बुलबुल : चीनी लोक-कथा
The Nightingale : Chinese Folktale
चीन के बादशाह का नाम था “चीन का आदमी”। हालाँकि बाकी सब भी “चीन के आदमी” ही थे।
यह बहुत साल पुरानी बात है जब यह कहानी चीन में घटी थी इसी लिये इसको यहाँ लिखना बहुत जरूरी हो गया है ताकि कहीं ऐसा न हो कि लोग इसे भूल जायें।
इस “चीन के आदमी” राजा का महल बहुत बढ़िया था या यों कहना चाहिये कि यह अपने में एक आश्चर्य था। यह सारा का सारा महल केवल पोर्सलेन का बना हुआ था। बहुत कीमती था पर इतना कोमल था कि तुम उसको छूने की भी हिम्मत नहीं कर सकते।
उसके बागीचे में बहुत मुश्किल से मिलने वाले फूल लगे हुए थे। और उनमें से भी जो सबसे सुन्दर थे उनमें चाँदी की घंटियाँ लगी हुईं थीं सो जब हवा चलती थी तो वे बजती थीं और कोई भी आदमी उनकी तरफ देखे बिना नहीं जा सकता था।
उसके बागीचे में सब कुछ उसके प्लान के अनुसार ही लगा हुआ था। वह बागीचा कितना बड़ा था यह तो बादशाह के माली को भी पता नहीं था। पर अगर तुम उसमें चलते जाओ चलते जाओ तो एक जंगल तक पहुँच जाओगे जिसमें बहुत ऊँचे ऊँचे पेड़ लगे हुए थे और बहुत गहरी गहरी झीलें थीं।
यह जंगल भी बहुत नीचे तक गहरे नीले समुद्र तक चला गया है – इतना नीचे तक कि समुद्र में से जाने वाले सब जहाज़ उसके पेड़ों की शाखों के नीचे से जा सकते थे।
इन्हीं पेड़ों में एक बुलबुल रहा करता था। वह इतना मीठा गाता था कि एक गरीब मछियारा भी जिसको अपना ही बहुत काम रहता था वह भी रात को जब अपना मछली पकड़ने वाला जाल समुद्र में डालने जाता तो उसका गाना सुनने के लिये रुक जाता।
उसके मुँह से निकलता “ओह कितना सुन्दर गाता है यह।” पर उसको अपना काम देखना होता था सो वह वहाँ से चल देता और फिर उस चिड़िया का गाना भूल जाता। पर अगली रात जब वह उसका गाना फिर से सुनता तो फिर कहता “ओह कितना सुन्दर गाना है यह।”
बहुत से देशों से बहुत सारे लोग इस बादशाह के देश आते थे। वे उसके देश की तारीफ करते। वे उसके महल की और उसके बागीचे की तारीफ करते पर जब वे बुलबुल को सुनते तो कहते कि “बस यहाँ यही सबसे अच्छा है।”
जब वे यात्री अपने घर पहुँचते तो उसके बारे में बात करते।
विद्वान लोगों ने बादशाह के देश के बारे में उसके महल और उसके बागीचे के बारे में कई किताबें लिखीं पर वे बुलबुल को नहीं भूले। उन्होंने उन सब चीज़ों में बुलबुल की सबसे ज़्यादा तारीफ की। उनमें से भी जो अच्छे कवि थे उन्होंने उस बुलबुल के बारे में बहुत अच्छी अच्छी कविताएँ लिखीं।
वे किताबें दुनियाँ भर में फैल गयीं। उनमें से कुछ किताबें चीन के इस बादशाह के पास भी आयीं। वह अपने सोने के सिंहासन पर बैठ कर उन किताबों को पढ़ता।
उनमें लिखे अपने देश के, अपने महल के और अपने बागीचे के बारे में पढ़ कर वह बहुत खुश होता और हाँ में अपना सिर हिलाता। उसने उन किताबों में पढ़ा कि “मगर वहाँ का बुलबुल सबसे अच्छा है।”
बादशाह के मुँह से निकला — “अरे यह क्या है। मुझे तो इस बुलबुल का पता ही नहीं है? क्या मेरे राज्य में और मेरे ही बागीचे में ऐसी कोई चिड़िया है और मुझे उसका पता नहीं है। मुझे लगता है कि मुझे इस किताब से ही सीखना पड़ेगा।”
उसने अपने खास आदमी को बुलाया तो वह तो अपने आपको बहुत ऊँचा समझने लगा क्योंकि जब उससे उसके नीचे वाला कोई बात करता या सवाल पूछता तो वह बस एक ही जवाब देता “पी” जिसका अर्थ “कुछ नहीं” होता।
बादशाह ने उससे पूछा — “मैंने सुना है कि हमारे बागीचे में एक बुलबुल है। साथ में वे यह भी कहते हैं कि वह मेरे राज्य में सबसे अच्छा है। तो मुझे उसके बारे में क्यों नहीं बताया गया?”
उस खास आदमी ने कहा — “मैंने इसका नाम कभी नहीं सुना योर मैजेस्टी और इसको कभी दरबार में पेश भी नहीं किया गया।”
“मैं तुमको हुक्म देता हूँ कि आज शाम को इसको हमारे दरबार में पेश किया जाये और इसको गाने के लिये कहा जाये। कितनी अजीब बात है कि मेरी चीज़ के बारे में सारी दुनियाँ जानती है और बस मैं ही नहीं जानता।”
वह खास आदमी फिर बोला — “मैंने इसके बारे में कभी सुना नहीं पर मैं इसको ढूँढूँगा और इसके बारे में पता करूँगा।”
पर वह कहाँ पता करेगा। वह खास आदमी ऊपर दौड़ा नीचे दौड़ा सारे कमरे देखे सारे गलियारे देखे पर उसे कोई ऐसा नहीं मिला जिसने ऐसे बुलबुल का नाम सुना हो।
वह खास आदमी वापस बादशाह के पास दौड़ा आया और बोला — “लगता है कि यह कहानी किताब लिखने वालों ने अपने मन से बना कर लिख दी है। योर मैजेस्टी को यह मुश्किल से विश्वास होगा कि इसमें कितनी सच्चाई है या कितनी कल्पना है।”
“पर यह किताब तो मुझे जापान के ताकतवर बादशाह ने भेजी है इसलिये यह किताब झूठ से भरी हुई नहीं हो सकती। मुझे इस बुलबुल को सुनना है। मुझे यह बुलबुल आज शाम को अपने दरबार में चाहिये। उसको मेरी बहुत ऊँची शाही कृपा मिलेगी।
और अगर वह नहीं आया तो मैं अपने सारे दरबार के लोगों को रात के खाने के बाद उनके पेट में घूँसे मारूँगा।”
“सिंग–पी।” कह कर वह खास आदमी वहाँ से फिर से सारे कमरों और सारे गलियारों से हो कर सीढ़ियों से ऊपर की तरफ चला गया। आधा दरबार उसके पीछे पीछे गया क्योंकि कोई भी आदमी रात का खाना खाने के बाद अपने पेट में घूँसे लगवाना नहीं चाहता था।
इस बुलबुल के बारे में बहुत पूछताछ की गयी कि वह आखिर कहाँ है जो सिवाय घर के दुनियाँ भर में इतना ज़्यादा मशहूर है। आखिर उनको रसोई में काम करने वाली एक लड़की मिल गयी जिसने बताया —
“ओह वह बुलबुल? मैं जानती हूँ उस बुलबुल को। वह गा सकता है। हर शाम मैं खाने की मेज से बचा हुआ खाना अपनी बीमार माँ के लिये ले कर जाती हूँ। वह समुद्र के किनारे रहती है। तो जब मैं वहाँ से वापस आती हूँ तो मैं थक जाती हूँ तो जंगल में थोड़ा आराम कर लेती हूँ।
उस समय में उसका गाना सुनती हूँ तो उसको सुन कर मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं। उस समय मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी माँ मुझे चूम रही हो।”
बादशाह के उस खास आदमी ने उससे कहा — “ओ रसोई में काम करने वाली लड़की, मैं तुझे हमेशा के लिये रसोई में काम करने वाले से तरक्की करा कर रसोई में सहायता करने वाला बना दूँगा।
मैं तेरे लिये बादशाह को खाना खाते देखने की इजाज़त भी दिलवा दूँगा अगर आज शाम को तू मुझे उस बुलबुल के पास ले चले क्योंकि उसको आज शाम को दरबार में हाजिर होना है।”
सो वे दोनों जंगल में उस जगह गये जहाँ वह बुलबुल अक्सर गाया करता था। आधे दरबारी भी उनके साथ गये। जब वे सब जंगल जा रहे थे तो एक गाय रँभाने लगी।
एक दरबारी उसके रँभाने को सुन कर चिल्लाया — “ओह वह बुलबुल यही होगा। वाह इस छोटे से प्राणी की कितनी तेज़ आवाज है। मुझे यकीन है कि मैंने इसको पहले भी गाते हुए सुना है।” रसोई में काम करने वाली वह छोटी लड़की बोली — “नहीं यह तो गाय है जो रँभा रही है। अभी तो हमें बहुत दूर जाना है।”
बीच में दलदल के मेंढक टर्राये तो एक दरबारी बोला — “ओह कितना सुन्दर। मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे चर्च के घंटे बज रहे हों।”
रसोई में काम करने वाली वह छोटी लड़की फिर बोली — “ओह ये तो मेंढक हैं पर हम अब उसे जल्दी ही सुनेंगे।”
उसके बाद बुलबुल के गाने की आवाज आयी तो रसोई में काम करने वाली वह छोटी लड़की बोली — “यह है वह देखो यह है वह। देखो वह उधर बैठा है।”
कह कर उसने एक भूरी चिड़िया की तरफ इशारा किया जो एक पेड़ पर एक ऊँची सी शाख पर बैठी थी।
बादशाह का वह खास आदमी चिल्लाया — “उफ़ क्या यह मुमकिन है? मैंने तो कभी यह सोचा भी नहीं था कि यह बुलबुल ऐसा दिखायी देता होगा। कितना अजीब सा है यह। पर शायद यह इतने सारे लोगों को देख कर पीला पड़ गया है।”
उसको देख कर रसोई में काम करने वाली वह छोटी लड़की चिल्लायी — “ओ छोटे बुलबुल। हमारे बादशाह तुम्हारा गाना सुनना चाहते हैं।”
बुलबुल बोला — “अच्छा। बड़ी खुशी से।”
और उसने गाना गाना शुरू कर दिया।
बादशाह का खास आदमी बोला — “अरे इसका गाना तो ऐसा है जैसे शीशे की घंटियाँ बज रही हों। और इसका छोटा सा गला तो देखो यह कितनी जल्दी जल्दी फड़क रहा है।
मुझे ताज्जुब है कि हमने इसे पहले कभी क्यों नहीं सुना। मुझे यकीन है कि इससे हमारे दरबार में चार चाँद लग जायेंगे।”
बुलबुल को लगा कि बादशाह वहीं हैं तो उसने पूछा — “क्या मैं बादशाह के लिये फिर से गाऊँ?”
बादशाह के खास आदमी ने कहा — “ओ मेरे छोटे बुलबुल मुझे तो यह हुक्म मिला है कि मैं तुमको आज शाम को बादशाह के दरबार में पेश करूँ जहाँ तुम अपने गाने से बादशाह का दिल बहलाओ।”
बुलबुल बोला — “मेरा गाना तो इस सारे जंगल में सबसे अच्छा है।” पर जब उसने सुना कि यह बादशाह की इच्छा है कि मैं उनके दरबार में गाऊँ तो वह उनके साथ चला गया।
इस मौके के लिये बादशाह का महल खास कर के पालिश किया गया था। पोर्सलेन की दीवारें और फर्श बहुत सारे सोने के लैम्पों की रोशनी में चमक रहे थे।
बादशाह के बागीचे में जिन फूलों पर चाँदी की घंटियाँ लगी हुई थीं उन फूलों को अन्दर लाया गया था। वहाँ इतने सारे लोग आ जा रहे थे कि उनके आने जाने से वे घंटियाँ बहुत ज़ोर ज़ोर से बज रही थीं।
बादशाह के राज दरबार के बीच में सिंहासन रखा था जहाँ बादशाह बैठते थे। उसके पास ही बुलबुल के बैठने की सोने की जगह बनवायी गयी थी। सारा दरबार वहाँ जमा था।
उन लोगों ने रसोई में काम करने वाली उस छोटी लड़की को भी दरवाजे के पीछे खड़े होने की इजाज़त दे दी थी। अब उसको शाही बर्तन धोने वाली बना दिया गया था।
सब लोग अपने सबसे अच्छे कपड़े पहिने हुए थे और सबकी निगाहें उस भूरी बुलबुल पर ही जमी हुई थीं। बादशाह भी उस चिड़िया को देख कर अपना सिर हिला रहे थे।
और तब बुलबुल ने अपना गाना शुरू किया तो बादशाह की आँखों में आँसू आ गये और वे उनके गालों तक बह आये। उसके बाद बुलबुल ने और ज़्यादा मीठे गाने गाये तो बादशाह का तो दिल भी पिघलने लगा।
वह बुलबुल का गाना सुन कर इतना खुश हुए कि उनका दिल चाहा कि इनाम के तौर पर वह अपना सोने का जूता उस बुलबुल के गले में पहना दें पर बुलबुल ने नम्रता से उनको यह करने से मना कर दिया। उसको अपने गाने का काफी इनाम मिल चुका था।
बुलबुल बोला — “मैंने बादशाह की आँखों में आँसू देखे इससे बड़ा इनाम मेरे लिये और क्या हो सकता है। एक बादशाह के आँसू तो बहुत ताकतवर होते हैं। मुझे मेरा इनाम मिल गया।” यह कह कर उसने फिर गाना शुरू कर दिया।
बादशाह की सेवा में रहने वाली स्त्रियाँ बोलीं — “हमारे अब तक के सुने हुए गानों में यह सबसे सुन्दर और मीठा गाना है।” कह कर उन्होंने इस उम्मीद में अपने मुँह में पानी भर कर कुल्ले किये कि जब कोई उनसे बात करेगा तो वे भी शायद बुलबुल की तरह से मीठा बोल सकेंगी।
महल की दासियाँ भी बुलबुल के गाने से बहुत सन्तुष्ट थी क्योंकि उनको खुश करना भी बहुत मुश्किल काम था और वह उस बुलबुल ने कर दिया था। इस तरह उस बुलबुल का वहाँ खूब ज़ोर शोर से स्वागत हुआ और तारीफ हुई।
अब उसको बादशाह के दरबार में उसके अपने पिंजरे में ही रहना था। उसको घूमने के लिये दिन में दो बार और रात में एक बार बाहर जाने की इजाज़त थी।
बारह लोग उसकी सेवा में तैनात थे और हर एक के हाथ में उसके पैर में बँधी हुई रस्सी थी। पर इस तरह के बाहर जाने में कोई मजा नहीं था।
अब सारा शहर उस चिड़िया की बात करता था। अगर एक कहता “नाइट” तो दूसरा तुरन्त ही कहता “गेल”।
ग्यारह सूअर काटने वालों के बच्चों के नाम बुलबुल रखे गये पर उनमें से कोई गा भी नहीं सकता था।
एक दिन बादशाह को एक पैकेट मिला जिस पर “नाइटिन्गेल” लिखा हुआ था। बादशाह ने सोचा कि यह उनके बुलबुल के बारे में शायद कोई और किताब होगी। पर ऐसा नहीं था।
उसमें बुलबुल की शक्ल की एक मूर्ति रखी थी जो बिल्कुल असली बुलबुल लग रही थी सिवाय इसके कि वह मूर्ति हीरे लाल और नीलम से जड़ी हुई थी।
जब उसको चाभी लगायी जाती थी तो वह बुलबुल का गाया एक गाना गाती थी और सोने और चाँदी की बनी हुई पूँछ हिलाती थी।
उसके गले में एक रिबन से बँधे हुए कागज पर यह लिखा था “जापान के बादशाह का बुलबुल चीन के बादशाह के बुलबुल की तुलना में एक बहुत ही गरीब पक्षी है।”
हर एक के मुँह से निकला “अरे यह तो बड़ा अच्छा है।” और वह आदमी जो उस पैकेट को ले कर आया था उसको “शाही बुलबुल पकड़ने वाले का सरदार” बना दिया गया।
दरबारियों ने कहा — “अब इन दोनों बुलबुलों को साथ साथ गाने दिया जाये तो कितना अच्छा दोगाना रहेगा।”
सो दोनों ने साथ साथ गाया पर बात कुछ जमी नहीं क्योंकि ज़िन्दा बुलबुल ने तो वही गाया जो उसके दिमाग में आया जबकि नकली बुलबुल ने वह गाया जो उसमें भरा हुआ था।
शाही गवैये ने कहा कि यह नकली बुलबुल का दोष नहीं था क्योंकि वह तो वही गा रहा था जो उसने उसे सिखाया था। तब उन्होंने उस नकली बुलबुल को अपने आप गाने दिया। इस बार उस नकली बुलबुल ने ठीक से गाया जैसा कि असली बुलबुल गा रहा था।
इसके अलावा वह असली बुलबुल से कहीं ज़्यादा सुन्दर था। उसके पंजों में गहने पड़े थे और छाती पर पिनें जड़ी थीं। उसने अपने आप से तैंतीस बार बिना थके गाया।
दरबारी तो उसको फिर सुन लेते पर बादशाह ने कहा कि अब असली बुलबुल को भी तो मौका मिलना चाहिये। पर वह था कहाँ? किसी ने यह देखा ही नहीं कि वह खुली हुई खिड़की से बाहर जंगल में अपने घर की तरफ उड़ गया था।
बादशाह के मुँह से निकला “पर उसने ऐसा क्यों किया?”
सारे दरबारियों ने यह कह कर उसकी बेइज़्ज़ती की कि वह तो बहुत ही कृतघ्न नीच निकला। अच्छा है कि अब हमारे पास सबसे अच्छी चिड़िया है। और उन्होंने उस नकली बुलबुल से दोबारा गाना गवाया।
यह गीत वे चौंतीसवीं बार सुन रहे थे पर वे उसको याद नहीं कर सके क्योंकि वह बहुत ही मुश्किल धुन थी। संगीतज्ञ उस नकली बुलबुल की कुछ ज़्यादा ही तारीफ कर रहा था कि यह नकली बुलबुल उस असली बुलबुल से कहीं ज़्यादा अच्छा था।
वह केवल दिखने में और हीरे जड़े होने की वजह से ही ज़्यादा अच्छा नहीं था बल्कि उसके अन्दर की मशीन भी बहुत अच्छी थी।
वह फिर बोला — “देखो न स्त्रियों और पुरुषों और योर मैजेस्टी कि असली बुलबुल कब क्या करेगा यह पता नहीं चल सकता पर यह नकली बुलबुल अपने प्लान के अनुसार ही काम करेगा। इसमें कहीं किसी शक की कोई गुंजायश नहीं है।
मैं इस बात को आपको समझा सकता हूँ,। पहले मैं इसके टुकड़े टुकड़े कर देता हूँ और फिर आप सबको समझाता हूँ कि इसमें इसकी मशीन के पहिये किस तरह से लगाये गये हैं। ये कैसे चारों तरफ घूमते हैं और कैसे एक दूसरे के पीछे चलते हैं।”
सबने कहा “यही तो हम जानना चाहते हैं।”
और उस संगीतज्ञ को अगले रविवार को यह सब दिखाने के लिये कहा गया। बादशाह ने अपने सभी लोगों से कहा कि उनको वह सब सुनना चाहिये जो वह उस दिन बतायेगा। और उसे केवल सुनना ही नहीं चाहिये बल्कि खुशी से सुनना चाहिये अगर चीन के फैशन के अनुसार उनको चाय के साथ कुछ खाना भी है।
सबने अपने अपने हाथ उठा कर हाँ कर दी।
पर जिस मछियारे ने उस असली बुलबुल को गाते सुना था बोला — “यह बुलबुल बहुत अच्छा है और असली बुलबुल जैसा ही लगता है पर फिर भी यह वैसा नहीं है। हालाँकि मैं यह नहीं बता सकता कि इसमें क्या कमी है।”
असली बुलबुल को देश से निकाल दिया गया। अब उसकी जगह वह नकली बुलबुल बादशाह के पास एक गद्दी पर बैठा करता था। उसके सारे जवाहरात उसके पास पड़े रहते और अब उसका नाम था “बादशाह को सुलाने वाल शानदार शाही गवैया”।
वह बादशाह के बाँयी तरफ उनके बराबर मे ं बैठता था क्योंकि बादशाह अपने बाँये हाथ की जगह को अपना दिल उधर होने की वजह से बहुत बड़ा मानते थे।
उस संगीतज्ञ ने फिर उस नकली बुलबुल के बारे में 25 खंड की एक किताब लिखी। उसको लोगों को सीखने के लिये दिया गया। उसमें चीनी भाषा के बहुत सारे बहुत मुश्किल शब्द थे पर लोगों का कहना था कि उन्होंने उसको पढ़ लिया था और समझ भी लिया था। कहीं ऐसा न हो कि लोग उनको बेवकूफ समझें और उनके पेट में फिर घूँसा मारें।
एक साल के बाद बादशाह, उनके दरबारियों और दूसरे लोगों को सबको उस नकली बुलबुल के गीत याद हो गये थे। अब वे उनको और ज़्यादा अच्छे लगने लगे थे क्योंकि अब वे उनको खुद भी गा सकते थे।
और वे गाते भी थे। “ज़ीज़ीज़ी क्लक क्लक क्लक। ज़ीज़ीज़ी क्लक क्लक क्लक।” यहाँ तक कि बादशाह भी गाते थे इसी लिये वह इतना लोकप्रिय हो गया था।
लेकिन एक रात जब वह नकली बुलबुल बादशाह के बिस्तर के पास गा रहा था तो एक ट्वैंग की आवाज के साथ उस चिड़िया के अन्दर कुछ टूट गया। उसके पहिये रुक गये तो उसका संगीत भी रुक गया।
बादशाह तुरन्त ही अपने बिस्तर से कूद गये और अपने डाक्टर को बुला भेजा। पर वह बेचारा डाक्टर क्या करता। यह कोई ज़िन्दा चिड़िया तो थी नहीं।
फिर उसने एक घड़ीसाज़ को बुलवाया तो उसने उस चिड़िया की मरम्मत की पर साथ में बादशाह को यह चेतावनी भी दी कि उस चिड़िया से उसे बहुत काम नहीं लेना चाहिये क्योंकि उसके अन्दर के काँटे अब काफी घिस गये हैं। और अगर उन काँटों को बदलवाया गया तो उसकी धुन में फर्क आ सकता है।
अब यह तो बड़ी गड़बड़ बात थी कि वे उस चिड़िया को साल में केवल एक बार ही गवा सकते थे। और यह तो उनके लिये बहुत ज़्यादा था।
तब संगीतज्ञ ने मुश्किल चीनी भाषा में एक भाषण दिया जिसमें उसने यह कहा कि चिड़िया में कोई खराबी नहीं है वह पहले जैसी ही ठीक है।
फिर पाँच साल बीत गये। अबकी बार राज्य पर सचमुच का दुख आ पड़ा। चीन के लोग अपने बादशाह को बहुत प्यार करते थे पर अब वह बीमार पड़े थे और ऐसा कहा गया कि उनके ठीक होने का कोई तरीका ही समझ में नहीं आ रहा था।
एक नया बादशाह चुन कर रख लिया गया था। लोग महल की सडकों पर खड़े हुए थे और बादशाह के खास आदमी से उनके बारे में पूछ रहे थे कि वह अब कैसे हैं।
उसने कहा “पी” और अपना सिर ना में हिला दिया।
बादशाह अपने शानदार बिस्तर पर पीले और ठंडे लेटे हुए थे। सारे दरबारियों को ऐसा लग रहा था जैसे कि वह मर गये हों सो वे नये बादशाह को बुलाने गये।
महलों में काम करने वाली स्त्रियों ने गपशप मारनी शुरू कर दी कौफी पार्टी शुरू कर दी क्योंकि यह तो एक खास मौका था। सारे कमरों और गलियारों में खूब मोटे मोटे कालीन बिछाये गये ताकि वहाँ से कोई चले तो उसके चलने की आवाज न हो। सारे महल में मौत का सा सन्नाटा छाया हुआ था।
पर बादशाह अभी मरे नहीं थे। उनका शरीर पीला हो गया था और अकड़ गया था पर वह अभी भी अपने शानदार बिस्तर पर लेटे हुए थे जिसके लम्बे मखमली परदे थे और उनमें सोने के भारी भारी फुँदने लगे हुए थे।
उस कमरे की दीवार पर ऊँचाई पर एक खिड़की थी जिससे चाँदनी अन्दर आ रही थी और बादशाह और उसकी नकली चिड़िया पर पड़ रही थी।
बेचारे बादशाह बड़ी मुश्किल से साँस ले पा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उनकी छाती पर बैठा हो। उन्होंने आँख खोल कर देखा तो मौत को वहाँ बैठा देखा।
उसने बादशाह का ताज पहन रखा था। उसके हाथ में बादशाह की सोने की तलवार थी और बादशाह का रेशम का झंडा था। बादशाह के बिस्तर पर लगे मखमल के परदों की सिलवटों में कई अजीब से जाने पहचाने चेहरे थे। उनमें से कुछ भयानक थे और कुछ अच्छे थे। वे सब बादशाह के अपने कर्म थे – बुरे और अच्छे जो अब मौत के समय उनके पास आ गये थे।
“तुमको हमारी याद नहीं है।” “तुमको हमारी याद नहीं है।” वे बारी बारी से बादशाह से यह पूछ रहे थे जिससे बादशाह के माथे पर पसीना आ गया।
बादशाह बोले — “नहीं मुझे याद नहीं है। संगीत, संगीत, चीन के ढोल की आवाज बहुत है वह बजाओ। कहीं ऐसा न हो कि मैं वह सुन लूँ जो वे कह रहे हैं।” और मौत ने हाँ में सिर हिलाया।
“संगीत संगीत। ओ मेरी छोटी कीमती चिड़िया गाओ। मैंने तुम्हें सोना दिया कीमती भेंटें दीं अपना सोने का जूता तुम्हारे गले में लटकाया। मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि गाओ।”
पर वह चिड़िया तो चुपचाप रही क्योंकि उसको चाभी लगाने वाला वहाँ कोई नहीं था। उसको गवाने वाला वहाँ कोई नहीं था। मौत बादशाह की खाली आँखों में देखती रही।
मौत का सन्नाटा छा रहा था कि अचानक दीवार की ऊपर वाली खिड़की से एक गीत आया। यह उस ज़िन्दा बुलबुल का गीत था जो उस खिड़की के बाहर ही एक शाख पर बैठा था।
उसने बादशाह की हालत सुन ली थी इसलिये वह उनके लिये उम्मीद ले कर गाने चला आया था। जैसे ही उसने गाया तो वे अजीब से चेहरे जो बादशाह के बिस्तर के मखमली परदों की सिकुड़नों में दिखायी दे रहे थे पीले पड़ने लगे और बादशाह के शरीर में खून तेज़ी से दौड़ने लगा।
यहाँ तक कि मौत ने भी उसका गाना सुना तो बोली “गाते रहो गाते रहो ओ बुलबुल गाते रहो।”
बुलबुल बोला — “पर क्या तुम बादशाह की वह तलवार वह झंडा और उनका वह ताज वापस दे दोगी?”
और मौत ने उसको एक गीत के बदले में वह सब वापस कर दिया। बुलबुल गाता रहा। उसने उस शान्त चर्च के आँगन के बारे में गाया जहाँ सफेद गुलाब उगते हैं। जहाँ ऐल्डर के फूल महक कर सारी हवा को खुशबूदार बनाते हैं। जहाँ घास हमेशा हरी रहती है और उनके आँसुओं से गीली रहती है जो अभी भी ज़िन्दा है,।
मौत को यह बागीचा बहुत अच्छा लगता था सो वह एक कोहरा बन कर खिड़की से हो कर बाहर निकल गया।
बादशाह बोले — “धन्यवाद धन्यवाद स्वर्ग से आयी ओ चिड़िया तुझे धन्यवाद। मुझे मालूम है कि एक बार मैंने तुझे अपने राज्य से निकाल दिया था पर तूने उन बुरे चेहरों को मेरे बिस्तर के पास से भगा दिया और मौत को भी मेरे दिल से। मैं तुझे इसका बदला कैसे चुकाऊँ।”
बुलबुल बोला — “आपने तो मुझे पहले ही बहुत कुछ दे दिया है। जब मैंने पहली बार गाया था तो मैं तो आपकी आँखों में आँसू ले आया था। किसी गाने वाले के दिल के लिये वे किसी भी कीमती पत्थर से भी ज़्यादा कीमती चीज़ थे।
पर अब आप सो जाइये और मेरा गाना सुन कर तरोताजा और ताकतवर हो जाइये।”
और फिर वह बुलबुल वहाँ तब तक गाता रहा जब तक बादशाह गहरी नींद नहीं सो गया।
जब बादशाह सो कर उठे तो सुबह हो चुकी थी सूरज निकल आया था और वह उनकी खिड़की से चमक रहा था। बादशाह अब बिल्कुल ठीक थे। उनका कोई भी नौकर वहाँ नहीं था क्योंकि उन्होंने सोचा कि वह मर गये थे पर बुलबुल अभी भी गा रहा था।
बादशाह बुलबुल से बोले “तुम हमेशा मेरे साथ रहना और तुम तभी गाना जब तुम्हारी इच्छा हो। मैं इस नकली चिड़िया के हजारों टुकड़े कर के फेंक दूँगा।”
बुलबुल बोला — “नहीं योर मैजेस्टी। उसने जो कुछ उससे हो सकता था किया। उसे आप अपने पास ही रखें। मैं अपना घोंसला यहाँ नहीं बना सकता और न ही मैं महल में रह सकता हूँ सो जब भी मैं चाहूँगा यहाँ आ जाऊँगा।
यहाँ आ कर मैं आपकी इस खिड़की के पास की शाख पर बैठ जाऊँगा और फिर आपको ऐसी ऐसी चीज़ें सुनाऊँगा जिनसे आप खुश भी होंगे और दूसरों की परवाह भी करेंगे।
मैं आपको उनके गीत सुनाऊँगा जो खुशदिल हैं और जो दुखी हैं। मेरे गीत आपको उन सब अच्छे और बुरों के बारे में बतायेंगे जो आपको मालूम नहीं हैं।
एक छोटी सी गाने वाली चिड़िया बहुत दूर दूर तक जाती है – मछियारे की झोंपड़ी तक़ किसान के घर तक और आपसे और आपके दरबार से भी बहुत दूर दूर तक।
मुझे आपके ताज से आपका दिल ज़्यादा पसन्द है पर फिर भी आपका ताज भी तो आपके लिये एक आशीर्वाद है। मैं आऊँगा और आपके लिये गाऊँगा अगर आप मुझसे एक बात का वायदा करें तो।”
बादशाह अपनी शाही पोशाक पहिने खड़े थे वह पोशाक उन्होंने खुद ही पहनी थी। अपनी सोने की तलवार को अपने सीने से लगाते हुए वह बोले — “मेरा जो कुछ है वह तुम्हारा है। बोलो तुम्हें क्या चाहिये।”
बुलबुल बोला — “केवल एक बात। वह यह कि आप किसी से यह नहीं कहना कि एक छोटी सी चिड़िया आपसे सब कुछ कहती है तब और ज़्यादा अच्छा रहेगा।” और यह कह कर वह उड़ गया।
उसके बाद बादशाह के नौकर अपने मरे हुए बादशाह को देखने के लिये आये तो वे तो वहाँ खड़े के खड़े ही रह गये।
बादशाह बोले — “गुड मौर्निंग।”
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)