनने भी नहीं जाती?”
“मैं कैसे जा सकती हूँ जबकि मैं यहाँ बन्द रहती हूँ।”
“ओह मेरी बेटी तुमको तो बहुत पाप लगेगा। नहीं नहीं। यह ठीक नहीं है। तुमको रविवार को मास पूजा के लिये तो जाना ही चाहिये। आज दावत का दिन है चलो आज मास के लिये चलते हैं।”
जब बुढ़िया उससे मास चलने के लिये ज़िद कर रही थी तो तोते ने रोना शुरू कर दिया।
वह बोला — “मेरी प्यारी माँ। तुम इस बुढ़िया के साथ मत जाओ। यह बुढ़िया तुम्हें धोखा देगी। अगर तुम नहीं जाओगी तो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊँगा।”
पत्नी के दिमाग में एक विचार आया। उसने बुढ़िया से कहा —
“नानी। तुम जाओ मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकती।”
सो बुढ़िया को वहाँ से जाना ही पड़ा। जब बुढ़िया वहाँ से चली गयी तो वह तोते के पास गयी और बोली “देखो मैं उस बुढ़िया के साथ नहीं गयी अब तुम मुझे कहानी सुनाओ।”
पहली कहानी
बहुत दिनों पुरानी बात है कि एक राजा था। उसके केवल एक ही बेटी थी जिसको गुड़ियों का बहुत शौक था। उन सबमें उसके पास एक ऐसी गुड़िया थी जो उसे बहुत पसन्द थी। वह कभी उसे कपड़े पहनाती कभी उसके कपड़े उतारती। वह उसको बिस्तर में सुलाती। वह उसके लिये वह सब कुछ करती जो एक बच्चे के लिये किया जाता है।
एक दिन राजा को देश में दूसरी जगहों पर जाना पड़ा। वह राजकुमारी को भी साथ ले गया और राजकुमारी के साथ गयी वह गुड़िया भी। जब वे लोग इधर उधर टहल रहे थे तो गलती से उसकी वह गुड़िया एक हैज पर रखी रह गयी।
अब खाने का समय हो गया था। खाना खाने के बाद वे गाड़ी में बैठे और शाही महल आ पहुँचे। तब राजकुमारी को याद आयी कि वह तो कुछ भूल गयी थी। क्या? अपनी गुड़िया।” तब उसने क्या किया। बजाय ऊपर जाने के वह घूमी और अपनी गुड़िया को ढूँढने चल दी।
जब वह बाहर पहुँची तो वह तो खो गयी और ऐसे घूमने लगी जैसे उसे किसी बात का कोई होश ही नहीं था। कुछ समय बाद वह एक महल के पास आ गयी। वहाँ आ कर उसने पूछा कि वह महल किसका था। उन्होंने कहा कि वह महल स्पेन के राजा का था। उसने वहाँ रहने की जगह माँगी। राजा ने उसे तुरन्त ही बुला लिया और उसको अपनी बच्ची की तरह से रखा। वह भी महल में अपने घर की तरह से रही। वहाँ वह रानी की तरह से रहती रही। उस राजा को कोई लड़की या कोई लड़का नहीं था सो राजा ने उसे कुछ भी करने की इजाज़त दे रखी थी हालँकि उसके महल में बारह लड़कियाँ और भी थीं।
अब बराबर वालों में ईष्या तो होती ही है। जल्दी ही वे शाही लड़कियाँ उसके खिलाफ बोलने लगीं। वे बोलीं — “इसे देखो। पता नहीं यह कौन है कहाँ से आयी है। क्या यह हमारी राजकुमारी बनने वाली है। इस सबको हमें रोकना होगा।”
अगले दिन वे राजकुमारी के पास गयीं और उससे कहा “तुम ज़रा हमारे साथ आओगी।”
राजकुमारी ने कहा — “नहीं। क्योंकि पिता जी यह नहीं चाहते। जब उनकी इच्छा होगी तभी में आऊँगी।”
“तुम्हें मालूम है कि तुम्हें हमारे साथ आने देने के लिये क्या करना चाहिये। तुमको राजा को उसकी बेटी की कसम देनी चाहिये। जब वह यह सुनेगा तब वह तुम्हें हमारे साथ जाने देगा।”
राजकुमारी ने ऐसा ही किया। पर जैसे ही राजा ने यह सुना
“आपको आपकी बेटी की कसम” तो उसने हुक्म दिया कि उसे चोर
दरवाजे से नीचे फेंक दिया जाये।
जब राजकुमारी को चोर दरवाजे से बाहर फेंका गया तो उसको एक और दरवाजा मिला फिर एक और दरवाजा मिला और फिर एक और। इस तरह से उसे बराबर रास्ता मिलता गया। एक जगह पहुँच कर उसे हाथ से महसूस करने पर पता चला कि वहाँ कुछ दियासलाई और आग लगाने वाला सामान रखा है।
उसने एक मोमबत्ती जलायी तो वहाँ उसने एक बहुत सुन्दर लड़की देखी जिसके मुँह पर ताला लगा था इससे वह बोल नहीं सकती थी। पर उसने इशारों से बताया कि उस ताले को खोलने की चाभी बिस्तर पर रखे तकिये के नीचे है।
राजकुमारी ने वहाँ से चाभी निकाली और ताला खोला तब वह लड़की बोली कि वह एक राजा की लड़की है जिसे एक जादूगर ने चुरा लिया है। यही जादूगर उसके लिये रोज कुछ खाने के लिये ले कर आता है और खिला कर फिर ताला लगा कर चला जाता है।
राजकुमारी ने पूछा — “पर यह तो बताओ कि तुम्हें उससे छुड़ाने का क्या तरीका है।”
लड़की बोली — “मैं कैसे जानूँ। मैं तो और कुछ कर नहीं सकती सिवाय इसके कि जब वह मेरा मुँह खोले तब मैं जादूगर से ही पूछूँ। तुम इस बिस्तर के नीचे छिप जाओ और सुनो कि हम क्या बात कर रहे हैं उसके बाद तुम तय करना कि अब क्या करना है।”
“ठीक है। यही ठीक रहेगा।”
सो राजकुमारी ने फिर से उस लड़की का मुँह बन्द किया चाभी पलंग पर रखे तकिये के नीचे रखी और पलंग के नीचे छिप गयी। पर आधी रात को बहुत ज़ोर का शोर सुनायी दिया। जमीन फट गयी। बिजली धुआँ और गन्धक की बू के साथ जादूगर अपने जादूगर के रूप में बाहर निकला। उसके साथ एक बड़े साइज़ का आदमी भी था जिसके हाथ में खाने का एक कटोरा था और दो नौकर थे जिनके हाथों में मशालें थीं।
जादूगर ने नौकरों को वापस भेज दिया। दरवाजों को ताला लगा दिया। तकिये के नीचे से चाभी निकाली। लड़की मुँह पर लगा ताला खोला।
जब वे दोनों खा रहे थे तो लड़की बोली — “जादूगर। मेरे दिमाग में एक विचार है। बस अपनी उत्सुकता को शान्त करने के लिये अगर मैं यहाँ से भागना चाहूँ तो मुझे किन चीज़ों की जरूरत पड़ेगी।”
“तुम तो बहुत कुछ जानना चाहती हो मेरी बच्ची।”
“कोई बात नहीं छोड़ो। मैं नहीं जानना चाहती।”
“फिर भी मैं तुम्हें बताऊँगा। इसके लिये तुम्हें महल के चारों तरफ पहले एक सुरंग खोदनी पड़ेगी और फिर रात को ठीक बारह बजे जब मैं उस सुरंग को तोड़ने के लिये घुस रहा होऊँ तब तुम अपने पिता के साथ होगी और मैं आसमान में उड़ जाऊँगा।”
लड़की बोली — “इसे तुम ऐसे समझना जैसे तुमने इसे कभी किसी से कहा ही नहीं।”
जादूगर ने कपड़े पहने और चला गया। कुछ घंटे बाद राजकुमारी पलंग के नीचे से निकल आयी। उसने अपनी छोटी बहिन से विदा ली और वहाँ से चली गयी।
वह उसी चोर दरवाजे की तरफ गयी। बीच में एक जगह वह रुक गयी और सहायता के लिये चिल्लाने लगी। राजा ने उसका चिल्लाना सुना। उसने तुरन्त ही एक रस्सी नीचे फेंकी और उसको ऊपर चढ़ाया।
राजकुमारी ने उसको सब बताया तो राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने तुरन्त ही सुरंग की खुदायी शुरू कर दी जिसको उसने बारूद आदि से भर दी। जब वह सब पूरी भर गयी तो राजकुमारी एक घड़ी ले कर नीचे उतर गयी और राजा की बेटी के पास पहुँची।
जब वह कमरे में घुसी तो बोली “यह मैं हूँ।” उसने चाभी निकाल कर लड़की के मुँह का ताला खोला उससे बातें कीं। फिर वह बिस्तर के नीचे छिप कर इन्तजार करने लगी। आधी रात को जादूगर आया। राजा देख रहा था। उसकी घड़ी उसके हाथ में थी। जैसे ही रात के बारह बजे राजकुमारी ने सुरंग में आग लगा दी।
बहुत ज़ोर से धमाका हुआ। जादूगर गायब हो गया और दोनों बच्चियों ने अपने आपको जादूगर की कैद से आजाद कर लिया था। राजा अपनी दोनों बच्चियों को देख कर बहुत खुश हुआ और राजकुमारी को अपना ताज सौंप दिया।
पर राजकुमारी बोली — “नहीं योर मैजेस्टी। मैं तो खुद ही एक राजा की बेटी हूँ और मेरे पास अपना ताज है।”
यह खबर तो सारी दुनियाँ में फैल गयी। इससे राजकुमारी की शोहरत तो बहुत बढ़ गयी। हर आदमी उस राजकुमारी की हिम्मत और अच्छाई की बड़ाई कर रहा था कि किस तरह से उसने दूसरी राजकुमारी की ज़िन्दगी बचायी। वे हमेशा ही खुश और शान्ति से रहे।”
तोता इतनी कहानी सुना कर बोला — “मेरी प्यारी माँ। आप मेरी इस कहानी के बारे में क्या सोचती हैं।”
पत्नी बोली — “यह तो बड़ी अच्छी कहानी थी।”
इस बात को एक हफ्ता गुजर गया। बुढ़िया एक दिन फिर से दो दूसरी फलों की टोकरियाँ ले कर वहाँ आयी तो तोता बोला — “अरे वाह यह तो बहुत सुन्दर विचार है। ओ सुन्दर माँ। देखो वह बुढ़िया फिर आ रही है। ज़रा अपना ख्याल रखना।”
बुढ़िया बोली — “आओ क्या तुम मास के लिये चल रही हो?” “हाँ नानी।”
“तो चलो हम एक साथ चलते हैं।” पत्नी तैयार होने लगी।
जब तोते ने उसको तैयार होते देखा तो उसने अपने पंख नोचने शुरू कर दिये और रोते रोते बोला — “नहीं माँ। तुम उस बुढ़िया के साथ मत जाओ वह तुम्हें बर्बाद कर देगी। तुम अबकी बार अगर फिर रुक जाओगी तो मैं तुम्हें एक और कहानी सुनाऊँगा।”
सो पत्नी ने बुढ़िया को कह दिया — “तुम जाओ। मैं नहीं जाऊँगी। मैं मास के लिये अपने प्यारे तोते के नहीं मार सकती।” बुढ़िया वहाँ से चली गयी और तोते ने अपनी कहानी शुरू की।
दूसरी कहानी
एक बार की बात है कि एक राजा था जिसके एक अकेली बच्ची थी जो सूरज की तरह सुन्दर थी। जब वह अठारह साल की हुई तो एक तुर्की राजा ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा।
जब राजकुमारी ने सुना कि वह तो एक तुर्क राजा था तो वह बोली कि तुर्क राजा से उसको क्या काम था। और उसने तुर्क राजा को मना कर दिया।
जल्दी ही वह बहुत बीमार हो गयी। उसको दौरे पड़ने लगे। उसका शरीर एँठने लगा। उसकी आँखें बार बार पीछे की तरफ जाने लगीं। डाक्टरों की कुछ समझ में न आया कि यह सब क्या था।
बेचारे राजा ने घबरा कर अपनी काउन्सिल को बुलाया और कहा — “भले लोगों। आप सब जानते हैं कि मेरी बेटी दिन पर दिन अपनी ज़िन्दगी खोती जा रही है। आप लोग मुझे क्या सलाह देते हैं।”
साधु लोग बोले — “एक छोटी लड़की है जिसने स्पेन के राजा की बेटी को ढूँढा है। आप उसको ढूँढें वही आपकी बेटी का इलाज कर पायेगी।”
राजा बोला — “यह तो बहुत अच्छा है। काउन्सिल की यह बात हमको अच्छी लगी।”
राजा ने कई जहाज़ उस लड़की को ढूढने के लिये भेज दिये। और कहा कि अगर स्पेन का राजा उसको यहाँ न आने दे तो ये लोहे के दस्ताने उसको देना और युद्ध का ऐलान कर देना। जहाज़ चले गये और एक दिन स्पेन पहुँच गये।
वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपने आने की सूचना देने के लिये तोप छोड़ी। राजदूत जमीन पर उतरा। राजा के पास गया और उसको एक चिठ्ठी ले जा कर दी। राजा ने चिठ्ठी पढ़ी और पढ़ कर रो पड़ा। वह बोला — “मैं इस लड़की को नहीं दे सकता। मैं युद्ध के लिये तैयार हूँ।”
इस बीच वह लड़की वहाँ आ गयी। उसने पूछा — “क्या बात है योर मैजेस्टी।”
उसने चिठ्ठी देखी तो बोली — “आप डरते क्यों हैं। मैं इस राजा के पास जरूर जाऊँगी।”
राजा ने पूछा — “मेरी बच्ची कैसे? तुम मुझे इस तरह छोड़ जाओगी क्या?”
लड़की फिर बोली — “मैं आपको छोड़ कर नहीं जा रही। मैं लौट कर आऊँगी। मैं जा कर इस लड़की को देखूँगी कि इसे क्या हुआ है और फिर वापस आ जाऊँगी।”
उसने अपनी छोटी बहिन से विदा ली और चल दी। जब वह राजा के पास पहुँची तो राजा खुद उससे मिलने के लिये आया। वह बोला — “मेरी बच्ची। अगर तुम मेरी इस बच्ची को ठीक कर दोगी तो मैं अपना ताज तुम्हें दे दूँगा।”
उसने अपने मन में कहा “दो ताज।”
वह राजा से बोली — “मेरे पास तो पहले से ही एक ताज है। मुझे देखने दीजिये कि क्या मामला है। ताज की कोई बात नहीं है।”
वह गयी और उसने राजकुमारी को देखा वह तो बस हड्डियों का ढाँचा ही रह गयी थी। उसने राजा से कहा — “राजा साहब। मेरे पास यह माँस का पानी है और कुछ और चीज़ें हैं।”
उनको जल्दी से जल्दी तैयार किया गया। उसने कहा — “मैं अपकी बेटी के साथ कमरे में बन्द रहती हूँ। आप उसको तीन दिन तक खोलने की बिल्कुल कोशिश न करें। तीन दिन बाद मैं आपको आपकी बेटी वापस कर दूँगी – ज़िन्दा या मुर्दा। और सुनिये जो मैं कहती हूँ कि अगर मैं भी दरवाजे को खटखटाऊँ तो भी आप दरवाजा न खोलें।”
सब कुछ पहले से तय कर लिया गया दरवाजे को जंजीरों और तालों से बाँध दिया गया। पर वे शाम को मोमबत्ती जलाने के लिये दियासलाई रखना भूल गये।
शाम को बहुत गड़बड़ हुई। नौजवान लड़की दरवाजा नहीं खटखटाना चाहती थी। सो उसने खिड़की से बाहर झाँका तो देखा कि कुछ दूरी पर एक रोशनी जल रही थी। सो वह एक मोमबत्ती ले कर एक रेशम की सीढ़ी के सहारे नीचे उतरी।
जब वह वहाँ पहुँची तो उसने देखा कि एक चूल्हा जल रहा था उस पर एक बर्तन रखा था जिसमें पानी उबल रहा था। पास ही एक तुर्क बैठा हुआ और वह उसे लकड़ी की डंडी से चला रहा था। उसने उस तुर्क से पूछा कि वह क्या कर रहा था।
तुर्क ने जवाब दिया — “मेरे मालिक इस राजा की बेटी से शादी करना चाहते थे पर उसने उनसे शादी करने से मना कर दिया इसलिये वह उस पर जादू डाल रहे हैं।”
लड़की बोली — “ओह मेरे बेचारे छोटे तुर्क। तुम यह चलाते चलाते थक गये होगे। तुम्हें मालूम है कि तुम्हें अब क्या करना चाहिये। तुम थोड़ा आराम कर लो तब तक इसे मैं चलाती हूँ।”
यह सुन कर वह वहाँ से हट गया। लड़की ने फिर कहा “तुम थोड़ा सा सो लो तब तक इसे मैं चलाती हूँ। जब वह सो गया तो उसने उसे पकड़ लिया और उसे बर्तन में उबलते पानी में डाल दिया।
जब उसने देखा कि वह मर गया तो उसने अपनी मोमबत्ती जलायी और महल वापस आ गयी। जब वह कमरे में घुसी तो उसने देखा कि राजकुमारी बेचारी नीचे बेहोश गिरी पड़ी थी। कोलोन का पानी छिड़क कर वह उसको होश में लायी। तीन दिनों में ही वह काफी ठीक हो गयी थी।
उसके बाद उसने दरवाजा खटखटाया। राजा तो अपनी बेटी को ठीक देख कर खुशी के मारे अपने आपे में ही नहीं था। उसने स्पेन के राजा की बेटी से कहा — “मेरी बच्ची। मैं इसके बदले में तुम्हें कैसे धन्यवाद दूँ। तुम मेरे पास रह जाओ।”
राजकुमारी बोली — “यह सम्भव नहीं है। अगर वे मुझे आपके पास नहीं भेजते तो आपने मेरे पिता को युद्ध की धमकी दी थी। अब मेरे पिता आपको युद्ध की धमकी देते हैं अगर आप मुझे लौटने की इजाज़त नहीं देंगे।”
वह वहाँ दो हफ्ते रही फिर राजा ने उसको बहुत सारा पैसा और जवाहरात दे कर विदा किया। वह भी स्पेन के राजा के पास लौट आयी। इस तरह से यह कहानी खत्म हुई।”
“मेरी प्यारी माँ अब बताओ तुम्हें यह कहानी कैसी लगी।”
“बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर।”
“पर अब तुम उस बुढ़िया के साथ नहीं जाओगी क्योंकि इसमें धोखा है।”
एक हफ्ते बाद वह बुढ़िया फिर अपनी टोकरियाँ ले कर उस पत्नी के घर आयी और बोली — “मेरी बच्ची। आज तो तुम्हें मेरी खुशी के लिये मेरे साथ चलना ही पड़ेगा। चलो आज मास सुनने चलते हैं।”
“ठीक है। मैं आती हूँ।”
जब तोते ने यह सुना कि पत्नी बुढ़िया के साथ जा रही है तो
फिर उसने अपने पंख नोचने और रोना शुरू कर दिया और बोल —
“मेरी सुन्दर माँ। उसके साथ मत जाओ। अगर तुम रुक जाओगी
तो मैं तुम्हें एक कहानी और सुनाऊँगा।”
सो पत्नी ने बुढ़िया से कहा — “ओ मेरी नानी। मैं नहीं आ पाऊँगी क्योंकि मैं आपके लिये अपना तोता हाथ से नहीं जाने दे सकती।”
उसने जाली वाली खिड़की बन्द की और बुढ़िया भी उसे कोसती हुई वहाँ से चली गयी। पत्नी फिर तोते के पास बैठ गयी और तोते ने अपनी कहानी शुरू की —
तीसरी कहानी
एक बार की बात है कि एक राजा और रानी थे जिनके एक अकेला बेटा था और जो हमेशा ही शिकार में लगा रहता था। एक बार शिकार के लिये वह कुछ दूर जाना चाहता था। सो उसने अपने साथी लोग लिये और चल दिया।
तुम क्या सोचते हो कि वह कहाँ गया होगा। वहीं जहाँ वह गुड़िया थी। जब उसने गुड़िया देखी तो उसने कहा “आज का मेरा शिकार खत्म हुआ चलो घर चलते हैं।”
उसने गुड़िया ली और उसे अपने सामने अपने घोड़े पर रखा आीर चल दिया। कुछ कुछ देर में वह कहता जाता था “यह गुड़िया कितनी सुन्दर है। तो ज़रा इसकी मालकिन के बारे में तो सोचो।”
जब वह महल पहुँचा तो उसने उसके लिये एक शीशे का डिब्बा बनवाया और उस गुड़िया को उसमें रख दिया। अब बस वह उसको ही देखता रहता और कहता रहता “यह गुड़िया कितनी सुन्दर है। तो ज़रा इसकी मालकिन के बारे में तो सोचो।”
अब वह राजकुमार किसी से बोलता भी नहीं था। हमेशा दुखी सा रहता था। यह देख कर राजा ने डाक्टरों को बुलवा भेजा।
डाक्टरों ने देख भाल कर कहा — “राजा साहब। हम इस बीमारी के बारे में कुछ नहीं जानते। ज़रा जा कर देखिये कि वह इस गुड़िया के साथ क्या करता रहता है।”
सो राजा अपने बेटे को देखने गया और देखा कि वह तो बस अपनी गुड़िया की तरफ घूरे जा रहा है और कहता जा रहा है “यह गुड़िया कितनी सुन्दर है। तो ज़रा इसकी मालकिन के बारे में तो सोचो।”
डाक्टर उतने ही अक्लमन्द लौट गये जितने अक्लमन्द वे आये थे। इस बीच राजकुमार और कुछ करता ही नहीं था सिवाय गुड़िया को घूरने के और कहते रहने के कि “यह गुड़िया कितनी सुन्दर है। तो ज़रा इसकी मालकिन के बारे में तो सोचो।” वह लम्बी लम्बी साँसें भरता और यही कहता रहता।
राजा बहुत निराश हो गया था सो उसने अपनी काउन्सिल बुलायी और उससे पूछा — “आप सब देखें और बतायें कि मैं क्या करूँ क्योंकि मेरे बेटे की हालत तो दिन पर दिन बिगड़ती ही जा रही है। उसको न तो कोई दर्द है न कोई बुखार है फिर भी वह दुबला ही होता जा रहा है। कोई और मेरे राज्य का भोग करेगा क्या?”
तब काउन्सिल ने राजा से कहा — “योर मैजेस्टी। क्या आप वाकई बहुत परेशान हैं। क्या आपको उस लड़की के बारे में नहीं पता जिसने स्पेन के राजा की बेटी को बचाया था और एक दूसरी राजकुमारी को भी ठीक किया था।
हमारी राय यह है कि आप उस राजकुमारी को बुलवायें। अगर उसके पिता उसे आपके पास न भेजें तो आप उनसे युद्ध का ऐलान कर दें।”
सो राजा ने अपना एक दूत उस राज्य में भेजा कि वह अपनी बेटी को तुरन्त भेज दे। जब राजदूत राजा से मिला तो वह राजकुमारी राजा के पास आयी जिसने दो राजकुमारियों को ठीक किया था। उसने देखा कि राजा कुछ परेशान है।
उसने राजा से पूछा — “क्या बात है आप इतने परेशान क्यों हैं।”
राजा बोला — “कुछ नहीं बेटी। एक और मौका वैसा आ गया है। एक और राजा तुम्हें बुला रहा है। इससे तो ऐसा लगता है कि अब मैं तुम्हारा कुछ भी नहीं।”
“कोई बात नहीं योर मैजेस्टी। आप मुझे जाने दें मैं बहुत जल्दी लौट आऊँगी।”
सो वह अपने नौकरों के साथ जहाज़ पर चढ़ी और अपनी यात्रा शुरू की। जब वह वहाँ पहुँची जहाँ राजकुमार था तो वह गहरी गहरी साँसें ले रहा था और बराबर यही कह रहा था “यह गुड़िया कितनी सुन्दर है। तो ज़रा इसकी मालकिन के बारे में तो सोचो।”
वह बोली — “आप लोगों ने मुझे बुलाने में देर कर दी। फिर भी आप मुझे एक हफ्ता दें। आप मुझे मरहम और खाना दे दें। फिर एक हफ्ते में मैं आपका राजकुमार ज़िन्दा या मुर्दा वापस कर दूँगी।”
उसने अपने आपको राजकुमार के साथ ही कमरे में बन्द कर लिया और उसे सुनने की कोशिश की जो राजकुमार कह रहा था क्योंकि उसने अभी तक वह नहीं सुना था जो वह बार बार कह रहा था। क्योंकि वह बहुत कमजोर था।
जब उसने सुना “यह गुड़िया कितनी सुन्दर है। तो ज़रा इसकी मालकिन के बारे में तो सोचो।” और अपनी गुड़िया उसके हाथ में देखी तो वह एकदम से बोली — “ओह तो वह तुम हो जिसने मेरी गुड़िया ली थी। दो इसे मुझे दो और मैं अभी तुम्हारा इलाज करती हूँ।”
जब उसने ये शब्द सुने तो उसने आँखें खोलीं और वह कुछ अपने आपे में आया बोला — “तुम क्या इस गुड़िया की मालकिन हो?”
“हाँ मैं ही इसकी मालकिन हूँ।”
बस सोचो वह तो उसको देखते ही ठीक होने लगा। उसने उसको माँस का पानी देना शुरू किया और वह ठीक होने लगा। जब वह ठीक हो गया तब उसने उससे पूछा कि उसको वह गुड़िया कहाँ से मिली। राजकुमार ने उसे सब बता दिया। एक हफ्ते में राजकुमार ठीक हो गया और फिर उन्होंने कह दिया कि वे दोनों शादी कर रहे हैं।
राजा तो खुशी से बिल्कुल आपे से बाहर हो रहा था क्योंकि उसका बेटा ठीक हो गया था। उसने कई चिठ्ठियाँ लिखीं। एक चिठ्ठी तो उसने स्पेन के राजा को लिखी कि उसकी बेटी को उसकी गुड़िया मिल गयी है। दूसरे राजा को लिखा कि उसकी बेटी मिल गयी है। तीसरी उस राजा को जिसकी बेटी का उसने इलाज किया था।
उसको बाद सारे राजा इकठ्ठे हुए और सबने मिल कर खूब आनन्द मनाया। राजकुमार ने राजकुमारी के साथ शादी कर ली। फिर वे आराम से रहे।”
कहानी सुन कर तोते ने पत्नी से पूछा — “ओ अच्छी माँ। क्या आपको यह कहानी पसन्द आयी?”
“हाँ मेरे बेटे। बहुत अच्छी थी।”
“पर अब आप उस बुढ़िया के साथ नहीं जाना।”
तभी वह बुढ़िया फिर से वहाँ आयी तो उसकी दासी आयी और बोली — “देखिये मालिक आ गये।”
“सच में। अच्छा तोते अब तुम सुनो। मैंने तुम्हारे लिये एक दूसरा पिंजरा बनवा दिया है।”
मालिक आ गये थे। सारी खिड़कियाँ खोल दी गयीं और उसने अपनी पत्नी को गले लगाया। शाम को खाने के समय उन्होंने तोते को मेज के बीच में रखा। और जब दोनों बहुत खुश थे तो चिड़िया ने थोड़ा सा सूप मालिक की आखों में फेंक दिया।
मालिक को जब वह सूप आँख में लगा तो उसने अपनी आँखों पर हाथ रख लिया। तभी तोता उसके गले की तरफ उड़ा उसे घोट दिया और उड़ गया।
उड़ते उड़ते वह मैदान में पहुँचा और बोला “मैं एक तोता हूँ मैं एक आदमी बनना चाहता हूँ।” यह कह कर वह एक सुन्दर चालाक आदमी में बदल गया।
फिर वह घुड़सवार से मिला और बोला — “क्या तुम्हें मालूम है कि उस बेचारी स्त्री का बेचारा पति मर गया है। एक तोते ने उसका गला घोट दिया।”
“सच में। बेचारी स्त्री।”
नोटरी शर्त के बारे में बिना कोई बात किये ही वहाँ से चला गया। नोटरी को पता चला कि उस स्त्री की एक माँ थी सो वह उसके पास गया और उससे कहा — “आप मुझे अपनी बेटी दे दें।”
कुछ हिचकिचाहट के बाद माँ राजी हो गयी और उनकी शादी हो गयी। उस रात नोटरी ने अपनी पत्नी से पूछा — “अब मुझे बताओ कि तुम्हारे पति को किसने मारा।”
“एक तोते ने।”
“और इस तोते के बारे में तुम क्या जानती हो।”
स्त्री ने उसे सब बता दिया कि किस तरह से तोते ने उसके पति की आँखों में सूप फेंका और उड़ गया।”
“यह सच है। क्या मैं वह तोता नहीं था?”
“तो क्या वह तोता तुम थे? मुझे तो आश्चर्य है।”
“हाँ मैं ही वह तोता था और मैं केवल तुम्हारे लिये ही तोता बना था।”
अगले दिन नोटरी अपनी शर्त के चार सौ औंस लेने घुड़सवार के पास गया और उससे अपनी पत्नी के साथ बहुत आनन्द मनाया।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)