महल का चूहा और खेत का चूहा : इतालवी लोक-कथा

The Palace Mouse and the Field Mouse : Italian Folk Tale

एक बार महल रहने वाला एक चूहा महल के भंडारघर में चीज़ खा रहा था कि घर में रहने वाले एक बिल्ले ने उसको डरा दिया। असल में वह बिल्ला किसी तरह से महल के बागीचे में से महल के अन्दर आ गया था।

वह तो चूहे ने अपना सिर एक लैटस के पत्ते के पीछे छिपा लिया वरना तो वह बिल्ला उस दिन उसको खा ही जाता।

लैटस के पत्ते के पीछे छिपा छिपा वह कुछ सोचने लगा। काफी सोचने के बाद उसको याद आया कि उसके पिता ने, भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे, एक बार उससे एक खेत के चूहे के बारे में कुछ कहा था। वह खेत का चूहा बागीचे में एक अंजीर के पेड़ के नीचे रहता था।

सो उसने उस खेत वाले चूहे से मिलने की सोची। वह बागीचे की तरफ दौड़ गया और चारों तरफ उसका बिल ढूँढने लगा। कुछ देर तक इधर उधर घूमने के बाद उसको उस चूहे का बिल मिल गया। बिल मिल जाने पर वह उसमें घुस गया।

महल वाले चूहे के पिता का दोस्त तो मर गया था पर उसका बेटा वहाँ था। दोनों ने आपस में एक दूसरे को अपना परिचय दिया और खेत वाले चूहे ने उसकी दो दिन तक इतनी खातिरदारी की कि महल का चूहा अपने महल की सारी चीज़ और बढ़िया खाना भूल गया।

पर तीसरे दिन उसने इतने सारे शलगम खाये कि अब उसको उसकी खुशबू से भी नफरत हो गयी।

वह बोला — “तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद, मेरे दोस्त। पर अब मुझे तुम्हारे ऊपर ज़्यादा बोझ नहीं बनना चाहिये इसलिये अब मैं चलता हूँ।”

खेत वाला चूहा बोला — “क्यों भाई, जाने की इतनी भी क्या जल्दी है कम से कम एक दिन तो और ठहर जाओ।”

“नहीं दोस्त, घर पर मेरा सब लोग इन्तजार कर रहे हैं। अब मुझे चलना ही चाहिये।”

“घर पर तुम्हारा कौन इन्तजार कर रहा है?”

“एक चाचा हैं . . .। सुनो, मुझे एक विचार आया है। क्यों न तुम मेरे साथ मेरे घर चलो। हम लोग दोपहर का खाना साथ खायेंगे फिर खाना खा कर तुम यहाँ वापस आ जाना।”

खेत वाला चूहा जो महल देखने के लिये बहुत बेचैन था उसके इस बुलावे पर बहुत खुश हुआ और उसके साथ महल चल दिया।

जब वे बागीचे से बाहर आ गये तो वे एक दीवार पर चढ़े और महल के भंडारघर की छोटी सी खिड़की में आ गये।

खेत वाला चूहा बोला — “ओह कितना सुन्दर घर है और कितनी अच्छी खुशबू भी आ रही है।

“नीचे उतरो मेरे दोस्त, और बिल्कुल भी शरम मत करना, इसे अपना ही घर समझना, यहाँ तुम चाहे जितना खाओ।”

“नहीं मेरे दोस्त, बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे इन सब का बिल्कुल भी अन्दाज नहीं है और फिर मैं शायद अपने घर का रास्ता भी न पा सकूँ इसलिये मैं यहीं इस खिड़की पर ही बैठा ठीक हूँ।”

महल वाला चूहा बोला — “अच्छा अगर तुम नीचे नहीं उतरते तो फिर ज़रा तुम वहीं रुको।” कह कर वह नीचे भंडारघर में खुद ही चला गया।

जैसे ही उसने भंडारघर से सूअर के माँस का एक टुकड़ा उठाया एक बिल्ला वहाँ आया और उस महल वाले चूहे को खा गया। खिड़की पर बैठे बैठे उस खेत वाले चूहे के मुँह से एक चीख सी निकली — “ई ई ई ई।”

खेत वाले चूहे का दिल धड़कने लगा। वह बोला — “यह क्या कह रहा है? ओह तो यह है इसका चाचा। इसके चाचा ने तो इसका बहुत ही अच्छा स्वागत किया।

अगर इसी तरह से कोई अपने भतीजे का स्वागत करता है तो ज़रा सोचो वह मेरे साथ क्या करेगा जो कि उसके लिये बिल्कुल ही अजनबी है।” और एक पल में ही वह अपने बागीचे में था।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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