हवा का जन्म : अमरीकी लोक-कथा

The Origin of Wind : American Lok-Katha

(Folktale from Native Americans, Eskimo Tribe/मूल अमेरिकी, ऐस्कीमो जनजाति की लोककथा)

अमेरिका के ऐस्कीमो लोगों में कही जाने वाली यह लोक कथा यह बताती है कि हवा का जन्म ही कैसे हुआ।

एक बार की बात है कि कैनेडा के यूकोन प्रान्त में दक्षिण की तरफ एक गाँव में एक आदमी अपनी पत्नी के साथ अकेला रहता था। उसके कोई बच्चा नहीं था।

एक दिन पत्नी ने पति से कहा — “टुंड्रा में बहुत ऊपर दूर की तरफ एक अकेला पेड़ खड़ा है। तुम उस पेड़ के पास जाओ और उसके तने का एक टुकड़ा ले कर आओ। उससे तुम एक गुड्डा बनाना। उससे हम लोगों को लगेगा कि हमारे एक बच्चा है।”

सो पति घर से बाहर निकला तो उसने क्या देखा कि उसके सामने एक बहुत ही चमकीली रोशनी की लकीर जा रही थी। यह लकीर बर्फ पर चाँद की एक किरन पड़ने से बन रही थी। वह लकीर टुंड्रा से हो कर जा रही थी। उसको वही रास्ता लेने के लिये कहा गया था। वह आकाश गंगा थी।

उसने वही रास्ता पकड़ा और चल दिया। काफी दूर चलने के बाद उसको उस चमकीले रास्ते पर एक चमकीली चीज़ देखी। जब वह वहाँ पहुँचा तो उसने देखा कि वहाँ तो एक पेड़ खड़ा है।

यह तो वही पेड़ था जिसकी खोज में वह निकला था। पेड़ छोटा ही था सो उसने अपना छोटा वाला शिकारी चाकू निकाला और उसके तने में से एक छोटा सा टुकड़ा काट लिया और उसे घर ले आया।

घर ला कर उसने उसमें से एक लड़के की मूर्ति बनानी शुरू की। उसकी पत्नी ने उसके लिये कपड़े के दो सूट बनाये और उनमें से एक जोड़ी कपड़े उसको पहना दिये। दूसरा सूट उसने उठा कर रख दिया कि जब उसका पहला सूट गन्दा हो जायेगा तब वह उसको दूसरा पहना देगी।

फिर उसने पति से कहा — “अब तुम इसके लिये खिलौने वाले बर्तन बना दो।”

पति बोला — “यह सब तो इसके लिये करना बेकार है क्योंकि ऐसा करने से हम लोगों की हालत पहले से कोई ज़्यादा अच्छी नहीं होगी।”

पत्नी ने कहा — “क्यों? हम तो अभी ही पहले से ज़्यादा अच्छे हैं। इस गुड्डे से पहले हमारे पास बात करने के लिये कुछ भी नहीं था सिवाय अपने बारे में बात करने के। अब कम से कम हमारे पास यह गुड्डा तो है बात करने के लिये और हमको आनन्द देने के लिये।”

पत्नी को खुश करने के लिये पति ने उस गुड्डे के लिये खिलौने वाले बर्तन बनाये। पत्नी ने गुड्डे को दरवाजे के सामने एक बैन्च पर बिठा दिया और उसके सामने उन खिलौने वाले बर्तनों में खाना और पानी रख दिया जो उसके पति ने बनाये थे।

जब रात हुई तो पति पत्नी दोनों सोने के लिये चले गये। कमरे में बहुत अँधेरा था। उन्होंने कई सीटी जैसी आवाजें सुनीं तो पत्नी पति से बोली — “क्या तुम्हें ये आवाजें सुनायी पड़ रही हैं? ये उस गुड्डे की आवाजें हैं।” कह कर वह उसको जब तक हिलाती रही जब तक कि वह जाग नहीं गया।

वे दोनों उठे उन्होंने रोशनी की तो उन्होंने देखा कि गुड्डे ने खाना खा लिया था पानी पी लिया था और उसकी आँखें चारों तरफ घूम रही थीं। पत्नी ने खुशी के मारे उसे पकड़ लिया और उसके साथ बहुत देर तक खेलती रही और उसे प्यार करती रही। जब वह थक गयी तब वे दोनों सोने के लिये चले गये।

जब वे सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि गुड्डा तो वहाँ से चला गया है। उन्होंने उसे सारे घर में ढूँढा पर वह उनको कहीं नहीं मिला। घर से बाहर जाते हुए उसके पैरों के निशान वहाँ मौजूद थे। वे उन निशानों के पीछे पीछे चल दिये तो वे एक नदी के किनारे पहुँच गये और वहाँ से उसके किनारे चलते हुए एक ऐसी जगह पहुँच गये जो गाँव के बाहर थी। वहाँ जा कर वे रुक गये क्योंकि वहाँ से रास्ता केवल आकाश गंगा तक जाता था जिस पर पति वह पेड़ ढूँढने के लिये पहले ही जा चुका था।

गुड्डा उस चमकीले रास्ते पर चलता चला गया जब तक वह दिन के किनारे पर नहीं आ गया जहाँ आसमान धरती से मिलता है और दीवारें रोशनी से। उसके बराबर में ही गुड्डे ने वहाँ दीवार में एक बहुत बड़ा छेद देखा जो खाल से ढका हुआ था।

वह खाल अन्दर की तरफ को थोड़ी दबी हुई थी। जैसे उसके दूसरी तरफ से कोई ताकत उसे धक्का दे रही हो।

गुड्डा बोला — “ऐसा लगता है कि थोड़ी सी हवा ही इसको बहुत ही जानदार बना देगी।” कह कर उसने अपना चाकू निकाला और उस ढकने वाली खाल में उससे एक छेद कर दिया। तुरन्त ही वहाँ से एक बहुत ही ज़ोर की हवा गुजरी जो कभी कभी उसमें से एक ज़िन्दा रेनडियर ले कर आ रही थी।

गुड्डे ने उस छेद में से झाँक कर देखा तो उसने देखा कि उस छेद के दूसरी तरफ तो धरती के जैसी एक दूसरी दुनियाँ थी। उसने उस छेद को फिर से ढक दिया।

उसने हवा से कहा — “इतनी ज़ोर से मत बहो। कभी कभी ज़ोर से बहो तो कभी धीरे धीरे बहो और कभी बिल्कुल मत बहो।”

फिर वह आसमान की दीवार पर चढ़ गया और उस पर चलते चलते दक्षिण–पूर्व की तरफ निकल आया। इस तरफ भी उसने उसमें एक छेद देखा। यह भी पहले छेद की तरह से ही ढका हुआ था और इसका ढक्कन भी अन्दर की तरफ को फूला हुआ था।

जब उसने इसका ढक्कन काटा तो उसके छेद में से भी रेनडियर पेड़ और झाड़ियाँ निकल पड़ीं। उसने जल्दी से वह छेद भी बन्द कर दिया और तेज़ हवा से कहा — “ओह तुम तो बहुत तेज़ हो। तुम कभी कभी तेज़ बहो कभी कभी हल्की बहो और कभी कभी बिल्कुल न बहो। धरती के लोगों को अलग अलग तरह की हवा चाहिये।”

आसमान की दीवार के सहारे सहारे चलते चलते वह फिर दक्षिण की तरफ आया। वहाँ भी उसको एक छेद दिखायी दिया जो ढका हुआ था। जब उसने उसके ढक्कन में एक छेद खोला तो वहाँ से बड़ी गर्म हवा बारिश और दक्षिण के समुद्र के पानी के छींटे ले कर आयी। गुड्डे ने उस छेद को भी वही कहते हुए बन्द कर दिया जो उसने औरों से कहा था।

अब वह पश्चिम दिशा की तरफ आया तो उसने वहाँ भी एक छेद देखा। उसके ढक्कन में छेद करने पर वहाँ से समुद्र का पानी ले कर बहुत भारी बारिश और तूफान आया। उसने इसको भी वही कहा जो औरों को कहा था और फिर उत्तर पश्चिम की तरफ चला गया।

उत्तर पश्चिम का छेद खोलने पर उधर से बहुत तेज़ ठंडी हवा आयी जिसके साथ आयी बर्फ। गुड्डा तो उस हवा और बर्फ से हड्डी तक जम गया। उसने तुरन्त ही वह छेद बन्द कर दिया जैसे उसने और छेद बन्द किये थे।

अब वह और आगे उत्तर की तरफ गया तो उसे उधर बहुत ही ठंडी हवा का सामना करना पड़ा। वह हवा इतनी ठंडी थी कि उसे आसमान की दीवार के साथ साथ चलना छोड़ना पड़ा और दक्षिण की तरफ आना पड़ा फिर उत्तर की तरफ वापस गया।

वहाँ तो इतना ज़्यादा ठंडा था कि उसको उस छेद का ढक्कन काटने की हिम्मत बटोरने के लिये कुछ देर तक इन्तजार करना पड़ा। जब उसने उसका ढक्कन काटा तो उधर से बहुत सारी बर्फ के साथ इतनी तेज़ ठंडी हवा का झोंका आया कि उसने सारी धरती को बर्फ से ढक दिया।

वह इतना कड़क ठंडा था कि उसे वह छेद तुरन्त ही ढक देना पड़ा। उसने उससे कहा कि वह केवल जाड़े के मौसम के बीच में ही आये ताकि लोग बिना जाने उसकी चपेट में न आयें। उस समय उनको पता होगा कि वह कब वहाँ आयेगा तो वे उसके लिये तैयारी कर लेंगे।

वहाँ से फिर वह गर्म जगहों के लिये धरती के बीच की तरफ चला जहाँ आ कर उसने देखा कि आसमान तो लम्बे लम्बे डंडों पर खड़ा हुआ है जैसे कि कोई कोण वाला मकान खड़ा हो। पर वे डंडे किसी ऐसी सुन्दर चीज़ के बने थे जिसको वह नहीं जानता था।

चलते चलते वह फिर उसी गाँव में आ गया जहाँ से उसने अपनी यात्रा शुरू की थी और अपने घर में चला गया। गुड्डा उस गाँव में काफी दिनों तक रहा। फिर जब उसके माँ बाप जिन्होंने उसे बनाया था मर गये तो उसको गाँव के दूसरे लोगों ने रख लिया।

और इस तरह से वह पीढ़ी दर पीढ़ी रहता चलता चला आ रहा था कि आखिर वह मर गया।

उसकी मौत के बाद से अब उसी की याद में माता पिता अपने बच्चों के लिये गुड्डे गुड़िया बनाते हैं जिसने हवा आने के लिये आसमान में छेद किये थे और धरती के लिये साल के छह मौसमों के लिये उसको नियमित (Regulated) किया था।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

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